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रेप..रेप..रेप, नहीं संभल रही भाजपा से सत्ता

उन्नाव कांड और कठुआ कांड पर समूचा देश सकते में है. जो गुस्सा निर्भया बलात्कार मामले में देखा गया, वैसा ही आक्रोश देशभर में उबल रहा है. घटनाओं के विरोध में महिला संगठन, छात्र संगठन और सामाजिक संगठन सड़कों पर कैंडल मार्च कर रहे हैं. जगहजगह धरना दे कर पीडि़ताओं को न्याय दिलाने की मांग की जा रही है. दोनों अमानवीय घटनाओं में सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा अपराधियों के बचाव में खड़े हो कर न्याय की राह में आड़े आने का रवैया हैरान कर देने वाला था. अपराधियों के साथ भगवा सत्ता और हिंदू संगठनों के समर्थन का खतरनाक रूप सामने आया है. शुरू में भाजपा सरकार की जिस तरह से जयजयकार हो रही थी, 4 वर्ष होतेहोते अब उस के प्रति लोगों में आक्रोश देखा जाने लगा है. सरकार कई मोरचों पर असफल रही है. क्या भाजपा से सत्ता संभल नहीं रही है? देश में अराजक तत्त्वों का बोलबाला बढ़ रहा है और सरकार उन के आगे असहाय बनी दिख रही है. तमाम मंत्रालय निकम्मे साबित हो रहे हैं.

कुकर्मियों का बचाव कठुआ की घटना को लें. जम्मूकश्मीर के कठुआ जिले के सरन गांव की 8 वर्षीया आमना (बदला हुआ नाम) का पहले अपहरण हुआ. उसे करीब एक सप्ताह तक एक मंदिर में बंधक बना कर रखा गया. उस का यौनशोषण किया गया और फिर बेरहमी से मार डाला गया. अबोध आमना अल्पसंख्यक गुर्जर बकरवाल समुदाय की लड़की थी. अपराध शाखा द्वारा दायर आरोपपत्र के अनुसार यह जघन्य कांड अल्पसंख्यक समुदाय को इलाके से हटाने के लिए रची गई सोचीसमझी साजिश थी. मामले में 8 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. अफसोस और शर्म की बात है कि मामला सामने आने के बाद हिंदू संगठनों ने तिरंगा ले कर भारत माता की जय बोलते हुए अपराधियों के समर्थन में सड़कों पर जुलूस निकाला. जुलूस में राज्य सरकार में शामिल भाजपा के

2 मंत्री भी शरीक थे जिन के खिलाफ हल्ला मचने पर पार्टी द्वारा उन से इस्तीफा देने को कहा गया. इस बर्बर कांड को ले कर सोशल मीडिया पर जो गुस्सा निकल रहा है, उस में क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख यानी इंसाफ के लिए उमड़े आक्रोश के सामने तमाम धर्मों की दीवारें ढह गईं. हर धर्म, वर्ग, जाति के लोगों द्वारा आमना के साथ हुए बर्बर अत्याचार के लिए दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की मांग की जा रही है.

विधायक का खौफ उन्नाव की घटना भी ऐसी ही है. उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक युवती के साथ बलात्कार के मामले में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर का नाम भी है. उन के अलावा 3 अन्य आरोपी हैं. मृतक की बेटी का आरोप है कि विधायक और उस के साथी लोगों ने उस के साथ गैंगरेप किया. दरअसल, ये लोग लड़की के परिवार से रंजिश रखते थे. उन को नीचा दिखाने व सबक सिखाने के लिए सालभर पहले रेप किया था.

अपने साथ हुए दुष्कर्म को ले कर लड़की मुकदमा लिखाने के लिए दरदर भटक रही थी. विधायक का नाम मुकदमे में लिखने को पुलिस तैयार नहीं हुई तो लड़की ने कोर्ट जा कर मुकदमा दर्ज कराया. जब कोर्ट के जरिए यह मुकदमा लिखा गया तो विधायक ने मुकदमा वापस लेने के लिए उस के पिता को पीटा और जेल भिजवा दिया, जहां उस की मौत हो गई. पूरे घटनाक्रम को देखें तो विधायक की धौंस पता चलती है. पद का घमंड

लखनऊ से 56 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के माखी गांव की पीडि़ता (बदला हुआ नाम कविता) के पिता और दोनों चाचा 15 साल पहले कुलदीप सिंह सेंगर के करीबी हुआ करते थे. कविता की 3 बहनें और 1 भाई है. एक ही जाति के होने के कारण उन में आपसी तालमेल भी बेहतर था. वे एकदूसरे के सुखदुख में साझीदार होते थे. दोनों ही परिवार माखी गांव के सराय थोक इलाके के रहने वाले थे. कविता के ताऊ सब से दबंग थे. कुलदीप सिंह सेंगर ने कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू की. चुनावी सफर में कांग्रेस का सिक्का कमजोर था तो वे विधानसभा का पहला चुनाव बसपा यानी बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर लड़े और 2002 में पहली बार उन्नाव की सदर विधानसभा सीट से विधायक बने.

कुलदीप के विधायक बनने के बाद कविता के परिवारजनों के साथ कुलदीप का व्यवहार बदलने लगा. जहां पूरा समाज कुलदीप को विधायकजी कहने लगा था, वहीं कविता के ताऊ कुलदीप को उन के नाम से बुलाते थे. कुलदीप अपनी छवि को बचाने के लिए इस परिवार से दूरी बनाने लगे. कविता के पिता और उन के दोनों भाइयों को यह लगा कि कुलदीप के भाव बढ़ गए हैं. वे किसी न किसी तरह से कुलदीप को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहे. यह मनमुटाव बढ़ता गया. एक तरफ जहां कविता का परिवार कुलदीप का विरोध कर रहा था वहीं कुलदीप अपना राजनीतिक सफर बढ़ाते गए. कविता के ताऊ के ऊपर करीब एक दर्जन मुकदमे माखी और दूसरे थानाक्षेत्रों में दर्ज थे. करीब 10 वर्षों पहले उन्नाव शहर में भीड़ ने ईंटपत्थरों से हमला कर के कविता के ताऊ को मार दिया. कविता के परिवार के लोगों ने इस घटना का जिम्मेदार विधायक कुलदीप को ही माना था. कविता के ताऊ की मौत के बाद उस के चाचा उन्नाव छोड़ कर दिल्ली चले गए. वहां उन्होंने अपना इलैक्ट्रिक वायर का बिजनैस शुरू किया. उन के ऊपर

10 मुकदमे दर्ज थे. कविता के पिता अकेले रह गए. उन के ऊपर भी 2 दर्जन मुकदमे दर्ज थे. नशा और मुकदमों का बोझ उन को बेहाल कर चुका था. कुलदीप ने 2007 का विधानसभा चुनाव समाजवादी पार्टी के टिकट पर बांगरमऊ विधानसभा से जीता और 2012 में भगवंतनगर विधानसभा से चुनाव जीता. 2017 के विधानसभा चुनाव में कुलदीप ने भाजपा का साथ लिया और बांगरमऊ से विधायक बन गए. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के परिवार की कविता के परिवार से रंजिश बनी रही. उन्नाव जिले की पहचान दबंगों वाली है. यहां अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की बहुतायत है. माखी गांव बाकी गांवों में से संपन्न माना जाता है. यहां कारोबार भी दूसरों की अपेक्षा अच्छा चलता है.

योगी राज के लिए फांस विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के मामले को देखें तो पूरी बात साफ हो जाती है. सत्ता की हनक में अपना विरोध करने वाले के साथ विधायक कुलदीप सेंगर ने जो कुछ किया, वह अब योगी राज के गले में फांस बन गई है. उन्नाव से ले कर राजधानी लखनऊ तक केवल पुलिस ही नहीं, जेल और अस्पताल तक में जिस तरह से विधायक के विरोधी के साथ बरताव हुआ, वह किसी कबीले की घटना से कम नहीं है. पहले अपने विरोधी की पिटाई पानी डालडाल कर की जाती है. मरणासन्न अवस्था में उस के खिलाफ मुकदमा कायम करा कर पुलिस की मिलीभगत से जेल भेज दिया जाता है. घायल को ले कर पुलिस सरकारी अस्पताल जाती है जहां उस का इलाज करने के बजाय उसे जेल भेज दिया जाता है. घायल को जेल में सही इलाज नहीं मिलता जिस से वह तड़पतड़प कर मर जाता है.

विधायक की धौंस तो पूरे देश को सुनाई देने लगी. सरकार ने पहले बचाव किया. जब जनता से ले कर कोर्ट तक सरकार की नीयत पर सवाल उठने लगे तब दबाव में पूरा मामला सीबीआई को सौंपना पड़ा. सत्ता के आते ही योगी राज में भाजपाइयों की धौंस बढ़ गई है. ऐसे सीन फिल्मों में देखने को मिल सकते हैं. पुलिस से ले कर जेल और अस्पताल तक के लोग विधायक की धौंस के आगे नतमस्तक बने रहे. जेल में जाने के दूसरे ही दिन घायल की मौत हो जाती है, मौत के बाद जागी सरकार के दबाव में पुलिस विभाग ने अपने कर्मचारियों को भले ही सस्पैंड कर दिया हो पर जिला जेल और अस्पताल के लोगों को कोई सजा नहीं दी गई है. अपना दामन बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे मामले की जांच के लिए एसआईटी बना दी है.

बलात्कार का अनकहा सच कविता के साथ हुए बलात्कार के मसले पर जो जानकारी सामने आई उस के अनुसार जून, 2017 में राखी (बदला हुआ नाम) नामक महिला कविता को ले कर विधायक कुलदीप के पास गई. विधायक ने उसे बंधक बना लिया उस के साथ बलात्कार किया गया. बलात्कार का आरोप विधायक के भाई और साथियों पर लगा. घटना के 8 दिनों के बाद कविता औरया जिले के पास मिली. कविता और उस के पिता ने इस बात की शिकायत थाने में की. पुलिस ने 3 आरोपी युवकों को जेल भेज दिया. घटना में विधायक का नाम शामिल नहीं हुआ.

एकतरफा कार्यवाही 3 अप्रैल, 2018 को विधायक के छोटे भाई ने कविता के पिता के साथ मारपीट का मुकदमा वापस लिए जाने के लिए कहा. कविता और उस के परिवारजनों ने पुलिस में मुकदमा लिखाया. इस के साथ ही साथ विधायक के लोगों की तरफ से भी मुकदमा लिखाया गया. पुलिस ने क्रौस एफआईआर दर्ज कीं और केवल कविता के पिता को जेल भेज दिया. कविता का आरोप है कि जेल में विधायक के लोगों ने उस के पिता की खूब पिटाई की.

