‘जो ठान लिया वह करना था’ मन में ऐसा ही कुछ निश्चय कर के जब मध्य प्रदेश के छोटे से शहर मंदसौर का यह बेटा आंखों में बड़ेबड़े सपने ले कर घर से निकला तो पूंजी के नाम पर उस के पास लगन और कड़ी मेहनत थी.
2009 में ‘बंदनी’ टीवी शो से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले रित्विक ने ऐक्टिंग से ज्यादा ऐंकरिंग की. ऐसा नहीं है कि उन्होंने सिर्फ छोटे परदे पर ही काम किया है, उन्होंने फिल्मों में भी हाथ आजमाया, लेकिन पहली ही फिल्म बौक्सऔफिस पर मुंह के बल गिरते देख कर रित्विक ने खुद को पूरी तरह से छोटे परदे के लिए समर्पित कर दिया.
पापा आप के खिलाफ थे क्या?
पापा मेरे खिलाफ नहीं, बल्कि मेरे शौक के खिलाफ थे. ऐक्टिंग मेरा सपना था, मैं घर पर रह कर कुछ न कुछ करता रहता था जो पापा को परेशान करता था. उन्होंने मुझे नकारा साबित कर दिया था. उन्होंने कहा था कि मैं जिंदगी में कभी कुछ नहीं कर पाऊंगा. मुझे पापा की उसी गलतफहमी को दूर करना था.
छोटे से शहर से मुंबई कैसे पहुंचे?
यहां तक पहुंचने के लिए मैं ने जीतोड़ मेहनत की. मेरी बिजनैस फैमिली थी मेरे पेरैंट्स ने सोचा था कि मैं भी बड़ा हो कर बिजनैस करूंगा. जब मैं ने ऐक्टिंग के लिए मुंबई वाली बात उन्हें बताई तो वे मुझ पर भड़क गए. तभी मैं ने निश्चय किया कि मुझे पैसे कमाने हैं. इस के लिए मैं दुबई गया. वहां रैस्तरां में काम किया, मोबाइल शौप पर काम किया. हर छोटे से छोटे काम से पैसे कमाए और फिर अपनी जमापूंजी ले कर मुंबई आ गया. पहले तो छोटामोटा काम किया, फिर ‘नच बलिए’ रिऐलिटी शो के सीजन 6 व 7 में आया. इस के बाद टीवी सीरियल ‘बंदनी’, ‘पवित्र रिश्ता’ में काम मिल गया.
ऐक्टिंग से ज्यादा आप ने शो होस्ट किए हैं क्या कहेंगे?
मैं तो ऐक्टिंग के लिए ही यहां आया था लेकिन शो होस्ट करने का मौका मिला और लोगों की तारीफ मिली तो शो होस्ट करने लगा. मैं ने दुबई और मुंबई से ऐक्टिंग का कोर्स किया, लेकिन होस्टिंग, डांस कहीं से नहीं सीखा. जो औफर सामने आया उस को एक चैलेंज मान कर स्वीकार किया.
आशा के साथ लव स्टोरी कैसे शुरू हुई?
एकता कपूर के शो ‘पवित्र रिश्ता’ के सैट पर हम दोनों की मुलाकात हुई थी. शुरुआत में हम दोनों दोस्त थे. लेकिन जैसेजैसे हम एकदूसरे के साथ रहे. हमें एकदूसरे को जानने का मौका मिला और अब जल्दी ही शादी करने वाले हैं. हमें 5 साल से भी अधिक समय साथ रहते हो गया है. हम दोनों के परिवार भी इस रिश्ते को नाम देने की जल्दी में हैं.
113 किलोग्राम से आधा वजन किया
एक दौर में रित्विक का वजन 113 किलोग्राम था, लेकिन अपने काम के प्रति उन के लगाव और मेहनत की वजह से वे आज टीवी के सब से फिट ऐक्टर में गिने जाते हैं. मुंबई में अपने संघर्ष के दिनों में रित्विक हर रोज लगभग 12 औडिशंस देते थे. मौडलिंग और थिएटर के अलावा उन्होंने 2 शौर्ट फिल्में ‘आफ्टरमैथ’ और ‘जो हम चाहें’ में भी काम किया है. रित्विक ने एकता कपूर के लोकप्रिय धारावाहिक ‘प्यार की ये एक कहानी’ में जय खुराना का किरदार निभा कर लोकप्रियता हासिल की थी.
रित्विक धनजानी और नागिन फेम मौनी राय ‘शो यू थिंक यू कैन डांस’ को होस्ट कर रहे थे और इस शो की शूटिंग के दौरान ही चल रहे मस्तीमजाक के बीच मौनी ने रित्विक को तमाचा जड़ा. इस थप्पड़ की गूंज ही नहीं, असर भी काफी था. तभी तो रित्विक का गाल कुछ इस कदर सूजा कि उन्हें शूटिंग भी इसी हालत में करनी पड़ी. हालांकि यह वाकेआ हंसीमजाक में ही हुआ, लेकिन रित्विक को यह मजाक भारी पड़ गया, क्योंकि इसी सूजे गाल के साथ रित्विक को पूरे एपिसोड की शूटिंग करनी पड़ी. इस शो के आने वाले एपिसोड में कंटेस्टैंट अपनी डांसिंग स्किल को दिखाते नजर आएंगे.
पसंदीदा जगह
रित्विक को देश से ज्यादा विदेश में घूमना पसंद है और येरूशलम उन की पसंदीदा जगह है. वे कहते हैं जब मैं डेड सी गया तो वहां घंटों तक पानी में लेटा रहा, क्योंकि वहां का प्राकृतिक वातावरण ऐसा है कि आप का मन वहां से जल्दी लौटने का नहीं होता. इस का डेड सी नाम पड़ने का एक कारण है. यहां के आसपास की सभी चीजें मृत हैं. यहां न तो पेड़पौधे हैं और न ही कोई घास. यहां तक कि इस में कोई मछली भी नहीं है. इस सागर का पानी औसत से 8 गुना ज्यादा खारा है, इसलिए इसे खारे पानी का समुद्र या झील भी कहा जाता है. यह पूर्व में जौर्डन की सीमा को छूता है, वहीं पश्चिम से इसराईल की सीमा के पास है.
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सवाल मेरा रंग सांवला है जिस कारण मुझे कहीं जानेआने में शर्म महसूस होती है. मुझे रंग साफ करने का कोई तरीका बताएं?
जवाब
अपने मन से इस हीनभावना को निकाल दें कि आप का रंग काला है. अपने अंदर कौन्फिडैंस लाएं. कुदरती सांवलेपन को पूरी तरह से तो नहीं हटाया जा सकता, हां कुछ ट्रीटमैंट्स व घरेलू उपायों द्वारा स्किन कलर को कुछ लाइट जरूर किया जा सकता है. आप किसी अच्छे कौस्मैटिक क्लिनिक में जा कर स्किन लाइटनिंग ट्रीटमैंट ले सकती हैं. इस के अलावा घरेलू उपाय के तौर पर उबटन लगा सकती हैं. इस के लिए चावल का मोटा पिसा आटा, चने की दाल का आटा और मुलतानी मिट्टी समान मात्रा में लें. अब इस में चुटकी भर हलदी और कच्चे पपीते का गूदा मिला कर चेहरे व अन्य भागों की मालिश कीजिए. कच्चे पपीते में पैपेन नामक ऐंजाइम पाया जाता है, जो रंग साफ करता है. 1 महीने तक रोजाना 1 गिलास औरेंज जूस पीएं. इस से भी काफी हद तक रंगत निखरती है.
