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सलमान खान पर बुजुर्ग दंपत्ति ने लगाया जमीन के लिए परेशान करने का आरोप

सलमान खान के पीछे कुछ न कुछ मुश्किलें लगी ही रहती हैं. अब उन्हें लेकर एक नया विवाद सामने आया है. सलमान के पड़ोसी ने उनपर जमीन के लिए परेशान करने का आरोप लगाया है. खबरों के मुताबिक मुंबई के बुजुर्ग दंपत्ति केतन कक्कड़ और उनकी पत्नी अनीता कक्कड़ जो तीन साल पहले ही अमेरिका से भारत शिफ्ट हुए हैं और अब पनवेल में अपना नया बंगला बनवाना चाहते हैं. कक्कड़ परिवार का कहना है कि साल 1996 में उन्होंने यह जमीन साढ़े 27 लाख रुपए में खरीदी थी. खरीदते वक्त सलीम खान से इसके लिए इजाजत भी ली गई थी. लेकिन, अब इस दंपत्ति की माने तो पहले जब वो फार्म हाउस पर आते-जाते थे तब तक सलमान उन के लिए अच्छे पड़ोसी बने रहे लेकिन, जब अमेरिका से लौटने के बाद वो यहां बंगला बनाना चाहते हैं तो उन्हें परेशान किया जा रहा है.

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परिवार के मुताबिक जमीन का मालिकाना हक होते हुए भी वो वहां अपना नया घर नहीं बनवा पा रहे है. साथ ही कक्कड़ दंपत्ति का आरोप है कि सलमान ने फार्म हाउस के पास गेट लगा दिया है जिससे वो फार्म हाउस पर नहीं जा पा रहे हैं. कक्कड़ परिवार ने यह भी कहा है कि वहां सलमान खान के घोड़ों के लिए भी लाइटें लगाई गई हैं लेकिन, उनके परिवार को बिजली उपलब्ध नहीं कराई जा रही है. कक्कड़ परिवार ने यह भी कहा कि वन विभाग के जिस अधिकारी ने इस बाबत सलमान के परिवार के खिलाफ आवाज उठाई उसका तबादला कर दिया गया.

पीड़ित परिवार ने यह भी कहा कि जब उन्होंने इस पूरे मामले में फौरेस्ट मिनिस्टर सुधीर मुनगंटीवार से मिलकर न्याय मांगा तो उन्हें न्याय का आश्वासन दिया गया पर कुछ दिनों बाद सलमान खान सुधीर मुनगंटीवार के घर पार्टी करते दिखे. सलमान और उनके परिवार पर लगाए आरोप कक्कड़ परिवार और उनकी वकील आभा सिंह के हैं. उनका कहना है कि सलमान और उनका परिवार रसूखदार है इसलिए उनकी सुनवाई नहीं हो रही है. हालांकि इस मामले में अभी तक सलमान खान, उनके परिवार या लीगल टीम का कोई पक्ष सामने नहीं आया है.

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महलों जैसे फ्लैट

दिल्ली के समाचारपत्रों में अब पूरे फ्लोर के भव्य फ्लैटों वाले बहुमंजिले मकानों के विज्ञापन दिखने लगे हैं जिन में एक फ्लैट 10-20 करोड़ रुपए का या और ज्यादा का भी होता है. मुंबई, बेंगलुरु में ऐक्टर, खिलाड़ी, उद्योगपति 20-30 करोड़ रुपए के फ्लैट खरीदने लगे हैं. ऐसे मकानों का निर्माण एक मुनाफे का धंधा बन रहा है. बहुत से बिल्डरों ने छोटे फ्लैटों को बनाना ही बंद कर दिया है, ताकि वे खिचखिच से बच सकें.

लंदन की नाइट फ्रैंक रियल एस्टेट कंसल्टैंसी फर्म का कहना है कि भारत में 2017 में 200 करोड़ रुपए से ज्यादा की निजी संपत्ति वालों में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ये अब सवा लाख से ज्यादा हो गए हैं और इन्होंने रहने को आलीशान मकान खरीदने शुरू कर दिए हैं. पहले इस तरह के लोग बंगले खरीदते थे पर अब फ्लैटों में रहना पसंद करते हैं. चीन के गुआंगजू व अन्य शहरों में इस तरह के मकानों की संख्या बढ़ी है और दाम भी बढ़े हैं.

भारत में गुरुग्राम उन शहरों में है जहां ऊंचे, अति अमीरों के लिए मकान बन रहे हैं क्योंकि पास में अरावली पहाडि़यां हैं. मुंबई में केवल उन इलाकों में ही ऐसे मकान बन सकते हैं जहां समुद्र दिखे वरना ऊपरी मंजिलों से भी झोंपड़ बस्तियां ही दिखती हैं.

यह विडंबना है कि जिस देश में 40 करोड़ लोगों के पास पटरियां ही रहने को हैं वहां 10-20 करोड़ रुपए के फ्लैट बनने लगे. मुकेश अंबानी का मकान दक्षिण मुंबई में यह दर्शाता है कि वे अपने पैसे का प्रदर्शन करने में हिचकते नहीं हैं जबकि उस भव्य मकान के एक किलोमीटर के दायरे में खंडहर होते मकानों की भरमार है.

पैसे का यह भेदभाव हमेशा रहा है पर उम्मीद थी कि नई तकनीक, लोकतंत्र, सही टैक्स व्यवस्था लोगों को बराबर नहीं, तो बराबर का सा तो करेगी ही. लेकिन सारे लोकतंत्र इस बारे में फेल साबित हुए हैं. कम्युनिस्ट चीन को भी कमाऊ अरबपतियों को छूट देनी पड़ी. हालांकि चीन ने दूसरे देशों की अपेक्षा अपने गरीबों का बहुत खयाल रखा है और वहां उन की संख्या बहुत कम हो गई. भारत में गरीब अभी भी 18वीं सदी का सा जीवन जी रहे हैं और अमीर आलीशान महलों में जा रहे हैं.

यह देश की गलत नीति है. अमीरों के बंगले तो छिपे रहते हैं पर 20-30 मंजिले अरबपतियों के भव्य मकान आंखों में कंकर बनते हैं. यह भयावह सामाजिक प्रदर्शन है जिसे एक अक्लमंद सरकार होने नहीं देती. पर हमारे यहां अब सबकुछ भाग्य पर छोड़ दिया गया है. भव्य मंदिर भी धड़ाधड़ बन रहे हैं और भव्य महलों जैसे फ्लैट भी. यह ज्वालामुखी के मुंह में लावा डालने जैसा है.

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बेरहम किराएदार

विषय तो शोध का है कि अपने से ज्यादा, किराए के मकान से लोगों को इतना लगाव क्यों होता है कि उसे खाली करते वक्त किराएदार का मोह तरहतरह से व्यक्त होता है. मकान सरकारी हो तो उसे भवन कहना ही बेहतर होगा जिस की शानोशौकत को शब्दों में बांधना अपनेआप में नादानी वाली बात होती है.

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपना सरकारी घर खाली किया तो इस बात पर खूब हल्ला मचा कि वे कथित रूप से सीएम हाउस की टाइल्स तक उखाड़ कर ले गए.

अखिलेश यादव इस निकृष्ट आरोप का भी खंडन कर रहे हैं लेकिन इस सार्वभौमिक सत्य को नकारा नहीं जा सकता कि किराए का मकान खाली करते वक्त लोग उस की स्मृतियां सहेजने खिड़की, कुंडी और कीलों के अलावा बिजली के खटके तक निकाल ले जाते हैं तो तकलीफ मकानमालिक को होती है जिस के खूनपसीने की गाढ़ी कमाई से मकान बना होता है. लेकिन सरकारी बंगला हकीकत में जनता की संपत्ति होती है, इसलिए भाजपा को इस पर जरूरत से ज्यादा हायहाय नहीं करना चाहिए.

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रेरा बनने से थमी फर्जी बिल्डरों की लूट

देश की जनता को सब से ज्यादा लूटने का काम बिल्डरों, प्रौपर्टी डीलरों और दूसरे भूमाफियाओं ने किया है. प्रौपर्टी की दलाली खाने वाले असंख्य लोग महलों के मालिक बन गए हैं. इस की वजह देश का तेजी से होता शहरीकरण और शहरों में अपना घर होने की हर व्यक्ति की चाहत है. इस होड़ से बाजार में मांग बढ़ी और बिचौलियों ने इस का जम कर फायदा उठाया.

चारों तरफ से जब बिल्डरों और प्रौपर्टी डीलरों को ले कर शिकायतें आती रहीं तो सरकार ने 2016 में रियल एस्टेट (नियामन और विकास) अधिनियम 2016 यानी रेरा बनाया. इस कानून के बनने से रियल एस्टेट में पारदर्शिता की सुगबुगाहट शुरू हुई. लेकिन डैवलपरों की मजबूत पकड़ सरकारों पर भी रही है, इसलिए 2017 में जिन 20 राज्यों ने इस कानून को अधिसूचित किया उन में से सिर्फ 14 ही इसे क्रियान्वित कर पाए. इस कानून को जिन राज्यों ने लागू किया वहां से फर्जी डैवलपर बाजार से भागने लगे.