8 अप्रैल को कविता अपने परिवारजनों के साथ राजधानी लखनऊ आई और सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कालीदास मार्ग स्थित आवास पर पहुंच गई. यहां उस ने आत्मदाह करने की कोशिश की. पुलिस ने उस को पकड़ लिया. गौतमपल्ली थाने में कविता को रखा गया. वहां से पूरे मामले की जांच करने के लिए एसपी, उन्नाव से कहा गया. इस बीच जेल में ही कविता के पिता की मौत हो गई. पोस्टमौर्टम रिपोर्ट में पिटाई और घाव में सैप्टिक हो जाने से मौत होने की पुष्टि हुई. पोस्टमौर्टम रिपोर्ट में मृतक के शरीर पर चोट के 14 निशान पाए गए.

योगी की मजबूरी कविता के पिता की जेल में मौत के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमा गई. विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी से ले कर कांग्रेस तक ने सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए. खुद विधायक कुलदीप सिंह सेंगर मुख्यमंत्री से मिलने गए. लेकिन उन्होंने विधायक से मुलाकात नहीं की. विधायक को यह संदेश दिया गया कि वे जांच में सहयोग करें. सरकार की सख्ती के बाद कविता के पिता से मारपीट के आरोपी विधायक के भाई अतुल सिंह को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. कविता ने इस के बाद भी अपनी लड़ाई जारी रखी है. निकम्मी साबित होती सरकार

दोनों मामलों को ले कर पूरे देश में भाजपा की किरकिरी हो रही है. शुरू में भाजपा सरकार द्वारा विकास की जो योजनाएं पेश की गईं अब उन का जिक्र ही नहीं है. स्वच्छता अभियान फेल हो गया. राजधानी दिल्ली में चारों ओर बेशुमार गंदगी का आलम देखा जा सकता है. ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नारे की धज्जियां उड़ रही हैं. विश्व के देशों की भ्रष्टाचार लिस्ट में भारत उसी जगह पर विराजमान है. बेरोजगारी का ग्राफ बढ़ता जा रहा है. हिंदुत्व उन्माद देश के युवाओं को निगल रहा है. उन में नशाखोरी बढ़ती जा रही है. कृषि में कोई सुधार होता नहीं दिखता. किसानों की आय दोगुनी करने की बात की जा रही है पर कैसे होगी, ऐसी कौन सी जादू की छड़ी है, यह नहीं बताया जा रहा. उलटे, किसानों का गुस्सा और बढ़ रहा है. किसानों की आत्महत्याओं की दर घटने का नाम नहीं ले रही. युवा रोजगार के लिए सड़कों पर उतरे दिखाईर् पड़ रहे हैं. महिलाएं सुरक्षा के लिए आंदोलनरत हैं. विद्यार्थियों की परीक्षाओं के पेपर सुरक्षित नहीं हैं. politics in india

स्टार्टअप, स्टैंडअप इंडिया, न्यू इनोवेशन, प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना जैसी ललचाने वाली स्कीमों की अब चर्चा ही नहीं है. इन सब के अलावा जिन चीजों का सब से अधिक विकास हुआ, वे हैं सामाजिक वैमनस्यता, जातीय व धार्मिक विभाजन और गहरा हुआ, घृणाहिंसा कभी गोरक्षा के नाम पर तो कभी वंदेमातरम के नाम पर. जातीय अस्मिता, धर्म, संस्कृति, लव जिहाद, आरक्षण विरोध, दलितों पर हिंसा जैसे मामलों को ले कर देश में नफरत का माहौल पैदा किया गया. ऐसे मामलों में सरकार कोई नियंत्रण नहीं कर पाई. उलटा, सरकार इन के समर्थन में खड़ी नजर आई.

अपराधियों को सत्ता का कवच यह आश्चर्य की बात नहीं है कि कठुआ से उन्नाव तक अन्याय की घटनाएं हावी हैं और सत्ता प्रतिष्ठान का अहंकार न्याय की राह रोक रहा है. बलात्कार मामलों को ले कर भाजपा सरकार और उस के हिंदू संगठन अपराधियों के बचाव में आ खड़े हुए. असल में समूची हिंदुत्व संस्कृति ही स्त्रियों के यौनशोषण की समर्थक और उस की स्वतंत्रता की विरोधी रही है. यकीन न हो तो प्राचीन गं्रथ उठा कर देख लीजिए.

धर्म अमानवीय अपराधों पर कवच बना हुआ है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यों ही पूर्व गृहराज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद को अपनी शिष्या के साथ बलात्कार का मामला वापस नहीं ले लिया. पीड़ित शिष्या राष्ट्रपति से आरोपी स्वामी के खिलाफ वारंट जारी करने की मांग करे तो करे, योगी सरकार तो धर्म राह पर है. दोषी तो स्त्रियां हैं, उन्हें नरक का द्वार, पाप की गठरी, मर्द के लिए भोग्या करार दिया गया है. भाजपा इसी सोच की ही तो पोषक है. मोदी और योगी के राज में गायों को बचाने के लिए मनुष्यों की जानें ले लेने और स्त्री की अस्मत व जान की तुच्छ कीमत मानने वाली संस्कृति की पैराकारी ही तो की जा रही है. असल में धर्मों में श्रम की नहीं, निकम्मेपन की पैरवी है. भाजपा सरकार वही कर रही है. रामराज्य का यूटोपिया प्रचारित किया जा रहा है.

अक्षम मंत्रालय, अकर्मण्य मंत्री सरकार के तमाम मंत्री निकम्मे साबित हो रहे हैं. वित्त मंत्री बीमार हैं. विदेश मंत्री लाचार हैं. बैंकों का अरबों रुपया ले कर फ्रौड कारोबारी देश से भागे जा रहे हैं. तिजोरी के रक्षक होने का दावा करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक के बाद एक मामले सामने आने पर चुप्पी साधे हैं.

विदेश मंत्री का काम सिर्फ इतना दिखाई देता है कि वे विदेश में फंसे किसी भारतीय नागरिक को देश में बुलाने के साधन मुहैया करा दें. कानून मंत्री मजबूर दिखते हैं. उन के सामने पहली बार देश की सर्वोच्च न्याय संस्था में मतभेद उभर कर जगजाहिर हो रहे हैं. न्याय व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है. समूचा न्यायतंत्र भ्रष्टाचार में जकड़ चुका है. संवैधानिक न्याय व्यवस्था पर सरकार के नियंत्रण की मंशा उजागर हो रही है. न्यायाधीशों की नियुक्ति से ले कर फैसलों तक पर शक और सच उजागर हो रहे हैं. सूचना प्रसारण मंत्री फेक न्यूज के नाम पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने का प्रस्ताव ला रही हैं. सरकार प्रैस नाम की संस्था को मजबूत करने के बजाय उसे सैंसर करना चाह रही है. पत्रकारिता के मूल्यों को रौंदा जा रहा है.politics in india

महिला रक्षा मंत्री की कोई कामयाबी अब तक कहीं प्रदर्शित नहीं हुई. गृहमंत्री से आंतरिक सुरक्षा नहीं संभल रही. वे केवल कड़ी कार्यवाही का आश्वासन देते सुनाई पड़ते हैं. फर्जी मुठभेड़ों के बल पर तमगे बांटे जा रहे हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से शिक्षक, छात्र, अभिभावक सब परेशान हैं. पेपर लीक हो रहे हैं. स्कूलों, कालेजों, यूनिवर्सिटियों में अध्यापक नहीं हैं, अध्यापक हैं तो पढ़ाईर् नहीं है. निचले वर्गों के साथ भेदभाव है. शिक्षा संस्थानों को 5 हजार साल पुरानी हिंदू गुरुकुल, आश्रमों की शिक्षा पद्धति का अड्डा बनाया जा रहा है. कहा जाता है कि तमाम मंत्रालयों का काम प्रधानमंत्री कार्यालय देखता है. पर लगता नहीं कि पीएमओ समूचे देश को संभाल पा रहा है. पीएमओ ने सारे मंत्रियों को अकर्मण्य बना दिया है. वोट की खातिर

धर्म के एजेंडे के अनुसार ऐसे काम होते दिख रहे हैं जो देश और समाज के हित में नहीं हैं. भाजपा सीधेसीधे पौराणिक व्यवस्था थोपना चाहती है. वोटों की खातिर भाजपा पिछड़ों और दलितों को अपनाना तो चाहती है पर इन्हें वर्णव्यवस्था के तहत पिछड़ा और दलित बनाए रख कर. सामाजिक स्तर पर उसे जातियों और उपजातियों के विभाजित हिंदू ही स्वीकार्य हैं. हिंदू एकता उस के लिए राजनीतिक मुद्दा है, सामाजिक मुद्दा नहीं, इसलिए पिछड़ों और दलितों में राजनीतिक एका तो करा दिया जाता है पर सामाजिक एकता नहीं हो पाती. (देखें अगला लेख : दलित आक्रोश) विकास कहां

देश में विकास इसलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि भाजपा की संघी सोच श्रम को नीचा मानती आई है और जो श्रम करने वाला वर्ग है यानी पिछड़े और दलित, वे खुद भी ब्राह्मण बनना चाह रहे हैं. क्या हम वैसी संस्कृति पर गर्व कर सकते हैं जो इंसान को बांटती हो, उन्हें एकदूसरे से छोटा करार देती हो, जैंडर भेदभाव रखती हो और विकास से दूर जा रही हो. भाजपा के सत्ता संभालनेचलाने में नाकाम होने के पीछे उस की सदियों पुरानी सडि़यल और निकम्मेपन की सोच है. नई और मेहनत करने की सोच सिकुड़ती जा रही है जबकि जाहिलों का जमावड़ा बढ़ रहा है. निठल्ले साधुओं को मंत्री बनाया जा रहा है जो इस देश के लिए घातक ही तो है. ऐसे में विकास कहां से होगा, सामाजिक समरसता कहां से आएगी.

मंत्रालयों की बात–ढाक के तीन पात

नरेंद्र मोदी (प्रधानमंत्री कार्यालय) प्रधानमंत्री कार्यालय में 400 से ऊपर अधिकारी हैं. इन में प्रमुख प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा, नैशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजीत कुमार डोभाल, एडिशनल प्रिंसिपल सैक्रेटरी प्रमोद कुमार मिश्रा, सैक्रेटरी भास्कर खुल्बे, स्पैशल सैक्रेटरी (प्रोजैक्ट मौनिटरिंग गु्रप) अनिल गुप्ता, एडिशनल सैक्रेटरी तरुण बजाज, व अरविंद कुमार शर्मा, प्राइवेट सैक्रेटरी राजीव टोपनो व संजीव सिंगला. दावा है कि प्रधानमंत्री कार्यालय तमाम मंत्रालयों के कामकाज की मौनिटरिंग व उन में समन्वय का काम देखता है. भारीभरकम फौज के बावजूद देश कहां जा रहा है, बताने की जरूरत नहीं है.