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सोच को निखारें रंग को नहीं
गोरी हैं कलाइयाँ, ’ गोरे गोरे मुखड़े पे काला काला चश्मा ‘आजा पिया तोहे प्यार दूं गोरी बैयाँ तोपे वार दूँ चिट्टियाँ कलाइयाँ वे ,ये काली काली आँखें ये गोर गोरे गाल …… गोरेपन का जादू कुछ इस कदर हम सब पर छाया हुआ है कि फ़िल्में भी इससे अछूती नहीं रह पायीं. फिल्म-दर-फिल्म, पत्रिका-दर-पत्रिका, विज्ञापन-दर-विज्ञापन, होर्डिंग-दर-होर्डिंग गोरेपन का प्रचार हो रहा है . शादी के विज्ञापनों में भी “फ़ेयर एंड ब्यूटीफुल” यानी “साफ़ और सुन्दर” एक कसौटी बन चुकी है. खूबसूरती के साथ गोरेपन की चाहत मानो जीवन के हर कदम पर अनिवार्यता या कहें ओबसेशन बन चुका है. गोरे रंग के इस ओबसेशन के खिलाफ बोलीवूड फिल्म अभिनेत्री नंदिता दास ने एक अभियान भी शुरू किया था ‘स्टे अनफेयर,स्टे ब्यूटीफुल’ यानी सांवली बनी रहो, खूबसूरत बनी रहो.
अब घाना जैसे छोटे से देश ने गोरेपन के ऑब्सेशन के खिलाफ एक ऐसा कदम उठाया है, जो अभी तक भारत नहीं कर पाया है. इंडिया और दूसरे एशियन देशों के बाद अफ्रिका में भी लोग गोरेपन को लेकर काफी क्रेज़ी हैं, जहां औरतें गोरी होने के लिए केमिकल्स का सहारा ले रही हैं. एक रीसर्च के मुताबिक 75 प्रतिशत नाइजीरियन औरतें, 27 प्रतिशत सेनेगलीज़ औरतें और 33 प्रतिशत साउथ ऐफ्रिकन औरतें नियमित तौर पर स्किन-लाइटनिंग प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं. (वहीं इडिया में बिकने वाले कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स में से आधी फेयरनेस क्रीम्स हैं.)
कई शोधों से पता चला है कि फेयरनेस क्रीम्स स्किन में डिसकलरेशन लाता है और इसे स्किन कैंसर से भी जोड़कर भी देखा गया है, जिसके चलते फ़ूड एंड ड्रग्स अथोरिटी ने इनकी बिक्री पर रोक लगा दी. इस बैन के पीछे का कारण सिर्फ हेल्थ पर पड़ता बुरा असर नहीं है बल्कि गोरेपन को लेकर लोगों के दिमाग में बैठा फितूर भी है जो शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से काफी खतरनाक है.नंदिता दास की ही तरह घाना की ऐक्ट्रेस अमा के अबेब्रेसे ने भी गोरेपन को प्रमोट करते हुए ऐड्स देखने के बाद ‘लव यूअर नेचुरल स्किन टोन’ नाम से एक कैंपेन भी शुरू किया था.
38 साल पहले 1978 में हिंदुस्तान यूनिलीवर महिलाओं की त्वचा को गोरा और उजला करने के लिए फ़ेयर ऐंड लवली लेकर आया था और कोलकाता के इमामी ग्रुप ने फ़ेयर ऐण्ड हैंडसम के नाम से पुरूषों को गोरा करने का बीड़ा उठा रखा है. अनुमान लगाया जा रहा है कि वर्ष 2025 तक भारत का मध्यमवर्ग 10 गुना बढ़कर 58 करोड़ 30 लाख हो जाएगा.यह उद्योग काफी समय से देश में टिका हुआ है समय के साथ टारगेट ग्रुप बदल गया. हिंदुस्तान यूनिलिवर की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया है कि दक्षिण भारत के तमिलनाडु, केरल,कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के पुरुष गोरा करने वाली क्रीम के बड़े ख़रीदार है. त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य तौर पर गोरा दिखाने वाले उत्पाद नुकसानदायक नहीं होते लेकिन जो शरीर में मेलानिन के पिगमेंट कम करते हैं वह नुकसान पहुंचा सकते हैं .
सुंदरता की परिभाषा हर समाज में अलग अलग होती है. जहाँ भारत में गोरे रंग का मापदंड माना जाता है वहीँ यूरोप और यूएस में स्किन का कलर ब्राउन होना काफी अच्छा माना जाता है. अपनी त्वचा का रंग गहरा करने के लिए लोग तरह-तरह के जतन करते रहते हैं. लेकिन वे इसके लिए प्राकृतिक तरीकों के बजाय दूसरे तरीकों का इस्तेमाल अधिक करते हैं. इसकी वजह एक है कि यूरोपीय देशों में सिर्फ 3 या 4 महीने ही सूरज निकलता है इसलिए लोगों को धूप बहुत कम मिलती है. लोग टैनिंग करना इसलिए भी पसंद करते हैं कि इसे फिटनेस, खूबसूरती का प्रतीक माना जाता है. इसमें शरीर पर कृत्रिम तरीके से विशेष रोशनी डाली जाती है. इससे शरीर का रंग ब्राउन होने लगता हैं. यूरोप और यूएस में तो बडे पैमाने पर इसके लिए सैलून भी खुले हैं.
आज भी भारत में अच्छी नौकरी, कामयाब ज़िंदगी और सर्वगुणसम्पन्न पति पाने के लिए गोरापन ज़रूरी है.त्वचा के रंग का भारत में बहुत गंभीर असर होता है. आज भी भाई बहनों में, दोस्तों में अगर कोई सांवला है तो उसे हिकारत की निगाह से देखा जाता है उसके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार होता है . यह सोच बहुत ही घातक और खतरनाक है. क्योंकि यह सोच एक इंसान के आत्मविश्वास को तोड़ देती है .गोरा दिखने के दीवाने भारतीय समाज की इस सोच को बदलना ज़रूरी है यह सोच तभी बदलेगी जब लोग यह समझ सकेंगे कि सुंदरता का त्वचा के रंग से कोई लेना देना नहीं है..
गोरखपुर और फूलपुर में लोकसभा के उपचुनाव में हार के बाद भाजपा कैराना और नूरपुर को हल्के में नहीं लेना चाहती. दूसरी तरफ विपक्ष ने भाजपा की घेराबंदी करने का फैसला लिया है. अगर नूरपुर और कैराना में भाजपा को मात मिलती है तो 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष के एकजुट होने का रास्ता साफ हो जायेगा.
भाजपा को घेरने के लिये सपा-बसपा के साथ लोकदल खुल कर मैदान में है. कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले है पर विपक्षी एकता की हिमायती वह भी है. ऐसे में कैराना और नूरपुर को जीतना भाजपा के लिये सरल नहीं होगा. विपक्ष की घेराबंदी को तोड़ने के लिये भाजपा ने ‘धर्म’ और ‘सहानुभूति’ का सहारा लेने का फैसला किया है.
कैराना लोकसभा सीट भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के कारण रिक्त हुई है. भाजपा यहां से हुकुम सिह की बेटी मृगांका सिंह को टिकट दे रही है. नूरपुर विधानसभा की सीट विधायक लोकेन्द्र सिंह की सड़क दुर्घटना में मृत्यु के कारण खाली हुई है. लोकेन्द्र सिंह की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हुई थी. उस समय वह नूरपूर से लखनऊ इंवेस्टर मीट में हिस्सा लेने जा रहे थे. लोकेन्द्र सिंह 2012 और 2017 में विधायक का चुनाव जीते थे. भाजपा अब वहां से लोकेन्द्र की पत्नी अवनी को चुनाव लड़ाने जा रही है.
असल में विपक्षी एकता से भाजपा के तोते उड़े हुये हैं. उसे फूलपुर और गोरखपुर की हार दिखाई दे रही है. ऐसे में भाजपा ने ‘सहानुभूति’ के साथ ही साथ ‘धर्म’ का सहारा लेने के लिये अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद को भड़का दिया. पश्चिम उत्तर प्रदेश में धर्म के नाम पर वोट पड़ते रहे हैं. भाजपा विपक्षी एकता की काट के लिये धर्म का सहारा लेने की योजना में है.