एक सर्वेक्षण के अनुसार, देश के 10 प्रमुख शहरों में 45,000 डैवलपरों में से 20 हजार अब तक अपनी दुकानें बंद कर चुके हैं. इस का मतलब बाजार में वही टिका रहेगा जो कानून के दायरे में काम करने को तैयार है.

इस कानून के अस्तित्व में आने तक काफी लोग अपनेआप को डैवलपर कह रहे थे और हर साल लाखों भवन बन कर तैयार हो रहे थे लेकिन अब भवन निर्माण और डैवलपर्स दोनों की संख्या घट कर लगभग आधी रह गई है.

इस दौरान जहां महज 2 लाख भवन हर साल बन रहे हैं वहीं रीसेल मार्केट 4 लाख इकाई की बिक्री तक पहुंच गया है यानी कि लोग भवन निर्माताओं के बजाय सामान्य लोगों से भवन खरीदना पसंद कर रहे हैं.

प्रौपर्टी बाजार की लूट इस कानून से थमी है और बाजार में घर व जमीन के दाम जिस गति से बढ़ रहे थे उस पर लगाम लगी है.

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रेगिस्तान की रुदालियां : जिन का जीवन है उन के आंसू

बालू के ढूहों के बीच सनसनाती हवा के झकोरों से उठते रेत के बगूलों के थपेडे़ सहती ढाणीनुमा बस्ती वरना के कच्चेपक्के फूस के झोपड़े आसपास भी थे और दूरदूर तक छितराए हुए भी. राजस्थान के रेगिस्तानी जिले जैसलमेर के आखिरी छोर पर बसी इस बस्ती में उस दिन सुबह से ही बादल छाए हुए थे.

बरसात का एक जोरदार झोंका आ कर चला गया था, लेकिन उमड़ते बादलों के घटाटोप से अंधेरे के आंचल में ढकी शाम तेजी से गहराती जा रही थी. ढलान पर बने एक झोपड़े के अधखुले दरवाजे से फैलती ठंडी हवा के झोंकों से दीए की रोशनी का दायरा बारबार कांपता और फिर स्थिर हो जाता था. हवा के तेज होते थपेड़े अधखुले दरवाजे पर बारबार दस्तक दे रहे थे.

मटमैली रोशनी में जागती बतियाती शनीचरी की जुबान पर आखिर वह सवाल आ ही गया, ‘‘भीखणी, एक बात पूछूं, तेरा तो घरबार है, मेरा तो कोई भी नहीं. सच्ची बता, तू ठाकुरों की मौत पर ऐसा मातम करती है जैसे तेरा कोई अपना सगा मर गया हो. रोनेपीटने का स्वांग भी करे तो आंसुओं का ऐसा परनाला बहता है. इतने ढेर सारे आंसू…बाप रे बाप, कैसे कर लेती है तू ये सब?’’

‘‘यही तो चमत्कार है शनीचरी,’’ दीए की मंद पड़ती रोशनी में अपनी बड़ीबड़ी आंखें फैलाते हुए भीखणी रहस्य में डूबे स्वर में बोली, ‘‘पूरी बात समझेगी तो हैरान रह जाएगी.’’

‘‘पर भीखणी, मैं तो नासपीटी अभागी ही रही,’’ शनिचरी ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘शनीचर को पैदा हुई तो नाम भी शनीचरी धर दिया गया. लोग कहते हैं, जनमते ही बाप को खा गई. मनहूस बेटी को मां पीवली भी छोड़ कर भाग गई. बेटे को जन्मा, वह भी छोड़ कर चला गया. पर मेरी आंख से आंसू का कतरा भी नहीं टपका. मेरे ऊपर इतना सब बीता, फिर भी नहीं रोई.’’

‘‘शनीचरी, तू सचमुच रोना चाहती है?’’ भीखणी ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए पूछा.

‘‘हां,’’ सिर हिलाते हुए शनीचरी बोली, ‘‘मुझे भी तो पता चले कि इत्ते ढेर सारे आंसू कैसे आते हैं?’’

‘‘ये देख, ये है जादू की पुडि़या…आंसुओं का खजाना.’’ भीखड़ी ने कागज की एक पुडि़या शनीचरी के सामने लहराते हुए कहा, ‘‘अच्छेअच्छों को रुला देता है ये जादू…’’

‘‘क्या है ये?’’

‘‘काजल,’’ भीखणी बोली, ‘‘चल, तुझे इस काजल का करिश्मा दिखाती हूं.’’

इस से पहले कि शनीचरी कोई विरोध कर पाती, भीखणी ने उसे दबोच कर अंगुली पुडि़या में छुआई और उस की आंखों में लकीर सी फिरा दी. शनीचरी चीख मारते हुए वहीं दोहरी हो गई, ‘‘अरे फोड़ दी मेरी आंखें, अरे कहां से आ गए इतने आंसू?’’

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‘‘ये आंसू नहीं, तेरे मन का दुख बोल रहा है शनीचरी. यही वह रास्ता है, मन के दर्द को बाहर निकालने का. अंदर का सारा कचरा बाहर आ जाता है. सचमुच थोड़े ही रोना पड़ता है.’’ भीखणी ने शनीचरी को झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘तू रुदाली बनेगी? फिर ये दुखदर्द बिलकुल नहीं बचेगा.’’

भीखणी ने अपना सवाल दोहराया, ‘‘तो तू करेगी मातम?’’

सवाल से स्तब्ध शनीचरी भीखणी की तरफ देखती रह गई. उसे लगा, जैसे उदास हवाएं ठाकुरों की हवेली की मेहराबों से उतर कर उसे घेरने लगी हैं. उस का मन पिघलने सा लगा. उस का चेहरा दीपक की लौ की तरह कांपने लगा. कांपती परछाइयों में शनीचरी की जुबान लरजने लगी.

तभी एक हरकारे के पहुंचने से बातचीत का सिलसिला थम गया.

‘‘भीखणी, भीमदाता की तबीयत बहुत खराब है. तुझे बुलाया है जल्दी.’’ दरवाजे पर टेक लगा कर खड़े हरकारे का स्वर जैसे भर्रा उठा था.

भीखणी पलभर में सब कुछ समझ गई थी. अपनी बातों का सिलसिला वहीं खत्म करते हुए वह फौरन बाहर की तरफ लपकी, लेकिन फिर एकाएक ठिठक गई. शनीचरी के पास आ कर वह फुसफुसाते हुए बोली, ‘‘मैं जा रही हूं, कोई लेने आया है. वापस आ कर बताऊंगी. बहुत कुछ बताना है तुझे.’’

उसी रात बूढ़े जमींदार भीमदाता का देहांत हो गया. क्रियाकर्म के बाद अगले दिन दाता के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह कहीं जाने के लिए तैयार हो रहे थे. तभी शनीचरी अभिवादन के लिए वहां पहुंची, लेकिन अचानक यह खबर पा कर सन्न रह गई कि भीखणी नहीं रही.

हरकारा तनिक झिझकते हुए बोला, ‘‘शनीचरी, मरते समय उस की जुबान पर तेरा ही नाम था.’’

‘‘और हां,’’ उस ने एक पल रुकते हुए तेरे बारे में कुछ कहा.

‘‘क्या कहा भीखणी ने?’’

शनीचरी ने हरकारे को झिंझोड़ते हुए पूछा, ‘‘जल्दी बता.’’

उस ने कहा, ‘‘शनीचरी को बता देना, मैं ही उस की मां पीवली हूं.’’

‘‘नहींऽऽ…’’

बुक्का फाड़ कर चिल्लाने के साथ ही शनीचरी ने अपना सिर खंभे से टकराना शुरू कर दिया.

भीखणी की मौत की खबर ने पत्थरदिल शनीचरी को जैसे तोड़ कर रख दिया जो अपने पिता की मौत पर नहीं रोई. पति की मौत पर जिस की आंखों से आंसू नहीं टपका, उस के भीतर बरसों से दबा लावा एकाएक फूट पड़ा. शनीचरी के करुण विलाप ने हवेली की दीवारों को हिला कर रख दिया. वह रोतेरोते कह रही थी, ‘‘अरे तन्ने हैज्यो नहीं खाग्यो…तू मन्ने रुदाली बणाएगी म्हारी मायड़ी.’’

याद आया कुछ? यह फिल्म ‘रुदाली’ का दृश्य था. इस फिल्म में डिंपल कपाडि़या ने शनीचरी के पात्र को बखूबी निभाया और ऐसा करुण रुदन किया कि दर्शक अंदर तक सिहर उठे. इसी फिल्म में अभिनेत्री राखी ने भी भीखणी के पात्र को पूरी तरह जीवंत कर दिया था.

रुदालियों की हकीकत

राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर और सीमावर्ती क्षेत्रों के पूर्व राजेरजवाड़ों और अमीर राजपूतों के परिवारों में पुरुष सदस्यों की मौत पर मातम हेतु रोने के लिए बुलाई जाने वाली रुदालियों की चर्चा काफी समय से होती रही है.

1993 में लेखिका महाश्वेता देवी के कथानक पर बनी कल्पना लाजमी निर्देशित फिल्म ‘रुदाली’ के दृश्य आज भी अनायास ही आंखों के आगे घूम जाते हैं. राष्ट्रीय स्तर पर भले ही इस फिल्म की झोली पुरस्कारों से भर गई, लेकिन हकीकत की रुदालियों को इस नर्क से आज भी निजात नहीं मिली है.

