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पुलिस वाले ने पुलिस से परेशान हो कर खुदकुशी की

राजस्थान के नागौर जिले के सुरपालिया थाने के तहत आने वाले एक गांव बाघरासर में रविवार, 21 जनवरी, 2018 की सुबह डीडवाना एएसपी दफ्तर के ड्राइवर कांस्टेबल गेनाराम मेघवाल ने अपनी पत्नी संतोष और बेटे गणपत व बेटी सुमित्रा के साथ फांसी के फंदे पर झूल कर जान दे दी.

21 जनवरी, 2018 को सुबह के 4 बजे गेनाराम के लिखे गए सुसाइड नोट को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया. उस सुसाइड नोट पर गेनाराम समेत परिवार के सभी सदस्यों के दस्तखत थे.

5 पन्नों के उस सुसाइड नोट में एक पुलिस एएसआई राधाकिशन समेत 3 पुलिस वालों पर चोरी के आरोप में फंसाने, सताने व धमकाने को ले कर यह कदम उठाने का आरोप लगाया गया था.

सुसाइड नोट में लिखा था कि मार्च, 2012 में नागौर पुलिस लाइन में रहने वाले एएसआई राधाकिशन सैनी के घर में चोरी हुई थी. राधाकिशन ने गेनाराम, उस के बेटे गणपत और बेटे के दोस्तों के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.

उन दिनों गेनाराम नागौर में तैनात था. इस मामले में 2 बार एफआईआर हो चुकी थी. लेकिन तीसरी बार यह मामला फिर खुलवा लिया गया. इस के बाद गेनाराम ने कोर्ट में एफआईआर रद्द करने की याचिका लगाई, मगर वह कोर्ट से खारिज हो गई थी.

गेनाराम अपने आखिरी समय में एएसपी दफ्तर, डीडवाना में तैनात था. वहां वह दफ्तर के पास बने सरकारी क्वार्टर में परिवार के साथ रहता था.

जांचपड़ताल में यह भी सामने आया  कि गेनाराम और राधाकिशन के बीच गांव ताऊसर में 18 बीघा जमीन को ले कर भी झगड़ा चल रहा था. इस मामले में भी अजमेर पुलिस के अफसरों ने जांच की थी. गेनाराम और उस के परिवार के तनाव की एक खास वजह यह भी थी.

गेनाराम का पिछले कुछ सालों में कई बार तबादला हुआ था. इस के चलते भी वह परेशान था. अपने सुसाइड नोट में उस ने एएसआई राधाकिशन सैनी पर बेवजह परेशान करने का आरोप लगाया था.

गेनाराम के खिलाफ चोरी के मामले की जांच कर रहे नागौर सीओ ओमप्रकाश गौतम का कहना है कि मार्च, 2012 के इस मामले की जांच पहले भी सीओ लैवल के कई अफसर कर चुके थे. 2 बार एफआईआर भी कराई गई थी, लेकिन पिछले दिनों यह मामला फिर से खुलवाया गया था.

गेनाराम ने हाईकोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को खारिज कराने के लिए भी याचिका लगाई थी, लेकिन 8 जनवरी, 2018 को कोर्ट ने उस की यह याचिका खारिज कर दी थी.

अपने सुसाइड नोट में गेनाराम ने परेशान करने के लिए जिस भंवरू खां का जिक्र किया है, वह रिटायर हो चुका है. गेनाराम के परिवार वालों ने राधाकिशन, उस की पत्नी, भंवरू खां और रतनाराम समेत 3-4 दूसरे लोगों के खिलाफ खुदकुशी करने के लिए उकसाने और दलित उत्पीड़न अधिनियम की धाराओं में मामला दर्ज कराया था.

लोगों ने इस मामले की जांच सीबीसीआईडी से कराने और ताऊसर की 18 बीघा जमीन को सीज करने की मांग की है.

यहां यह भी बताना जरूरी है कि राधाकिशन के घर में मार्च, 2012 में जब पुलिस लाइन, नागौर में चोरी हुई थी. तब राधाकिशन को गेनाराम की पत्नी संतोष ने ही चोरी होने की खबर दी थी. पर राधाकिशन और उस के परिवार ने गेनाराम और उस के बेटे गणपत व उस के साथियों पर ही चोरी करने का आरोप लगा दिया और मुकदमा दर्ज करा दिया.

जुर्म साबित नहीं होने के बाद भी दुराचरण रिपोर्ट भेजी गई. गेनाराम ने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘हमारी किसी ने नहीं सुनी.’

इस मामले में तब सीओ द्वारा तलबी लैटर जारी किया गया था. दफ्तर पहुंचने पर राधाकिशन ने गेनाराम को फिर धमकाया. राधाकिशन कई सालों से एक ही दफ्तर में तैनात है.

गेनाराम एएसपी दफ्तर में ड्राइवर था. नागौर जिला एसपी दफ्तर में मीटिंग होती थी, तो वही एएसपी को ले कर जाता था. एसपी दफ्तर में ही एएसआई राधाकिशन का दफ्तर था. वह गेनाराम को देखते ही धमकाता था. गेनाराम इस वजह से परेशान हो गया था.

गेनाराम और उस के बीवीबच्चे पढ़ेलिखे थे. उन्होंने क्यों नहीं कानूनी लड़ाई लड़ी? शायद उन की उम्मीद जवाब दे गई थी, तभी उन्होंने अपनी जिंदगी खत्म करने में ही भलाई समझी और जहर पीने के बाद फांसी के फंदे पर झूल कर मौत के मुंह में जा पहुंचे.

सुसाइड नोट में लिखी बातें पढ़ कर लोग हैरान रह गए कि पुलिस वाला भी पुलिस के कहर से नहीं बच सका. ऐसे पुलिस वालों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई इस तरह पूरा परिवार खत्म न हो.

गेनाराम के बेटे गणपत और बेटी सुमित्रा ने सीकर से पौलीटैक्निक का कोर्स किया था. इस के बाद से वे दोनों मातापिता के साथ डीडवाना में ही रह रहे थे. इस परिवार के बाकी सदस्यों का कहना है कि सुमित्रा की सगाई गांव धीरजदेसर में हुई थी, जबकि बेटे गणपत की सगाई गांव सोमणा में की गई थी.

कांस्टेबल गेनाराम के 10 सवाल, जो उस ने अपने सुसाइड नोट में लिखे थे, अब जवाब मांग रहे हैं :

* चोरी का सारा सामान मिल जाना और एफएसएल भी नहीं उठाना घटना का बनावटी होना जाहिर करता है.

* तांत्रिक के कहने, कांच में चेहरा देखने की बात के आधार पर अनुसंधान करना क्या सही है?

* जांच अधिकारी के सामने राधाकिशन द्वारा गणपत के साथ मारपीट की गई. गवाह होने के बाद भी एफआईआर दर्ज करा देना.

* एसपी दफ्तर में नियम विरुद्ध नौकरी करना.

* पुत्र के साथ मारपीट और बिना वारंट 2 दिन थाने में रखना सचाई पर कुठाराघात है.

* पुत्र गणपत अपराधी था तो उसे थाने में रख कर छोड़ा क्यों गया?

* अनुसंधान अधिकारी राजीनामे का दबाव बनाने में जुटे थे. मामला इसी के चलते पैंडिंग रखा गया.

* जांच में पहले पुत्र और फिर पूरे परिवार पर आरोप लगाना शक पैदा करता है.

* चोरी के सामान में मंगलसूत्र गायब बताया जो महिला हमेशा पहने रहती है.

* महिला ने मंगलसूत्र पहन रखा था तो उसे चोरी हो जाना क्यों बताया?

गेनाराम के पूरे परिवार समेत खुदकुशी करने का पता चला तो राधाकिशन, भंवरू खां और रतनाराम फरार हो गए.

कांग्रेस के संसदीय सचिव रह चुके गोविंद मेघवाल ने बताया, ‘‘दलितों पर जोरजुल्म बढ़ रहे हैं. समाज को एकजुट होना पड़ेगा. यह पुलिस और वसुंधरा सरकार की नाकामी है. हमारा समाज इस पर विचार कर रहा है.’’

VIDEO : समर स्पेशल कलर्स एंड पैटर्न्स विद द डिजिटल फैशन

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बेरोजगारी : छोटे ओहदों के लिए बड़ी मारामारी

28 जनवरी, 2018 को मध्य प्रदेश के मुरैना जिले की जिला अदालत में 8 हजार से भी ज्यादा नौजवानों का हुजूम इकट्ठा था. वहां बड़े पदों की भरती नहीं होनी थी, बल्कि ड्राइवर और चपरासी जैसे छोटे पदों के लिए भरती थी. इस के बावजूद ज्यादातर उम्मीदवार ग्रेजुएट या फिर पोस्ट ग्रेजुएट थे.

