रिलायंस बिग टीवी बेहतरीन औफर लेकर आई है. कंपनी ने भारतीय यूजर्स के लिए ऐसा प्लान पेश किया है, जिसके बारे में जानकर आपका चेहरा खिल जाएगा. कंपनी ने एक साल के लिए सभी चैनल बिल्कुल फ्री कर दिया है. कंपनी ने डिजिटल इंडिया पहल के तहत भागीदारी निभाते हुए डायरेक्ट टू होम सर्विस के तहत जबरदस्त प्लान पेश किया. रिलायंस ने इसके लिए देशभर के 50 हजार पोस्ट औफिस के साथ पार्टनरशिप की है. इसके बाद पोस्ट औफिस के जरिए भी कस्टमर शुरुआती बुकिंग कर सकते हैं.
5 साल तक फ्री चैनल्स
इस प्लान में कंपनी 500 फ्री-टू-एयर चैनलों को 5 सालों के लिए मुफ्त में लोगों को दिखाएगी. जबकि पेड चैनलों को आप 1 साल के लिए फ्री में देख सकते हैं. इसके लिए आपको रिलायंस बिग टीवी के सेट टौप बौक्स की प्री बुकिंग करनी होगी. बुकिंग करने वाले कस्टमर्स को एचडी HEVC सेट-टौप बौक्स दिया जाएगा. यह लेटेस्ट फीचर्स जैसे, रिकौर्डिंग, यूएसबी पोर्ट, एचडीएमआई पोर्ट, रिकौर्डिंग एंड व्यूइंग से लैस होगा. 1 साल तक चैनल्स फ्री होंगे. इसमें एचडी चैनल भी शामिल होंगे.
20 जून से बुकिंग होगी शुरू
कंपनी 20 जून से इस सर्विस की प्री-बुकिंग शुरू करने वाली है. राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम के उपभोक्ता डीटीएच की प्री-बुकिंग कर सकेंगे.
499 रुपए में मिलेगा कनेक्शन
यूजर इस औफर को 499 रुपए जमा करके पोस्ट औफिस से ले सकते हैं. वहीं, सेट-टौप बौक्स इंस्टौलेशन के वक्त 1500 रुपए चुकाना होंगे. लौयल्टी बोनस लेने के लिए कस्टमर को दूसरे साल से 300 रुपए का रिचार्ज करवाना होगा. ऐसा दो सालों तक करना होगा. इसके बाद सब्सक्राइबर को 2 हजार रुपए का लौयल्टी बोनस मिलेगा. मतलब यह जो अमाउंट आप शुरू में जमा कर रहे हैं, वो पूरा वापस हो जाएगा.
कहां से करें बुकिंग
रिलायंस बिग टीवी के औफिशियल वेबसाइट पर जाकर सेट टौप बौक्स के लिए प्री-बुकिंग कर सकते हैं. इस प्री-बुकिंग के लिए आपको 499 रुपए का भुगतान करना होगा. वहीं, आउटडोर यूनिट के लिए 1500 रुपए का भुगतान करना होगा.
डिजिटल क्रांति लाने की तैयारी
कंपनी के निदेशक विजेन्दर सिंह ने इस नए प्लान की घोषणा करते हुए कहा कि ये प्लान भारत में मनोरंजन के भविष्य को पारिभाषित करने जा रहा है. उन्होंने कहा कि रिलायंस बिग टीवी मुफ्त में एक एचडी एचईवीसी HD HEVC सेट टौप बौक्स से मनोरंजन में डिजिटल क्रांति लाने के लिए तैयार है.
उनके फैंस के लिए ये खबर बुरी हो सकती है. रजनी की मच अवेटेड फिल्म 2. 0 को देखने के लिए अगले साल तक का इंतजार करना होगा.
रजनीकांत और अक्षय कुमार स्टारर जिस फिल्म 2.0 को लेकर बेहद उत्सुक रहे हैं उसके रिलीज की अब तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं है और अब ताजा खबर है कि फिल्म को सिनेमाघरों तक आने में लंबा इंतजार करना पड़ेगा. फिल्म का पिछले दो साल से इंतजार हो रहा है जो अभी तक खत्म नहीं हुआ है. खबर है कि शंकर के निर्देशन में बन रही रोबोट/इंधीरण की ये सीक्वल अब इस साल नहीं आ पायेगा. इसका सबसे बड़ा कारण फिल्म को लेकर किया जा रहा स्पेशल इफेक्ट्स का महत्वपूर्ण काम है. खबर है कि 3 डी कन्वर्जन के साथ इंटरनेशनल स्तर के स्पेशल इफेक्ट्स पर अब तक काम पूरा नहीं हुआ है और निकट भविष्य में ऐसे कोई आसार भी नहीं है. सूत्रों के मुताबिक पहले ऐसा कहा जा रहा था की फिल्म दशहरा तक रिलीज हो जायेगी लेकिन ऐसा नहीं होगा.
वैसे उसके बाद 2. 0 को नवम्बर और दिसंबर में आने का कोई चांस नहीं होगा क्योंकि पहले आमिर खान की ठग्स औफ हिन्दोस्तान और फिर शाहरुख खान की जीरो आएगी. फिल्म के निर्माता के तरफ से फिल्म की रिलीज को लेकर अभी कोई बात नहीं की जा रही है. वीएफएक्स की प्रक्रिया का दिन रात चल रहा है लेकिन काम बहुत ही ज्यादा बचा है. मिक्सिंग, रेंडरिंग और 3 डी इफेक्ट्स को भी पूरा करने में समय लग रहा है. सूत्रों के मुताबिक इस साल के अंत में 2. 0 की फाइनल डेट घोषित की जायेगी. यही नहीं फिल्म के बजट को लेकर भी अब चिंता बढ़ रही है जो कई गुना बढ़ चुका है. इस बीच रजनीकांत कार्तिक सुब्बराज की अगली फिल्म की शूटिग के लिए देहरादून चले गए हैं.
क्यों हुआ ये सब
दरअसल ये सारी गड़बड़ी उस अमेरिकी कंपनी की वजह से है जिसने फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स का काम बीच में ही छोड़ दिया. बता दें कि रजनीकांत और अक्षय कुमार स्टारर फिल्म 2.0 को पहले इस साल जनवरी में रिलीज होना था लेकिन स्पेशल इफेक्ट्स का काम बाकी होने के कारण डेट अप्रैल में कर दी गई. सूत्रों के मुताबिक इस फिल्म के वीएफएक्स का काम एक अमेरिकी डिजिटल कंपनी को सौंपा गया था. कंपनी इससे पहले अपना काम पूरा कर पाती, उसकी माली हालत खराब हो गई और कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. इस कारण 2.0 के निर्माता को 3डी और बाकी इफेक्ट्स का काम फिर से करवाना पड़ा.
ओवरबजट हो कर करीब 450 करोड़ की लागत तक पहुंच गई फिल्म 2. 0 में रजनीकांत अपने पुराने वाले रोल में हैं जबकि अक्षय कुमार बड़े ही विचित्र गेट अप में विलेन बने दिखेंगे. पिछली बार फिल्म में ऐश्वर्या राय बच्चन थीं तो इस बार एमी जैक्सन फीमेल लीड में होंगी. अक्षय कुमार जिस डौक्टर रिचर्ड का रोल कर रहे हैं उसका गेटअप एक राक्षसी कौवे जैसा है.
औस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान इयान चैपल को लगता है कि इंग्लैंड के खिलाफ पांच मैचों की टेस्ट सीरीज में विराट कोहली की टीम इंडिया के पास जीत दर्ज करने का सर्वश्रेष्ठ मौका होगा क्योंकि घरेलू टीम कई मोर्चों पर अच्छा नहीं कर रही. चैपल ने ईएसपीएन क्रिकइंफो वेबसाइट पर अपने कौलम में लिखा, ‘‘भारत के पास इंग्लैंड और औस्ट्रेलिया को टेस्ट सीरीज में उनकी सरजमीं पर हराने का दुर्लभ मौका है. लौर्ड्स के मैदान पर पाकिस्तान से हार के बाद इंग्लैंड की टीम को झटका लगा है. इसके बाद इंग्लैंड ने पाकिस्तान को हेडिंग्ले में हराया तो लेकिन वह प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं रही.’’
इयान चैपल ने इंग्लैंड की टीम में कई खामियां गिनाई जिसमें एलिस्टर कुक के प्रदर्शन के साथ सलामी बल्लेबाजी के लिए उनके जोड़ीदार का बार-बार बदलना और तेज गेंदबाजी विभाग में सिर्फ दाएं हाथ के गेंदबाजों का होना शामिल हैं. उन्होंने कहा कि आफ स्पिनर डोम बेस अनुभवहीन है.
चैपल ने लिखा, ‘‘इंग्लैड का शीर्ष कर्म बार-बार चरमरा रहा है, दोनों सलामी बल्लेबाजों के लचर प्रदर्शन से यह आश्चर्यजनक नहीं है. कुक के साथ पारी की शुरूआत के लिए कई बल्लेबाजों को आजमाया गया. कुक का प्रदर्शन भी लचर रहा है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘एलिस्टर कुक ने दो दोहरे शतक जरुर लगाए लेकिन इससे इस तथ्य में कोई बदलाव नहीं आएगा कि उन्होंने पिछले एक साल में 29 टेस्ट पारियों में 19 बार 20 रन से कम की पारी खेली है जिसमें वह दस बार दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंचे. अगर सलामी बल्लेबाज लगातार अंतराल पर शतक नहीं लगाता है तो भी उसे यह सुनिश्चित करना होता है कि मध्यक्रम को नयी गेंद का सामना नहीं करना पड़े और कुक इन दोनों मोर्चों पर विफल रहे हैं.’’
स्पिनरों के बारे में बात करते हुए चैपल ने कहा, ‘‘स्मिथ (चयनकर्ता एड स्मिथ) के चयन में उल्लेखनीय बात औफ स्पिनर डौम बेस का चयन है, जो ऊर्जावान क्रिकेटर हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘उनकी बल्लेबाजी और खेल में बने रहने की जीवटता की तारीफ की जानी चाहिए लेकिन पहली नजर में लगता है कि उनकी औफ स्पिन से भारतीय टीम को कोई खास परेशानी नहीं होगी. हेडिंग्ले में एक ओवर में उन्होंने इतनी फुलटौस गेंद फेंकी जितनी रविचंद्रन अश्विन पूरे साल में भी नहीं फेंकते हैं. ऐसी गेंदबाजी का विराट कोहली और मुरली कार्तिक लुत्फ उठाऐंगे.’’
उन्होंने कहा कि एंडरसन जैसे गेंदबाज होने के बाद भी तेज गेंदबाजी में विविधता की कमी का भी अगस्त में होने वाली टेस्ट सीरीज में इंग्लैंड के प्रदर्शन पर असर पड़ेगा. उन्होंने कहा, ‘‘सलामी बल्लेबाजी के अलावा औस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड दौरे पर तेज गेदबाजी इंग्लैड की सबसे बड़ी समस्याओं में से थी जिसमें दाएं हाथ के सभी गेंदबाज लगभग एक सी गति से गेंदबाजी करते हैं.’’
बता दें कि भारतीय क्रिकेट टीम वर्ष 2018 में इंग्लैंड का दौरा करेगी और इस दौरे की शुरुआत 3 जुलाई से होगी. इस दौरे पर भारत को इंग्लैंड के खिलाफ 5 टेस्ट, 3 वनडे और 3 टी-20 मैचों की सीरीज खेलनी है. इंग्लैंड के खिलाफ भारत के क्रिकेट सीरीज की शुरुआत 3 जुलाई से ओल्ड ट्रेफर्ड में टी-20 मैच के साथ होगी.