एक ताजा जानकारी के मुताबिक, मजबूरी में ही सही, रोना इन की जिंदगी में इस हद तक रचबस गया है कि आज भी गांव के रसूखदारों की मौत पर इन्हें रोने के लिए जाना पड़ता है. इन रुदालियों का रुदन राजस्थान के रेतीले और आदिवासी इलाकों में बदस्तूर आज भी गूंजता है. सीमावर्ती इलाकों जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर के अलावा सिरोही जिले के आदिवासी इलाकों में भी सैकड़ों रुदालियां अभिशप्त जीवन जी रही हैं.

रुदाली का अर्थ है रुदन करने वाली. राजस्थान के मरुस्थलीय और कुछ आदिवासी इलाकों में पिछले 200 सालों से प्रचलित इस परंपरा के मुताबिक प्रतिष्ठित और उच्च कुल के लोग हीनता की भावना से बचने हेतु अपने परिजनों की मृत्यु पर मातम के लिए पेशेवर औरतों को बुलाते हैं, जिन्हें रुदाली कहा जाता है.

उच्च कुल के प्रतिष्ठित लोगों में राजपूत जागीरदार या रसूखदार शुमार होते हैं. अपने सामाजिक रुतबे के मद्देनजर आंसू बहाना इस समुदाय में हीनता और कमजोरी माना जाता है, इसलिए इस काम के लिए पेशेवर रुदालियों को बुलाया जाता है, जो छातीमाथा कूटने और थर्रा देने वाले विलाप का ऐसा नाटकीय आडंबर रचती हैं कि लगता ही नहीं, मरने वाला इन का कोई अपना नहीं था.

खून में रचीबसी आडंबरयुक्त परंपरा

कहा जाता है कि पहले राजपूतों को विवाह के साथ दहेज में मिलने वाली डावडियां (दासियां) परिजनों की मौत पर रसूखदारों की हीनता की ग्लानि से बचाने के लिए मातम करती थीं. धीरेधीरे इन में कमी आने लगी तो रसूखदारों ने दलित समुदाय की निराश्रित औरतों को इस काम पर लगाना शुरू कर दिया.

कालांतर में आर्थिक कमजोरी के चलते रुदालियां पेशेवर समुदाय में बदलती चली गईं. उच्च कुल के लोगों ने दिवंगत परिजनों की मौत पर रुदालियों से रुदन करवाने को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया गया. इस की एवज में रुदालियों को मिलती है नफरत, यौन उत्पीड़न, रसूखदार की प्रताड़ना और खाने को सूखी रोटियां, प्याज के टुकड़े.

रेगिस्तान की ज्यादातर ढाणियों में कोई एक पक्की दोमंजिला हवेली नजर आ जाएगी. यह हवेली किसी पुराने जमींदार या रसूखदार की होती है. ऐसी हवेलियों में जब किसी बुजुर्ग की मृत्यु होने को होती है तो उसे बिस्तर से उतार कर फर्श पर बिछे घासफूस के बिछौने पर लेटा दिया जाता है.

अंतिम क्रिया करवाने वाले पंडित, नाई और रुदालियों को पहले ही बुला लिया जाता है. पंडित मरणासन्न व्यक्ति के मुंह में गंगाजल और तुलसीदल डालता है.

जब उस व्यक्ति की सांसें रुक जाती हैं तो पंडित मृत्यु की घोषणा कर देता है. इस के तुरंत बाद रुदालियों का करुण रुदन शुरू हो जाता है. घर की औरतों के पास काले कपड़े पहने बैठी रुदालियां छाती पीटपीट कर रोना शुरू कर देती हैं.

उन के रुदन को देख कर ऐसा लगता है, जैसे मरने वाला उन का कोई अपना हो. उन का यह रुदन किसी के मरने के बाद सिर्फ एक दिन नहीं बल्कि 12 दिनों तक चलता है. जबकि मरने वाले के परिवार की महिलाओं की आंखों में एक आंसू तक नहीं आता. यह एक परंपरा है, जो आज भी चले जा रही है.

उच्च कुल के प्रतिष्ठित व्यक्तियों की मौत पर दर्शकों के रूप में मौजूद गांव के लोगों के बीच इस तरह के आडंबर का प्रदर्शन दरअसल अपनी शान और रुतबा दिखाने के लिए होता है. गांव वालों की मौजूदगी में घूंघट की ओट में बैठी हवेली की विधवा के आगे रुदन के साथ रुदालियां अपनी चूडि़यां भी तोड़ती हैं और मांग का सिंदूर भी मिटा डालती हैं.

12 दिन तक रोना होता है रुदालियों को

दिन भर लगातार चलने वाले इस मातम में अंतराल तभी आता है, जब भोजन का समय होता है. रुदालियों को भोजन मृतक के परिजन ही उपलब्ध कराते हैं. भोजन में होते हैं कच्चे प्याज और बचीखुची रोटियों के टुकड़े.

रुदालियों का मातमी रुदन केवल रसूखदार की मृत्यु के दिन तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि यह 12 दिनों तक लगातार चलता है. मातम की अवधि निर्धारित नहीं होती. मृतक की हैसियत के हिसाब से यह अवधि घटबढ़ जाती है. इसी हिसाब से रुदालियों का रुदन भी नाटकीय होता जाता है. इस आडंबर में गांव के नाई, धोबी भी शामिल होते हैं और मृतक के अहसानों का बखान करते हैं. मसलन, नाई कहता है, ‘दाता बड़े कृपालु थे, मूंछे तराशने के मेरे हुनर का ऐसा कद्रदान अब कहां मिलेगा?’

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मातम करने वाली इन रुदालियों में से 30 वर्षीया फिरोजा अपनी व्यथा बयान करती है, ‘‘गांव में औरत का मानसम्मान तभी तक कायम रहता है, जब तक उस का पति जीवित है. पति की मौत के बाद तो सब कुछ खत्म हो जाता है. उसे अपने आप को पूरी तरह ढक कर रखना होता है. कई बार तो उसे पतिहंता तक करार दे दिया जाता है.’’

फिरोजा के पति की मृत्यु एक घातक बीमारी के चलते हो गई थी. उस के बाद आजीविका चलाने के लिए वह रुदाली बन गई थी.

मातम करते हुए फिरोजा के हाथों की अंगुलियां तक ऐंठ गईं, घुटने छिल गए और पांवों की खाल सख्त हो कर कई जगह से फट गई. फिरोजा पिछले 12 सालों से रुदाली का काम कर रही है. वह भीगी आंखों से कहती है, ‘रुदाली का भविष्य तो तभी लिख दिया जाता है, जब वह किसी निचली जाति में पैदा होती है.’

ठाकुरों के दहेज में उपहारस्वरूप आने वाली डावडि़यां भी करती रही हैं. वे उपपत्नी तो होती हैं लेकिन पत्नी का वैधानिक दर्जा उन्हें हासिल नहीं होता. उन से पैदा होने वाले बच्चों का भी कोई आधिकारिक पिता नहीं होता. राशनकार्ड अथवा वोटर आईडी में उन की मां का ही नाम लिखा जाता है. ऐसी डावड़ी को प्रसव के समय अस्पताल नहीं ले जाया जाता. उन का प्रसव घरेलू दाइयां करवाती हैं. और अगर अस्पताल ले जाने का मौका आ भी जाए तो बंद गाड़ी में ले जाया जाता है और 9 महीने तक किसी को भी उसे देखने की इजाजत नहीं होती. ये डावडि़यां भी रुदाली का काम करती हैं.

महिलाओं के शोषण

की कोई सीमा नहीं  अगर गर्भवती को लड़की पैदा होती है तो उसे जीने का हक नहीं होता. चाहे वह वैधानिक पत्नी से ही क्यों न पैदा हुई हो. बेटी की पैदाइश का मतलब है विवाह के समय वरपक्ष के आगे नीचा देखना, जो राजपूतों को कबूल नहीं. इस अजीब प्रथा को आज भी राजस्थान की कितनी ही स्त्रियां झेलने को मजबूर हैं.

राजस्थान के कुछ इलाकों में पिछले 200 सालों से चली आ रही इस प्रथा की पृष्ठभूमि ‘महिला विकास’ के दावों को न सिर्फ दुत्कारती है, बल्कि सरकार के ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान को भी शर्मिंदा करती है. यह प्रथा रजवाड़ों और रसूखदारों के मूंछ के सवाल पर टिकी हुई है.

यह प्रथा थमने के बजाय कुछ इस तरह बढ़ रही है कि अब रसूखदारों से जुड़े परिवारों ने भी इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है. नतीजतन इन गैरराजपूती परिवारों में भी मातम का जिम्मा रुदालियों को सौंप दिया गया है. रजवाड़ों की हवेलियों में मातम के लिए जाना, किसी हद तक इन की विवशता से जुड़ा है.

सिरोही जिले के हाथल गांव की रुदाली सुक्खी कहती है कि अगर हम रोने के लिए न जाएं तो इस का खामियाजा भी उठाना पड़ता है. मारपीट से ले कर गांव से बेघर और सामाजिक बहिष्कार तक भोगना पड़ सकता है, इसलिए हवेली में मौत की खबर पर बुलाने का इंतजार किए बिना ही हम पहुंच जाते हैं.