कैराना से समाजवादी पार्टी की तबस्सुम लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़ेगी. नूरपुर से सपा नईमूल हसन चुनाव लड़ेंगे. सपा के नेता अखिलेश यादव और लोकदल के नेता जयंत चैधरी ने आपसी तालमेल से चुनाव लड़ने का फैसला किया है. बसपा यहां सपा और लोकदल के साथ है. कैराना में 2014 में जब हुकुम सिंह चुनाव जीते थे तो मोदी की लहर चल रही थी. उस समय भाजपा के हुकुम सिंह को 50 फीसदी वोट मिले थे. सपा को 29 फीसदी, बसपा को 14 फीसदी और लोकदल को 3 फीसदी वोट मिले थे. हुकुम सिंह का भाजपा के अलावा दूसरे वोट बैंक पर भी प्रभाव था. इसके बाद मोदी लहर का असर था.
हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह का क्षेत्र में कोई बहुत प्रभाव नहीं है. 2014 जैसी मोदी लहर भी नहीं है. ऐसे में कैराना जीतना भाजपा के लिये सरल नहीं होगा. भाजपा के लिये सबसे कड़ी चुनौती विपक्षी एकता भी है. ऐसे में केवल सहानुभूति लहर के बल पर चुनाव जीतना सरल नहीं है. कैराना जैसी हालत नूरपुर में भी है. वहां से 2 बार विधायक रहे लोकेन्द्र सिंह की पत्नी अवनी के लिये चुनाव जीतना सरल नहीं होगा. ‘मोदी-योगी’ की चमक गायब है. अवनी सिंह नेता नहीं हैं, ऐसे में केवल सहानुभूति लहर से जीत नहीं हासिल होने वाली.
विकास की बात करने वाली भाजपा अब अलीगढ़ के जिन्ना मुद्दे को उठा कर पश्चिम उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना चाहती है. 31 मई को कैराना और नूरपुर का चुनाव परिणाम आयेगा. इस बीच कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने होंगे. ऐसे में अगर कर्नाटक में भाजपा को जीत मिलती है तो उसका असर उत्तर प्रदेश के कैराना और नूरपुर उपचुनाव पर पड़ सकता है. अगर भाजपा कैराना और नूरपुर हारती है तो उत्तर प्रदेश में उसकी उखडती जड़ों पर मोहर लग जायेगी. 2019 में उसे आधी सीटे जीतना भी मुश्किल हो जायेगा.
स्मार्टफोन में हमारी महत्वपूर्ण जानकारी, जैसे- बैंक अकाउंट डिटेल्स, पर्सनल फोटो, वीडियोज, डौक्यूमेंट्स और कौन्टेक्ट नबर्स आदि सेव होते हैं. ऐसे में स्मार्टफोन का चोरी होना हमारे लिए एक सदमें की तरह होता है. स्मार्टफोन के चोरी हो जाने का मतलब है आपकी जानकारियों का चोरी होना या आपकी डेटा गलत हाथों में होना. अगर आपका स्मार्टफोन खो जाए अथवा कोई चुरा ले, तो कुछ ऐसी ट्रिक्स हैं, जिनकी मदद से आप अपना फोन ट्रेस कर वापस पा सकते हैं. इसके लिए आपको बस इन तरीकों का प्रयोग करना होगा.
थीफ ट्रैकरः थीफ ट्रैकर ऐप चोरी हुए फोन को ढूंढने में काफी मददगार साबित हो सकता है. फोन चोरी होने पर आप इस ऐप के मदद से चोरी करने वाले व्यक्ति की पूरी जानकारी ढूंढ सकते हैं. इसमें एक खास फीचर भी दिया गया है. फोन से छेड़छाड़ होने पर यह फीचर आपको छेड़छाड़ करने वाले की स्वतः फोटो क्लिक करके लोकेशन के साथ मेल भेज देगा.
एंटी थेफ्ट अलार्मः यह ऐप भी काफी मददगार है, इसके लिए आप एंटी थेफ्ट अलार्म अपने फोन में डाउनलोड कर एक्टिवेट कर लें. बस फिर क्या इसके बाद यदि आपके अलावा कोई और आपका मोबाइल छूने की कोशिश करेगा, तो मोबाइल में तेज अलार्म बजेगा. ऐसे में यदि किसी भीड़-भाड़ वाले इलाके में कोई फोन चोरी करने की कोशिश करेगा, तो आपको तुरंत पता चल जाएगा.
लुकआउट सिक्योरिटी एंड एंटीवायरसः इस ऐप में गूगल मैप की मदद से लोकेशन ट्रेस की जा सकती है. यदि चोरी के बाद कोई आपका फोन स्विच आफ कर देता है, तो आपको इस ऐप की मदद से फोन की आखिरी लोकेशन पता चल जाएगी. इससे आपको अपने फोन को ढूंढने में आसानी होगी.
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अभी तक आपने फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर ही विज्ञापन देखें और झेल हैं, लेकिन जल्द ही आपको व्हाट्सऐप पर विज्ञापन को झेलना पड़ सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि व्हाट्सऐप के CEO और को-फाउंडर जान कौम के इस्तीफे के बाद व्हाट्सऐप पर विज्ञापन की चर्चा जोरों पर है.
जान कौम के फेसबुक से इस्तीफे के बाद से यह भी कहा जा रहा है कि व्हाट्सऐप यूजर्स की प्राइवेसी अब खतरे में है. विश्लेषकों का कहना है कि पूरी दुनिया में व्हाट्सऐप सबसे ज्यादा एक्टिव यूजर्स वाला मैसेंजिंग ऐप है और इसपर लोगों का इंगेजमेंट भी 100 फीसदी है जिसका फायदा उठाने और पैसे कमाने के लिए फेसबुक इस ऐप पर भी विज्ञापन की शुरुआत कर सकता है.
बता दें कि 1 मई को ही व्हाट्सऐप के सीईओ जान कौम ने अपने पद से इस्तीफा देने की घोषणा अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए दी है. इतना ही नहीं उन्होंने फेसबुक को भी अलविदा कह दिया है.
जान कौम ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, ‘ करीब 10 साल पहले ब्रायन एक्टन और मैंने व्हाट्सऐप को शुरू किया था और कुछ अच्छे लोगों के साथ यह सफर शानदार रहा, लेकिन अब आगे बढ़ने का वक्त आ गया है. उन्होंने आगे लिखा, मैं ऐसे समय में कंपनी छोड़ रहा हूं जब व्हाट्सऐप का इस्तेमाल लोग मेरी कल्पना से भी ज्यादा कर रहे है. मैं कुछ वक्त तकनीक से दूर रहना चाहता हूं. इस दौरान में अपनी कार में सैर करूंगा और गेम खेलूंगा. मेरे इस सफर को शानदार बनाने के लिए आप सभी का शुक्रिया.’ वहीं कौम के फेसबुक पोस्ट पर फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग का कहना है कि उन्हें कौम की कमी खलेगी.
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ICICI बैंक के साथ लोन डिफौल्ट मामले के बाद से वीडियोकौन ग्रुप पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. अब वीडियोकौन ग्रुप की दूसरी कंपनियों पर भी कार्रवाई शुरू हो गई है. बैंकों के कंसोर्शियम ने वीडियोकौन की दर्जनभर कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कोर्ट में अर्जी दी है. वीडियोकौन की इन कंपनियों पर बैंकों का करीब 13000 करोड़ रुपए बकाया है. बैंको द्वारा यह कदम रिकवरी करने के लिये उठाया गया है.
हालांकि, बैंकों के इस एक्शन से कंपनियों के पास कौम्प्रिहेंसिव रेज्यूलेशन प्लान तैयार करने का मौका होगा. सूत्रों के मुताबिक, बैंकों ने नेशनल कंपनी लौ ट्रिब्यूनल (NCLT) में केस फाइल करने के लिए चार क्लस्टर्स बनाए हैं. इन क्लस्टर्स को औपरेशनल केस के लिए बनाया गया है.
