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श्वेता बच्चन ने पिता अमिताभ संग की अपनी एक्टिंग पारी की शुरुआत

सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के पूरे परिवार का बौलीवुड इंडस्ट्री से कुछ गहरा नाता रहा है. फिर बात चाहें जया बच्चन की हो, बहु ऐश्वर्या की या फिर बेटे अभिषेक बच्चन की. सभी ने अपनी फिल्मों से दर्शकों के दिल पर अपनी अहम छाप छोड़ी है. इस लिस्ट में अगर अब तक किसी का नाम शामिल नहीं था तो वो थीं अमिताभ की बेटी श्वेता बच्चन.

लेकिन अब अमिताभ की बेटी श्वेता का भी एक्टिंग की लिस्ट में जल्द ही नाम जुड़ने वाला है. जी हां, श्वेता जल्द एक्टिंग में डेब्यू करने वाली हैं. हालांकि वो किसी फिल्म में नहीं बल्कि अपने पापा अमिताभ बच्चन के साथ कल्याण ज्वैलर्स की एड में दिखाई देंगी.

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खबरों की मानें तो एडमेकर जीबी विजय द्वारा निर्देशित इस विज्ञापन में बाप-बेटी के प्यार और विश्वास से भरे रिश्ते की कहानी दिखाई जाएगी. इसके साथ ही अपने फैशन सेंस के लिए फेमस श्वेता के स्टाइल की झलक ब्रांड के सिग्नेचर कलेक्शन में भी दिखाई दे सकती है.

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हाल ही में इस विज्ञापन शूट की तस्वीरें भी सामने आई हैं जिसमें पिता अमिताभ के साथ बेटी श्वेता नजर आ रही हैं. यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही हैं. तस्वीर में आप देख सकते हैं कि, श्वेता अपने पिता अमिताभ की चलने में मदद कर रही हैं. खबरों के मुताबिक यह विज्ञापन इस साल जुलाई तक औन एयर हो जाएगा.

मोबाइल की बैटरी लाइफ सुधारने के लिए सुधारें अपनी आदतें

कई बार हम मोबाइल की बैटरी लाइफ से परेशान होकर नया फोन लेते हैं पर कुछ ही समय बाद उसकी बैटरा से भी परेशान होने लगते हैं. ये समस्या आम है और इससे निजात पाने के लिए अब तक आपने तरह-तरह के उपायों के बारे में जाना, सुना और पढ़ा होगा. लेकिन कई बार हमारी खराब आदतों के चलते हमें इस तरह की समस्या का सामना करा पड़ता है. जी हां, घर पहुंचते ही अपने फोन को चार्ज पर लगा देना और अगले दिन सुबह तक उसे चार्ज करते रहना, या फिर फोन चार्जिंग में लगाकर उसका इस्तेमाल करने जैसी आदतों की वजह से ही हमारें फोन में बैटरा की लाइफ को लेकर समस्या आने लगती है. इसलिए हमें अपने फोन की बैटरी लाइफ सुधारने के लिए पहले अपनी आदतों को सुधारना होगा.

अपने फोन को ज्यादा गर्म होने से बचाएं

स्मार्टफोन का ज्यादा गर्म होना लिथियम इयान बैट्रीज के लिए बेहद ही खतरनाक है. आपको अपने फोन को सीधे धूप से बचाना चाहिए. दिन में ड्राइव करते वक्त कार के डैशबोर्ड पर मोबाइल को छोड़ना खतरे से खाली नहीं है.

चार्जिंग के वक्त फोन का इस्तेमाल नहीं करें

चार्जिंग के वक्त फोन के इस्तेमाल से बचना चाहिए. तकनीकी तौर पर इसे पैरासाइटिक चार्जिंग कहते हैं. हाई ग्राफिक्स वाले गेम्स खेलते वक्त फोन को चार्ज करने से भी बचना चाहिए. क्योंकि फोन को ऐसे इस्तेमाल करना बेहद ही घातक साबित हो सकता है.

नकली चार्जर का इस्तेमाल नहीं करें

फोन को चार्ज करने के लिए कंपनी द्वारा दिए गए चार्जर का ही इस्तेमाल करें. अगर आपके फोन में क्विक चार्जिंग का फंक्शन है तो ऐसा करना बेहद ही अहम हो जाता है. एक मोबाइल कंपनी का कहना है कि हाई कैपिसिटी चार्जर आपकी बैटरी को चंद मिनटों में 70 फीसदी तक चार्ज तो कर देंगे, लेकिन यह आप्टमाइज्ड न हो तो बैटरी को नुकसान भी हो सकता है.

झटपट चार्ज करने के लिए थर्ड पार्टी चार्जर्स के इस्तेमाल से बचें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप कौन सा फोन इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन 50,000 रुपये के स्मार्टफोन के लिए सड़क किनारे से खरीदे 50 रुपये वाले चार्जर का इस्तेमाल करने का कोई तुक नहीं बनता. इससे बैटरी को तो नुकसान पहुंचता ही है और संभव है कि यह किसी दुर्घटना का कारण भी बन जाए.

शून्य और 100, ये कोई जादूई आंकड़ा नहीं

आपको अपने नए फोन को पूरी तरह से चार्ज करने की जरूरत नहीं है क्योंकि जब आप उसे खरीदते हैं तब उसकी बैटरी पहले से ही चार्ज होती है. आप सीधे इसका इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं, एक बार जब बैटरी खत्म हो जाए तो फिर उसे पूरी तरह चार्ज कर लें.

वहीं, दूसरी तरफ अगर संभव हो तो आप अपने फोन की बैटरी को पूरी तरह से खत्म नहीं होने दें. जैसे ही आपके फोन में सिर्फ 10 फीसदी बैटरी बची हो उसे चार्ज पर लगा दें. इससे बैटरी की लाइफ बढ़ती है.

पुलिस कांस्टेबल ने क्रिकेटर की पत्नी संग सरेआम की मारपीट

भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी रवींद्र जडेजा की पत्नी रीवा से मारपीट करने के मामले में एक पुलिस कांस्टेबल को गिरफ्तार कर लिया गया है. आरोपी कांस्टेबल का नाम संजय अहीर है. कांस्टेबल संजय पर सरेआम रीवा को थप्पड़ मारने का आरोप है.

ये है पूरा मामला

सोमवार को रीवा जडेजा अपनी BMW कार में सवार थी और सरु सेक्शन रोड पर शाम के वक्त उनकी गाड़ी एक पुलिसकर्मी की बाइक से जा टकराई. जिसके बाद दोनों के बीच कहासुनी हुई. इस दौरान दोनों के बीच गहमागहमी इतनी बढ़ गई कि पुलिस कांस्टेबल ने रीवा को थप्पड़ मार दिया. बता दें कि गाड़ी खुद रीवा चला रही थीं और उनके साथ एक बच्चा भी था.

इस बवाल के बाद रीवा सीधे जामनगर जिला पुलिस मुख्यालय पहुंच गईं. उनकी शिकायत पर जामनगर जिले के पुलिस अधीक्षक प्रदीप सेजुल ने आरोपी पुलिसकर्मी के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया. जिसके बाद अब आरोपी की गिरफ्तारी कर ली गई.

एक व्यक्ति ने खुद को इस घटना का चश्मदीद बताते हुए दावा किया कि पुलिसकर्मी ने रीवा जडेजा को बुरी तरह मारा. विजयसिंह चावड़ा ने संवाददाताओं से कहा, ‘पुलिसकर्मी ने रीवा को बेरहमी से मारा और बहस के दौरान उसके बाल तक खींचे. हमने उसे (रीवा को) उससे बचाया.’

रुद्राक्ष के हत्यारे को सजा-ए-मौत : दिल दहलाने वाली सच्ची कहानी

26 फरवरी, 2018 की बात है. कोटा शहर की अदालत में उस दिन आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी.  अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण प्रकरण न्यायालय के विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल की अदालत के बाहर सब से ज्यादा भीड़ मौजूद थी. भीड़ में शहर के आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कोटा के बहुचर्चित रुद्राक्ष अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए रुद्राक्ष के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कोटा की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था, इसलिए पूरे कोटा शहर की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल समय पर अदालत पहुंच गए. जज साहब ने पहले अदालत के जरूरी काम निपटाए. फिर उन्होंने रुद्राक्ष हत्याकांड की फाइल पर नजर डाली और इस मामले के चारों आरोपियों को दोपहर 2 बजे अदालत में पेश होने का संदेश भिजवा दिया. अदालत के बाहर जमा लोगों को जब पता लगा कि जज साहब ने दोपहर 2 बजे आरोपियों को अदालत में पेश करने को कहा है तो वहां से धीरधीरे भीड़ कम होने लगी.

लंच के बाद अदालत के बाहर फिर से लोग जमा होने लगे. दोपहर 2 बजे पुलिस ने रुद्राक्ष हत्याकांड के आरोपी अंकुर पाडिया और उस के भाई अनूप पाडिया को कोर्टरूम में पेश किया. दोनों भाइयों को जेल से अदालत लाया गया था. तीसरा आरोपी महावीर शर्मा जमानत पर चल रहा था, वह भी कोर्टरूम में आ चुका था. इन तीनों आरोपियों को कटघरे में खड़ा किया गया.

इस बीच विशिष्ट न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल अपने चैंबर से निकल कर कोर्टरूम में अपनी कुरसी पर बैठ गए. कुरसी पर बैठते ही उन्होंने एक नजर कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर डाली, फिर अपने साथ लाई फाइल पर नजर दौड़ाने लगे.

इस केस का चौथा आरोपी करणजीत सिंह दिल्ली से नहीं आया था. उस के वकील सतविंदर सिंह ने जज साहब के सामने उस की हाजिरी माफी का प्रार्थनापत्र पेश करते हुए कहा कि करणजीत सिंह के दादा की मृत्यु होने के कारण वह अदालत में हाजिर नहीं हो सका. इस पर जज साहब कुछ नहीं बोले.

जज साहब ने सामने रखी फाइल खोल कर कुछ पन्ने पलटे और रुद्राक्ष की हत्या के चारों आरोपियों अंकुर पाडिया, अनूप पाडिया, महावीर शर्मा और चरणजीत सिंह को दोषी घोषित कर दिया. उन्होंने सजा के आधार बिंदु भी सुनाए.

तभी आरोपियों की पैरवी करते हुए उन के वकीलों ने कहा कि उन्हें कम से कम सजा दी जाए. विशिष्ट लोक अभियोजक कमलकांत शर्मा ने उन की बात का विरोध करते हुए कहा कि यह रेयरेस्ट औफ रेयर मामला है, इसलिए आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए. इन्हें कम से कम फांसी की सजा दी जाए. अपनी दलीलें पेश करते हुए लोक अभियोजक ने अदालत के सामने 3 रूलिंग भी पेश कीं.

वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब ने शाम 5 बजे दोषियों को सजा सुनाने की बात कही. इस के बाद वह फिर से अपने चैंबर में चले गए.

रुद्राक्ष कौन था और उस का अपहरण व हत्या क्यों की गई, इस के लिए हमें करीब सवा 3 साल पीछे जाना होगा.

दरअसल रुद्राक्ष कोटा शहर की तलवंडी कालोनी के रहने वाले पुनीत हांडा का बेटा था. पुनीत हांडा एक बैंक में मैनेजर थे. 7 साल का रुद्राक्ष रोजाना की तरह 9 अक्तूबर, 2014 की शाम करीब 5-साढ़े 5 बजे अपने घर के पीछे हनुमान पार्क में खेलने गया था.

आमतौर पर वह करीब एक घंटे पार्क में खेल कर वापस घर लौट आता था, लेकिन उस दिन वह नहीं लौटा तो परिवार वालों ने उसे पार्क में जा कर ढूंढा. लेकिन वह वहां नहीं मिला.

उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे पुनीत हांडा के लैंडलाइन पर फोन आया. फोन करने वाले ने कहा कि तुम्हारा बेटा किडनैप हो गया है. पुनीत ने पहले तो इसे मजाक समझा, लेकिन फोन करने वाले ने गालीगलौज के साथ अपना नाम जफर मोहम्मद बताते हुए कहा कि बच्चे को कश्मीर भेज दिया है. अगर बच्चे को सहीसलामत वापस चाहते हो तो 2 करोड़ रुपए का इंतजाम कर लो.

पुनीत हांडा ने 2 करोड़ रुपए की रकम देने में असमर्थता जताई तो फोन करने वाले ने कहा, ‘‘तू बैंक मैनेजर है और तेरी बीवी टीचर. जितनी भी रकम हो सकती है, इकट्ठी कर ले. बाकी बात सुबह फोन कर के बताऊंगा और अगर पुलिस को बताने की होशियारी दिखाई तो बच्चे से हाथ धो बैठोगे.’’ कहते हुए उस आदमी ने फोन काट दिया.

फोन सुन कर पुनीत ने सिर थाम लिया. उन की समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. वह सोचने लगे कि उन की तो किसी से दुश्मनी भी नहीं है.

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बेटे के अपहरण होने की बात जब पुनीत की पत्नी श्रद्धा हांडा को पता चली तो वह रोने लगीं. पुनीत ने पत्नी को ढांढस बंधाते हुए कहा कि यह समय रोने का नहीं, बल्कि सोचने का है कि हमें अब क्या करना चाहिए. वह रोते हुए बोलीं, ‘‘मेरे जितने भी गहने हैं, सब बाजार में बेच दो पर मेरे रुद्राक्ष को ले आओ.’’

पुनीत ने पत्नी को हौसला रखने को कहा. बाद में उन्होंने फैसला किया कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए. इस के बाद पुनीत ने अपने कुछ परिचितों को फोन कर के बुलाया. परिचितों के साथ उसी रात करीब पौने 9 बजे वह कोटा के जवाहरनगर पुलिस थाने पहुंच गए. थानाप्रभारी को उन्होंने सारी बातें बताईं. पुलिस ने उसी समय भादंवि की धारा 364ए के तहत रिपोर्ट दर्ज कर जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया. पूरे शहर में नाकेबंदी करा दी गई. पुलिस ने उस पार्क के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी देखे, जिस में रुद्राक्ष खेलने गया था. फुटेज में सफेद रंग की निसान माइक्रा कार नजर आई, जिस का नंबर साफ नहीं दिख रहा था. पुलिस उस कार की तलाश में जुट गई. रुद्राक्ष और अपहर्त्ताओं की तलाश के लिए रात भर पुलिस का अभियान चलता रहा, लेकिन कोई सुराग नहीं लगा.

अगले दिन 10 अक्तूबर, 2014 को कोटा के तालेडा थाना इलाके के जाखमुंड स्थित नहर में एक बच्चे की लाश बरामद हुई. बाद में उस की शिनाख्त 7 वर्षीय रुद्राक्ष के रूप में हुई. जवाहरनगर थाना पुलिस ने बच्चे की लाश को जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और केस में हत्या की धारा भी जोड़ दी.

थोड़ी सी देर में रुद्राक्ष की हत्या की खबर पूरे शहर में फैल गई. जिस के बाद लोग आक्रोश में आ गए. विरोध जताने के लिए लोगों ने बाजार बंद रखे. जगहजगह पुलिस के खिलाफ धरनाप्रदर्शन भी शुरू हो गए. कैंडल मार्च, मौन जुलूस निकाले गए. मानव शृंखला बना कर भी विरोध जताया गया. एक तरह से पूरा शहर इस आंदोलन से जुड़ गया था.