सिरोही जिले के रेवदार कस्बे से 9 किलोमीटर दूरी पर स्थित है घाण गांव. यहां के गणेशराम तो रसूखदारों की मौत पर परंपरागत रूप से शोक गीत गाते आए हैं. गणेशराम स्वीकार करते हैं कि 50 सालों में दरजनों रसूखदारों की मौत पर मुंडन करवा चुका हूं.

हालांकि उन का कहना है कि इस सम्मान प्रदर्शन के एवज में उन्हें इनाम भी मिलता है. यह जानकारी बेहद चौंकाने वाली है कि जोलपुर के रसूखदार की मौत पर आसपास के 5 गांवों के लोगों ने मुंडन करवा कर अपना शोक प्रकट किया था. इस मुंडन संस्कार में बच्चों से ले कर बूढ़े तक शामिल थे.

जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक अधिकारी भी हैं मजबूर  इसे रजवाड़ी सामंतों की दबंगई ही कहा जाना चाहिए कि महिला सशक्तिकरण के दावों पर कालिख पोतने वाले इस रिवाज के विरोध में कोई बोलने तक को तैयार नहीं है. रेवदार से विधानसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले विधायक जगसीराम अंजान बनने का बेहद नाटकीय प्रदर्शन करते हैं, ‘‘अच्छा! अगर ऐसा है तो हम इसे बंद करवाएंगे.’’

यह बयान उन्होंने दिसंबर में दिया था, लेकिन उस के बाद भी उन के इलाके में रुदालियों का विलाप नहीं थम रहा. सिरोही जिले के सिरोड़ी, जोलपुर, उड़वारिया जैसे सैकड़ों गांवों के सरपंच तो इस अभिशाप पर मुंह खोलने तक को तैयार नहीं हैं.

सिविल राइट्स के अतिरिक्त महानिदेशक एम.एस. लाठर का बयान कानूनी प्रावधानों की विवशताओं में गुंथा हुआ है कि डायन प्रताड़ना निवारण कानून की तरह इस प्रथा के खिलाफ कोई विशिष्ट कानून नहीं है. इसलिए पुलिस कोई काररवाई नहीं कर सकती. उन्होंने जिम्मा समाज पर छोड़ते हुए कहा, ‘‘इस की रोकथाम के लिए तो समाज को ही पहल करनी होगी.’’

रुदालियां आमतौर पर काली पोशाक पहनती हैं, जिसे यमराज के वस्त्रों का प्रतीक माना जाता है. लेकिन असल में रुदालियों का पहनावा उन की उम्र और पारिवारिक स्थिति से तय होता है. मसलन कम उम्र की रुदाली के लिए हलके रंग के कपड़े और अगर रुदाली उम्रदराज हो तो गाढ़े लाल रंग की चूनर और उस पर उकेरे गए काले मोरपंख. रुदाली फिल्म का सब से चर्चित संवाद है, ‘ये आंसू ही हमारी जिंदगी हैं…ठीक वैसे ही जैसे हम खेतीबाड़ी का काम करती हैं, आंसू बहाना भी जिंदगी का वैसा ही हिस्सा है.’

रुदालियों की कहानियों का दूसरा पहलू भी गौरतलब है कि जोधपुर के शेरगढ़, पाटोदी, बाड़मेर के छीतर का पार, कोटड़ा, चूली और जैसलमेर के रामदेवरा तथा पोखरण जैसे गांवों में रुदालियों की भरमार है. हालांकि रुदालियों का दायरा आहिस्ताआहिस्ता सिमट भी रहा है तो इस की वजह है रजवाड़ों, जमींदारों का घटता असर. फिर मानसम्मान की खातिर शान बनाए रखने वाले रसूखदार भी अब गिनती के ही रह गए हैं, इसलिए रुदालियों की जरूरत भी घट गई है.

रुदालियां गंजू और दुसाद जातियों से बताई जाती हैं. फिल्म ‘रुदाली’ की केंद्रीय नायिका शनीचरी गंजू बिरादरी से दर्शाई गई थी. हालांकि रुदालियों में भील और निचले तबके की औरतें भी आती हैं. असल में सभी रुदालियां विधवा होती हैं, इन्हें आज भी अशुभ माना जाता है. कुछ रुदालियों ने समाज पंचों के आगे सिर झुका कर नाताप्रथा के तहत देवरजेठ से ब्याह भी रचा लिया है.

इन का कहना है, ‘रोने के काम से तो पेट नहीं भरता न?’

रुदालियों का शोषण अब भी जारी है हालांकि कुछ ने खेतिहर मजदूरी की तरफ भी रुख कर लिया है. लेकिन इन के प्रति सामाजिक घृणा का भाव आज भी यथावत है और इन्हें इस बात की सख्त मनाही होती है कि सुबहसवेरे जब लोगों का काम पर जाने का वक्त होता है, ये घर से बाहर न निकलें. अब तक रुदालियों का ठौरठिकाना गांव की सरहद के बाहर होता था, लेकिन अब इन्हें गांवों के किसी उपेक्षित हिस्से में बसेरा देना शुरू कर दिया गया है.

लेकिन कहते हैं कि दबंगों के यौन उत्पीड़न की शिकार रुदालियां आज भी वैसी की वैसी ही हैं. इन के समूह गीतों में यौन उत्पीड़न का दर्द साफ झलकता है. रुदालियां आज भी तिरस्कृत जीवन जी रही हैं. रोरो कर इन की छातियां तो सूख ही गई हैं, अब रोने में पहले जैसी हुनरमंद भी नहीं रहीं.

एक सच यह भी है कि समाज के ठेकेदारों की मैली निगाहों से रुदालियां भी अछूती नहीं रहीं. रोने को रिवाज में तब्दील करने वाली रुदालियों को भी जबरदस्ती का सामना करना पड़ता है. इन की लड़कियों को कोई अपनाने तक को तैयार नहीं होता. अजब नियति है कि लोगों के लिए मातमी विलाप कर रोने वाली इन रुदालियों की मौत पर कोई रोने वाला नहीं होता.

फिल्म रुदाली का कथासार

फिल्म ‘रुदाली’ की कहानी शनीचरी नामक ऐसी स्त्री के इर्दगिर्द बुनी गई थी, जिस के पिता की मौत के बाद उस की मां पीवली भी उसे छोड़ कर भाग जाती है और एक नौटंकी में शामिल हो जाती है. शनीचरी की पूरी जिंदगी पर दुर्भाग्य की छाया मंडराती रही.

फिल्म की शुरुआत राजस्थान के रेगिस्तानी जिले जैसलमेर के बरना गांव से शुरू होती है, जहां रसूखदार भीमदाता (अमजद खान) को अपनी हवेली के बाहरी हिस्से में बनी बारादरी में ब्राह्मण को गोदान करते हुए दिखाया गया है. एक दिन अपनी मृत्यु को सन्निकट जान कर इस मंशा से कि उस की मौत के बाद उस के नजदीकी रिश्तेदार तो मातम करने से रहे, वह निकटवर्ती गांव से भीखणी को बुलवाता है. जिस समय भीखणी (राखी) को जमींदार का संदेश मिलता है, वह शनीचरी (डिंपल कपाडि़या) के पास होती है.

शनीचरी का नामकरण उस की शनिवार की पैदाइश के कारण हुआ था. शनीचरी बचपन में ही शराबी गंजू से ब्याह दी गई थी, लेकिन प्लेग की चपेट में आ कर उस का भी देहांत हो चुका था. पति की मौत के बाद शनीचरी अपने बेटे बुधुआ (रघुबीर यादव) के साथ अकेली रह जाती है.

गरीबी से निजात पाने के लिए शनीचरी हवेली की नौकरी कर लेती है. लक्ष्मण सिंह (राज बब्बर) शनीचरी के रूपयौवन पर बुरी तरह आसक्त होता है, लेकिन शनीचरी इस सब से अनभिज्ञ है. उस ने लक्ष्मण सिंह को देखा भी नहीं है. एक दिन भेद तब खुलता है, जब पानी ले कर रेत के टीबों को पार कर के घर लौटती शनीचरी का लक्ष्मण सिंह से सामना होता है.

इस का फिल्मांकन अत्यंत रोचक ढंग से किया गया है. ऊंटनी पर सवार लक्ष्मण सिंह शनीचरी को रोक कर पानी पिलाने को कहता है तो शनीचरी राहगीर समझ कर उसे सहज भाव से पानी पिला देती है. बाद में लक्ष्मण सिंह उसे यह कह कर ऊंटनी पर बैठने को कहता है कि चलो मैं तुम्हें गांव तक छोड़ देता हूं.

शनीचरी को अटपटा तो लगता है लेकिन वह ऊंटनी पर बैठने की कोशिश में अपनी आशंका भी जता देती है कि अगर किसी ने कुछ कह दिया तो…

आवेश में आए लक्ष्मण सिंह का खून खौल उठता है, ‘‘लक्ष्मण सिंह के होते हुए किस की मजाल है कि कोई आंख उठा कर देख ले.’’

शनीचरी को लक्ष्मण सिंह की असलियत का पता चलता है तो अपनी गुस्ताखी पर पछताती हुई वहां से भाग लेती है, ‘‘खम्मा घणी…हुकुम माफी चाहूं…हुकूम माफी चाहूं.’’