70 वर्षीय भंवरलाल शाह मूलरूप से राजस्थान के जिला पाली के गांव रावड़ी के रहने वाले थे. घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण सालों पहले उन्होंने रोजीरोटी की तलाश में पुणे शहर की राह पकड़ी थी. उस समय पुणे छोटा सा शहर हुआ करता था. उन्होंने पुणे की वारजे मालवाड़ी में एक किराए की दुकान ली. उन के पास जो जमापूंजी थी, उस से उन्होंने अपना कारोबार शुरू किया.
जैन धर्म के अनुयायी भंवरलाल ईमानदार, मधुर व्यवहार वाले नेकदिल इंसान थे. वह गरीबों की हरसंभव मदद किया करते थे. अगर किसी ग्राहक के पास पैसे नहीं होते तो वह उसे सामान भी उधार दे दिया करते थे. यही कारण था कि उस इलाके के सारे लोग उन की दुकान पर आते थे, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी.
जैसेजैसे उस इलाके की आबादी बढ़ती गई, वैसेवैसे उन की दुकान की आमदनी भी बढ़ती गई. इस के बाद वह बीवीबच्चों को भी राजस्थान से पुणे ले आए. इसी बीच उन्होंने किराए की दुकान छोड़ कर अपनी दुकान खरीद ली. उन के परिवार में पत्नी के अलावा उन के 3 बेटे मुकेश शाह, भरत शाह और विपुल शाह थे. तीनों बच्चे पढ़ रहे थे. छोटा बेटा विपुल परिवार में सब से छोटा था, इसलिए परिवार में सब से ज्यादा प्यार उसे ही मिलता था.
ज्यादा लाड़प्यार की वजह से वह जिद्दी स्वभाव का हो गया था, जिस से उस का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. अकसर वह दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता रहता था. वह अपने भाइयों की तरह कोई डिग्री वगैरह तो नहीं ले पाया लेकिन व्यवहारकुशल था. पिता ने विपुल को दुकान पर बैठाना शुरू कर दिया. भंवरलाल ने थोक में भी सामान बेचना शुरू कर दिया था, जिस से आमदनी और ज्यादा बढ़ गई.
भंवरलाल ने बेटों की पढ़ाई के बाद उन के व्यवसाय की भी व्यवस्था कर दी. अपने बड़े बेटे मुकेश के लिए उन्होंने धामरी में एक दुकान खुलवा दी तो भरत और विपुल के लिए वारजे मालवाड़ी स्थित चर्च के पीछे एक जनरल स्टोर खुलवा दिया. इस में वह किताबें और स्टेशनरी भी बेचने लगे.
भंवरलाल ने कारोबार बढ़ाया तो उन्होंने अपने गांव के कई लड़कों को बुला कर अपनी दुकान पर रख लिया था. थोड़े ही दिनों में उन की दुकान की पुणे के अन्य क्षेत्रों में भी शाखाएं हो गई थीं.
अपने तीनों बच्चों को अपने पैरों पर खड़े देख कर भंवरलाल बेफिक्र हो गए थे. बाद में उन्होंने उन की शादी कर दी तो 2-3 साल में उन के आंगन में नातीपोतों की किलकारियां भी गूंजने लगीं.
कुछ दिनों तक वह अपने नातीपोतों, बहू और बेटों के साथ रहे. जब उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि बेटे अब अपना कारोबार संभाल लेंगे, तब उन्होंने अपने धर्मगुरुओं से महावीर स्वामी का मंत्र ले लिया और सांसारिक मोहमाया को त्याग कर उन के साथ निकल गए.
अपने पिता के वहां मौजूद न रहने के बावजूद भाइयों ने कारोबार को बुलंदियों तक पहुंचाया. कारोबार अच्छा चल रहा था, परिवार सुखी था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. उन्होंने रहने के लिए पुणे के सिंहगढ़ रोड स्थित गंगा भाग्योदय इमारत में फ्लैट ले लिए थे. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि विपुल के जीवन में प्रेरणा कांबले नाम की एक ऐसी आंधी आई कि विपुल को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ गया.
विपुल की जिंदगी में आई प्रेरणा नाम की आंधी
32 वर्षीय विपुल 3 बच्चों का बाप बन चुका था. इस के बावजूद वह आशिकमिजाज था. मौका मिलने पर वह खूबसूरत लड़कियों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश में लगा रहता था.
2015 में प्रेरणा कांबले और विपुल की मुलाकात उस समय हुई, जिस समय प्रेरणा कांबले अपने कोर्स की कुछ किताबें खरीदने के लिए विपुल की दुकान पर गई थी. शोख और चंचल स्वभाव की प्रेरणा को देखते ही विपुल के दिल में घंटियां बज उठीं. वह उसे अपलक देखता रह गया. उसे ऐसा लगा जैसे उस की दुकान पर कोई परी आई हो.
उस की नजरें देख कर एक बार को प्रेरणा भी शरमा गई थी. फिर उस ने अपनी किताबों की सूची विपुल की तरफ बढ़ाई. विपुल ने कुछ किताबें निकाल कर उस के सामने रख दीं और बाकी किताबें दुकान में उपलब्ध न होने की बात बता कर अगले दिन उपलब्ध कराने को कह दिया.
किताबों का उपलब्ध न होना सिर्फ एक बहाना था. उसे तो प्रेरणा कांबले को बारबार अपनी दुकान पर बुलाना था. उस का मानना था कि जितनी बार प्रेरणा उस की दुकान पर आएगी, उतनी बार उसे बात करने का मौका मिलेगा और बात आगे बढ़ेगी. वह प्रेरणा को पूरी तरह अपने दिलोदिमाग में बसा चुका था.
प्रेरणा कांबले एक धार्मिक प्रवृत्ति के परिवार से थी. परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं थी. लेकिन परिवार खुशहाल था. यह परिवार दांगट पाटिल नगर की स्नेहा विहार सोसायटी में रहता था.
प्रेरणा कांबले उस परिवार की एकलौती संतान थी. परिवार की सारी जिम्मेदारी प्रेरणा कांबले की मां स्नेहा कांबले पर थी. प्रेरणा पढ़ाई में होशियार थी. छोटीमोटी नौकरी के साथ वह सौफ्टवेयर इंजीनियरिंग का कोर्स भी कर रही थी.
प्रेरणा महत्त्वाकांक्षी, आधुनिक और खुले विचारों वाली युवती थी. वह एक बार जिस से बात कर लेती थी, उस पर अपना प्रभाव जमा देती थी. तभी तो पहली बार मिलने पर विपुल भी उस का दीवाना हो गया था.
जहां एक तरफ विपुल के दिलोदिमाग पर प्रेरणा की छवि बस गई थी, वहीं दूसरी तरफ प्रेरणा भी विपुल के बातव्यवहार के असर को नजरअंदाज नहीं कर पाई थी. प्रेरणा जब भी विपुल शाह की दुकान पर जाती थी, वह प्रेरणा का मुसकरा कर स्वागत करता था. किताबों पर पर उसे भारी छूट देता था.
धीरेधीरे प्रेरणा कांबले का भी झुकाव विपुल की तरफ होने लगा था, जिस के बाद प्रेरणा किसी न किसी सामान के बहाने विपुल की दुकान पर जाने लगी. इसी समय मौका मिलने पर दोनों कुछ बातें कर लिया करते थे. धीरेधीरे दोनों के बीच खूब बातें होने लगीं.
उन्हें बात करने का मौका तो मिलता था लेकिन संकोच की वजह से विपुल उस से अपने मन की बात नहीं कह पाता था. इस की वजह यह थी कि विपुल का वैवाहिक जीवन उस के बीच आ रहा था. इस के अलावा दोनों की उम्र और जाति धर्म के बीच जमीनआसमान का फासला था.
लेकिन यह विचार कुछ दिन के लिए ही आए, क्योंकि प्यार उम्र, जाति और धर्म को नहीं देखता. इस तरह दोनों ही एकदूसरे को मन ही मन चाहने लगे.
शुरुआत प्यार की
मौका दिवाली के त्यौहार का था. विपुल हर दिवाली के त्यौहार पर अपने ग्राहकों को शुभकामनाओं के कार्ड के साथ कोई न कोई गिफ्ट देता था. इस बार विपुल ने प्रेरणा को एक महंगे गिफ्ट के साथ शुभकामनाओं का कार्ड भी दिया. कार्ड में लिखे मैसेज में विपुल ने प्रेरणा कांबले से अपने प्यार का इजहार किया था.
महंगा गिफ्ट पा कर प्रेरणा बहुत खुश हुई. चूंकि वह भी विपुल को चाहती थी, इसलिए उस ने भी कार्ड का जवाब कार्ड से ही दिया, जिस में उस ने अपने प्यार का इजहार कर दिया था.
इस के बाद उन की फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. वह मिलनेजुलने के लिए बाहर जाने लगे. विपुल शाह के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. वह प्रेरणा के ऊपर दिल खोल कर पैसे खर्च करता था. उसे महंगे उपहार देता और महंगे होटलों में जा कर खाना खिलाता. प्रेरणा का वह हर तरह से खयाल रखने लगा था.
इसी दौरान वह पल भी आ गया, जब एक होटल में उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कीं. विपुल ने उस से शादी करने का वादा भी कर लिया. प्रेरणा कांबले विपुल शाह की फरेबी बातों में आ गई. वह विपुल का हर कहा मानने लगी. दोनों काफी खुश थे.
प्रेरणा कांबले विपुल को ले कर अपने गृहस्थ जीवन के ख्वाब देखने लगी, लेकिन विपुल की सच्चाई सामने आने पर उस का यह भ्रम टूट गया. प्रेरणा कांबले को जब पता चला कि विपुल शादीशुदा है तो जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई.
जो विपुल उस के तनमन से खेल रहा था, वह फरेबी निकला. विपुल की पत्नी को इस बात की जानकारी नहीं थी कि उस के पति का किसी और से चक्कर चल रहा है. पर यह बात आखिर कब तक छिपी रह सकती थी. एक न एक दिन तो सच्चाई सामने आनी ही थी.
प्रेरणा को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. उसे विपुल पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन अब वह कर भी क्या सकती थी. काफी सोचनेविचारने के बाद विपुल शाह के प्रति उस के मन में जो इज्जत थी, अब वह नफरत में बदल गई. उस ने विपुल को सबक सिखाने का फैसला कर लिया.
उस ने तय कर लिया कि विपुल ने उस के साथ जो धोखा किया है, उस की वह पूरी कीमत वसूलेगी. वह विपुल से खुद के रहने के लिए एक फ्लैट खरीदने के लिए पैसों की मांग करने लगी. पुणे जैसे शहर में फ्लैटों की कीमत करोड़ों रुपयों में आंकी जाती है. विपुल इतनी बड़ी रकम उसे देना नहीं चाहता था, फिर भी उस ने प्रेरणा कांबले को कुछ लाख रुपए दे कर उस से दूरियां बनानी शुरू कर दीं.
उगने लगे नफरत के बीज
लेकिन प्रेरणा कांबले भी इतनी आसानी से उस का पीछा छोड़ने वालों में से नहीं थी. विपुल शाह ने उसे प्यार और मोहब्बत के नाम पर छला था. शादी का वादा कर के उस के शरीर और जज्बात से खेला था. इसलिए प्रेरणा ने उस से कहा कि अगर वह उसे फ्लैट खरीदने के पैसे नहीं देगा तो वह अपने और उस के संबंधों की जानकारी उस की पत्नी और परिवार को दे देगी.
प्रेरणा कांबले की इस धमकी से विपुल डर गया और वक्तबेवक्त प्रेरणा की बातों को मान कर उसे पैसे देता रहा. लेकिन प्रेरणा कांबले नाम की फांस उस के गले में फंस गई थी. अब वह उस दिन को कोसने लगा, जिस दिन प्रेरणा से उस की मुलाकात हुई थी. उसे अब अपनी भूल पर पछतावा हो रहा था.
उस का चैन और सुकून सब उड़ गया था. वह अकसर इस विचार में खोया रहता था कि उस के भविष्य का क्या होगा. प्रेरणा की धमकी और उस की ब्लैकमेलिंग के भूत से कब तक डरता रहेगा. वह प्रेरणा की मंशा जान चुका था कि अब वह उस से सिर्फ अपना प्रतिशोध ले रही है, जो कभी खत्म होने वाला नहीं है.
इन्हीं सब सोचविचारों में फंसे विपुल के मन में प्रेरणा कांबले के लिए एक खतरनाक योजना ने जन्म ले लिया, जिस से उसे प्रेरणा, उस की धमकी और ब्लैकमेलिंग से आजादी मिल जाए. विपुल ने उस का काम तमाम करने की ठान ली, जिस से न रहे बांस और न बजे बांसुरी. लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था. इस के लिए उसे किसी विश्वसनीय व्यक्ति की जरूरत थी.
इस बारे में जब उस ने अपने चारों ओर नजरें दौड़ाईं तो उसे अपनी दुकान का नौकर लहु गोनते नजर आया. लहु गोनते उस का पुराना नौकर था. जरूरत पड़ने पर वह कार ड्राइव भी कर लेता था. कभीकभी कार ड्राइव करने के लिए विपुल उसे अपने साथ भी ले कर जाया करता था. हर काम में वह उस की मदद करने को तैयार रहता था. विपुल ने जब उस से बात की तो वह थोड़े से पैसों के लालच में साथ देने को तैयार हो गया.
अपनी योजना के अनुसार 15 मार्च, 2018 को दोपहर 12 बजे के बाद विपुल ने लहु गोनते को अपनी एमएच12पी 2412 नंबर की कार को बाहर निकालने के लिए कहा. इस के बाद उस ने प्रेरणा को यह कह कर बुलाया कि वह पथरी की दवा लेने मुंबई जा रहा है. अगर वह आएगी तो बातचीत में सफर कट जाएगा और घूम कर भी आ जाएंगे. प्रेरणा उस के साथ जाने को तैयार हो गई. वैसे भी वह अकसर विपुल के साथ लंबी ड्राइव पर जाती थी.
बन गई मौत की भूमिका
अपनी मौत से अनभिज्ञ प्रेरणा कार में पिछली सीट पर विपुल के साथ बैठ कर मुंबई की ओर रवाना हो गई. कार विपुल का नौकर चला रहा था. लगभग एक घंटे बाद कार लोनावाला के करीब बाघराई मंदिर के पास रुक गई. वहां पर तीनों ने चाय पी. चाय पीने के बाद लहु वापस कार में आ कर बैठ गया. जबकि प्रेरणा और विपुल थोड़ा समय बिताने के लिए मंदिर के पीछे वाली एक चट्टान पर जा कर बैठ गए. कुछ मिनटों तक इधरउधर की बातें करने के बाद प्रेरणा कांबले अपने मतलब की बात पर आ गई.
‘‘विपुल, तुम मेरे फ्लैट के बारे में क्या कर रहे हो? मैं देख रही हूं कि तुम्हें मेरे फ्लैट में कोई दिलचस्पी नहीं है. कुछ दिनों से मेरे प्रति तुम्हारा व्यवहार भी ठीक नहीं है. तुम मुझ से दूरियां बना रहे हो. मेरा फोन भी रिसीव नहीं करते. आखिर तुम्हारे मन में चल क्या रहा है? तुम मुझे फ्लैट के लिए पैसे दोगे या नहीं? या फिर मुझे अपने संबंधों के बारे में तुम्हारे परिवार और तुम्हारी बीवी को बताना पड़ेगा?’’
विपुल प्रेरणा के इन जहरीले सवालों का जवाब उसी समय देना चाहता था, लेकिन वक्त अनुकूल नहीं था. वहां से आ कर दोनों कार में बैठ गए. प्रेरणा उस से नाराज हो गई थी, इसलिए वह कार की आगे की सीट पर बैठ गई. विपुल के लिए यह मौका अच्छा था. अपने साथ लाई रस्सी से उस ने प्रेरणा के गले को पूरी तरह कस दिया. थोड़ी देर तक हाथपैर मारने के बाद उस के प्राणपखेरू उड़ गए.
तब तक सूरज पूरी तरह से डूब चुका था. चारों ओर अंधेरा हो गया था. कार ग्रामीण पुलिस थाने पौड़ की सीमा में प्रवेश कर चुकी थी. लहु गोनते ने प्रेरणा कांबले की लाश को ठिकाने लगाने के लिए कार विसाधर पहाडि़यों के जंगलों में ले जा कर रोक दी.
इस के बाद दोनों ने शव को कार से बारह निकाल कर सहारा सिटी के पीछे की घनी झाडि़यों के बीच ले जा कर डाल दिया. लाश को कोई पहचान न सके, इसलिए उन्होंने वहां पड़े पत्थरों से मारमार कर उस के चेहरे को क्षतविक्षत कर दिया. फिर वे घर लौट आए.
लेकिन विपुल रात भर इस डर से नहीं सो पाया कि कहीं प्रेरणा के शव से पुलिस को कोई ऐसा सूत्र न मिल जाए, जिस की वजह से उसे जेल जाना पड़े. इस से बचने के लिए वह नौकर के साथ सुबह उठ कर घटनास्थल की ओर निकल गया. उस ने एक बोरी साथ ले ली थी.
मुंबई-पुणे रोड स्थित पावना झील के पास पैट्रोल पंप से इन लोगों ने 5 लीटर पैट्रोल खरीदा और मौकाएवारदात पर पहुंच कर प्रेरणा के शव को बोरी में लपेट कर उसे पैट्रोल से जला दिया. अपने अपराधों का सबूत मिटाने के बाद दोनों पुणे लौट आए. इस के बाद नौकर लहु गोनते अपने गांव चला गया. अब विपुल एकदम निश्चिंत हो गया था.
जुर्म बोलता है
24 घंटे बीत जाने के बाद जब प्रेरणा कांबले घर नहीं पहुंची तो घर वालों को उस की चिंता सताने लगी. बिना किसी को कुछ बताए वह कहां चली गई, यह उन की समझ में नहीं आ रहा था.
अपनी तरफ से काफी खोजबीन के बाद भी जब प्रेरणा का कहीं पता नहीं चला, तब निराश हो कर प्रेरणा कांबले की मां स्नेहा कांबले वारजे मालवाड़ी थाने पहुंची. स्नेहा ने थानाप्रभारी बाजीराव मोले से मिल कर उन्हें सारी बातें बता दीं और प्रेरणा कांबले की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज करवा दी.
थानाप्रभारी बाजीराव मोले ने इस मामले को गंभीरता से लिया और स्नेहा कांबले से प्रेरणा की फोटो और हुलिया ले कर उन्हें घर भेज दिया. इस मामले की जांच उन्होंने सहायक इंसपेक्टर बालासाहेब शिंदे, एएसआई जगन्नाथ मोरे, हेडकांस्टेबल चंद्रकांत जाधव उर्फ मंगी और राजेंद्र खामकर को सौंप दी. यह बात 17 मार्च, 2018 की है.
अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में पुलिस टीम ने तेजी से प्रेरणा की गुमशुदगी की जांच शुरू कर दी. उन्होंने प्रेरणा कांबले की उम्र, हुलिया और फोटो के विवरण शहर और गांवों के पुलिस थानों में भेज दिए. जब प्रेरणा कांबले के मोबाइल डाटा और काल रिकौर्ड निकलवाए गए तो उन के हाथ शीघ्र ही विपुल शाह और उस के नौकर लहु गोनते की गरदन तक पहुंच गए. वे दोनों पुलिस गिरफ्त में आ गए.
इस बीच थाना पौड़ की पुलिस ने विसाधर पहाडि़यों के जंगल से प्रेरणा का जला हुआ शव बरामद कर के केस दर्ज कर लिया था. इस की सूचना थाना वारजे मालवाड़ी को भी दे दी गई थी.
चूंकि यह मामला लोनावला ग्रामीण पुलिस थाने पौड़ के अंतर्गत आता था, अत: वारजे मालवाड़ी पुलिस अधिकारियों ने विपुल शाह और गोनते को उन के हवाले कर दिया पौड़ पुलिस थाने के सीनियर इंसपेक्टर सुरेश निबांलकर और सहायक इंसपेक्टर उद्धव खांडे ने उन से विस्तार से पूछताछ की. पुलिस ने आरोपी विपुल और उस के नौकर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 120बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.
कथा लिखे जाने तक विपुल भंवरलाल शाह और लहु गोनते लोनावला जेल में बंद थे. इस मामले की जांच टीम को पुणे डेक्कन विभाग के एसीपी बाजीराव मोहिते ने प्रशस्तिपत्र दे कर सम्मानित किया.
पैन गरम कर के औलिव औयल डाल कर प्याज, अदरक व अजवाइन डालें और अच्छी तरह चलाएं. फिर इस में मैंगों पल्प, फ्रैश पार्सले और काफिरलाइम डालें. इसी दौरान इस में पके रिसोटो चावल और बाकी सारी चीजें डाल कर अच्छी तरह से मिक्स होने तक मिलाएं. फिर इस में आम के टुकड़े डाल कर थोड़ा और पकाएं. इस के बाद इस में नमक, कालीमिर्च पाउडर व परमेसन चीज डाल कर क्रीमी लुक आने तक पकने दें. फिर आंच से उतर कर गिलास नूडल्स, गाजर, मैंगो स्किन व धनियापत्ती से सजा कर सर्व करें.
दूध को अच्छी तरह उबाल कर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रखें. फिर उस में केसर डालें. अब आइस ऐप्पल के छिलके उतार कर पकी प्यूरी तैयार करें. जब दूध ठंडा हो जाए तो इस में आइस ऐप्पल की प्यूरी डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब बचे आइस ऐप्पल के टुकड़ों को खीर में डालें और फिर केसर व बादाम के टुकड़ों से सजा कर सर्व करें.
2 मई, 2018 को बुधवार था. उस दिन मुंबई के मशहूर पत्रकार ज्योतिर्मय डे (जे. डे) हत्याकांड में सजा सुनाई जानी थी. यह केस विशेष मकोका अदालत के जस्टिस समीर अदकर की अदालत में चल रहा था और इस में माफिया डौन छोटा राजन सहित 11 आरोपी थे. मामला चूंकि एक वरिष्ठ पत्रकार और माफिया डौन से जुड़ा था, इसलिए फैसला सुनने के लिए अदालत में काफी भीड़ थी. दोनों पक्षों के वकीलों और सभी आरोपियों सहित उन के घर वाले भी मौजूद थे.
जब सजा के लिए बहस शुरू हुई तो सरकारी वकील प्रदीप घरात ने अपनी दलील देते हुए अदालत से कहा, ‘‘योर औनर, ज्योतिर्मय डे की हत्या आम हत्या नहीं बल्कि यह एक दुर्लभतम मामला है, क्योंकि इस में माफिया सरगना ने एक वरिष्ठ पत्रकार की हत्या कराई. अगर इन अपराधियों को कड़ी सजा नहीं दी गई तो पत्रकारों के लिए काम करना कठिन हो जाएगा. पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है. लोकतंत्र की सफलता के लिए निर्भीक और स्वतंत्र पत्रकारिता जरूरी है.’’
सरकारी वकील प्रदीप घरात ने आगे कहा, ‘‘ज्योतिर्मय डे की बहन लीना बीमार रहती है. न कोई उस का इलाज कराने वाला है और न देखभाल करने वाला.’’
प्रदीप घरात ने इस मामले को दुर्लभतम बताने के बाद छोटा राजन सहित सभी दोषियों के लिए सख्त से सख्त सजा की मांग की. दूसरी ओर बचावपक्ष ने दोषियों की उम्र, कुछ के छोटेछोटे बच्चे होने और कुछ के घर वालों की बीमारी का हवाला देते हुए उन के साथ नरमी बरतने की दलील दी.
इस सुनवाई में एक खास बात यह भी थी कि दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद छोटा राजन के लिए वीडियो कौन्फ्रैंसिंग की व्यवस्था की गई थी, ताकि वह अदालत की काररवाई और बहस को देख भी सके और जवाब भी दे सके.
बता दें कि जे. डे की 11 जून, 2011 को मुंबई के पवई में उस समय गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जब वह मोटरसाइकिल से घर जा रहे थे. छोटा राजन के इशारे पर जे. डे की हत्या के लिए सतीश कालिया ने 7 लोगों का गिरोह बना कर कार और बंदूकों का इंतजाम किया था. बाद में इन लोगों ने ही जे. डे की हत्या की थी. इन सभी पर हत्या की धारा 302, आपराधिक साजिश की धारा 120बी और सबूत नष्ट करने की धारा 204 और विभिन्न धाराओं के अलावा मकोका व शस्त्र कानून के तहत केस चल रहा था.
यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि छोटा राजन को नवंबर 2015 में सीबीआई द्वारा इंडोनेशिया के बाली से भारत लाया गया था. पिछले साल ही दिल्ली की एक अदालत ने छोटा राजन को फरजी पासपोर्ट मामले में 7 साल की सजा सुनाई थी. नवंबर, 2015 से ही वह तिहाड़ जेल में बंद था.
सजा पर बहस के बाद न्यायाधीश सतीश अदकर ने जे. डे की हत्या के मामले में 9 लोगों को दोषी करार दिया, जबकि 2 आरोपियों जिग्ना वोरा और जोसेफ को संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया.
जिग्ना पर आरोप था कि उन्होंने छोटा राजन से न केवल जे. डे की शिकायत की थी, बल्कि उन की मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट और उन के घर की सूचना भी उस तक पहुंचाई थी. उन पर यह भी आरोप था कि उन्होंने छोटा राजन को जे. डे के खिलाफ भड़काया था और इसी सिलसिले में जोसेफ के मोबाइल से इंडोनेशिया में बैठे छोटा राजन से बात की.
मकोका अदालत के फैसले के बारे में जानने से पहले जे. डे की हत्या की वजह जान लें. 25 नवंबर, 2011. शनिवार का दिन था. उस समय सुबह के लगभग 4 बजे थे. महानगर मुंबई के उपनगर घाटकोपर की सड़कों पर सन्नाटा छाया हुआ था. इक्कादुक्का वाहन उधर से गुजरते थे तो थोड़ी देर के लिए सन्नाटा टूट जाता था.
तभी मुंबई क्राइम ब्रांच की कई गाडि़यां तेजी से आईं और एक इमारत के नीचे खड़ी हो गईं. गाडि़यों से उतर कर कुछ पुलिस वाले नीचे खड़े हो गए और कुछ उस इमारत के एक फ्लैट में चले गए.
जिस फ्लैट में पुलिस गई थी, वह मुंबई के सुप्रसिद्ध अंगरेजी दैनिक एशियन एज की ब्यूरो प्रमुख और वरिष्ठ पत्रकार जिग्ना वोरा का था. पुलिस अफसरों ने जिग्ना वोरा से काफी देर तक पूछताछ की.
पुलिस ने उन के घर की तलाशी भी ली. पूछताछ और तलाशी के बाद उन लोगों ने जिग्ना का लैपटौप और मोबाइल अपने कब्जे में ले कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.
इस पुलिस काररवाई में मुंबई पुलिस के तत्कालीन कमिश्नर अरूप पटनायक, जौइंट पुलिस कमिश्नर (क्राइम) दिवंगत हिमांशु राय, एडीशनल सीपी देवेन भारती, एसीपी अशोक दुराफे, क्राइम ब्रांच यूनिट 5 और 6 के वरिष्ठ इंसपेक्टर अरुण चव्हाण, श्रीपद काले, रमेश महाले और उन के सहायक शामिल थे.
इन लोगों ने जिग्ना वोरा की गिरफ्तारी मुंबई के बहुचर्चित वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय नेपियन कुमार उर्फ जे. डे हत्याकांड के सिलसिले में की थी. जे. डे सुप्रसिद्ध अंगरेजी और गुजराती अखबार दैनिक मिड डे के ब्यूरो प्रमुख और सहायक संपादक थे.
जिग्ना वोरा की गिरफ्तारी जे. डे हत्याकांड के एक प्रमुख गवाह के बयान और 5 महीनों की जांचपड़ताल के आधार पर की गई थी. पुलिस ने जिग्ना को जे. डे की हत्या और हत्या की साजिश रचने के आरोप में भादंवि की धारा 302,120बी, 34 और मकोका के अंतर्गत गिरफ्तार किया था. जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर के क्राइम ब्रांच के हैड औफिस लाया गया. पुलिस ने उन्हें उसी दिन मकोका अदालत में पेश कर के विस्तृत पूछताछ के लिए रिमांड पर ले लिया.
मुंबई के अंगरेजी दैनिक मिड डे के वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या 11 जून, 2011 को लगभग 2 बजे मुंबई के पवई इलाके में उस समय हुई थी, जब वह घाटकोपर में रह रही अपनी मां और बहन से मिल कर मोटरसाइकिल से पवई स्थित अपने फ्लैट पर लौट रहे थे. उस दिन जे. डे जब हीरानंदानी गार्डन के पास पहुंचे, तभी कुछ अज्ञात लोगों ने गोली मार कर उन की हत्या कर दी थी.
जे. डे मुंबई के मशहूर पत्रकार थे. यही वजह थी कि उन की हत्या होते ही यह खबर मुंबई भर में फैल गई. सूचना मिलते ही मुंबई पुलिस, क्राइम ब्रांच के अधिकारी और उन की टीमें घटनास्थल पर पहुंच गईं. हत्या चूंकि एक जानेमाने वरिष्ठ पत्रकार की हुई थी, इसलिए पुलिस ने इस मामले को बहुत गंभीरता से लिया था. जे. डे की हत्या के बाद तत्कालीन पुलिस आयुक्त अरूप पटनायक, क्राइम ब्रांच सीआईडी के जौइंट पुलिस आयुक्त हिमांशु राय, एडीशनल सीपी देवेन भारती, डसीपी विश्वास राव नागरे और एसीपी अशोक दुराफे आदि सभी वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे थे.
वहां जे. डे की मोटरसाइकिल गिरी पड़ी थी और उस के पास ही गोलियों से छलनी उन की लाश पड़ी थी. अधिकारियों ने अपनेअपने नजरिए से घटनास्थल का निरीक्षण किया. प्राथमिक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए जे. डे की लाश अस्पताल भेज दी गई.
उन की मोटरसाइकिल को भी पुलिस ने केस प्रौपर्टी बना कर अपने कब्जे में ले लिया. इस के साथ ही थाना पवई में जे. डे की हत्या का मुकदमा दर्ज हो गया.
वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर इस मामले की जांच की जिम्मेदारी पुलिस और क्राइम ब्रांच सीआईडी की यूनिट नंबर 5 और 6 के सीनियर इंसपेक्टर अरुण चव्हाण और श्रीपद काले को सौंपी गई.
इंसपेक्टर अरुण चव्हाण और श्रीपद काले ने पूरी जिम्मेदारी के साथ पत्रकार जे. डे हत्याकांड की जांच शुरू कर दी. लेकिन तात्कालिक रूप से उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. उन्होंने पत्रकार जे. डे का मोबाइल फोन, लैपटौप, डायरी, कंप्यूटर की हार्डडिस्क आदि चीजें अपने कब्जे में ले कर उन का निरीक्षण किया. लेकिन इस का कोई नतीजा नहीं निकला.
जे. डे को मौत के घाट उतारने वालों की गिरफ्तारी न होने से पत्रकारों में रोष था. उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और तत्कालीन गृहमंत्री आर.आर. पाटिल को एक ज्ञापन सौंपा, जिस में इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की गई.
इस उलझी हुई जांच के दौरान जे. डे के एक मित्र पत्रकार ने इंसपेक्टर रमेश महाले को एक ऐसी बात बताई, जिसे जानने के बाद उन्हें उम्मीद की किरणें नजर आने लगीं. उस पत्रकार ने उन्हें बताया कि जे. डे की जेब हमेशा एकएक रुपए के सिक्कों से भरी रहती थी. उस ने यह भी बताया कि जे. डे कुछ खास तरह की खबरों के लिए अपने मोबाइल की जगह पीसीओ से फोन किया करते थे.
पुलिस इंसपेक्टर रमेश महाले ने उस पत्रकार की बातों को गंभीरता से लिया. उन्होंने पत्रकार जे. डे के घाटकोपर स्थित घर से ले कर पवई तक के रास्ते में पड़ने वाले उन सभी पीसीओ बूथों के काल डिटेल्स निकलवाए, जिन रास्तों से जे. डे का आनाजाना था. इन पीसीओ के काल रिकौर्ड्स में एक नंबर बारबार आ रहा था.
उस नंबर की जांच की गई तो यह नंबर अरुण डाके का निकला जो अंडरवर्ल्ड सरगना छोटा राजन के लिए काम करता था. यह नंबर 3 जून से ले कर 11 जून तक के काल रिकौर्ड्स में मिला था.
पत्रकार जे. डे की हत्या में छोटा राजन का नाम जुड़ते ही क्राइम ब्रांच ने डाके पर शिकंजा कस दिया. जल्दी ही डाके को गिरफ्तार भी कर लिया गया.
अरुण डाके से पूछताछ की गई तो जे. डे हत्याकांड का खुलासा हो गया. उस के बयान के आधार पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने छोटा राजन के खास शूटर रोहित थंगप्पन जोसेफ उर्फ सतीश कालिया सहित जे. डे हत्याकांड से जुड़े 11 अभियुक्तों को गिरफ्तार कर लिया.
लेकिन ये वे लोग थे, जिन्होंने जे. डे की रेकी कर के उन्हें मौत के घाट उतारा था. इन लोगों की जे. डे से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी. इस का मतलब जे. डे की हत्या की साजिश रचने वाला कोई और ही था.
गिरफ्तार किए गए लोगों से यह जरूर पता चल गया था कि जे. डे की हत्या माफिया डौन छोटा राजन के इशारे पर की गई थी. लेकिन इस की वजह साफ नजर नहीं आ रही थी. यह वजह जानने के लिए पुलिस ने छोटा राजन के उन सभी गुर्गों के फोन रिकौर्ड करने शुरू किए, जो किसी न किसी रूप में छोटा राजन से जुड़े थे.
पुलिस का यह प्रयास रंग लाया. अपने सभी गुर्गों को एकएक कर गिरफ्तार होते देख अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन बौखला गया था. पुलिस द्वारा अदालत में दी गई चार्जशीट के अनुसार, उस ने जे. डे की हत्या से जुड़े अपने एक गुर्गे विनोद असरानी उर्फ विनोद चेंबूर के भाई को फोन कर के वरिष्ठ पत्रकार जिग्ना वोरा को गाली देते हुए कहा कि इस औरत के भड़काने में आ कर मैं ने अपना एक दोस्त तो खो ही दिया, साथ ही अपने लिए एक बड़ी मुसीबत भी मोल ले ली है.
यह बात क्राइम ब्रांच ने टेप करवा ली थी. चेंबूर में ही विनोद असरानी उर्फ विनोद चेंबूर का उमा पैलेस नाम से बीयर बार था, जहां जे. डे को बुला कर उन्हें उन लोगों से मिलवाया गया था, जो उन की हत्या करने वाले थे. इन लोगों में सतीश कालिया शामिल नहीं था, क्योंकि वह जे. डे को जानता था.
पुलिस अधिकारियों ने विनोद असरानी उर्फ चेंबूर के भाई को क्राइम ब्रांच बुला कर उस का बयान लिया. चार्जशीट के अनुसार, उस के बयान के आधार पर उसे सरकारी गवाह बना लिया गया. उस के बयान से ही जिग्ना वोरा का नाम सामने आया.