खाली पदों की तादाद महज 22 थी, पर जब 8 हजार नौजवान वहां आ गए तो अफरातफरी सी मच गई. दस्तावेजों की जांच में ही अफसरों का पूरा दिन गुजर गया.

इसी 28 जनवरी को यही हालत विदिशा जिले की अदालत में भी थी. वहां 52 पदों के लिए तकरीबन 7 हजार बेरोजगार लाइन में थे. खाली पद ड्राइवर, माली और जल वाहक के थे.

भीड़ उमड़ी तो उसे संभालने के लिए प्रशासन को अच्छीखासी मशक्कत करनी पड़ी. इस भीड़ में भी ज्यादातर बेरोजगारों के हाथों में बड़ीबड़ी डिगरियां थीं.

इसी दिन गुना जिले की अदालत में भी हजारों बेरोजगार लाइन लगाए खड़े थे. वहां भी भरती चपरासी, माली और ड्राइवर जैसे छोटे पदों के लिए होनी थी, जिन के लिए काबिलीयत 8वीं पास रखी गई थी, पर तकरीबन 70 फीसदी उम्मीदवार 12वीं जमात पास, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट थे. दस्तावेजों की जांच और इंटरव्यू के लिए 6 जजों की ड्यूटी लगाई गई थी.

बदतर होते हालात

14 जनवरी, 2018 को ग्वालियर जिला अदालत में चपरासी के पद की 57 भरतियों के लिए तकरीबन 60 हजार उम्मीदवार लाइन लगा कर खड़े थे.

चपरासी की तनख्वाह महज साढ़े 7 हजार रुपए महीना होती है जिस के लिए इंजीनियरिंग, एमबीए और पीएचडी किए हुए नौजवान भी आए थे.

60 हजार अर्जियां देख कर इंटरव्यू लेने आए जज भी चकराए हुए थे. बढ़ती भीड़ और मचती अफरातफरी देख कर आखिरकार यह तय किया गया कि अब 14 जज 16 दिनों तक इंटरव्यू लेंगे. अर्जी की फीस से ही सरकार को एक करोड़, 20 लाख रुपए मिले थे.

मध्य प्रदेश में ही उस वक्त सनाका खिंच गया था जब सरकार ने पटवारी के 9,218 पद निकाले थे. इन पदों पर भरती के लिए रिकौर्ड 12 लाख बेरोजगारों ने फार्म भरे थे, जिन में पीएचडी किए हुए उम्मीदवारों की भी अच्छीखासी तादाद थी. लड़कियों ने भी खूब फार्म भरे थे.

इस पद के 5 लाख रुपए में फार्म बिकने की अफवाह भी उड़ी थी. कहा यह भी गया था कि मध्य प्रदेश की सरकार ने विधानसभा चुनावों के लिए तगड़े पैसों का इंतजाम कर लिया है.

हर जगह यही हाल

एक अंदाजे के मुताबिक, बेरोजगारी के लिए बदनाम बिहार में सब से ज्यादा 3 करोड़ बेरोजगार हैं. हालत तो यह है कि पिछले साल अक्तूबर महीने में जब पटना और उस के आसपास के इलाकों के लिए राशन की कुछ दुकानों के लिए अर्जियां मंगाई गई थीं तो उन में सौ से ज्यादा ग्रेजुएट और तकरीबन 20 पोस्ट ग्रेजुएट उम्मीदवार थे. कुछ पीएचडी किए नौजवान भी राशन की दुकान चलाने के लिए लाइन में लगे देखे गए.

राशन की दुकान कोई स्थायी रोजगार नहीं है, इस के बाद भी अच्छेखासे पढ़ेलिखे बेरोजगार भी इस के लिए भागादौड़ी करते दिखे तो समझा जा सकता है कि हालात कितने बदतर हो चुके हैं.

फरवरी महीने के तीसरे हफ्ते में रोजगार न मिलने से गुस्साए नौजवानों ने जबरदस्त प्रदर्शन कर अपनी भड़ास निकाली थी. आरा में प्रदर्शनकारी बेरोजगारों ने ट्रेनें रोक दी थीं. उन के हाथ में तख्तियां थीं जिन पर लिखा था कि वे पकौड़े नहीं बेचेंगे.

इन बेरोजगार नौजवानों का आरोप यह था कि केंद्र और राज्य सरकार के सेवा क्षेत्रों में नौकरियों की तादाद लगातार घट रही है.

ये नौजवान इम्तिहान की फीस में बढ़ोतरी और नौकरियों में आयु सीमा घटाने पर भी भड़के हुए थे.

हाल ही में रेलवे द्वारा निकाली गई बंपर नौकरियों से नौजवानों को उम्मीद बंधी थी लेकिन ऐजूकेशन क्वालिफिकेशन के नाम पर आईटीआई अनिवार्य किए जाने और नौकरियों में उम्र की सीमा घटाए जाने पर बेरोजगारों ने जो उग्र प्रदर्शन किया तो हालात काबू में करने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग तक करनी पड़ी थी.

उत्तर प्रदेश में भी बेरोजगार ‘करो या मरो’ के मूड में आ गए हैं. आंकड़ों के नजरिए से देखें तो बिहार के बाद सब से ज्यादा 1 करोड़, 30 लाख बेरोजगार उत्तर प्रदेश में हैं.

राज्य में बेरोजगारी की दर 8 फीसदी के आंकड़े को छूने जा रही है, जबकि बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 5 फीसदी है यानी दूसरे राज्यों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में 3 फीसदी ज्यादा बेरोजगार हैं.

साल 2016 में इस राज्य में प्रति 1000 नौजवानों में से 58 नौजवान बेरोजगार थे जबकि इस का राष्ट्रीय औसत 37 है. श्रम मंत्रालय के आंकड़े भी हकीकत बयां करते हैं, जो मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में 18 से 29 साल की उम्र वाले बेरोजगार नौजवानों की तादाद प्रति 1000 पर 148 है.

अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी की सरकार के वक्त हालत यह थी कि मध्य प्रदेश की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में भी चपरासी जैसी छोटी नौकरी के लिए पीएचडी किए हुए नौजवान भी लाइन में लगे थे.

आंकड़ा मध्य प्रदेश से भी ज्यादा शर्मनाक था जब चपरासी के महज 368 पदों के लिए तकरीबन 23 लाख से ज्यादा नौजवानों ने फार्म भरे थे. इन में 2 सौ से ज्यादा पीएचडी किए हुए थे.

चपरासी के जिस पद के लिए ऐजूकेशन क्वालिफिकेशन 5वीं पास चाहिए होती है उस के लिए लाखों ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट के अलावा टैक्निकल डिगरीधारी भी शामिल थे.

हालत यह थी कि अगर इंटरव्यू लेने के लिए 10 बोर्ड भी बनाए जाते तो पूरी प्रक्रिया में 4 साल से भी ज्यादा का वक्त लग जाता. बवंडर मचा तो इस मामले के लिए बनाई गई जांच कमेटी ने चपरासी पद की भरती ही रद्द कर दी थी.

यह मामला अखिलेश सरकार को कितना महंगा पड़ा था, विधानसभा चुनाव के नतीजे इस के सुबूत थे, लेकिन भाजपा सरकार भी हालात संभाल नहीं पा रही है.

बेरोजगारों का ध्यान बंटाने के लिए योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव द्वारा दिया जाने वाला बेरोजगारी भत्ता तो जारी रखा ही, साथ ही नया शिगूफा प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना का वे ले आए हैं, जिस के नाम पर जगहजगह रोजगार मेले लगाए जा रहे हैं. इन मेलों में बेरोजगारों की उमड़ती भीड़ राज्य सरकार से संभल नहीं पा रही है.

सरकार की नई दिक्कत यह है कि बेरोजगारों को यह समझ आने लगा है कि कौशल विकास जैसी योजनाएं बेवकूफ बनाए रखने का नया तरीका हैं. साढ़े 7 लाख नौकरियों का वादा वैसा ही खोखला साबित हो रहा है, जैसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक करोड़ नौकरियां देने का हुआ है.

बेरोजगारों ने राज्य में जगहजगह पकौड़े बेच कर अपना विरोध दर्ज कराया तो योगी आदित्यनाथ चौकन्ने हो उठे हैं और इन्वैस्टर्स मीट और स्किल डेवलपमैंट का झुनझुना ले कर नौजवानों को बरगला रहे हैं.

कौशल विकास योजना की पोल भी खुलने लगी है. राजस्थान में तकरीबन 20 लाख नौजवान कौशल विकास योजना से फायदा उठाने के बाद भी नौकरी की तलाश में दरदर भटक रहे हैं. अंदाजा है कि राजस्थान में कुल 60 लाख से भी ज्यादा बेरोजगार हैं.

राजस्थान एकीकृत बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष उपेन यादव की मानें तो राज्य में सरकारी नौकरियां निकल ही नहीं रही हैं. राज्य सरकार नौजवानों को टैक्निकल ट्रेनिंग देने की बात तो कर रही है, पर उन्हें रोजगार मुहैया नहीं करा पा रही है.

