ईरानी फिल्मकार माजिद मजीदी की फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता ईशान खट्टर अब अपने करियर की दूसरी फिल्म ‘‘धड़क’’ को लेकर उत्साहित हैं. यह फिल्म मराठी की सुपर हिट फिल्म ‘‘सैराट’’ की रीमेक है, पर ईशान का मानना है कि फिल्म ‘‘धड़क’’, ‘‘सैराट’’पर आधारित एक नई फिल्म है.
फिल्म ‘‘बियांड द क्लाउड्स’’ में आपने काफी अच्छा काम किया था. फिल्म भी अच्छी बनी थी. पर दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद नहीं किया. क्या वजह रही?
बाक्स आफिस की चीजें मेरे दायरे से बाहर हैं. मुझे बहुत ज्यादा इसकी समझ भी नही है. मुझे लगता है कि फिल्म का प्रचार सही नहीं हुआ. फिल्म को लेकर दर्शकों के बीच जिस ढंग की चर्चाएं होनी चाहिए थीं, वह नहीं हो पायी. जिसके चलते दर्शक समझ नहीं पाए कि यह एक हिंदी फिल्म है. जबकि मुझे उम्मीदें थी कि लोग इस फिल्म को देखेंगे और पंसद करेंगें. फिर भी जिन लोगों ने यह फिल्म देखी, उन्होंने मेरे अभिनय को सराहा है. बहुत अच्छा रिस्पांस मिला. लोगों को फिल्म की कहानी भी बहुत पसंद आयी. मेरे लिए अपने आपको इस फिल्म से जुदा करके देखना बहुत मुश्किल है. इस फिल्म को करने का मेरा तजुर्बा भी बहुत अच्छा रहा. आज की तारीख में मार्केटिंग बहुत मायने रखती है. लोगों के बीच फिल्म को लेकर जागरूकता पैदा करने में हम सब असफल रहे हैं. फिल्म का नाम अंग्रेजी में होने की वजह से शायद लोग अपने आपको फिल्म के साथ नहीं जोड़ पाए. बहरहाल, मैंने तो इस फिल्म से अपनी पूरी जिंदगी का पाठ सीखा है. मेरे साथ यह फिल्म हमेशा रहेगी. मेरे लिए यह फिल्म आज भी खास है और हमेशा खास रहेगी. पर इस फिल्म को लेकर आगे बहुत कुछ होने वाला है, जिसको लेकर मैं अभी से सारी चीजें उजागर नही करना चाहता.
करण जोहर ने आपको फिल्म ‘‘धडक’’ के लिए बुलाया था या किसी अन्य फिल्म के लिए?
करण जोहर के साथ मेरी पहली मुलाकात टीवी के रियालिटी शो ‘‘झलक दिखला जा’’के सेट पर हुई थी, जहां करण जोहर जी मेरे भाई शाहिद कपूर के साथ इस शो को जज कर रहे थे. उस वक्त मुझे इस बात का अहसास नहीं था कि करण जोहर मुझे लेकर फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे हैं. कुछ दिन के बाद उन्होंने मुझे अपने आफिस मिलने के लिए बुलाया. उससे पहले हम एक दूसरे से अनभिज्ञ थे. पहली मुलाकात में हम दोनों ने एक दूसरे को जाना. मेरे बारे में उन्होंने तमाम सवाल किए. उसके बाद भी हमारी मुलाकातें होती रहीं. वह इस बात को जांचना व परखना चाहते थे कि क्या मैं इस काबिल हूं कि फिल्म में मैं बेहतर किरदार निभा पाउंगा? उस वक्त उन्होंने मेरे साथ एक दूसरी फिल्म बनाने की बात कही थी. तभी मैंने उनसे दरख्वास्त की थी कि मुझे निर्देशक शशांक खेतान से मिलना है. क्योंकि मुझे शशांक खेतान की पहली फिल्म ‘‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’’ बहुत पसंद आयी थी. फिर वह लेखक व निर्देशक दोनो हैं, तो मैं उनसे मिलकर उनकी कार्यशैली व उनके बारे में जानना चाहता था. करण जोहर ने उनसे हमारी मुलाकात करवायी. पहली मुलाकात में ही शशांक खेतान मेरे दोस्त बन गए. फिर हमारी