राजनाथ सिंह (गृह मंत्रालय) देश की आंतरिक सुरक्षा की हालत बदतर, अपराध चरम पर, पाकिस्तान को लताड़ते रहना, देश में गृहयुद्ध जैसे हालात.

सुषमा स्वराज (विदेश मंत्रालय) सीरिया बंधक प्रकरण में पेंच, नीतिगत असफलता, विदेशी दौरे बेनतीजा व चीन के साथ तालमेल में कमियां, प्रधानमंत्री के विदेशी दौरों से लगता है विदेश मंत्रालय उन्हीं के पास है, यह विदेश मंत्रालय का कामकाज दर्शाने के लिए काफी है.

अरुण जेटली (वित्त मंत्रालय) देशभर के एटीएम कैश के अभाव में हैं. बैंक मनमानी कर रहे हैं. देश का पैसा चुरा कर लोग विदेशों में ऐश कर रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक की स्वायत्तता खत्म की. सरकारी बैंकों को निजी हाथों में देने के प्रयास.

निर्मला सीतारमन (रक्षा मंत्रालय) सीमा पर आएदिन होती हिंसक झड़पों में सैनिक शहीद होते हैं. देश की सीमाएं सुरक्षित नहीं हैं. सेना के अंदरुनी विवाद भी जगजाहिर हैं. राफेल सौदे जैस भ्रष्टाचार की गूंज. हथियारों के मामलों में विदेशी निर्भरता कायम.

नितिन गडकरी (जहाजरानी, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय) हाईवे और आम सड़कों की खस्ता हालत जबकि मनमाने टोल टैक्स जनता को सड़कों पर ला रहे हैं. परिवहन व ट्रैफिक की बदतर हालत मंत्रालय का रिपोर्टकार्ड बता रही है.

रविशंकर प्रसाद (कानून, न्याय, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) कानून व न्याय व्यवस्था में हताशापूर्ण स्थिति. सुप्रीम कोर्ट के जजों में मतभेद. फैसलों और जजों की नियुक्तियों में मनमरजी.

जगत प्रकाश नड्डा (स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय) स्वच्छ पानी, सस्ता इलाज उपलब्ध नहीं है. सरकारी अस्पतालों की हालत नरक जैसी है. निजी अस्पतालों में महंगा इलाज. देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.

उमा भारती (पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय) गंगा बचाओ अभियान के नाम पर सरकार का करोड़ों का बजट बरबाद हुआ. न गंगा साफ हुई न पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था सुधरी. गंगा सफाई की अभी तक कोई कारगर योजना ही नहीं बनी. कारखानों, कैमिकल, चमड़ा उद्योगों का गंदा पानी नदी में जाने से रोकने में विफलता.

रामविलास पासवान (उपभोक्ता मामला, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय) देश का उपभोक्ता ठगा जा रहा है. मनमाने टैक्स वसूले जा रहे हैं. मिलावटखोरी, ब्लैकमेलिंग. खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता खराब है. क्या यही काम है इस मंत्रालय का?

गिरिराज सिंह (सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय) देश के सूक्ष्म, लघु व मध्यम कारोबार दम तोड़ चुके हैं. सारी कारीगरी व हस्तकला गतिविधियां मरणासन्न हैं.

मेनका गांधी (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय) महिलाओं के साथ बढ़ते अपराध, लिंग परीक्षण जारी. बच्चियों के साथ भेदभाव, आज भी जस के तस हैं.

जुएल उरांव (जनजातीय मामलों का मंत्रालय) आदिवासी सरकार व नक्सलियों के बीच पिस रहा है. मुख्यधारा से दूर जनजातीय लोगों के नाम पर बना मंत्रालय खानापूर्ति भर है.

थावरचंद गहलोत (सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) सामजिक खाई चौड़ी होती जा रही है. दलितों के लिए कोई योजना नहीं. उन में आक्रोश बढ़ता जा रहा है. अंबेडकर का केवल जाप किया जा रहा है. खाप पंचायतों सरीखी संस्थाएं पूरे देश में अपना कानून चलाती हैं. सामाजिक न्याय कहां है?

राधा मोहन सिंह (कृषि मंत्रालय) किसान आत्महत्या कर रहा है, फसलों के उचित दाम नहीं मिलते किसानों को. लफ्फाजी ज्यादा, काम कुछ नहीं. किसान मंत्रालय खामोश.

प्रकाश जावड़ेकर (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) शिक्षा प्रणाली पूरी तरह सरकारी बनाम निजी स्कूलों के बीच पिस रही है. सुधार के बजाय हालात बिगड़ रहे हैं. स्कूलों की मनमानी, कोचिंग व्यवस्था से जनता त्रस्त है. बारबार पेपर लीक की घटनाओं में वृद्धि, शिक्षा नीति में धर्म की घुसपैठ, इतिहास बदलने की सनक.

स्मृति ईरानी (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय) अभिव्यक्ति की आजादी पर अंकुश के प्रयास, तकनीकी मोरचे पर दूसरे देशों पर निर्भरता व सैंसरशिप का शिकंजा.

पीयूष गोयल (रेल मंत्रालय) रेल दुर्घटनाएं, यात्रा के दौरान अपराध, खानपान से ले कर अन्य सुविधाओं की खस्ताहालत इस मंत्रालय की पोल खोल रही है.

VIDEO : हौलीवुड सेलेब्रिटी सिंगर सेलेना गोमेज़ लुक

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एक साल पहले मेरे चेहरे पर काफी पिंपल्स निकले थे. अब पिंपल्स तो खत्म हो गए हैं, लेकिन उन के निशान रह गए हैं. मैं क्या करूं.

सवाल
एक साल पहले मेरे चेहरे पर काफी पिंपल्स निकले थे. अब पिंपल्स तो खत्म हो गए हैं, लेकिन उन के निशान रह गए हैं. इन से छुटकारा पाने के लिए क्या करूं?

जवाब
पिंपल्स के निशानों को जाने में थोड़ा वक्त लग जाता है. आप घर पर इन दागधब्बों को कम करने के लिए स्क्रब बना सकती हैं. इस के लिए मसूर की दाल को दरदरा पीस लें. फिर उस में मुलतानी मिट्टी व पुदीने का रस मिला कर पेस्ट बना लें. इस स्क्रब के नियमित इस्तेमाल से निशान जल्दी कम नजर आने लगेंगे.

वैसे इन निशानों से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए आप किसी अच्छे कौस्मौटिक क्लिनिक में जा कर लेजर थेरैपी करवा सकती हैं. इस थेरैपी में लेजर की किरणों से त्वचा को रीजनरेट कर के नया रूप दिया जाता है. उस के बाद यंग स्किन मास्क से त्वचा को निखारा जाता है. ये थेरैपी लगभग 3-4 सिटिंग्स में पूरी होती है और इस से निशानों को लगभग 75% तक दूर किया जा सकता है.

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मुंहासों से हैं परेशान तो अपनाइये ये उपाय

मुंहासे यानी की पिंपल्स की समस्या से काफी लोग परेशान रहते हैं. यह एक प्रकार की सूजन है जो तब होती है जब त्वचा की तेल ग्रन्थियां बैक्टीरिया से ग्रस्त हो जाती हैं. यह तैलीय त्वचा वाले लोगों में ज्यादा होती है, पर ऐसे भी कई लोग हैं जिनकी त्वचा तैलीय नहीं होती पर इसके बावजूद भी उनके चेहरे पर मुहांसे हो जाते है. किशोरावस्था में मुहांसे होना स्वाभाविक है पर कई बार उस अवस्था को पार करने के बाद भी मुहांसों की समस्या बरकरार रहती है.

मुंहासों के कारण

तेल ग्रंथियों से तेल का अधिक उत्सर्जन त्वचा के छिद्रों को बंद कर मुंहासों को जन्म देता है. शारीरिक और हार्मोन में बदलाव सिबेसियस ग्रंथि को उत्तेजित करता है जिससे अधिक तेल का उत्पादन होता है. कुछ डेयरी उत्पादों में उच्च मात्रा में कैल्शियम और चीनी पाया जाता है जो मुंहासों को विकसित करता है. एस्ट्रोजेन युक्त दवाइयां भी मुंहासे का कारण है. मेकअप उत्पादों में शामिल रसायनों को ठीक से साफ न करने के कारण भी मुंहासे होते हैं.

अगर आपके चेहरे पर भी हैं मुंहासे और उसके अनचाहे दाग तो घबराइये नहीं क्योंकि आज हम आपको बताएंगे कुछ ऐसे उपाय जिससे आप इस समस्या से आसानी से छुटकारा पा सकेंगी.

पिम्पल के उपाय

मसूर की दाल

मसूर की दाल का प्रयोग पिम्पल हटाने के उपाय के रूप से किया जाता है. मसूर की दाल को पानी में भिगो कर पीस लें और इस पेस्ट में 1 चुटकी हल्दी मिलाकर चेहरे में लगायें. इसे रोजाना चेहरे पर लगाने से चेहरे का रंग साफ होता है और पिम्पल के दाग भी चले जाते हैं.

हल्दी बेसन का फेस मास्क

2 चम्मच बेसन में ¼ चम्मच पीसी हुई हल्दी मिला लें. इसमें गुलाब जल और कच्चा दूध मिलाकर पेस्ट बना लें. अगर आपकी त्वचा अधिक तैलीय है तो दूध की जगह पानी का इस्तेमाल करें. इसे चेहरे में रोजाना लगायें. इससे पिम्पल की समस्या में जल्दी राहत मिलेगी.

बर्फ

अगर आप मुहांसों से छुटकारा पाना चाहती हैं तो बर्फ के कुछ टुकड़े लें और इसे अपने मुहांसों पर लगाएं. इससे आपके मुहांसों वाले भाग में रक्त का संचार तेज होता है. आप बर्फ के टुकड़ों को कपडे में लपेटकर मुहांसों पर लगा सकती हैं.

शहद

शहद एक बेहतरीन उत्पाद है जो पिंपल्स पर तुरंत असर करता है. शहद में रुई के फाहे डुबोकर मुहांसों वाली त्वचा पर लगाएं. इसे आधे घंटे तक रखें और गुनगुने पानी से धो लें.

नींबू

सौंदर्य एवं स्वास्थ्य को बरकरार रखने में नींबू आपकी काफी मदद करता है. इसमें विटामिन सी की काफी मात्रा होती है, अतः इससे मुहांसे काफी जल्दी सूखते हैं.

चावल

रातभर एक कप चावल को भिगोयें. सुबह पानी को छानकर बचे अनाज को पीसकर लेप बना लें. इसमें कुछ बूंदें नींबू रस की मिला लें. इस लेप को कील मुंहासों पर लगाकर 20 मिनट रखने के बाद धो दें.

सूखे संतरे के छिलके

सूखे संतरे के छिलके के पाउडर में पानी मिलाकर लेप बनायें और मुहासों पर लगायें.

लहसुन

अगर आपको पिम्पल की समस्या बहुत दिनों से है और यह कील आदि के रूप में चेहरे पर दिखाई दे रही हो तो ऐसे मुंहासों के प्राकृतिक इलाज में लहसुन का प्रयोग फायदेमंद है. कुछ लहसुन की कलियों को पीसकर उसका रस निकाल लें और इसमें 3 से 4 बूंदें नींबू के रस की मिलाकर मुंहासों वाली जगह पर लगा कर 10 मिनट तक रखें. इसको बाद चेहरा धो लें. इस उपाय को आप हफ्ते में दो बार करें.

भाप

प्रभावित जगह पर भाप देने से त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं. इससे त्वचा को सांस लेने में आसानी होती है. यह एक बेहतरीन प्रक्रिया है जिसकी वजह से त्वचा की सारी गन्दगी एवं अतिरिक्त तेल जो कील मुंहासो के रूप में चेहरे पर जमा होते हैं, कम हो जाते हैं. इससे त्वचा के सारे संक्रमण भी ठीक हो जाते हैं. इसके लिए एक बड़ा पात्र लें तथा पानी को उबालें. पानी उबल जाने के बाद उस बर्तन को अपने चेहरे के सामने रखें तथा चेहरा नीचे झुकाएं, जिससे भाप आपके चेहरे पर आए. अब अपने चेहरे को गुनगुने पानी से धोएं तथा चेहरे पर तेल मुक्त मौस्चराइजर लगाएं. अगर इसका प्रयोग रोजाना किया जाए तो चेहरे के मुंहासे आसानी से दूर हो सकते हैं.

नीम

नीम की पत्तियों के पाउडर और हल्दी को एक साथ मिलाकर लगाने से आप मुंहासों से छुटकारा पा सकती हैं.

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सस्ते हुए एलपीजी गैस सिलेंडर, कौमर्शियल के दाम भी घटे

पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच आम आदमी के लिए राहत की खबर है. रसोई गैस की कीमतों में लगातार कटौती हो रही है, इससे महंगाई के मोर्चे पर थोड़ी राहत मिल रही है. तेल कंपनियों ने एक बार फिर LPG सिलेंडर के दाम घटाए हैं. इंडियन औयल की तरफ से जारी नई कीमतों के मुताबिक मई के लिए सब्सिडी वाले LPG सिलेंडर के दाम में हल्की कटौती हुई है. लेकिन, बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर और 19 किलो वाले कमर्शियल सिलेंडर पर थोड़ी ज्यादा राहत मिली है.

3 रुपए तक सस्ता हुआ सिलेंडर

इंडियन औयल की वेबसाइट के मुताबिक, आज से दिल्ली में बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर का दाम 650.50 रुपए, कोलकाता में 674 रुपए, मुंबई में 623 रुपए और चेन्नई में 663 रुपए हो गया है. दिल्ली में इसकी कीमत में 3 रुपए की कटौती हुई है. वहीं, कोलकाता और मुंबई में 2-2 रुपए और चेन्नई में 50 पैसे कम किए गए हैं.

लगातार 5वें महीने घटे दाम

बिना सब्सिडी वाले सिलेडंर के दाम घटने से 1 करोड़ से ज्यादा घरों को फायदा पहुंचेगा क्योंकि इतने लोग अपनी सब्सिडी त्याग चुके हैं. लगातार 5 महीने से सरकारी की तरफ से बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम घटाए जा रहे हैं. 5 महीने में दिल्ली में बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 96.50 रुपए, कोलकाता में 92 रुपए, मुंबई में 96 रुपए और चेन्नई में 93 रुपए सस्ता हुआ है.

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कमर्शियल सिलेंडर के भी घटे दाम

19 किलो वाले कमर्शियल सिलेंडर की बात करें तो आज से दिल्ली में उसका दाम 1167.50 रुपए, कोलकाता में 1212 रुपए, मुंबई में 1119 रुपए और चेन्नई में 1256 रुपए हो गया है. अप्रैल में दिल्ली में इसका दाम 1176 रुपए, कोलकाता में 1220.50 रुपए, मुंबई में 1128 रुपए और चेन्नई में 1264.50 रुपए था.

सब्सिडी वाले सिलेंडर में भी हल्की कटौती

सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमतों में हालांकि बहुत मामूली कटौती हुई है, आज से दिल्ली में इसका दाम 491.21 रुपए, कोलकाता में 494.23 रुपए, मुंबई में 488.94 रुपए और चेन्नई में 479.42 रुपए हो गया है.

हर महीने बदलते हैं दाम

बिना सब्सिडी वाली कुकिंग गैस के दाम हर माह बदलते हैं. जबकि पेट्रोल और डीजल के दाम की रोज समीक्षा की जाती है.

अन्‍य कंपनियां मानती हैं ये भाव

देश में हिन्‍दुस्‍तान पेट्रोलियम कार्पोरेशन और भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन भी इन आयल और गैस की आपूर्ति करने वाली कंपनी हैं. लेकिन यह इंडियन औयल के दाम को मान लेती हैं.

अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर करते हैं दाम

दरअसल, केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 से एलपीजी के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर कर दिए थे. इसके तहत तेल कंपनियां हर महीने की अंतिम तिथि को एलपीजी के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के दामों के अनुसार संशोधित करती हैं. सोमवार रात तेल कंपनियों की ओर से एलपीजी की निर्धारित नई दरों से गैस एजेंसियों को अवगत करा दिया गया है. गैर सबसिडी वाले गैस सिलेंडर में दो रुपए की रियायत दी गई है.

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व्हाट्सऐप पर आने वाले हैं कई नए फीचर्स, क्या आपको है इसकी जानकारी

दुनिया के सबसे बड़े सोशल मैसेंजिग ऐप व्हाट्सऐप को लेकर फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने एक बड़ी घोषणा की है. फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने एक कान्फ्रेंस के दौरान कहा कि व्हाट्सऐप में जल्द ही ग्रुप वीडियो कौलिंग का फीचर आएगा. जो अगले महीने तक लाइव कर दिया जाएगा. इस वीडियो कौलिंग फीचर के अपडेट के बाद ग्रुप में अधिकतम 4 लोग और पर्सनल चैट में 3 लोगों को शामिल किया जा सकेगा. बता दें कि व्हाट्सऐप ने एक साल पहले वीडियो कौलिंग का फीचर जारी किया था जो कि भारत में काफी लोकप्रिय है.

खबरों के मुताबिक ग्रुप वीडियो कौलिंग के अलावा व्हाट्सऐप में स्टीकर्स के भी अपडेट मिलने वाले हैं. इतना ही नहीं व्हाट्सऐप ने एक बार फिर से अपने बीटा यूजर्स के लिए नया अपडेट भी जारी किया है. इस नए फीचर की मदद से ग्रुप एडमिन तय कर सकेगा कि ग्रुप का कौन-सा मेंबर ग्रुप का डिस्क्रिप्शन (इन्फो) बदल सकेगा और कौन नहीं. अभी तक व्हाट्सऐप ग्रुप का डिस्क्रिप्शन ग्रुप में मौजूद कोई भी सदस्य चेंज कर सकता है लेकिन नए अपडेट के बाद ऐसा नहीं होगा. दरअसल इस फीचर के जरिए कंपनी व्हाट्सऐप ग्रुप एडमिन को ज्यादा पावरफुल बनाने की कोशिश कर रही है.

बता दें कि अभी हाल ही में व्हाट्सऐप ने यूजर्स को डिलीट किए गए फोटो, वीडियो और मैसेज डाउनलोड करने का विकल्प दिया था. हालांकि इसकी मदद से आप केवल मीडिया फाइल ही डाउनलोड कर सकेंते हैं, टेक्स्ट मैसेज नहीं. साथ ही बता दें कि आप वही मीडिया डाउनलोड कर सकेंगे जिन्हें आपने चैट से डिलीट नहीं किया है.

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पेट्रोल डीजल भरवाने पर अब आपको मिलेगा कैशबैक औफर

पेट्रोल-डीजल की कीमतों को लेकर अक्सर लोगों के मन में होता है कि ये कब सस्ती होंगी. लेकिन सस्ता होने के बजाए पेट्रोल के दाम सातवें आसमान पर हैं. लगातार पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही हैं. अंतराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से पेट्रोल मंहगा हुआ है, तो वहीं रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमतें तय होने का भी असर इस पर पड़ा है. लेकिन, अब चिंता करने की जरूरत नहीं. आपको पेट्रोल पर आपको बड़ा कैशबैक मिल रहा है. इसके लिए आपको बस एक खास तरीके का इस्तेमाल करना होगा.

क्या है पेट्रोल पर कैशबैक का औफर

पेट्रोल की पेमेंट औनलाइन करने पर आपको छूट मिलती है. लेकिन, यही पेमेंट अगर आप मोबिक्विक वौलेट से करेंगे तो आपको बड़ा कैशबैक मिलेगा. जी हां कंपनी ने पेट्रोल के लिए खास स्कीम चलाई है. जिसमें शाम 6 बजे से लेकर रात 9 बजे के बीच पेट्रोल भरवाने पर आपको सुपरकैश औफर मिलेगा. इसमें 10% कैशबैक का औफर है.

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कब तक मिलेगा कैशबैक

मोबिक्विक ने यह औफर 28 मार्च 2018 को निकाली है. इस औफर की वैधता 1 जून 2018 तक है. औफर का फायदा उठाने के लिए आपको कम से कम 50 रुपए का पेट्रोल डलवाना होगा. हालांकि, इसका फायदा आप हफ्ते में सिर्फ दो बार उठा सकते हैं.

कैसे मिलेगा फायदा

औफर का फायदा उठाने के लिए आपको कोई कूपन कोड नहीं चाहिए. बल्कि पेट्रोल पंप पर पेमेंट के वक्त सिर्फ क्यूआर (QR) कोड स्कैन करना होगा. इसके बाद आपने जितनी राशि का पेट्रोल डलवाया है उतना अमाउंट एंटर करना होगा. हालांकि, कंपनी ने इसके लिए अधिकतम 50 रुपए के कैशबैक की कैप लगाई है. कैशबैक आने पर उसका इस्तेमाल आप दूसरी बार पेट्रोल डलवाने पर कर सकते हैं. इसके लिए आपको कम से कम 200 रुपए का पेट्रोल डलवाना होगा.

कैशबैक के अलावा भी छूट

पेट्रोल डलवाने पर आपको वौलेट में कैशबैक तो मिलेगा ही, साथ ही 0.75% की औनलाइन पेमेंट छूट का भी फायदा मिलेगा. यह फायदा आपके वौलेट में 7 वर्किंग डेज में क्रेडिट कर दिया जाएगा. वहीं, कैशबैक के लिए आपको सिर्फ 24 घंटे का इंतजार करना होगा. जो सीधे मोबिक्विक वौलेट में क्रेडिट होगा.

कंपनी ने इसके लिए पेट्रोल पंप आउटलेट की लिस्ट भी अपने ऐप और वेबसाइट पर जारी कर रखी है.

