हर प्रदेश में कुछ गांव पिछड़े हुए होते हैं, केरल में भी हैं. पी.सी. मुस्तफा केरल के जिला वायनाड के एक छोटे से गांव में जन्मे थे, एकदम गरीब परिवार में. घर की स्थिति ऐसी थी कि पिता को चौथी तक पढ़ाई के बाद नौकरी करनी पड़ी. मां घरेलू महिला थीं, साथ ही घर में 2 छोटी बहनें भी थीं.

अभावों के चलते मुस्तफा ने गांव के स्कूल से 5वीं पास की. आगे की पढ़ाई के लिए दूसरे गांव के स्कूल में जाना पड़ा, जहां जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. इस के बावजूद मुस्तफा छठीं में फेल हो गए. लेकिन पढ़ाई के जुनून के चलते फिर भी स्कूल नहीं छोड़ा.

इस का नतीजा भी सार्थक रहा. पढ़ाई जारी रखते हुए मुस्तफा ने कोलकाता से एनआईआईटी और बेंगलुरु से आईआईएम की पढ़ाई की. घर का खर्च जैसेतैसे चल रहा था, लेकिन 3 बहनों की शादी की जिम्मेदारी मुस्तफा के कंधों पर थी.

मुस्तफा इंजीनियर बनना चाहते थे, लेकिन बन गए बिजनैसमैन. हुआ यह कि एक दिन उन के चचेरे भाई शम्सुद्दीन ने एक दुकान पर देखा कि डोसा बनाने का घोल (डोसा बैटर) प्लास्टिक की थैलियों में बेचा जा रहा है. शम्सुद्दीन ने मुस्तफा से कहा कि इस काम को हम इस से बेहतर ढंग से कर सकते हैं.

बस मुस्तफा को आइडिया क्लिक कर गया. उन्होंने अपने 5 चचेरे भाइयों को साथ लिया और 25 हजार रुपए लगा कर एक कंपनी शुरू कर दी, जिस में डोसे का घोल बनाया जाता था. कंपनी का नाम रखा ‘आईडी फ्रैश’.

कंपनी की शुरुआत छोटी सी जगह, एक ग्राइंडर, एक मिक्सर और एक सीलिंग मशीन के साथ हुई.

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