बात सच भी है क्योंकि अकेले विद्युत निगम में ही 8 हजार तकनीकी पद खाली पड़े हैं. ठेके पर काम कर रहा विद्युत निगम नौकरियां नहीं निकाल रहा है. राज्य के सार्वजनिक निर्माण विभाग ने साल 2013 से तकनीकी पदों की नौकरियां नहीं निकाली हैं.

राज्य में बेरोजगारों के कई संगठन बन कर नौकरियों और रोजगार के अपने हक की लड़ाई लड़ने लगे हैं. बेरोजगारों का गुस्सा पहले नोटबंदी को ले कर था जो अब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नाकामी पर फूटने लगा है.

हाल ही में अलवर और अजमेर के लोकसभा उपचुनावों में राजस्थान बेरोजगार संघ भी कूदा था. उस के निशाने पर वसुंधरा राजे थीं जिन्होंने 15 लाख बेरोजगारों को रोजगार देने का वादा किया था लेकिन राज्य के 8 फीसदी नौजवानों को भी रोजगार के बाबत बैंक कर्ज नहीं मिला जिस का खमियाजा उपचुनावों में भाजपा को हार कर भुगतना भी पड़ा था.

छोटी नौकरी पर रुझान

यह शर्म और चिंता की बात है कि देश के बहुत से नौजवान ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, एमबीए और पीएचडी करने के बाद भी छोटे ओहदों के लिए लाइन में खड़े नजर आए. केंद्र सरकार ही इस हालत की जिम्मेदार है.

साल 2018-19 के सालाना बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली रोजगार के बाबत कुछ खास भरोसा नहीं दे पाए हैं और दुनियाभर की एजेंसियों के आंकड़े भी चिंता जता रहे हैं कि इस साल भी बेरोजगारी बजाय कम होने के और बढ़ेगी तो तय है कि रोजगार देने के मोरचे पर सरकार नाकाम रही है.

चायपकौड़ा बेचना तो फिर भी एक बेहतर काम है, लेकिन अगर कोई पोस्ट ग्रेजुएट या पीएचडी वाला बगीचे में घास खोदता नजर आए या फिर खुद से कम पढ़ेलिखे बाबुओं और साहबों की मेज साफ करे, दफ्तर में झाड़ू लगाए और उन्हें पानी पिलाता नजर आए तो यह बात फख्र की नहीं है. मगर सालोंसाल पढ़ाई कर के डिगरी हासिल करने के बाद भी चपरासी, माली या ड्राइवर की नौकरी ही करनी है तो ऐसी डिगरी से फायदा क्या?

बेरोजगार सेना के तेवर

जबजब बेरोजगारी हद से ज्यादा बढ़ती है, तबतब बेरोजगार संगठन बना कर अपना विरोध जताते रहे हैं. भोपाल के अक्षय हुंका नाम के नौजवान ने बेराजेगार सेना बनाई तो देखते ही देखते उस के सदस्यों की तादाद लाखों तक पहुंच गई.

अक्षय हुंका कहते हैं कि सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती बेरोजगारी किसी सुबूत की मुहताज नहीं है. इस में पढ़ेलिखे नौजवानों की भागीदारी 88 फीसदी है. अव्वल तो सरकार के पास बेरोजगारी का आंकड़ा न होना ही अचंभे की बात है, ऐसे में राज्य के डेढ़ करोड़ नौजवान क्या खा कर सरकार से उम्मीद रखें.

मध्य प्रदेश के अलगअलग रोजगार दफ्तरों के आंकड़ों पर नजर डालें तो यह जान कर हैरानी होती है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बेरोजगारी 53 फीसदी बढ़ी है. राज्य में दिसंबर, 2015 में रजिस्टर्ड पढ़ेलिखे बेरोजगारों की तादाद 15 लाख, 60 हजार थी, जो साल 2017 के आखिर तक 24 लाख का आंकड़ा छू रही है.

बेरोजगार सेना की खास मांग यह है कि सरकार मनरेगा की तरह पढ़ेलिखे नौजवानों के लिए रोजगार गारंटी कानून बनाए. इस सेना में ऐसे नौजवानों की भरमार है जिन्होंने अच्छी नौकरी मिलने के लालच में 2-3 डिगरियां और डिप्लोमा ले रखे हैं पर उन्हें माली, ड्राइवर या चपरासी तक की भी नौकरी नहीं मिल रही है.

भोपाल की 26 साला अनुप्रिया सिंह ने बीई करने के बाद एमबीए किया पर उन्हें नौकरी नहीं मिली. पटवारी के पद के लिए भी अनुप्रिया सिंह ने कोशिश की थी पर वहां भी बात बनती नजर नहीं आ रही है.

अच्छेखासे घर की अनुप्रिया सिंह की चिंता यह है कि आजकल के लड़के बेरोजगार लड़की से शादी करना पसंद नहीं करते. सभी को कामकाजी बीवी चाहिए, जिस से घर ठीकठाक तरीके से चल सके.

भोपाल के ही एमपी नगर इलाके के एक शोरूम में काम करने वाले 26 साला आदित्य के पास भी 2 डिगरियां हैं.

12 हजार महीने की तनख्वाह पर काम करने वाले आदित्य का रोना यह है कि समाज और रिश्तेदारी में उस की तालीम को ले कर ताने मारे जाते हैं. बड़ी तो बड़ी चपरासी जैसी छोटी नौकरी भी उसे नहीं मिल पा रही है.

आदित्य और अनुप्रिया सिंह जैसे लाखों नौजवान सरकारी नौकरी ही क्यों चाहते हैं? इस का जवाब साफ है कि सरकारी नौकरी परमानैंट होती है. इस में 14-15 साल बाद इतनी तनख्वाह तो मिलने लगती है कि जिंदगी सुकून से गुजरे.

क्या हुआ तेरा वादा

बेरोजगारों के लिए सरकार नौकरियां कहां से लाए? इस सवाल पर झल्लाए अक्षय हुंका कहते हैं, ‘‘हम एक हद तक इस बात से इत्तिफाक रखते हैं, पर मध्य प्रदेश सरकार के पास ढाई लाख पद खाली पड़े हैं, वे तो वह भर ही सकती है. नोटबंदी और जीएसटी के फैसले रोजगार कम होने की वजह हैं जिन के चलते कई प्राइवेट कंपनियों, कारखानों और फैक्टरियों को मजबूरी में मुलाजिमों की छंटनी करनी पड़ रही है.

‘‘बेरोजगारों को उद्योगधंधों या अपने कारोबार के बाबत लोन देने की बातें भी झुनझुना साबित हो रही हैं.’’

विदिशा के निरंजन सिंह कहते हैं कि उन्होंने साल 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को जातपांत, धर्म या हिंदुत्व की वजह से नहीं बल्कि नरेंद्र मोदी के इस वादे पर वोट दिया था कि वे हर साल एक करोड़ नौकरियां देने का इंतजाम करेंगे.

निरंजन सिंह नरेंद्र मोदी को फेल बताते हुए कहते हैं कि अब भाजपा को खमियाजा भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए. बेरोजगार नौजवान गुस्से में हैं, क्योंकि नोटबंदी के फैसले से प्राइवेट नौकरियों के मौके भी उन से छिने हैं.

यह सोचना भाजपा की गलतफहमी ही साबित होगी कि मंदिरमसजिद या धर्मकर्म के नाम पर उसे वोट मिल जाएंगे. काठ की हांड़ी एक दफा ही चूल्हे पर चढ़ती है.

यह शिकायत या भड़ास किसी एक की नहीं, बल्कि देश के करोड़ों नौजवानों की है जिस से बच पाना भाजपा के लिए बहुत मुश्किल साबित होगा.

सच तो यह है कि जिस देश में एमए, बीई और पीएचडी किए हुए नौजवानों तक को चपरासी, माली, ड्राइवर और पटवारी की नौकरी के लिए एडि़यां रगड़नी पड़ती हों, वह क्या खा कर साल 2024 तक विश्वगुरु बनने की बात करता है.

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अंधविश्वास : पंडों की गिरफ्त में देहात

6 फरवरी, 2018 को मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के गांव गूजरीपुरा में आसपास के तकरीबन 2 दर्जन गांवों के पंच मौजूद थे. खास बात यह थी कि वे सभी कुशवाहा जाति के थे.

मुद्दा बड़ा अजीब था. पिछले साल 28 दिसंबर को शिवनंदन कुशवाहा नाम के एक नौजवान के हाथों एक ठेकेदार महेश शर्मा की हत्या हो गई थी. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. पर इधर आफत उस के घर वालों पर आ पड़ी थी.