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इम्तियाज अली कर रहे हैं दूसरी शादी की तैयारी

‘सोचा ना था’, ‘जब वी मेट’, ‘लव आज कल’, ‘रौक स्टार’ और ‘तमाशा’ जैसी फिल्मों के सर्जक इम्तियाज अली अब दूसरी शादी की तैयारी कर रहे हैं. सूत्रों के अनुसार उनकी नई प्रेमिका मास्टरशेफ आस्ट्रेलिया सीजन 6 की प्रतियोगी सराह टाड हैं, जिनका उत्तरी गोवा में ‘25 सीट आस्ट्रेलियन’ नाम से रेस्टारेंट हैं.

इम्तियाज अली के साथ साथ सराह टाड की भी यह दूसरी शादी होगी. इम्तियाज अली ने सबसे पहले फिल्मकार प्रीति अली से शादी की थी, जिनसे उनकी बेटी इदा अली है. पर प्रीति अली से इम्तियाज का 2012 में तलाक हो गया था. उधर सराह टाड की पहली शादी भारतीय मूल के देविंदर घरचा से हुई थी. जिनसे उनका एक बेटा है. सराह का भारत में अपना घर भी है.

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सूत्रों की माने तो अब इम्तियाज अली व सराह टाड एक दूसरे से इस कदर प्यार करते हैं कि दोनों के जल्द ही विवाह बंधन में बंधने की खबरें उड़ रही हैं. इम्तियाज अली व सराह की प्रेम कहानी पिछले साल इम्तियाज अली के जन्म दिन पर सामने आयी थी, जब सराह ने इम्तियाज के साथ अपनी तस्वीर इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हुए उन्हे शुभकामनाएं दी थी.

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अटकलों पर लगा विराम, इस तारीख को शादी करेंगी सोनम

बहुत दिनों से खबर आ रही है कि अनिल कपूर की बेटी सोनम कपूर और आनंद आहूजा 8 मई को शादी के बंधन में बंधने जा रहे हैं. अंततः उनकी शादी को लेकर चली आ रही अटकलों को सोनम व आनंद आहुजा के परिवार ने खत्म कर दिया है. दोनों परिवारों की तरफ से जारी विज्ञप्ति के अनुसार सोनम कपूर और आनंद आहूजा की शादी 8 मई को मुंबई में होगी और इसके लिए दोनों परिवारों ने पूरे इंतजाम भी कर लिए हैं.

बता दें कि दोनों परिवारों में शादी को लेकर कई दिनों से तैयारियां चल रही थीं, लेकिन तारीख का ऐलान नहीं किया था. लेकिन अब दोनों परिवारों ने मिलकर शादी की तारीख का ऐलान करते हुए कहा कि यह उनके लिए खुशी और गर्व का विषय है. शादी 8 मई को मुंबई में होगी. हम गुजारिश करते हैं कि हमारे परिवारों की निजता का सम्मान किया जाए.

जानकार बताते हैं कि कोरियोग्राफर फराह खान, सोनम की शादी के संगीत फंक्‍शन की कोरियोग्राफी कर रही हैं. सोनम की चचेरी बहन जाह्नवी कपूर अपनी मां श्रीदेवी के गाने पर डांस करेंगी, जबकि अर्जुन कपूर और रणवीर सिंह के साथ अनिल कपूर ‘माई नेम इज लखन’ पर डांस करते दिखेंगे.

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हैप्पी बर्थडे ब्रायन लारा : अब तक कोई नहीं तोड़ पाया इनका रिकौर्ड

ब्रायन चार्ल्स लारा आज 49 साल के हो गए हैं. लारा अपनी बेहतरीन बल्लेबाजी के लिए खासे मशहूर रहे हैं. कैरिबियाई सलामी बल्लेबाज ब्रायन लारा के नाम 11,953 टेस्ट और 10,405 वनडे रन दर्ज हैं. यूं तो सचिन तेंदुलकर के नाम क्रिकेट के सबसे ज्यादा रिकौर्ड दर्ज हैं, लेकिन ब्रायन लारा ने क्रिकेट की दुनिया में ऐसे रिकौर्ड दर्ज किए हैं, जिन्हें आज तक कोई बल्लेबाज तोड़ नहीं पाया है. लारा के नाम टेस्ट और फर्स्ट क्लास मैचों की सबसे बड़ी पारी खेलने का अनूठा रिकौर्ड दर्ज है. लारा दुनिया के इकलौते ऐसे बल्लेबाज हैं, जिन्होंने नाबाद 400 और 500 रन बनाने का अनोखा कारनामा किया है.

अगर दुनिया में इस युग के तीन क्रिकेटर चुनने हों तो ब्रायन लारा, सचिन तेंदुलकर, रिकी पोंटिंग के नाम उनमें शामिल होंगे. क्रिकेट की दुनिया में ‘भगवान’ का दर्जा हासिल करने वाले सचिन तेंदुलकर को तो निर्विवाद रूप से सबसे बेहतर बल्लेबाज माना जाता है लेकिन लारा और पोंटिंग में फैन्स यह बहस करते रहे हैं कि इन दोनों में से श्रेष्ठ कौन है. हालांकि, जिन्होंने ब्रायन लारा को खेलते हुए देखा है वे अपने आप को भाग्यशाली मानते हैं. आइए एक नजर डालते हैं ब्रायन लारा से जुड़ी कुछ दिलचस्प किस्सों पर.

एक अधूरा सपनाः ब्रायन लारा अपने परिवार के 11 बच्चों में से दसवें नंबर पर हैं. उनके पिता बंटी का उन्हें एक क्रिकेटर बनाने में बड़ा योगदान है. 2012 में जब लारा को आईसीसी ‘हौल औफ फेम’ में शामिल किया गया तो लारा ने कहा था, ‘आज जिस इंसान को आप ‘हाल औफ फेम’ जैसा सम्मान पाते देख रहे हैं, उसे उनके पिता बंटी ने तराशा है. उन्होंने ही यह सुनिश्चित किया कि मैं एक सफल क्रिकेटर और इंसान बन सकूं.’ पिता की मृत्यु लारा के जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी थी. उनकी मृत्यु 1989 में उस वक्त हो गई थी, जब लारा ने टेस्ट डेब्यू भी नहीं किया था. लारा चाहते थे कि उनके पिता अपने बेटे की उपलब्धियों को देख सकें लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था. उनका यह सपना अधूरा रह गया.

300वां वनडे नहीं खेल पाए लाराः लारा ने 299 एकदिवसीय मैचों के बाद अपने वनडे करियर को अलविदा कह दिया. 2007 में वर्ल्ड कप के दौरान पहले चरण में ही बाहर हो गई वेस्ट इंडीज टीम के बाद ही लारा ने संन्यास की घोषणा कर दी थी. वेस्ट इंडीज क्रिकेट बोर्ड और उनके प्रशंसकों ने उन्हें 300वां मैच खेलने के लिए प्रेरित किया लेकिन लारा अपने फैसले पर अडिग रहे. लारा चाहते तो कुछ समय और क्रिकेट खेल सकते थे लेकिन इस महान क्रिकेटर की विदाई कुछ इसी अंदाज में हुई. एक मैच पहले तक किसी को नहीं पता था कि वह संन्यास लेने वाले हैं. उन्होंने क्रिकेट के तीनों फोरमेट से संन्यास ले लिया. दिलचस्प बात है कि लारा ने अपने वन डे करियर में लेग ब्रेक गेंदबाजी से 4विकेट भी लिए.

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सिडनी प्रेमः सचिन तेंदुलकर की तरह ही ब्रायन लारा की पहली औस्ट्रेलिया यात्रा यादगार रही. यहां उन्होंने एक शानदार पारी खेली. सचिन ने पर्थ में 114 रनों की पारी खेली थी और लारा ने सिडनी में 277 रनों की पारी खेली. सिडनी में खेली लारा की दो पारियों ने यह घोषणा कर दी थी कि एक जीनियस का औस्ट्रेलिया में आगमन हुआ है. 1996 में लारा की बेटी पैदा हुई तो लारा ने उसका नाम सिडनी रखा.

एक विश्व रिकौर्डः 1994 में लारा ने 375 रनों की पारी खेली. मैच के दूसरे दिन का खेल खत्म होने पर लारा 320 पर नाबाद थे. वह विश्व रिकौर्ड बनाने से महज 46 रन दूर थे. लारा को उस रात नींद नहीं आई. वह सुबह चार बजे उठ गए. नर्वसनेस के कारण वह फिर नहीं सो पाए. लारा ने शीशे के सामने खड़े होकर अभ्यास किया. वह तब तक अभ्यास करते रहे जब तक उनकी बल्लेबाजी नहीं आ गई. लारा ने 347 और 365 के स्कोर पर गलत शौट खेले. गेंदबाजों को समझ नहीं आ रहा था कि कहां गेंद फेंकी जाए. अंत में लारा की पारी 375 पर समाप्त हुई.

501 नाबाद पर नर्वस हुए थे लाराः डरहम के खिलाफ 501 नाबाद की पारी में लारा को शुरू में ही जीवनदान मिला था. अपनी इस पारी के बारे में लारा ने कहा था कि ये पारी दर्शकों को खुश करने के लिए थी. मैच के अंतिम दिन दर्शकों की संख्या 8 से 10 हजार के बीच हो गई थी. लारा नर्वस हो रहे थे, लेकिन वह तेज गति से रन बनाते जा रहे थे. लारा 497 पर थे. वह हनीफ मोहम्मद के 499 के रिकौर्ड तोड़ने से महज दो रन पीछे थे. एक गेंद उनके हेलमेट से टकराई लेकिन अगली ही गेंद पर लारा ने चौका जड़कर 501 रन पूरे कर लिए.

लारा की सर्वश्रेष्ठ पारीः 1999 की औस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज लारा के लिए कठिन दौर था. पैसों को लेकर बोर्ड से उनका विवाद चल रहा था. वेस्ट इंडीज औस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली पारी में 51 रनों पर आउट हो गया, लेकिन ब्रिगटाउन में लारा ने 213 रनों की शानदारा पारी खेली. वेस्ट इंडीज 10 विकेट से मैच जीत गया. लारा अपनी इस पारी को बेस्ट बताते हैं. जबकि लारा 400, 375, 501 और 153 रनों की पारियां भी खेल चुके थे. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि जमैका में औस्ट्रेलिया के खिलाफ बनाए 213 रन मेरी बेस्ट पारी है.

लारा की दूसरी बेस्ट पारीः विस्डन ने अगले ही मैच में लारा की 153 रनों की पारी को बेस्ट बताते हैं. इस पारी को डौन ब्रेडमैन की 1937 एशेज के दौरान बनाए गए 270 रनों की पारी के बाद दूसरी सर्वश्रेष्ठ पारी बताया गया है. लारा ने इस पारी में अंत तक बल्लेबाजी की और टीम को एक विकेट से जीत दिलाई. एक समय वेस्ट इंडीज का स्कोर 5विकेट पर 105रन था. टीम को जीतने के लिए 308 रन बनाने थे. शायद इसी वजह से विस्डन ने लारा की इस पारी को सर्वश्रेठ बताया है.