मुलाकातें होने लगी. एक दिन मराठी फिल्म ‘सैराट’ की स्क्रिनिंग में करण जोहर ने फिल्म देखने के लिए मुझे बुलाया था. मैं ओशिवरा में था. शशांक ने मुझे फोन किया कि हम लोग साथ में यहीं से चलते हैं. रास्ते में शशांक ने बताया कि वह इस फिल्म को बनाना चाहते हैं और फिल्म के हीरो के लिए उन्होंने मेरे बारे में सोचा है. फिल्म देखते हुए मैं पूरी तरह से उसमें डूब गया था. ‘सैराट’ बहुत ही कमाल और खूबसूरत फिल्म है. यह इतनी सशक्त फिल्म है कि इस फिल्म को लेकर मैं काफी देर तक बात नहीं कर पाया. करीबन आधे घंटे बाद मैं सही मायने में होश में आया और मैंने कहा कि मुझे यह फिल्म करनी है. उसके बाद शशांक खेतान से मेरी मुलाकातें कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी. फिल्म को लेकर वह मेरे साथ बातचीत करने लगे. उन्होंने बताया कि वह ‘धड़क’को ‘सैराट’ पर आधारित बनाना चाहते हैं. इसके लिए वह किस तरह के बदलाव कर रहे हैं, इस पर चर्चा की थी. उन्होंने कहा कि वह ‘सैराट’ के कथानक की आत्मा को लेकर अपने अंदाज में अपनी खुद की फिल्म बनाना चाहते हैं. मुझे लगा कि यह एक बहुत ही प्यारी और लोगों तक बतायी जाने वाली कहानी है. इसलिए मैंने इससे जुड़ने का निर्णय लिया.
‘‘सैराट’’ देखने के बाद किस बात ने आपको प्रभावित किया?
सबसे पहले तो मैं फिल्म के हीरो आकाश थोसार उर्फ पार्सया व अर्चना पाटिल उर्फ आर्ची की प्रेम कहानी पर यकीन करने लगा था. इस फिल्म ने मुझे अहसास दिलाया कि ऐसा हो सकता है. फिल्म में सामाजिक संदेश भी बहुत गजब का है. फिल्म में कहीं कोई भाषणबाजी नहीं है. यह फिल्म आपको अंदर से सोचने पर मजबूर करती है. इस बात से मैं बहुत प्रभावित हुआ. इसके अलावा तकनीकी स्तर पर भी यह बहुत बेहतरीन फिल्म है. फिल्म के दोनों कलाकारों प्रशांत काले व रिंकू राजगुरू ने कमाल का अभिनय किया है. वैसा अभिनय हर कलाकार के बस की बात नहीं है. मुझे लगा कि इस फिल्म से प्रेरित कहानी को राजस्थान की पृष्ठभूमि में बताना अच्छा रहेगा. किरदार तो वैसे भी अच्छा था. इसके बाद जब मैंने शशांक के विचार सुने, उनकी सोच जानी. तब तो मैं इस फिल्म से जुड़ने के लिए पूरी तरह से बेताब हो गया.
फिल्म ‘‘सैराट’’ में जो सामाजिक संदेश है, वह ‘धड़क’में किस रूप में आया है?
देखिए, फिल्म को लेकर सब कुछ बता कर मैं दर्शकों की उत्सुकता कम नहीं करना चाहता. लेकिन ‘धड़क’में ‘सैराट’की जो रूह है, वह आपको नजर आएगी. इसके अलावा कहानी, किरदार, लोकेशन को नए रंग प्रदान किए गए हैं. फिल्म का असली मुद्दा यह है कि प्यार नफरत से बढ़कर है, फिर चाहे आप किसी भी रूप में कहें. जातिगत या धर्म की नफरत से भी प्यार उपर है. हमारे देश में जिस तरह से इन दिनों जाति, धर्म, रंग आदि को लेकर नफरत का स्तर बढ़ा है, उसे देखते हुए ‘धड़क’बहुत ही समसामायिक फिल्म है. हम इस कहानी को भारत देश के किसी भी राज्य में ले जाकर बता सकते थे. यह फिल्म लोगों के दिलों को छुएगी. फिल्म में आनर किलिंग का मुद्दा भी है, जो कि राजस्थान में तो यह मुद्दा काफी गर्माया हुआ है.
फिल्म ‘‘धड़क’’ में आपका किरदार ‘सैराट’ के किरदार से कितना अलग है?