भारी जनाक्रोश को देखते हुए जयपुर से आए अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (क्राइम) अजीत सिंह कई दिनों तक कोटा में इसलिए डेरा डाले रहे कि कहीं स्थिति विस्फोटक न हो जाए.

पुलिस ने रुद्राक्ष के अपहर्त्ता और हत्यारोपियों की तलाश में कई टीमें गठित कीं. पुलिस ने रुद्राक्ष के साथ पार्क में खेल रहे बच्चों से भी पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि कई दिन से एक अंकल पार्क में खेल रहे बच्चों को चौकलेट बांटने आते थे. उस दिन भी वह आए. उन के पास की चौकलेट खत्म हो गई थीं. रुद्राक्ष ही चौकलेट के लिए रह गया था. तब वह चौकलेट देने के लिए रुद्राक्ष को अपनी कार के पास ले गए.

पुलिस ने बच्चों के बताए हुलिए के आधार पर अपहर्त्ता के स्केच बनवा कर जारी कर दिए. सीसीटीवी फुटेज के आधार पर संदिग्ध कार के मालिक का भी पुलिस ने पता लगा लिया. इस के अलावा पुनीत हांडा के घर के लैंडलाइन टेलीफोन पर जिस फोन नंबर से फिरौती की काल आई थी, उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई.

5 दिन की लगातार जांचपड़ताल के बाद कोटा शहर के अनंतपुरा थाना इलाके के ओम एनक्लेव के रहने वाले अंकुर पाडिया का नाम सामने आया. पुलिस ने अंकुर पाडिया को तलाशा तो पता चला कि वह कोटा शहर में है ही नहीं. अंकुर के कोटा शहर में ही अलगअलग जगहों पर कई फ्लैट हैं.

पुलिस 14 अक्तूबर को ओम एनक्लेव में स्थित अंकुर के फ्लैट पर पहुंची. लोगों की मौजूदगी में फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां एक मोबाइल फोन, अंकुर का पासपोर्ट, वोटर आईडी कार्ड मिले.

फ्लैट के नीचे एक निसान माइक्रा कार भी खड़ी मिली. लोगों से पता चला कि वह कार अंकुर की ही है. कार में एक कंबल, कपड़े, चौकलेट, बिसकुट, कैंची, सेलोटेप, नायलौन की डोरी मिली.

अंकुर की बंसल क्लासेज के नजदीक ही स्टेशनरी की दुकान भी है. दुकान की तलाशी लेने पर वहां से एक लैपटाप, हार्डडिस्क, पेन ड्राइव, डोंगल, 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. इस के अलावा उस के महालक्ष्मीपुरम स्थित फ्लैट से 3 लाख रुपए नकद, डायरी, मोबाइल फोन आदि जब्त किए. यह वही फोन था, जिस से फिरौती के लिए रुद्राक्ष के घर वालों को काल की गई थी.

जांच में पता चला कि रुद्राक्ष के घर फिरौती के लिए बीएसएनएल की सिम से काल की गई थी. उस की काल डिटेल्स से पुलिस को रिलायंस कंपनी का एक नंबर मिला. जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि वह सिम दिल्ली से लिया गया था.

दिल्ली में करणजीत सिंह नाम के व्यक्ति ने एक साथ 8-10 सिम कार्ड बेचे थे. इन में से एक सिमकार्ड का प्रयोग कर के गुजरात से क्लोरोफार्म मंगाने के लिए ईमेल किया गया था. आईपी एड्रेस से अंकुर का नाम सामने आ गया था.

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पुलिस ने अंकुर का नंबर सर्विलांस पर लगा दिया. जांच में पता चला कि अनूप पाडिया का फरजी नाम संतोष सिंह है. अनूप की एक नए नंबर पर बारबार बात हो रही थी. उस नए नंबर का मूवमेंट कानपुर स्टेशन के आसपास आ रहा था. उस मोबाइल की आईडी उड़ीसा की थी. कानपुर में तलाश की गई तो पता चला कि अंकुर पाडिया उड़ीसा के किसी व्यक्ति की आईडी पर कानपुर के एक होटल में कमरा ले कर रह रहा है.

लंबी भागदौड़ के बाद पुलिस ने 27 अक्तूबर, 2014 को कानपुर से अंकुर पाडिया और लखनऊ से उस के भाई अनूप पाडिया को गिरफ्तार कर लिया. अनूप पाडिया रुद्राक्ष के अपहरण और हत्या मामले में अंकुर का सहयोगी था.

पूछताछ में पता चला कि अंकुर पाडिया को क्रिकेट मैचों का सट्टा लगाने का शौक था. इस शौक में कुछ समय पहले उस ने लाखों रुपए गंवा दिए थे, जिस से उस पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया था, जिस की वजह से उसे कोटा में महालक्ष्मीपुरम का अपना फ्लैट गिरवी रखना पड़ा था.

बैंक का उस पर 39 लाख रुपए का कर्ज था. उस ने गोपाल से 65 लाख रुपए ले रखे थे. इस के अलावा निखिल शर्मा से भी 10 लाख रुपए ले रखे थे. कई अन्य लोगों से भी उस ने मोटी रकम ले रखी थी.

कर्ज से उबरने के लिए अंकुर ने रुद्राक्ष के अपहरण की योजना बनाई. उसे पता था कि रुद्राक्ष का पिता पुनीत हांडा बूंदी सेंट्रल कोऔपरेटिव बैंक में मैनेजर है और मां कौन्वेंट स्कूल में टीचर, इसलिए अंकुर को उम्मीद थी कि उन के बेटे रुद्राक्ष का अपहरण करने पर फिरौती के रूप में मोटी रकम मिल सकती है.

अंकुर ने रुद्राक्ष का अपहरण करने के लिए कई दिन तक पार्क के चक्कर लगाए. वहां खेलने वाले बच्चों को वह चौकलेट देता था. 9 अक्तूबर, 2014 को वह पार्क से रुद्राक्ष को चौकलेट के बहाने ले गया और उसे अपनी सफेद माइक्रा कार में बैठा कर क्लोरोफार्म सुंघा कर बेहोश कर दिया.

बेहोश रुद्राक्ष को ले कर वह कोटा शहर में घूमता रहा. वह कोटा के दशहरा मेले में भी गया. इस के अलावा उस ने उम्मेद क्लब के सिल्वर जुबली कार्यक्रम में भाग लिया. उसी रात अंकुर ने रुद्राक्ष की हत्या कर दी और उस का शव तड़के नहर में फेंक दिया. रुद्राक्ष की हत्या के बाद वह कोटा से भाग कर कई राज्यों में घूमता हुआ कानपुर पहुंचा.

बाद में 30 अक्तूबर को पुलिस ने दिल्ली के तिलकनगर थाना इलाके में कृष्णापुरी के रहने वाले करणजीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. करणजीत सिंह दिल्ली के गफ्फार मार्केट में मोबाइल का काम करता था.

उस ने पुलिस को बताया कि उसे एक जगह 10 सिम कार्ड लावारिस हालत में मिले थे. इन में से एक सिमकार्ड उस ने खुद रख लिया और बाकी 9 सिम 23 सितंबर, 2014 को एक आदमी को 1100 रुपए में बेच दिए. पुलिस ने अंकुर पाडिया के नौकर महावीर शर्मा को 7 नवंबर, 2014 को बूंदी जिले के केशोराय पाटन से गिरफ्तार कर लिया.

अंकुर पाडिया ने रुद्राक्ष के अपहरण की योजना पूरी तरह सोचसमझ कर बनाई थी. पुलिस को उस के लैपटाप की जांच के बाद पता चला कि उस ने सितंबर, 2014 में इंटरनेट के द्वारा क्लोरोफार्म मिलने के स्थानों की तलाश की. इस के अलावा एक अंगरेजी अखबार की वेबसाइट पर किडनैपिंग से संबंधित वेबपेज भी देखे.

अंकुर के लैपटाप की एफएसएल जांच रिपोर्ट से पता चला कि पहली सितंबर, 2014 से 14 अक्तूबर, 2014 के बीच उस ने अपराध के लिए इंटरनेट पर कई तरह की खोजबीन की थी. डेढ़ महीने में उस ने 188 तरह के कीवर्ड सर्च किए. इन में वेयर कैन बी गेट क्लोरोफार्म, वेयर कैन बी गेट मेकअप मटीरियल सरदारजी गेटअप, हाउ टू चेंज योर वाइस ओवर द फोन, रिच परसन इन कोटा प्रमुख थे.

अंकुर इतना शातिर था कि उस ने 16 अक्तूबर, 2014 की रात सुशांत राजगंधा नामक व्यक्ति का वोटर आईडी कार्ड चुरा लिया. सुशांत राजगंधा ट्रेन द्वारा बलसाड से राजगंधा जा रहा था. रुद्राक्ष की हत्या के बाद कोटा से फरार हो कर अंकुर भी उसी ट्रेन से कहीं जा रहा था.

इसी दौरान मौका पा कर अंकुर ने सुशांत राजगंधा का वोटर आईडी कार्ड व अन्य दस्तावेज चुरा लिए. सुशांत राजगंधा के वोटर आईडी कार्ड के आधार पर अंकुर कानपुर में होटल में रुका हुआ था. अंकुर के शातिराना दिमाग का अंदाज इस से भी पता चलता है कि जब कानपुर में उसे पकड़ा गया था तो उस के पास उस का लिखा 2 पन्नों का सुसाइड नोट भी था.

इस सुसाइड नोट पर उस के दस्तखत भी थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि अंकुर इस सुसाइड नोट को प्रचारित कर दुनिया की नजर में मर जाता, लेकिन असल में वह नाम बदल कर अपने भाई अनूप पाडिया की तरह कहीं अन्यत्र रहने लग जाता.

पुलिस को यह भी पता चला कि अनूप पाडिया पर कोटा शहर व कई अन्य जगहों पर धोखाधड़ी के मामले दर्ज हैं. कई प्रकरण एनआई एक्ट के विचाराधीन हैं. वह सन 2009 में जयपुर जिले से पुलिस अभिरक्षा से फरार हो गया था. तब से वह फरार चल रहा था. बाद में उसे रुद्राक्ष के मामले में लखनऊ से गिरफ्तार किया गया, जहां वह संतोष सिंह के नाम से रह रहा था.

पुलिस की जांच में यह बात सामने आई कि दोनों भाई पैसों के लिए मिल कर अपराध कर रहे थे. रुद्राक्ष की हत्या के तुरंत बाद 12 अक्तूबर, 2014 को अंकुर सीधा अपने भाई अनूप उर्फ संतोष सिंह के पास गया था.

इस मामले में आमजनों की भावना को देखते हुए कोटा के वकीलों ने 2 आरोपियों अंकुर पाडिया और अनूप पाडिया की पैरवी नहीं की थी. इतना ही नहीं, बार असोसिएशन ने परिवादी पुनीत हांडा की तरफ से नि:शुल्क पैरवी के लिए एडवोकेट हरीश शर्मा को नियुक्त कर दिया था.

व्यापक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने अंकुर पाडिया के खिलाफ भादंसं की धारा 364ए, 302, 379, 419, 420, 120बी व सूचना प्रौद्योगिकी की धारा 65 व 66क, ख, ग, घ के तहत, अभियुक्त अनूप पाडिया उर्फ संतोष सिंह के खिलाफ भादंसं की धारा 364ए, 302, 419, 420, 212, 120बी और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66ख, ग, घ के अंतर्गत आरोपपत्र पेश किया. अभियुक्त करणजीत सिंह के खिलाफ भादंसं की धारा 109, 364ए एवं 302 और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66बी तथा अभियुक्त महावीर शर्मा के खिलाफ भादंसं की धारा 201 एवं 212 के तहत 23 जनवरी, 2015 को अदालत में आरोपपत्र पेश किया. पुलिस ने 1464 पेज और 10 सीडी में चालान पेश किया था.

कोर्ट में करीब 3 सालों तक इस बहुचर्चित मामले की काररवाई चलती रही, जिस में 110 गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए. न्यायालय में पेश हुए साक्ष्यों के आधार पर ही न्यायाधीश गिरीश अग्रवाल ने आरोपियों को दोषी ठहराया.

सजा सुनाने के लिए जज साहब शाम 5 बजे कोर्ट में पहुंच गए. उस समय आरोपियों के अलावा मामले से जुड़े सभी वकील व रुद्राक्ष के मातापिता भी कोर्टरूम में मौजूद थे.

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जज साहब ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अभियुक्त अंकुर ने क्रूरतम, अमानवीय तथा हृदयविदारक जघन्य अपराध किया था. अभियुक्त की अपराध प्रवृत्ति को देखते हुए वह समाज की मुख्यधारा से जुड़ने के योग्य नहीं है. अभियुक्त अंकुर समाज के लिए खतरा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे हालात में अभियुक्त अंकुर के साथ नरमी का रुख अपनाए जाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता. 7 साल के बच्चे की बर्बरतापूर्वक हत्या के इस मामले को रेयरेस्ट औफ रेयर माना जाना न्यायोचित प्रतीत होता है. इसलिए अभियुक्त अंकुर पाडिया को मृत्युदंड से कम कुछ भी दिया जाना न्यायोचित नहीं है.’

इतना कह कर जज साहब ने एक सरसरी नजर कटघरे में खड़े अभियुक्त अंकुर पाडिया के चेहरे पर डाली.

कुछ क्षण रुक कर जज साहब ने कहा, ‘अभियुक्त अनूप ने नियोजित तरीके से षडयंत्रपूर्वक अपराध किया था. इस तरह के अपराधों में आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए नरमी का रुख अपनाया गया तो यह समाज के लिए घातक होगा. पिछले 5 सालों से वह नाम बदल कर और अपनी पहचान छिपा कर संतोष सिंह के नाम से रहता रहा और इसी नाम से आईडी, परिवार कार्ड बनवा लिए, जो उस की आपराधिक प्रवृत्ति को दर्शाता है. अभियुक्त अनूप का अपराध अतिगंभीर और हृदय विदारक है. उस के खिलाफ नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं होगा.’

जज साहब ने इतना कह कर कटघरे में खड़े अभियुक्त अनूप पाडिया और कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर सरसरी नजर डाली. कुछ पलों की चुप्पी के बाद जज साहब ने आगे कहा, ‘अभियुक्त महावीर और करणजीत पर भी आरोपित अपराध गंभीर प्रकृति के हैं. महावीर ने फिरौती के लिए अपहरण व हत्या जैसे गंभीर अपराध में साक्ष्य नष्ट करने और आरोपी अंकुर को बचाने के लिए सहयोग किया. आरोपी चरणजीत ने फरजी सिम बेचने का अपराध किया. ये परिवीक्षा के प्रावधानों के लाभ पाने के अधिकारी नहीं हैं. उन्हें भी समुचित दंड से दंडित किया जाना न्यायोचित होगा.’

इस के बाद जज साहब ने टेबल पर रखे गिलास से पानी पिया. फिर उन्होंने दंडादेश सुनाते हुए कहा, ‘मुख्य आरोपी अंकुर पाडिया को दोषसिद्ध आरोप के अंतर्गत धारा 302 भादंसं में मृत्युदंड और 50 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. इस के अलावा उसे 364ए में मृत्युदंड व 50 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है.’