एक दिन बुधवा एक गर्भवती वेश्या मुंगरी (सुष्मिता मुखर्जी) को घर ले आता है और शनीचरी को बताता है कि यह लड़की उस की पत्नी हे. इस बात पर शनीचरी बेटे से झगड़ बैठती है, नतीजतन बुधवा भी घर छोड़ कर चला जाता है. उसी रात बूढ़े ठिकानेदार की मौत हो जाती है. हवेली पर मातम के लिए भीखणी को बुलाया जाता है.

पिता की मृत्यु के बाद जब लक्ष्मण सिंह गांव छोड़ने का मन बना रहा होता है तो शनीचरी खम्मा घणी करने पहुंचती है, तभी उसे भीखणी की प्लेग से अकाल मृत्यु की खबर मिलती है. संदेशवाहक कहता है, ‘‘मरते समय भीखणी की जुबान पर तुम्हारा ही नाम था. मरते समय वह इस रहस्य का खुलासा कर जाती है कि असल में वही उस की मां पीवली थी. यह सुनते ही शनीचरी के आंसुओं का बांध टूट पड़ता है. इस के बाद शनीचरी रुदाली में तब्दील हो जाती है.’’

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डिसेबल नलिनी ने 31 मैडल जीत कर दिया मजाक का जवाब

सपने उन्हीं के पूरे होते हैं जिन के हौसलों  में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है.

शारीरिक रूप से 60 प्रतिशत डिसेबल फरीदाबाद की ए. नलिनी ने अपने हौसलों की उड़ान भर कर यह कर दिखाया.

नलिनी जब बैडमिंटन कोर्ट में उतरती हैं तो विरोधियों को पसीना छुड़ा देती हैं. देश के लिए इस जांबाज युवती ने ढाई दरजन से ज्यादा मैडल जीत कर दिखा दिया कि यदि मन में जब जीतना ठान लिया तो जीत निश्चित होगी. उसे कोई भी ताकत रोक नहीं सकती बल्कि सारी कायनात मन में ठाने गए कार्य को पूरा करने में जुट जाती है.

नलिनी ने बताया कि अपने 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी हैं. वह 3 साल की थीं तभी उन के सीधे पैर में पोलियो हो गया था. तब पूरे पैर की ताकत खत्म हो गई थी. यह परिवार वालों के लिए भी शौकिंग वाली बात थी. लेकिन उन के पिता आर. अरुणाचलम और मां ए. कस्तूरी ने कभी भी नलिनी को इस बात का अहसास नहीं होने दिया कि वह किसी भी तरह से कमजोर है.

मातापिता हमेशा उत्साह बढ़ाते रहे. दोनों भाई नलिनी को स्कूल छोड़ कर आते थे. क्योंकि वह खुद से चल भी नहीं पाती थीं. वह मन लगा कर पढ़ने लगीं. उम्र के हिसाब से नलिनी की लंबाई भी नहीं बढ़ रही थी. यानी वह 4 फुट से ज्यादा नहीं बढ़ सकीं.

इस से मातापिता और ज्यादा चिंतित हुए. स्कूल और बाहर उन का मजाक उड़ाया जाने लगा. डाक्टरों ने नलिनी को 60 प्रतिशत डिसेबल बताया था. ऐसे में नलिनी बहुत परेशान रहने लगीं क्योंकि अभी तो उन के सामने पूरी जिंदगी पड़ी थी.

तब मातापिता ने नलिनी का उत्साह बढ़ाया और अपनी कमजोरी को ताकत बनाने के लिए प्रेरित किया. यह बात नलिनी की समझ में आ गई. उन्होंने ठान लिया कि अब वह ऐसा काम करेंगी कि उन पर जो लोग हंसते थे वही लोग कामयाबी पर चौंके बिना नहीं रहेंगे.

इस के बाद नलिनी ने सन 2002 में बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया. पढ़ाई के साथ वह खेल की भी प्रैक्टिस करने लगीं. उन की मेहनत रंग लाई. वह स्कूल लेवल के साथ कालेज लेवल पर भी प्रतियोगिताएं जीतती रहीं. उन्होंने विभिन्न गेम्स में हिस्सा लिया. सन 2008 में हुए एशियन पैरालिंपिक कप में उन्होंने देश के लिए वूमेंस सिंगल में ब्रांज मैडल जीता.

इस के अलावा सन 2017 में कनाडा में हुए वर्ल्ड गेम्स में गोल्ड, सिल्वर और ब्रांज मैडल जीते. वह अब तक नैशनल व इंटरनैशनल लेवल पर 31 मैडल जीत चुकी हैं. इस से पहले नलिनी ने एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की थी. तब भी लोगों ने उन्हें ताने दिए कि तुम्हारे लिए नौकरी करनी संभव नहीं है. पर नलिनी ने लोगों की बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया था बल्कि वह और अच्छी नौकरी की तैयारी करने लगीं.

तब उन का सिलेक्शन एनएचपीसी में हो गया. आज नलिनी वहां डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. नलिनी ने अपनी मेहनत और लगन से सफल हो कर दिखा दिया कि किसी को भी अपने लिए किसी भी माने में कमजोर नहीं समझना चाहिए बल्कि परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए आगे बढ़ने की लगातार कोशिश करते रहना चाहिए तभी कामयाबी कदमों को चूमेगी.

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मौत के रहस्य में लिपट गई अर्पिता तिवारी: भाग 1

मायानगरी मुंबई के मलाड में 24 वर्षीय मशहूर टीवी एंकर, गायिका और अभिनेत्री अर्पिता तिवारी मीरा रोड स्थित एक फ्लैट में अकेली रहती थी. वह काफी बिंदास और जिंदादिल युवती थी और अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीना चाहती थी. अपने काम में किसी का हस्तक्षेप करना या उस पर बंदिश लगाना उसे पसंद नहीं था. वह खुले आसमान में आजाद पक्षियों की तरह उड़ना चाहती थी.

त्रिवेणीनाथ तिवारी की 3 बेटियों में से वह सब से छोटी थी. बिगबौस सीजन-4 की विजेता, टीवी एंकर और भोजपुरी फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री श्वेता तिवारी उन की सब से बड़ी बेटी है. श्वेता तिवारी अपने पति अभिनव कोहली और 2 बेटियों के साथ रहती हैं. वहीं त्रिवेणीनाथ तिवारी पत्नी निर्मला और मंझली बेटी विनीता के साथ मुंबई के घोड़ाबांधा के सरस्वती अपार्टमेंट में रहते थे.

हाईसोसायटी और हाइफाइ लाइफस्टाइल में जीने वाली अर्पिता तिवारी ने 9 दिसंबर, 2017 की सुबह तकरीबन 11 बजे पिता त्रिवेणीनाथ तिवारी को फोन कर के बताया कि वह एक इवेंट के लिए एस्सेल टावर जा  रही है. वहां कुछ जरूरी काम है, काम निपटा कर वह शाम तक लौट आएगी. वैसे भी अर्पिता जब भी घर से कहीं बाहर जाती थी तो पिता को जरूर सूचित करती थी. उस दिन भी घर से निकलते समय उस ने उन्हें बता दिया था.

देर रात 11 बजे तक जब अर्पिता का फोन नहीं आया तो त्रिवेणीनाथ थोड़े चिंतित हुए. उन का मन नहीं माना तो बेटी को फोन किया. अर्पिता घर लौट आई थी, उस ने पिता का फोन रिसीव कर के बताया कि वह घर आ चुकी है और डिनर भी कर लिया है, अब सोने जा रही है. बेटी का हालचाल मिल जाने के बाद त्रिवेणीनाथ को तसल्ली हो गई तो वह भी पत्नी के साथ सोने के लिए चले गए.

अगले दिन यानी 10 दिसंबर, 2017 की सुबह करीब 9 बजे त्रिवेणीनाथ तिवारी की मंझली बेटी विनीता के फोन पर एक काल आई. उस समय विनीता अपने औफिस में थी. फोन की स्क्रीन पर डिसप्ले हो रहे नंबर को देखा तो वह पहचान गई कि वह वह काल छोटी बहन अर्पिता के बौयफ्रैंड पंकज जाधव की है. विनीता ने काल रिसीव की तो पंकज ने उस से पूछा, ‘‘अर्पिता घर पर है?’’

यह सुन कर विनीता चौंक गई. उसे बड़ा अटपटा लगा कि वह यह बात क्यों पूछ रहा है. उस ने कहा, ‘‘वह घर पर है या नहीं, मुझे नहीं पता. लेकिन मैं पापा से पूछ कर अभी बताती हूं.’’

आधे घंटे बाद फिर पंकज का फोन आया. विनीता काल रिसीव करते हुए बोली, ‘‘सौरी पंकज, काम में बिजी थी. पापा से बात नहीं कर पाई. तुम कुछ टाइम दो, मैं अभी पापा से बात करती हूं.’’

‘‘रहने दो, अब इस की जरूरत नहीं है.’’ पंकज जाधव बोला.

‘‘क्या मतलब, तुम्हें अर्पिता की खबर मिल गई?’’ विनीता ने पूछा.

‘‘हां, मुझे खबर मिल गई है.’’ पंकज जाधव मायूस से स्वर में बोला.