एक रिकौर्ड जो कोई नहीं तोड़ पाया: ब्रायन लारा ने इंटरनेशनल क्रिकेट में कई महान पारियां खेलीं, लेकिन इनमें उनकी एक पारी ऐसी रही जिसे आजतक कोई नहीं खेल पाया है. यानि लारा ने इस पारी को खेलकर एक ऐसा रिकौर्ड बनाया है, जिसे आज तक कोई बल्लेबाज नहीं तोड़ पाया है. 12 अप्रैल, 2004 को इंग्लैंड के खिलाफ एंटिगुआ में लारा ने टेस्ट क्रिकेट की सबसे बड़ी पारी का रिकौर्ड बनाया था. इस पारी में उनके बल्ले से नाबाद 400 रन निकले थे. उन्होंने औस्ट्रेलियाई बल्लेबाज मैथ्यू हेडन के 380 रनों के रिकौर्ड को भी तोड़ दिया था. इस पारी में लारा ने 582 गेंदें खेली थीं, जिसमें 43 चौके और 4 छक्के शामिल थे.

मास्टर शिल्पकारः ब्रायन लारा बचपन में जब अभ्यास करते थे तो खिलाड़ियों की जगह मिट्टी के बर्तन सजा दिया करते थे. इस तरह उन्होंने क्रिकेट को गढ़ा है. उस समय उनकी टीम में विवियन रिचर्डस, क्लाइव लायड, राय फ्रैडरिक जैसे खिलाड़ी थे. तब भी उनके जेहन में यही रहता था कि लारा दुनिया का सबसे बेहतरीन बल्लेबाज है. 2003 में एक मैच को गंभीरता से देखने के बाद एडम गिलक्रिस्ट ने एक मजेदार कहानी बताई थी. एक फील्डर को मिडविकेट से हटा कर प्वाइंट पर लगा दिया गया था. उस एरिया में एक अन्य फील्डर भी था. लारा के मुंह से निकला ‘मिसटेक’. यह शब्द गिलक्रिस्ट ने सुन लिया. अगली ही गेंद पर लारा ने मिडविकेट के ऊपर से शानदार छक्का लगाया. तब गिलक्रिस्ट ने उन्हें औफ साइड में हिट करने की चुनौती दी. लारा ने औफ साइड पर दो लगातार चौके लगाकर इस चुनौती की स्वीकार किया. लारा को मैदान पर खड़े फील्डर हमेशा मिट्टी के बर्तनों की तरह लगते थे और वह हमेशा उनके बीच से शौट मारते थे. यह उनकी कलात्मकता थी.

लारा ने कभी शादी नहीं की: लारा का पत्रकार लीजेल रावेदास से लंबे समय तक प्रेम चला. दो बच्चे भी हुए लेकिन लारा ने अपने जीवन में कभी शादी नहीं की. वेस्ट इंडीज में दो खेल सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं बीच क्रिकेट और बीच फुटबौल. लारा दोनों ही खेल पसंद करते हैं और खेले भी हैं.

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न्याय के लिए दलित आक्रोश, चौड़ी होती सामाजिक दरारें

आजादी के 70 वर्षों बाद आज भी दलित समुदाय जातिगत भेदभाव के खिलाफ न्याय पाने के लिए आक्रोशित है. अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम को ले कर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में दलित और आदिवासी संगठनों का गुस्सा पहली बार व्यापक स्तर पर सामने आया.

2 अप्रैल को आयोजित किया गया भारत बंद हिंसा में बदल गया. देशभर में प्रदर्शन हुए. इस दौरान उत्तर भारत के कई राज्यों में हुए उपद्रवों के दौरान एक दर्जन लोगों की जानें चली गईं और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ. राज्यों में फैली हिंसा पर काबू पाने के लिए सुरक्षा बल तैनात किए गए.

दलितों के इस आंदोलन के विरोध में दूसरी जातियां अब आरक्षण के विरोध में आंदोलन की तैयारी में हैं. ऐसे में दलितों, पिछड़ों और सवर्णों के बीच मौजूदा दरारेें और चौड़ी दिखने लगी हैं.

दरअसल, महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग के स्टोरकीपर ने राज्य के तकनीकी शिक्षा निदेशक सुभाष काशीनाथ महाजन के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. शिकायत में आरोप लगाया गया था कि महाजन ने अपने मातहत 2 अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही किए जाने पर रोक लगा दी, जिन्होंने उस की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में जातिसूचक टिप्पणी की थी.

पुलिस ने जब दोनों अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए उन के वरिष्ठ अधिकारी महाजन से इजाजत मांगी तो वह नहीं दी गई. इस पर पुलिस ने महाजन पर भी केस दर्र्ज कर लिया.

5 मई, 2017 को काशीनाथ महाजन एफआईआर खारिज कराने कोर्ट पहुंचे पर हाईकोर्ट ने उन्हें राहत देने से इनकार कर दिया. बाद में महाजन ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

सुप्रीम कोर्ट ने महाजन के खिलाफ दर्ज एफआईआर को हटाने का आदेश देते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक का आदेश भी दिया था. यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत की भी मंजूरी दे दी थी. महाजन का तर्क था कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध होगा तो इस से काम करना मुश्किल हो जाएगा.

SOCIETY

गाइडलाइन जार

सुप्रीम कोर्ट के जज ए के गोयल और यू यू ललित की पीठ ने गाइडलाइन जारी करते हुए कहा कि संसद में यह कानून बनाते समय यह विचार नहीं आया होगा कि अधिनियम का दुरुपयोग भी हो सकता है. देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए जिन में अधिनियम का दुरुपयोग हुआ है.

नई गाइडलाइन के तहत सरकारी कर्मचारियों को भी रखा गया है. यदि कोई सरकारी कर्मचारी अधिनियम का दुरुपयोग करता है तो उस की गिरफ्तारी के लिए विभागीय अधिकारी की अनुमति लेनी जरूरी होगी. यदि कोई अधिकारी इस गाइडलाइन का उल्लंघन करता है तो उसे विभागीय कार्यवाही के साथ कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही का भी सामना करना होगा. आम लोगों की गिरफ्तारी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की लिखित अनुमति के बाद ही होगी.

इस के अलावा पीठ ने देश की सभी निचली अदालतों के मजिस्ट्रेटों को भी गाइडलाइन अपनाने को कहा है. उस में एससीएसटी एक्ट के तहत आरोपी की अग्रिम जमानत पर मजिस्टे्रट विचार करेंगे और अपने विवेक से जमानत मंजूर या नामंजूर करेंगे.

अब तक इस एक्ट में यह होता था कि अगर कोई जातिसूचक शब्द कह कर गालीगलौज करता है तो इस में तुरंत मामला दर्ज कर गिरफ्तारी की जा सकती थी. मामले की जांच अब तक इंस्पैक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी ही करते थे. ऐसे मामलों में अदालत अग्रिम जमानत नहीं देती थी. नियमित जमानत केवल हाईकोर्ट द्वारा ही दी जाती थी.

सरकार की मंशा पर संदेह

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ विरोधप्रदर्शन शुरू हो गए. दलित संगठनों और कानूनी जानकारों ने कहा कि इस फैसले से वंचित समुदाय के लोगों की आवाज कमजोर होगी. दलित संगठनों और कई राजनीतिक दलों की ओर से केंद्र सरकार से इस मसले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग की गई. मामले ने जब तूल पकड़ा तो सरकार जागी और मामले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई.  पुनर्विचार याचिका पर कोर्ट ने तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया और आगे की तारीख मुकर्रर कर दी.

सरकार की मंशा पर संदेह हुआ कि अगर वह वास्तव में दलितों के साथ है तो हल्ला मचने से पहले ही क्यों नहीं उस ने पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात की.

दरअसल, सरकार ने इस मामले में एससीएसटी के पक्ष को नहीं रखा जो इस देश की आबादी का एकचौथाईर् है. इस केस में जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से उस का पक्ष जानने की कोशिश की थी और इसे वरिष्ठ कानूनी अधिकारी की जगह एडिशनल सौलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह को भेजा था तो उन्होंने मामले में सरकार के पक्ष या कानून का बचाव करने के बजाय एक केस के हवाले से यह कहा कि ऐसे मामले में अग्रिम जमानत दिए जाने में कोर्ट बाधा नहीं है.

यह बात कानून के प्रावधान के खिलाफ थी. यहां सरकार के प्रतिनिधि को कानून का बचाव करना चाहिए था. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने की दर बहुत कम है. ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को यह फैसला देना पड़ा कि  अग्रिम जमानत मिलेगी और चूंकि सरकार कह चुकी है कि फर्जी मामले भी होते हैं, ऐसे में अदालत ने कहा कि प्रारंभिक जांच के बिना गिरफ्तारी नहीं होगी.

फैसले पर सवाल

फैसले पर सवाल उठ रहे हैं. केस दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी से छूट मिली तो अपराधियों का निकलना आसान हो जाएगा. सरकारी अफसरों के मामले में अपौइंटिंग अथौरिटी की मंजूरी में भेदभाव होगा.

इस एक्ट के सैक्शन 18 के तहत ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है. ऐसे में यह छूट दी जाती है तो फिर अपराधियों के लिए बच निकलना आसान हो जाएगा. इस के अलावा सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ अपौइंटिंग अथौरिटी की मंजूरी को ले कर भी दलित संगठनों का कहना है कि उस में भेदभाव किया जा सकता है.

साफ है कि इस फैसले से एससीएसटी एक्ट 1989 के प्रावधान कमजोर हो जाएंगे. अदालत के आदेश से लोगों में कानून का भय खत्म होगा और कानून का उल्लंघन ज्यादा हो सकता है. भय खत्म हो जाएगा और न्याय नहीं मिल पाएगा. कैसे पता चलेगा कि मामले निष्पक्षता व ईमानदारी से निबटाए गए हैं.

पहले न्याय व्यवस्था पुराणों, स्मृतियों पर आधारित थी जो जातिगत भेदभाव से पूर्ण थी. आज संविधान बनने के 7 दशकों बाद भी न्यायिक फैसले एससीएसटी तबके को भेदभाव, छुआछूत का दंश झेलने से मुक्ति दिलाने वाले नहीं हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला भी ऐसा ही है.

दलित की शिकायत की जांच करने वाला पुलिस अधीक्षक क्या भेदभाव नहीं करेगा? जमानत पर फैसला लेने वाला जज क्या भेदभाव से रहित होगा? ऐसे में दलित को न्याय कहां मिलेगा? पुरानी व्यवस्था और मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में क्या फर्क रह जाएगा?

अदालत का कहना था कि दलित एक्ट का दुरुपयोग होता है. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में जातिसूचक गालीगलौज के 11,060 मामलों की शिकायतें सामने आई थीं. इन में से दर्ज हुई शिकायतों में केवल 935 झूठी पाईर् गईं.

इस के विपरीत, दहेज एक्ट, चोरी, लूटपाट, मानहानि, धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने जैसे कानूनोें का अधिक दुरुपयोग होता है. अगर ऐसा है तो सभी मामलों में एकसमान आदेश होने चाहिए.

दलित आंदोलनों का इतिहास

वैसे तो दलित आंदोलन महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार में अलगअलग तौर पर चलता आया है पर दलितों की इतने व्यापक स्तर पर एकजुटता 1932 के बाद पहली बार दिखाईर् दी है. हालांकि इस से पहले 1927 में महाड में अछूतों द्वारा मनुस्मृति की प्रति जलाने की घटना बड़ी थी. मनुस्मृति जलाने के बाद महाड में अछूतों की सभा में संकल्प लिया गया कि न तो कोई अछूत हिंदुओं के मृत पशुओं की खाल उतारेगा और न ही उसे उठाएगा.

दक्षिण भारत में भी दलित आंदोलन की शुरुआत रामास्वामी नायकर पेरियार ने की थी. उन्होंने देखा कि ब्राह्मण दलितों का शोषण कर रहे हैं और उन्हें बदतर जीवन जीने पर मजबूर कर रहे हैं. पेरियार ने ईश्वर की समाप्ति, धर्म का खात्मा, ब्राह्मण का बहिष्कार करने का संदेश दिया था. दक्षिण भारत में उन का आंदोलन दलितों को राजनीतिक व सामाजिक अधिकार दिलाने में कामयाब माना गया. आजादी से पहले 1930 में ही उन्होंने कह दिया था कि भारत में समाजवादी गणतंत्र होना चाहिए.

इस से पहले महाराष्ट्र में हिंदू धर्म की व्यवस्था के खिलाफ ज्योतिराव फुले ने आंदोलन किया. महिला शिक्षा की शुरुआत फुले ने ही की. अंबेडकर ने उन्हीं से सीख ले कर दलित आंदोलन को ऊंचाई पर पहुंचाया.

SOCIETY

समयसमय पर दलित आक्रोश उभर कर सामने आता रहा है. आज भी भेदभाव कम नहीं हुआ है. एक सामाजिक अध्ययन में कहा गया है कि दलित समुदाय आज भी छत्तीस तरह के बहिष्कारों का सामना कर रहा है. इन में विवाह में घोड़ी पर चढ़ना, मंदिर प्रवेश, सार्वजनिक कुंओं, तालाबों, नलों से पानी भरना, ब्राह्मणों के बराबर आसन पर बैठना, मूंछें रखना, नाई से बाल कटवाना, चाय की दुकान पर अलग गिलास, स्कूलों में अलग पहचान जैसे मामले आएदिन सामने आते हैं.

पिछले दिनों हुए खैरलांजी, रोहित वेमुला, ऊना कांड, सहारनपुर कांड जैसे दलित उत्पीड़न के मामलों से यह साबित हुआ है कि संविधान बनने के 70 वर्षों बाद आज भी दलितों के साथ असमानता, अन्याय और भेदभाव वाला व्यवहार  कायम है. 1950 में जब हम ने संवैधानिक गणतंत्र को अपनाया था तब सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक और धार्मिक रूप से बहिष्कृत जाति के लोगों को कुछ विशेष अधिकार मिले थे पर सामाजिक रूप से प्रताड़ना झेलने के साथ दलितों को सरकारी संस्थानों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

कई दशकों बाद 2 अप्रैल को दलित वर्गों का हजारों साल का गुस्सा सड़कों पर उतर आया. यह इतिहास का सब से बड़ा दलित आंदोलन माना जा रहा है. दलितों में स्वाभाविक रूप से सवर्ण तबकों का सामना करने का साहस नहीं है, लेकिन इस आंदोलन ने इस मिथक को तोड़ा है. यह आंदोलन पहले ही हो जाना चाहिए था. जो काम मुसलमान नहीं कर पाए, दलितों ने कर दिखाया. दलित आंदोलन से हिंदू समाज में दरारें और साफ उभर आईं. संघ ने जो सेना खड़ी की है उस का प्रतिफल तो निकलना ही था.

इन दशकों में संविधान ने दलितों को सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक रूप से मजबूत किया है. सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला व इस तरह के फैसले दरअसल कानून को कमजोर करने की कवायद हैं.

शिक्षा व्यवस्था में संघी विचारधारा पूरी तरह से कामयाब दिख रही है. इतिहास से ले कर सिलेबस तक मनमुताबिक बदले जा रहे हैं. अब ज्यूडिशियरी में भी संघ की समान  विचारधारा वाले निर्णय नजर आने लगे हैं. बराबरी की व्यवस्था वाले संविधान पर धर्म की गैरबराबरी वाली भेदभाव की व्यवस्था थोपी जाती है, तो न्याय कहां होगा? सदियों से चले आ रहे भेदभाव के खिलाफ बने कानूनों को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं.

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या में 20.14 प्रतिशत आबादी दलितों की है. एससीएसटी  वर्गों के 131 सदस्य संसद में हैं. इस बड़े वर्ग से जुड़े इस मामले से हर दल का हित है. इसी कारण कांग्रेस समेत बड़े विपक्षी दलों ने इस आंदोलन को समर्थन दिया. भाजपा के सब से ज्यादा सांसद इन्हीं वर्गों से हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दलितों को पक्ष में करने के लिए पिछले कुछ समय से बहुत जतन कर रहे हैं. भाजपा द्वारा अंबेडकर की मूर्तियां लगाई जा रही हैं. दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश कराने के प्रयास किए जा रहे हैं पर भाजपा और संघ समर्थित लोगों की दलितों के प्रति अपनी कट्टर पौराणिक मानसिकता बदल नहीं पाई और समयसमय पर नफरत हिंसा के रूप में जाहिर होती रही है.

आज की दलित युवा पीढ़ी पढ़ रही है. उस में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक चेतना आई है. यह युवा पीढ़ी अब मानने को तैयार नहीं है कि वह सवर्णों के अधीन उसी तरह काम करे जैसा पुराणों में बताया गया है. वह अब खुल कर इस मानसिकता का विरोध करने लगी है. सीधेसीधे हिंदू धर्म के खिलाफ बगावत पर उतर आई है.

हिंदू समाज की भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते आज भी आएदिन अधिकांश दलित  बौद्ध धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं. सवर्ण समाज आज दलितों को बराबरी का हक देने के पक्ष में नहीं है. आरक्षण के विरोध की आवाज इसलिए बुलंद की जा रही है क्योंकि सवर्र्ण और पिछड़े वर्ग की बराबरी पर अब दलित समाज आ रहा है. वह सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक तौर पर मजबूत बन रहा है.

दलितों के लिए पैरवी

यूरोप में हुए पुनर्जागरण आंदोलन से कोई सबक न तो सवर्र्ण समाज ने लिया और न ही दलित वर्गों ने. पुनर्जागरण आंदोलन के बाद मानवीय मूल्यों का महिमामंडन हुआ. ज्ञानार्जन का प्रकाश फैला.  मानवीय मूल्य यूरोप की क्रांति के आदर्श बने. इन आदर्शों के जरिए ही यूरोप में एक ऐसे समाज की रचना की गई जिस में मानवीय मूल्योें को प्राथमिकता दी गई. यह अलग बात है कि औद्योगिकीकरण के चलते इन मूल्यों की जगह यूरोप में पूंजीवाद ने ले ली पर इस के बावजूद, मानवीय अधिकारों को सब से पहले कानूनी मान्यता दी गई.

इस का सीधा असर भारत पर पड़ा. भारतीय संविधान की प्रस्तावना से ले कर सभी अनुच्छेद इन्हीं अधिकारों की रक्षा करते नजर आते हैं. भारत में दलितों की कानूनी लड़ाई लड़ने का जिम्मा सब से मजबूत रूप में अंबेडकर ने उठाया. अंबेडकर ने सब से पहले दलितों के लिए सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की पैरवी की. अंबेडकर ने भारतीय समाज के तब के स्वरूप का विरोध और समाज के सब से पिछड़े व तिरस्कृत लोगों के अधिकारों की बात की. राजनीतिक और सामाजिक रूप से इस का विरोध हुआ. यहां तक कि महात्मा गांधी भी वंचित वर्गों के अधिकारों की मांगों के विरोध में उतर आए थे.

अंबेडकर ने मांग की थी कि दलितों को अलग प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए. यह दलित राजनीति में आज तक की सब से सशक्त और प्रबल मांग थी. देश की आजादी का बीड़ा उठाने वाली कांग्रेस की सांसें भी इस मांग पर अटक गई थीं. कारण साफ था कि समाज के तानेबाने में लोगों का सीधा स्वार्थ निहित था और कोई भी इस तानेबाने में जरा सा भी बदलाव नहीं करना चाहता था.

महात्मा गांधी विरोधस्वरूप आमरण अनशन पर बैठ गए. उन के लिए यह सब से बड़ा हथियार था. अंबेडकर अपनी मांग से हटना नहीं चाहते थे पर उन पर हर ओर से दबाव पड़ा. गांधी भी टस से मस नहीं हुए. आखिर अंबेडकर को ही झुकने पर मजबूर किया गया. अंत में पूना पैक्ट के नाम से एक समझौते में दलितों के अधिकारों की मांग को धर्म की दुहाई दे कर खत्म कर दिया गया. बाद में आरक्षण की व्यवस्था की गई. यह आरक्षण सवर्णों और दलितों के बीच हुए पूना पैक्ट समझौते का परिणाम था.

असल में यह दलितों का हिंदू धर्र्म के खिलाफ वंचितों का विद्रोह जैसा है जो सैकड़ों साल बाद भी न्याय, सम्मान और बराबरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं पर खुद दलित वर्ग हिंदू धर्म के दलदल में घुसने के लिए लालायित है. उधर, सवर्ण लोग इन का न तो मंदिरों में प्रवेश स्वीकार करने को तैयार हैं, न बराबर का मानने को. संविधान में समानता के अधिकार के  बावजूद यह तबका सवर्णों की पौराणिक सोच से आजाद नहीं हो पाया है.

जातिव्यवस्था की यह जहरीली सोच खत्म नहीं होगी. इस की जड़ें किताबों में नहीं, दिमागों में गहरे तक हैं. देश की मौजूदा सरकार इन जड़ों को और सींच रही है.

दलितों को मुक्ति तभी मिलेगी जब वे धर्म से मुक्त हो जाएंगे. जिस हिंदू धर्म ने दलितों के साथ भेदभाव किया, उन्हें सम्मान, न्याय से वंचित रखा, दलित आज उसी दलदल में घुसने का प्रयास कर रहे हैं. यह उन का आत्मघाती रास्ता है.

धर्म के नाम पर देश में जो हालात बन रहे हैं वे तालिबान, इसलामिक स्टेट के जिहादियों से अलग नहीं हैं. देश में अलगअलग वर्गों में बंटे समाज का विभाजन और गहरा हो रहा है. इसे पाटने के बजाय दरारें और चौड़ी की जा रही हैं. देश आगे चलने के बजाय 400 साल पीछे लौट रहा है.

दलित अगर धर्म को पूरी तरह त्याग कर शिक्षा की ओर उन्मुख होंगे, तो ही उन का सही उद्धार हो पाएगा.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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धार्मिक पर्यटन से बढ़ती पंडों की लूट

दिल्ली के रहने वाले प्रेम कुमार ने उत्तर प्रदेश में नैमिषारण्य का बहुत नाम सुना था. उत्तर प्रदेश सरकार के प्रचारप्रसार में भी नैमिषारण्य तीर्थ का बहुत जिक्र था. दिसंबर माह में प्रेम कुमार दिल्ली से 5 दिन की छुट्टी ले कर उत्तर प्रदेश घूमने गए तो अपने सफर की शुरुआत उन्होंने नैमिषारण्य से करना तय किया. कोहरे के कारण दिल्ली से लखनऊ पहुंचने में काफी समय लग गया.

लखनऊ में रात रुकने के बाद अगले दिन सुबह उन्होंने बस द्वारा नैमिषारण्य का सफर शुरू किया. लखनऊ के कैसरबाग बस स्टेशन से सुबह 7 बजे की बस मिल गई. 3 घंटे बाद बस ने नैमिषारण्य पहुंचा दिया. बस से उतरते ही दानदक्षिणा और भीख मांगने वालों ने उन्हें घेर लिया. प्रेम कुमार की पत्नी ने कहा कि दर्शन करने से पहले स्नान हो जाए. ऐसे में उन लोगों को धर्मशाला में एक कमरा लेना पड़ा. नैमिषारण्य में मंदिर के आसपास कोई अच्छा होटल या धर्मशाला उन लोगों को नहीं मिली. मजबूरी में एक साधारण धर्मशाला में कमरा लेना पड़ा.

कमरे में इंडियन स्टाइल का बाथरूम था. बड़ी मुश्किल से प्रेम कुमार और उन की पत्नी स्नान कर पाए. वहां से वे मंदिर पहुंचे तो प्रसाद खरीदने के लिए दुकानों में लोग उन को अपनी ओर खींचने लगे.

प्रेम कुमार की समझ में नहीं आ रहा था कि कहां और किस दुकान से प्रसाद खरीदें. लोगों से बचतेबचाते वे एक साफसुथरी दिखने वाली दुकान पर गए और प्रसाद के बारे में पूछा तो छत्र वाला प्रसाद कम से कम 51 रुपए का था. जब तक प्रेम कुमार 51 रुपए का प्रसाद देने को कहते तब तक दुकानदार ने 51-51 रुपए का प्रसाद प्रेम कुमार और उन की पत्नी को पकड़ा दिया.

प्रसाद ले कर आगे बढ़े तो वहां कुछ पंडों ने उन्हें घेर लिया. उन का प्रस्ताव था कि वे उन्हें पूरा नैमिषारण्य घुमा देंगे, हर मंदिर का माहात्म्य समझा देंगे, जो दक्षिणा देना चाहें दे देना. प्रेम कुमार जानते थे कि इन के चक्कर में पड़ कर ठगे जाएंगे. वे पंडों का चक्कर छोड़ कर खुद ही मंदिर दर्शन के लिए चल पड़े.

प्रेम कुमार को यह समझ नहीं आया कि प्रसाद में मिले छत्र को चढ़ाने के लिए 501 रुपए देने की क्या जरूरत? वे बोले कि छत्र नहीं चढ़ाना है. पतिपत्नी दोनों ऐसे ही प्रसाद चढ़ा कर चले आए. मंदिर से बाहर निकलते ही उन्हें एक बार फिर भीख मांगने वालों की लंबी लाइन से जूझना पड़ा. वहां से बचतेबचाते वे धर्मशाला पहुंचे और राहत की सांस ली.

प्रेम कुमार को यह नहीं लग रहा था कि कहीं घूमने आए और मन को शांति मिली हो. धर्मस्थलों में पंडेपुजारियों की लूट से वे व्यथित थे. जिस तरह का प्रचार नैमिषारण्य को ले कर सुना था वह पूरा होता नहीं दिखा.

सैरसपाटा नहीं चढ़ावा व स्नान

धार्मिक पर्यटन को पर्यटन का दर्जा देना ठीक नहीं है. असल में यहां पंडों की लूट होती है. लोगों के मन में किस्सेकहानियों के जरिए यह भर दिया जाता है कि धार्मिक पर्यटन से सुखशांति मिलती है. असल में यहां पंडों की दुकानें हैं जो हर तरह से पर्यटकों को लूटती हैं.

प्रसाद की दुकानों से ले कर धर्मशालाओं में ठहरने तक में ये पंडे तथाकथित भगवान के नाम पर पैसा लेते हैं. यहां के बाजारों व खानेपीने की दुकानों में इन लोगों का अधिकार होता है. पैसा लेने के बाद भी ये लोग इन जगहों के विकास के लिए कुछ नहीं करते हैं. कई बार इन जगहों पर बदइंतजामी का आलम यह होता है कि भगदड़ में सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है.

ऐसी जगहों पर नदी, तालाब या कुंड में नहाने की परंपरा होती है. इस के बारे में बताया जाता है कि यहां नहाने से शरीर पवित्र हो जाता है, जबकि पानी इतना गंदा होता है कि यहां नहाने से त्वचा रोगों का खतरा बढ़ जाता है. मंदिर ही नहीं, दरगाहों में भी चढ़ावे के नाम पर लूट होती है.

51 रुपए से ले कर 501 रुपए तक के प्रसाद में एक ही तरह की चीजें होती हैं. बाहर हम 10 रुपए का पानी भी देखभाल कर खरीदते हैं, लेकिन प्रसाद के नाम पर हम यह देखते ही नहीं कि दुकानदाररूपी पंडे क्या दे रहे हैं और हम क्या चढ़ा रहे हैं. असल में इन जगहों पर पर्यटन नहीं होता, लोग धार्मिक डर की वजह से यहां आते हैं. पर्यटन का मतलब यह होता है कि हम जहां जा रहे हैं वहां के लोगों, संस्कृति, रहनसहन, पहनावा और खानपान को देखें व समझ सकें.

अंधभक्तिभरी सरकारी नीति

उत्तर प्रदेश में हर सरकार केवल ऐसे शहरों में सुविधाओं को बढ़ाती है जहां मंदिर होते हैं. वह ऐसा कर के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करती है. योगी सरकार भी धार्मिक शहरों के विकास की बात कर रही है जहां पर्यटकों को पंडेपुजारियों और भीख मांगने वालों के अलावा कुछ नहीं मिलता है.

उत्तर प्रदेश में धार्मिक पर्यटन से जुड़े 3 सर्किट पहले से बने हैं. इन में बौद्ध, रामायण और कृष्ण हैं. इस के तहत कुशीनगर, अयोध्या और मथुरा का विकास हो रहा है. अब सरकार की धार्मिक पर्यटन से जुड़े कुछ और क्षेत्रों का विकास करने की योजना बनी है. इस में सूफी, फ्रीडम स्ट्रगल, कांवड़ और शक्तिपीठ प्रमुख हैं.

सरकार ने इस के लिए 500 करोड़ रुपए का बजट रखा है. सरकार पर केवल हिंदू धार्मिक स्थलों के विकास का आरोप न लगे, इसलिए फ्रीडम स्ट्रगल, सूफी और जैन सर्किट को जोड़ा गया है.

ब्रज सर्किट का नाम बदल कर कृष्ण सर्किट कर दिया गया है. इस से ब्रज का विकास होगा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रज तीर्थ विकास परिषद का गठन किया है. अवध क्षेत्र के लिए भी यह मांग हो रही है. इस के अलावा धार्मिक महत्त्व वाले सरकारी शहरों में मथुरा, वाराणसी, वृंदावन, चुनार, विंध्याचल, देवा शरीफ, नैमिषारण्य, सारनाथ, कपिलवस्तु, श्रावस्ती, कौशांबी, महोबा, चित्रकूट, कांलिजर, झांसी, देवगढ़ और चरखारी शामिल हैं.

बड़े शहरों में आगरा, लखनऊ, वाराणसी को हैरिटेज जोन बनाया गया है. सरकार बरसाने की होली, अयोध्या के दीपोत्सव और इलाहाबाद के कुंभ को बढ़ावा देना चाहती है. उत्तर प्रदेश जनसंख्या के लिहाज से देश का सब से बड़ा राज्य है. यहां हर तरह का पर्यटन होता है. इस के बाद भी घरेलू पर्यटन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश दूसरे नंबर पर है. विदेशी पर्यटन को देखें तो उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है. उत्तर प्रदेश से पहले तमिलनाडु और महाराष्ट्र का नंबर आता है.

उत्तर प्रदेश मेें सब से अधिक विदेशी पर्यटक आगरा स्थित ताजमहल को देखने आते हैं. इस के बावजूद सरकार ताजमहल पर ध्यान नहीं दे रही है. उत्तर प्रदेश से जब उत्तराखंड अलग हुआ, उस के बाद से यहां पर्यटन के नाम पर केवल धार्मिक पर्यटन को ही बढ़ावा दिया गया, जबकि दक्षिण भारत ने अपने चहुंमुखी पर्यटन को बढ़ावा दिया. आज वहां देश का सब से अधिक पर्यटक जाता है.

दोहरा खर्च बड़ी परेशानी

  • आम शहरों में केवल आनेजाने व रहने पर खर्च करना होता है जबकि धार्मिक शहरों में इस के अलावा, पंडेपुजारियों को दानदक्षिणा देने पर भी खर्च करना पड़ता है.
  • धार्मिक शहर ऐसे बसे हैं कि वहां भीड़, जाम और गंदगी भरी होती है. ऐसे में पर्यटकों को गंदगी का सामना भी करना पड़ता है.
  • पंडेपुजारी धर्म का डर दिखा कर लूटने के रास्ते बनाते हैं. इस से लोगों को मजा कम, परेशानी ज्यादा होती है.
  • मंदिरों की भीड़ में शांति कम, परेशानी ज्यादा होती है, जेबकतरी से ले कर लूट तक की घटनाएं घटने लगी हैं.
  • धार्मिक शहरों की भीड़ में भगदड़ होने से अकसर कई तरह की दुर्घटनाएं घट जाती हैं.

VIDEO : कलरफुल स्ट्रिप्स नेल आर्ट

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