अंकुर पाडिया को कई अन्य धाराओं में सजा व अर्थदंड सुनाने के बाद जज साहब ने अभियुक्त अनूप पाडिया को दोषी मानते हुए धारा 302 एवं 120बी और 364ए एवं 120बी भादंसं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई. फिर अभियुक्त महावीर शर्मा को 4 साल और करणजीत सिंह को 2 साल की सजा सुनाई.

अदालत ने अंकुर पाडिया को फांसी की सजा के साथ कुल 3 लाख 60 हजार रुपए, अनूप पाडिया को उम्रकैद के साथ 3 लाख 20 हजार रुपए, महावीर शर्मा को 4 साल की कठोर कैद के साथ 25 हजार रुपए और करणजीत सिंह को 2 साल की कठोर कैद के साथ 1 लाख रुपए के अर्थदंड से दंडित किया.

सजा के अन्य बिंदुओं को सुनाने के बाद जज साहब ने फाइल को बंद करते हुए एक बार फिर कोर्टरूम में मौजूद लोगों पर नजर डाली और कुरसी से उठ कर अपने चैंबर में चले गए.

फैसला सुन कर कोर्टरूम में मौजूद रुद्राक्ष की मां श्रद्धा हांडा फफक पड़ीं. फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद भी कटघरे में खड़े अंकुर पाडिया के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. उस के भाई अनूप पाडिया के चेहरे पर भी मलाल के कोई भाव नहीं थे.

रुद्राक्ष के पिता पुनीत हांडा ने कहा कि मेरी कैसी जीत और कैसी हार. मेरा बेटा तो वापस नहीं मिल सकता. 3 साल तक अदालत की चौखट पर आतेआते मैं खुद को अपराधी समझने लगा था. आरोपी पेशी पर आए या न आए, मैं तो हर बार पेशी पर पहुंचता था.

जेल से जब अंकुर व अनूप कोर्ट में आते तो लगता कि वे किसी ऐशगाह या फाइवस्टार होटल से निकल कर आ रहे हैं. ब्रांडेड जूते, जींस, टीशर्ट, चेहरे पर शिकन तक नहीं. ऐसे में मैं कई बार हैरान हो जाता कि जेल में आखिर चल क्या रहा है. मैं सिस्टम के आगे खुद को अपराधी और हत्यारों को फरियादी समझने लगा था.

अदालत का फैसला आने से करीब एक महीने पहले ही रुद्राक्ष के दादा मदनमोहन हांडा का स्वर्गवास हो गया था. पिता के ड्यूटी पर चले जाने और मां के स्कूल चले जाने के बाद रुद्राक्ष का सब से ज्यादा समय अपने दादाजी के साथ ही बीतता था.

रुद्राक्ष की मौत ने दादा मदनमोहन को भी तोड़ दिया था. जिस पार्क से रुद्राक्ष का अपहरण हुआ था, वहां दादाजी ने पोते की याद में 2 पौधे रोपे थे. वे इन्हीं पौधों को पालपोस कर रुद्राक्ष को याद करते थे.

रुद्राक्ष हत्याकांड में मुख्य आरोपी अंकुर पाडिया को गिरफ्तार कराने में तकनीकी जांच के जरिए सब से अहम भूमिका निभाने वाले हेडकांस्टेबल प्रताप सिंह को फैसला आने के दिन ही एएसआई के पद पर गैलेंटरी पदोन्नति दे दी गई. प्रताप सिंह की विशेष पदोन्नति की सिफारिश तत्कालीन पुलिस महानिदेशक ने की थी.

फैसला सुनाए जाने के बाद कोर्टरूम में मौजूद तीनों मुजरिमों को पुलिस कोटा जेल ले गई.

जेल में भी अनूप पाडिया अपनी फितरत दिखाने से नहीं चूका. उस ने जेल में ही कैदियों से वसूली शुरू कर दी. किसी ने इस की शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से कर दी तो ब्यूरो ने 10 अप्रैल, 2017 को प्रोडक्शन वारंट पर कोटा जेल से गिरफ्तार कर लिया.

इस मामले में कोटा जेल के जेलर बत्तीलाल मीणा और 2 दलालों को भी गिरफ्तार कर लिया. कोर्ट के आदेश पर अनूप पाडिया को अजमेर जेल भेज दिया गया था.

महिला इंसपेक्टर का खूनी इश्क : अवैद्य संबंधों ने उजाड़ा परिवार

30 जनवरी, 2018 की बात है. झारखंड के जिला हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार के थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद शाम के समय अपने औफिस में बैठे थे तभी एक व्यक्ति उन के पास आया. थानाप्रभारी ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए आने का कारण पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मेरा नाम विनोद पाठक है.’’ मैं जयप्रभा नगर कालोनी में किराए के मकान में बीवीबच्चों के साथ रहता हूं. आज मेरी बीवी अन्नू पाठक सुबह किसी काम से बाहर गई थी. वह अभी तक नहीं लौटी है. मैं ने अपने स्तर पर उसे सब जगह तलाशा लेकिन उस का कहीं पता नहीं चला. मैं बहुत परेशान हूं, प्लीज मेरी मदद कीजिए.’’

‘‘क्या? बीवी कहीं चली गई?’’ नथुनी प्रसाद आश्चर्य से बोले, ‘‘पर कहां चली गई?’’

‘‘नहीं जानता सर, कहां चली गई.’’ विनोद बोला.

‘‘कहीं पत्नी से झगड़ा वगैरह तो नहीं हुआ था. जिस से वह नाराज हो कर कहीं चली गई.’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे और पत्नी के बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ था.’’ विनोद ने बताया.

‘‘एक काम करिए. पत्नी की गुमशुदगी की एक तहरीर लिख कर दे दीजिए. मैं दिखवाता हूं कि मामला क्या है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘मैं एक दरख्वास्त लिख कर लाया हूं सर.’’ थानाप्रभारी की ओर एक पेपर बढ़ाते हुए वह बोला.

थानाप्रभारी ने उस की दी हुई दरख्वास्त पर एक नजर डाली और वह मुंशी को गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए दे दी. इस के बाद उन्होंने विनोद को आश्वस्त कर घर जाने के लिए कह दिया.

पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दे कर विनोद पाठक जैसे ही थाने से निकल कर कुछ दूर गया होगा. तभी एक गोरीचिट्ठी, बेहद खूबसूरत लड़की जिस की उम्र यही कोई 16-17 साल के करीब रही होगी. थानाप्रभारी के पास पहुंची. उस के साथ मोहल्ले के कई संभ्रांत लोग भी थे.

उस लड़की ने अपना नाम कीर्ति पाठक पुत्री विनोद पाठक निवासी जयप्रभा नगर बताया. उस ने थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद को बताया कि उस की मां अन्नू पाठक आज सुबह से घर से गायब है. उन का अब तक कहीं पता नहीं चला है. उसे आशंका है कि कहीं उस के पापा विनोद पाठक ने ही मां के साथ कोई अनहोनी न कर दी हो.

कीर्ति के मुंह से इतना सुनते ही थानाप्रभारी उस लड़की की तरफ गौर से देखने लगे. क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही उस के पिता भी पत्नी की गुमशुदगी लिखाने आए थे. अब बेटी ही पिता पर मां को गायब करने का शक कर रही है. इस से यह मामला तो बड़ा गंभीर और पेचीदा लगने लगा.

थानाप्रभारी ने कीर्ति से पिता पर लगाए जाने वाले आरोप की वजह पूछी तो उस ने विस्तार से मां और पिता के बीच के संबंधों के बारे में और उन के बीच सालों से चले आ रहे झगड़े के बारे में बता दिया. कीर्ति की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए कि एक महिला पुलिस इंसपेक्टर के साथ बने अवैध संबंधों की वजह से विनोद पाठक अपनी पत्नी को मारतापीटता था.

थानाप्रभारी ने एसआई श्याम कुमार को विनोद पाठक के घर मामले की जांच के लिए भेज दिया. एसआई श्याम कुमार जांच के लिए विनोद पाठक के यहां पहुंच गए. उन्होंने विनोद के बच्चों के अलावा पड़ोसियों से भी पूछताछ की.

प्रारंभिक जांच कर के एसआई श्याम कुमार ने थानाप्रभारी को बता दिया कि विनोद पाठक की पत्नी अन्नू पाठक वास्तव में गायब है. इस के अलावा विनोद पाठक भी थाने में सूचना देने के बाद से लापता है. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा है.

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अगले दिन 31 जनवरी की सुबह 10-11 बजे के करीब थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद विनोद पाठक के घर पहुंच गए. पुलिस को देख कर मोहल्ले के लोग वहां जमा हो गए. अन्नू के साथसाथ विनोद पाठक घर पर नहीं था. घर में उन के तीनों बच्चे कीर्ति, वाणी और वंश ही थे. पूछने पर बच्चों ने पुलिस को बताया कि पापा बीती रात से ही घर नहीं लौटे हैं.

यह जान कर थानाप्रभारी को विनोद पर ही शक हो गया कि जरूर पत्नी के गायब होने में उस का हाथ रहा होगा. तभी वह फरार है. जैसे ही वह उस के घर में घुसे तभी हल्कीहल्की बदबू आती हुई महसूस हुई. पुलिस ने घर का कोनाकोना छान मारा लेकिन बदबू कहां से आ रही थी पता नहीं चला. एक कमरे में दरवाएजे पर ताला लटका मिला. पुलिस ने कीर्ति से तालाबंद होने की वजह पूछी तो उस ने बताया कि वह कमरा मां का है. उस में मां रहती हैं. जब से वह गायब हैं तब से उस कमरे पर नया ताला लगा है. पापा ने उसे बताया था कि अन्नू मायके जाते समय कमरे में ताला लगा कर चाबी अपने साथ ले गई है.

कीर्ति की यह बात थानाप्रभारी के गले नहीं उतरी क्योंकि जब घर में पहले से सभी कमरों के ताले और उस की 2-2 चाबियां थीं तो मां ने नया ताला क्यों खरीदा. शंका होने पर उन्होंने उस कमरे का ताला तोड़ने के निर्देश साथ आए पुलिसकर्मियों को दिए.

ताला टूटने के बाद पुलिस जैसे ही कमरे में घुसी तो महसूस हुआ कि बदबू इसी कमरे से आ रही है. पुलिस कमरे में वह चीज ढूंढने लगी जहां से वह बदबू आ रही थी. ढूंढतेढूढते पुलिस जैसे ही दीवान के करीब पहुंची तो बदबू और तेज हो गई. मतलब साफ था कि बदबू दीवान के भीतर से आ रही थी. पुलिस ने दीवान को खोला तो भीतर का नजारा देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं.

दीवान में काफी खून फैला था जो सूख चुका था. वहां एक काले रंग की पौलीथिन थैली और एक प्लास्टिक का बोरा रखा था. उन पर भी खून लगा था जो सूख चुका था. थानाप्रभारी को समझते देर न लगी कि विनोद ने पत्नी की हत्या कर के उस की लाश दीवान में छिपा दी है.

उन्होंने प्लास्टिक का बोरा खुलवाया तो खोलते ही सब के होश उड़ गए. काली पौलीथिन में अन्नू का कटा हुआ सिर और बोरे में धड़ था. उस के हाथों को पीछे की ओर कर के प्लास्टिक की रस्सी से बांध दिया गया था. उस के पैर घुटनों से मोड़ कर पेट से बांध दिए थे.

पिछले 2 दिनों से रहस्यमय तरीके से गायब अन्नू पाठक की उस के ही बेडरूम में लाश पाए जाने के बाद रहस्य से परदा उठ गया. मां की लाश मिलते ही तीनों बच्चे दहाड़ें मार कर रोने लगे. उन के रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए, बच्चों को ढांढ़स बंधाने लगे. विनोद का अभी कुछ पता नहीं था कि वह कहां है.

अन्नू पाठक की लाश बरामद किए जाने की सूचना थानाप्रभारी ने डीएसपी चंदनवत्स और एसपी अनीश गुप्ता को दे दी. कुछ ही देर बाद एसपी और डीएसपी भी मौके पर पहुंच गए थे.

तलाशी के दौरान पुलिस को रसोई घर में रखी डस्टबिन से एक चाकू बरामद हुआ. चाकू के ऊपर खून लगा हुआ था, जो सूख चुका था. लग रहा था कि शायद इसी चाकू से अन्नू की हत्या की गई होगी. पुलिस ने चाकू अपने कब्जे में लिया. अन्नू की हत्या की सूचना उस के मायके वालों को भी दे दी गई थी. फिर जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दी.

अगले दिन यानी पहली फरवरी, 2018 को थानाप्रभारी ने अन्नू के घर पहुंच कर उस की बड़ी बेटी कीर्ति से विस्तार से पूछताछ की. कीर्ति ने कहा कि उस के पापा उसे और मम्मी को पिछले 5 सालों से प्रताडि़त करते चले आ रहे हैं. जिस मंजू ठाकुर नाम की महिला से उन के गलत संबंध हैं वह इसी शहर में पुलिस इंसपेक्टर है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी एसपी अनीश गुप्ता को दे दी.

कीर्ति ने जिस हौसले के साथ अपने पिता के चरित्र पर आरोप लगाया था. वह ऐसे ही नहीं लगाया था. उस के पास प्रत्यक्ष तौर पर कई प्रमाण भी थे. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के उस के पापा विनोद पाठक से वर्ष 2013 से संबंध थे. वह उस के पापा से मिलने अकसर घर आती रहती थी.

यही नहीं कई बार तो अन्नू के रहते हुए मंजू ठाकुर विनोद के साथ उस के बिस्तर पर एक साथ सोए भी थे. इस से नाराज हो कर अन्नू अपने मायके रांची चली जाती थी और महीनों वहीं रुक जाती थी. बच्चों के विरोध करने पर विनोद उन्हें निर्दयतापूर्वक पीटता था.

केस में महिला पुलिस इंसपेक्टर मंजू ठाकुर का नाम सामने आने की जानकारी मीडिया वालों को हुई तो मीडिया ने इस मामले को खूब उछाला. इंसपेक्टर मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस को ठोस सबूत नहीं मिले थे. इसलिए एसपी अनीश गुप्ता ने डीएसपी चंदन वत्स को उस पर नजर रखने के निर्देश दिए.

उधर पुलिस विनोद पाठक को भी सरगर्मी से तलाश रही थी.  6 दिन बीत जाने के बाद भी विनोद पाठक की गिरफ्तारी नहीं हुई और न ही मंजू ठाकुर के खिलाफ पुलिस ने कोई एक्शन लिया था. इस कारण लोग पुलिस का विरोध करने पर उतर आए थे.

4 फरवरी, 2018 की रात हजारीबाग स्टेडियम से झंडा चौक तक एंजेल्स हाईस्कूल, डीपीएस, होली क्रौस वीटीआई, डीएवी पब्लिक स्कूल,संत रोबर्ट बालिका विद्यालय सहित अन्य कई स्कूलों के सैकड़ों छात्रछात्राओं, शिक्षकों ने कैंडल जुलूस निकाला. सदर विधायक मनीष जायसवाल, उपमहापौर आनंद देव, ब्रजकिशोर जायसवाल सहित कई गणमान्य लोग भी जुलूस में शामिल रहे.