IRP की नियुक्ति की गई
एक खबर के मुताबिक, वीडियोकौन ग्रुप की कंपनियों को लेकर अलग-अलग बैंकों ने याचिका दाखिल की है. हालांकि, बैंकों की याचिका अभी स्वीकार नहीं हुई है. मुंबई की दिवालिय कोर्ट में इन मामलों की सुनवाई हो सकती है. बैंकों ने इस मामले में चार अंतरिम रेज्यूलेशन प्रपेशनल्स (IRP) की नियुक्ति भी की है. इनमें सिंघी एडवाइजर्स के दिव्येश देसाई, पीडब्ल्यूसी इंडिया के महेंद्र खंडेलवाल और कौस्ट अकाउंटेंट दुष्यंत दवे को शामिल किया गया है. ये सभी वीडियोकौन ग्रुप के एक क्लस्टर की जिम्मेदारी को संभालेंगे. हर क्लस्टर में ग्रुप की तीन सब्सिडियरी कंपनियों को रखा गया है. एक अन्य क्लस्टर में चार कंपनियां शामिल हैं, उसके लिए चार्टर्ड अकाउंटेंट एविल मेंजेज को आईआरपी नियुक्त किया गया है.
किन कंपनियों के खिलाफ याचिका
वीडियोकौन ग्रुप की जिन कंपनियों के खिलाफ दिवालिया कोर्ट में याचिका दायर हुई है, उनमें सेंचुरी एप्लायंसेज, वैल्यू इंडस्ट्रीज, ट्रेंड इलेक्ट्रौनिक्स, स्काई एप्लायंसेज और पीई इलेक्ट्रौनिक्स शामिल हैं. ये वीडियोकौन इंडस्ट्रीज की सब्सिडियरी हैं. ये कंपनियां कन्ज्यूमर गुड्स की मैन्युफैक्चरिंग, सेल और डिस्ट्रीब्यूशन से जुड़ी हैं.
औयल एंड गैस ब्लौक पर दावा करेंगे बैंक
वीडियोकौन ग्रुप की विदेशी यूनिट्स के पास औयल एंड गैस ब्लौक्स में हिस्सेदारी है. बैंक इस पर अपना दावा करने की कोशिश कर सकते हैं. बैंकरों के मुताबिक, ग्रुप की ये ऐसेट्स दिवालिया कोर्ट के दायरे से बाहर है. इस साल जनवरी में एसबीआई ने वीडियोकौन इंडस्ट्रीज और वीडियोकौन कम्युनिकेशंस के खिलाफ दिवालिया कानून के तहत कार्यवाही शुरू की थी. ये दोनों उन 28 बड़ी डिफौल्टर कंपनियों में शामिल हैं, जिनकी लिस्ट बैंकों को रिजर्व बैंक ने दी थी.
एसबीआई पर लगाया गया आरोप
वीडियोकौन ग्रुप के संस्थापक वेणुगोपाल धूत ने एसबीआई पर आरोप लगाया था. उनके मुताबिक, एसबीआई ने छोटे बदलाव का बहाना करके मूल याचिका में कई बदलाव किए हैं. धूत ने इस आधार पर एसबीआई की औरिजिनल ऐप्लिकेशन को गलत बताते हुए मामला खारिज करने की दलील दी थी.
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बौलीवुड फैशनिस्टा और अभिनेत्री सोनम कपूर जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाली हैं और उनकी शादी की रस्में भी शुरू हो गई हैं. सोनम को हर कोई दुल्हन के लिबास में देखने को बेताब है. सूत्रों के मुताबिक आज शाम 7 बजे से सोनम कपूर की संगीत सेरेमनी होगी. सोनम कपूर के संगीत में बौलीवुड के कई सितारे भी शामिल होने वाले हैं और डांस परफौर्मेंस भी देने वाले हैं.
बता दें कि इससे पहले रविवार को अभिनेत्री की मेहंदी का फंक्शन हुआ. इस फंक्शन में सोनम अपनी शादी को लेकर काफी एक्साइटेड दिखीं और उन्होंने अपनी मेहंदी सेरेमनी में परिवार और दोस्तों के साथ जमकर मस्ती की.
सिर्फ सोनम ही नहीं बल्कि उनके पिता अनिल कपूर ने भी मेहंदी में जमकर डांस किया. वह मीका सिंह के गाने ‘तू मेरा हीरो’ पर थिरकते हुए दिखे. सोशल मीडिया पर सोनम कपूर के इस मेहंदी सेरेमनी के वीडियो काफी तेजी से वायरल हो रहे हैं.
बता दें, सोनम कपूर 8 मई को आनंद अहूजा के साथ सात फेरे लेंगी. उनकी शादी की तैयारियां जोरो पर हैं इस बीच सोनम कपूर के कलीरे की एक तस्वीर सामने आई है. अगर इन कलीरों को गौर से देखें तो ये भी काफी यूनीक हैं. फूलों से सजे ये कलीरे ईको फ्रेंडली नजर आते हैं. अगर आपको याद हो तो सोनम की शादी की कार्ड भी ईको-फ्रेंडली था. अभिनेत्री पेपर बर्बाद नहीं करना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने इको-फ्रेंडली ई-कार्ड के जरिए मेहमानों को इंवाइट किया.
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साल 2018 के आईपीएल में टीमों के बीच प्लेऔफ के लिए कांटे का मुकाबला जारी है. इस सीजन में पंजाब की टीम ने सबसे ज्यादा चौंकाया है. पंजाब के लिए क्रिस गेल और लोकेश राहुल ने खासतौर सभी का ध्यान खींचा है. गेल ने अपने शुरु के तीन मैचों में शानदार बल्लेबाजी की है, लेकिन रविवार को पंजाब और राजस्थान के बीच हुए मैच में लोकेश राहुल ने केवल 54 गेंदों पर शानदार नाबाद 84 रन बनाकर साबित किया है के वे इस सीजन में बेहतरीन बल्लेबाज के साथ साथ मैच विनर भी बनते जा रहे हैं.
इस मैच में पहले तो पंजाब के गेंदबाजों, खासकर स्पिनर्स ने जबर्दस्त प्रदर्शन कर राजस्थान को 9 विकेट पर केवल 152 रनों पर ही रोक दिया, जबकि एक समय ऐसा लग रहा था कि टीम 200 का आंकड़ा आसानी से पार कर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. वहीं पंजाब के बल्लेबाजों के लिए भी पिच आसान नहीं थी लेकिन राहुल न केवल अपना विकेट बचाकर रख पाए, बल्कि तेजी से रन बनाते हुए अपनी टीम की जीत भी सुनिश्चित कर दी.
पंजाब की टीम प्लेऔफ्स में पहुंचने के लिए प्रबल दावेदारों में से एक है और उसने हर बड़ी टीम को हराया है. जहां पहले दो मैचों में क्रिस गेल नहीं खेले थे और पंजाब ने तब एक ही जीत हासिल की थी, गेल ने आते ही अपनी टीम को टौप पर पहुंचा दिया. हालाकि गेल शुरुआत के तीन मैचों में खूब चले और उनका खौफ भी विरोधी टीमों में जबर्दस्त रहा लेकिन लोकेश राहुल ने अपनी निरंतरता से सभी को हैरान किया है.
लोकेश राहुल अपने इस सीजन के पहले ही मैच में चर्चा में आ गए थे जब दिल्ली के खिलाफ उन्होंने केवल 14 ही गेंदों पर अर्धशतक लगा कर सबसे तेज अर्धशतक लगा दिया था. उन्होंने युसुफ पठान का रिकौर्ड तोड़ा था जो उस समय कोलकाता की ओर से खेल रहे थे. तब उन्होंने 15 गेंदों में अर्धशतक लगाया था. राहुल ने 9 मैचों में 376 रन बना लिए हैं जिसमें तीन अर्धशतक शामिल हैं. वे करीबन हर मैच में वे अपने बल्ले से रन बरसा रहे हैं और अभी तक वे औरेंज कैप की दौड़ में चौथे स्थान पर पहुंच गए हैं.