दोनों किरदारों के बीच काफी समानता हैं और काफी अलग भी है. ‘धड़क’में मेरा किरदार मधुकर वाघेला का है, जो कि राजस्थानी लड़का है. झीलों की नगरी उदयपुर में रहता है. राजस्थान के लोगों में एक रायालिटी होती है, गर्व होता है, वह सब मधुकर में भी है. इसी के साथ मधुकर मासूम है. अपनी जिंदगी से खुश है.
आपने इस किरदार के लिए किस तरह से तैयारी की?
पहली बात तो शशांक खुद कलाकार को किरदार के लिए तैयार करने का अपना तरीका अपनाते हैं. वह खुद मारवाड़ी हैं, इसलिए उन्होंने इस फिल्म के किरदारों से मेवाड़ी भाषा बुलावाई है. वह चाहते थे कि उनके कलाकार इस तरह से तैयार हों कि शूटिंग के समय चाहे जो समस्या आए, परफार्मेंस अच्छी निकले. इसलिए उन्होंने हमारे साथ बैठकर पूरे डेढ़ माह तक सिर्फ पटकथा पढ़ते हुए चर्चाएं की. उसके बाद हम लोग एक माह तक उदयपुर में रहे. वहां के लोगों की जबान को समझा. उनकी चालढाल को समझा. वहां समय बिताकर हमने वहां के कल्चर को भी समझा. इससे हमारे अंदर वह किरदार अपने आप आता चला गया. लुक को लेकर निर्णय लेने में हमें सहूलियत हुई. मधुकर के किरदार के लिए मेरे बाल भी थोड़े रंगे गए. पहली बार मैंने आंखों में कांटैक्ट लेंस पहना. वहां के लोग कानों में बालियां पहनते हैं, इसलिए मुझे भी कान में छेद करवाकर बालियां पहननी पड़ी. जो ज्वेलरी लोग वहां पहनते हैं, वह सब हमने जयपुर से खरीदी थी. वहां लोग जिस तरह के कपडे़ पहनते हैं, उसकी हमने तस्वीरें खींची. यानी कि निर्देशक के साथ साथ हमने भी काफी रिसर्च किया.
‘बियांड द क्लाउड्स’ की शूटिंग खत्म होते ही आपने ‘धड़क’ की शूटिंग शुरू कर दी थी?
जी हां! दोनों फिल्मों की शूटिंग के बीच पांच माह का अंतराल रहा.‘बियांड द क्लाउड्स’ की शूटिंग खत्म होते ही मैंने कोशिश की कि आमिर का किरदार मेरी जिंदगी से हट जाए. फिर मैंने मधुकर वाघेला के किरदार के लिए तैयारियां शुरू कर दी. मैंने अपने आपको नए सिरे से ढूंढ़ना शुरू किया. फिर राजस्थानी दुनिया में घुलने मिलने की कोशिश की. किरदार की असलियत ढूंढ़कर स्क्रिप्ट के अनुसार जीने की कोशिश की.
आमिर और मधुकर में से किसके ज्यादा करीब हैं?
शायद मैं आमीर के काफी करीब हूं. मधुकर मुझसे काफी अलग हैं. इसलिए मधुकर के किरदार को निभाना मेरे लिए काफी चुनौती भरा रहा. मधुकर बहुत भोलाभाला युवक है. उसने जिंदगी को बहुत ज्यादा देखा नही है. पर जब वह प्यार में पड़ता है, तो उसकी जिंदगी बदलती है. उसकी जिंदगी अचानक एक लम्हे में उसे बड़ा हो जाने का अहसास दिलाती है, जिंदगी की असलियत से वास्ता होते ही उसमें बदलाव आता है. अन्यथा आप हमेशा अपनी दुनिया में हवा में उड़ते रहते हैं. इंसान की जिंदगी का एक लम्हा उसे उसकी फैंटसी की दुनिया से बाहर ले आती है. जिंदगी की असलियत जब सामने आती है, तब जिंदगी ऐसा मोड़ लेती है कि आपका अपना सारा अहंकार अपने आप मिट जाता है. यदि मैं साधारण भाषा में कहूं तो हम अपनी औकात में आ जाते हैं. इस तरह की यात्रा को सिनेमा के परदे पर दिखाना बहुत कठिन रहा.