6 फरवरी को जदयू के वरिष्ठ नेता बटेश्वर प्रसाद मेहता न्याय दिलाने के लिए एसपी अनीश गुप्ता से मिले. उन्होंने हत्या के आरोपी को गिरफ्तार करने की मांग की. एसपी से मिले प्रतिनिधिमंडल में जिला सचिव कृष्णा सिंह, नगर महासचिव सतीश कुमार सिन्हा, दीपक कुमार मेहता आदि शामिल थे.

घटना के विरोध में स्कूलों के अलावा विभिन्न सामाजिक संगठन भी उतर आए. उन्होंने कैंडल मार्च निकाल कर मृतका को श्रद्धांजलि दी और दोषी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग की.

इस बीच डीएसपी चंदनवत्स और थानाप्रभारी नथुनी प्रसाद घटना की जांच में जुटे रहे. उधर पुलिस ने मंजू ठाकुर और विनोद ठाकुर के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स की जांच करने पर पता चला कि घटना वाले दिन दोनों के बीच 32 बार बातचीत हुई थी. पुलिस के लिए विनोद या मंजू ठाकुर से पूछताछ करने का यह अच्छा आधार था.

इसी साक्ष्य के आधार पर डीएसपी ने 6 फरवरी को पीटीसी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के लिए उसे थाने लाया गया. पूछताछ में पहले तो वह अन्नू की बेटी कीर्ति  द्वारा उस पर लगाए गए सभी आरोपों को सिरे से नकारती रही. चूंकि मंजू खुद कानून की मंजी हुई खिलाड़ी थी. वह कानून की एकएक बारीकी को अच्छी तरह जानती थी. इसलिए अपने बचाव में वह सभी हथकंडों को इस्तेमाल करती रही.

लेकिन डीएसपी चंदन वत्स भी उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ करते रहे. आखिर वह उन के सवालों के घेरे में फंसती चली गई. अंत में उस ने कानून के आगे घुटने टेक दिए और अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. फिर उस ने अपने प्रेमसंबंधों से ले कर अन्नू पाठक की हत्या तक की जो कहानी बताई वह बड़ी दिलचस्प निकली.

45 वर्षीय विनोद पाठक मूलरूप से झारखंड राज्य के हजारीबाग का रहने वाला था. वह हजारीबाग के थाना बड़ा बाजार स्थित पौश कलोनी जयप्रभा नगर में एक किराए के मकान में परिवार के साथ रहता था. उस का परिवार खुशहाल था.

परिवार खुशहाल क्यों न हो, विनोद पाठक भारतीय खनन विभाग-कोल विभाग के सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिजाइन इंस्टीट्यूट (सीएमपीडीआई) की हजारीबाग जिले की बड़कागांव शाखा में हेड क्लर्क के पद पर नौकरी करता था. वहां उस की अच्छीखासी तनख्वाह थी.

खानेपीने और अन्य खर्च के बावजूद वह अपनी तनख्वाह में से प्रति माह अच्छी रकम बचा लेता था. नौकरी करने के साथसाथ वह एक योग संस्था का जिलाध्यक्ष भी था. विनोद जीवन की नैया बड़े मजे से खे रहा था.

बात सन 2013 की है. विनोद पाठक पतंजलि योग पीठ, हरिद्वार गया था. वहीं पर उस की मुलाकात हजारीबाग जिले के पीटीसी की इंसपेक्टर मंजू ठाकुर से हुई. मंजू ठाकुर पतंजलि योग पीठ के काम से वहां गई हुई थी. दरअसल, इंसपेक्टर मंजू ठाकुर बाबा रामदेव के प्रोडक्ट से इतनी प्रभावित थी कि उस ने उस की एजेंसी ले ली थी.

बातचीत के दौरान जब यह पता चला कि दोनों एक ही प्रांत के ही नहीं बल्कि एक ही जिले के रहने वाले हैं तो उन की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा. वैसे भी दूर परदेश में अपने इलाके का कोई मिल जाए तो अपनेपन सा लगता है. इतना ही नहीं उस से दिल का रिश्ता जुड़ जाता है. ऐसा ही कुछ उन के साथ भी हुआ था.

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एक ही मुलाकात और एक ही बातचीत में वे एकदूसरे से घुलमिल गए. उन्होंने अपनेअपने पेशे के बारे में भी बता दिया था. उस के बाद काफी देर तक एकदूसरे से बातचीत करते रहे. पतंजलि योग पीठ से वापस लौटते समय दोनों ने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए थे.

मंजू और विनोद दोनों ही सरकारी पेशे से जुड़े हुए थे और हमउम्र थे. मंजू बात करने में काफी चतुर और मृदुभाषी किस्म की औरत थी. विनोद जब से मंजू से मिला था. उस की ओर आकर्षित हुए जा रहा था. इस बात को वह खुद भी नहीं समझ पा रहा था. जब तक दिन में एक-दो बार उस से बात नहीं कर लेता या उस से मिल नहीं लेता था उस के दिल को चैन नहीं मिलता था.

जबकि विनोद जानता था कि उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे भी हैं. इतना ही नहीं बेटी भी सयानी हो चुकी है. पत्नी को जब ये बात पता चलेगी तो घर मे वह कितना कोहराम मचाएगी. फिर बच्चे भी उस के बारे में क्या सोचेंगे.

यह सोच कर कुछ पल के लिए उस के कदम जड़ गए थे लेकिन दिल की पुकार के आगे वह नतमस्तक हो गया और मंजू को पाने की हसरत में वह अपने बीवीबच्चों को भूल गया.

मंजू का सान्निध्य पाने के लिए विनोद उस का व्यवसाय पार्टनर बन गया और मटवारी में औफिस और दुकान खोल ली. विनोद ने सोचा कि अब उस पर न तो किसी को शक होगा और न ही कोई उंगली उठा पाएगा.

मंजू भी विनोद पर मर मिटी थी. जबकि वह भी शादीशुदा थी. उस ने भी विनोद से अपने प्यार का इजहार कर दिया था. उस के बाद दोनों भारत स्वाभिमान ट्रस्ट से जुड़ कर काम करते रहे. मंजू कंपनी की ओर से राजस्थान टूर पर गई थी. तब विनोद भी उस के साथ था.

मंजू का विनोद के दिल के साथसाथ उस के परिवार पर भी दबदबा बन गया था. वह जब चाहे तब बिजनैस के बहाने विनोद के घर आ धमकती थी. उस के साथ घंटों बैठे गप्पें लड़ाती और ठहाके मारती. अन्नू कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं जो  पति की इन हरकतों को न समझती. बात 1-2 दिन की या फिर कभीकभार की होती तो चल सकती थी लेकिन यहां तो लगभग रोज ही वह विनोद के पास चली आती थी.

अन्नू को मंजू का रोजरोज उस के घर आना बरदाश्त से बाहर हो गया था. अब पानी सिर के ऊपर से बह रहा था. जब सब्र का बांध टूट गया तो एक दिन अन्नू पति विनोद से पूछ ही बैठी, ‘‘मैं तुम से एक बात पूछना चाहती हूं पूछ सकती हूं क्या?’’

‘‘हां…हां… क्यों नहीं, बिलकुल पूछ सकती हो. तुम्हारा तो अधिकार है.’’ विनोद संजीदगी के साथ बोला.

‘‘तो ठीक है ये बताइए कि ये पुलिस वाली मंजू यहां रोजरोज क्यों आती है?’’

‘‘बिजनेस के सिलसिले में और क्या?’’ पति ने बताया.

‘‘लेकिन उस का यहां रोजरोज का आना, मुझे पसंद नहीं है. बड़ी बेटी कीर्ति भी नाराज होती है.’’ अन्नू बोली.

‘‘ये कैसी बेतुकी बातें कर रही हो. तुम?’’ विनोद पत्नी के ऊपर नाराज हुआ, ‘‘वो यहां आती हैं तो बिजनैस के बारे में बात करने के लिए ही आती हैं. कोई गप्पें लड़ाने के लिए नहीं और तुम क्या समझती हो कि मैं उन के साथ बैठे क्या कोई गुलछर्रे उड़ाता हूं. समझी तुम ने उन के बारे में आज तो कह दिया आइंदा फिर ऐसा मत कहना. नहीं तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. मैं उन की बेइज्जती बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

झल्लाता हुआ विनोद पत्नी से नजरें चुराते कमरे से बाहर निकल गया. जैसे उस की चोरी पत्नी ने पकड़ ली हो. बाहर निकल कर विनोद ने एक लंबी सांस ली. वह समझ गया कि मंजू को ले कर पत्नी को शक हो गया है.

जिस दिन से अन्नू ने मंजू ठाकुर को ले कर पति विनोद को टोका था उस दिन से पतिपत्नी के रिश्तों में थोड़ी खटास आ गई. विनोद को पत्नी की यह बात बुरी लगी थी कि उस ने मंजू के बारे में उस से पूछ ने की हिम्मत कैसे की. यह पूछ कर उस ने बहुत बड़ी भूल की है. इस भूल का उसे दंड जरूर मिलेगा.

उस दिन के बाद विनोद ने रोजाना ही मंजू को घर बुलाना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं अब वह मंजू को अलग कमरे में बुला कर एकांत में बात करता.

यह देख कर अन्नू को गुस्सा आता. यह सब उस की बरदाश्त से बाहर होता जा रहा था. अन्नू ने इस का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया. नतीजा विनोद पत्नी की पिटाई करने लगा. अपने सिंदूर का बंटवारा होते हुए अन्नू नहीं देख सकती थी इसलिए वह बच्चों को ले कर मायके रांची चली जाती थी.

जब गुस्सा शांत होता तो लौट कर घर आ जाती. इस तरह अन्नू कई बार मायके जा चुकी थी. लेकिन विनोद पर इस का कोई असर नहीं पड़ा था बल्कि पत्नी के आने के बाद उसे और ज्यादा आजादी मिल जाती थी. वह मंजू के साथ बिना किसी डर के गुलछर्रे उड़ाता.

धीरेधीरे विनोद और मंजू के अनैतिक संबंधों की जानकारी अन्नू के पूरे नातेरिश्तेदारों तक फैल गई थी. विनोद की चारों ओर बदनामी हो रही थी. उसे शक हो गया था कि अन्नू ही उस की बदनामी करा रही है. इसलिए अब वह उस पर पहले से ज्यादा सितम ढाने लगा.

पत्नी के साथसाथ वह बच्चों की भी पिटाई करने लगा. वह अपनी बड़ी बेटी कीर्ति को ज्यादा मारता था. क्योंकि कीर्ति भी मंजू का विरोध करती थी. वह अपनी मां का पक्ष लेती थी.

बच्चों को बेदर्दी से पिटता देख अन्नू की जैसे जान ही निकल जाती थी. अन्नू ने एक दिन दुखी हो कर मंजू को फोन कर के कहा, ‘‘तुम दोनों अगर शादी करना चाहते हो तो कर लो. मैं कुछ नहीं बोलूंगी. तुम्हारे रास्ते से मैं हमेशा के लिए हट जाऊंगी. लेकिन मेरे बच्चों को मत सताओ.’’

अन्नू की याचना इतनी दर्दभरी थी कि उस की आंखों से आंसू टपकने लगे. लेकिन मंजू पर उस की याचना का रत्ती भर भी असर नहीं हुआ था. बल्कि वह भी तो यही चाहती थी कि अन्नू उस के रास्ते से हमेशाहमेशा के लिए हट जाए.

उसी समय मंजू की दिमाग में एक विचार आया कि क्यों न अन्नू को रास्ते से हटा दिया जाए. एक दिन मंजू ने विनोद को विश्वास में ले कर उकसाया कि अन्नू को रास्ते से हटा दो. ताकि हमें फिर किसी का डर नहीं रहे.

प्रेम में अंधे विनोद को प्रेमिका मंजू की बातें जंच गईं. पत्नी को रास्ते से हटाने के लिए वह उपाय सोचने लगा. तब मंजू ने उसे टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले सच्ची घटनाओं पर आधारित क्राइम सीरियल देखने की सलाह दी और कहा कि वहां से नएनए आइडिया मिल जाएंगे.

उस दिन के बाद से विनोद ड्यूटी से जब भी घर आता, नाश्ता वगैरह कर के टीवी पर क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देखने बैठ जाता. सीरियल से वह अपराध की उन बारीकियों को समझने की कोशिश करता था कि कैसे अपराधी अपराध कर के पुलिस के चंगुल से बच निकलने की कोशिश करते हैं.

योजना के अनुसार उस ने 20 जनवरी, 2018 को ही अन्नू पाठक को मार कर लाश को ठिकाने लगाने का मन बना लिया था. इस के लिए उस ने 16 जनवरी को पूरी योजना तैयार कर ली.

विनोद ने हत्या के लिए एक चाकू खरीदा और फुटपाथ से काले रंग की एक पोलीथिन थैली व रस्सी. यहां तक कि उस के घर के सभी तालों की 2-2 चाबियां थीं. इस के बावजूद भी उस ने एक नया ताला भी खरीदा. ताकि लाश को कमरे में बंद कर के यह अफवाह उड़ा देगा कि अन्नू नाराज हो कर घर पर ताला बंद करके मायके चली गई.

योजना के अनुसार, विनोद ने अपने तीनों मोबाइल फोन 20 जनवरी को स्विच्ड औफ कर दिए थे. वह नए नंबर से मंजू से बात करता था. ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 2 दिन पहले यानी 27 जनवरी को हुई थी.

28 जनवरी, 2018 को मंजू ठाकुर को ले कर अन्नू और विनोद में जम कर विवाद हुआ. योजनानुसार 29 को विनोद सवा 10 बजे सुबह अपने औफिस में हाजिरी लगा कर वापस घर आ गया. यह उस ने इसलिए किया ताकि 29 जनवरी को उस का औफिस में रहने का सबूत बन जाए.

जब वह घर आया तो उस समय तीनों बच्चे स्कूल गए हुए थे. तब बिना किसी गलती के उस ने पत्नी को पीटना शुरू कर दिया. पति की बेरहमी पिटाई से अन्नू टूट चुकी थी. वह जान रही थी कि इस समय पति के सिर पर इश्क का ऐसा भूत सवार है कि उन्हें फिलहाल अच्छेबुरे का ज्ञान नहीं रह गया है. पराई औरत के चलते वह अपने ही हाथों घर में आग लगाने पर लगे हैं. ऐसे में उन से कुछ भी कहना बेअसर होगा. लिहाजा वह कुछ नहीं बोली.

पत्नी की पिटाई करने के बाद विनोद कहीं चला गया. करीब सवा 12 बजे वह लौट कर घर आया. उस समय अन्नू मंजू से बात कर रही थी. पति के लौटने का अन्नू को पता नहीं चला. विनोद कान लगा कर पत्नी द्वारा फोन पर की जा रही बातचीत को सुनता रहा.

उस बातचीत से वह यह बात समझ गया कि अन्नू इस समय मंजू से बात कर रही है. उस समय अन्नू मंजू से पति की शिकायत कर रही थी. अपनी शिकायत सुन कर विनोद अपना आपा खो बैठा. फिर क्या था उस ने अन्नू के पीछे जा कर एक हाथ से उस का मुंह बंद किया और दूसरे हाथ से तेज धार वाले चाकू से गला रेत दिया.