‘‘क्या बात है पंकज, आज तुम्हारी जुबान कैसे लड़खड़ा रही है?’’

‘‘बात ही कुछ ऐसी है विनीता, तुम भी सुनोगी तो चक्कर खा जाओगी.’’

‘‘पहेलियां मत बुझाओ पंकज, सीधेसीधे बताओ कि तुम कहना क्या चाहते हो?’’

‘‘विनीता, एक बुरी खबर है.’’

‘‘बुरी खबर है…’’ विनीता घबरा गई, ‘‘कैसी बुरी खबर? जल्दी बताओ, ये मजाक का समय नहीं है.’’

‘‘अर्पिता अब इस दुनिया में नहीं रही. उस ने 15वीं मंजिल से कूद कर आत्महत्या कर ली है.’’

‘‘क्या बकवास कर रहे हो तुम, होश में भी हो, इस तरह की बात कर रहे हो. कहीं तुम ने सुबहसुबह चढ़ा तो नहीं ली?’’ विनीता घबराते हुए बोली.

‘‘मैं नशे में नहीं, पूरे होश में हूं.’’ पंकज जाधव ने सफाई देते हुए कहा, ‘‘विनीता, मैं सच बोल रहा हूं, अर्पिता ने बिल्डिंग से कूद कर जान दे दी है.’’

‘‘ये सब कब और कैसे हुआ?’’ विनीता ने खुद को संभालते हुए सवाल किया.

‘‘मलाड की मानवस्थल बिल्डिंग से…’’

इस के बाद पंकज जाधव पूरी कहानी बताता चला गया.

अर्पिता की मौत ने तिवारी परिवार को हिला दिया

बहन की मौत की सूचना पा कर विनीता का माथा घूम गया. उस के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे. थोड़ी देर बाद जब उस ने खुद को संभाला तो पिता के पास फोन करने के बजाए बड़ी बहन श्वेता तिवारी को फोन किया. उस ने उसे पूरी बात बता दी. विनीता ने पिता को अर्पिता की मौत की खबर इसलिए नहीं दी क्योंकि वह कुछ दिनों पहले ही पथरी का औपरेशन करवा कर अस्पताल से लौटे थे. श्वेता ने जब बहन की मौत की खबर सुनी तो वह भी सन्न रह गई.

विनीता श्वेता से मौके पर पहुंचने की बात कहते हुए औफिस से मलाड स्थित मानवस्थल के लिए रवाना हो गई. तब तक अर्पिता की मौत की सूचना मालवणी थाने को मिल चुकी थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी दीपक देशराज टीम के साथ मौके पर पहुंच चुके थे. डीसीपी जोन-11 विक्रम देशमाने भी वहां पहुंच गए. अर्पिता की लाश बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर एसी डक्ट पर अर्द्धनग्न अवस्था में पड़ी मिली.

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अर्पिता कोई छोटीमोटी हस्ती नहीं थी. ग्लैमर की दुनिया का एक बेहतरीन नगीना थी वह. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उस ने जी तोड़ मेहनत की थी. जीवन के सपनों को हकीकत में लाने के लिए उस ने दिनरात मेहनत की थी, तब कहीं जा कर वह टीवी एंकर, गायिका और हीरोइन बनी थी. उस की मौत की खबर पूरे बौलीवुड में फैल गई.

अर्पिता की मौत की सूचना मिलते ही बौलीवुड के तमाम कलाकार मौके पर पहुंच चुके थे. विनीता के अलावा श्वेता भी अपने पति अभिनव कोहली के साथ मौके पर पहुंच चुकी थीं. पुलिस अपने काम में जुटी थी. लाश की अवस्था देख कर यही अनुमान लगाया जा रहा था कि अर्पिता के साथ दुष्कर्म करने के बाद उसे ऊपर से फेंक दिया गया होगा. लेकिन शव नीचे आने के बजाय दूसरी मंजिल पर एसी डक्ट पर आ गिरा. पुलिस ने अनुमान लगाया कि निश्चय ही इस घटना को अंजाम देने में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

कागजी खानापूर्ति पूरी कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. श्वेता और विनीता दोनों बहनों ने साफसाफ कहा कि अर्पिता खुदकुशी नहीं कर सकती. वह बेहद जिंदादिल इंसान थी. अपने सपनों के साथ जीती थी. सपनों को हासिल करने के लिए जीतोड़ संघर्ष करती थी. उस का मर्डर हुआ है. उन्होंने आरोप लगाया कि अर्पिता के प्रेमी पंकज जाधव का उस की हत्या में हाथ संभव है.

अर्पिता की मौत की खबर दोनों बहनें अपने पिता से भला कब तक छिपा कर रख सकती थीं. यह बात आखिर उन्हें पता लगनी ही थी, इसलिए उन्होंने पिता को भी यह सूचना दे दी. त्रिवेणीनाथ ने जैसे ही यह खबर सुनी, वे धम्म से बिस्तर पर जा गिरे. निर्मला देवी भी बेसुध हो कर बैठ गईं.

त्रिवेणीनाथ की समझ में यह नहीं आ रहा था कि जब देर रात 11 बजे अर्पिता से उन की बात हुई थी तो उस समय उस ने खुद को अपने फ्लैट में मौजूद होने की बात कही थी. फिर वह कब और कैसे मानवस्थल बिल्डिंग पहुंच गई. यह बात उन्हें परेशान कर रही थी.

उन्होंने यह सच्चाई जब बेटियों को बताई तो वे चौंके बिना नहीं रह पाईं. वाकई मामला पेचीदा और रहस्यमय बन गया था. जिस मंजिल पर अर्पिता की लाश मिली थी, उसी मंजिल पर उस के प्रेमी पंकज जाधव का फ्लैट था. इन दिनों अर्पिता और पंकज के बीच प्रेम संबंधों को ले कर विवाद चल रहा था.

श्वेता तिवारी का आरोप

अर्पिता पंकज से शादी करना चाहती थी, जबकि पंकज इस के लिए तैयार नहीं था. पिछले 8 सालों तक दोनों के बीच चले आ रहे प्रेम संबंध टूटने के कगार पर पहुंच चुके थे.

श्वेता तिवारी ने आरोप लगाया कि पंकज और अर्पिता के बीच अकसर लड़ाई होती रहती थी और दोनों जल्द ही अलग होना चाहते थे. अर्पिता की मौत किसी घटना का परिणाम है. यह न तो सुसाइड है और न ही एक्सीडेंट. यह सुनियोजित तरीके से रेप और मर्डर का मामला है. उस ने मांग की कि इस घटना में हत्या का मुकदमा दर्ज होना चाहिए और दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए.

पुलिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक कुछ भी कहने से बचने की कोशिश करती रही. 12 दिसंबर को अर्पिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. रिपोर्ट ने उस की मौत को और रहस्यमय बना दिया था. एक ओर जहां परिवार वाले रेप के बाद हत्या का आरोप लगा रहे थे, वहीं अर्पिता की मौत के मामले में आई प्रारंभिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने सभी को चौंका कर रख दिया.

रिपोर्ट के मुताबिक, उस के साथ किसी तरह की जोरजबरदस्ती नहीं की गई थी. लेकिन मौत की वजह मल्टीपल इंजरी बताई गई. ये इंजरी या तो कूदने की वजह से या फिर ऊपर से नीचे फेंकने की वजह से आई थीं. अर्पिता के सिर और शरीर के कई हिस्सों में चोट के गहरे निशान थे. यही नहीं, उस के खून में अल्कोहल की मात्रा भी पाई गई.

थानाप्रभारी इंसपेक्टर दीपक देशराज ने घटना की जांच शुरू की. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने बिल्डिंग के चौकीदार से पूछताछ की. चौकीदार ने उन्हें एक चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि 9 दिसंबर की रात साढ़े 11 बजे के करीब अर्पिता अपने प्रेमी पंकज जाधव के साथ उस के फ्लैट पर आई थी. दोनों बहुत खुश थे. कमरे में जाते ही दोनों झगड़ने लगे. दोनों के बीच हाथापाई भी हुई थी. उस के बाद उन्होंने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया. फिर क्या हुआ, कुछ पता नहीं चला.

पार्टी में ऐसा क्या हुआ था कि अर्पिता को मौत के मुंह में जाना पड़ा  पुलिसिया जांच पड़ताल में पता चला कि उसी रात पंकज जाधव के दोस्त और 3डी डिजाइनर अमित हाजरा, जोकि मानवस्थल बिल्डिंग में 15वीं मंजिल पर रहता है, ने अपने फ्लैट में एक पार्टी रखी थी. उस पार्टी में अर्पिता तिवारी, पंकज जाधव के अलावा अमित का पेइंगगेस्ट मनीष, उस का साथी श्रवण सिंह और कृष्णा मौजूद थे.

पाखंड का अंत : बिंदु ने कैसे किया बाबा का पर्दाफाश

बिंदु के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे, पर मरने से पहले वे बिंदु का रिश्ता भमुआपुर के चौधरी हरिहर के बेटे बिरजू से कर गए थे.

उस समय बिंदु 2 साल की थी और बिरजू 5 साल का. बिंदु के मातापिता के मरने के बाद उसे उस के चाचा ने पालापोसा था.

