पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने वर्तमान में टीम इंडिया की वनडे सीरीज में करारी हार पर टीम में सुधार की संभावनाओं पर बात करते हुए बताया की टीम प्रबंधन और खिलाड़ियों, खास तौर एमएस धोनी को क्या करना चाहिए जिससे कि टीम का और उनका प्रदर्शन बेहतर हो सके. गांगुली ने खास तौर पर टीम प्रबंधन की खास तौर पर आलोचना की. गांगुली ने टीम में शीर्ष बल्लेबाजों के बेहतर होने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि टीम का इन पर निर्भर होना अच्छा नहीं है.
धोनी के तीन मैचों की वनडे सीरीज में नाकामी पर गांगुली ने कहा कि अगर यह विकेटकीपर बल्लेबाज 2019 विश्व कप के लिए टीम की पसंद है तो उसे अपने खेल में सुधार करना होगा. उन्होंने कहा, ‘‘अगर धोनी को खिलाया जाता है तो उसे हिटिंग करनी होगी. अगर 24-25 ओवर हुए हैं और उसे पारी को संवारना है तो उसे परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.’’
अपने दो सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों लोकेश राहुल और अजिंक्य रहाणे का सही तरीके से ख्याल नहीं रखने के लिए भारतीय टीम प्रबंधन को आड़े हाथों लिया. गांगुली ने कहा कि मध्यक्रम में लगातार प्रयोग से मजबूत शीर्ष क्रम वाली भारतीय टीम को नुकसान उठाना पड़ रहा है.
मंगलवार को लीड्स में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे और अंतिम वनडे में भारत की हार के बाद गांगुली ने कहा कि भारतीय टीम शीर्ष तीन बल्लेबाजों शिखर धवन, रोहित शर्मा और विराट कोहली पर अति निर्भर है.
गांगुली ने मैच के बाद आधिकारिक प्रसारण के दौरान कहा, ‘‘फिलहाल भारत की टीम शीर्ष क्रम पर काफी निर्भर है. अगर आपका शीर्ष क्रम रन नहीं बनाता तो आपको जूझना पड़ता है. यह बड़ा मुद्दा है. आपके पास इंग्लैंड जैसा स्तर होना चाहिए.’’
राहुल जैसे खिलाड़ियों को अधिक मौके देने चाहिए
गांगुली ने कहा कि भारत राहुल जैसे खिलाड़ियों को अधिक मौका नहीं दे रहा जिन्हें अच्छी फार्म में होने के बावजूद अंतिम मैच में मौका नहीं दिया गया. उन्होंने कहा, ‘‘आंखें बंद करके देखूं तो मुझे चौथे नंबर पर राहुल नजर आता है. आपके शीर्ष चार खिलाड़ी सर्वश्रेष्ठ होने चाहिए और आपको उनके साथ बरकरार रहना होगा. राहुल के पास जाओ और उसे बोलो, ‘‘हम तुम्हें 15 मैच देते हैं’’. बस जाओ और खेलो.’’
गांगुली ने कहा, ‘‘वे (टीम प्रबंधन) फिलहाल पर्याप्त मौके नहीं दे रहे. राहुल ने मैनचेस्टर में शानदार शतक बनाया और अब उसे बाहर कर दिया गया. इस तरह से आप खिलाड़ी तैयार नहीं कर पाओगे. रहाणे के साथ भी ऐसा ही है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ये आपके दो सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं. आपके पास चौथे और पांचवें नंबर पर ठोस बल्लेबाज होने चाहिए. इसके बाद छठे नंबर पर आप महेंद्र सिंह धोनी या दिनेश कार्तिक के बीच चुन सकते हो और सातवें नंबर पर हार्दिक होगा.’’
सुरेश रैना से आगे सोचने की जरूरत
उन्होंने साथ ही कहा कि समय आ गया है कि भारत सुरेश रैना के विकल्प पर विचार करे. गांगुली ने कहा, ‘‘उसके प्रति पूरा सम्मान है लेकिन मुझे लगता है कि बेहतर खिलाड़ी मौजूद हैं. वह लंबे समय तक खेला. उसने एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में रन बनाए लेकिन विदेशों में काफी रन नहीं बना पाया. भारत को उससे आगे देखने की जरूरत है.’’
आईपीएल स्पौट फिक्सिंग में फंसे भारतीय क्रिकेटर एस श्रीसंत ने हाल ही में अपनी फिटनेस पर जबर्दस्त काम कर सभी को हैरान कर दिया है. श्रीसंत एक ओर जहां आईपीएल स्पौट फिक्सिंग में बीसीसीआई के तरफ से निलंबन झेलते हुए उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. वहीं उन्होंने अब अपनी फिटनेस पर मेहनत कर नया लुक शेयर किया है. इस नए लुक को देखकर साफ दिख रहा है कि बॉलीवुड के हीरो सलमान खान, ऋत्विक रोशन वगैरह तो अब श्रीसंत के आगे कहीं भी टिकते नजर नहीं आ रहे. श्रीसंत इस लुक में ऐसे दिख रहे हैं जैसे वे अब WWE के अखाड़े में उतरने जा रहे हैं.
श्रीसंत को इस बारे में खुलासा करने की जरूरत नहीं है कि वे अपनी फिटनेस पर मेहनत क्यों कर रहे हैं. मैच फिक्सिंग के आरोपों के चलते श्रीसंत का क्रिकेट करियर खत्म हो चुका है. कुछ वक्त पहले वह एक बौलीवुड फिल्म में भी नजर आए थे. फिल्म ‘अक्सर 2’ से श्रीसंत ने अपनी नई पारी की शुरुआत की थी. इस फिल्म से डेब्यू करने श्रीसंत को हालांकि बौलीवुड में सफलता नहीं मिली.
नई फिल्म की तैयारी है श्रीसंत की
अब श्रीसंत एक कन्नड़ फिल्म से फिर से सुनहरे परदे पर नजर आने की तैयारी कर रहे हैं. श्रीसंत कन्नड़ फिल्म ‘केम्पागोड़ा-2’ में बतौर हीरो नजर आएंगे. इस फिल्म के लिए ही श्रीसंत ने खुद को पूरी तरह से बदल लिया है.
श्रीसंत का यह नया लुक जिम जाने वाले काफी पसंद किया जा रहा है. उनकी मेहनत का असर उनके डील डौल पर साफ दिख रहा है जिसकी वजह वे डब्ल्यूडब्ल्यूई के रेसलर से कम नजर नहीं आ रहे हैं. श्रीसंत की इस बात पर भी तारीफ हो रही है कि उन्होंने अपना कायाकल्प काफी कम समय में कर दिया.
बिलकुल ऐसा ही काम आमिर खान ने अपनी फिल्मों के लिए भी किया है, जिसमें दंगल और गजनी शामिल हैं. गजनी में जरूर आमिर ने थोड़ा ज्यादा वक्त लिया था लेकिन दंगल में आमिर ने ज्यादा वक्त नहीं लिया जिसकी चर्चा भी काफी हुई थी.
आईपीएल स्पौट फिक्सिंग में केस सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई
आईपीएल 2013 के दौरान स्पौट फिक्सिंग के कथित आरोपों में पहले एस श्रीसंत को हाईकोर्ट की सिंगल बैंच से राहत मिली थी, लेकिन जब बोर्ड ने फिर से याचिका दाखिल की तो उन्हें वहां से झटका लगा. इसके बाद श्रीसंत ने शीर्ष कोर्ट जाने की तैयारी शुरू कर दी. श्रीसंत का कहना था कि वे फिक्सिंग के कथित आरोपों के लिये बीसीसीआई द्वारा उन पर लगाये गए आजीवन प्रतिबंध को हटवाने की अपनी आखिरी कोशिश के तहत सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे. अभी उनका मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
देश का मीडिया आजकल कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है. सब से बड़ी बात यह है कि पाठकों और दर्शकों की मुफ्त में बिना पैसे दिए जानकारी पाने की भूख मीडिया की जड़ों में तेजाब डाल रही है. एक आइसक्रीम, पिज्जा या डोसे के लिए लोग दोगुने तीनगुने पैसे देने को तैयार हैं पर पढ़ या देख कर जानकारी हासिल करने के लिए वे पैसे देने में आनाकानी कर रहे हैं.
सिनेमा जगत ने तो अमीरों को मल्टीप्लैक्सों से आकर्षित कर लिया है जहां मनोरंजन और कोरा मनोरंजन, खानेपीने की सुविधा के साथ परोसा जा रहा है, लेकिन सोचविचार व सूचना वाला मीडिया, जो पहले पाठकों के बल पर स्टीलफ्रेम की तरह मानवाधिकारों, समाज सुधारों, राजनीतिबाजों को नियंत्रित करने के लिए खड़ा रहता था, आज पाठकोंदर्शकों की उदासीनता का शिकार हो रहा है. ऐसा खासतौर पर हो रहा है पर भारत में, लेकिन दूसरे देश भी इस से अछूते नहीं हैं.
मीडिया की इस कमजोरी के लिए आम नागरिक जिम्मेदार हैं. विडंबना यह है कि वे बिना पैसे खर्च किए मीडिया से जिम्मेदारी और जवाबतलबी की उम्मीद करते हैं. आज मीडिया का एक हिस्सा सरकार का गुणगान कर रहा है तो इसलिए कि वह मजबूर है, क्योंकि मीडिया को पैसा वही सरकार दे रही है.
जो वैचारिक, कानूनी व तकनीकी सुधार आज हम देख रहे हैं उस के जनकों में 500 साल पहले के मार्टिन लूथर, जिन्होंने जरमनी के विटेनबर्ग के एक चर्च के बाहर 95 थीसीम कील से ठोक कर इटली के पोप की पोल ही नहीं खोल दी, बल्कि पूरी सोच को बदल डाला था, जैसी हस्तियां शामिल हैं. मार्टिन लूथर ने तब ईजाद हुए पिं्रटिंग प्रैस का इस्तेमाल किया. उन्होंने धार्मिक आलोचना पंडों की भाषा लेटिन में न कर के जरमन में की और उसे छपवा कर बंटवाया. तब का वह छपवाना, आज की कंप्यूटर क्रांति की तरह है पर तब पैसा छापने वालों को ही मिला.
आज का पाठक मुफ्त में ही सही वह विश्वसनीय खोजी पत्रकारिता चाहता है. वह महंगी गाड़ी खरीदता है पर सस्ते या मुफ्त के ऐप से मोबाइल को भरे रखता है. वह फेसबुक और व्हाट्सऐप का आदी है क्योंकि ये दोनों मुफ्त हैं. मीडिया न केवल ध्यान मांगता है बल्कि पैसा भी मांगता है. आजकल उसे या तो धन्ना सेठों की ओर झुकना पड़ता है या सरकारों की ओर जो उसे चलाने के लिए भरपूर सहयोग दे रहे हैं.
मीडिया पर बिक जाने के आरोप लगाना आसान है पर जो जनता मंदिरमठ के नाम पर पैसे देने को तैयार हो और बहकने को भी तैयार हो, उसे मीडिया पर उंगली उठाने का हक नहीं है. मीडिया, लेखन, लेखक को जिंदा तभी रखा जा सकता है जब लोग उस के लिए जेब ढीली करें. मुफ्त में लंगर का बदस्वाद खाना ही मिलेगा जिस के ऊपर भगवा रंग छिटका होगा.
कोई लेखक विश्वप्रसिद्ध धरनों पर शृंखलाबद्ध किताब लिखना चाहे तो उस की दौड़ दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से शुरू हो कर उन्हीं पर खत्म हो जानी तय है. पूर्व धरनों की तरह उन का दिल्ली के एलजी के खिलाफ दिया गया ताजा धरना भी सुपरडुपर हिट रहा. धरने कब, क्यों, कहां और कैसे दिए जाने चाहिए, यह नवोदित नेता अरविंद केजरीवाल से सीख सकते हैं. भाजपा के प्रतिक्रियात्मक धरनों ने तो केजरीवाल के इस धरने में चारचांद ही लगाए.
जो बात कई दिनों से बयानों और भाषणों के जरिए दिल्ली की जनता को समझाने की कोशिश अरविंद केजरीवाल कर रहे थे वह धरने के बाद साबित हुई कि जनता के असली दुश्मन नौकरशाह और भाजपा के इशारों पर नाचने वाले एलजी हैं.
आसाराम व रामरहीम के बाद वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का हिंदुत्व का नया वाहक पिछले दिनों प्रकट हुआ है. धर्म की नफरतों की दीवारों पर रंगाईपुताई करता अध्यात्म का यह नया देवता अवतारी बन कर उभरा तो देशभर में चर्चा का विषय बन गया. बने भी क्यों नहीं, क्योंकि अब तक जितने भी बाबा के नाम मीडिया ने उछाले हैं, वे ज्यादातर गैरब्राह्मण थे और यह ब्राह्मण है.
ब्राह्मण बाबा मीडिया व ब्राह्मणवादी उद्योगपतियों की मदद से बचते रहे हैं, लेकिन यह मामला कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया. इसलिए जनता की आंखों में धूल झोंकने के लिए कानून के लूपहोल में खेल रहे हैं.
अब तक तकरीबन 500 लड़कियां इस हैवान के चंगुल से छुड़ाई जा चुकी हैं. वीरेंद्र देव दीक्षित नाम का यह तथाकथित नया अवतारी अपनेआप को कृष्ण अवतार बता रहा है. वह 5 हजार से अधिक लड़कियों से बलात्कार का टारगेट पूरा कर चुका है और उस का असली टारगेट, 16,000 लड़कियों का बलात्कार कर हासिल करना था, लेकिन इस बीच उस की करतूत का परदाफाश हो गया. देश की पुलिस व कानूनी एजेंसियां बाबा को खोजने में अभी तक नाकाम रही हैं.
वैसे, हिंदू धर्म में बलात्कार को अनैतिक नहीं बताया गया है. पुराण भरे पड़े हैं श्रापों व देवदासियों के बहाने महिलाओं के शोषण के किस्सों से. मत्स्यगंधा जैसी मैलीकुचैली महिलाओं को भी ऋषि पाराशर जैसे लोगों ने नहीं छोड़ा. ऐसे में आप सोच सकते हैं कि थोड़ा सा भी खुलापन ले कर शृंगार करने वाली महिलाओं की उस दौर में क्या हालत होती रही होगी.
हवस के तो ये इतने भूखे थे कि गौतम को बेवकूफ बना कर नहाने भेज दिया और पीछे अहल्या के साथ बलात्कार कर डाला. क्या तभी इन लोगों ने नारा चलाया कि ब्रह्ममुहूर्त में नहाना शुभ रहता है, क्योंकि पति अंधेरे में नदीतालाब में नहाने चला जाए और इन को पीछे मौका मिल जाए.
शंकर तपस्या में थे और पीछे, पार्वती के गणेश पैदा हो गए. तर्क तो देखो इन के कि मैल से पैदा हो गए. जैसे पार्वती सदियों से नहीं नहाई हों और मैल को उतार कर पुतला बना लिया हो. कुंती व माद्री के जो 6 लड़के हुए उन में भी पांडु की कोई भूमिका नहीं थी. एक तो शादी से पहले ही पैदा हो गया. बता दिया गया कि महर्षि दुर्वासा ने कुंती को वरदान दे रखा था कि वह जब चाहे जिस देवता को बुला कर बच्चा पैदा कर सकती थी.
धर्म को बुला कर युधिष्ठिर पैदा कर लिया, वायुदेव से भीम पैदा करवा लिया व इंद्र को बुला कर अर्जुन पैदा करवा लिया. फिर यह वरदान माद्री को ट्रांसफर कर दिया, जिस के बूते माद्री ने अश्विनी को बुला कर नकुल व सहदेव पैदा करवा लिए.
ऋषि दुर्वासा तो तीनों युगों में पाए जाते हैं. आदमी थे या कुछ और? हर कालखंड में ऐसे मामलों के इर्दगिर्द ही नजर आता था. कहीं यह वीरेंद्र देव दीक्षित महर्षि दुर्वासा का कलियुगी रूप तो नहीं है. जब इन तथाकथित देवताओं, ऋषिमुनियों की मौज कम होने लगी तो इन लोगों ने वर्तमान को कलियुग कहना शुरू कर दिया. इन को तो वह वाला सतयुग चाहिए जहां ये कभी भी किसी भी महिला को पकड़ कर आनंद की अनुभूति ले सकें और किसी भी प्रकार की रोकटोक न हो.
वीरेंद्र देव दीक्षित ने क्या गुनाह किया है. अपने पूर्वजों की तरह जीवन जीने की कोशिश की थी. अब असली शिलाजीत मिली नहीं, तो कुछ नकली दवाइयां खा ली थीं, इसलिए टारगेट थोड़ा हाई रख लिया था.
इस में इस की गलती थोड़े ही है. यह तो कलियुगी दवाइयां ही खराब निकली हैं. सत्यवती, वाचा, अंबिका, अंबालिका, अहल्या, कुंती, माद्री आदि को एक जगह एकत्रित कर रहा था बेचारा. जब इस के पास आतीं तो उम्र 16 से 19 साल तय थी, लेकिन जब उम्रसीमा क्रौस हो जाती तो वह दूसरों के इस्तेमाल के लिए भी तो व्यवस्था करता था. देवदासियों की तरह खानेपीने का इंतजाम कर के वह अपने शिष्यों व अन्य संगी देवताओं के लिए भी तो माकूल बंदोबस्त किया था.
आप लोग कितने ही नाटक कर लो, लेकिन धर्म में इस तरह के कारनामे हर ग्रंथ में बोलते हैं. मध्ययुग में राम महिमा गातेगाते तुलसीदास को औरत ने मना कर दिया तो दुनिया की सारी महिलाओं को ताड़न की वस्तु बता दिया और ये लोग गोस्वामी तुलसीदासजी की चौपाइयां हर गलीमहल्ले में ले कर घूम रहे हैं. ये गागा कर बता रहे हैं कि महिलाएं सिर्फ उपभोग के लिए हैं, उपयोग में लें और लताड़ लगाएं.
अब वीरेंद्र देव दीक्षित उस स्वर्णकाल के हिसाब से, अपने ग्रंथों के हिसाब से लड़कियों को उपयोग में ही तो ले रहा था. अब बालिगनाबालिग की सीमा तो इन्होंने तय की नहीं थी न. ये तो कलियुगी चोंचले हैं. क्या औरतों के बिकने की मंडियां लगने वाला रामराज्य चाहिए, देवदासियों के रूप में मंदिरों को नईनई लड़कियों का इंतजाम वाला स्वर्णयुग चाहिए?
स्वर्णकाल का भोग
यह ब्राह्मण देवता यानी वीरेंद्र देव दीक्षित गिरफ्त में इतनी आसानी से नहीं आएगा क्योंकि इस ने बहुत सारे देवताओं के लिए इंतजाम किए होंगे. इस का टारगेट तो 16,000 महिलाओं से बलात्कार करने का था, इसलिए एक बार श्राप दिया और आगे बढ़ गया होगा. फिर तो शिष्यों के लिए यही वरदान बन जाता होगा. आध्यात्मिक विश्वविद्यालय बनाया है व जगहजगह उस की शाखाएं खोली गई थीं तो यह काम अकेला ब्राह्मण देवता तो कर नहीं सकता.
कलियुग गुप्तकाल के बाद ही तो आया है. 1200-1300 साल तो छद्म कलियुग के थे, असली कलियुग तो आजादी के बाद ही आया है. अब देखो, बेचारा छिप कर स्वर्णकाल का भोग कर रहा था और हम लोगों ने हंगामा कर दिया. जिस तरह के छापे, जांच व मीडिया कवरेज हो रही है, उस के हिसाब से वीरेंद्र देव दीक्षित नामक ब्राह्मण देवता सोने की तरह तप कर, बेदाग हो कर निकलेगा.
दिल्ली से बैंगलुरु का सफर लंबा तो था ही, लेकिन जयंत की बेसब्री भी हद पार कर रही थी. 3 साल बाद खुशबू से मिलने का वक्त जो नजदीक आ रहा था. मुहब्बत में अगर कामयाबी मिल जाए तो इनसान को दुनिया जीत लेने का अहसास होने लगता है.
ट्रेन सरपट भाग रही थी लेकिन जयंत को उस की रफ्तार बैलगाड़ी सी धीमी लग रही थी. रात के 9 बज रहे थे. उस ने एक पत्रिका निकाल कर अपना ध्यान उस में बांटना चाहा लेकिन बेजान काले हर्फ और कागज खुशबू की कल्पना की क्या बराबरी करते?
खुशबू तो ऐसा ख्वाब थी, जिसे पूरा करने में जयंत ने खुद को झोंक दिया था. उस की हर शर्त, हर हिदायत को आज उस ने पूरा कर दिया था. अब फैसला खुशबू का था.
जयंत ने मोबाइल फोन निकाला. खुशबू का नंबर डायल किया लेकिन फिर अचानक फोन काट दिया. उसे याद आया कि खुशबू ने यही तो कहा था, ‘जब सच में कुछ बन जाओ तब मुहब्बत को पाने की बात करना. उस से पहले नहीं. मैं तब तक तुम्हारा इंतजार करूंगी.’
मोबाइल फोन वापस जेब के हवाले कर जयंत अपनी बर्थ पर लेट गया. सुख के इन लमहों को वह खुशबू की यादों में जीना चाहता था.
5 साल पहले जब जयंत दिल्ली आया था तो वह कुछ बनने के सपने साथ लाया था लेकिन दिल्ली की फिजाओं में उसे खुशबू क्या मिली, जिंदगी की दशा और दिशा ही बदल गई.
जयंत ने मुखर्जी नगर, दिल्ली के एक नामी इंस्टीट्यूट में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए दाखिला लिया तो वहां पढ़ाने वाली मैडम खुशबू का जादू पहली नजर में ही प्यार में बदल गया.
भरापूरा बदन और बेहद खूबसूरत. झील सी आंखें. घुंघराले लंबे बाल. बदन का हर अंग ऐसा कि सामने वाला देखता ही रह जाए.
जयंत ने खुशबू से बातचीत शुरू करने की कोशिश की. क्लास में वह अकसर मुश्किल सवाल रखता पर खुशबू की सब्जैक्ट पर गजब की पकड़ थी. जयंत उसे कभी अटका नहीं पाया. लेकिन उस में भी बहुत खूबियां थीं इसलिए खुशबू उसे स्पैशल समझने लगी.
उस दिन क्लास जल्दी खत्म हो गई. खुशबू ने जयंत को रुकने का इशारा किया. थोड़ी देर बाद वे दोनों एक कौफी हाउस में थे और वहां कहीअनकही बहुत सी बातें हो गईं. नजदीकियां बढ़ने लगीं तो समय पंख लगा कर उड़ने लगा.
एक दिन मौका देख कर जयंत ने खुशबू को प्रपोज भी कर दिया, लेकिन खुशबू ने वैसा जवाब नहीं दिया जैसी जयंत को उम्मीद थी.
खुशबू की बहन की शादी थी. उस ने जयंत को न्योता दिया तो जयंत भला ऐसा मौका क्यों छोड़ता? काफी अच्छा आयोजन था लेकिन जयंत को इस सब में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी.
दकियानूसी रस्में रातभर चलने वाली थीं, इसलिए जयंत मेहमानों के रुकने वाले हाल में जा कर सो गया. लोगों की आवाजें वहां भी आ रही थीं. सब बाहर मंडप में थे.
रात में अचानक किसी की छुअन की गरमाहट से जयंत की नींद खुली. हाल की लाइट बंद थी, लेकिन अपनी चादर में लड़की की छुअन वह अंधेरे में भी पहचान गया था.
खुशबू इस तरह उस के साथ… ऐसा सोचना भी मुश्किल था. लेकिन अपने प्यार को इतना करीब पा कर कौन मर्द अपनेआप पर कंट्रोल रख सकता है?
चंद लमहों में वे दोनों एकदूसरे में समा जाने को बेताब होने लगे. खुशबू के चुंबनों ने जयंत को मदहोश कर दिया. अपने करीब खुशबू को पा कर उसे जैसे जन्नत मिल गई.
तूफान थमा तो खुशबू वापस शादी की रस्मों में शामिल हो गई और जयंत उस की खुशबू में डूबा रहा.
कुछ दिन बाद ऐसा ही एक और वाकिआ हुआ. तेज बारिश थी. मंडी हाउस से गुजरते समय जयंत ने खुशबू को रोड पर खड़ा पाया.
जयंत ने फौरन उस के नजदीक पहुंच कर अपनी मोटरसाइकिल रोकी. दोनों उस पर सवार हो इंडिया गेट की ओर निकल गए.
खुशबू को रोमांचक जिंदगी पसंद थी इसलिए वह इस मौके का लुत्फ उठाना चाहती थी. बारिश का मजा रोमांच में बदल रहा था. प्यार में सराबोर वे घंटों सड़कों पर घूमते रहे.
जयंत और खुशबू की कहानी ऐसे ही आगे बढ़ती रही कि तभी अचानक इस कहानी में एक मोड़ आया. खुशबू ने जयंत को ग्रैंड होटल में बुलाया. डिनर की यह पार्टी अब तक की सब पार्टियों से अलग थी. खुशबू की खूबसूरती आज जानलेवा महसूस हो रही थी.
‘आज तुम्हारे लिए स्पैशल ट्रीट जयंत,’ मुसकरा कर खुशबू ने कहा.
‘किस खुशी में?’ जयंत ने पूछा.
‘मुझे नई नौकरी मिल गई… बैंगलुरु में असिस्टैंट प्रोफैसर की.’
जयंत का दिल टूट गया था. खुशबू को सरकारी नौकरी मिल गई थी, इस का मतलब उस की जुदाई भी था.
जयंत ने दुखी लहजे में खुशबू को उस की जुदाई का दर्द कह सुनाया.
खुशबू ने मुसकराते हुए कहा, ‘वादा करो तुम पहले कंपीटिशन पास करोगे, नौकरी मिलने के बाद ही मुझ से मिलने आओगे… उस से पहले नहीं… न मुझे फोन करोगे और न ही चैट…
‘मैं तुम्हारी टीचर रही हूं इसलिए मुझे यह गिफ्ट दोगे. फिर हम शादी करेंगे… एक नई जिंदगी… एक नई प्रेम कहानी… मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.
‘3 साल का समय… बस, तुम्हारी यादों के सहारे निकालूंगी.’
अचानक से सबकुछ खत्म हो गया. धीरेधीरे समय बीतने लगा. जयंत ने अपना वादा तोड़ खुशबू को फोन भी किए लेकिन उस ने मीठी झिड़की से उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा.
जयंत को भी यह बात चुभ गई. अब पूरा समय वह अपनी पढ़ाई पर देने लगा. प्यार में बड़ी ताकत होती है इसलिए मुहब्बत की कशिश इनसान से कोई भी काम करा लेती है.
जयंत को भारतीय सर्वेक्षण विभाग में अच्छी नौकरी मिल गई. अब खुशबू को पाने में कोई रुकावट नहीं बची थी. जयंत ने अपना वादा पूरा कर लिया था.
अचानक ट्रेन रुकी तो जयंत की नींद खुली. सुबह होने को थी. बैंगलुरु अभी दूर था. जयंत दोबारा आंखें मूंदे हसीन सपनों में खो गया.
टे्रन जब बैंगलुरु पहुंची, तब तक शाम हो चुकी थी. जयंत ने खुशबू को फोन मिलाया लेकिन फोन किसी अनजान ने उठाया. वह नंबर खुशबू का नहीं था. उस का नंबर अब बदल चुका था. दूसरे दिन वह मालूम करता हुआ खुशबू के कालेज पहुंचा.
लाल गुलाब और खुशबू के लिए गिफ्ट से भरे बैग जयंत के हाथों में लदे थे. वैसे भी जयंत को खुशबू को उपहार देने में बड़ा सुकून मिलता था. अपनी पौकेटमनी बचाबचा कर वह उस के लिए छोटेछोटे गिफ्ट लाता था जिन्हें पा कर खुशबू बहुत खुश होती थी.
खुशी से लबरेज जयंत कालेज गया. खुशबू के रूम में पहुंचा तो जयंत को देख वह उछल पड़ी. मिठाई का डब्बा आगे कर जयंत ने उसे खुशखबरी सुनाई.
खुशबू ने एक टुकड़ा मुंह में रखा और जयंत को शुभकामनाएं दीं.
जयंत में सब्र कहां था. उस ने आगे बढ़ उस का हाथ थामा और चुंबन रसीद कर दिया.
‘‘प्लीज जयंत… यह सब नहीं… प्लीज रुक जाओ,’’ अचानक खुशबू ने सख्त लहजे में जयंत को टोकते हुए रोका.
‘‘लेकिन यार, अब तो मैं ने अपना वादा पूरा कर दिया… तुम से मेरी शादी…’’ निराश जयंत ने पूछा.
‘‘सौरी जयंत… प्लीज… मैं ने शादी कर ली है. अब वे सब बातें तुम भूल जाओ..’’
‘‘क्या? भूल जाऊं… मतलब?’’ जयंत उसे घूरते हुए बोला.
‘‘हां, मुझे भूलना होगा,’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली, ‘‘वे सब मजाक की बातें थीं… 3 साल पहले कही गई
बातें… क्या अब इतने दिन बाद… तुम्हें तो मुझ से भी अच्छी लड़कियां मिलेंगी…’’ मुसकराते हुए खुशबू बोली.
जयंत उलटे पैर लौट पड़ा. लाल गुलाब उस के भारी कदमों के नीचे कुचल रहे थे. मजाक की बातें शायद
3 साल में खत्म हो जाती हैं… माने खो देती हैं… जयंत समझने की नाकाम कोशिश करने लगा.
पारिवारिक जिम्मेदारी संभालने के लिए यहां कोई होना चाहिए, मैं बहुत तनाव में हूं. थक चुका हूं, इसलिए जा रहा हूं.’
‘विनायक मेरे विश्वासपात्र हैं, सब प्रौपर्टी इन्वेस्टमेंट वही संभाले. किसी को तो परिवार की ड्यूटी करनी है तो वही करेगा. मुझे उस पर विश्वास है. मैं कमरे में अकेला हूं और सुसाइड नोट लिख रहा हूं. किसी के दबाव में आ कर नहीं लिख रहा हूं, कोई इस के लिए जिम्मेदार नहीं है.’
बीती 12 जून की दोपहर इंदौर के पौश रिहायशी इलाके सिलवर स्प्रिंग स्थित अपने घर में आत्महत्या करने वाले मशहूर संत भय्यूजी महाराज के 2 सुसाइड नोट मिले थे. दोनों में कोई खास फर्क नहीं है. सिवाए इस के कि दूसरे को एक कुशल संपादक की तरह संपादित कर छोटा कर दिया है और भाव बिलकुल नहीं बदले हैं. डायरी के पन्नों पर लिखे ये सुसाइड नोट बयां करते हैं कि भय्यूजी महाराज किस भीषण तनाव और द्वंद्व से गुजर रहे होंगे. अंतिम समय में उन्हें सिर्फ 2 चीजों परिवार और प्रौपर्टी की चिंता थी. उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा भक्तों और बाद के परिणामों पर अगर सोचा होगा तो तय है कि उन्हें अपनी समस्या का कोई हल नहीं सूझ रहा होगा. 12 जून की दोपहर जैसे ही 50 वर्षीय भय्यूजी महाराज की आत्महत्या की खबर आई तो लोग स्तब्ध रह गए. अपना जीवन फिल्मी स्टाइल में गुजार चुके इस संत ने आत्महत्या भी फिल्मी स्टाइल में की. फोरैंसिक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने गोली अपनी दाईं कनपटी पर मारी थी लेकिन वह सिर के बीचोंबीच लगी और आरपार हो गई थी.
उस वक्त उन के आलीशान घर में बुजुर्ग मां के अलावा कुछ वफादार सेवादार ही थे जिनमें से एक का जिक्र उन्होंने अपने सुसाइड नोट में किया है. धमाके की हल्की सी आवाज आई, लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह हल्का सा धमाका किस चीज का है. कुछ देर बाद उधर भय्यूजी महाराज की पत्नी डा. आयुषि आईं और भय्यूजी महाराज को ढूंढने लगीं.
आमतौर पर अपने कमरे में रहने वाले भय्यूजी महाराज वहां नहीं दिखे तो आयुषी ने एक एक कर सारे कमरे और टौयलेट बाथरूम तक में उन्हें देखा. बेटी कुहू का कमरा अंदर से बंद था जो खटखटाने पर नहीं खुला तो आयुषि ने सेवादारों को आवाज लगाई. विनायक और दूसरा वफादार सेवादार योगेश भागेभागे आए और दरवाजा तोड़ डाला. अंदर का दृश्य देख कर तीनों हतप्रभ रह गए, पलंग पर भय्यूजी महाराज की लाश पड़ी थी. सिर से रिसा खून चेहरे और बिस्तर पर बह रहा था.
वक्त सवालजवाब या सोचविचारी का नहीं था, इसलिए तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई और भय्यूजी महाराज को इंदौर के नामी बौंबे हौस्पिटल ले जाया गया. अस्पताल में डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया तो आयुषि दहाड़े मार कर रोतेरोते बेसुध हो गईं और दोनों सेवादार जड़ हो कर रह गए. अस्पताल से खबर मिलने पर पुलिस वहां आई और भय्यूजी महाराज की मौत की पुष्टि के बाद खबर आम हो गई. इस हाईप्रोफाइल संत की आत्महत्या से देश भर में सनाका खिंच गया.
सवालों के ढेर पर भय्यूजी महाराज की आत्महत्या
कौन थे भय्यूजी महाराज और कैसे देखते ही देखते करोड़ों भक्तों के आदर्श बन गए? और वह प्रौपर्टी कितनी थी, जिस की जिम्मेदारी वह विनायक को सौंपना चाहते थे, इन सवालों के जवाबों के अलावा उस तनाव और पारिवारिक कलह की वजहें जानना जरूरी है. इससे भी पहले यह जानना जरूरी है कि मौत के दिन क्याक्या हुआ था.
जो हुआ था उस से साफ लग रहा है कि भय्यूजी महाराज का खुदकुशी करने का फैसला और वजह तात्कालिक नहीं थे. वे वाकई लंबे समय से भीषण तनाव में थे. 12 जून को तो उन्होंने इस तनाव से मुक्ति पाने का आखिरी फैसला लिया था.
दोपहर कोई सवा 12 बजे भय्यूजी महाराज अपने कमरे से निकले और सीधे बेटी कुहू के कमरे में चले गए थे. इस के पहले उन्होंने अपने कमरे से 3 ट्वीट किए थे. कुहू इसी दिन पुणे से इंदौर आने वाली थी जिसे ले कर भय्यूजी महाराज कुदरती तौर पर खुश थे क्योंकि उन की लाडली करीब 3 महीने बाद घर आ रही थी.
कुहू के कमरे को अस्तव्यस्त देख उन्हें गुस्सा आया तो उन्होंने नौकरों को फटकार लगाई कि आज कुहू आने वाली है और अभी तक उस के कमरे की साफ सफाई नहीं हुई है. गुस्सा उतारने के बाद उन्होंने शेखर को बुला कर अब तक आई फोन काल की डिटेल्स लीं.
उन्होंने उस से कहा कि सभी को कह दो कि कुछ देर बाद बात करूंगा. तब तक उन्हें डिस्टर्ब न किया जाए. गौरतलब है कि अपने लिए आई फोन काल्स खुद भय्यूजी महाराज रिसीव नहीं करते थे. यह जिम्मेदारी बीते कई सालों से शेखर उठा रहा था.
डीआईजी हरिनारायणचारी मिश्रा और आईजी (इंटेलीजेंस) मकरंद देउस्कर इस खुदकुशी की जांच में जुट गए, जिन के पास बताने को कुछ नहीं था और जो था वह पुलिस जांच के पहले ही आम हो गया था. हादसे के बाद घर में मौजूद लोगों के बयान लेने के बाद पुलिस इन बातों की पुष्टि भर कर पाई कि हां, भय्यूजी महाराज पारिवारिक कलह की वजह से तनाव में थे और इसी के चलते उन्होंने खुदकुशी की.
भय्यूजी महाराज का वास्तविक नाम उदय सिंह देशमुख था. उदय सिंह मालवांचल के पुराने शहर शुजालपुर में एक जमींदार घराने में 1968 में पैदा हुए थे. उदय सिंह न केवल खूबसूरत थे बल्कि बेइंतहा प्रतिभाशाली और महत्त्वाकांक्षी भी थे. किशोरावस्था तक तो उन्होंने खेती किसानी में दिलचस्पी ली लेकिन फिर पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई चले गए और वहां एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर नौकरी कर ली.
मुंबई वाकई मुंबई है जो एक बार जिसे अपने मायाजाल में फंसा लेती है उसे आसानी से नहीं छोड़ती. छोटे से पिछड़े कस्बे से आए उदय सिंह को मुंबई की रंगीनियां भा गईं. अपने खूबसूरत चेहरेमोहरे के दम पर उन्होंने मौडलिंग की दुनिया में भी किस्मत आजमाई. सियाराम जैसी नामी सूटिंग कंपनी ने उन्हें मौका दिया लेकिन उदय सिंह प्रोफेशनल मौडल नहीं बन पाए.
कामयाबी फिल्मी सी
मुंबई में नौकरी करते उदय सिंह को लगा था कि दौलत और शोहरत ही सब कुछ है. बाकी सब मिथ्या है. बस इतना सोचना भर था कि उन्होंने संन्यास लेने का फैसला ले लिया. हैरत की बात यह है कि उन का कोई धार्मिक या आध्यात्मिक गुरु नहीं था अलबत्ता वे दत्तात्रेय को अपना आदर्श मानते थे.
दत्तात्रेय एक पौराणिक पात्र हैं जिन के बारे में कहा और माना जाता है कि वे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अवतार थे. दत्तात्रेय हर किसी से कुछ न कुछ सीखने के लिए उसे अपना गुरु मान लेते थे, जिन में पशुपक्षी तक शामिल होते थे. सूर्य की उपासना करने वाले भय्यूजी महाराज संत जीवन की शुरुआत में कभी जल समाधि लेने के लिए भी मशहूर थे.
हिंदी के अलावा धाराप्रवाह अंग्रेजी, मराठी, मालवी और निमाड़ी भाषा बोलने वाले उदय सिंह के प्रवचनों को लेक्चर कहा जाता था. उन का आध्यात्मिक सफर छोटे से स्तर से शुरू हो कर बड़े मुकाम तक जा पहुंचा. जिस के चलते वह इतने कम वक्त में अपार दौलत और शोहरत के मालिक बन गए थे. इस सब की कल्पना खुद उदय सिंह ने भी नहीं की थी जो भय्यूजी महाराज के नाम से विख्यात हो गए थे.
नाम के लिहाज से देखें तो भय्यूजी महाराज के भक्तों और अनुयायियों की संख्या करोड़ों में जा पहुंची थी. और दाम के लिहाज से आंकें तो मौत के दिन तक उन के पास एक हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा की संपत्ति थी. मालवांचल और महाराष्ट्र के सभी प्रमुख शहरों में उन के आश्रम खुल चुके थे.
मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इंदौर को अपना ठिकाना भय्यूजी महाराज ने बनाया था तो इस की एक बड़ी वजह उन की महाराष्ट्र से जुड़े रहने की इच्छा थी. क्योंकि उन के भक्तों में खासी संख्या महाराष्ट्रियनों की है.
मौडर्न संत थे भय्यूजी महाराज
भय्यूजी महाराज के शौक शाही भी थे और कलात्मक भी. घुड़सवारी और तीरंदाजी के शौकीन भय्यूजी महाराज भजन अच्छा गाते थे और लिखते भी सरल भाषा में थे. सुसाइड नोट को संपादित उन्होंने शायद इसी वजह के चलते किया था कि बात अनावश्यक रूप से बड़ी न लगे.
भय्यूजी महाराज के लेक्चर दरअसल ब्रह्म या ईश्वर आधारित न हो कर मनोवैज्ञानिक ज्यादा होते थे. वे भक्तों को उत्साहित करते, उन में जोश भर देते थे. जब वे बोलते थे यानी लेक्चर देते थे तो ऐसा लगता था मानो साक्षात डेल कार्नेगी या स्वेट मार्टन की आत्मा उन में आ गई है.
उन्हें बस करना इतना होता था कि इन दो अहम दार्शनिकों के विचारों को हिंदू धर्म और संस्कृति से जोड़ना और उन्हें उस क्षेत्रीय भाषा में प्रस्तुत करना होता था, जहां वे लेक्चर दे रहे होते थे.
सीधेसीधे कहा जाए तो भय्यूजी महाराज एक तरह से मेंटर थे, जो आमआदमी की नब्ज पकड़ कर बात करते थे. आप परेशान क्यों हैं, यह बात अगर कोई धर्मगुरु मंच से बता दे और समस्याओं का गैरईश्वरीय हल भी सुझाए तो लोगों का नैराश्य भाव स्वाभाविक रूप से दूर हो जाएगा. यही भय्यूजी महाराज करते थे. सनातन धर्म और धार्मिक कर्मकांडों पर उन का ज्यादा जोर कभी नहीं रहा. अलबत्ता बातबात में वे दत्तात्रेय को जरूर घसीट लाते थे.
जादूटोना, तंत्रमंत्र और ज्योतिष से परे भी समस्याओं का कोई हल होता है, यह बात हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है. लोगों की इसी कमजोरी को भय्यूजी महाराज ने खूब भुनाया और देखते ही देखते छा गए. जहां से वे गुजरते थे वहां उन के पैर छूने वालों की लाइन लग जाती थी. लोगों की तकलीफें दूर करने वे शहरशहर प्रवचन शिविर लगाने लगे थे.
इंदौर के बापट चौराहे पर उन्होंने सद्गुरु दत्त परमार्थिक ट्रस्ट बनवाया था. आश्रम चौबीसों घंटे खुला रहता था. इंदौर आने वाली हर बस या ट्रेन से उन का कोई न कोई भक्त उतरता था. उसे देख आटोरिक्शा वाले तुरंत ताड़ लेते थे कि यह भय्यूजी महाराज का भक्त है.
भय्यूजी महाराज का नाम लोग इज्जत से लेते थे तो इस की वजह सिर्फ इतनी नहीं थी कि उन्होंने अकूत दौलत कमा ली थी बल्कि यह भी थी कि कमाए गए पैसे का बड़ा हिस्सा वे गरीबों और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे. इस से हालांकि उन का कारोबार और बढ़ता था, लेकिन उन के जज्बे को इस से नहीं तौला जा सकता.
कुछ हट कर काम किए भय्यूजी ने
इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंढरपुर इलाके की वेश्याओं के 51 बच्चों को बतौर पिता अपना नाम दिया था. आमतौर पर संत और धर्मगुरु वेश्याओं से परहेज ही करते हैं, लेकिन समाज के इस जरूरी तबके की अनिवार्यता की अहमियत समझते हुए उन्होंने यह अनूठी पहल कर एक तरह से जोखिम ही उठाया था.
महाराष्ट्र के ही बुलढाना जिले के खामगांव में उन्होंने एक आवासीय स्कूल भी बनवाया था, जिस में करीब 700 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं. मुमकिन है इस के पीछे उन की एक मंशा ग्राहकों की भीड़ बढ़ाना भी रही हो लेकिन इस से कुछ गरीब आदिवासी बच्चों की जिंदगी तो संवरी और संभली, इस में कोई शक नहीं.
बुलढाना में पारधी जाति के आदिवासी रहते हैं जो चोरी और अपराधी प्रवृत्ति के लिए कुख्यात हैं. ये लोग न तो कभी मुख्यधारा से जुड़े और न ही मुख्यधारा हांकने वालों ने चाहा कि यह तिरस्कृत जाति उन से जुड़े.
पारधी सहसा ही किसी बाहरी आदमी पर विश्वास नहीं करते, यही भय्यूजी महाराज के साथ भी हुआ. जब उन्होंने स्कूल खोलने की घोषणा की और निर्माण कार्य भी शुरू हो गया तो उन्हें पारधियों का विरोध भी झेलना पड़ा. लेकिन भय्यूजी महाराज घबराए नहीं. एक बार तो पारधियों ने पथराव कर उन्हें भगा दिया था लेकिन वे अपनी जिद पर अड़े रहे और इस में उन्हें कामयाबी भी मिली.
कृषक परिवार से ताल्लुक रखने के कारण वह किसानों की परेशानियां अच्छी तरह समझते थे लिहाजा उन्होंने मध्यप्रदेश के धार और देवास जिलों में लगभग एक हजार तालाब खुदवाए और हर जगह गरीब किसानों को खादबीज वगैरह भी बंटवाए थे. पूजने के लिए इतने काम काफी थे, लेकिन भय्यूजी महाराज का एक अलग चेहरा उस वक्त सामने आया, जब उन्होंने इंदौर में आयोजित हुई धर्मसंसद की आलोचना की थी.
मठों और व्यक्ति पूजा के आलोचक भय्यूजी महाराज का दूसरा चेहरा और दोहरा व्यक्तित्व उस वक्त भी सामने आया था, जब उन्हें उज्जैन में आयोजित सिंहस्थ मेले में आमंत्रित नहीं किया गया था. इस से वह दुखी थे. जाहिर है लीक से हट कर वे इसलिए चल रहे थे कि नाम मिले और उन की चरचा हो और ऐसा हुआ भी. व्यक्ति पूजा को अपराध मानने वाले भय्यूजी महाराज हर गुरु पूर्णिमा पर अपनी पूजा धूमधड़ाके से करवाते थे.
जिंदगी शानोशौकत की
इस खूबसूरत और हैंडसम युवा संत की व्यक्तिगत जिंदगी शानोशौकत और शौकों से भरी रही. भय्यू जी महाराज नएनए मौडल की कारों और महंगी स्विस घडि़यों के शौकीन थे. मर्सिडीज और औडी जैसी कारों में चलने वाले इस संत के हाथ में हमेशा रोलेक्स घड़ी जरूर होती थी.
भक्तों और अनुयायियों के लिए वे इसी लिहाज से अजूबे थे कि जब वह उन के बीच होते थे तो खालिस संत होते थे, लेकिन लग्जरी लाइफ जीते थे. परंपरागत संतों की छवि तोड़ने वाले भय्यूजी महाराज कभी कभी ट्रैक सूट, पैंट शर्ट में भी नजर आते थे. अच्छे और महंगे कपड़ों का शौक भी उन्हें था.
उन के घर और आश्रम में भी आधुनिक सुखसुविधाओं के तमाम गैजेट्स मौजूद थे. भक्तों की सहूलियत का वे उसी तरह ध्यान रखते थे जैसे दुकानदार ग्राहकों का रखता है यानी वे ग्राहक ही भगवान हैं, के सिद्धांत पर चलते थे.
करोड़ोंअरबों की आमदनी का हिसाब भय्यू जी महाराज को मुंह जुबानी याद रहता था और इस से ज्यादा उन्हें यह याद रहता था कि मीडिया को यह गिनाना कि वे संत के रूप में समाजसेवी और पर्यावरणविद हैं जो भक्त से गुरु दक्षिणा में एक पेड़ लगाने को जरूर कहता है.
ब्रांडिंग के इन अनूठे तरीकों ने भय्यूजी महाराज को कामयाबी के आसमान तक पहुंचा दिया, जहां उस के पास वह सब कुछ होता है जिस की ख्वाहिश हर कोई करता है.
महत्त्वाकांक्षी भय्यूजी महाराज को संन्यास लेते ही ज्ञान की एक बात जरूर समझ आ गई थी कि अगर ब्रांडेड बाबा बनना है तो राजनेताओं और फिल्मी हस्तियों से जरूर संपर्क बढ़ाओ, नहीं तो जिंदगी भर पंडाल लगा कर उपदेश देते रहने से खास कुछ हासिल नहीं होने वाला.
संतों और नेताओं का समीकरण बेहद संतुलित है कि जिस संत के पीछे जितनी ज्यादा भीड़ नजर आती है, उसे भुनाने के लिए नेता भी उस के आगेपीछे दौड़ने लगते हैं. जब संन्यास के 3-4 सालों में ही भय्यूजी महाराज ने अपने दम पर अनुयायियों की खासी भीड़ जुटा ली तो साल 2000 के आसपास महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की नजर उन पर पड़ी.
दोनों की नजरें मिलीं और विलासराव उन पर मेहरबान हो गए. फलस्वरूप सियासी गलियारों में भय्यूजी महाराज का नाम और इज्जत से लिया जाने लगा. उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने राज्य अतिथि का दरजा दे दिया. फिर देखते ही देखते उन के पीछे महाराष्ट्र कांग्रेस के तमाम छोटेबड़े नेता नजर आने लगे, जिन में पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, केंद्रीय मंत्री शरद पवार और पृथ्वीराज चह्वाण जैसे बड़े नाम शामिल थे.
लेकिन भय्यूजी महाराज को अहसास था कि अगर उन पर एक बार कांग्रेसी संत होने का ठप्पा लग गया तो दुकान चलाना मुश्किल हो जाएगा, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस से इतर और पींगें बढ़ानी शुरू कीं. अपने घर और आश्रम के दरवाजे उन्होंने भाजपा और शिवसेना के अलावा अछूतों की पार्टी मानी जाने वाली आरपीआई के लिए भी खोल दिए.
महाराष्ट्र के शेर कहे जाने वाले शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के अंतिम संस्कार में भय्यूजी महाराज परिवार सहित सक्रिय दिखे थे, तब यह स्पष्ट हुआ था कि वे सभी राजनैतिक दलों के हैं. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे से उन की नजदीकियां कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रहीं.
मिला राज्यमंत्री का दरजा
इस का यह मतलब नहीं था कि भय्यूजी महाराज कांगे्रस, भाजपा या शिवसेना की विचारधारा से सहमत हो गए थे, बल्कि इस का मतलब यह था कि उन के भक्तों को वोटों की शक्ल में बदलते हुए हर कोई देखना चाहता था.
जल्द ही भाजपाई नेता भी उन से जुड़ने लगे. इन में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, स्मृति ईरानी, पंकजा मुंडे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नाम प्रमुख हैं. अपनी अलग पार्टी एनसीपी बना लेने के बाद भी शरद पवार भय्यूजी महाराज के दरबार में हाजिरी लगाते रहे. अलबत्ता रामदास अठावले इकलौती राजनैतिक हस्ती थे, जो उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर पहुंचे थे.
फिल्मी हस्तियों में मशहूर गायिका लता मंगेशकर उन की मुरीद थीं तो अभिनेता मिलिंद गुणाजी और गायक बप्पी लहरी भी उन के अनुयाई हो गए थे.
राजनीतिक स्तर पर पहली दफा भय्यूजी महाराज उस वक्त सुर्खियों में आए थे, जब अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी उपवास तुड़वाने के लिए यूपीए सरकार ने उन्हें भी आमंत्रित किया था. तब मंच पर वे अलग ही चमक रहे थे. गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी का सद्भावना उपवास तोड़ने की भी जिम्मेदारी उन्हें ही सौंपी गई थी.
इसी साल अप्रैल में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जिन 5 बाबाओं को राज्यमंत्री का दरजा दिया था, उन में से एक भय्यूजी महाराज भी थे, लेकिन उन्होंने इस पेशकश को ठुकरा दिया था. उन की मौत के बाद कांग्रेसी यह कह कर हमलावर हुए थे कि भय्यूजी महाराज ने मध्य प्रदेश सरकार के दबाव में आ कर आत्महत्या की है. यह दांव ज्यादा चला नहीं, क्योंकि उन की खुदकुशी की वजह कुछ और ही थी.
दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ बुरा वक्त
कुल मिला कर भय्यूजी महाराज काफी कुछ हासिल कर चुके थे और आम भक्तों की परेशानियां सुलझाने का अपना काम बखूबी कर रहे थे. लेकिन उन के इर्द गिर्द रहने वाले चुनिंदा लोग ही जानते थे कि दुनियाभर की समस्याएं सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज से खुद अपने घर की कलह लाख कोशिशों के बाद भी नहीं सुलझ रही है.
अपनी कामयाबी के दिनों में भय्यूजी महाराज ने जो दौलत और शोहरत हासिल की, वह कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही. लेकिन उन का बुरा वक्त दूसरी शादी के बाद शुरू हुआ, जब उन्होंने अप्रैल 2017 में आयुषि शर्मा से शादी की थी. उन की पहली पत्नी माधवी निंबालकर का निधन पुणे में 22 जनवरी, 2015 को हुआ था, जिन से उन्हें एक बेटी हुई थी.
अपनी बेटी कल्याणी का घर का नाम उन्होंने प्यार से कुहू रखा था. एक साधारण पिता की तरह वे कुहू को बहुत चाहते थे और कुहू भी उन्हें इतना चाहती थी कि पिता की दूसरी शादी बरदाश्त नहीं कर पाई.
आयुषि शर्मा मूलत: शिवपुरी के धनियारवाना कस्बे की रहने वाली हैं और उन के पिता अतुल शर्मा कुंडोली नदनबारा मिडिल स्कूल में शिक्षक हैं. पढ़ाई पूरी करने के बाद आयुषि ने कुछ दिन बैंक में नौकरी की और फिर कैरियर संवारने की गरज से पीएच.डी. करने लगीं.
इसी शोध के सिलसिले में उन का भय्यूजी महाराज के घर और आश्रम में आनाजाना शुरू हुआ था. इंदौर में वह एक हौस्टल में रहती थीं और उन की दोस्ती कई लड़कों से भी थी, जिन की जन्मकुंडली पुलिस खंगाल रही है.
भय्यूजी महाराज व्यस्तता के चलते ऐसे शोधार्थियों को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे, लिहाजा आयुषि की मां और बहन के संपर्क में आई और घंटों उन से बतियाती रहती थीं. इसी दौरान वह भय्यूजी महाराज की बहनों रेणुका और अनुराधा के संपर्क में आईं.
इधर परिजन देख रहे थे कि माधवी की मौत के बाद भय्यूजी महाराज का दिल दुनियादारी से उचटने लगा है तो वे चिंतित हो उठे. भय्यूजी महाराज की एक बहन जिन्हें आयुषि अक्का कहती हैं, ने एक दिन आयुषि के सामने यह प्रस्ताव रख उसे चौंका दिया कि क्या वह उन के भाई से शादी करेंगी.
उम्र में भय्यूजी महाराज से आधी यानी 24 साल की आयुषि के लिए यह फैसला लेना कोई कठिन काम नहीं था. भय्यूजी महाराज का साम्राज्य और वैभव वह पहले ही देख चुकी थीं. प्रस्ताव कुछकुछ ऐसा ही था जैसे किसी झोपड़ी में रहने वाली गरीब कन्या को राजकुमार से शादी करने का मौका मिल रहा हो.
आयुषि तैयार हो गईं तो भय्यूजी महाराज भी उसे देख कर इनकार नहीं कर पाए. वह थी ही इतनी कमसिन और चंचल कि किसी भी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की क्षमता रखती थीं.
कुहू इस शादी के लिए जरा भी तैयार नहीं थी. यहां भय्यूजी महाराज ने जिंदगी में पहला गच्चा खाया, जो यह सोच रहे थे कि 15 साल की कुहू आज नहीं तो कल आयुषि को मां मान ही लेगी, पर हुआ उलटा. जब शादी के बाद पहली दफा आयुषि घर आई तो गुस्साई कुहू ने पूजा का सामान फेंक दिया.
इस के बाद तो इंदौर बाईपास स्थित सिलवर स्प्रिंग फेज स्थित बंगला नंबर एक किसी पारिवारिक टीवी धारावाहिक का स्टूडियो बन गया, जहां सौतेली मां और बेटी में जम कर कलह होती थी. दोनों एकदूसरे से शक्ल न देखने की हद तक नफरत करती थीं. इन 2 पाटों के बीच पिस रहा था, वह शख्स जिस के आगे करोड़ों लोग श्रद्धा से सिर झुकाते थे और मानते थे कि भय्यूजी महाराज के पास हर परेशानी के ताले की चाबी है.
निस्संदेह भय्यूजी महाराज आयुषि को चाहते थे, लेकिन कुहू पर तो वे जान छिड़कते थे. उन्होंने बहुत कोशिश की कि मांबेटी झगड़े नहीं करें. इस बाबत वे कुछ भी करने तैयार थे लेकिन ऐसा क्या करें जिससे बिल्लियों की तरह लड़ती मांबेटी मान जाएं यह बताने वाला कोई नहीं था.
पुणे में रह कर पढ़ाई कर रही कुहू का खून हर वक्त यह सोचतेसोचते जल रहा होता था कि बाबा आयुषि के साथ घूमफिर रहे होंगे, यह कर रहे होंगे, वह कर रहे होंगे. कोई दूसरी औरत आ कर उस की मां माधवी की जगह ले और रानियों सा हुक्म चलाए, यह उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था.
इस बाबत वह सेवादारों की सेवाएं लेती थी, यह बात पुलिस पूछताछ में उजागर हुई थी. लेकिन आयुषि भी कम नहीं थी, उस ने भी एक सेवादार को इस काम के लिए नियुक्त कर रखा था कि वह भय्यूजी महाराज और आयुषि की फोन पर हुई बातचीत का ब्यौरा उसे दे.
शुरूशुरू में तो आयुषि यह सोच कर अपमान के घूंट पीती रही कि बच्ची है, भड़ास निकल जाएगी तो ठीक हो जाएगी. इस बाबत भय्यूजी महाराज भी उसे समझाते रहते थे, जिन की एक बड़ी परेशानी यह थी कि उन की दूसरी शादी को भक्तों और परिवारजनों ने भी सहज नहीं स्वीकारा था. कई परिवारजन तो उन के इस फैसले से इतने नाराज थे कि उन्होंने भय्यूजी महाराज से कन्नी काटनी शुरू कर दी थी.
घरेलू कलह बढ़ी तो भय्यू जी महाराज घबरा उठे. आखिरकार उन्होंने बीच का रास्ता यह निकाला कि कुहू को पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जाए. इस सिलसिले में वे खुदकुशी वाले दिन इंदौर के एक होटल में एक महिला से मिले भी थे, जो अपने बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजने वाली थी.
हादसे के एक दिन पहले वे पुणे भी जाने वाले थे, लेकिन बीच रास्ते से ही उन्हें लौटना पड़ा था. क्योंकि बारबार उन के पास किसी का फोन आ रहा था, जिसे सुन कर वह परेशान हो रहे थे. ये फोन किस के थे, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक पुलिस ने यह उजागर नहीं किया था. पुलिस टीम भय्यूजी महाराज का कंप्यूटर, लैपटाप, टैबलेट और मोबाइल जांच के लिए जब्त कर चुकी थी.
उन का फोन अटैंड करने वाले शेखर ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया था कि ऐसा पहली बार हुआ था, जब गुरुजी ने फोन खुद अटैंड किए और जब भी काल आई तो कार में मौजूद हम सब लोगों को नीचे उतार कर अकेले में बात की.
अगर यह वाकई खुदकुशी है तो संभावना इस बात की भी ज्यादा है कि ये फोन आयुषि और कुहू के ही रहे होंगे. इन तीनों के बीच क्या खिचड़ी पक रही थी, यह खुलासा भी इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं हो पाया था.
पुलिसिया पूछताछ में ही सेवादारों ने यह बात बताई थी कि भय्यूजी महाराज कुछ दिनों से पैसों की तंगी से इतने जूझ रहे थे कि कुछ दिन पहले उन्होंने अपनी औडी कार 20 लाख रुपये में बेची थी और अपने एक मालदार भक्त से 10 लाख रुपए उधार मांगे थे.
अलबत्ता पुलिस को दिए बयानों में आयुषी और कुहू के बीच खटास और भड़ास खुले तौर पर उजागर हुई. दोनों भय्यूजी महाराज के पार्थिव शरीर के पास 3 फीट के अंतर से बैठी थीं और एकदूसरे की तरफ देख भी नहीं रही थीं. दोनों के बीच किसी तरह की बातचीत का तो कोई सवाल ही नहीं था.