शिवनंदन कुशवाहा के मामले में कहा यह गया कि अब शिवनंदन के घर वालों को समाज में रहने और सामाजिक जलसों में शिरकत करने का हक नहीं. लिहाजा, उन का हुक्कापानी बंद कर दिया जाए. मानो कत्ल शिवनंदन ने नहीं बल्कि पूरे घर ने किया हो. 6 फरवरी के जमावड़े में इसी बात का हल निकाला गया कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

ऐसे धुले पाप

शिवनंदन के पिता नकटूराम और मां गोमतीबाई को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उन का क्या कुसूर है. यही हालत उन के दूसरे बेटे बालकिशन की थी. वह भी अपने मांबाप की तरह इस बात से डर रहा था कि पंच कोई सख्त फैसला न सुना दें.

दिनभर की कवायद के बाद आखिरकार पंचों ने एकमत हो कर फैसला दिया कि नकटूराम और गोमतीबाई को गंगा स्नान कर रामायण का पाठ करना पड़ेगा. यह कोई तुक की बात नहीं थी इसलिए दबी आवाज में ही सही बालकिशन ने एतराज जताना चाहा लेकिन पंचों के सिर पर तो पंडा बन कर फैसला सुनाने का भूत सवार था इसलिए उन्होंने एक न सुनी. आखिरकार बूढे़ पतिपत्नी ने गंगा स्नान किया और रामायण भी पढ़ी, तब कहीं जा कर उन का पिंड छूटा.

यह पूछने वाला और बताने वाला कोई नहीं था कि अगर बेटे ने हत्या की है तो पूरे घर वाले कैसे अशुद्ध हो गए और गंगा स्नान और रामायण के पाठ से वापस कैसे शुद्ध हो गए? सच तो यह है कि वे अशुद्ध हुए ही नहीं थे, फिर शुद्धि का तो कोई सवाल ही नहीं उठता. दिलचस्प बात यह भी है कि मुकदमा चल रहा था और अदालती फैसला नहीं आया था.

यह था असली मकसद

गांवदेहातों में असल राज कानून का नहीं बल्कि धर्म और पंडों का चलता है, यह इस मामले से एक बार फिर उजागर हुआ. पंचायतें गांवों की तरक्की के लिए सड़कों और अस्पतालों के लिए बैठें तो बात समझ आती है लेकिन पंचायतें अदालत में चल रहे किसी मुकदमे पर बेगुनाह लोगों को पापी कहते हुए मुजरिम करार देने बैठें तो शक होना कुदरती बात है.

असल ड्रामा धर्म का धंधा बनाए रखने का है जिस से गांवों का माहौल बदले नहीं और पंडों का दबदबा कायम रहे. गंगा नहाने और रामायण पढ़ने से शुद्धि आती है, यह बात पिछड़ी कही जाने वाली कुशवाहा जाति को कैसे मालूम?

इस पर कुशवाहा समाज के एक पढ़ेलिखे और सरकारी मुलाजिम रह चुके जीएस सूर्यवंशी का कहना है कि इस के पीछे साजिश पंडों की ही नजर आती है. गांवदेहातों से धर्म का धंधा फैलाने के लिए ही यह नया टोटका रचा गया है.

मुमकिन है, कल को यह रिवाज बन जाए कि अगर किसी पिछड़े दलित ने कोई जुर्म किया है तो उस के घर वालों से भोज भी कराया जाने लगे. ऐसा अभी भी होता है कि पाप मुक्ति के लिए पूजापाठ और भोज के जलसे कराए जाते हैं नहीं तो नकटूराम जैसे बेगुनाहों को समाज और गांव से निकालने की धमकी दी जाती है जिस से वे घबरा उठते हैं.

गांवों में अगर इस तरह के धार्मिक पाखंडों से ही इंसाफ होना है तो कानून और अदालतों की कोई जरूरत नहीं रह जाती. इस से बेहतर तो यह होता कि शिवनंदन को ही 10-20 बार गंगा नहाने और रामायण पढ़ने के लिए कहा जाता जिस से बेचारा जेल जाने से बच जाता और उस का जुर्म भी माफ हो जाता.

कुशवाहा समाज पीढि़यों से दबंगों के खेतों में सागभाजी उगाता रहा है. आजादी के 70 साल बाद इस जाति के कुछ नौजवान पढ़ाईलिखाई कर के नौकरियों में आ रहे हैं. कहने भर के मेहनताने पर दबंगों की मजदूरी करती रही इस जाति में जागरूकता उम्मीद के मुताबिक नहीं आ पा रही है तो गूजरीपुरा जैसे गांवों के ये मामले इस की बड़ी वजह हैं जिस की मार एक कुशवाहा ही नहीं बल्कि तमाम पिछड़ी जातियों पर बराबरी से पड़ रही है.

दलितों को पाप मुक्ति के नाम पर कभी गंगा स्नान और रामायण पढ़ने की सजा नहीं दी जाती क्योंकि उन्हें तो यह हक ही धर्म ने नहीं दिए हैं और अब जिन्हें दिए जा रहे हैं, उन से कीमत भी वसूली जा रही है.

अंधविश्वासों के गुलाम

ज्यादातर गांवों में बिजली पहुंच गई है, सड़कें बन गई हैं, पर जागरूकता किसी कोने से नहीं आ रही तो इस की वजह गांवदेहातों में पसरे तरहतरह के अंधविश्वास हैं जिन्हें पंडेपुजारी और बढ़ाते रहते हैं.

गांव वालों का दिमागी दिवालियापन और पिछड़ापन इसी बात से समझा जा सकता है कि वे गेहूं की उन्नत किस्म बोते हैं लेकिन उस की बोआई का मुहूर्त पूछने पंडित के पास भागते हैं और इस बाबत उसे दक्षिणा भी देते हैं.

शादीब्याह और तेरहवीं में तो पंडों की हाजिरी जरूरी होती ही है लेकिन हैरानी तब होती है जब ये लोग गाय के गुम जाने पर उसे ढूंढ़ते नहीं बल्कि पंडे, तांत्रिक या गुनिया के पास जाते हैं. उस के बताए मुताबिक मवेशी मिल जाए तो उस की पूछपरख बढ़ जाती है नहीं तो किस्मत को कोस कर लोग चुप रह जाते हैं.

इस में चित और पट दोनों पंडों की होती है और हर मामले में रहती है. ये चालाक लोग जो गांवों के पिछड़ेपन के असली गुनाहगार हैं, झाड़फूंक के जरीए और पूजापाठ से बीमारियां ठीक करने का भी दम भरते हैं. भूतप्रेत, पिशाच और ऊपरी बाधा भगाने का काम भी करते हैं जो हकीकत में बड़े पैमाने पर पसरा वहम है. यह वहम भी हर कोई जानता है कि धार्मिक किताबों की देन है.

हर गांव में सालभर कोई न कोई धार्मिक जलसा होता रहता है. रामायण का पाठ तो अब आम बात हो चली है. इस बाबत शहरों की रामायण मंडलियां लाने का ठेका पंडे के पास ही होता है जो तयशुदा दक्षिणा में से अपनी दलाली दोनों तरफ से लेता है.

भागवत कथाएं भी इफरात से होने लगी हैं जिन में भारीभरकम खर्च बैठता है. भागवत कथाएं लोकल पंडा या मंडली नहीं कराती, बल्कि बाहर से नामीगिरामी महाराज बुलाए जाते हैं जिन की फीस भी लाखों रुपए में होती है.

जिस गांव में भागवत कथा होती है वहां आसपास के गांवों के लोग मधुक्खियों की तरह टूट पड़ते हैं और बगैर सोचेसमझे दक्षिणा की शक्ल में पैसा चढ़ा देते हैं. उन्हें लगता है कि भागवत कथा सुनने से उन के पाप धुल जाएंगे और अगले जन्म में उन्हें छोटी जाति में पैदा नहीं होना पड़ेगा.

अब नई चाल मुजरिम के घर वालों को फंसाने की चली जा रही है कि अगर उसे गांव में रहना है तो वह धर्मकर्म करे नहीं तो उसे भगा दिया जाएगा.

इस तरह के फैसलों से फायदा उन पंडों का ही होता है जो पहले ब्रह्म हत्या के बुरे नतीजे गिनाते हैं, फिर उन से बचाने के लिए धार्मिक टोटके बता कर अपनी बादशाहत कायम रखते हैं.

ऐसे फैसलों से गांवों की दशा सुधरने की उम्मीद रखना बेमानी है. गांवों की असली तरक्की तो तभी होगी जब धार्मिक पाखंडों और अंधविश्वासों की जकड़न से लोग आजाद हो पाएंगे. ऐसा हो न जाए, इस बाबत क्याक्या छलप्रपंच रचे जाते हैं, इस के लिए एक गूजरीपुरा से नहीं बल्कि लाखों गांवों से मिसालें मिल जाएंगी.

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बड़ा दिलचस्प है दलित नेताओं और राम का संबंध

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दलितों के मसीहा भीमराव अंबेडकर के नाम के साथ राम जोड़ा तो खासा बवाल मचा था. योगी की इच्छा को अमलीजामा पहनाते राष्ट्रीय अनुसूचित/ जनजाति आयोग कभी भी यह फरमान जारी कर सकता है कि अब तमाम सरकारी लिखापढ़ी में अंबेडकर का नाम भीमराव रामजी अंबेडकर लिखा जाए.

दलित नेताओं और राम का संबंध बड़ा दिलचस्प है. सिया राम मय सब जग जानि …. की तर्ज पर लगभग सभी प्रमुख दलित नेताओं के नाम के आगे, पीछे या बीच में राम जुड़ा हुआ है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अलावा बाबू जगजीवनराम, कांशीराम, रामविलास पासवान और रामदास अठावले इस के उदाहरण हैं. अब भला अंबेडकर क्यों रामविहीन रहें, लिहाजा, उन्हें भी दलितों का राम बनाने की तैयारी में हर्ज क्या है.

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दूरसंचार सेवाओं का बढ़ेगा राजस्व

रिलायंस जियो ने दूरसंचार बाजार में प्रवेश कर जो धमाल मचाया उस ने इस क्षेत्र में मालामाल होने वाली कंपनियों के दांत खट्टे कर दिए. जियो ने ग्राहकों को निशुल्क वौयस कौलिंग जैसी सुविधा दे कर भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में ऐसी क्रांति पैदा कर दी कि हर हाथ में स्मार्टफोन पहुंच गया. बाजार की हर कंपनी चिंतित हो गई और ग्राहकों को बचाने के लिए कंपनियों को अपनी दरों में कटौती करनी पड़ी.

प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए इंटरनैट की सुविधा लगभग निशुल्क दी गई जिस के कारण 2017 में दूरसंचार कंपनियों का राजस्व अत्यधिक गिर गया. बाजार में पहले से मौजूद कंपनियों को नुकसान से बचने के लिए एकदूसरे से जुड़ना पड़ा और एअरसेल जैसी कंपनी ने अपने दीवालिया होने के लिए आवेदन कर दिया. टाटा टैलीसर्विसेस, रिलायंस कम्युनिकेशन तथा टैलीनौर बाजार से लगभग बाहर हो गईं और आइडिया तथा वोडाफोन को मिल कर इस आंधी का मुकाबला करना पड़ा. रिलायंस जियो और एअरटेल ही बाजार में छाए रहे. एअरटेल को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.

सरकार का कहना है कि दूरसंचार कंपनियों के साथ ही उसे भी इस क्षेत्र में राजस्व का भारी नुकसान हुआ है. उस का राजस्व बड़े स्तर पर घटा है. इस बीच सरकार ने इस क्षेत्र का राजस्व बढ़ाने के उपायों पर विचार करना शुरू कर दिया है. इन प्रयासों का दूरसंचार बाजार पर बड़ा असर पड़ेगा. खुद सरकार का कहना है कि अब इस क्षेत्र में सुधार होना शुरू हो जाएगा. कंपनियों को भी उम्मीद है कि उन का राजस्व बढ़ेगा.

दूरसंचार कंपनियां प्रतिस्पर्धी बनने के लिए बाजार में निशुल्क डाटा तो देती रहीं, ग्राहकों को लुभाने की आकर्षक योजना शुरू करती रहीं लेकिन डाटा स्पीड बहुत कम होने के कारण ग्राहक निर्धारित डाटा का इस्तेमाल नहीं कर पाता और कई बार ग्राहक से निर्धारित शर्त के विपरीत अतिरिक्त पैसे की मांग की जाती है.

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ये टिप्स अपनाकर हौट सीजन में करें बालों की देखभाल

गरमी के मौसम में तेज धूप आप के बालों को नुकसान पहुंचा सकती है. अत: आइए जानें कि इस सीजन में बालों को तेज धूप से होने वाले नुकसान से कैसे बचा सकते हैं:

स्कैल्प केयर

गरमी के मौसम में स्कैल्प यानी सिर की त्वचा की देखभाल करना बेहद जरूरी है. इस मौसम में सिर की त्वचा को साफ और नम बनाए रखें. इस से त्वचा संक्रमण से सुरक्षित रहती है. जिन्हें इस मौसम में बहुत ज्यादा पसीना आता है, उन्हें अपने बाल नियमित रूप से धोने चाहिए. यह भी ध्यान रहे कि पसीने के कारण सिर की त्वचा में धूलमिट्टी जमा न हो.

अपनी त्वचा की जरूरत के अनुसार माइल्ड शैंपू का इस्तेमाल करें, जिस में कैमिकल न हों. जरूरत से ज्यादा शैंपू करने से भी बालों से जरूरी तेल खत्म होने लगता है. इसलिए नियमित रूप से बालों में तेल भी लगाएं.

बालों को धोने के बाद अच्छा कंडीशनर इस्तेमाल करें. इस से बालों पर सुरक्षा की परत बनी रहती है, साथ ही कंडीशनर लगाने से बाल और स्कैल्प दोनों धूप में भी सुरक्षित रहते हैं. बाल ज्यादा ड्राई नहीं होते.

महिलाएं बाहर जाते समय बालों को स्कार्फ से ढक कर सुरक्षित रख सकती हैं. इस से सिर की त्वचा में पसीना नहीं आता. वैंटिलेशन भी ठीक बना रहता है और साथ ही बाल धूलमिट्टी से भी सुरक्षित रहते हैं. पुरुष अच्छी फिटिंग की टोपी पहन सकते हैं ताकि सिर की त्वचा को ज्यादा गरमी से बचाया जा सके.

हाइड्रेशन यानी नमी बनाए रखें

गरमी में पानी लगभग हर समस्या का इलाज है. यही बात बालों के लिए भी ठीक है. बालों की जड़ों को मजबूत बनाने, उन की चमक, मजबूती बनाए रखने के लिए पानी बेहद जरूरी है. सिर की त्वचा को भी स्वस्थ बनाए रखने के लिए बहुत सारा पानी चाहिए. पानी हाइड्रेशन बरकरार रखने का सब से अच्छा तरीका है. इस के अलावा नारियल पानी, खट्टे फल, फलों का रस, नीबू पानी, डीटौक्टस वाटर आदि भी हाइड्रेशन बनाए रखने के लिए बेहतरीन विकल्प हैं.

शौर्ट हेयर दें कूल लुक

कम से कम पुरुषों के लिए तो यह बहुत अच्छा आइडिया है. छोटे बाल इस मौसम में ठीक रहते हैं. वे महिलाएं जो बाल छोटे करना चाहती हैं, उन के लिए यह मौसम सब से अच्छा है. वे महिलाएं जो अपने बालों को छोटा नहीं करना चाहतीं, इस मौसम में चोटी बना कर रख सकती हैं.

कलरिंग से बचें

ज्यादातर डाई और हेयर कलर्स में कैमिकल्स होते हैं, जो गरमी के मौसम में बालों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं. जिन्होंने हाल ही में अपने बाल कलर करवाए हों, उन्हें अपने बालों की ज्यादा देखभाल करनी चाहिए. धूप में जाने से बचें.

खेलप्रेमियों के लिए

लोग इस मौसम में स्विमिंग, ट्रैकिंग आदि खूब पसंद करते हैं. कुछ लोग अपनेआप को फिट रखने और पसीना बहाने के लिए व्यायाम करते हैं, लेकिन इस के साथ बालों की देखभाल करना भी जरूरी है. स्विमिंग से पहले शैंपू न करें, क्योंकि इस से बालों का तेल निकल जाएगा और वे क्लोरीन के संपर्क में ज्यादा आएंगे. स्विमिंग के ठीक बाद शैंपू करें. कोई भी व्यायाम करते समय अपनेआप को हाइड्रेटेड रखें.

फूड फौर हैल्दी हेयर

– ओमेगा 3 फैटी ऐसिड मैटाबोलिज्म बेहतर बनाने के साथसाथ स्कैल्प में सैल मैंब्रेन का निर्माण भी करता है. शरीर में इस की सही मात्रा बनाए रखने के लिए कद्दू, फिश व साबूत अनाज का सेवन करें.

– बालों की सेहत के लिए जिंक भी महत्त्वपूर्ण है. योगर्ट व अंडे का सेवन इस की पूर्ति कर सकता है.

– आयरन और विटामिन सी बालों को डल होने से बचाते हैं. औरेंज, बैरीज, पालक और टमाटर अपनी डाइट में शामिल करें.

– डा. आर के जोशी, सीनियर कंसल्टैंट (डर्मैटोलौजिस्ट), इंद्रप्रस्थ अपोलो हौस्पिटल

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समर सीजन में ब्राइट ब्यूटी बनना है तो त्वचा को धूप से बचाएं इस तरह

हालांकि गरमियों के मौसम में कुछ लोगों की त्वचा औयली हो जाती है, लेकिन जिन लोगों की त्वचा प्राकृतिक रूप से ड्राई होती है, उन की त्वचा गर्मी में ज्यादा ड्राई होने लगती है.

ड्राई स्किन को समझने के लिए जरूरी है कि आप पहले नौर्मल स्किन के बारे में जान लें. नौर्मल स्किन में पानी और लिपिड की मात्रा संतुलित बनी रहती है. लेकिन जब त्वचा में पानी या वसा या दोनों की मात्रा कम हो जाती है तो त्वचा ड्राई यानि शुष्क होने लगती है. इस से त्वचा में खुजली होना, उस की परतें उतरना, त्वचा फटना जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं.

आमतौर पर त्वचा के निम्न हिस्से ड्राई होते हैं:

हाथ और पैर: बारबार सख्त साबुन से हाथ धोने से त्वचा ड्राई होने लगती है. ऐसा मौसम बदलने के समय भी होता है. कपड़ों से रगड़ खाने पर भी बाजुओं और जांघों की त्वचा ड्राई होने लगती है. इसलिए गरमियों में टाईट फिटिंग के कपड़े न पहनें.

घुटने और कोहनी: एडि़यां फटना इस मौसम में आम है. नंगे पैर चलने या पीछे से खुले फुटवियर पहनने से यह समस्या बढ़ती है. इसलिए एडि़यों पर मौइश्चराइजर लगा कर इन्हें नम बनाए रखें.

अगर आप ड्राई स्किन पर ध्यान नहीं देंगे, तो यह समस्या रैशेज, ऐग्जिमा, बैक्टीरियल इन्फैक्शन आदि में बदल सकती है.

ड्राई स्किन के कारण

गरमी के मौसम में ड्राई स्किन के कारण कुछ इस तरह हैं:

पसीना आना: पसीने के साथ त्वचा की नमी बनाए रखने वाला जरूरी औयल भी निकल जाता है जिस से त्वचा शुष्क होने लगती है.

पर्याप्त मात्रा में पानी न पीना: गरमियों में कम पानी पीने से डीहाइड्रेशन हो जाता है. इसलिए शरीर में पानी की सही मात्रा बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और तरल पदार्थों का सेवन करना चाहिए.

एयर कंडीशनर: ठंडी हवा में नमी की मात्रा कम होती है, जिस से आप की त्वचा ड्राई हो सकती है. इस के अलावा जब आप ठंडी हवा से गरम हवा में जाते हैं तो गरम हवा त्वचा की बचीखुची नमी भी सोख लेती है. इस से त्वचा ड्राई होने लगती है.

बहुत ज्यादा नहाना: बारबार नहाने से त्वचा से औयल निकल जाता है. इस के अलावा स्विमिंग पूल में तैरने से क्लोरीन त्वचा के प्राकृतिक सीबम को घोल देती है, जिस से त्वचा की नमी खो जाती है और त्वचा ड्राई होने लगती है.

ड्राई स्किन से कैसे बचें

– ऐसी चीजों से बचें जो त्वचा की नमी सोख लेती हैं जैसे ऐल्कोहल, ऐस्ट्रिंजैंट या हैंड सैनिटाइजिंग जैल.

– सख्त साबुन और ऐंटीबैक्टीरियल साबुन का इस्तेमाल न करें, क्योंकि ये त्वचा से प्राकृतिक तेल को सोख लेते हैं.

– रोज स्क्रबिंग न करें. सप्ताह में एक से 3 बार स्क्रबिंग करें.

– सनस्क्रीन लोशन लगा कर ही घर से बाहर जाएं. यूवी किरणों के संपर्क में आने से फोटो ऐजिंग की समस्या होने लगती है. इस से भी त्वचा ड्राई हो जाती है.

– लिप बाम में मैंथौल और कपूर जैसे अवयव होते हैं जो होंठों का सूखापन बढ़ाते हैं.

– औयल बेस्ड मेकअप का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इस से त्वचा के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं.

– प्रदूषण से त्वचा का विटामिन ए नष्ट होने लगता है, जो त्वचा के टिश्यूज को रिपेयर करने के लिए जरूरी है. ऐसे में दिन में 4-5 बार हर्बल फेस वाश से चेहरा साफ करें.

– उम्र बढ़ने के साथसाथ त्वचा को ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. खासतौर पर तब जब आप की त्वचा ड्राई हो. ऐंटीऐजिंग मौइश्चराइजर इस्तेमाल करें ताकि त्वचा की कसावट बनी रहे.

ड्राई स्किन की देखभाल

सेहतमंद आहार लें: ऐसे आहार का सेवन करें, जिस में ऐंटीऔक्सीडैंट पर्याप्त मात्रा में हों. इस से त्वचा में तेल और वसा की मात्रा सही बनी रहती है और त्वचा मुलायम बनी रहती है. बेरीज, औरेंज, लाल अंगूर, चेरी, पालक व ब्रोकली इत्यादि ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर खा-पदार्थ हैं.

सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें: इस का इस्तेमाल हर मौसम में करना चाहिए, क्योंकि यूवी किरणें त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

ऐक्सफोलिएशन: इस से ड्राई स्किन की उपरी परत निकल जाती है और त्वचा में नमी बनी रहती है.

मौइश्चराइजिंग: चेहरे और शरीर की त्वचा के लिए अलगअलग मौइश्चराइजर की जरूरत होती है. चेहरे का मौइश्चराइजर माइल्ड होना चाहिए, जबकि शरीर की त्वचा के लिए औयल बेस्ड थिक मौइश्चराइजर उपयुक्त है.

अपने पैरों को दें पोषण: पैरों की अनदेखी न करें. पैरों को 10 मिनट के लिए कुनकुने पानी में भिगो कर रखने के बाद इन की स्क्रबिंग करें. इस के बाद फुट क्रीम या मिल्क क्रीम का इस्तेमाल करें. इस से पैरों की त्वचा नर्ममुलायम बनी रहेगी.

घरेलू उपचार

– नारियल के तेल में मौजूद फैटी ऐसिड्स त्वचा को प्राकृतिक नमी देते हैं. सोने से पहले नारियल का तेल लगाएं. आप नहाने के बाद भी नारियल का तेल लगा सकते हैं.

– औलिव औयल में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और फैटी ऐसिड ड्राई त्वचा को नम बनाते हैं. यह केवल त्वचा ही नहीं, बल्कि बालों और नाखूनों के लिए भी फायदेमंद है.

– दूध मौइश्चराइजर का काम करता है. दूध त्वचा की खुजली, खुश्की, सूजन को दूर करता है. गुलाबजल या नींबू के रस में दूध मिला कर कौटन से त्वचा पर लगाने से वह नम और मुलायम बनी रहेगी.

– शहद में कई जरूरी विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो त्वचा के लिए फायदेमंद हैं. इसे पपीता, केला या ऐवोकाडो के साथ मिला कर हाथोंपैरों पर 10 मिनट के लिए लगाएं और पानी से धो दें.

– योगर्ट त्वचा के लिए बेहतरीन मौइश्चराइजर है. इस में मौजूद ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइन्फ्लेमैटरी तत्व त्वचा को नर्म बनाते हैं. इस में मौजूद लैक्टिक ऐसिड बैक्टीरिया से भी बचाता है, जिस से त्वचा की खुजली दूर होती है. इसे चने के आटे, शहद और नींबू के रस में मिला कर त्वचा पर लगाएं. 10 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.

– ऐलोवेरा त्वचा की खुश्की मिटाने के साथसाथ डैड सैल्स हटाने में भी मददगार है.

– ओटमील त्वचा पर सुरक्षा की परत बनाता है. बाथटब में एक कप प्लेन ओटमील और कुछ बूंदे लैवेंडर औयल डाल कर नहाने से फ्रैशनैस आती है. इसे पके केले के साथ मिला कर फेसमास्क बनाएं व लगाने के 15 मिनट बाद ठंडे पानी से धो दें.

इन उपायों को अपना कर गरमियों का ये मौसम आप के लिए भी बन जाएगा हैप्पी समर सीजन.

– डा. साक्षी श्रीवास्तव, कंसल्टैंट डर्मैटोलौजिस्ट, जेपी हौस्पिटल

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देश में बढ़ती धार्मिक हिंसा की ये है असल वजह

बिहार में इस बार जो हिंदूमुसलिम दंगे हो रहे हैं वे उन इलाकों में भी हो रहे हैं जहां कभी नहीं हुए. यह भारतीय जनता पार्टी के कट्टरपंथी पंडावादियों की चाल है कि मुसलमानों के नाम पर कुछ दबंग हिंदुओं को उकसा कर उन्हें दलितों और अतिपिछड़ों को काबू में करने के लिए इस्तेमाल करा जा सके.

बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा के मुसलमानों में बहुत ही कम ऐसे हैं जिन के पुरखे 800 से 1000 साल पहले सिंध नदी की दूसरी तरफ से आए हों. यहां के मुसलमान ज्यादातर अछूत और शूद्र यानी पिछड़े हैं जिन्हें सदियों से पंडावादी राजाओं और गांवों के मुखियाओं ने गुलामों की तरह रखा था. जब मुसलमानों ने इन इलाकों पर राज करना शुरू किया तो ये मुसलिम बन कर अत्याचार से छूटे.

बंगलादेश इसी की देन है. अब जो करोड़ों मुसलमान इस इलाके में बचे हैं वे शूद्रों यानी पिछड़ों व अछूतों यानी दलितों के साथ के हैं, दोनों में आपसी गठजोड़ है. भारतीय जनता पार्टी उसे तोड़ना चाहती है. लालू प्रसाद यादव ने इन्हें जोड़ा था. इस से पहले गांधी और कांग्रेस ने इन्हें एक तरह से पटा कर रखा था.

नीतीश कुमार यह सब जानते हैं पर कांग्रेस और लालू प्रसाद यादव से उन की नहीं बनी इसलिए ज्यादातर भारतीय जनता पार्टी की गोद में बैठे रहे. अब तक उन की सुनी जाती थी पर अब पौराणिक राज दोबारा थोपने की जल्दबाजी में भगवाई चौधरी मुसलमानों पर हमले कर के उन्हें और दलितों को जता रहे हैं कि मान जाओ वरना तुम्हें तुम्हारे ही लोगों से पिटवा दिया जाएगा.

सदियों से दलितों और दलितों से बने मुसलमानों पर उन्हीं के कुछ लोगों को लाठी, बल्लम दे कर और डरा कर या रिश्वत दे कर लड़ने को तैयार करा जाता था. काफी तो धर्म की एकदो छूट पा कर धन्य हो जाते थे कि अपनों या अपनों से कुछ नीचों को पीटपाट कर वे पिछले जन्मों के पाप धो सकेंगे. हरेक को पट्टी पढ़ा दी जाती है कि रावण पिछले जन्मों का पापी था और उसे मार कर राम को देवता का पद मिला था. आज वे धर्म की रक्षा करेंगे तो उन का जीवन और अगला जन्म सुधर जाएगा.

उन का जन्म सुधरे या नहीं नीतीश कुमार का यह जन्म पापपुण्य, अगड़ेपिछड़ेदलित, हिंदूमुसलमान की चक्करबाजी में नष्ट हो रहा है, यह दिख रहा है. पिछले कई सालों में वे बेचारे से हो गए हैं. कभी भाजपा की गोद उन्हें चुभती है तो कभी लालू प्रसाद यादव की. बातें तो वे बड़ीबड़ी बनाते हैं पर बिहार का कुछ कराधरा नहीं. लालू को जेल में जरूर भिजवा दिया और वे शायद ज्यादा जिंदा भी न रह पाएं पर इस के अलावा वे बिहार में कुछ ज्यादा कर रहे हों, ऐसा नहीं लगता.

इतिहास और पुराणों से कुछ नहीं सीख पा रहे हैं नीतीश इसीलिए नालंदा में हिंदूमुसलिम दंगों की झड़ी लग गई है. एक राज्य या देश का निर्माण गृहयुद्ध के माहौल में नहीं होता. अब राज्य में उत्पादन की जगह खूनखराबा पैदा हो रहा है. जय हिंदू जय राम के नारे लग रहे हैं. जय भारत जय बिहार गया भाड़ में.

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हार या जीत आपको कुछ नहीं सिखाती : विराट कोहली

आईपीएल 2018 में विराट कोहली की टीम बेंगलुरु का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. बेंगलुरु टीम सिर्फ विराट कोहली और एबी डिविलियर्स के दम पर खेल रही है. जिन दिन यह दोनों खिलाड़ी फ्लौप होते हैं, कोई और खिलाड़ी भी नहीं चल पाता. अंक तालिका में बेंगलुरु की टीम 9 मैच खेलने के बाद छठे नंबर पर है. टीम ने अबतक सिर्फ 3 मैच जीते हैं और 6 हारे हैं. विराट कोहली भी अपनी टीम की गेंदबाजी और फील्डिंग को लेकर खासे निराश नजर आ रहे हैं. मैच हारने के बाद खराब गेंदबाजी और फील्डिंग को लेकर विराट कोहली अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. विराट कह चुके हैं कि इतनी खराब फील्डिंग और कैच छोड़ने के बाद हम मैच जीतने के हकदार ही नहीं हैं.

विराट कोहली अपने खेल के साथ-साथ फिटनेस को भी काफी तवज्जो देते हैं. विराट कोहली बच्चों की आउटडोर खेलों की तरफ बेरुखी और मोबाइल-कंप्यूटर की तरफ ज्यादा झुकाव को लेकर भी खासे चिंतित हैं. हाल ही में अपने दिये एक इंटरव्यू में विराट कोहली ने फिटनेस, बच्चों में खेलों के लिए रुचि और हार-जीत को लेकर कई बातें शेयर कीं.

विराट ने इंटरव्यू में बताया कि आजकल बच्चे 4-5 घंटे हर दिन मोबाइल पर बिताते हैं, जो बेहद खतरनाक है. मुझे लगता है कि टेक्नोलौजी और सोशल प्लेटफौर्म अब मददगार साबित होने से ज्यादा लोगों ने लिए नुकसानदायक बनते जा रहे हैं. इससे मानसिक और शारीरिक दोनों तरह के विकास पर असर पड़ रहा है. उन्होंने कहा कि, जब मैं बड़ा हो रहा था. तब हम लोग शाम को इकट्ठे होकर पार्क और सोसायटी में खेलते थे. वीकेंड्स में हम स्पोर्ट्स कौम्प्लेक्स में जाते थे और पूरा दिन वहीं बिताते थे.

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क्रिकेट में आने को लेकर विराट कोहली ने कहा, मैं बचपन में काफी क्रिकेट और बैडमिंटन खेलता था. इससे मुझे एक अलग ही खुशी मिलती थी. मैं टेलीविजन पर स्पोर्ट्स देखता था और खिलाड़ियों के मूव्स की नकल करता था. पैसे बचाने के लिए हम टेप्स से कोर्ट बनाते थे और यही छोटी-छोटी चीजें हमें खुशी देती थीं.

अपनी फिटनेस के बारे में बताते हुए विराट कोहली कहते हैं, मेरे लिए फिटनेस का बिल्कुल अलग मतलब है. मैंने इस बात को जाना कि जबसे मैंने अपनी फिटनेस पर ज्यादा ध्यान देने शुरु किया मेरी सोच भी बेहतर हुई है. मुझमें ज्यादा आत्मविश्वास, फोकस, स्पष्टता आई.

बच्चों को एग्जाम स्ट्रेस को हैंडिल करने के लिए विराट कोहली ने टिप देते हुए कहा, मैं अपने बोर्ड एग्जाम के दौरान भी बाहर निकलकर खेलने का वक्त निकाल लेता था. इससे मेरा स्ट्रेस कम होता था. यह मुझे खुशी देता था और मुझे सकारात्मक बनाता था. इसके बाद में अपना ध्यान पढ़ाई में लगा लेता था.

टीम इंडिया में अपने सलेक्शन की यादों को ताजा करते हुए विराट कोहली ने कहा, मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि मैं अपनी मां के साथ टेलीविजन में सलेक्शन मीटिंग की न्यूज देख रहा था. मेरा नाम टीवी में फ्लैश हुआ लेकिन मैंने सोचा कि शायद अफवाह है, लेकिन इसके 5 मिनट बाद बोर्ड की तरफ से कौल आया कि मैं सलेक्ट हो गया हूं. मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे. मैं कांप रहा था. यह मेरे लिए बेहद खास दिन था.

जीत या हार किससे आप ज्यादा सीखते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए विराट ने कहा, हार, जीत आपको कुछ नहीं सिखाती है. मेरे जिंदगी के बुरे वक्त ने ही मुझे एक बेहतर इंसान बनाया है.

क्या तिहरा शतक मारना आपके लक्ष्यों में से एक है. इस पर विराट कोहली का कहना है कि मेरा लक्ष्य सिर्फ गेम जीतना है. यह किसी और व्यक्ति का लक्ष्य हो सकता है, मेरा नहीं.

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राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विवाद

लगभग हर फिल्मकार मानता है कि हर देश का सिनेमा उस देश का सर्वश्रेष्ठ ब्रांड अम्बेसडर होता है. सिनेमा ही देश की सभ्यता – संस्कृति व जीवनमूल्यों का असली संवाहक होता है. इतना ही नहीं कुछ दिन पहले जब हमारी बातचीत अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी से हुई थी, तब उन्होंने जोर देते हुए कहा था कि भारतीय सिनेमा महज मनोरंजन परोसने के चक्कर में भारत की गलत छवि पूरे विश्व के सामने पेश कर रहा है.