खून का फव्वारा फूट पड़ा और अन्नू फर्श पर गिर कर तड़पने लगी. कुछ ही देर में वह शांत हो गई. इस के बाद प्रेमिका मंजू ठाकुर को फोन कर विनोद ने पत्नी की हत्या करने की जानकारी दे दी. यह सुन कर मंजू पहले तो घबरा गई फिर बाद में खुश भी हुई कि अब हमारे बीच का अन्नू नाम का कांटा सदा के लिए निकल गया.

मंजू ने उसे सलाह दी कि वह वहां पर कोई भी सबूत न छोड़े. उस का सिर धड़ से काट कर अलग कर दे. सिर और धड़ दोनों को 2 अलगअलग पौलीथिन की थैलियों में भर कर उसे दीवान में छिपा दे.

मति के मारे विनोद ने वैसा ही किया. जैसा उस की प्रेमिका इंसपेक्टर मंजू ने करने को कहा. कमरा बंद कर के वह सबूत मिटाने में जुट गया. उसे डर था कि जल्दी से लाश ठिकाने नहीं लगाई और सबूत नहीं मिटाए तो बच्चों के स्कूल से घर आने पर सारा भेद खुल जाएगा.

सबूत मिटाने और लाश ठिकाने लगाने में उसे ढाई घंटे से ज्यादा लगे. सिर और धड़ को अलगअलग कर के पौलीथिन थैली और प्लास्टिक बैग में पैक कर दीवान के बौक्स में डाल दिया. फिर कमरे में नया ताला लगा कर चाबी अपनी जेब में रख कर दोबारा औफिस चला गया. शाम 4 बजे तीनों बच्चे स्कूल से घर लौटे तो कमरे पर ताला बंद देख हैरान रह गए. कीर्ति पड़ोस में आंटी के यहां मां के बारे में पता लगाने गई. लेकिन वहां से कुछ पता नहीं चला.

बच्चे जब स्कूल गए थे तो उन की मां अन्नू घर में ही थी. अचानक कहां चली गई ये सोच कर वे परेशान हो गए. शाम करीब 5 बजे विनोद जब ड्यूटी से घर लौटा तो कीर्ति ने उससे मां के बारे में पूछा, इधरउधर का बहाना बनाते हुए विनोद ने कहा कि बेटा तुम्हारी मां नाराज हो कर अपने मायके चली गई है.

तब कीर्ति ने अपनी ननिहाल फोन किया तो पता चला कि उस की मां वहां आई ही नहीं है. ये सुन कर कीर्ति का माठा ठनक गया. उसे लगने लगा कि कहीं पापा ने मां के साथ कोई अनहोनी घटना तो न कर दी. कीर्ति बारबार पिता से मां के बारे में पूछ ने लगी तो विनोद घबरा गया. उसे लगा कि कहीं भेद न खुल जाए, तभी उस के दिमाग में आया कि क्यों न इसे भी मार दे न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी.

ये सोच कर विनोद उसे पकड़ने के लिए उस की ओर लपका. लेकिन पिता की बुरी मंशा भांप कर कीर्ति तेजी से भाग कर पड़ोस वाली आंटी के घर चली गई. जबकि उस के छोटे भाईबहन घर में भीगी बिल्ली बने दुबके रहे. कीर्ति रात को भी अपने घर नहीं आई. विनोद रात में उसी दीवान पर सोया जिस में अन्नू की लाश छिपा रखी थी.

बहरहाल, 18 फरवरी, 2018 को पुलिस ने फरार विनोद पाठक को कोडरमा के रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया. विनोद ने अपने औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर को फोन कर के कहा था कि वह अपनी कार से उस के पास आ जाए. उसे अभी डोभी जाना है. तब सुपरवाइजर अपनी इंडिगो कार ले कर विनोद के घर पहुंच गया था.

आरोपी विनोद ने पुलिस को बताया कि हत्या करने के बाद वह अपने ही औफिस के सिक्योरिटी सुपरवाइजर की इंडिगो कार से डोभी तक गया था. इस मामले में सिक्योरिटी सुपरवाइजर और उस की पत्नी से भी पुलिस ने पूछताछ की.

विनोद पाठक ने यह भी कबूल किया कि पत्नी की हत्या करने के बाद वह सीधा प्रेमिका मंजू ठाकुर के पास खून से लथपथ पहुंचा था और हत्या के बारे में पूरी जानकारी दी. पुलिसिया पूछताछ में मंजू ने यह भी बताया था कि अन्नू का सिर से धड़ अलग करने का आइडिया उस ने ही दिया था.

मंजू ने विनोद पाठक को हत्या करने के बाद अलगअलग जगहों पर लाश छिपाने का तरीका भी बताया था. घटना के बाद मंजू ठाकुर और विनोद पाठक के बीच 32 बार फोन पर बातचीत हुई थी. मंजू विनोद के कौन्टेक्ट में लगातार रही.

वह नए नंबर से मंजू से बात करता था ताकि किसी को शक न हो. मंजू से विनोद की आखिरी बात पीसीओ से 27 जनवरी को हुई थी. पुलिस इस बात की जांच भी कर रही है कि विनोद जिस वक्त अपनी पत्नी की गला रेत कर हत्या कर रहा था, तब किस शख्स ने उस की मदद की.

पुलिस ने आरोपी इंसपेक्टर मंजू ठाकुर और विनोद कुमार को सीजेएम की अदालत में पेश किया. अदालत ने दोनों को जेपी केंद्रीय कारागार भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक आरोपी विनोद पाठक और मंजू ठाकुर जेल सलाखों के पीछे कैद थे. पुलिस सनसनीखेज तरीके से की गई हत्या के दोनों आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही थी. मंजू ठाकुर की ओर से जमानत के लिए अदालत में अर्जी दाखिल की गई थी, जो न्यायाधीश सत्येंद्र सिंह ने खारिज कर दी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम ऐसा नहीं होता : प्यार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध नहीं

सिंहपुर निवासी अनीता द्विवेदी सुबह को कुछ महिलाओं के साथ गंगा बैराज  रोड पर मार्निंग वाक पर निकलीं. महिलाओं के साथ वाक करते हुए जब वह हरी चौराहे पर पहुंचीं तो उन्होंने रोड किनारे की झाडि़यों में एक युवती का शव पड़ा देखा. वहीं ठिठक कर उन्होंने साथी महिलाओं को भी बुला लिया.

थोड़ी ही देर में शव देखने वालों की भीड़ जुटने लगी. इसी बीच अनीता द्विवेदी ने मोबाइल फोन से इस की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 8 मार्च, 2018 की थी.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी तुलसी राम पांडेय पुलिस टीम के साथ सिंहपुर स्थित हरी चौराहा पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटा कर वह उस जगह पहुंचे, जहां युवती की लाश पड़ी थी. लाश किसी नवविवाहिता की थी. उस के दोनों हाथों में मेंहदी रची थी और कलाइयों में सुहाग चूडि़यां थीं.

उस की उम्र 25 वर्ष के आसपास थी और वह गुलाबी रंग का सूट पहने थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि युवती की हत्या कहीं और की गई थी, जिस के बाद शव को गंगा बैराज रोड किनारे फेंक दिया गया था.

चूंकि मामला एक नवविवाहिता की हत्या का था, इसलिए इंसपेक्टर तुलसीराम पांडे ने कत्ल की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर, एसपी (पूर्व) अनुराग आर्या तथा सीओ भगवान सिंह भी वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

इस के बाद मौके पर आई फोरेंसिक टीम ने जांच की. युवती के गले पर कपड़े से कसे जाने के साथसाथ उंगलियों के निशान भी थे, जिस से टीम ने संभावना जताई कि युवती की हत्या गला घोंट कर की गई थी. युवती के सिर में दाईं ओर चोट का निशान तथा शरीर पर आधा दरजन खरोंच के निशान थे. टीम ने फिंगरप्रिंट लिए तथा अन्य साक्ष्य भी जुटाए.

काफी कोशिश के बाद भी युवती के शव की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. पुलिस शिनाख्त के लिए लोगों से पूछताछ कर रही थी. इसी बीच भीड़ में से एक युवक आगे आया और शव को झुक कर गौर से देखने लगा. इत्मीनान हो जाने के बाद वह एसपी अनुराग आर्या से बोला, ‘‘साहब यह लाश पूनम की है.’’

‘‘कौन पूनम, पूरी बात बताओ?’’

‘‘साहब, मेरा नाम श्याम मिश्रा है. मैं बैकुंठपुर गांव का रहने वाला हूं. हमारे गांव में शिवशंकर मौर्या रहते हैं. पूनम उन्हीं की बेटी थी.’’

श्याम मिश्रा की बात सुन कर एसपी अनुराग आर्या ने तत्काल पुलिस भेज कर शिवशंकर व उन के घर वालों को बुला लिया. शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती ने जब बेटी का शव देखा तो वह बिलख पड़े. प्रियंका भी बड़ी बहन पूनम का शव देख कर रोने लगी. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी को धैर्य बंधाया और आश्वासन दिया कि पूनम के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा.

शव की शिनाख्त हो जाने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में पूनम के शव का पंचनामा भरवा कर शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. साथ ही सुरक्षा की दृष्टि से 2 सिपाहियों और एक दरोगा की ड्यूटी पोस्टमार्टम हाउस पर लगा दी.

इस के बाद इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे ने शिवशंकर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई  दुश्मनी नहीं है. न ही जमीन जायदाद का झगड़ा है. उसे नहीं मालूम कि पूनम की हत्या किस ने और क्यों कर दी. चूंकि शिवशंकर ने किसी पर शक नहीं जताया था, इसलिए तुलसीराम पांडे ने शिवशंकर को वादी बना कर धारा 302 आईपीसी के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर दी.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एसपी (पश्चिम) गौरव ग्रोवर ने सीओ भगवान सिंह के निर्देशन में पूनम की हत्या का राज खोलने के लिए एक सशक्त पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में बिठूर इंसपेक्टर तुलसी राम पांडे, सबइंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, संजय मौर्या, राजेश सिंह, सिपाही रघुराज सिंह, देवीशरण सिंह तथा मोहम्मद खालिद को शामिल किया गया.

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पुलिस टीम ने अपनी जांच मृतका के पिता शिवशंकर मौर्या से शुरू की. पुलिस ने मृतका के पिता का विधिवत बयान दर्ज किया. अपने बयान में शिवशंकर ने बताया कि उस ने पूनम की शादी 17 फरवरी, 2018 को सामूहिक विवाह समारोह में उन्नाव जिले के गांव परागी खेड़ा निवसी अंकुश मौर्या के साथ की थी.

20 फरवरी को वह पूनम की चौथी ले आया था, तब से वह मायके में ही थी. 7 मार्च को पूनम दोपहर बाद दवा लेने आस्था नर्सिंगहोम सिंहपुर गई थी. जाते समय वह अपना मोबाइल फोन घर पर ही भूल गई थी. अलबत्ता उस के पास दूसरा मोबाइल था. शाम 6 बजे तक जब वह वापस नहीं आई तो चिंता हुई. उस का मोबाइल भी बंद था.

शादी के पहले पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी, इसलिए हम ने सोचा कि शायद वह वहीं रुक गई होगी, सुबह तक आ जाएगी. लेकिन सुबह उस की मौत की खबर मिली. पूनम घर से जाते वक्त पूरे जेवर पहने हुए थी, जो गायब थे.

शिवशंकर के बयान से पुलिस टीम को शक हुआ कि कहीं पूनम के पति अंकुश ने जेवर हड़प कर उस की हत्या तो नहीं कर दी. पुलिस टीम ने घर में रखा पूनम का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले लिया और परागी खेड़ा निवासी पूनम के पति अंकुश को हिरासत में ले कर पूछताछ की.

अंकुश ने पुलिस को बताया कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. वह तो पूनम से बहुत प्यार करता था. वह उसे लेने जाने ही वाला था कि उस की मौत की खबर मिल गई.

अंकुश ने पुलिस टीम को एक चौंकाने वाली जानकारी भी दी. उस ने बताया कि पूनम जब ससुराल में थी, तब उस के मोबाइल पर अकसर गोलू नाम के किसी युवक का फोन आता था. देर रात भी वह उस से बातें किया करती थी. पूछने पर पूनम ने बताया था कि गोलू उस का मौसेरा भाई है.

पुलिस टीम ने गोलू के संबंध में शिवशंकर से पूछताछ की तो यह बात गलत निकली कि गोलू पूनम का मौसेरा भाई है. पुलिस टीम ने पूनम के मोबाइल के संबंध में जानकारी जुटाई तो पता चला कि वह मोबाइल चोरी का है, लेकिन सिम कार्ड नीरज के नाम का है, जो नयापुरवा हिंगूपुर का रहने वाला है. पुलिस ने रात में छापा मार कर नीरज उर्फ गोलू को हिरासत में ले लिया.

थाना बिठूर ला कर जब नीरज उर्फ गोलू से पूनम की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने साफसाफ कहा कि पूनम की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन जब उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गई तो वह जल्दी ही टूट गया और उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया.

नीरज ने बताया कि पूनम ने उस के साथ बेवफाई की थी इसीलिए उस ने उसे मौत की नींद सुला दिया. पुलिस टीम ने नीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल दुपट्टा, पूनम का मोबाइल, मय लौकेट के मंगलसूत्र, सोने की अंगूठी, टौप्स, पायल, बिछिया वगैरह बरामद कर लिए.

चूंकि नीरज उर्फ गोलू ने पूनम की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने नीरज को हत्या के जुर्म में नामजद कर गिरफ्तार कर लिया. नीरज के बयानों के आधार पर प्रेमिका की बेवफाई की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस तरह थी.

कानपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर है ऐतिहासिक कस्बा बिठूर. इस कस्बे से 2 किलोमीटर दूर एक गांव बैकुंठपुर है. मिलीजुली आबादी वाले इस गांव में शिवशंकर मौर्या अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी शिवकांती के अलावा 2 बेटियां पूनम, प्रियंका तथा एक बेटा अमन था. शिवशंकर लोडर चालक था. मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार के भरण पोषण करता था.

भाईबहनों में पूनम सब से बड़ी थी. वह खूबसूरत तो थी ही पर जैसेजैसे जवानी चढ़ी वह उस के बदन को सजाती गई. पूनम की खूबसूरती और निखरती गई. यौवन के फूल खिलते हैं तो उन की मादक महक फिजा में फैलती ही है. ऐसे में भंवरों का फूलों के इर्दगिर्द मंडराना स्वाभाविक है. मनचले भंवरे पूनम के इर्दगिर्द मंडराते तो उसे अच्छा लगता.

पूनम जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़नेलिखने में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी और आगे पढ़ना चाहती थी. लेकिन मातापिता के विरोध की वजह से आगे न पढ़ सकी और मां के घरेलू कामों में हाथ बंटाने लगी. हालांकि पूनम को चौकाचूल्हा पसंद न था, लेकिन मां के दबाव में उसे सब करना पड़ता था.

एक रोज पूनम की मुलाकात सरिता से हुई. सरिता उस की दूर की रिश्तेदार थी और किसी काम से उस के घर आई थी. सरिता सिंहपुर स्थित आस्था नर्सिंग होम में काम करती थी. बातचीत के दौरान पूनम ने सरिता से नौकरी करने की इच्छा जाहिर की तो सरिता उसे नौकरी दिलाने के लिए राजी हो गई.

लेकिन मां ने पूनम को नौकरी करने के लिए साफ मना कर दिया. कुछ माह तक पूनम अपनी मां शिवकांती को नौकरी के लिए मनाती रही लेकिन जब वह नहीं मानी तो पूनम ने अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘मां, तुम राजी हो या न हो, अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए मैं नौकरी करूंगी.’’

पूनम के निर्णय के आगे शिवकांती को झुकना पड़ा. इस के बाद पूनम आस्था नर्सिंग होम में काम करने लगी. पूनम के गांव से सिंहपुर ज्यादा दूर नहीं था. वहां आनेजाने के साधन भी थे. अत: उसे नर्सिंग होम आनेजाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. कभीकभी अस्पताल में ज्यादा महिला मरीज होती या प्रसव कराने का मामला होता तो पूनम को रात में भी रुकना पड़ता था. रुकने की खबर वह मोबाइल से घर वालों को दे देती थी.

पूनम को नौकरी करते हुए 2 महीने बीत गए तो उस ने कुछ पैसा बचाने की सोची. इस के लिए बैंक खाता जरूरी था. इसलिए वह बैंक में खाता खुलवाने का प्रयास करने लगी. पूनम जिस आस्था नर्र्सिंग होम में काम करती थी उस के ठीक सामने रोड के उस पार भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा थी.

एक रोज वह बैंक पहुंची तो वहां उस की मुलाकात एक हृष्टपुष्ट युवक नीरज उर्फ गोलू से हुई, पहली ही नजर में खूबसूरत पूनम, नीरज के दिल में रच बस गई.

नीरज उर्फ गोलू बिठूर थाने के नयापुरवा (हिंगूपुर) गांव का रहने वाला था. उस के पिता केशव मौर्या मेहनतमजदूरी कर के अपना परिवार चलाते थे. 3 भाईबहनों में नीरज सब से बड़ा था. साधारण पढ़ा लिखा नीरज पेशे से मैकेनिक था.

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बैंक में मनोज नाम के व्यक्ति का जनरेटर लगा था. इस जनरेटर का औपरेटर नीरज था. बिजली चली जाने पर वह जनरेटर चालू करता था. सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक उस की ड्यूटी बैंक में रहती थी.

पूनम और नीरज पहली ही मुलाकात में एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए. पूनम ने जब नीरज से खाता खुलवाने की बात कही तो उस ने भारतीय स्टेट बैंक की सिंहपुर शाखा में पूनम का खाता खुलवा दिया.

खाता खुला तो पूनम का बैंक में आनाजाना शुरू हो गया. नीरज जब भी पूनम को देखता, मदहोश सा हो जाता था. वह उस से एकांत में मिलने का मौका तलाश करने लगा. पूनम जब बैंक आती तो वह नजरें चुरा कर पूनम को निहारता रहता था.पूनम नीरज की नजरों की भाषा खूब समझती थी. एक दिन जब पूनम आई तो वह उस का हाथ पकड़ कर उसे बैंक के जीने के नीचे ले गया. वहां एकांत था. वहां नीरज ने पूनम का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘पूनम मैं तुम से बहुत प्यार करने लगा हूं.’’

पूनम खामोश रही तो उस ने अपनी बात दोहराते हुए फिर कहा, ‘‘पूनम, अगर तुम ने मेरे प्यार को स्वीकार नहीं किया तो मैं अपनी जान दे दूंगा. अब एक पल भी तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘कैसी बात करते हो नीरज, इस तरह किसी लड़की का हाथ पकड़ना कहां की सभ्यता है?’’ पूनम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘‘तुम प्यार करते हो तो यह ठीक है, पर मैं तुम से प्यार नहीं करती.’’ पूनम की मुसकराहट से नीरज की हिम्मत बढ़ गई. उस ने पूनम को अपने आगोश में भर लिया.

पूनम उस के सीने से चिपट कर बोली, ‘‘नीरज, मैं भी तुम से प्यार करती हूं और काफी दिनों से तुम मेरे दिल में बसे हुए हो, मैं चाहती थी कि शुरुआत तुम करो. बताओ, मुझे जीवन के किसी मोड़ पर धोखा तो नहीं दोगे.’’

‘‘तुम मेरे मन में बस गई हो पूनम, भला मैं तुम्हें कैसे धोखा दे सकता हूं. तुम तो मेरी जिंदगी हो.’’

नीरज की ये विश्वास भरी बातें सुन कर पूनम समर्पण की भावना के साथ उस से लिपट गई. धीरेधीरे दोनों का प्यार अमरबेल की तरह बढ़ने लगा. पूनम के दिल में नीरज गहराई तक उतरता चला गया. बैंक के जीने के नीचे का एकांत स्थल उन के मिलने की पसंदीदा जगह बन गया. इस सब के चलते एक दिन दोनों के बीच मर्यादा की सारी दीवारें भी ढह गईं.

उस रोज जैसे ही पूनम अस्पताल की ओर बढ़ी, नीरज बीच रास्ते में उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘शाम 6 बजे बैंक आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.’’

पूनम को लगा, जैसे उस का दिल उछल कर सीने से बाहर आ जाएगा. अस्पताल में उस का पूरा दिन बेचैनी से गुजरा. वह सोचती रही कि नीरज ने बुलाया है तो जाना तो पड़ेगा ही. वह खुद भी नीरज से मिलना चाहती थी.

ज्योंज्यों दिन ढलने लगा, पूनम की बेचैनी बढ़ने लगी. मिलने का तयशुदा वक्त आया तो पूनम तेज कदमों से बैंक की ओर बढ़ गई. बैंक के करीब पहुंचते ही नीरज उसे दिख गया. वह बैंक के जीने की सीढि़यों पर बैठा था. तब तक बैंक बंद हो गई थी और सन्नाटा पसरा था. नीरज, पूनम का हाथ पकड़ कर जीने की सीढि़यां चढ़ते हुए छत पर पहुंचा.

वहां घुप अंधेरा था. नीरज ने बिना कुछ कहे सुने उसे बांहों में भर लिया और उस के नाजुक अंगों से खेलने लगा. दोनों ही खुद पर काबू न रख सके और अपनी हसरतें पूरी कर लीं. कुछ देर बाद जब नीरज ने पूनम को खुद से अलग किया तो उस ने महसूस किया कि वह अपना बहुत कुछ खो बैठी है.

वह फफकफफक कर रोने लगी तो नीरज ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पूनम, मैं तुम से प्यार करता हूं. मेरा वादा है कि मैं तुम से ही शादी करूंगा. रोने की जरूरत नहीं है, जो मेरी अमानत थी, वह मैं ने ले ली. वादा करो फिर मिलोगी.’’

पूनम ने नीरज को गहरी नजरों से देखा और उस से फिर मिलने का वादा कर के अपने घर चली गई. इस के बाद पूनम अकसर शाम को नीरज से उसी जगह एकांत में मिलती. नीरज से मिलने के चक्कर में पूनम को घर आने में देर हो जाती थी. मां पूछती तो पूनम बहाना बना देती. लेकिन धीरेधीरे सब कुछ शिवकांती की समझ में आने लगा था. शिवकांती ने अपने पिता शिवशंकर से कहा, ‘‘जल्दी से पूनम के हाथ पीले कर दो, वरना हाथ मलते रह जाओगे. लड़की के पर निकल आए हैं.’’

पत्नी की बात शिवशंकर को सही लगी. वह पूनम के ब्याह के लिए दौड़धूप करने लगा. पूनम को विवाह की जानकारी हुई तो वह घबरा गई. उस ने अपने विवाह की जानकारी नीरज को दे कर कहा, ‘‘गोलू, जल्दी से कोई उपाय खोजो, वरना मैं किसी और की दुलहन बन कर चली जाऊंगी और तुम ताकते रह जाओगे.’’

‘‘ऐसा कभी नहीं होगा पूनम. तुम्हें अपना बनाने का मेरे पास एक उपाय है.’’

‘‘क्या उपाय है?’’ पूनम ने पूछा.

‘‘यही कि तुम मेरे साथ भाग चलो. कहीं जा कर हम दोनों शादी कर लेंगे. इस के बाद कोई भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.’’

‘‘ठीक है, मुझे सोचने समझने का मौका दो.’’

फिर एक दिन नीरज की मीठीमीठी बातों में आ कर पूनम घरपरिवार से नाता तोड़ कर सपनों की सजीली दुनिया में जीने के लिए उस के साथ उड़ गई. वह बैंक से पैसा निकाल कर भी अपने साथ ले गई.

इधर देर रात तक जब पूनम घर नहीं पहुंची तो मां शिवकांती को चिंता हुई मां ने उसे तलाश भी किया, लेकिन पूनम का कोई पता न चला. शिवशंकर घर आए तो शिवकांती ने उन्हें बताया कि पूनम अभी तक अस्पताल से नहीं आई है. शिवशंकर ने  आस्था नर्सिंग होम की औपरेटर से बात की.

उस ने बताया कि पूनम आज ड्यूटी पर नहीं आई थी. यह जानकारी पा कर शिवशंकर भौचक्के रह गए. उन्होंने अपने स्तर पर पूनम को सभी जगह तलाश किया, लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

जवान बेटी के भाग जाने से शिवशंकर की बिरादरी व रिश्तेदारों में थूथू होने लगी थी. इसलिए वह पूनम की खोज में जीजान से जुटे थे. 2 दिन बाद शिवशंकर को आस्था नर्सिंग होम की एक महिला कर्मचारी से पता चला कि पूनम की दोस्ती बैक के जनरेटर औपरेशन नीरज से थी. पूनम शायद उसी के साथ गई होगी.

यह अहम जानकारी मिली तो शिवशंकर ने नीरज के संबंध में जानकारी जुटाई. पता चला कि नीरज भी गायब है. शिवशंकर नीरज के गांव नयापुरवा (हिंगूपुर) गए तो उस के घर वालों ने बताया कि नीरज एक सप्ताह के लिए कहीं बाहर घूमने गया है. इस से शिवशंकर को पक्का यकीन हो गया था कि नीरज ही पूनम को बहलाफुसला कर भगा ले गया है. इस पर शिवशंकर ने थाना बिठूर में नीरज के विरुद्ध प्रार्थना पत्र दे कर बेटी की बरामदगी की गुहार लगाई.

पुलिस पूनम को बरामद कर पाती, उस के पहले ही पूनम अपने ननिहाल आजादनगर (कानपुर)  पहुंच गई. उस ने अपने नाना बाबूलाल को बताया कि उस ने अपने प्रेमी नीरज से मंदिर में शादी कर ली है. बाबूलाल ने इस की जानकारी शिवशंकर को दी तो वह पूनम को समझा कर घर ले आए.

इस के बाद घर वालों के दबाव और पुलिस हस्तक्षेप से नीरज और पूनम अलगअलग रहने को राजी हो गए. दरअसल, पुलिस ने जब नीरज को जेल भेजने की धमकी दी तो वह घबरा गया और पुलिस की बात मान ली.

इस घटना के बाद कुछ समय के लिए नीरज और पूनम का मिलनाजुलना बंद हो गया. लेकिन बाद में दोनों चोरीछिपे फिर मिलने लगे. इसी बीच नीरज ने वक्त बेवक्त बात करने के लिए पूनम को एक मोबाइल फोन दे दिया. फोन में सिम उसी के नाम का था.

पूनम को मोबाइल मिला तो दोनों में बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. पूनम को जब भी मौका मिलता, वह नीरज से लंबी बातें करती और प्यार की दुहाई देती.

शिवशंकर ने पूनम की अस्पताल वाली नौकरी अब छुड़वा दी थी, इसलिए पूनम घर पर ही रहती थी. शिवकांती भी बेटी पर कड़ी नजर रखने लगी थी. इसी बीच शिवशंकर को मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना की जानकारी मिली तो उस ने अपनी बेटीपूनम का रजिस्टे्रशन करा दिया. इस योजना के तहत वरवधू को 20 हजार रुपए का चेक, घरगृहस्थी का सामान तथा वधू को आभूषण व वस्त्र दिए जाने का प्रावधान था.

वरवधू का परिचय सम्मेलन हुआ तो शिवशंकर भी अपनी पत्नी शिवकांती व बेटी पूनम को साथ ले कर पहुंचा. शिवशंकर ने उन्नाव जिले के परागी खेड़ा गांव निवासी राजवीर मौर्या के पुत्र अंकुश मौर्या को अपनी बेटी पूनम के लिए पसंद कर लिया.

पूनम और अंकुश ने भी एकदूसरे को देख कर हामी भर दी. 17 फरवरी, 2018 को सामूहिक विवाह में पूनम की शादी अंकुश से हो गई.

शादी के बाद पूनम, अंकुश की दुलहन बन कर ससुराल पहुंच गई. चूंकि पूनम सुंदर थी. उसे जिस ने भी देखा उसी ने उस के रूप सौंदर्य की तारीफ की. अंकुश स्वयं भी सुंदर पत्नी पा कर खुश था. सजीला पति पा कर पूनम भी खुश थी. फिर भी उसे अपने प्रेमी नीरज की रहरह कर याद आ रही थी. सुहागरात को भी वह नीरज को भुला नहीं पाई थी.

ससुराल में पूनम मात्र 3 दिन ही रही. इस बीच नीरज फोन कर के उस से बातें करता रहा. अंकुश ने बारबार फोन आने पर पूनम को टोका तो वह बोली, ‘‘गोलू का फोन आता है. गोलू मेरी मौसी का लड़का है.’’ अंकुश ने सहज ही पूनम की बात पर यकीन कर लिया.

20 फरवरी को शिवशंकर अपनी बेटी पूनम को ससुराल से लिवा लाया. दरअसल परंपरा के हिसाब से नवविवाहिता ससुराल में पहली होली जलती नहीं देख सकती थी. इसी परंपरा की वजह से शिवशंकर होली से 8 दिन पहले ही पूनम को ले आया था. मायके आते ही पूनम स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगी. उस पर किसी तरह की बंदिश नहीं थी.

पूनम के पास मोबाइल फोन पहले से ही था. पहले जब वह अपने पूर्व पे्रेमी नीरज से बात करती थी तो उसी के दिए गए मोबाइल से फोन करती थी. वह नीरज से दिन में कईकई बार बात करती थी. बातचीत के दौरान वह खूब खिलखिला कर हंसती थी और नीरज को शादी करने की सलाह देती थी.

चूंकि पूनम ने नीरज के साथ बेवफाई की थी सो उसे पूनम की खिलखिलाहट और सलाह नागवार लगती थी. वह नफरत से भर उठता था. जैसेजैसे दिन बीतते गए उस की नफरत भी बढ़ती गई. आखिर उस ने पूनम को सबक सिखाने की ठान ली.

7 मार्च, 2018 की दोपहर नीरज ने पूनम  से मीठीमीठी बातें कीं और शाम को मिलने के लिए बैंक बुलाया. दोपहर बाद पूनम ने साज शृंगार किया, फिर मां को बताया कि उस के पेट में दर्द है. वह दवा लेने आस्था नर्सिंग होम सिंहपुर जा रही है. शिवकांती ने उसे जल्दी घर लौट आने की नसीहत दे कर दवा लाने की इजाजत दे दी.

पूनम शाम साढ़े 4 बजे सिंहपुर स्थित भारतीय स्टेट बैंक शाखा पहुंची. नीरज वहां जनरेटर के पास कुरसी डाले बैठा था. पूनम के आते ही उस ने कुटिल मुसकान बिखेरी, फिर पूनम को बैंक के बगल से जाने वाले जीने की सीढि़यों पर ले गया. वहां बैठ कर दोनों बातें करने लगे. बातचीत के दौरान नीरज ने पूनम से छेड़छाड़ शुरू की तो उस ने विरोध करते हुए कहा कि अब वह किसी और की अमानत है. लेकिन नीरज नहीं माना और उस ने शारीरिक भूख शांत कर ली.

शारीरिक संबंध बनाने के बाद नीरज ने पूनम पर बेवफाई का आरोप लगाया तो पूनम झगड़ने लगी. फलस्वरूप दोनों में हाथापाई होने लगी. गुस्से में नीरज ने पूनम का सिर जोर से दीवार पर टकरा दिया, जिस से वह बेहोश हो कर गिर पड़ी. यह देख वह बुदबुदाया, ‘‘बेवफा औरत, तू मेरी नहीं हुई तो मैं तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा. आज मैं तुझे बेवफाई की सजा दे कर रहूंगा.’’ कहते हुए नीरज ने पूनम के गले में उसी का दुपट्टा कस दिया और फिर गला घोंट दिया.

पूनम को मौत के घाट उतारने के बाद नीरज ने उस के शरीर से सारे आभूषण उतारे और मोबाइल फोन अपने पास रख लिया. इस के बाद वह लाश को सीढि़यों पर ही छोड़ कर चला गया.

लगभग 3 घंटे तक लाश सीढि़यों पर ही पड़ी रही. रात लगभग साढ़े 9 बजे नीरज पुन: बैंक आया. सन्नाटा देख कर उस ने पूनम का शव कंधे पर लाद कर सीढि़यों से उतारा और उसे बाइक पर रख कर गंगा बैराज रोड के किनारे झाडि़यों में फेंक कर फरार हो गया.

इधर जब देर रात तक पूनम दवा ले कर घर नहीं लौटी तो शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती को चिंता हुई. रातभर दोनों परेशान रहे. दूसरे रोज शिवशंकर पूनम को पता लगाने आस्था नर्सिंगहोम जा ही रहा था कि पुलिस जीप उस के दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. जीप में बैठे पुलिसकर्मी शिवशंकर व उस की पत्नी शिवकांती को गंगा बैराज स्थित हरी चौराहा ले गए. जहां उन को पूनम की लाश मिली.

शिवशंकर ने अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने जांच आगे बढ़ाई तो नीरज उर्फ गोलू संदेह के घेरे में आ गया. उसे गिरफ्तार कर जब पूछताछ की गई तो उस ने हत्या का जुर्म कबूल कर मृतका पूनम के आभूषण व मोबाइल बरामद करा दिए.

12 मार्च, 2018 को थाना बिठूर पुलिस ने अभियुक्त नीरज उर्फ गोलू को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

शाकाहार को अपनी पहली पसंद बना रही है सारी दुनिया

कुछ माह पहले मेरे मित्र ने कहा कि उस का बेटा होटल मैनेजमैंट का कोर्स करना चाहता है पर वह उसे इस की इजाजत नहीं दे रहा, क्योंकि वह बेटे को किसी भी सूरत में मीट और अंडों के साथ काम नहीं करने देना चाहता था. मुझे तब चंद्रशेखर भूनिया का मामला याद आया. वे एक चार्टर्ड अकाउंटैंट हैं और उन्हें लगा कि शाकाहारियों के लिए होटल मैनेजमैंट का कोर्स करना असंभव है, क्योंकि उन्हें पशुओं को काटना और पकाना सीखना ही होता है. उन्होंने मंत्रियों, अफसरों और अपने समाज के लोगों को पत्र लिखने शुरू किए कि यह अनिवार्यता गलत है. उन्होंने दिल्ली आ कर इस की पैरवी शुरू की.

उन का कहना था कि कुछ वर्गों में केवल शाकाहारी खाना ही खाया जाता है और उस वर्ग के छात्र होटल मैनेजमैंट के कोर्स में मीट पकाना सीख कर क्या करेंगे जबकि उन्हें पूरे जीवन शाकाहारी खाना ही बनाना है. यह उन की मार्केट मांग, परिवार की इच्छा, पारिवारिक मूल्यों के खिलाफ है. मैं ने खुद स्कूल में बायोलौजी नहीं ली थी, क्योंकि उस में पशुओं को काटना पड़ता था.

एक ढर्रे पर चलना

होटल मैनेजमैंट कोर्स में 40 से ज्यादा विषय होते हैं, जिन में कानून, फ्रंट औफिस की देखरेख, टिकटिंग, रहने की सुविधा, कमरों की बुकिंग, मांसाहारी खाना बनाना सीखने की अनिवार्यता कर के अन्य क्षेत्रों की जानकारी से वंचित करना गलत है.

इस क्षेत्र के ढर्रे पर चल कर हम अपनी शाकाहारी पाककला को विश्व भर में फैलाने से भी रोक रहे हैं. चूंकि होटल मैनेजमैंट कोर्स में जाने वाले सारे मांसाहारी ही होते हैं, इसलिए उन्हें शाकाहारी के नियमों का और संवेदनशीलताओं का खयाल नहीं रहता. वे शाकाहारी खाने में मांसाहारी चीजें खासतौर पर अंडे इस्तेमाल करने में हिचकते नहीं हैं. वे ऐनिमल फैट्स में शाकाहारी खाने को तलने में भी कोई परहेज नहीं करते.

शाकाहारी आंदोलन अब विश्व भर में तेजी से फैल रहा है और अब हजारों होटल केवल शाकाहारियों के खुल गए हैं. कुछ रेस्तराओं, एअरलाइंस और पर्यटन शिप केवल शाकाहारी खाना ही परोसते हैं. शाकाहारी कुकिंग सीख कर लोग आसानी से इन क्षेत्रों में नौकरियां पा सकते हैं.

हमारे देश के बहुत से उत्सवों, विवाहों, पर्वों में केवल शाकाहारी खाना दिया जाता है. वहां अच्छे ट्रेंड किए शैफों की बहुत आवश्यकता रहती है.

कोर्स में न हों शर्त

अगर केवल शाकाहारियों को बिना शर्तों के होटल मैनेजमैंट कोर्सों में लिया जाए तो उन्हें अच्छा टेलैंट भी मिलेगा, क्योंकि 12वीं कक्षा में अच्छे अंक पाने वाले बहुत से छात्रछात्राएं इस क्षेत्र की ओर रुख ही नहीं करते. अगर यह कोर्स केवल शाकाहारियों के लिए स्थान लाए तो गृहिणियां भी यह कोर्स करना पसंद करेंगी.

ढाबों और छोटे रेस्तराओं में जो केवल शाकाहारी खाना परोसते हैं, अकसर क्वालिटी ठीक नहीं होती, क्योंकि वहां प्रशिक्षण की कमी रहती है. मुझे खुद अच्छे, सस्ते, साफ, सड़क के किनारे बने शाकाहारी खाने की जगहों की कमी अकसर दिखती है, क्योंकि मुझे दौरों पर बहुत रहना होता है.

चंद्रशेखर के प्रयासों का नतीजा है कि अहमदाबाद, भोपाल और जयपुर की कुछ होटल मैनेजमैंट संस्थाओं ने अलग शाकाहारी  किचन बनाने का फैसला लिया है. यह शाकाहारियों के लिए अच्छी खबर है.

शादी छोड़ सकती थी स्काई डाइविंग नहीं : शीतल राणे महाजन

महाराष्ट्र के पुणे शहर में जन्मीं 35 वर्षीय जांबाज शीतल राणे महाजन देश की पहली महिला प्रोफैशनल पैराशूट जंपर और स्काई डाइवर हैं. 2004 के बाद से शीतल ने स्काई डाइविंग में विश्व चैंपियनशिप में प्रतिनिधित्व किया है. शीतल ने आज तक 705 पैराशूट जंप किए हैं. ये सारे जंप उन्होंने 13,500 फुट की ऊंचाई से किए हैं. कुछ जंप उन्होंने 18,000 फुट से औक्सीजन ले कर और 1 जंप उन्होंने 30,500 फुट की ऊंचाई से औक्सीजन मास्क के साथ किया है.

इस के अलावा शीतल ने 8 अलगअलग एअरक्राफ्ट से अलगअलग स्थानों जैसे उत्तरी धु्रव (आर्कटिक) और दक्षिणी धु्रव (अंटार्कटिका), आस्टे्रलिया, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका, यूरोप डाइविंग की है. उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुके हैं.

शीतल ने फिनलैंड के सौफ्टवेयर इंजीनियर वैभव राणे से 19 अप्रैल, 2008 में जमीन से 600 फुट की ऊंचाई पर हौट एअर बैलून में शादी की और इसे ‘लिम्का बुक औफ वर्ल्ड रिकौर्ड्स’ में दर्ज करवाया. वे इस समय 2 जुड़वां बेटों की मां हैं. 2011 में उन्हें ‘पद्मश्री’ सम्मान भी मिल चुका है.

12 फरवरी, 2018 को शीतल ने थाईलैंड के पटाया में महाराष्ट्र की रंगीन नौवारी साड़ी पहन कर 13,000 फुट की ऊंचाई से छलांग लगा कर सब को चौंका दिया. इसे करने के पीछे उन का मकसद था कि भारतीय महिला केवल सामान्य दिनचर्या में ही इस साड़ी को नहीं पहनती है, बल्कि इसे पहन कर वह स्काई डाइविंग जैसे ऐडवैंचर को भी अंजाम दे सकती हैं. पेश हैं, शीतल से हुए कुछ सवालजवाब:

इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरी बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी. मैं ने आर्मी में जाने की कोशिश की थी. 10वीं कक्षा में पढ़ते हुए पता चला कि महिलाओं के लिए आर्म फोर्सेज में जाना स्नातक के बाद ही संभव हो सकता है. ऐसे में स्नातक के बाद मैं ने इस क्षेत्र में आने की सोची. इस से पहले मुझे कला से बहुत प्यार था. मैं अच्छी पेंटिंग भी कर लेती थी. मैं सचिन तेंदुलकर और लता मंगेशकर से बहुत प्रभावित हूं. इसीलिए इन्हीं की तरह कुछ अलग करने की इच्छा थी.

मेरे दोस्त का भाई एनडीए में काम करता था और आर्म फोर्सेज की ट्रेनिंग देता था. मैं ने उसे स्काई डाइविंग करते देखा तो इस क्षेत्र में आ गई. 21 साल की उम्र में मैं ने पहला जंप उत्तरी धु्रव पर बिना किसी ट्रेनिंग के किया था. मैं इस में सफल रही. इस से मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली.

यहां तक पहुंचने में कितना संघर्ष रहा?

इस स्पोर्ट में समस्या पैसों की आती है. स्पौंसरशिप पर यह खेल चलता है. भारत सरकार इसे मान्यता नहीं देती. ‘पद्मश्री’ होने के बावजूद किसी प्रकार की सहायता सरकार से नहीं मिली. मुझे इस के लिए अपने पिता, पति और स्पौंसर पर निर्भर रहना पड़ता है.

स्काई डाइविंग कितनी चुनौतीपूर्ण होती है?

स्काई डाइविंग वाकई बहुत चैलेंजिंग होती है. अगर एक पैराशूट नहीं खुला, तो दूसरा पैराशूट खोलना पड़ता है. अधिकतर स्काई डाइविंग के वक्त एक पैराशूट में 2 और पैराशूट होते हैं. पहला पैराशूट जिसे हम साधारणतया खोलते हैं, उस में समस्या आने पर इमरजैंसी में दूसरे को खोल कर सेफ लैंडिंग की जाती है. अगर आप इमरजैंसी वाले पैराशूट को नहीं खोल पाते हैं, तो एक औटोमैटिक ओपन डिवाइस होता है, जो 1,500 फुट की ऊंचाई पर अगर आप पैराशूट खोलना भूल गए, तो वह खोल देता है. इस तरह यह एक सुरक्षित स्पोर्ट है, पर डर तो सभी को लगता है.

आप को कभी स्काई डाइविंग करते डर नहीं लगा?

नहीं, मुझे कभी डर नहीं लगा, क्योंकि मुझे पूरे विश्व में प्रूव करना था कि महिला होने पर भी मैं इस एडवैंचर खेल में आगे हूं. मुझे याद है जब मैं पहली बार नौर्थ पोल पर जंप कर रही थी, तो मेरी पहली जंप का पैराशूट फटा हुआ था. मुझे तब डर लगा था, लेकिन पैराशूट खोलने के बाद मैं ने पाया कि वह फटा नहीं था, बल्कि उस की डिजाइन ही वैसी थी. मेरी डिक्शनरी में डर की कोई जगह नहीं है.

शादी के बाद खेल और परिवार में कैसे तालमेल बैठाती हैं?

शादी के बाद एडजस्ट करने में मुझे थोड़ी मुश्किलें आईं, क्योंकि मैं जुड़वां बेटों की मां बनी थी. परिवार वालों ने पहले सहमति नहीं जताई. कहा कि मैं इस खेल को छोड़ दूं, पर मैं ने उन से कहा कि मैं शादी छोड़ सकती हूं, खेल नहीं. मैं ने शादी से पहले इस खेल में कदम रखा था. शादी के बाद इसे छोड़ दूं, यह संभव नहीं था. मैं ने अपने पति और ससुराल वालों से शादी से पहले ही बात की थी, पर जुड़वां बच्चों के बाद यह समस्या आई. बच्चों के 1 साल का होने के बाद जब मैं ने फिर से जंप किया तो उस समय मेरे पति मेरे साथ थे. मेरे सासससुर भी थोड़े दिनों के विरोध के बाद शांत हो गए थे.

कामयाबी का श्रेय किसे देती हैं?

अपने पिता कमलाकर महाजन को, जिन्होंने हर मुश्किल में मेरा साथ दिया और अब भी साथ हैं. इसीलिए मैं यहां तक पहुंच पाई. वे मेरी लाइफ में मेरे लिए हीरो हैं. मेरी कामयाबी का सारा श्रेय उन्हीं को जाता है.

समर फैशन ट्रैंड 2018 : फैशन ऐक्सपर्ट्स से जानें इस सीजन का ट्रैंड

गरमी का मौसम शुरू होते ही हर किसी की कुछ नया पहनने की इच्छा होती है और बात जब फैशन की हो तो कहने ही क्या. हर साल की तरह इस साल भी फैशन के विविध रूप आप को दिखने को मिलेंगे.

आइए, जानते हैं कि इस समर सीजन कौनकौन सी ड्रैसेज और फुटवियर्स आप को देंगे गौर्जियस लुक:

सीक्वैंस वर्क से सजे कपड़े: गरमियों में सितारों वाले (सीक्वैंस) चमकीले परिधान पसंद किए जाते हैं. एक बेहतरीन दिन की शुरुआत के लिए सीक्वैंस वर्क वाला टौप और लैगिंग पहनें या फिर लाइन स्कर्ट पहनें. ये दोनों ही ड्रैसेज आप को स्टाइलिश लुक देंगी. गोल्डन, सिल्वर जैसे चमकीले रंगों के साथसाथ नीला, काला, लाल, नारंगी, मजैंटा इत्यादि रंगों का प्रयोग करें. इन के साथ हलके रंग का स्कार्फ या जैकेट पहनें.

विंटेज फ्लोरल्स: इस तरह के कपड़ों का चलन 40 और 50 के दशक में था. अब दोबारा इन की मांग बढ़ी है. फ्लोरल डिजाइन वाली मैक्सी या मिडी ड्रैस पहनें या फिर फ्लोरल टौप के साथ डैनिम जैकेट पहनें. इस के अलावा फ्लोरल प्रिंट वाला स्कार्फ, मोबाइल कवर, बैग या मोजे भी आजमा सकती हैं.

फ्रिंजी (झालरयुक्त) ड्रैस: शाम को शानदार बनाने या फिर डिनर पर जाने के लिए फ्रिंजी स्कर्ट पहनें. इस के साथ ऊंची एड़ी या मोटी एड़ी वाले सैंडल पहन सकती हैं. कौकटेल रिंग या खूबसूरत राउंड इयररिंग्स पहन कर स्टाइल बढ़ा सकती हैं.

पेस्टल कलर के कपड़े: इस मौसम में पेस्टल यानी हलके रंग के कपड़े आप के वार्डरोब के सब से बेहतरीन विकल्प होंगे. पीला, बैगनी, हरा, गुलाबी, नारंगी इत्यादि रंगों के कपड़े चुनें. ये रंग हलके जरूर होते हैं, मगर आकर्षक लगते हैं.

लाइलैक कलर (लाइट पर्पल): लाइलैक रंग गरमियों में खूब फबता है. लैवेंडर शेड कई तरह से पहना जा सकता है. लाइलैक टौप और ब्लाउज से ले कर ट्राउजर और स्कर्ट तक आप आजमा सकती हैं. इस रंग को चटक और हलके दोनों तरह के रंग के साथ पेयर कर के पहना जा सकता है.

स्टाइलिश कोल्ड शोल्डर्स: ये कई तरह के स्टाइलिंग औप्शंस देते हैं और इन्हें हर तरह के कपड़ों के साथ पहना जा सकता है. औफिस में शर्ट की तरह, पार्टी में टौप की तरह, ईवनिंग पार्टी में गाउन की तरह.

कुलोट्स: यह प्लाजो स्टाइल के नए ट्रैंड के रूप में फैशन में जुड़ा है और युवाओं को काफी आकर्षित कर रहा है. गरमियों में आप इसे फौर्मल कुलोट पैंट्स की तरह भी पहन सकती हैं और कुलोट शौर्ट्स के तौर पर भी.

औफशोल्डर्ड ड्रैसेज: औफ शोल्डर एक ऐसा ट्रैंड है जो हमेशा चलन में रहा है. इस साल भी ऐसी ड्रैसेज पसंद की जा रही हैं. औफशोल्डर ड्रैस किसी भी तरह की लंबी निकर/छोटी ड्रैस/टौप के साथ पहनी जा सकती है.

बैलबौटम: बैलबौटम 80 के दशक का ट्रैंड था, लेकिन समय के साथ यह वापस आ गया है. यह एक स्टाइलिश रैट्रो समर औप्शन है.

हैरीटेज चैक्स: गरमियों में फौर्मल कपड़ों के लिए ये बेहतरीन विकल्प हैं. हैरीटेज चैक्स पैटर्न का फ्लोटी फैमिनिन बिजनैस सूट आजमाएं.

यह किसी भी औफिशियल मीटिंग के लिए परफैक्ट है. आप पैंसिल स्कर्ट या ट्राउजर के साथ लिनेन शर्ट भी पहन सकती हैं. चैक्स शर्ट को आप रोजमर्रा के कपड़ों के विकल्प के रूप में पहन सकती हैं. इसे अधिक आकर्षक बनाने के लिए इस के साथ स्कार्फ पहन सकती हैं.

फैशन में खास रहेगा यह साल

रंगरीति के एमडी सिद्धार्थ बिंद्रा का कहना है कि इंडियन फैशन में इस साल भी नएपुराने फैशन का मेलजोल देखने को मिलेगा. इस साल पुराने स्टाइल की ये ड्रैसेज नए रूप में देखने को मिलेंगी:

शरारा: पिछले साल के प्लाजो के दिन गए यानी प्लाजो को परे कर इस स्प्रिंग ले आएं शरारा. रंगबिरंगी डिजाइनर कुरतियों के साथ शरारा और स्टाइलिश जूतियों का कौंबिनेशन आप को भीड़ में बिलकुल हट कर दिखाएगा.

ड्रैस कुरता: वनपीस ड्रैस भारतीय परिधानों को वैस्टर्न लुक देती है. ड्रैस कुरता कालेज जाने वाली लड़कियों और औफिस जाने वाली महिलाओं तथा गृहिणियों के लिए भी परफैक्ट है.

इंडी टौप्स: इंडी टौप्स आरामदायक परिधान हैं, जिन्हें आप लैगिंग, स्लिम पैंट और जींस के साथ पहन सकती हैं. इंडी टौप पहन कर आप अपनेआप को बेहद ट्रैंडी और आरामदायक महसूस करेंगी.

रफल्ड स्कर्ट्स: स्लीव्स में रफल्ड 2017 से ही इन हैं. 2018 में रफल्ड स्कर्ट फैशन में आ गई है. इसे किसी बेसिक टीशर्ट के साथ मैच कीजिए और इस स्प्रिंग सीजन में दिखिए बेहद आकर्षक.

पोंचो: इस सीजन के लिए यह बेहद आरामदायक और स्टाइलिश है.

ब्राइट कलर्स: यलो कुरती को व्हाइट के साथ और रैड को ब्लू के साथ मैच कर इस स्प्रिंग सीजन में बन जाएं सब के आकर्षण का केंद्र.

फुटवियर्स का चलन रहेगा जोरों पर

इस समर सीजन में शादीविवाह हो अथवा कोई खास पार्टी, जहां एक से बढ़ कर एक स्टाइलिश ड्रैसेज ट्रैंड में होंगी, वहीं फुटवियर्स का भी खूब जलवा रहेगा.

प्रसिद्ध फुटवियर ब्रैंड लिबर्टी के अनुपम बंसल ने बताया कि इस सीजन किस तरह के फुटवियर्स चलन में रहेंगे:

स्ट्रैपी सैंडल्स: प्रिटी फैमिनिन सैंडल्स फिर से ट्रैंड में आ गए हैं. इस सीजन मैटेलिक और पेस्टल कलर खासतौर पर ट्रैंड में रहेंगे.

व्हाइट इज इन: सफेद गरमियों का रंग है. इस सीजन स्नीकर्स से ले कर हाई हील्स तक हर तरह के फुटवियर में सफेद रंग का जलवा है.

किटन हील्स: इस समर सीजन किटन हील्स ट्रैंड में हैं. ये आप को क्लासी लुक देने के साथसाथ कंफर्टेबल भी फील कराएंगी.

सिल्वर शूज: समर वैडिंग हो या पार्टी, सिल्वर शूज ट्रैंड में हैं. सिल्वर मैजिक वाले शाइनिंग फुटवियर्स इस सीजन आप को भीड़ से अलग दिखाएंगे.

फ्लोरल प्रिंट: समर सीजन में फ्लोरल ट्रैंड एवरग्रीन रहा है. आप फ्लोरल स्ट्रैपी सैंडल्स या प्रिटी फ्लोरल बैलरिन पहन कर ट्रैंडी व स्टाइलिश दिख सकती हैं.

ब्रोग्स: ये कंफर्टेबल और ट्रैंडी हैं, इन्हें आप क्रौप पैंट या फिर जींस के साथ पहन सकती हैं. व्हाइट और सिल्वर ब्रोग्स खासतौर पर पसंद किए जाते हैं.

 – फैशन डिजाइनर आशिमा शर्मा, आशिमा एस कुटोर की संस्थापक और मोनिका ओसवाल, ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर मोंटे कार्लो से बातचीत पर आधारित.

प्रिंट और टैक्स्चर का है जमाना

अब समय आ गया है जब हम स्प्रिंग के अनुसार अगले कुछ माह के लिए अपने वार्डरोब को नया लुक दें.

स्प्रिंग समर सीजन 2018 का फैशन ट्रैंड पेस्टल्स, फ्लोरल अपोलैंस, जिओमैट्रिक टैक्स्चर, प्लेसमैंट प्रिंट्स का शानदार मिश्रण है. इस के साथ ही बोल्ड रंगों के प्रयोग से यह ट्रैंड और लुभावना रहेगा.

फ्लोरल प्रिंट, जिओमैट्रिक टैक्स्चर और कलर ब्लौकिंग निश्चित रूप से ब्राइट और वाईब्रैंट कलर्स के साथ ट्रैंड में रहेंगे. इस के साथ ही फ्लोई फैब्रिक एक बेहतरीन कौंबिनेशन के साथ ऐलिगैंट लुक में चलन में रहेगा. मोटिफ्स और ऐंबैलिशमैंट का प्रयोग काफी कम होगा, जिस से आउटफिट का लुक निखरा दिखाई देगा.

ट्रैडिशनल फैब्रिक का रिवाइवल, ऐलिगैंट डिजाइन, ऐंबैलिशमैंट टैक्निक्स और वीव्स शामिल होंगे.

– अरिंदम चक्रवर्ती, औरेलिया

इस समर बनिए स्टाइलिश

स्प्रिंग/समर सीजन का एक फैवरिट आउटफिट है-पैंसिल स्कर्ट. 2018 में भी यह ट्रैंड में रहेगी.

आप इसे सिर्फ औफिस जाने, कौरपोरेट मीटिंग्स अटैंड करने के दौरान ही नहीं वरन बटन वाली सामान्य से बड़ी शर्ट के साथ भी पहन कर इनफौरमल लुक पा सकती हैं.

इस लुक को फंकी बनाने के लिए आप सौक बूट्स का इस्तेमाल करें. पैंसिल स्कर्ट के साथ फ्लोरल टौप और हाई हील्स का कौंबिनेशन है.

भारी ब्रैड वर्क पैंसिल स्कर्ट के साथ क्रोप टौप और कोल्ड शोल्डर टौप ट्रैंड में हैं. इन्हें कई तरीकों से स्टाइल किया जा सकता है.

आप सितारों वाली पैंसिल स्कर्ट के साथ चैक वाला टौप पहन सकती हैं. उस पर एक लंबी जैकेट पहन और भी स्टाइलिश बन सकती हैं.

– आशिमा शर्मा, फैशन डिजाइनर  

सभ्यता का चीरहरण आखिर करवा कौन रहा

जम्मू के कठुआ, उत्तर प्रदेश के उन्नाव, बिहार के सासाराम, गुजरात के सूरत में हुए कुछ बलात्कारों ने देश को दहला दिया है. ज्यादा बड़ी बात इन मामलों में यह रही कि बलात्कारियों को पकड़ने में पुलिस ने आनाकानी की. जब तक दबाव न पड़ा मामला लटका रहा, क्योंकि हर मामले में अभियुक्त सत्ताधारी पार्टी से जुड़ा था. जहां सरकार से उम्मीद की जाती है कि वह कमजोरों को बचाएगी, इन सभी मामलों में यह साफ हुआ कि सत्ता के निकट हों तो आप का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता और किसी औरत, लड़की या बच्ची की जिंदगी सुरक्षित नहीं है.

मांएं अकसर लड़कियों की स्वच्छंदता पर रोना रोती हैं कि फैशन और आधुनिकता के चलते बलात्कार हो रहे हैं पर इन सब मामलों में कोई भी लड़की फैशनेबल नहीं थी. इन सब मामलों में बलात्कार का कारण अपना रोब जमाना था और दुनिया को यह बताना था कि पार्टी और सरकार उन के साथ हैं. वे जो चाहें कर सकते हैं.

सब से बड़ी बात यह रही कि स्मृति ईरानी, सुषमा स्वराज, मीनाक्षी लेखी, निर्मला सीतारमन, उमा भारती जैसी औरतों, जो पहले हर बलात्कार पर आसमान सिर पर उठा लेती थीं, इन मामलों में चुप ही रहीं यानी बलात्कार का रंग सत्ता के साथ बदल जाता है और बलात्कार तब छोटी सी बात होती है जब आप सत्ता में हों. जघन्य पाप है अगर आप सत्ता में न हों.

औरतों का यह दोगलापन ही उन के प्रति गुनाहों के लिए जिम्मेदार है. हर बेटी की मां रोना रोती है कि उस की बेटी को सास यातना देती है पर वही औरत अपने बेटे की पत्नी को कोसने में कोई कसर नहीं छोड़ती. हर औरत दूसरी लड़की पर होने वाले दुख के प्रति एक परपीड़न सुख महसूस करती है. हिंदी फिल्मों में ललिता पवार टाइप की सासों की भरमार रही है और इन को फिल्माया ही इसलिए जाता रहा है, क्योंकि ये घरघर की कहानी रही हैं और फिल्म निर्माता औरतों को इन्हीं के जरीए आकर्षित करते रहे हैं.

औरतों की मानसिकता उतनी ही जिम्मेदार है जितनी पुरुषों की बलात्कार को बदला लेने के एक हथियार की. जम्मू में 8 साल की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के पीछे कहा यही जा रहा है कि इस से घुमंतू गड़रियों को भगाया जा सकेगा. औरतों को ढाल भी बनाया जाता है और उन पर अत्याचार पूरे परिवार, कौम या गुट का हथियार भी.

जौहर को जो सम्मान मिला है इसीलिए ताकि शत्रु के हाथों औरतें पड़ें ही नहीं. औरतों से कहा भी यही जाता है कि मर जाना पर बलात्कार के बाद मुंह नहीं दिखाना और यह कहने वाली सब से पहले मां ही होती है, क्योंकि वही जानती है कि वह अपने रिश्तेदारों, पासपड़ोस में कभी इज्जत से नहीं बैठ पाएगी.

इन बलात्कारों का अब जम कर राजनीतिकरण हो रहा है पर भारतीय जनता पार्टी शिकायत नहीं कर सकती, क्योंकि उसी की महिला नेताओं ने 2014 से पहले के हर बलात्कार को राजनीतिक हथियार बनाया था. औरतों की इज्जत का मामला पार्टियों के लिए सत्ता पाने की सीढि़यां बन गया है. उन्हें औरतों की सुरक्षा की चिंता कम है, अपना मौका ढूंढ़ने की फिक्र ज्यादा. कांग्रेस भी अब वही कर रही है जिस का रास्ता भारतीय जनता पार्टी ने दिखाया था.

बलात्कार पूरे समाज के खिलाफ अपराध है. यह सभ्यता को नष्ट करने वाला तेजाब है. अपराधी भी अपराध करते हुए कांपें माहौल ऐसा होना चाहिए. पर जिस निडरता से बलात्कार हो रहे हैं उस से यह स्पष्ट है कि हर बलात्कारी के दिमाग में रहता है कि यह सबक बलात्कार की पीडि़ता व उस का परिवार वर्षों याद रखेंगे. उसे अपने पकड़े जाने का जरा भी भय नहीं होता वरना वह मारपीट का सहारा लेता, लूटता, लेकिन बलात्कार पर न उतरता. उसे मालूम है कि उस का अपना समाज, उस की पार्टी, उस का परिवार, उस का धर्म उसे मर्द होने का तमगा देगा.

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