कुहू ने जोर दे कर यह कहा कि उस के बाबा की मौत की जिम्मेदार आयुषि ही है, उसे जेल में डाल देना चाहिए.
दूसरी ओर आयुषि ने बताया कि कुहू ने उसे कभी मां नहीं माना और हमेशा उस से और उस की 5 महीने की बेटी से नफरत करती रही. यहां गौरतलब है कि आयुषि से पैदा हुई भय्यूजी महाराज की बेटी की बात आश्रम के विश्वसनीय लोग और परिवारजन ही जानते थे.
कलह की समस्याएं इतनी उलझीं कि भय्यूजी को करना पड़ा सुसाइड
आखिरकार 12 जून को पत्नी और बेटी की कलह से तंग आकर उन्होंने खुदकुशी कर ली. कुहू और आयुषी दोनों अलगअलग भय्यूजी महाराज की लाश पर विलाप करती रहीं. इस बीच जम कर अफवाहें उड़ीं और भक्तों का इंदौर आने का सिलसिला शुरू हो गया. 13 जून को भय्यूजी महाराज का विधिविधान से अंतिम संस्कार हो गया, जिस की सारी रस्में कुहू ने पूरी कीं.
इस दिन राजनेताओं का दोगलापन भी उजागर हुआ. उन का कोई दिग्गज भक्त उन के अंतिम संस्कार में शामिल होने इंदौर नहीं आया. अब चर्चा शुरू हुई कि भय्यूजी महाराज की बेशुमार दौलत की, जिस के बारे में वफादार सेवादार विनायक ने कह कर खुद को विवाद से दूर कर लिया कि जैसा परिवार कहेगा, वह वैसा ही करेगा.
भय्यूजी महाराज के परिवारजनों की एक मीटिंग में यह तय हुआ कि आयुषि को गुरुजी की जायदाद का 30 और कुहू को 70 फीसदी मिलेगा. लेकिन जल्द ही सूर्योदय आश्रम के प्रवक्ता तुषार पाटिल ने इस अफवाह को यह कहते खारिज कर दिया कि अभी ऐसा कोई फैसला नहीं हुआ है.
पुलिस जांच जारी थी, जिस में कुछ नया निकलने की उम्मीद किसी को नहीं दिख रही, सिवाय इस के कि दुनिया भर के लोगों की परेशानियां सुलझाने वाले भय्यूजी महाराज अपने ही घर की कलह नहीं सुलझा पाए तो ऐसे धर्म और अध्यात्म के माने क्या जिस के दम पर उन्होंने अपना एक अलग साम्राज्य स्थापित किया था.
दिल्ली में छतरपुर स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक मदनलाल मेघवाल उर्फ दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी एक युवती के यौनशोषण के आरोपों से घिरे
हुए हैं. टीवी चैनलों पर ‘शनि शत्रु नहीं मित्र’ का स्लोगन दे कर पिछले करीब 15 साल से ज्यादा समय से दिल्ली ही नहीं पूरे देश में अपने आभामंडल का प्रभाव फैला कर ख्याति पाने वाले दाती महाराज के खिलाफ एक युवती ने जून के पहले सप्ताह में दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में शिकायत दी. इस शिकायत का मजमून इस प्रकार था—
मदनलाल राजस्थानी ने अपने सहयोगियों श्रद्धा उर्फ नीतू, अशोक, अर्जुन आदि के साथ मिल कर 9 जनवरी, 2016 को दिल्ली स्थित आश्रम श्री शनि तीर्थ असोला फतेहपुर बेरी में मेरे साथ दुष्कर्म किया. यह तब हुआ, जब मुझे श्रद्धा उर्फ नीतू ‘चरण सेवा’ के लिए दाती मदनलाल राजस्थानी के पास ले गई. मैं चीखती रही, लेकिन किसी ने मेरी आवाज नहीं सुनी.
इस के बाद 26 से 28 मार्च, 2016 तक राजस्थान के पाली जिले में सोजत शहर स्थित आश्रम में दाती महाराज ने फिर मुझ से वही सब किया, जो दिल्ली के आश्रम में किया था. इस में अनिल और श्रद्धा ने दाती महाराज का साथ दिया. इन 3 दिनों में अनिल ने भी वही सब किया. चरण सेवा के नाम पर इन लोगों ने मेरे शरीर को जानवरों की तरह रौंदा.
इस घृणित कार्य के दौरान श्रद्धा ने कहा कि इस से तुम्हें मोक्ष प्राप्त होगा, यह भी सेवा ही है. तुम बाबा की हो और बाबा तुम्हारे. तुम कोई नया काम नहीं कर रही हो, सब करते आए हैं. कल हमारी बारी थी, आज तुम्हारी बारी है. कल न जाने किस की बारी होगी, बाबा समंदर है और हम सब उस की मछलियां हैं. इसे कर्ज समझ कर चुका दो.
ये 3 रातें मेरी जिंदगी की सब से भयानक रातें थीं. इन 3 रातों में मेरे साथ न जाने कितनी बार दुष्कर्म किया गया. यह सब करते हुए दाती महाराज ने एक बात कही, ‘‘तुम्हारी सेवा पूरी हुई.’’
इस घटना के बाद मेरी सोचनेसमझने की शक्ति जैसे खत्म हो गई थी. घुटघुट कर जीने से अच्छा है कि एक बार लड़ कर मरूं ताकि इस राक्षस की सच्चाई सब के सामने ला सकूं. न जाने कितनी ही लड़कियां यहां मेरी तरह बेबस और लाचार हैं.
मुझे नहीं पता कि इस शिकायत के बाद मेरा क्या होगा. शायद मैं आप लोगों के बीच न रहूं, पर मेरी पुकार आप सभी के बीच रहेगी. सिर्फ इसी उम्मीद के सहारे ये पत्र लिख रही हूं. शायद मुझे न्याय मिले और दूसरी लड़कियों की जिंदगियां बरबाद होने से बच सके. दाती महाराज को जीने का अधिकार नहीं है.
मेरी एक ही इच्छा है कि इस के कर्मों की सजा फांसी होनी चाहिए. आप से प्रार्थना है कि मेरा नाम, मेरी पहचान और मेरा पता गुप्त रखा जाए. वरना उस के द्वारा दी गई धमकियां ‘न तू रहेगी न तेरा अस्तित्व’ सच हो जाएगी. इन्हीं धमकियों की वजह से आज तक मैं चुप रही.
मुझे और मेरे परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाए. अगर मुझे सुरक्षा नहीं दी गई तो यह तय है कि न मैं रहूंगी और न मेरा परिवार. सब खत्म हो जाएगा. दाती महाराज बहुत खतरनाक आदमी है. अब तक इसलिए चुप रही कि मुझे नहीं लगता था कि मेरा कोई साथ देगा लेकिन अब बरदाश्त के बाहर हो गया तो इस बारे में अपने मम्मीपापा को बताया. उन्होंने वचन दिया कि आखिरी सांस तक तुम्हारा साथ देंगे.
दाती महाराज के खिलाफ दर्ज हुआ मुकदमा
युवती की इस शिकायत पर दिल्ली के फतेहपुर बेरी पुलिस थाने में 10 जून, 2018 को दाती महाराज उर्फ मदनलाल राजस्थानी और अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस में दुष्कर्म की धारा 376, अप्राकृतिक संबंध की धारा 377, छेड़छाड़ की धारा 354 और धमकी देने की धारा 506 लगाई गई.
पुलिस ने इस मामले में दाती महाराज के अलावा 2 महिलाओं और 2 पुरुषों को नामजद किया. इन में एक महिला श्रद्धा उर्फ नीतू और दूसरी नीमा जोशी शामिल थीं. 2 पुरुष दाती महाराज के भाई हैं.
आमतौर पर टीवी चैनलों पर छाए रहने वाले और दिल्ली के फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम मंदिर के संस्थापक दाती महाराज कौन हैं, यह जानने के लिए हमें राजस्थान से शुरुआत करनी होगी.
दाती महाराज का असली नाम मदनलाल मेघवाल है. मदनलाल का जन्म 10 जुलाई 1950 को राजस्थान के पाली जिले के आलावास गांव में हुआ था. उस के पिता देवाराम मेघवाल ढोलक बजाने का काम करते थे. मदनलाल के जन्म के कुछ महीने बाद ही उस की मां का निधन हो गया था. पिता ने दूसरी शादी कर ली. इस के बाद गांव के एक आदमी के साथ मदनलाल दिल्ली आ गया था.
दिल्ली में उस ने कई दिनों तक दिहाड़ी मजदूरी की. फिर चाय की दुकानों पर छोटामोटा काम किया. इस के बाद वह टेंट की दुकान पर काम करने लगा. अपना खुद का काम करने के लिए उस ने कैटरिंग का काम सीखा और बर्थडे एवं छोटीमोटी अन्य पार्टियों में कैटरिंग करने लगा.
1996 में मदन की मुलाकात राजस्थान के एक ज्योतिषी से हुई. उस ज्योतिषी से उस ने जन्मपत्री और कुंडली वगैरह देखना सीख ली. इस के बाद मदनलाल ने कैटरिंग का काम छोड़ कर दिल्ली की कैलाश कालोनी में ज्योतिष केंद्र खोल लिया. साथ ही उस ने अपना नाम मदनलाल से बदल कर दाती महाराज कर लिया. उस ने अपना हुलिया और चोला भी बदल लिया था.
मदनलाल ने लोगों की कमजोर नस पकड़ी और अपना ज्योतिष ज्ञान शनि ग्रह के आसपास कें्रदित रखा. ऐसा इसलिए कि धर्मभीरु लोग सब से ज्यादा शनि से ही घबराते हैं. दाती महाराज लोगों की जन्मपत्री देख कर शनि की चाल का खौफ दिखाने लगा. साथ ही शनि के खौफ से बचने के ऐसे उपाय भी बताने लगा, जिस से उसे लाभ हो.
सन 1998 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे. इस दौरान एक नेता की जन्मपत्री देख कर दाती ने कह दिया कि वह चुनाव जीत जाएगा. परिस्थितियां ऐसी बनीं कि वह नेता चुनाव जीत गया. इस खुशी में उस नेता ने फतेहपुर बेरी के अपने पुश्तैनी मंदिर का काम दाती मदनलाल को सौंप दिया.
बस फिर क्या था दाती महाराज के सितारे चमक उठे. वह राजनीतिक और कई तरह की भविष्यवाणी करने लगा. संयोग ऐसा रहा कि उन में से कुछ भविष्यवाणियां सच हो गईं. इस से दाती महाराज चर्चा में रहने लगा और उस की पूछ बढ़ गई.
न्यूज चैनलों के माध्यम से टीवी तक पहुंचे दाती महाराज
इस बीच दाती महाराज ने फतेहपुर बेरी में नेताजी द्वारा दिए गए मंदिर में शनिधाम मंदिर की स्थापना कर दी थी. मंदिर में आश्रम भी बना लिया था. साथ ही पाली के आलावास गांव से अपने 3 सौतेले भाइयों अशोक, अर्जुन और अनिल को भी दिल्ली बुला लिया था. आरोप है कि दाती ने अपने भाइयों व अन्य सहयोगियों के साथ मिल कर शनिधाम मंदिर के आसपास की जमीनों पर कब्जा कर लिया. दाती के सारे कामकाज, दिल्ली व पाली स्थित आश्रम, कालेज व अस्पताल का प्रबंधन तीनों सौतेले भाई देखते थे. वे ही रुपएपैसे का भी हिसाबकिताब रखते थे.
दाती महाराज के सितारे बुलंदी पर पहुंच गए तो उस ने टीवी चैनलों पर ‘शनि शत्रु नहीं मित्र है’ के नाम से कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू करवा दिया. साथ ही दाती ने खुद का यूट्यूब चैनल भी शुरू किया. टीवी कार्यक्रमों के जरिए दाती देश भर में मशहूर हो गया. वह शनि महाराज के नाम से ही पहचाना जाने लगा.
सांवला रंग, माथे पर तिलक, सिर पर लंबे बाल, चेहरे पर संवरी हुई काली दाढ़ी के बीच ठोढ़ी पर सफेद रंग और गले में रुद्राक्ष की माला, यही पहचान बनी दाती महाराज की. दाती महाराज केवल शनि ग्रह को शांत रखने के उपाय बताता था. दरअसल, ग्रहनक्षत्रों में केवल शनि ही ऐसा ग्रह है, जो सब से ज्यादा समय तक मानव जीवन को प्रभावित करता है.