बिंदु के चाचा बहुत ही नेकदिल इनसान थे. उन्होंने बिंदु को शहर में रख कर पढ़ायालिखाया था. यही वजह थी कि 17वें साल में कदम रख चुकी बिंदु 12वीं पास कर चुकी थी.

बिरजू के घर से गौने के लिए कई प्रस्ताव आए, लेकिन बिंदु के चाचा ने उन्हें साफ मना कर दिया था कि वे गौना उस के बालिग होने के बाद ही करेंगे.

उधर बिरजू भी जवान हो गया था. उस का गठीला बदन देख कर गांव की कई लड़कियां ठंडी आहें भरती थीं. पर  बिरजू उन्हें घास तक नहीं डालता था.

‘‘अरे, हम पर भले ही नजर न डाल, पर शहर जा कर अपनी जोरू को तो ले आ,’’ एक दिन चमेली ने बिरजू का रास्ता रोकते हुए कहा.

‘‘ले आऊंगा. तुझे क्या? चल, हट मेरे रास्ते से.’’

‘‘क्या तेरी औरत के संग रहने की इच्छा नहीं होती? कहीं वो तो नहीं है तू…?’’ चमेली ने एक आंख दबा

कर कहा, तो उस की हमउम्र सहेलियां खिलखिला कर हंस पड़ीं.

‘‘चमेली, ज्यादा मत बन. मैं ने कह तो दिया, मुझे इस तरह की बातें पसंद नहीं हैं,’’ कहते हुए बिरजू ने आंखें तरेरीं, तो वे सब भाग गईं.

उधर बिंदु की गदराई जवानी व अदाएं देख कर स्कूल के लड़के उस के आसपास मंडराते रहते थे.

गोरा बदन, आंखें बड़ीबड़ी, उभरी हुई छाती… जब बिंदु अपने बालों को झटकती, तो कई मजनू आहें भरने लगते.

बिंदु को भी सजनासंवरना भाने लगा था. जब कोई लड़का उसे प्यासी नजरों से देखता, तो वह भी तिरछी नजरों से उसे निहार लेती.

बिंदु के रंगढंग और बिरजू के घर वालों के बढ़ते दबाव के चलते उस के चाचा ने गौने की तारीख तय कर दी और उसी दिन बिरजू आ कर अपनी दुलहन को ले गया.

शहर में पलबढ़ी बिंदु को गांव में आ कर थोड़ा अजीब तो लगा, पर बिरजू को पा कर वह सबकुछ भूल गई.

बिंदु को बहुत चाहने वाला पति मिला था. दिनभर खेत में जीतोड़ मेहनत कर के जब शाम को बिरजू घर आता, तो बिंदु उस का इंतजार करती मिलती.

रात होते ही मौका पा कर बिरजू बिंदु को अपनी मजबूत बांहों में कस कर अपने तपते होंठ उस के नरम गुलाबी होंठों पर रख देता था.

कब 2 साल बीत गए, पता ही नहीं चला. बिंदु और बिरजू अपनी हसीन दुनिया में खोए हुए थे कि एक दिन बिंदु की सास अपने पति से पोते की चाहत जताते हुए बोलीं, ‘‘बहू के पैर अभी तक भारी क्यों नहीं हुए?’’

सचाई तो यह थी कि यह बात घर में सभी को चुभ रही थी.

‘‘सुनो,’’ एक दिन बिरजू ने बिंदु के लंबे बालों को सहलाते हुए पूछा, ‘‘हमारा बच्चा कब आएगा?’’

‘‘मुझे क्या मालूम… यह तो तुम जानो,’’ कहते हुए बिंदु शरमा गई.

‘‘मां को पोते का मुंह देखने की बड़ी तमन्ना है.’’

‘‘और तुम्हारी?’’

‘‘वह तो है ही, मेरी जान,’’ बिरजू ने बिंदु को खुद से सटाते हुए कहा और बत्ती बुझा दी.

‘‘मुझे लगता है, बहू में कोई कमी है. 3 साल हो गए ब्याह हुए और अभी तक गोद सूनी है. जबकि अपने बिरजू के साथ ही गोपाल का गौना हुआ था, वह तो 2 बच्चों का बाप भी बन गया है,’’ एक दिन पड़ोस की काकी घर आईं और बोलीं.

बिंदु के कानों तक जब ऐसी बातें पहुंचतीं, तो वह दुखी हो जाती. वह भी यह सोचने पर मजबूर हो जाती कि आखिर हम पतिपत्नी तो कोई ‘बचाव’ भी नहीं करते, फिर क्या वजह है कि 3 साल होने पर भी मैं मां नहीं बन पाई?

इस बार जब वह अपने मायके गई, तो उस ने लेडी डाक्टर से अपनी जांच कराई. पता चला कि उस की बच्चेदानी की दोनों नलियां बंद हैं. इस वजह से बच्चा ठहर नहीं रहा है.

यह जान कर बिंदु घबरा गई.

‘‘क्या अब मैं कभी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ डाक्टर से पूछने पर बिंदु का गुलाबी चेहरा पीला पड़ गया.

‘‘ऐसी बात नहीं है. आजकल विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है. तुम जैसी औरतें भी मां बन सकती हैं,’’ डाक्टर ने कहा, तो बिंदु को चेहरा खिल उठा.

गांव आ कर उस ने बिरजू को सारी बात बताई और कहा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कुछ दिनों के लिए शहर चलना होगा.’’

‘‘शहर तो हम लोग बाद में जाएंगे, पहले तुम आज शाम को बंगाली बाबा के आश्रम में जा कर चमत्कारी भभूत का प्रसाद ले आना. सुना है कि उस के प्रसाद से कई बांझ औरतों के बच्चे हो गए हैं,’’ बिरजू बोला.

‘‘यह तुम कैसी अनपढ़ों वाली बातें कर रहे हो? तुम्हें ऐसा करने को किस ने कहा?’’

‘‘मां ने.’’

बिंदु ने कहा, ‘‘देखिए, मांजी तो पुराने जमाने की हैं, इसलिए वे इन बातों पर भरोसा कर सकती हैं, पर हम तो जानते हैं कि ये बाबा वगैरह एक नंबर के बदमाश होते हैं. भोलीभाली औरतों को चमत्कार के जाल में फंसा कर…

‘‘नहीं, मैं तो नहीं जाऊंगी किसी के पास,’’ बिंदु ने बहुत आनाकानी की, पर उस की एक न सुनी गई.

बिंदु समझ गई कि अगर उस ने सूझबूझ से काम नहीं लिया, तो उस का घरसंसार उजड़ जाएगा. उस ने मजबूती से हालात का सामना करने की ठान ली.

बाबा के आश्रम में पहुंच कर बिंदु ने 2-3 औरतों से बात की, तो उस का शक सचाई में बदल गया.

उन औरतों में से एक ने उसे बताया, ‘‘बाबा मुझे अपने आश्रम के अंदरूनी हिस्से में ले गया, जहां घना अंधेरा था.’’

‘‘फिर क्या हुआ तुम्हारे साथ?’’

‘‘पहले तो बाबा ने मुझे शरबत जैसा कुछ पीने को दिया. शरबत पी कर मैं बेहोश हो गई और जब मैं होश में आई, तो ऐसा लगा जैसे मैं ने बहुत मेहनत का काम किया हो.’’

‘‘और भभूत?’’

‘‘वह पुडि़या यह रही,’’ कहते हुए महिला ने हाथ आगे बढ़ा कर भभूत की पुडि़या दिखाई, तो बिंदु पहचान गई कि वह केवल राख ही है.

अगले दिन बिंदु फिर आश्रम में गई, तभी एक सास अपनी जवान बहू को ले कर वहां आई. उसे भी बच्चा नहीं ठहर रहा था.

बाबा ने उसे अंदर आने को कहा. उस के बाद बिंदु की बारी थी, पर जैसे ही वह औरत बाबा के साथ अंदर गई, बिंदु भी नजर बचा कर अंदर घुस गई.

बाबा ने उस औरत को कुछ पीने को दिया. जब वह बेहोश हो गई, तो बाबा ने उस के कपड़े हटा कर…

बिंदु यह सब देख कर हैरान रह गई. उस ने इरादे के मुताबिक अपने कपड़ों में छिपाया हुआ कैमरा निकाला और कई फोटो खींच लिए.

वह औरत तो बेहोश थी और बाबा वासना के खेल में मदहोश था. भला कैमरे की फ्लैश पर किस का ध्यान जाता.

कुछ दिनों बाद बिंदु ने भरी पंचायत में थानेदार के सामने वे फोटो दिखाए. इस से पंचायत में खलबली मच गई.

बाबा को उस के चेलों समेत हवालात में बंद कर दिया गया, पर तब तक अपने झूठे चमत्कार के बहाने वह न जाने कितनी ही औरतों की इज्जत लूट चुका था. खुद संरपच की बेटी विमला भी उस पाखंडी के हाथों अपनी इज्जत लुटा चुकी थी.

पूरे गांव में बिंदु के हौसले और उस की सूझबूझ की चर्चा हो रही थी. जिस ने न केवल अपनी इज्जत बचा ली थी, बल्कि गांव की बाकी मासूम युवतियों की जिंदगी बरबाद होने से बचा ली थी.

शहर जा कर बिंदु ने डाक्टर से अपना इलाज कराया और महीनेभर बाद गांव लौटी.

तीसरे महीने जब वह उलटी करने के लिए गुसलखाने की तरफ दौड़ी, तो बिरजू की मां व पूरे घर वालों का चेहरा खुशी से खिल उठा.

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हैल्थी सैक्स स्पैशल : पति न हो तोंदवाला

आज की अव्यवस्थित जीवनशैली की वजह से अधिकतर लोग कम उम्र में ही मोटापे के शिकार हो जाते हैं. जिस का पता उन्हें बाद में लगता है. मोटापा कैरियर से ले कर दैनिक जीवन पर हावी हो जाता है. अगर शुरू में ही इस को काबू कर लिया जाए तो इसे बढ़ने से रोका जा सकता है.

यह केवल आप की फिटनैस को ही प्रभावित नहीं करता, बल्कि आप के रहनसहन, कामकाज के ढंग और फिगर को प्रभावित करने के साथसाथ कई बीमारियों को आमंत्रित भी करता है.

इस बारे में मुंबई के ग्लोबल हौस्पिटल की बैरियाट्रिक सर्जन डा. अपर्णा गोविल भास्कर कहती हैं कि मोटापे के कई कारण होते हैं, कुछ लोगों में बचपन से मोटापे की प्रवृत्ति होती है, तो किसी में यह वंशानुगत होता है.

क्यों बढ़ता है मोटापा

–    पहले खानेकमाने के लिए लोगों को अधिक मेहनत करनी पड़ती थी. ऐसे में जो फैट शरीर में रहता था, उस का उपयोग होता था. लेकिन आज लोगों को खाना कम शारीरिक परिश्रम से मिलता है, इसलिए जमा फैट का इस्तेमाल नहीं होता और उस की लेयर बढ़ती जाती है.

–    हर काम आज मशीन से होता है, शारीरिक मेहनत कम हो गई है. भूख लगने पर खाना आसानी से आसपास या मोबाइल से और्डर कर मंगा लिया जाता है.

–    जंक फूड का क्रेज ज्यादा बढ़ गया है.

–    किसीकिसी का वजन ही 80 किलोग्राम का होता है, जो जैनिटिकली होता है, उस का वजन या फैट कम होना मुश्किल होता है.

नियंत्रित करने के तरीके

–    मोटापे पर नियंत्रण का सब से आसान तरीका हैल्थी डाइट लेना है.

–    फिजिकल ऐक्टिविटी को बढ़ाना है.

–    8 से 10 किलोग्राम वजन डाइट और लाइफस्टाइल बदल कर कम किया जा सकता है. इस के लिए किसी डाइटीशियन से मिलें.

–    अगर बौडी मास इंडैक्स 35 से ऊपर हो और डाइट व जीवनशैली के बदलने पर भी वजन कम नहीं हो रहा हो या बारबार घटबढ़ रहा हो, तो बैरियाट्रिक सर्जरी करानी पड़ती है. यह सर्जरी दूरबीन से की जाती है, जिस में 2 घंटे का समय लगता है.

नौन सर्जिकल थेरैपी

मोटापा कम करने के लिए कुछ नौन सर्जिकल थेरैपी भी हैं, जो काफी हद तक आप के मोटापे को कम कर सकती हैं.

–    बैलेंस्ड डाइट के साथसाथ यू लाइपो मशीन का प्रयोग किया जाता है, जो फैट सेल्स को ब्रेक करती है और धीरेधीरे पेट या शरीर की चरबी को कम करती है.

–    क्रायो थेरैपी उन लोगों के लिए अधिक उपयोगी है जिन्हें मोटापे के साथसाथ घुटने या स्पाइन का दर्द हो, जिस की वजह से वे अधिक व्यायाम नहीं  कर सकते, बिना व्यायाम यह वजन को कम कर सकती है.

–    इस के अलावा इलैक्ट्रिक मसल्स स्टीमुलेटर एक मशीन है, जो मसल्स को स्टीमुलेट करती है जिस से मैटाबोलिक रेट बढ़ता है और फैट कम होता है. इस का कोई साइड इफैक्ट नहीं होता.

मेहनत करें, पसीना बहाएं, व्यायाम करें, घी, तेल, मसाले, मक्खन, चीनी, चावल व मैदा से परहेज करें. नहीं तो तोंद बढ़ती रहेगी और मित्रों या औफिस में यों ही आप मजाक के पात्र बनते रहेंगे. दांपत्य जीवन में भी इस का असर पड़ता है. सैक्सलाइफ में मोटापा सब से बड़ी रुकावट है. इसलिए हमेशा फिट व हिट रहें.

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हैल्थी सैक्स स्पैशल : औफिस में भी दिखें आकर्षक

स्नेहा अपने काम में बहुत मेहनती व ईमानदार थी, लेकिन बहनजी वाले अपने लुक्स के चलते सहकर्मियों की नजरों में मजाक का पात्र बन जाती थी. वहीं, शिल्पी अपने ग्लैमरस लुक, स्टाइलिश कपड़ों, हेयरस्टाइल और ट्रैंडी हील्स आदि के चलते बौस सहित हर किसी की फ्रैंडलिस्ट में सब से ऊपर थी. जाहिर है कि आप भी शिल्पी जैसा दिखना चाहेंगी, तो इस के लिए बनाएं खुद को अट्रैक्टिव.

पार्लर से खुद को दें डिफरैंट टच : कामकाज में बिजी रहने के कारण हम अपने लिए समय नहीं निकाल पाते. नतीजतन, उम्र से ज्यादा बड़े दिखने लगते हैं. हर पल, हर मौसम, हर अवस्था में खूबसूरती बरकरार रहे, इस के लिए खुद को टिपटौप रखें. आप समयसमय पर क्लींजिंग, रैगुलर हेयरकट, आइब्रो, वैक्स आदि करवाती रहें. इस से स्किन में रौनक आने के साथसाथ खुद को देख, आप का कौन्फिडैंस लैवल भी बढ़ेगा.

लेटैस्ट ट्रैंड्स के कपड़े पहनें : आप आउटफिट्स के मामले में खुद को तभी परफैक्ट दिखा पाएंगी जब मार्केट में क्या नया फैशन चल रहा है, इस पर नजर रखें. आप भले ही ब्रैंडेड कपड़े न खरीदें, लेकिन जो भी खरीदें वे लेटैस्ट फैशन ट्रैंडस के हों और उन का कलर कौंबिनेशन परफैक्ट हो. इस बात का भी आप खास ध्यान रखें कि वे कपड़े आप पर जंचें.

आज मार्केट में स्टाइलिश कुरतियां विद प्लाजो, जींस, लौंग शर्ट्स, स्कर्ट वगैरह ट्रैंड में हैं. ये कपड़े हर उम्र की महिलाओं पर सूट करते हैं और वर्कप्लेस पर भी अच्छा लुक देते हैं.

फुटवियर्स से पर्सनैलिटी को बनाएं और अट्रैक्टिव : कपड़ों के साथसाथ आप के फुटवियर्स भी अट्रैक्टिव होने चाहिए. जिस किसी की भी आप के पैरों पर नजर जाए तो वह देखता ही रह जाए. इस के लिए जरूरी नहीं कि आप हाईहील ही कैरी करें बल्कि फ्लैट चप्पलों में ढेरों डिजाइंस के साथ आप स्टाइलिश जूतेजूतियां, सैंडिल्स भी पहन सकती हैं. ये आरामदायक होने के साथसाथ आप की पर्सनैलिटी को और अट्रैक्टिव बनाएंगी.

बैग्स भी हों स्टाइलिश : जब बात हो खुद को मौडर्न दिखाने की, तो हैंडबैग्स में भी खुद को पीछे क्यों रखें. जहां हैंडबैग्स दिखने में स्मार्ट होने जरूरी हैं, वहीं उन में इतना स्पेस भी होना चाहिए कि जरूरी चीजें आसानी से कैरी की जा सकें. इस के लिए मार्केट में डबल बैग्स का स्टाइल काफी डिमांड में है. आप सिंपल बैल्ट स्टाइल बैग्स भी ले सकती हैं. लैपटौप बैग्स भी काफी स्टाइलिश आने लगे हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप किसे यूज करती हैं.

ऐक्सैसरीज पर दें ध्यान : स्टाइलिश कपड़ों के साथसाथ ऐक्सैसरीज भी डिफरैंट होनी चाहिए. आप मैचिंग की इयररिंग्स के साथ हैंड ऐक्सैसरीज या फिर हैंडवाच से अपने हाथों के लुक को चेंज कर सकती हैं. औफिस के हिसाब से लाइट मेकअप करें, फिर खुद महसूस करें औफिस में अपने कौन्फिडैंस को.

मेल ग्रूमिंग भी जरूरी

सिर्फ महिलाएं ही नहीं, बल्कि पुरुष भी औफिस में अट्रैक्टिव लगें. इस के लिए डेली शेव करने के साथ आयरन किए कपड़े व जूते पौलिश किए हों. अच्छे हेयरकट के साथ फेस पर चमक के लिए मसाज करवाएं. या कोई बढि़या फेस क्रीम इस्तेमाल करें. ताकि चाहे औफिस फ्रैंड्स के बीच हों या फिर बौस के साथ, हर जगह आप के गुडलुक्स की तारीफ हो.

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