जे. डे की हत्या में शामिल सभी लोगों को पहले ही गिरफ्तार कर के जेल भेजा जा चुका था. अब जिग्ना वोरा की बारी थी. चार्जशीट के हिसाब से जब छानबीन शुरू हुई तो पुलिस को जिग्ना के खिलाफ सबूत मिलने शुरू हो गए. अंतत: जे. डे की हत्या के लगभग 6 महीने बाद जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर लिया गया.
क्राइम ब्रांच अधिकारियों की जांचपड़ताल और जिग्ना वोरा के पुलिस को दिए बयान के अनुसार वरिष्ठ पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या की जो कहानी पता चली वह कुछ इस तरह थी—
जिग्ना जितेंद्र वोरा खूबसूरत और महत्त्वाकांक्षी महिला थीं. उन का जन्म एक प्रतिष्ठित और संभ्रांत परिवार में हुआ था. वह पढ़ाईलिखाई और बातचीत में काफी तेजतर्रार महिला थीं. उन्होंने मुंबई के एक सुप्रसिद्ध कालेज से बड़े अच्छे नंबरों से एलएलबी और एलएलएम किया था.
विवाह के बाद वह अपने पति जितेंद्र वोरा के साथ दुबई चली गई थीं. जितेंद्र वोरा का दुबई में कारोबार था. विवाह के कुछ दिनों बाद तक तो उन दोनों का दांपत्य जीवन बड़ी हंसीखुशी से बीता, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से दोनों के बीच दरार आ गई और फिर जल्दी ही तलाक हो गया.
पति से तलाक लेने के बाद जिग्ना मुंबई आ कर रहने लगीं. अलग होने के बाद जिग्ना के सामने भविष्य का सवाल था. सोचविचार कर उन्होंने अपने भविष्य को ध्यान में रख कर अपने कैरियर के लिए पत्रकारिता को चुना.
जिग्ना वोरा ने अपना शुरुआती कैरियर उसी मिड डे अखबार से शुरू किया था, जिस में जे. डे पहले से ही काम कर रहे थे. जे. डे उस अखबार के लिए क्राइम की खबरें कवर करते थे. जिग्ना वोरा के पास चूंकि एमए, एलएलबी की डिग्री थी, इसलिए मिड डे में उन का चयन अदालत और राजनीति की खबरों की कवरेज के लिए किया गया था. लेकिन जिग्ना वोरा यह बात अच्छी तरह जानती थीं कि जो बात क्राइम बीट की कवरेज में है, वह किसी अन्य बीट में नहीं है.
यही वजह थी कि जिग्ना वोरा के मन के किसी कोने में क्राइम की खबरों को कवर करने की लालसा दबी थी. वह चाहती थीं कि उन्हें क्राइम की खबरों को कवर करने का मौका दिया जाए. लेकिन उन का नेटवर्क ऐसा नहीं था कि वह क्राइम की खबरें कवर कर सकतीं. जे. डे से मदद की उन्हें कोई उम्मीद नहीं थी. क्योंकि सही मायने में पत्रकार वही होता है जो दाएं हाथ की बात बाएं हाथ को पता न चलने दे.
जिग्ना वोरा की यह इच्छा तब पूरी हुई, जब वह मिड डे छोड़ कर एशियन ऐज अखबार में गईं. एशियन ऐज के संपादक हुसैन जैदी थे, जो पहले इसी अखबार में क्राइम ब्यूरो चीफ रह चुके थे. जैदी ने जिग्ना से कहा कि वह क्राइम की खबरें कवर करें. चूंकि जिग्ना स्वयं भी यही चाहती थीं, इसलिए उन्हें आसानी से क्राइम बीट मिल गई.
जिग्ना ने जब क्राइम बीट में काम करना शुरू किया तो जल्दी ही उन की जानपहचान छोटा राजन गिरोह के करीबी माने जाने वाले फरीद तानशा, विक्की मल्होत्रा और पाल्सन जोसेफ से हो गई.
मुंबई में क्राइम की खबरें कवर करने वाले पत्रकार पुलिस के उच्चाधिकारियों और अंडरवर्ल्ड सरगनाओं के बीच अपनी जगह बना कर रखते हैं और अपने इन संबंधों पर गर्व भी महसूस करते हैं. पुलिस द्वारा अदालत को दिए गए जांच रिकौर्ड के अनुसार, ऐसी ही लालसा जिग्ना वोरा के मन में भी थी. वह किसी भी तरह अंडरवर्ल्ड सरगनाओं के बीच पहुंचना चाहती थीं.
हालांकि जिग्ना वोरा फरीद तानशा, विक्की मल्होत्रा और जोसेफ पाल्सन को पिछले लगभग 3 सालों से जानती थीं और उन से बातें करती रहती थीं. फरीद तानशा से तो जिग्ना वोरा का घर जैसा रिश्ता बन गया था. वह उस के घर आतीजाती थीं और उस की दोनों पत्नियों को भाभीजान कहा करती थीं.
छोटा राजन गिरोह के लोगों से जिग्ना के भले ही संबंध बन गए थे, लेकिन छोटा राजन से उन की कभी बात नहीं हुई थी. जिग्ना वोरा में शायद इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि छोटा राजन से बात कर सकें. दरअसल वह इस बात को अच्छी तरह जानती थीं कि माफिया डौन से बातचीत करने में कहीं कुछ गड़बड़ हो गई, तो लेने के देने पड़ जाएंगे.
अदालत में पेश रिकौर्ड के अनुसार, जिग्ना वोरा अभी छोटा राजन तक पहुंचने का रास्ता खोज ही रही थीं कि एक दिन उन्होंने टीवी पर छोटा राजन का इंटरव्यू देखा. यह इंटरव्यू एक ऐसे पत्रकार ने लिया था, जो जिग्ना से कमतर और नया था.
इस से जिग्ना को लगा कि जब एक छोटा सा पत्रकार छोटा राजन तक पहुंच सकता है तो वह क्यों नहीं. उन्होंने मन ही मन सोचा कि जिन लोगों से वह मिलती हैं, अगर उन्हीं को माध्यम बना कर छोटा राजन तक पहुंचने की कोशिश करें तो यह काम मुश्किल नहीं होगा.
यह बात दिमाग में आने के बाद जिग्ना वोरा ने अपने मन की बात फरीद तानशा से कही. लेकिन फरीद तानशा उन्हें यह कह कर टालता रहा कि किसी दिन मौका देख कर छोटा राजन से उन की बात करा देगा. इसी बीच फरीद तानशा डी कंपनी के छोटा शकील से मिल गया. इस चक्कर में भरत नेपाली गिरोह ने उस की हत्या करवा दी थी.
फलस्वरूप छोटा राजन का इंटरव्यू जिग्ना के लिए एक सपना सा बन कर रह गया. अपने इस तथाकथित सपने को पूरा करने के लिए जिग्ना ने पाल्सन जोसेफ का सहारा लिया. इस के लिए वह पाल्सन जोसेफ पर दबाव डालने लगीं. पुलिस चार्जशीट के मुताबिक, जिग्ना वोरा के ज्यादा दबाव डालने पर आखिरकार पाल्सन जोसेफ ने उन का फोन नंबर अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन को दे कर अनुरोध किया कि वह जिग्ना से बात कर ले.
पाल्सन जोसेफ के नंबर देने के कुछ दिनों बाद जिग्ना वोरा के फोन पर छोटा राजन का फोन आ गया. इस के बाद अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन और जिग्ना वोरा के बीच बातचीत का सिलसिला जुड़ गया.
अदालत में दिए गए आरोपपत्र के अनुसार, जब अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन का पहला फोन आया था तो जिग्ना वोरा काफी खुश हुई थीं. इस के बाद वह छोटा राजन को अकसर फोन करने लगी थीं. बातचीत के दौरान वह माफिया डौन से अंडरवर्ल्ड के बदलते समीकरणों के बारे में पूछती रहती थीं. इस के अलावा वह छोटा राजन या मुंबई के दूसरे डौनों से संबंधित छपने वाली खबरों की सच्चाई जानने के लिए भी राजन से संपर्क करती रहती थीं.
बातचीत के दौरान जिग्ना वोरा अंगरेजी न जानने वाले छोटा राजन से जब तब छपी जे. डे की खबरों का न केवल जिक्र करती थीं, बल्कि उन खबरों का उसे विस्तार से अर्थ भी समझाया करती थीं.
पुलिस की चार्जशीट के अनुसार जिग्ना वोरा और जे. डे की रंजिश घटना के 2 साल पहले तब शुरू हुई थी, जब जिग्ना ने एक दिन जे. डे को अपने खास खबरी फरीद तानशा के साथ देख लिया था. इस से जिग्ना वोरा को यह वहम हो गया था कि जे. डे उन के संपर्कों को अपना बनाने की कोशिश कर रहे हैं. जबकि हकीकत यह थी कि फरीद तानशा जे. डे का पुराना खबरी था.
अंडरवर्ल्ड डौन छोटा राजन के गिरोह में जे. डे की गहरी पैठ थी. जे. डे ने उस की कई खबरें छापी थीं. यहां तक कि छोटा राजन ने खुद ही जे. डे को अपने गिरोह के कई सदस्यों से मिलवाया भी था. कह सकते हैं कि एक समय ऐसा भी था जब छोटा राजन और जे. डे के रिश्ते काफी मधुर हुआ करते थे.
लेकिन जिग्ना वोरा ने छोटा राजन के गिरोह के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए जे. डे और छोटा राजन के मधुर संबंधों को बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभाई.
अदालत में पेश दस्तावेजों के अनुसार, वैसे तो जिग्ना वोरा काफी समय से छोटा राजन को जे. डे के खिलाफ भड़का रही थीं, लेकिन उन दोनों का मधुर रिश्ता तब और बिगड़ गया, जब जे. डे ने 28 अप्रैल से 5 मई, 2011 के बीच यूरोप और कई देशों में घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया. जे. डे ने तय किया था कि अपने इस प्रोग्राम के दौरान वह छोटा राजन से मिलेंगे.
इस बीच बातचीत के बाद दोनों का लंदन में मिलना भी तय हो गया था. वजह यह थी कि जे. डे छोटा राजन पर एक किताब लिखना चाहते थे. लेकिन सब कुछ पहले से तय होने के बाद भी छोटा राजन जे. डे से मिलने लंदन नहीं गया. दरअसल जिग्ना वोरा ने छोटा राजन से बात कर के उस के मन में यह भय बैठा दिया था कि अगर वह लंदन गया तो उस की हत्या हो जाएगी. जबकि ऐसी कोई बात नहीं थी.
जिग्ना को जे. डे के इस टुअर की जानकारी थी. बातचीत के दौरान छोटा राजन ने जब जिग्ना से जे. डे के लंदन और कई देशों के टुअर का जिक्र किया तो उन्होंने ऐसा जाहिर किया जैसे उन्हें जे. डे के इस टुअर के बारे में बहुत पहले से जानकारी है.
बातोंबातों में उन्होंने छोटा राजन को बताया कि जे. डे ड्रग माफिया इकबाल मिर्ची से मिला हुआ है और इकबाल मिर्ची उस की हत्या करना चाहता है. जिग्ना ने छोटा राजन को यह भी बताया कि यह जे. डे और इकबाल मिर्ची की मिलीभगत है.
जिग्ना की बातों से छोटा राजन के मन में डर बैठ गया और वह जे. डे से मिलने लंदन नहीं गया. जे. डे चूंकि छोटा राजन के विश्वास पात्र थे. इसलिए यह बात जान कर राजन को बहुत दुख हुआ. वह जे. डे से नाराज हो गया. बस यहीं से राजन और जे. डे के बीच दरार आ गई. यह दरार तब और गहरी हो गई जब जे. डे ने लंदन से लौट कर अपने अखबार में यह खबर छापी कि दाऊद पाकिस्तान छोड़ कर दुबई भाग गया है. इस के बाद जिग्ना वोरा ने लादेन की मौत के बाद राजन से दाऊद की लोकेशन का इंटरव्यू झटक लिया था.
बस यहीं से राजन को ले कर जे. डे और जिग्ना वोरा की कलम की लड़ाई शुरू हो गई. अपने विदेश के टुअर से लौटने के बाद तो जे. डे ने जैसे राजन पर हमला ही बोल दिया था. 30 मई, 2011 को जे. डे ने अपने लेख में लिखा कि डौन छोटा राजन को अब तीर्थयात्रा पर चले जाना चाहिए. दूसरा लेख जे. डे ने 2 जून, 2011 को लिखा कि राजन अब बूढ़ा हो गया है. जिग्ना वोरा ने इन दोनों लेखों की कटिंग छोटा राजन को भेज दीं. इस से राजन बौखला गया. उसे सब से अधिक गुस्सा 2 जून को छपी खबर ‘राजन बूढ़ा हो गया’ पर आया था. अदालत में पेश आरोपपत्र के अनुसार, उस ने जे. डे को सबक सिखाने के लिए जिग्ना वोरा से उन के घर और औफिस का पता मांगा.
जिग्ना वोरा घाटकोपर में जहां रहती थीं, वहां से जे. डे का घर दूर नहीं था. इसलिए उन्होंने जे. डे के घर और उन की मोटरसाइकिल का नंबर छोटा राजन को दे दिया. जे. डे का पताठिकाना पाने के बाद छोटा राजन ने अपने आदमियों को उन की रेकी कर के उन का गेम करने का आदेश दे दिया.
इसी बीच जिग्ना वोरा अपने औफिस से 10 दिन की छुट्टी ले कर बाहर चली गईं. जे डे की हत्या की खबर उन्हें तब मिली जब वह कोलकाता में थीं. लेकिन जिग्ना वोरा ने इस खबर को कोई महत्त्व नहीं दिया और वह वहां से सिक्किम चली गईं.
जे. डे की हत्या को ले कर मुंबई के सभी पत्रकारों ने अपनेअपने अखबारों में खबरें लिखीं, साथ ही खूब शोरशराबा भी किया. लेकिन एक बड़े अखबार की संवाददाता होते हुए भी जिग्ना ने जे. डे की हत्या से संबंधित न तो कोई खबर लिखी और न किसी पुलिस अधिकारी से संपर्क किया.
10 दिन बाद टुअर से लौट कर वह अपने औफिस गईं और उन्होंने क्राइम ब्रांच की जांच को गुमराह करने के लिए ड्रग माफिया इकबाल मिर्ची पर संदेह जाहिर करते हुए जे. डे की हत्या की खबर छापी. लेकिन यह खबर उन के लिए उलटी पड़ी. इस से जांच अधिकारियों का ध्यान उन पर जम गया. लेकिन इसी बीच जे. डे के हत्यारों की गिरफ्तारी शुरू हो चुकी थी, जिस की वजह से पुलिस का ध्यान जिग्ना वोरा की तरफ से हट गया था.
जिग्ना वोरा यह जान चुकी थीं कि उन की गिरफ्तारी कभी भी हो सकती है. इसलिए वह अपने खिलाफ सभी सबूतों को मिटाने में जुट गईं.
लेकिन फिर भी जांच अधिकारियों ने कुछ सबूत जुटा कर जिग्ना वोरा को गिरफ्तार कर लिया. विस्तृत पूछताछ के बाद जिग्ना वोरा को जे. डे हत्याकांड का प्रमुख आरोपी बनाया और अदालत पर पेश कर के जेल भेज दिया गया. जिग्ना पर पुलिस ने मकोका भी लगाया.
मुंबई क्राइम ब्रांच ने 7 जुलाई, 2011 को इस केस के आरोपियों पर महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) लगाया. लंबी जांच के बाद क्राइम ब्रांच ने राजेंद्र सदाशिव निखलजे उर्फ छोटा राजन और नारायण सिंह बिष्ट, जो कि फरार था, के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट पेश की. इस के बाद क्राइम ब्रांच ने 3 दिसंबर, 2011 को अदालत को जिग्ना वोरा के खिलाफ सप्लीमेंट्री चार्जशीट सौंपी. जुलाई, 2012 में जिग्ना वोरा को जमानत मिल गई.
केस के चलते 10 अप्रैल, 2012 को लंबी बीमारी के बाद जेल में ही एक आरोपी असरानी की मौत हो गई. करीब 5 साल बाद 8 जून, 2015 को अदालत ने 22 आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 302, 120बी, 34, आर्म्स एक्ट और मकोका के अंतर्गत चार्ज फ्रेम किया.
25 अक्तूबर, 2015 को इस केस के मुख्य अभियुक्त छोटा राजन को सीबीआई ने इंडोनेशिया के बाली से अरेस्ट किया और भारत ले आई, लेकिन उसे अन्य केसों की वजह से लाया गया था. हालांकि बाद में 5 जनवरी, 2016 को जे. डे मर्डर केस भी सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था. 31 अगस्त, 2017 को विशेष मकोका अदालत ने छोटा राजन के खिलाफ चार्ज फ्रेम किया.
लंबी चली सुनवाई और बहस के बाद 22 फरवरी, 2018 को अभियोजन पक्ष ने इस केस में अपनी बहस पूरी की. बाद में 2 अप्रैल, 2018 को मकोका कोर्ट ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए सीआरपीसी की धारा 313 के अंतर्गत तिहाड़ जेल में बंद छोटा राजन का फाइनल स्टेटमेंट दर्ज किया. 3 अप्रैल, 2018 को बचावपक्ष ने अपनी अंतिम बहस पूरी की. उसी दिन जस्टिस समीर अदकर ने 2 मई, 2018 को इस केस का फैसला सुनाने की घोषणा की.
2 मई, 2018 को जस्टिस समीर अदकर ने खचाखच भरी अदालत में अपना फैसला सुनाया. उन्होंने इस केस में दोषी ठहराए गए छोटा राजन, सतीश कालिया, अनिल बाघमोड, अभिजीत शिंदे, निलेश शिंदे, अरुण डाके, मंगेश अगवाने, सचिन गायकवाड़ और दीपक सिसौदिया को आजन्म कारावास की सजा सुनाई. साथ ही सभी पर 26-26 लाख रुपए का जुरमाना भी लगाया.
जस्टिस समीर अदकर ने सबूतों के अभाव में जिग्ना वेरा और जोसेफ पाल्सन को संदेह का लाभ दे कर बरी कर दिया. साथ ही अदालत ने जे. डे की बहन लीना को 5 लाख रुपए देने का भी आदेश दिया ताकि वह अपना इलाज करा सकें. सजा सुनाते समय न्यायाधीश ने वीडियो कौन्फ्रैंसिंग के जरिए जब छोटा राजन से पूछा कि कुछ कहना चाहते हो तो उस ने बस इतना ही कहा, ‘ठीक है.’?
20 जनवरी, 2018 की बात है. मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के थाना आष्टा के थानाप्रभारी बी.डी. वीरा थाने में बैठे पुराने मामलों की फाइल देख रहे थे, तभी उन्हें इलाके के समरदा गांव के पास मिट्टी की खदान में किसी युवक की लाश पड़ी होने की खबर मिली.
मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने उसी समय घटना की जानकारी अपने एसडीओपी और एसपी को दे दी और खुद अपनी टीम के साथ मौके लिए रवाना हो गए. समरदा गांव के पास स्थित मिट्टी की वह खदान कुछ दिनों से बंद पड़ी थी.
थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो वहां एक युवक की लाश मिली. उस युवक की उम्र यही कोई 20 साल थी. उस का सिर कुचला हुआ था. वहीं पर खून लगा पत्थर पड़ा था. लग रहा था कि शायद उसी पत्थर से उस की हत्या की गई थी. वहीं पर बीयर की खाली बोतलें भी पड़ी थीं.
मौके के हालात देख कर थानाप्रभारी यह भी समझ गए कि उस की हत्या किसी दोस्त ने ही की होगी. बहरहाल, पहली जरूरत लाश की पहचान की थी. पुलिस ने थोड़ा प्रयास किया तो लाश की पहचान भी हो गई. पता चला कि मृतक का नाम रितिक मेहता था और वह आष्टा में राठौर मंदिर के पास रहता था.
खबर मिलने पर रितिक के घर वाले भी घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने बताया कि रितिक 19 जनवरी की सुबह लगभग 10 बजे अपने दोस्त क्लिंटन उर्फ लखन मालवीय के साथ कालेज जाने को बोल कर निकला था, जिस के बाद वह घर वापस नहीं आया.
संदेह के दायरे में आया लखन
थानाप्रभारी को पहले ही मामले में यारीदोस्ती के बीच हुई हत्या का शक था. घर वालों से पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने घटनास्थल की काररवाई निपटाई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. साथ ही थाने में हत्या का केस भी दर्ज करवा दिया गया.
चूंकि रितिक लखन के साथ गया था, इसलिए थानाप्रभारी ने तत्काल एकटीम लखन के घर बरखेड़ा गांव भेज दी. लेकिन लखन घर पर नहीं मिला और न ही उस के बारे में कोई जानकारी मिली. इस से पुलिस का शक लखन पर और भी गहरा गया. लिहाजा पुलिस टीम संभावित जगहों पर लखन को तलाशने लगी.
थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के निर्देश पर पुलिस की दूसरी टीम आष्टा से समरदा खदान के बीच रास्ते में लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज जमा करने, लखन और मृतक के मोबाइल की काल डिटेल्स तथा उन की लोकेशन निकालने के काम में जुट गई.
इस छानबीन में पुलिस ने पाया कि लखन 19 जनवरी को रितिक को उस के घर के बाहर से अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर शराब की दुकान पर गया था. शराब की दुकान पर लगे सीसीटीवी कैमरे में लखन बीयर खरीदते दिख गया. उस के मोबाइल की लोकेशन भी समरदा में उसी समय पर पाई गई, जिस समय रितिक का मोबाइल स्विच्ड औफ हुआ था.
अब आष्टा थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के सामने आरोपी की तसवीर साफ हो चुकी थी, इसलिए उन्होंने टीम के साथ अपने मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया. इस का नतीजा यह निकला कि 2 दिन बाद ही लखन मालवीय पुलिस के हाथ लग गया.
पकडे़ जाने पर पहले तो वह अपने आप को बेकसूर बताता रहा, लेकिन जब थानाप्रभारी ने उस से मनोवैज्ञानिक ढंग से पूछताछ की तो वह अपने ही बयानों में उलझने लगा. जिस के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही रितिक की हत्या की थी. उस ने मृतक का मोबाइल फोन और पर्स भी बरामद करा दिया.
अपने भाई की जिस मोटरसाइकिल पर वह रितिक को बैठा कर ले गया था, वह भी पुलिस ने बरामद कर ली. पूछताछ के बाद लखन ने अपने दोस्त की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह प्यार को हाईजैक करने वाली कहानी थी—
साल भर पहले रितिक मेहता और लखन मालवीय स्थानीय मौडल स्कूल में एक साथ पढ़ते थे. दोनों में गहरी दोस्ती थी. दोनों ही एकदूसरे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. जब वे 10वीं कक्षा में थे, उस समय लखन का दिल साथ में पढ़ने वाली एक खूबसूरत लड़की बीना पर आ गया था. लखन ने यह बात अपने दोस्त रितिक को बताई. रितिक ने दोनों की प्रेमकहानी को आगे बढ़वाने में काफी मदद की.
लखन और बीना की प्रेम कहानी शुरू हो गई, जिस में रितिक उन दोनों की पूरी मदद करता था, इसलिए बीना की रितिक से भी अच्छी बनती थी. रितिक दोनों के एकांत में मिलने की व्यवस्था के साथसाथ उस दौरान उन की चौकीदारी भी करता था.
बताया जाता है कि कई बार तो स्कूल में खाली पड़े क्लासरूम में लखन और उस की प्रेमिका के मिलन कार्यक्रम के दौरान रितिक क्लास के बाहर खड़े हो कर पहरेदारी करता था. इसी बीच रितिक भी बीना को एकतरफा चाहने लगा था. पर उस ने अपनी चाहत कभी जाहिर नहीं होने दी. रितिक ने अपने जन्मदिन पर दोस्त लखन और उस की प्रेमिका बीना को भी बुलाया था. तब बीना ने रितिक से कहा, ‘‘रितिक, तुम हमारे लिए कितना करते हो, क्या स्कूल में कोई लड़की तुम्हारी दोस्त नहीं है?’’
‘‘नहीं, मैं ने किसी लड़की को अभी तक दोस्त नहीं बनाया.’’ रितिक बोला.
‘‘रितिक, इस स्कूल में जो भी लड़की तुम्हें पसंद हो, तुम मुझे बता दो. उस से मैं तुम्हारी दोस्ती करा दूंगी.’’ बीना ने विश्वास दिलाते हुए कहा.
एक लड़की 2 दीवाने
एकतरफा ही सही, रितिक को बीना पसंद थी. भला यह बात वह उसे कैसे बता सकता था. अगर वह अपने मन की बात उसे बता देता तो उस के दोस्त लखन का दिल टूट जाता. लिहाजा उस ने अपने दिल की बात उसे नहीं बताई.
बहरहाल, लखन और बीना की प्रेम कहानी और रितिक की उन से दोस्ती लगातार चलती रही. लेकिन किसी को यह पता नहीं था कि प्रेम कहानी वाली दोस्ती एक दिन 3 में से एक दोस्त की हत्या का कारण बनेगी. कहानी में मोड़ उस समय आया, जब 12वीं की परीक्षा में बीना और रितिक तो पास हो गए, लेकिन लखन फेल हो गया.
इस से त्रिकोण का एक कोण पीछे रह गया जबकि रितिक और बीना ने एक स्थानीय कालेज में एडमिशन ले लिया. अब रितिक और बीना की मुलाकातें कालेज में ही होने लगीं. जबकि लखन का रितिक से तो बराबर मिलनाजुलना बना रहा, पर बीना से वह नहीं मिल पाता था.
प्यार भले ही एकतरफा हो, उस की तड़प दीदार के लिए बेचैन करती है. यही लखन के साथ हुआ. वह बीना से मिलने के लिए उस के कालेज के चक्कर लगाने लगा. लेकिन यह रोजरोज संभव नहीं था. इधर लखन की गैरमौजूदगी में बीना और रितिक की दोस्ती कुछ ज्यादा ही गहराने लगी.
बीना के प्रति उस के दिल में जो प्यार दबा हुआ था, वह अंगड़ाइयां लेने लगा. पर बीना तो अब भी लखन को चाहती थी और उस के बारे में अकसर रितिक से बातें भी करती रहती थी.
जबकि रितिक चाहता था कि किसी तरह बीना के दिल में लखन के प्रति नफरत पैदा हो जाए. जब वह उस से बात करनी बंद कर देगी तो वह बीना पर अपना प्रभाव जमाना शुरू कर देगा. इस के लिए रितिक ने योजनाबद्ध तरीके से बीना से लखन की बुराइयां करनी शुरू कर दीं. वह कहता कि लखन शराब पीता है, दूसरी लड़कियों पर भी नजर रखता है.
ये सब बातें सुन कर बीना को लखन से नफरत हो गई. उस के दिमाग में लखन की जो छवि बनी हुई थी, वह बदल गई. वह सोचने लगी कि लखन भी आम लड़कों की तरह ही है. उस ने लखन से मिलना तो दूर, फोन पर बात करनी भी बंद कर दी. रितिक इस से बहुत खुश हुआ. उस ने इस नाराजगी का फायदा उठाते हुए बीना से नजदीकियां बढ़ा लीं. धीरेधीरे वह रितिक को इतना चाहने लगी कि उस ने लखन से एक तरह से किनारा कर लिया.
नफरत के बीजों की फसल
लखन हमेशा की तरह रितिक से मिलने के बहाने कालेज आ कर बीना से मिलने की कोशिश करता तो रितिक भी कोई न कोई बहाना बना देता. यानी रितिक ने लखन से भी मिलना बंद कर दिया. रितिक से नजदीकी बन जाने के बाद बीना ने उस से फोन पर भी बात करनी बंद कर दी थी.
लखन कोई दूध पीता बच्चा तो था नहीं, सो धीरेधीरे उस की समझ में आने लगा कि बीना और रितिक दोनों बदल गए हैं. इस से उसे शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं, उस की गैरमौजूदगी में दोनों के अवैध संबंध बन गए हों. कालेज में कई ऐसे लड़के पढ़ते थे, जो 12वीं कक्षा में लखन के साथ पढ़े थे. इसलिए लखन ने कुछ लड़कों से मिल कर सच्चाई का पता लगाया तो उसे जल्द ही यह बात पता चल गई कि रितिक ने उस के प्यार को हाईजैक कर लिया है.
लखन को इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि बीना के साथसाथ रितिक भी उस के साथ इतना बड़ा धोखा करेगा. इस के लिए वह रितिक को ही कसूरवार मानने लगा. उस ने सोचा कि रितिक ने ही उस की प्रेमिका को बरगलाया होगा. इसलिए उस ने रितिक से ऐसा बदला लेने की सोची, जिस की रितिक और बीना ने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
बन गई हत्या की योजना
आष्टा थानाप्रभारी बी.डी. वीरा के अनुसार, लखन गुस्से में था. उस ने रितिक की हत्या कर के उसे हमेशा के लिए अपने और बीना के बीच से हटाने की योजना बना ली. इस योजना के तहत 19 जनवरी, 2018 को रितिक को बीयर पिलाने का लालच दे कर वह उसे अपने साथ समरदा खदान पर ले गया. समरदा में लखन की बहन की शादी हुई थी, इसलिए वह उधर के सुनसान इलाकों के बारे में जानता था.
लखन की चाल को रितिक समझ नहीं सका था, इसलिए वह उस के साथ आसानी से समरदा खदान की तरफ चला गया. खदान में बैठ कर दोनों ने बीयर पी, जिस के बाद नशा हो जाने पर लखन ने रितिक के साथ अपनी प्रेमिका बीना को ले कर विवाद करना शुरू कर दिया.
चूंकि रितिक को बीयर का नशा चढ़ गया था, इसलिए वह वहीं खदान में लेट गया. मौका देख कर लखन ने पास पड़े भारी पत्थर से कई वार कर के उस का सिर कुचल कर हत्या कर दी. इस के बाद वह उस का पर्स और मोबाइल ले कर वहां से भाग गया. बाद में उस ने सिमकार्ड तोड़ने के बाद रितिक का मोबाइल फोन पौलीथिन में रख कर अपने खेत में गाड़ दिया, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया.
लखन मालवीय से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया.
मैंने अपनी जिद पर लव मैरिज की थी, इसीलिए विदाई के वक्त ससुरजी ने कहा था, ‘‘जमाई बाबू, अभी तो मैं अपनी बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, लेकिन आप के प्यार के आगे मुझे झुकना पड़ा. खैर, बेटी को मैं ने अच्छे संस्कार दिए हैं, इसलिए आप की जिंदगी की बगिया हमेशा गुलजार रहेगी.’’
मैं ने ससुरजी के चरण छू कर कहा था, ‘‘जब तक मेरी इन बाजुओं में दम है, आप की बेटी राज करेगी.’’
और इस तरह बिना एक फूटी कौड़ी दिए ससुर साहब ने अपनी सुपुत्री मुझे सौंप दी और मैं अपनी बीवी को ले कर दिल्ली की एक बस्ती में आ गया.
जब मेरी मासूम सी बीवी ने मेरे घर में पहला कदम रखा था, तो मैं बहुत खुश हुआ था. सोचा था कि अब मुझे कष्ट नहीं होगा. समय पर नाश्ताखाना मिलेगा. जब दफ्तर से लौट कर आऊंगा तो बीवी मुझे प्यार करेगी. लेकिन मेरे सपने धरे के धरे रह गए.
एक दिन मैं ने दफ्तर से लौटते समय अपनी बीवी को फोन किया, ‘‘क्या कर रही हो?’’
‘कुछ नहीं, लेकिन आप कब आ रहे हैं?’ उधर से आवाज आई.
मुझे बहुत भूख लगी थी. मैं ने सोचा कि वह खाना बना कर रखेगी, इसीलिए मेरे आने के बारे में पूछ रही है. मैं ने कहा, ‘‘प्रिये, कुछ लजीज खाना बनाओ. मैं दफ्तर से निकल रहा हूं. एक घंटे में पहुंच जाऊंगा.’’
‘ठीक है,’ वह बोली.
मैं रास्तेभर गाना गुनगुनाते हुए घर पहुंचा. मैं खुश था कि घर पहुंचते ही गरमागरम लजीज खाना मिलेगा. मैं ने घंटी बजा दी लेकिन दरवाजा नहीं खुला. फिर 1-2 बार बजा कर इंतजार किया. फिर भी दरवाजा नहीं खुला तो कई बार घंटी बजाई. तब जा कर दरवाजा खुला.
‘‘क्यों, क्या हो गया? देर क्यों हुई दरवाजा खोलने में,’’ मैं ने पूछा.
वह अपने चेहरे पर लटक रहे बालों को समटते हुए बोली, ‘‘कुछ नहीं, जरा आंख लग गई थी.’’
घर का सामान सुबह जिस हालत में था वैसे ही अभी भी पड़ा था. सुबह जिस प्लेट में मैं ने नाश्ता किया था वह वैसे ही जूठी डाइनिंग टेबल पर पड़ी थी. धोने के लिए गंदे कपड़ों का ढेर एक कोने में मुंह चिढ़ा रहा था. फर्श पर धूल की परत थी. रसोईघर में जूठे बरतनों का ढेर लगा था.
लजीज खाना खाने का मेरा सपना चकनाचूर हो गया था. वह मासूमियत से हुस्न के हथियार के साथ अनमने ढंग से मुझे देख रही थी. मैं खून का घूंट पी कर रह गया.
कुछ दिनों के बाद एक सुबह मैं दफ्तर के लिए निकल रहा था, तो वह बोली, ‘‘सुनिएजी, मेरे मोबाइल फोन में बैलेंस खत्म हो गया है. बैलेंस डलवा दीजिएगा.’’
मैं ने चौंक कर कहा, ‘‘बैलेंस कैसे खत्म हो गया… कल ही तो 2 सौ रुपए का रीचार्ज कराया था?’’
‘‘कल मैं ने मम्मीपापा से बात की थी और बूआ से भी बात की थी…
2-3 सहेलियों से भी बात की थी…’’ वह थोड़ा अटकते हुए बोली.
‘‘तो इतनी ज्यादा बात करने की क्या जरूरत थी? सिर्फ हालचाल पूछ लेती और बात खत्म कर देती,’’ मैं ने कहा.
‘‘हालचाल ही तो पूछा था,’’ वह बोली.
मुझे दफ्तर के लिए देर हो रही थी. मैं ने कहा, ‘‘अच्छा, ठीक है, बैलेंस डलवा दूंगा,’’ कह कर मैं घर से निकल गया. मेरे सपनों का महल टूटता जा रहा था.
इसी बीच उसे एक नया शौक सूझा. अब वह टैलीविजन का रिमोट हाथ में लिए सीरियल देखती रहती थी. कुछ कहता तो भी सीरियल में ही खोई रहती. जोर से बोलने पर वह मेरी तरफ देख कर पूछती, ‘‘क्या हुआ?’’
‘‘दफ्तर से थकाहारा आया हूं. पानी और नाश्ते के लिए भी नहीं पूछती और कहती हो कि क्या हुआ…’’
‘‘अच्छा, अभी 5 मिनट में लाती हूं. सीरियल अब खत्म होने ही वाला है,’’ टैलीविजन पर से आंखें हटाए बिना वह जवाब देती.
उस के वे 5 मिनट कभी खत्म नहीं होते. मजबूरन मैं खुद ही रसोईघर में जा कर कुछ खाने को ले आता. खुद भी खाता और अपनी बीवी को भी खिलाता.
महीनों सीरियल प्रेम दिखाने के बाद मेरी बीवी का पासपड़ोस की औरतों के घरों में आनेजाने और गपबाजी का दौर शुरू हुआ.
मैं दफ्तर से आ कर दरवाजे की घंटी बजाता रहता लेकिन दरवाजा नहीं खुलता. जब फोन करता तो पता चलता कि वह किसी पड़ोसन के घर बैठी है.
जल्द ही मेरी बीवी का पड़ोसन के घरों में जाने का साइड इफैक्ट भी शुरू हो गया. दूसरों के घरों में कुछ नई और अच्छी चीजें देख कर आती और मुझे भी वे चीजें लाने को कहती. कुछ तो अपनी जरूरत और पैसे की सीमा को देखते हुए मैं ले भी आया लेकिन अकसर ऐसी डिमांड होने लगी.
कुछ मेरी चादर से बाहर होता तो मैं मना कर देता. वह मुंह फुला कर बैठ जाती. खाना जैसेतैसे बना कर लाती, जो खाया न जाता.
एक दिन मैं ने उसे समझाया, ‘‘प्रिये, सब की जरूरत और औकात अलग होती है और उसी के मुताबिक सब काम करते हैं. दूसरों को देख कर हमें परेशान नहीं होना चाहिए.’’
‘‘हां, मेरी किस्मत ही खराब है, तभी तो सारी अच्छी चीजें दूसरों के घर देखती हूं. अपने घर में नसीब कहां?’’ वह बुझी आवाज में बोली.
‘‘निराश क्यों होती हो? समय आने पर हमारे यहां भी सबकुछ हो जाएगा. सब एक दिन में तो अमीर नहीं हो जाते. इस में समय लगता है,’’ मैं ने कहा.
‘‘मैं बोझ हो गई थी, इसीलिए मेरे मम्मीपापा ने जल्दी मेरी शादी करा दी,’’ यह कहते ही उस की आंखों से आंसू टपकने लगे.
‘‘लेकिन यह शादी तो हम दोनों के बीच प्यार होने के चलते हुई थी.’’
‘‘तो क्या हुआ? मैं नादान थी, लेकिन मेरे मम्मीपापा को तो अक्ल थी. मुझे बोझ समझ कर उन्होंने मेरा निबटारा कर दिया.’’
‘‘खैर, देर से शादी होती तो क्या कोई टाटा, बिरला या मुकेश अंबानी का बेटा आ जाता रिश्ता ले कर?’’ गुस्से में मेरे मुंह से निकला.
‘‘कोई भी आता लेकिन आप से अच्छा आता,’’ उस ने जवाब दिया.
मैं ने चुप रह जाना ही ठीक समझा.
रविवार का दिन था. मैं ने सोचा कि आज आराम करूंगा. रोज अपने दफ्तर में बौस की और्डरबाजी से परेशान रहता हूं. कम से कम आज तो आराम कर लूं.
मैं ने बीवी से कहा, ‘‘जानेमन, आज कुछ अच्छा खाना बनाओ ताकि खा कर मजा आ जाए. मैं आज टैलीविजन पर फिल्म देखूंगा और आराम करूंगा.’’
लेकिन मेरी बीवी का खयाल कुछ और ही था. वह बोली, ‘‘चलिए न आज कहीं बाहर घूमने चलते हैं और होटल में खाना खाते हैं.’’
मैं ने घबरा कर कहा, ‘‘कहां घूमने चलेंगे? कोई अच्छी जगह नहीं है. भीड़भाड़ और गाडि़यों के जाम में ही फंसे रहे जाते हैं और होटल का खाना तो ऐसा होता है कि खाने के बाद पछतावा होने लगता है कि क्यों खाया.
‘‘खाने का कोई स्वाद नहीं होता. सिर्फ ज्यादा पैसे और टिप दो. शाम को हैरानपरेशान हो कर घर लौटो.’’
‘‘आप तो हमेशा ऐसे ही बोलते हैं. शादी के बाद हनीमून पर भी बाहर नहीं ले गए,’’ वह बिस्तर पर लेट कर आंसू बहाने लगी.
छुट्टी का मजा खराब हो चुका था. मैं खुद रसोईघर में जा कर कुछ स्वादिष्ठ खाना बनाने की कोशिश करने लगा.
एक बार पड़ोस में शादी थी. मुझे भी सपरिवार न्योता मिला था. दफ्तर से आ कर मैं ने अपनी बीवी से कहा, ‘‘जल्दी तैयार हो जाओ. सब इंतजार कर रहे होंगे.’’
लेकिन बहुत देर बाद भी वह अपने कमरे से बाहर न निकली. मैं कमरे में गया तो देखा कि वह तकिए में मुंह छिपा कर रो रही थी.
‘‘अरे, क्या बात हो गई… रो क्यों रही हो?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.
वह कुछ न बोली. मैं ने जबरदस्ती उसे खींच कर बैठाया और फिर वजह पूछी.
‘‘न्योते में जाने लायक मेरे पास कपड़े नहीं हैं. मैं क्या पहन कर जाऊंगी?’’ वह सुबकते हुए बोली.
मैं हैरान रह गया. मैं रोज दफ्तर आताजाता हूं. लेकिन मेरे पास सिर्फ 2 जोड़ी ढंग के कपड़े थे, जबकि मेरी बीवी के पास कई जोड़ी कपड़े थे. 2 महीने पहले भी उस ने एक सूट खरीदा था, फिर भी वह रो रही थी.
मैं ने अलमारी में से उस के कई कपड़े निकाले और उस के आगे फैलाते हुए कहा, ‘‘ये सारे तो नए सूट हैं, फिर क्यों रो रही हो?’’
‘‘ये सब तो मैं पहले पहन चुकी हूं,’’ वह मुंह फेर कर बोली.
‘‘तुम कहना क्या चाहती हो? जो कपड़ा एक बार पहन लिया, वह पुराना हो गया क्या?’’ मैं ने पूछा.
‘‘ये कपड़े पहने हुए मुझे सब औरतें देख चुकी हैं.’’
‘‘मतलब, हर मौके लिए तुम्हें नए कपड़े चाहिए?’’ मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘कोई कपड़े से बड़ा या छोटा नहीं होता. देखो तो, यह सूट कितना अच्छा है. तुम पहन कर तो देखो. जो इस सूट में तुम्हें देखेगा, तारीफ करेगा,’’ मैं ने पुचकारते हुए कहा.
उस दिन मैं बड़ी मुश्किल से अपनी बीवी को मना पाया था. लेकिन अब मेरी सीधीशांत दिखने वाली बीवी बातबात पर गुस्सा करने लगी थी. सीरियल देखने से मना
करता तो रिमोट पटक देती. पासपड़ोस में ज्यादा जाने से मना करता तो गुस्से में अपने को कमरे बंद कर लेती.
फोन पर ज्यादा बात करने से मना करता तो कई दिन तक मोबाइल फोन नहीं छूती. इतना ही नहीं, अगर मैं उस के बने खाने की शिकायत करता तो मुझे पर ही चीखने लगती और खाना बनाना छोड़ देती.
मैं तंग आ गया था. सोचता कि शादी से पहले कितनी सीधी और प्यारी थी मेरी बीवी, पर अब तो ज्वालामुखी बन गई है और गुस्सा तो जैसे इस की नाक पर बैठा रहता है.
दफ्तर में मेरा बौस काम में कमी निकाल कर मुझ पर बातबात पर गुस्सा करता था. लेकिन नौकरी तो करनी ही थी, उसी से घर का गुजारा चलता था, इसीलिए बौस का गुस्सा सहना पड़ता था.
घर आता तो बीवी भी मुझ पर ही बातबात पर गुस्सा करती. समझ में नहीं आता कि वह मेरी बीवी है या बौस.
मेरी बीवी और मेरे बौस ने मेरी जिंदगी दूभर कर दी थी. पता नहीं, इन दोनों के चक्रव्यूह से मैं कभी निकल पाऊंगा भी या नहीं.
अगर गाय आप का खेत चरने लगे तो खेत को नष्ट करोगे या गाय को मार भगाओगे? बलात्कार के मामले में धर्मप्रचारकों का कहना है कि बलात्कारी तो गायों की तरह पूजनीय हैं, जिन्हें न पकड़ा जा सकता है और न ही मारा. उन्होंने चर लिया तो गलती किसान की है कि उस ने खेत बोया या बिना पहरेदारी के छोड़ दिया. बलात्कारियों को सब से बड़ा बल धर्म के उन पैरोकारों से मिलता है, जो समयसमय पर कहते रहते हैं कि बलात्कारों के लिए औरतें जिम्मेदार हैं, क्योंकि वे भड़काऊ पोशाकें पहनती हैं.
आजकल बलात्कार होते हुए बहुत से भारतीय वीडियो सोशल मीडिया में घूम रहे हैं और उन में आमतौर पर जबरन जोरआजमाइश उन लड़कियों से होती दिखती है, जो गांवों की हैं, खेतों में से गुजर रही हैं और बदन पर पूरे कपड़े पहने हुए हैं. इसी तरह भगवा दुपट्टा पहने उन लड़कों के भी वीडियो सोशल मीडिया में खूब चल रहे हैं, जो नैतिकता थोपने के बहाने जोड़ों पर हमला कर रहे हैं. इन में भी लड़कियों की पोशाकें भड़काऊ नहीं हैं. दोनों तरह के वीडियोज में एक समानता यह है कि कानून हाथ में लेने वाले एक तरह का सा व्यवहार कर रहे हैं. 2-4 लड़के मिल कर प्रेम करते जोड़े की कभी ऐंटीवैलेंटाइन डे के नाम पर तो कभी लव जिहाद के नाम पर पिटाई कर रहे हैं. ये वही हैं जो बलात्कार जैसे कांड करते हैं.
धर्म और संस्कृति की रक्षा के नाम पर एक अघोषित सेना खड़ी कर ली गई है, जो कहीं भी किसी को भी शिकार बना लेती है. वे सदियों से पेशेवर डकैती करतेकरते सैनिक बने लड़ाकों की तरह हैं. पहले के राजा डकैतों को अपनी सेना में शामिल कर उन्हें लूट और दुश्मन की औरतों को भोगने की इजाजत देते थे. अब अघोषित सेना तैयार हो रही है जो गौरक्षा, संस्कृति रक्षा व धर्म रक्षा के नाम पर उत्पात मचाती है और गुंडे तत्त्व इसी में शामिल हैं. इन्हें बोनस में मारपीट का हक मिलता है और बलात्कार करें तो पुलिस मामला दर्ज नहीं करती. बलात्कार औरतों की प्रगति को रोकने का सब से बड़ा हथियार बना हुआ है. उन्हें घरों में बंद करना है, तो उन में बलात्कार का हौआ बैठा दो. उन्हें बता दो कि बलात्कार के दौरान शारीरिक कष्ट तो होगा ही, बाद में समाज दोषी भी उन्हें ही मानता रहेगा.
संस्कृति, धर्म, रीतिरिवाजों का रातदिन गुणगान करने वाले धर्म के रक्षक, जिन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं सब से ज्यादा मुखर हैं, क्यों नहीं बलात्कार की पीडि़ता को वह सामाजिक स्तर दिलाने को बोलते, जो पत्थर की मूर्तियों और सिर्फ भैंसों की तरह दूध देने वाली गायों को दिलाने के लिए रातदिन बोलते नहीं थकते? वे भी उसी पुरातनपंथी सोच को मूक समर्थन दे रहे हैं कि बलात्कार की दोषी तो लड़कियां ही हैं.