इसके लिए उन्होंने अपरोक्ष रूप से सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया था. बेहतर सिनेमा बने और सिनेमा देश की बेहतर तस्वीर पूरे विश्व तक पहुंचाए,  इसके लिए देश की सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए माजिद मजीदी ने कहा था- ‘‘असली जिम्मेदारी सरकार की है, सरकार की तरफ से अच्छी फिल्मों के लिए पैसा खर्च किया जाना चाहिए. सरकार को चाहिए कि देश के नवयवुक, जिनके अंदर कोई कला है, उन सबको इकट्ठा करें और रील वाला सिनेमा बनाने के लिए उन्हें पैसा मुहैया कर उन्हें प्रोत्साहित करे. सरकार जब मदद करेगी, तब नई नई कला विकसित होगी और लोग तकनीक के गुलाम नहीं बनेंगे.’’

मगर हमारे देश की सरकार और सूचना प्रसारण मंत्रालय तो सिनेमा की न सिर्फ अनदेखी कर रहा है, बल्कि फिल्मकारों को प्रोत्साहन देने की बजाय उनके बीच ‘फूट डालने’ का काम भी कर रहा है. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण के वक्त जो कुछ हुआ, उससे यही बात उभरी. इतना ही नहीं इससे यह बात भी उभरकर सामने आती है कि देश की सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी, जो खुद भी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा रही हैं, वह भी फिल्म इंडस्ट्री को हेय दृष्टि से देखती हैं.

तीन मई को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के वितरण के वक्त जो कुछ हुआ और जिस तरह के बयान सूचना प्रसारण मंत्रालय की तरफ से दिए गए, उससे खुद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद नाराज हैं और राष्ट्रपति भवन की तरफ से यह नाराजगी प्रधानमंत्री कार्यायल तक पहुंचा दी गई है. सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने अंतिम समय में जो बदलाव किए, उस पर भी राष्ट्रपति कार्यालय ने नाराजगी जाहिर की है.

राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय ही रामनाथ कोविंद ने स्पष्ट कर दिया था कि वह काफी देर तक चलने वाले पुरस्कार समारोह का हिस्सा नहीं बनेंगे. उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि जिन समारोहों में उनकी उपस्थिति संवैधानिक दायित्व है, वह सिर्फ उसी में शामिल होंगे. राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से फिल्म पुरस्कार वितरण की कार्य योजना एक मई को ही सूचना प्रसारण सचिव को दे दी गई थी. और स्पष्ट था कि अंतिम समय में कोई बदलाव नहीं किए जाएंगे.

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मगर सूचना प्रसारण मंत्री व सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इसकी अनदेखी की और पुरस्कार लेने आए फिल्मकारों व कलाकारों को अंतिम समय में कार्यक्रम में बदलाव की सूचना दी, जिसके चलते 65 लोगों ने इसका न सिर्फ विरोध किया, बल्कि पुरस्कार लेने नहीं गए. इन लोगों ने पुरस्कार समारोह का ही बहिष्कार किया.

सूत्रों से जो खबरें सामने आ रही हैं, उसके अनुसार राष्ट्रपति कार्यालय ने दो माह पहले ही राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय से संपर्क किया था. लेकिन सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने राष्ट्रपति से मुलाकात नहीं की. जबकि सामान्य प्रक्रिया के तहत मंत्री अपने मंत्रालय के कार्यक्रम में राष्ट्रपति की उपस्थिति के लिए खुद औपचारिक निमंत्रण देने राष्ट्रपति के पास जाता है. इतना ही नही सूचना प्रसारण मंत्रालय को पूरे कार्यक्रम की योजना इस तरह से बनानी चाहिए थी, जिससे सभी को राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार मिल जाता. भाषण कम होते, मगर सूचना प्रसारण मंत्रालय की तरफ से ऐसा नहीं किया गया और लोगों को जिस तरह से अंतिम समय में कार्यक्रम में बदलाव की सूचना दी गई, कार्यक्रम से पहले जिस तरह से सूचना प्रसारण मंत्रालय ने पत्रकारों से जो कुछ कहा, उस पर भी राष्ट्रपति कार्यालय ने कड़ी नाराजगी जताई है.

कुल मिलाकर सूचना प्रसारण मंत्रालय यानी कि सरकार ने सिनेमा को बढ़ावा देने की बजाय उस पर अंकुश लगाने का ही काम किया. माजिद मजीदी की बात पर गौर करें, तो यह बात उभर कर आती है कि सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है.

फूट डालने वाला काम

सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जब पुरस्कार लेने पहुंचे लोग रिहर्सल कर रहे थे, तब उन्हें बताया कि अब कार्यक्रम साढ़े पांच बजे की बजाय साढ़े तीन बजे शुरू होगा और राष्ट्रपति महोदय सिर्फ ग्यारह लोगों को अपने हाथ से पुरस्कृत करेंगे. बाकी के पुरस्कार सूचना प्रसारण मंत्री बाटेंगे. तो अस्सी फिल्मकारों ने नाराजगी जाहिर की थी. इन सभी ने सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी से मुलाकात कर अपना विरोध प्रकट करते हुए पुरस्कार समारोह का बहिष्कार करने का हस्ताक्षर सहित पत्र भी दिया था. पर उन्हें संतोषजक जवाब नही मिला.

मगर उसके बाद स्मृति ईरानी ने अलग अलग कुछ फिल्मकारों से बात की. बहरहाल, पुरस्कार कार्यक्रम का बहिष्कार करने वाले पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में से के जे येशुदास, नागराज मंजुले, जयराज सहित 15 लोग पुरस्कार समारोह में शामिल हुए और 65 लोग शामिल नहीं हुए. यानी कि फिल्मकारों के बीच फूट डालने में सूचना प्रसारण मंत्रालय सफल रहा.

सरकार के इस कदम की जमकर आलोचना हो रही है. मगर फिल्म इंडस्ट्री दो भागों मे विभाजित हो गई है. कुछ लोग सरकार के पिछलग्गू बने हुए नजर आ रहे हैं. इनका तर्क है कि पुरस्कार किसके हाथ से मिला, यह महत्वहीन है. क्योंकि पांच वर्ष बाद किस को पता नहीं होता कि किसने किसको पुरस्कार दिया.

इस बार लद्दाखी फिल्म ‘‘वौकिंग विथ द विंड’’ को सर्वश्रेष्ठ लद्दाखी फिल्म, सर्वश्रेष्ठ साउंड और सर्वश्रेष्ठ रीमिक्सिंग के तीन पुरस्कार मिले हैं. मगर इस फिल्म के निर्माता निर्देशक व लेखक प्रवीण मोरछले ने सरकार के इस गलत निर्णय के खिलाफ पुरस्कार समारोह का बहिष्कार किया. होटल की लौबी में बैठककर पुरस्कार वितरण कार्यक्रम को टीवी पर देखा. उसके बाद प्रवीण मोरछले ने निडरता के साथ अपनी बात व अपने मन की पीड़ा को फेसबुक पर जाकर पोस्ट किया.

प्रवीण मोरछले ने सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी से मिलकर उन्हे सलाह भी दी थी कि पूरे कार्यक्रम को किस तरह राष्ट्रपति के हाथों हर किसी को पुरस्कार दिलवाकर भी एक घंटे में खत्म किया जा सकता है. प्रवीण मोरछले के अनुसार सरकार ने कलाकारों को अपमानित किया है. वैसे प्रवीण मोरछले इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें पुरस्कार की ट्रौफी भले ही न मिली हो, मगर पुरस्कार की राशि उनके बैंक खाते में पहुंच गई है.

उधर फिल्म कलाकार व भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म पुरस्कार समारोह में हुए विवाद पर दुःख जताते हुए कहा है- ‘‘जो कुछ हुआ, वह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था. इसे टाला जा सकता था. मैं राष्ट्रपति को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं. वह बिहार के राज्यपाल हुआ करते थे. वह अच्छे इंसान हैं. उनकी मंशा किसी को भी दुःख पहुंचाने की नहीं रही होगी. दुर्भाग्यवश गलतफहमी के चलते लोगों को ठेस पहुंची. देश के कलाकार राष्ट्रीय गर्व हैं.

आप उन्हे राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कृत करने के लिए बुलाकर किसी अन्य के हाथों पुरस्कृत नहीं करा सकते. यह पुरस्कार राष्ट्रपति के हैं और राष्ट्रपति के अलावा किसी अन्य के हाथों वितरित नहीं किए जा सकते. मेरी समझ में नहीं आता कि इस बार परंपरा कैसे टूट गई.’’

जबकि कौशिक गांगुली ने कहा- ‘‘यह कलाकारों का अपमान है कि राष्ट्रपति के पास 11 से अधिक लोगों को पुरस्कार देने का समय नहीं है.’’

उधर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता रेसूल पुकुटी ने उन सभी के नाम एक भावुक पत्र लिखा है जिन्हें राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार नहीं मिल पाया.

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