मिली महामंडलेश्वर की उपाधि
कहा जाता है कि शनि के प्रभाव से इंसान रंक से राजा और राजा से रंक बन सकता है. दाती ने शनि ग्रह को भुनाने की कोशिश की और इसी के मद्देनजर अपने संस्थान का नाम शनिधाम रखा, जहां वह केवल शनि ग्रह पर ही चर्चा करता था.
सन 2010 में हरिद्वार में आयोजित महाकुंभ में श्री पंचायती महानिर्वाण अखाड़े की ओर से दाती महाराज को महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई. इस के बाद उस ने अपना नाम श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर परमहंस दाती महाराज रख लिया. इस से पहले दाती महाराज दिल्ली के छतरपुर इलाके के फतेहपुर बेरी में शनिधाम मंदिर का निर्माण करा चुके थे.
इस मंदिर को उस ने श्री सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम पीठाधीश्वर नाम दिया. मंदिर में 2003 में शनिदेव की प्रतिमा स्थापित की गई. इस मंदिर में बने आश्रम में अस्पताल, गौशाला व अनाथालय भी हैं. बाद में दाती ने पाली के आलावास गांव में भी आश्रम बनवाया. इस के अलावा उन्होंने उज्जैन में भी अपने आश्रम की स्थापना की.
दुष्कर्म के मामले में जिस महिला श्रद्धा को भी आरोपी बनाया गया है, वह दिल्ली और पाली के आश्रम का कामकाज संभालती थी. ट्रस्ट में दाती महाराज के बाद दूसरे नंबर का स्थान श्रद्धा का ही था.
दाती महाराज के तमाम प्रमुख राजनेताओं और नौकरशाहों से संबंध हैं. उन्होंने कई प्रमुख नेताओं के साथ अपनी फोटो के फ्लैक्स आश्रम सहित पूरी दिल्ली में लगवा रखे थे. इन के जरिए वह अपना राजनीतिक रसूख दिखाते थे. फतेहपुर बेरी स्थित आश्रम पर शनि अमावस्या पर होने वाले कार्यक्रम में देश भर से कई प्रमुख नेता और दिग्गज हस्तियां आती थीं. बेटियों का जन्मदिन मनाने, अनाथ बेटियों की शादी करवाने और कंबल बांटने जैसे कामों से दाती महाराज ने सुर्खियां बटोरीं.
डरी हुई थी पीडि़ता
अब बात करते हैं पीडि़ता की. मूलरूप से उत्तर प्रदेश की रहने वाली यह लड़की आजकल दिल्ली में अपने परिवार के साथ रहती है. उस के परिवार में मातापिता, 2 बहनें और एक भाई है. दोनों बहनों की शादी हो चुकी है.
करीब 25 साल की पीडि़ता दाती महाराज के उपदेश सुनने नियमित तौर पर उन के आश्रम जाती थी. दाती के एक सहयोगी ने उस की मुलाकात दाती से कराई. इस के बाद 2007 से 2016 तक वह सेवादार के तौर पर दाती के आश्रम में रही. उस ने दाती के आश्रम के सहयोग से अजमेर से एमसीए किया था.
बाद में वह अपने परिवार के साथ रहने लगी थी. लेकिन इस बीच उस का आश्रम में आनाजाना लगा रहा. इसी दौरान फरवरी 2016 में पहली बार दिल्ली के शनि मंदिर में उस से दुष्कर्म किया गया. फिर मार्च 2016 में उसे राजस्थान के पाली ले जा कर दुष्कर्म किया गया.
पीडि़ता का कहना है कि दाती महाराज ने उसे पुलिस में शिकायत नहीं करने के लिए धमकाया था. युवती ने पुलिस को बताया कि डर के मारे वह इतने समय तक चुप रही. परिवार की बदनामी का भी डर था.
पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज ने कहा कि उन्हें बदनाम करने की साजिश के तहत उन के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कराया गया है. दाती ने दावा किया कि पीडि़ता अपनी 2 अन्य बहनों के साथ आश्रम में रहती थी. वह खुद 2 साल पहले अपनी मरजी से आश्रम छोड़ने से पहले खुद शपथपत्र दे कर गई थी.
कुछ लोगों ने इस लड़की और उस के पिता को प्रलोभन दिया, जिस से ये लोग मुझ पर आरोप लगाने को तैयार हो गए. दाती का कहना था कि 2015 में अभिषेक नाम का आदमी शनिधाम में आता था.
उस ने सेवादारों से मेलमिलाप बढ़ाया. इस में कई लोग शामिल थे, इन्होंने पैसे का लेनदेन किया. विवाद होने पर अभिषेक ने उन्हें बताया कि उस ने सारा पैसा दाती महाराज को दिया है. दाती ने कहा कि अभिषेक ने उन्हें कोई पैसा नहीं दिया. इस के बाद उन लोगों ने यह साजिश रची.
पुलिस में रिपोर्ट दर्ज होने पर दाती महाराज गायब हो गए. वह बिना किसी को बताए दिल्ली छोड़ कर राजस्थान के पाली स्थित अपने आश्रम में चले गए.
आश्रम में पुलिस की काररवाई
इस के दूसरे दिन 11 जून को पीडि़ता ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल से मुलाकात कर अपनी आपबीती सुनाई. पीडि़ता से मुलाकात के बाद स्वाति ने ट्वीट कर कहा कि पीडि़ता गहरे सदमे में है. साथ ही उस की जान को खतरा भी है. इसलिए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर तत्काल उसे सुरक्षा मुहैया कराने और दाती महाराज को गिरफ्तार करने को कहा गया है. पुलिस ने सफदरजंग अस्पताल में पीडि़ता की मैडिकल जांच कराई.
पुलिस ने 12 जून को पीडि़ता के साकेत कोर्ट में धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराए. इस में पीडि़ता ने बताया कि 9 फरवरी, 2016 को दाती की सेवादार श्रद्धा उसे असोला स्थित शनिधाम आश्रम में चरण सेवा के लिए दाती के पास ले गई. मुझे गुफानुमा अंधेरे कमरे में सफेद रंग के कपड़े पहना कर भेजा गया. वहां दाती ने कहा, ‘मैं तुम्हारा प्रभु हूं. इधरउधर क्यों भटकना. मैं सब वासना खत्म कर दूंगा.’
फिर दाती व उस के सहयोगियों ने मेरे साथ दुष्कर्म किया. मार्च में पाली में यही कहानी दोहराई गई.
दाती महाराज ने 12 जून को विभिन्न समाचार चैनलों को मोबाइल से वीडियो बना कर भेजा और खुद पर लगे आरोपों को खारिज करते हुए पुलिस जांच में शामिल होने की बात कही. उन्होंने कहा कि वह फरार नहीं है.
इसी दिन पाली जिले के आलावास स्थित आश्रम की निदेशिका श्रद्धा ने दावा किया कि बाबा पाली स्थित आश्रम में हैं. फिलहाल पुलिस ने उन से कोई संपर्क नहीं किया है. जांच में पूरा सहयोग किया जाएगा.
मामला हाईप्रोफाइल होने के कारण दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक ने इस मामले की जांच 12 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंप दी. इसी के साथ पुलिस ने पीडि़ता और उस के परिवार को जान का खतरा देखते हुए सुरक्षा मुहैया करा दी.
दाती ने दावा किया कि वह फरार नहीं है
13 जून को दाती महाराज पाली जिले के आलावास स्थित श्री आश्वासन बालग्राम में दिन भर रहे. इस दौरान वह साधकों और मीडियाकर्मियों से मिलते रहे. मीडिया के समक्ष उन्होंने फिर दोहराया कि वह निर्दोष है. उन्हें झूठा फंसाया जा रहा है.
दाती महाराज पर यौनशोषण का आरोप लगने के बाद पाली जिले में सोजत रोड पर स्थित आलावास आश्रम में रहने वाली 500 से ज्यादा बच्चियों के घरवाले वहां पहुंचने लगे. ये लोग अपनी बच्चियों की खैरखबर लेने आए थे.
14 जून को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने सर्चवारंट ले कर असोला स्थित शनिधाम मंदिर पर छापा मारा. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस दल के साथ मौजूद रही. पुलिस ने पीडि़ता के साथ उस जगह की पहचान की, जहां उस से दुष्कर्म किया गया था. सर्च अभियान के दौरान क्राइम ब्रांच टीम ने मंदिर में सेवादारों सहित अन्य लोगों से पूछताछ की और सबूत जुटाए. पुलिस ने कहा कि बाबा की गिरफ्तारी को ले कर कोई जल्दबाजी नहीं है. पहली कोशिश पर्याप्त सबूत जुटाने की है, ताकि बाद में अदालत में केस कमजोर न पड़े.
दुष्कर्म के आरोपों में फंसने पर दाती के विदेश भागने की आशंका को देखते हुए 14 जून को दिल्ली पुलिस ने दाती का लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. साथ ही सभी हवाईअड्डों को दाती के मामले की सूचना दे दी गई. एयरपोर्ट अथौरिटी से कहा गया कि दाती विदेश जाते हैं तो पहले दिल्ली पुलिस को सूचना दी जाए.
इस बीच दाती महाराज ने आलावास आश्रम से ही मीडिया से कहा कि वह 18 जून, 2018 को दिल्ली पुलिस के सामने पेश होंगे. उन्होंने कहा कि उन्हें 18 जून तक का समय दिया जाए ताकि वह गुरुकुल में रहने वाली बच्चियों के लिए आवश्यक व्यवस्था कर सकें. दूसरी ओर, दिल्ली महिला आयोग ने दाती की गिरफ्तारी न होने पर नाराजगी जताते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस दे कर जवाब मांगा.
दिल्ली के असोला स्थित शनिधाम मंदिर में क्राइम ब्रांच का सर्च अभियान 15 जून को भी चला. इस दौरान पुलिस ने कई सबूत जुटाए. मौके से डीवीआर हार्डडिस्क, पैनड्राइव आदि जब्त किए. मंदिर की तलाशी के दौरान क्राइम ब्रांच की टीम के साथ पीडि़ता भी रही, उस ने मंदिर में बने आश्रम के वे 2 कमरे पुलिस को दिखाए, जिन में उस से दुष्कर्म किया गया था.
दिल्ली के आश्रम की तलाशी का काम पूरा होने के बाद 15 जून को ही क्राइम ब्रांच की एक टीम पीडि़ता को साथ ले कर पाली के लिए रवाना हो गई. इसी के साथ दिल्ली पुलिस ने दाती महाराज को नोटिस जारी कर के पूछताछ के लिए 16 जून को दिल्ली तलब किया. हालांकि पुलिस के नोटिस पर दाती ने जांच में शामिल होने के लिए 18 जून तक का समय मांगा.
16 जून को क्राइम ब्रांच की टीम जब पाली जिले के आलावास स्थित उन के आश्रम में पहुंची तो इस से पहले ही वह वहां से फरार हो गए. उन के साथ आश्रम की संचालिका श्रद्धा और अन्य सहयोगी भी भाग गए. दाती ने अपना मोबाइल भी स्विच्ड औफ कर लिया. दूसरी ओर दिल्ली स्थित आश्रम से बाबा के भाई भी भूमिगत हो गए.
एसीपी जसवीर मलिक के नेतृत्व में पहुंची क्राइम ब्रांच टीम ने आलावास आश्रम में 3 घंटे तक जांचपड़ताल की. इस दौरान पीडि़ता भी पुलिस टीम के साथ रही. पीडि़ता ने पूरे आत्मविश्वास के साथ उन 6 कमरों की तसदीक कराई, जहां उस के साथ यौनाचार हुआ था.
पुलिस टीम ने आश्रम से कई सबूत जुटाए. जांच काररवाई की वीडियोग्राफी भी कराई गई. पुलिस ने आश्रम के सीसीटीवी कैमरे भी खंगाले और उन की डीवीआर व हार्डडिस्क जब्त कर ली. कई रजिस्टर व दस्तावेज भी जब्त किए गए.
इस दौरान आश्रम के उपमुख्य संचालक सहित करीब 20 सेवादारों से पूछताछ कर उन के बयान लिए गए. पीडि़ता के साथ रही बालिकाओं व युवतियों के भी बयान दर्ज किए गए. सर्च वारंट से ली गई आश्रम की तलाशी के दौरान वहां पुलिस बल तैनात रहा.
पुलिस टीम को आलावास आश्रम में उस समय हैरानी हुई, जब वहां लगभग 100 बालिकाएं ही मिलीं. अधिकांश कमरे खाली मिले, जबकि दाती कई दिनों से दावा कर रहे थे कि इस आश्रम में 700 से अधिक बालिकाएं हैं.
पुलिस को संदेह है कि आश्रम में रहने वाली बालिकाओं को दाती ने जबरन घर या अन्यत्र भेज दिया, क्योंकि दाती को डर था कि क्राइम ब्रांच की टीम बालिकाओं के बयान लेगी और उन से पूछताछ करेगी तो उस की पोल खुल सकती है. दिल्ली पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है क्योंकि आश्रम में दाती की बिना अनुमति कोई आजा नहीं सकता था.
16 जून को क्राइम ब्रांच टीम दिल्ली में दाती महाराज का इंतजार करती रही लेकिन वह नहीं पहुंचे. दाती ने पुलिस से 18 जून तक का समय पहले ही मांग लिया था. दाती के पाली आश्रम में भी नहीं मिलने पर पुलिस ने नोटिस जारी कर उन से 18 जून को पेश होने को कहा.
बाबा पर दुष्कर्म का आरोप लगने के बाद पहली बार 16 जून शनिवार को दिल्ली स्थित शनिधाम मंदिर में दाती महाराज की गैरमौजूदगी में पूजा की गई. सुबह साढ़े 5 बजे होने वाली पूजा आश्रम के सेवादारों ने की. इस से पहले प्रत्येक शनिवार को होने वाली इस पूजा को दाती महाराज ही करते थे. दाती पर आरोपों के कारण इस दौरान उन के सेवादार श्रद्धालुओं पर नजर रखे हुए थे.
16 जून को पाली स्थित आश्रम से फरार हुए दाती और आश्रम संचालिका श्रद्धा 17 जून को भी पुलिस या मीडिया के सामने नहीं आए. पुलिस 17 जून को दिल्ली एवं पाली स्थित आश्रमों पर नजर रखे रही, लेकिन दाती दोनों जगह ही नहीं पहुंचे. पुलिस को उम्मीद थी कि दाती 18 जून को दिल्ली में पुलिस के सामने पेश हो जाएंगे.
इस बीच क्राइम ब्रांच को दाती के खिलाफ ठगी की कई शिकायतें मिलीं. इन में धन दोगुना करने का झांसा दे कर रकम हड़पने की शिकायत भी शामिल रही. क्राइम ब्रांच ने इन शिकायतों को भी जांच के दायरे में ले लिया.
दाती महाराज समेत पांचों आरोपी 18 जून को भी दिल्ली में क्राइम ब्रांच के समक्ष पेश नहीं हुए. दाती की ओर से उन के वकील ने क्राइम ब्रांच में पेश हो कर दाती के स्वास्थ्य कारणों का हवाला दे कर पूछताछ को पेश होने के लिए एक सप्ताह की मोहलत मांगी.
इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने कानूनविदों से सलाह कर दूसरा नोटिस जारी किया और दाती समेत सभी 5 आरोपियों को पेश होने के लिए 20 जून, 2018 तक का समय दे दिया. साथ ही यह भी कह दिया गया कि 20 जून तक हाजिर नहीं हुए तो उन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा.
इस के बाद पुलिस ने जांच काररवाई तेज कर सभी आरोपियों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. वहीं जयपुर से सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा बाल अधिकार विभाग की एक टीम उपनिदेशक के नेतृत्व में पाली स्थित आश्रम पहुंची और गायब बच्चियों के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा आश्रम के पंजीयन का नवीनीकरण कई साल से नहीं होने के मामले की भी जांच की.
इस बीच, योगगुरु स्वामी रामदेव ने 18 जून को कोटा में यह कह कर इस पूरे मामले में उबाल ला दिया कि जिन साधुओं का चरित्र ठीक नहीं है, उन्हें फांसी पर लटका देना चाहिए. केवल भगवा वस्त्र पहनने से साधु नहीं बनते, उन का आचरण व चरित्र भी ठीक होना चाहिए. धर्माचार्यों को भी चाहिए कि वे ऐसे संन्यासियों की गारंटी लें.
दबाव बढ़ने पर हाजिर होना पड़ा क्राइम ब्रांच के सामने
19 जून की दोपहर दाती महाराज दिल्ली में चाणकयपुरी स्थित क्राइम ब्रांच के औफिस में हाजिर हो गए. दरअसल, दाती के अचानक हाजिर होने के पीछे की कहानी यह रही कि दिल्ली की साकेत कोर्ट ने 21 जून तक दिल्ली पुलिस से स्टेटस रिपोर्ट मांगी. इस पर पुलिस ने दाती के वकील के जरिए उन पर तुरंत हाजिर होने का दबाव बनाया.
इस बीच पुलिस को पता चला कि दाती महाराज दिल्ली में ही एक पांचसितारा होटल में ठहरे हुए हैं. पुलिस के भारी दबाव के चलते दाती 3 दिनों तक भूमिगत रहने के बाद 19 जून की दोपहर अपने वकील के साथ क्राइम ब्रांच के औफिस पहुंचे.
क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने दाती से 7 घंटे तक पूछताछ कर करीब डेढ़ सौ सवाल किए. दाती के कुछ जवाबों से पुलिस अधिकारी संतुष्ट नहीं थे. बाद में उन्हें रात 10 बजे छोड़ दिया गया और 22 जून को फिर हाजिर होने के निर्देश दिए.
अब सवाल दाती की गिरफ्तारी का नहीं, बल्कि इस बात का है कि दाती को अपनी बेगुनाही के सबूत खुद देने होंगे. अगर दाती ने गुनाह किया है तो पुलिस गिरफ्तार भी करेगी और अदालत में मुकदमा भी चलेगा. गुनहगारों को कानून सजा देगा. यह तय है कि इस मामले से लोगों का बाबाओं से भरोसा और कम हुआ है.
देखना यह है कि खुद को निर्दोष बताने वाले दाती महाराज पर शनि की कृपा होती है या उन के सिर पर शनि की ढैय्या गिरती है?
कच्चे आलुओं को छील कर कस लें. उबला आलू छील कर कस लें. एक बाउल में कसे आलू, मैदा, मिर्च व प्याज डाल कर पानी के साथ गाढ़ा बैटर बना लें. इस में नमक व बेकिंग पाउडर मिला कर फेंट लें. गरम तवे पर एक बड़े चम्मच से बैटर डाल कर फैला लें. दोनों तरफ तेल डाल कर सेंक लें. सौस के साथ गरमगरम परोसें.
बतौर अदाकारा या मौडल अपनेआप को हमेशा फिट और खूबसूरत बनाए रखना आसान काम नहीं होता है. इस के लिए अदाकाराओं को काफी जतन करने पड़ते हैं. अपनी आदतों से ले कर अपनी जीवनशैली तक में बहुत बदलाव करना पड़ता है. फिर खूबसूरत नजर आना एक कला भी है. खूबसूरत दिखने के लिए अपने हिसाब से कई नए स्टाइल भी अपनाने पड़ते हैं, तब कहीं एक अदाकारा अपनी खूबसूरती से लाखों दिलों को दीवाना बना पाती है.
हाल ही में जैकलीन फर्नांडीज से हुई मुलाकात में उन से उन की खूबसूरती, मेकअप और फिटनैस को ले कर खासतौर पर गुफ्तगू की. पेश हैं, जैकलीन की खूबसूरती के राज उन्हीं की जबानी:
दिन की शुरुआत: ‘‘मैं अपने दिन की शुरुआत कुनकुने पानी में ऐप्पल सीड विनेगर मिला कर पीने से करती हूं. उस के बाद करीब आधा घंटा योगा करती हूं, जिस में व्यायाम और मैडिटेशन मैं जरूर करती हूं. उस के बाद हलके नाश्ते के साथ ग्रीन टी लेती हूं.’’
फिटनैस: ‘‘मैं अपनी फिटनैस का पूरा खयाल रखती हूं. मैं व्यायाम वह करना पसंद करती हूं, जिसे करते समय ऐंजौय कंरू. मैं हफ्ते में 3 बार स्विमिंग करती हूं और जब भी मौका मिलता है डांस करती हूं. डांस करना मुझे बहुत पसंद है. यह एक तरह का व्यायाम भी है. इस के अलावा ज्यादा से ज्यादा पैदल चलने की कोशिश करती हूं. जब भी समय मिलता है जिम में वर्कआउट के लिए जाती हूं.’’
त्वचा की देखभाल: ‘‘अपनी त्वचा को कांतिमय बनाए रखने के लिए मैं खूब कुनकुना पानी पीती हूं. इस के अलावा मैं दिन में 1 बार नारियल पानी भी जरूर पीती हूं. त्वचा की देखभाल के लिए चेहरे पर घरेलू पैक लगाना पसंद करती हूं. होंठों के लिए कई बार लिप बाम की जगह शहद का इस्तेमाल करती हूं. रात में सोने से पहले ओवर नाइट सीरम इन औयल का इस्तेमाल करती हूं. गरमी के मौसम में टिशू में आइस क्यूब लपेट कर चेहरे पर लगाती हूं.’’
बालों की देखभाल: ‘‘मैं बालों को मुलायम और मजबूत बनाए रखने के लिए हफ्ते में 3 बार नारियल तेल गरम कर के बालों में लगाती हूं. इस के अलावा अंडे की सफेदी का पैक बना कर भी बालों में लगाती हूं. हफ्ते में 3 बार बालों की मसाज और हेयर प्रोटीन का इस्तेमाल करती हूं. मैं रोजाना बादाम, अखरोट और मडली का सेवन जरूर करती हूं ताकि बालों को अंदरूनी मजबूती मिल सके.
‘‘हम कलाकारों को फिल्मों में काम करने के दौरान रोजाना मेकअप करना पड़ता है. ऐसे में अगर मेकअप हमारी त्वचा को सूट न करे तो प्रौब्लम भी हो जाती है. लिहाजा, मैं रोजाना मेकअप के दौरान खासतौर पर अपने पसंदीदा प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हूं. मैं अपनी त्वचा के रंग से 3 शेड में गहरे रंग का फाउंडेशन मेकअप के लिए इस्तेमाल करती हूं ताकि जब भी मैं किसी फिल्मी फंक्शन में जाऊं और फोटोग्राफर द्वारा मेरे फोटो खींचे जाएं तो उन में मेरी स्किन नौर्मल नजर आए. फाउंडेशन लगाने के बाद फोटो में मेरा चेहरा अच्छा नजर आता है.’’
क्लोवर कंटूरिंग: ‘‘मेरे गाल थोड़े फूले हुए हैं और चीकबोन अर्थात ठुड्डी भी पूरी तरह शेप में नहीं है. लिहाजा, इन दोनों को शेप में लाने के लिए मैं कंटूरिंग के लिए ब्रोंजर का इस्तेमाल करती हूं. इस से मेरी चीकबोन और जौ लाइन शेप में दिखाई देती है.’’
ब्लशर: ‘‘मैं ब्लशर के लिए लिपस्टिक का इस्तेमाल करती हूं. मैं लिपस्टिक को गाल पर लगा कर फैला देती हूं. इस के अलावा लिपस्टिक का इस्तेमाल आईशैडो के रूप में भी करती हूं.’’
जादुई मसकारा: ‘‘मैं अपने पर्स में हमेशा मसकारा रखती हूं. इस की खास वजह यह है कि मेरी आंखें बहुत छोटी हैं और सोईसोई सी नजर आती हैं. लिहाजा, मसकारा और काजल लगाने के बाद मेरी आंखें बड़ी नजर आती हैं. इस के अलावा मैं स्ट्राबैरी लिप बाम भी हमेशा अपने पर्स में रखती हूं. इसे बारबार लगाने की मुझे आदत है.’’