लगभग हर फिल्मकार मानता है कि हर देश का सिनेमा उस देश का सर्वश्रेष्ठ ब्रांड अम्बेसडर होता है. सिनेमा ही देश की सभ्यता - संस्कृति व जीवनमूल्यों का असली संवाहक होता है. इतना ही नहीं कुछ दिन पहले जब हमारी बातचीत अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी से हुई थी, तब उन्होंने जोर देते हुए कहा था कि भारतीय सिनेमा महज मनोरंजन परोसने के चक्कर में भारत की गलत छवि पूरे विश्व के सामने पेश कर रहा है.
इसके लिए उन्होंने अपरोक्ष रूप से सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया था. बेहतर सिनेमा बने और सिनेमा देश की बेहतर तस्वीर पूरे विश्व तक पहुंचाए, इसके लिए देश की सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए माजिद मजीदी ने कहा था- ‘‘असली जिम्मेदारी सरकार की है, सरकार की तरफ से अच्छी फिल्मों के लिए पैसा खर्च किया जाना चाहिए. सरकार को चाहिए कि देश के नवयवुक, जिनके अंदर कोई कला है, उन सबको इकट्ठा करें और रील वाला सिनेमा बनाने के लिए उन्हें पैसा मुहैया कर उन्हें प्रोत्साहित करे. सरकार जब मदद करेगी, तब नई नई कला विकसित होगी और लोग तकनीक के गुलाम नहीं बनेंगे.’’
मगर हमारे देश की सरकार और सूचना प्रसारण मंत्रालय तो सिनेमा की न सिर्फ अनदेखी कर रहा है, बल्कि फिल्मकारों को प्रोत्साहन देने की बजाय उनके बीच ‘फूट डालने’ का काम भी कर रहा है. राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार वितरण के वक्त जो कुछ हुआ, उससे यही बात उभरी. इतना ही नहीं इससे यह बात भी उभरकर सामने आती है कि देश की सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी, जो खुद भी फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा रही हैं, वह भी फिल्म इंडस्ट्री को हेय दृष्टि से देखती हैं.
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