गेल भी कुछ कम नहीं है
वहीं क्रिस गेल ने केवल छह ही मैचों में एक शतक और तीन अर्धशतक लगा कर 310 रन बनाए हैं. गेल ने अभी तक 25 छक्के लगाए हैं और वे अभी तक सबसे ज्यादा छक्के लगाने की दौड़ में दूसरे स्थान पर हैं. गेल के प्रदर्शन की वजह से भी राहुल का प्रदर्शन कुछ छिप सा गया था, लेकिन राजस्थान के खिलाफ मैच में जब गेल नहीं चल सके तो राहुल ने जिम्मेदारी उठाते हुए बता दिया कि उनमें क्या खास है.
राहुल ने अब तक खेले नौ मैचों में 51, 37,18, 60, 23, 32, 24, और 84 रन बनाए हैं. उनका स्ट्राइक रेट 162.77 रहा है. 9 मैचों में से केवल छह मैचों में राहुल का स्ट्राइक रेट 150 से ऊपर रहा है, कोलकाता के खिलाफ हुए मैच में तो 222 तक का रहा है. लोकेश अब तक 42 चौके और 17 छक्के लगा चुके हैं. चौके लगाने के मामले में वे दूसरे नंबर पर हैं.
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इस वर्ष ‘सर्वश्रेष्ठ लद्दाखी फिल्म’, ‘सर्वश्रेष्ठ साउंड डिजाइनिंग’ और ‘सर्वश्रेष्ठ रीमिक्सिंग’इन तीन पुरस्कारों से पुरस्कृत फिल्म ‘‘वाकिंग विथ द विंड’’के लेखक, निर्माता व निर्देशक प्रवीण मोरछले की यह दूसरी फिल्म है. इससे पहले उन्होंने पूरे विश्व में सराही जा चुकी हिंदी फिल्म‘‘बेयरफुट टू गोवा’’का निर्माण किया था. प्रवीण मोरछले उन फिल्मकारों में से हैं, जो कि ईरानियन फिल्मकार स्व.अब्बोस कियरोस्तामी और माजिद मजीदी से प्रेरित होकर यथार्थ परक सिनेमा बनाने में यकीन करते हैं. ईरानियन फिल्मकारों की ही भांति प्रवीण मोरछले की दोनों फिल्मों के नायक बच्चे हैं और उनकी दोनों ही फिल्मों में कम से कम संवाद हैं.
प्रस्तुत है प्रवीण मोरछले से उनके घर पर हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश:
अपनी अब तक की यात्रा पर रोशनी डालेंगे?
मैं मूलतः होशंगाबाद से हूं. कालेज की पढ़ाई इंदौर में और गुजरात के आनंद से एमबीए की डिग्री ली. मेरे पिता डाक्टर थे. कालेज के दिनों से मुझे कहानी सुनाने का शौक था. इसी शौक के चलते मैं थिएटर से जुड़ा. थिएटर करते करते मुझे अहसास हुआ कि यह बहुत ही ज्यादा लाउड मीडियम है. जबकि मेरे कथा कथन की शैली बहुत ही सटल है. मैं बहुत शांति से, आराम से काम करना पसंद करता हूं. इसलिए मैं सिनेमा की तरफ मुड़ा. मुंबई पहुंचने के बाद मैंने महसूस किया कि जिस तरह का सिनेमा मैं बनाना चाहता हूं, उस तरह का सिनेमा बनाना आसान नहीं है. क्योंकि बौलीवुड में जिस तरह का कमर्शियल सेटअप में काम हो रहा था, वह मेरे वश की बात नहीं थी. किसी तरह मैंने पैसे इकट्ठा करके पहली फिल्म ‘‘बेयर फुट टू गोवा’’बनायी. मैंने फिल्म मेंकिंग की कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली है. मैं खुद को ट्रेंड फिल्म मेकर नहीं मानता. मैं अपने परिवार का पहला इंसान हूं,जो सिनेमा से जुड़ा है.
यानी कि आपने डाक्टर बनने के बारे में कभी नहीं सोचा?
मैंने शुरू से सोच रखा था कि मुझे डाक्टर या इंजीनियर नहीं बनना है. क्योंकि नौकरी करना मेरे टेम्परामेंट में नही है. मैंने बहुत छोटी उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था. इंदौर के कुछ अखबारों में भी लिखा करता था. थिएटर करते हुए मुझे लगा कि इस दिशा में मैं कुछ कर सकता हूं. कुछ भी गलत होते देख मुझे गुस्सा आ जाता है. एक दिन मुझे लगा कि हमारे आस पास, हमारे देश में जो कुछ हो रहा है, जिस तरह की परिस्थितियां हैं, उस पर मुझे कुछ कहना चाहिए. सिनेमा ही ऐसा माध्यम है, जहां हम अपनी बात को सशक्त तरीके से कह सकते हैं. मैंने कई एनजीओ व क्राई सहित कई संगठनों के लिए डाक्यूमेंटरी व छोटी छोटी फिल्में बनायी हैं. मैंने जिनके लिए भी फिल्में बनायीं, वह परोक्ष या अपरोक्ष रूप से गांव या लोगों के साथ जुड़े हुए संगठन रहे. मेरी पहली फीचर फिल्म‘‘बेयर फुट टू गोवा’थी, जिसे कई पुरस्कार मिले थे. अब मेरी दूसरी लद्दाखी भाषा की फिल्म‘‘वाकिंग विथ द विंड’’को तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं.
पहली फिल्म‘‘बेयर फुट टू गोवा’’को लेकर क्या कहेंगे?
यह एक इमोशनल फिल्म है. यह दो छोटे बच्चों की कहानी है, जो कि नंगे पैर अपनी दादी को लेने गोवा जाते हैं. क्योंकि उनके माता पिता उनकी दादी का ध्यान नहीं रखते हैं. बहुत ही समसामायिक कहानी है. सिर्फ मुंबई जैसे महानगरों में ही नहीं, छोटे शहरों में भी आज की युवा पीढ़ी अपने मां बाप को निगलेट कर रही है. पूरी फिल्म बच्चों के नजरिए से बनायी थी. यह कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी व जबरदस्त सराही गयी. आस्ट्रेलिया, हालैंड, जर्मनी, हैदराबाद सहित 20 – 25 देशों के फेस्टिवल में गयी होगी. मगर इस फिल्म को सिनेमाघरो में रिलीज करना बहुत कठिन रहा. भारत में वैसे भी फिल्म बना लेना आसान है, पर उसे रिलीज करना कठिन. इसके लिए हमें क्राउड फंडिंग से पैसे जुटाने पड़े. 28 देशों के 250 से अधिक लोगों ने पैसे दिए थे, जिन लोगों ने क्राउड फंडिंग में पैसे दिए थे, उन्हें मैंने बाद में वापस कर दिए. भारत की यह पहली फिल्म थी, जो कि कमर्शियली जनता के पैसों से रिलीज हुई थी.
‘बेयर फुट टू गोवा’ की कहानी की प्रेरणा कहां से मिली थी?
यह मेरे आब्जर्वेशन का परिणाम था. मैं अपने आसपास जो कुछ देखता हूं, उसी में कहानी ढूंढ़ लेता हूं. मैं बता दूं कि मैं सिनेमा बहुत कम देखता हूं. सिनेमा नहीं देखते हैं, तो सिनेमा के लिए प्रेरणा कहां से मिलेगी? इसके लिए कुछ तो सोर्स होना चाहिए? तो मेरे लिए सबसे अच्छा सोर्स लोगों को आब्जर्व करना है. आस पास जो चीजें घटित होती हैं, उनसे मैं उद्वेलित होता हूं. इसलिए मैं अपनी फिल्में वास्तविक लोकेशनों पर जाकर ही फिल्माता हूं. आप जानकर हैरान होंगे कि गोवा में कई गांव ऐसे हैं, जहां लोग रह ही नहीं रहे हैं. पूरे गांव में सिर्फ 2-4 बुजुर्ग रहते हैं. मैंने जिस गांव में शूटिंग की, उस गांव में 80 मकान हैं और हर घर में ताला लगा हुआ है. सिर्फ 5 घर ऐेसे हैं, जिनमें 80 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्ग रहते हैं. तो मैंने वहीं पर जाकर फिल्म की शूटिंग भी की. मेरा मानना है कि फिल्म में, जहां पर आप फिल्म बनाते हैं, वह जगह किरदार के रूप में आनी चाहिए.
आपकी दूसरी फिल्म‘‘वाकिंग विथ द विंड’’क्या है?
यह भी एक स्कूली बच्चे की कहानी है. यह कहानी है लद्दाख के एक गांव में रहने वाले दस वर्षीय बालक की जो कि हर दिन 12 किलोमीटर की यात्रा कर स्कूल पढ़ने जाता है. एक दिन उसके हाथ से उसके सह पाठी की कुर्सी टूट जाती है. बालक को अपनी गलती का अहसास होता है. वह अपने माता पिता सहित हर किसी से छिपाकर चुपचाप अपनी गलती को सुधारने के लिए उस कुर्सी को बनवाने का प्रयास करता है. उसकी इस यात्रा के साथ ही सामाजिक व राजनैतिक स्थितियों का भी चित्रण है. इस फिल्म में दर्शन शास्त्र/फिलौसफी ज्यादा है.
फिल्म की कहानी का बीज कहां से मिला?
यह मेरे आब्जर्वेशन का परिणाम है. मैं जिस समाज में घूमता रहता हूं, वहां कुछ न कुछ मिल ही जाता है. मैं अपने आस पास की परिस्थितियों से परेशान होता हूं और वही सब कुछ मेरी फिल्म का हिस्सा होता है.
आप खुद हिंदी भाषी हैं. आपने पहली फिल्म हिंदी में बनायी. तो फिर दूसरी फिल्म‘‘वाकिंग विद द विंड’’को लद्दाखी भाषा में बनाने की वजह?
यह आपने एक रोचक सवाल पूछा. देखिए, इस फिल्म की कहानी भी एक छोटे बच्चे की है. मेरी फिल्म साधारण होती है, जिस परिवेश की फिल्म होती है, वहीं जाकर फिल्माता हूं, वहीं के लोग फिल्म में अभिनय करते हैं. और वह एक उम्दा फिल्म बनकर उभरती है. मैंने फिल्म को लद्दाखी भाषा में फिल्माने का निर्णय लिया. क्योंकि मुझे लगा कि फिल्म हिंदी की बजाय उनकी भाषा में बनायी जाए. हिंदी में नकली लगेगी. इसलिए मैंने इस फिल्म को लद्दाखी भाषा में बनाया. फिल्म में मैंने उनके रहन सहन, खानपान आदि को एकदम रियल ढंग से पेश किया है. मैने अपनी इस फिल्म को लेह के नजदीक के एक गांव में फिल्माया है. ‘वाकिंग विथ द विंड’के लिए मैने जिस गांव को चुना, उस गांव में सिर्फ 15 घर हैं और 30 लोग रहते हैं. मेरी फिल्म में कोई कलाकार नहीं है. सभी लद्दाख के गांव के ही लोग हैं, जिन्होंने अभिनय किया है. फिल्म का बाल कलाकार भी लद्दाख के गांव का है. एक अंधे का किरदार है, जिसे गांव के ही उस इंसान ने निभाया है, जिसे दिखता नहीं है. कवि वास्तविक हैं. कारपेंटर वही है, जो वहां पर कारपेंटर का काम करते हैं. टूरिस्ट गाइड के किरदार के लिए मैने टूरिस्ट गाइड को चुना. इससे फिल्म में अपने आप बहुत ज्यादा विश्वसनीयता आ जाती है. मेरी फिल्म में किसी ने भी अभिनय नहीं किया है, जो जैसा है, वैसा ही अपने आपको प्रस्तुत किया है. अभिनय करने पर तो बनावटीपन आ जाता है.
आप लद्दाख कब गए थे?
जब मेरे दिमाग में यह कहानी आयी, तो मैं अचानक दिसंबर 2015 में लद्दाख चला गया. उस वक्त वहां माइनस 15 डिग्री का तापमान था. मैं आठ दिन वहां रूका, तो वहां मुझे यह गांव मिल गया, जहां हमने फिल्म की शूटिंग की है. फिर अप्रैल 2016 में मैं दुबारा गया. वहां मैं लोगों के साथ रहा. लोगों से बातचीत की. मैं जिस घर में रहा, उस घर में भी मैंने शूटिंग की. तो जब मैं लोगों से मिला, लोगों की जीवन शैली को समझा. उसके बाद मैंने खुलकर पटकथा लिखी. फिर 2017 में हमने फिल्म की शूटिंग की पूरी फिल्म 18 दिन में फिल्मायी.
लद्दाख में आपने वहां के निवासियों से काफी बात की होगी. लद्दाख के लोग भारत के बारे में क्या सोचते हैं?यह आपकी समझ में आया होगा?
वह अपने देश को लेकर बहुत गंभीरता से सोचते हैं. वह बहुत देशभक्त हैं. आपको पता होना चाहिए कि हमारी सेना में पूरी लद्दाखी रेजीमेंट है. मगर उन्हें सुविधाएं बहुत कम मिल रही हैं. सड़के नहीं है. बिजली व पानी की भी समस्या है. पर वहां जो हालात हैं, जैसी परिस्थितियां हैं, उसमें सड़क पानी वगैरह मोहैय्या कराना भी बहुत दुष्कर काम है. इसके बावजूद मुझे सबसे ज्यादा खुश लद्दाखी नजर आए. ईमानदार व मददगार हैं. उन्हें किसी से कोई शिकायत नही है. दिन हो या रात आप कहीं भी स्वतंत्र होकर घूम सकते हैं. उन्हें सिनेमा से कोई मतलब नहीं होता. वहां सिनेमा घर भी नहीं है. लद्दाखी अपने जीवन से जुड़े रहते हैं, काम करते हैं. बौलीवुड के फिल्मकार अपनी फिल्मों का गाना फिल्माने के लिए लद्दाख जाते हैं अथवा वहां की कमर्शियल खूबसूरती दिखाने के लिए लद्दाख में शूटिंग करते हैं. जबकि मैंने लद्दाख को उसकी खूबसूरती के तौर पर नहीं, बल्कि एक किरदार की तरह लिया है. मेरे लिए लद्दाख पर्यटन स्थल कभी नहीं रहा. हमारी फिल्म तो पहाड़ों के बीच पनपी खूबसूरत आत्मिक फिल्म है.
पूरे लद्दाख में एक भी सिनेमाघर नहीं है, सिर्फ लेह में परदा लगाकर फिल्में दिखायी जाती हैं. पर अब लोग वीडियो पर या आन लाइन फिल्में देखते रहते हैं.
मेरी फिल्म में लड़के के पिता का किरदार निभाने वाले कलाकार फुंनचोक तोल्डन ने फिल्म ‘शोले’ को लद्दाखी भाषा में बनाते हुए उसे नाम दिया है- ‘लद्दाखी शोले.’ फिल्म में घोड़े की गधे और ट्रेन की जगह टैम्पो का उपयोग किया है. पूरी फिल्म शोले की ही कहानी है, पर यह एक फनी फिल्म है. वह अपनी इस फिल्म को गांव गांव ले जाते हैं और परदे पर 5 रूपए लेकर दिखाते हैं. यह उनका सिनेमा के प्रति कमिटमेंट है. उनका कमिटमेंट सिनेमा बनाने और उसे लोगों तक पहुंचाने के प्रति हैं. तो लद्दाखी फिल्में बनती रहती हैं.
आपकी फिल्म में किस तरह के दर्शन शास्त्र की बात है?
हमारी फिल्म हर इंसान को अपने अंदर की यात्रा करने की बात करती है. यह तभी संभव होता है, जब इंसान जागरूक हो. हमारी फिल्म ‘‘वाकिंग विथ द विंड’’ में बच्चा गलती करता है, पर वह किसी को यह बात नहीं बताता. खुद अपनी गलती का अहसास कर चुपचाप उस गलती को सुधारने का प्रयास करता है. वह अपना यह काम बिना किसी शोर शराबे के करता है. जबकि उसे अपने माता पिता की डांट भी खानी पड़ती है. पर वह चुप रहता है, वह किसी को वजह नहीं बताता है कि वह क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है?
आपने दोनों फिल्में बच्चों को केंद्र में रखकर बनायी,जिसमें बाल मनोविज्ञान की अहम भूमिका रही है. आपको बाल मनोविज्ञान की समझ कहां से आयी?
बच्चे सच्चे मन के होते हैं. उनकी भावनाएं उनकी सोच सही होती है. दिल से पवित्र होते हैं, जब वह किसी कला से परफार्म करते हैं. तो उसमें सच्चायी होती है. कहीं कोई मैन्यूप्युलेशन नहीं होता. उन पर कभी किसी दूसरी चीज का प्रभाव नहीं होता. जब बच्चे अपने नजरिए से किसी बात को पेश करते हैं, तो उसमें हमें पूरी सच्चाई नजर आती है. हमारी दोनों फिल्मों का विषय बहुत रियल बहुत सच्चा और बहुत ताकतवर है. जब हम इस कहानी को बच्चों के नजरिए से देखते हैं, तो ही वह हमें ताकतवर नजर आती है. मेरी हर फिल्म में बच्चों की भूमिका अहम रहेगी. बच्चों में अभिव्यक्ति की जो नैसर्गिक ताकत है. वह किसी बड़े कलाकार में नहीं हो सकती है. जब हम किसी बड़े कलाकार को फिल्म के किसी किरदार में लेते हैं, तो वह अभिनय करने की कोशिश करते हैं. जबकि बच्चे अभिनय करने की कोशिश नहीं करते हैं, बल्कि वह जो कुछ अंदर से अहसास करते हैं, वही परदे पर पेश करते हैं. बच्चे कभी भी इन चीजों पर ध्यान नहीं देते कि कैमरे के किस एंगल से वह खूबसूरत लगेंगे?
आपको किस तरह का सिनेमा पसंद है?
मैंने पहले ही कहा कि मैं सिनेमा बहुत कम देखता हूं. एक साल में 4 फिल्में देखना मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती है. बौलीवुड की कमर्शियल फिल्में तो कभी नहीं देखता. मेरी सोच के अनुसार यदि आप सिनेमा बनाना चाहते हैं, तो आप ज्यादा से ज्यादा यात्राएं करें. ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिले. उनके जीवन, उनकी सोच, उनकी समस्याओं को सुने व समझें. यह सोच गलत है कि आप सिनेमा देखकर तकनीक सीख सकते हैं या सिनेमा देखकर ही फिल्म बना सकते हैं. ज्यादा सिनेमा देखने से आप अपने अंदर की मौलिकता खो देते हैं. आपके अपने कथा कथन की जो शैली है, वह आप भूल जाते हैं. अभिव्यक्ति के लिए हर इंसान का अपना अलग तरीका होता है.
सिनेमा की जो स्थितियां हैं,उसको लेकर क्या सोचते हैं?
इसके लिए हमें सिनेमा और फिल्म में अंतर करके देखना होगा. हकीकत यह है कि अब हमारे देश में सिनेमा नहीं रहा. बल्कि सिर्फ मनोरंजन के लिए फिल्में बनायी जा रही हैं. जो चीज मनोरंजन के लिए बनती हैं, वह कौमोडिटी की तरह बनती हैं. आज के फिल्मकार की सोच यह है कि किसी तरह दर्शक को सिनेमा घर के अंदर खीचो. उससे 200 से 500 रूपए तक वसूल करो. फिर घोषित करो कि हमने कितना कमा लिया. अब सिनेमा सिर्फ बिजनेस माडल हो गया है. यह मैन्युप्युलेशन है. मैन्युप्युपुलेट करना बहुत आसान होता है. क्योंकि उसमें आप गाना डालते हैं या कुछ और चीजें जोड़ते हैं. फिर पूरी फार्मूला फिल्म बनती है. इस तरह फिल्म को मैं सिनेमा नहीं मानता. हां! कुछ लोगों की राय में हमारी फिल्म को दर्शक नहीं मिल सकते. क्योंकि लोग वास्तविकता नही देखना चाहते. पर यह हालात इसलिए हैं, क्योंकि फिल्मकार वास्तविकता दर्शाने वाली फिल्म दर्शकों को दिखाना ही नहीं चाहते हैं. यह कहना गलत है कि सिनेमा दर्शकों की मांग पर बनता है. यदि हम दर्शकों को यथार्थप्रद सही सिनेमा दिखाएंगे, तो उन्हें उस तरह का सिनेमा देखने की आदत पड़ेगी.
फिल्म‘‘वाकिंग विथ द विंड’’को तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए?
-जी हां! राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने से पहले हमारी फिल्म पांच बड़े इंटरनेशनल फेस्टिवल में सराही गयी. हमारी फिल्म के बारे में हर जगह अलग अलग ढंग से लिखा गया. फ्रांस के कुछ अखबारों ने हमारी फिल्म को किस तरह ने दर्शनशास्त्र से बनाया गया है, इस पर लंबा चौड़ा लेख छापा. पिछले 25 वर्षो में भारत की यह पहली फिल्म है, जो कि पोलैंड के फिल्म फेस्टिवल में कौपटीशन सेक्शन में गयी. मुझे उस वक्त बहुत गर्व कि अनुभूति हुई थी कि हमारे भारत कि फिल्म प्रतियोगिताका हिस्सा बनी हैं. दस दिन पहले हम लोग स्विटजरलैंड के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल से वापस आए हैं. हमारी फिल्म अभी कुछ अन्य विदेशी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में जाने वाली हैं. कुछ जगह से प्रतियोगी खंड में बुलाया गया है. पर दुःख की बात है कि हमारे अपने देश भारत के कुछ फिल्म फेस्टिवल ने हमारी फिल्म को अस्वीकृत कर दिया. उन्हें इस तरह की फिल्मों में कोई रूचि नही है. उन्हें एक अलग तरह का अर्थपूर्ण सिनेमा कहने का मतलब ही समझ में नहीं आया. इन भारतीय फिल्म फेस्टिवल के आयोजकों को समझना होगा कि दर्शकों को फेस्टिवल में लगाकर उन्हें टिकट बेच कर कमाई करने के अतिरिक्त ऐसी फिल्में भी दिखायी जानी चाहिए, जो कि अर्थपूर्ण हो और कुछ बात कहती हों. मुझे लगता था कि हमारी फिल्म‘‘वाकिंग विथ द विंड’’को केरला, चेन्नई, बंगलोर कोलकाता के फिल्म फेस्टिवल में जरुर शामिल किया जाएगा, पर ऐसा नहीं हुआ.
आपने राष्ट्रीय फिल्म समारोह पुरस्कार का बहिष्कार किया. इसकी नौबत क्यों आयी?
कलाकार के तौर पर हमने अपने आपको अपमानित किया. सरकार के कदम से हम इतना आहत हुए कि हम 60 निर्माता निर्देशक व कलाकारों को मजबूरन समारोह के बहिस्कार का निर्णय लेना पड़ा. राष्ट्रीय पुरस्कार माननीय राष्ट्रपति के हाथों वितरित किए जाने की परंपरा रही है. राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार ग्रहण करने के लिए हमें दिल्ली बुलाया गया था. गुरूवार 3 मई की शाम 5.30 बजे पुरस्कार वितरण समारोह का आयोजन होना था. उससे पहले बुधवार, 2 मई को रिहर्सल के दौरान हमें बताया गया कि राष्ट्रपति महोदय सिर्फ एक घंटे के लिए आएंगे और 11 लोगों को अपने हाथ से पुरस्कृत करेंगे, बाकी कलाकारों को सूचना प्रसारण मंत्री के हाथों पुरस्कृत किया जाएगा. इसके अलावा वह 45-45 लोगों के दो ग्रुप के साथ फोटो खिंचवाएंगे. जबकि 135 लोग पुरस्कार लेने पहुंचे थे. यह पूरी तरह से अपमानजनक बात थी. हम 80 लोगों ने सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति इरानी से मुलाकात की और हमने उनके सामने कुछ विकल्प रखे, जिससे किसी भी कलाकार का अपमान न हो और सबको राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार मिल जाते. स्मृति इरानी ने हमें आश्वस्त किया कि वह राष्ट्रपति भवन तक हमारी बात पहुंचाएंगी. फिर हमें कोई जवाब नही मिला. गुरूवार, 3 मई की सुबह सुबह हम सभी को फोन पर संदेश आया कि फिल्म पुरस्कार वितरण समारोह दोपहर 3.30 बजे शुरू होगा और राष्ट्रपति जी 5.30 बजे आएंगे यानी कि हमारी बात को तवज्जों नहीं दी गयी थी. तब हम लोगों ने विरोध स्वरुप समारोह के बहिष्कार का 80 लोगों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र भी सौंपा, पर कुछ नहीं हुआ. अंततः मजबूरन हम 60 लोगों ने इस समारोह का बहिष्कार किया. हम सभी का मानना रहा है कि हर कलाकार को एक समान दृष्टि से देखा जाना चाहिए, किसी का भी अपमान नही किया जाना चाहिए. जिन फिल्मकारों व कलाकारों ने इस समारोह में हिस्सा लिया, उनसे हमें कोई शिकायत नहीं. यह उनका अपना निजी मसला है. पर मैं इस तरह के भेदभाव से बहुत आहत व दुःखी हुआ. इसलिए समारोह से दूर रहा. मैं सब कुछ खो सकता हूं, लेकिन मैं हमेशा अपने यकीन/विश्वास के साथ खड़े रहना चाहता हूं. यह अहम का मसला नही है. यह अभिमान या हेकड़ी नहीं बल्कि कंविक्शन है.
आपकी फिल्म ‘‘वाकिंग विथ द विंड’’को लेकर किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में कोई खास प्रतिक्रिया मिली?
हमारी फिल्म पोलैंड के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गयी थी. जहां के लोगों ने भारत देखा नहीं है. फिल्म फेस्टिवल के डायरेक्टर ने मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की. जब मैं उनसे मिला, तो उन्होंने कहा कि, ‘‘आपने फिल्म को दिल से बनाया है. यह मेरी निजी राय है. मैं पुरस्कार देने वाली ज्यूरी का हिस्सा नही हूं. इसलिए मैं यह नहीं जानता कि आपकी फिल्म पुरस्कृत होगी या नहीं. पर मुझे आपकी फिल्म बहुत पसंद आयी. ’’यह मेरे लिए यह बहुत बड़ा पुरस्कार रहा. क्योंकि उन्होंने अपने इस फिल्म फेस्टिवल में 20 से अधिक आस्कर पुरस्कार से सम्मानित कैमरामैन व फिल्मकारों को अपने इस फिल्म फेस्टिवल में बुलाया था. इसी तरह स्विटजरलैंड के फिल्म फेस्टिवल में मेरी फिल्म को चार थिएटरो में दिखाया गया. जहां सवाल जवाब का सेशन भी चला और एक दर्शक ने मुझसे कहा कि उन्हें फिल्म बहुत पसंद आयी. उसने कहा कि वह दो बार वेनिस फिल्म फेस्टिवल में भी जा चुके हैं,पर उन्होंने कभी इस तरह की बेहतरीन फिल्म नहीं देखी है. उसने बताया कि वह उस गांव में ट्रैकिंग करते हुए गुजरे थे, जहां मैंने अपनी फिल्म की शूटिंग की है. फिर दर्शकों में से एक ने कहा कि मुझे लगता है कि यह फिल्म अभी भी खत्म नही होनी चाहिए थी, चलती रहनी चाहिए थी.
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देश के राज्यों में कैश की किल्लत के बीच सरकार ने 2000 के नोट की छपाई पूरी तरह बंद कर दी है. आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि 500, 200 और 100 रुपए मूल्य के नोट लेनदेन में सुविधाजनक नहीं हैं. अतिरिक्त मांग पूरी करने के लिए 500 रुपए के नोटों की छपाई बढ़ा दी गई है. अब हर दिन 3000 करोड़ मूल्य के नोट छापे जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश में कैश की स्थिति काफी अच्छी है और अतिरिक्त मांग भी पूरी हो रही है. उन्होंने यह भी बताया कि अब 2000 रुपए के नए नोटों की छपाई नहीं की जा रही है.
कैश की कोई समस्या नहीं
सचिव ने कहा कि उन्होंने पिछले सप्ताह देश में कैश परिस्थिति का आकलन किया है और 85 फीसदी एटीएम काम कर रहे हैं. कुल मिलाकर देश में कैश की उपलब्धता काफी सामान्य है. उन्होंने कहा, ‘पर्याप्त कैश है और इसकी आपूर्ति की जा रही है. अतिरिक्त मांग भी पूरी हो रही है. मुझे नहीं लगता है कि इस समय कैश की कोई समस्या है.’
2000 रुपए के नोटों की छपाई नहीं
सुभाष चंद्र गर्ग के मुताबिक, इस समय 2000 के 7 लाख करोड़ रुपए मूल्य के नोट चलन में हैं. जो पर्याप्त से अधिक हैं और इसलिए 2000 रुपए के नए नोट जारी नहीं किए जा रहे हैं. 500, 200 और 100 रुपए के नोट लोगों के बीच लेनदेन का माध्यम है. लोग 2000 रुपए के नोट को लेनदेन में बहुत सुविधाजनक नहीं मानते. 500 रुपए के नोटों की सप्लाइ पर्याप्त रूप से की जा रही है. हमने उत्पादन को प्रतिदिन 2500-3000 करोड़ रुपए तक बढ़ा दिया है.
बढ़ाए जा रहे हैं सिक्योरिटी फीचर्स
गर्ग ने कहा कि रिजर्व बैंक करंसी नोट्स की सिक्योरिटी फीचर्स को बढ़ा रहा है ताकि नोटों की नकल ना हो सके. पिछले 2.5 साल में देश में हाई क्वालिटी के नकली नोटों के मामले ना के बराबर सामने आए हैं, लेकिन आरबीआई नए फीचर्स की तलाश और अमल में लाने में जुटा रहता है.
बढ़ेंगी ब्याज दरें?
आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष गर्ग ने कहा कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद अभी देश में ब्याज दरों को बढ़ाने को नहीं कह रही है, क्योंकि मुद्रास्फीति में असंगत वृद्धि या आउटपुट में असाधारण ग्रोथ नहीं है. इसलिए फंडामेंटल्स पर गौर करना चाहिए और अगले पौलिसी का इंतजार करना चाहिए. एमपीसी की अगली मीटिंग 4-5 जून को होगी. छह सदस्यीय एमपीसी के प्रमुख आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल हैं. पिछली समीक्षा में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट को 6 फीसदी पर बरकरार रखा था.
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