निजी जिंदगी में ऐसा कौन सा लम्हा था, जब आपने खुद को कमजोर महसूस किया?
देखिए, मेरी जिंदगी में कोई एक बदलाव नहीं आया. कई बदलाव आए. बचपन से ही मैंने अपनी मां को देखते हुए साहस सहनशक्ति सहित सब कुछ सीखा. मेरी जिंदगी में मेरी मां ही सबसे खूबसूरत इंसान हैं. उन्होंने ही मुझे जिंदगी के सारे पाठ पढ़ाए हैं. मैं कभी नहीं कहूंगा कि मेरी जिंदगी में बहुत कठिनाई थी. मेरी जिंदगी ने मुझे जो भी सिखाया, उसे मैंने सीखने की कोशिश की. मैं हमेशा अपनी हद में रहा. मेरी जिंदगी में ऐसा कोई लम्हा नहीं आया जब मैंने खुद को कमजोर महसूस किया हो या मेरी जिंदगी में कोई बहुत बड़ा बदलाव आया हो. फिलहाल मैं अपनी जिंदगी में ऐसे मोड़ पर हूं, जहां मुझे ऐसा काम करने का मौका मिला है, जिससे मुझे मोहब्बत है. मुझे लगता है कि अभिनय करने से जिंदगी बेहतर हो जाती है. किसी किरदार को निभाने से हम निजी जिंदगी में भी परिपक्व होते हैं. अनजाने में हमारी अपनी जिंदगी में भी बदलाव आते रहते हैं.
आपने दो निर्देशकों माजिद मजीदी और शशांक खेतान के साथ काम किया. इन दोनों के निर्देशन में आपने क्या अंतर पाया?
मजीदी साहब अपने साथ बहुत तजुर्बा लेकर आते हैं. वह एकदम यथार्थपरक फिल्म बनाते हैं. उनका नजरिया, कहानी बताने का तरीका बहुत खूबसूरत है. वह जज्बाती इंसान हैं. पूरे दिलों जान से काम करते हैं. वह बहुत वरिष्ठ हैं. फिर भी उनके अंदर मासूमियत है. वह अपने कलाकारों को इस बात का अहसास नहीं करवाते कि वह उनसे वरिष्ठ हैं. वह असाधारण व्यक्तित्व के स्वामी हैं. जिंदगी को लेकर उनका नजरिया बहुत साफ और अच्छा है. पहली मुलाकात में मजीदी साहब ने मुझसे कहा था, ‘एक अच्छा कलाकार होने से ज्यादा जरूरी है कि आप पहले एक अच्छे इंसान बनें. आप जिंदगी में जो कुछ चाहते हैं, वह अच्छा इंसान होने पर ही पाएंगे.’
जहां तक शशांक की बात है, वह मेरी ही तरह युवा, जोशीले पर समझदार भी हैं. उनसे बात करके आपको लगेगा कि वह एक परिपक्व इंसान हैं. वह बहुत शांत स्वभाव के हैं, जल्दी जज्बाती नहीं होते, बदतमीजी से बात नहीं करते, समय के पाबंद हैं. मुझे इन दोनों के साथ काम करने में मजा आया.
अभिनय के साथ ही आपको नृत्य का भी पैशन है. शास्त्रीय नृत्य में आपकी कितनी रूचि है?
मैंने शास्त्रीय नत्य का प्रशिक्षण नहीं लिया है. मैंने लोगों को शास्त्रीय नृत्य सीखते हुए देखा जरुर है. मेरी मां ने भी मुझ पर कभी कत्थक आदि सीखने के लिए दबाव नहीं डाला. मेरा भी ऐसा रूझान नहीं रहा. मैंने पश्चिमी नृत्य का प्रशिक्षण ज्यादा लिया है. मैं फ्री स्टाइल नृत्य करता हूं. मेरी कोशिश अलग अलग प्रकार के नृत्य सीखने की जरुर रहती है.
हमारे यहां नृत्य प्रधान फिल्में भी बन रही हैं?
यह अच्छी शुरुआत है. नृत्य के प्रति जागरूकता बढ़नी चाहिए. शास्त्रीय नृत्य तो हमारी पहचान है. यह हमारी सांस्कृतिक विरासत है, जिसे सजा कर रखना चाहिए. मेरी राय में नृत्य को महज मनोरंजन या अर्थ के दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए.