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प्रेमिका और पत्नी के बीच मौत का खेल

इसी साल मार्च और अप्रैल महीने में महाराष्ट्र में जिस प्रकार से 5 शिवसेना तालुका उप प्रमुखों और नगर सेवकों की हत्याएं हुई थीं, उस से राजधानी मुंबई और उस से सटे ठाणे जनपद के पुलिस अधिकारियों की नींद उड़ गई थी. शिवसेना महाराष्ट्र राज्य की एक बड़ी और जानीमानी पार्टी है.

इन दो महीनों में शिवसेना के 5 नेताओं की हत्या के मामले को राज्य सरकार के गृह विभाग ने भी गंभीरता से लिया था. इन मामलों में से कुछ को तो स्थानीय पुलिस और क्राइम ब्रांच ने सुलझा लिया था. पर कुछ शेष थे. इन में से एक मामला शिवसेना के शाहपुर तालुका उपप्रमुख और नगर सेवक शैलेश निमसे की हत्या का भी था.

पुलिस ने शिवसेना के अन्य नेताओं की हत्या के जो मामले खोले थे उन में वजह उन की स्वयं की दुश्मनी, बिजनैस, प्रौपर्टी और रंगदारी की बात सामने आई थी. लेकिन क्राइम ब्रांच ने जब नगर सेवक और ताल्लुका उपप्रमुख शैलेश निमसे की हत्या का मामला खोला तो लोग स्तब्ध रह गए.

घटना 20 अप्रैल, 2018 की थी. थाणे जनपद के भिवड़ी तालुका गणेशपुरी पुलिस थाने में उस समय अफरातफरी मच गई थी, जिस समय चिनचेली गांव के काशीनाथ पाटिल ने थाने आ कर ड्यूटी पर तैनात पीआई शेखर डोबे को यह खबर दी कि देवचोले परिसर की सीमा से लगे दाल्या माला शिखर की पहाडि़यों की झाडि़यों के बीच एक व्यक्ति का झुलसा हुआ शव पड़ा है.

उस समय दिन के यही कोई 10 बज रहे थे. पीआई शेखर डोबे ने पाटिल की इस सूचना को गंभीरता से लिया और मामले की जानकारी थानाप्रभारी के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम को देने के बाद पुलिस टीम ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

जिस समय पुलिस टीम घटनास्थल पर पहुंची थी उस समय तक घटना की खबर पूरे इलाके में भी फैल गई थी. देखते ही देखते घटनास्थल पर काफी लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने घटनास्थल का मुआयना किया.

युवक का शव अधजली अवस्था में पड़ा था. वह एक मजबूत कदकाठी वाला था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि उस की हत्या कहीं और करने के बाद यहां ला कर लाश को जलाने की कोशिश की गई होगी ताकि लाश की शिनाख्त न हो सके.

पीआई शेखर डोबे अभी अपने सहायकों के साथ घटनास्थल और शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि मामले की सूचना पा कर थाणे के डीसीपी प्रशांत कदम, एसीपी कृष्णकांत काटकर भी मौके पर पहुंच गए. उन के साथ फोरेंसिक टीम के अधिकारी भी थे.

फोरेंसिक टीम के काम खत्म होने के बाद डीसीपी प्रशांत कदम और एसीपी कृष्णकांत काटकर ने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण कर आपस में विचार विमर्श किया. मामले की तफ्तीश के विषय में पीआई शेखर डोबे को आवश्यक निर्देश दे कर वह वहां से अपने औफिस लौट गए.

इस के बाद पीआई शेखर डोबे ने वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उस लाश को नहीं पहचान सका. यह साबित हो गया था कि मृतक उस इलाके का नहीं है. पुलिस को घटनास्थल से भी कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिस से शव की शिनाख्त और तफ्तीश में कोई मदद मिल सके.

शेखर डोबे ने घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए जे.जे. अस्पताल भेज दिया. थाने लौट कर उन्होंने काशीनाथ पाटिल के बयान पर अज्ञात हत्यारे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के मामले की तफ्तीश अपने हाथों में ले ली.

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लेकिन उन के सामने समस्या यह थी कि मृतक की शिनाख्त के बिना तफ्तीश कैसे आगे बढ़ाई जाए, दूसरे घटनास्थल से भी कोई सूत्र नहीं मिला था मगर उन्हें केस की जांच तो करनी ही थी. इसलिए उन्होंने जिले के सभी थानों में अज्ञात युवक की लाश बरामद होने का मैसेज वायरलैस से प्रसारित कर दिया था.

साथ ही यह भी जानने की कोशिश की कि कहीं किसी थाने में उस हुलिए के युवक की कोई गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. इस कोशिश के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली.

तफ्तीश जटिल थी लेकिन पुलिस टीम निराश नहीं हुई. इस से पहले कि पुलिस तफ्तीश की कोई दूसरी रूप रेखा तैयार करती टीम को एक अहम जानकारी मिली. पुलिस को पता चला कि घटनास्थल से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर उसी दिन से हुंडई की एक सोनाटा इंबेरा कार लावारिश स्थित में  खड़ी है, जिस दिन पुलिस ने वह अज्ञात व्यक्ति की लाश बरामद की थी.

क्या कार से मृतक का कोई संबंध हो सकता है, यह सोच कर पीआई शेखर डोबे उस कार का निरीक्षण करने पहुंच गए. उन्होंने जब उस कार के पेपर चेक किए तो वह कार शिवसेना के शाहपुर तालुका उपप्रमुख और नगरसेवक शैलेश निमसे की निकली जो अधई गांव के रहने वाले थे.

पुलिस टीम जब शैलेश के घर पहुंची तो उन की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली ने बताया कि उस रात करीब एक बजे पति के मोबाइल पर किसी का फोन आया था. फोन रिसीव करने के बाद वह कार ले कर निकल गए थे. जाते समय वह दरवाजे को बाहर से ही बंद कर गए थे.

वह कहां गए और क्यों गए थे इस विषय में उसे कोई जानकारी नहीं है. पुलिस ने साक्षी को अस्पताल ले जा कर वह अधजला शव दिखाया तो वह शव को देखते ही दहाड़े मार कर रोने लगी. इस से पुलिस समझ गई कि मृतक साक्षी का पति ही है.

साक्षी से पूछताछ के बाद पुलिस को पता चला कि मृतक शैलेश निमसे उस का पति था और वह शिवसेना का शाहपुर तालुका का उपप्रमुख और नगर सेवक था. जैसे ही शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं को शैलेश निमसे की हत्या की जानकारी मिली, वह पुलिस मुख्यालय के सामने इकट्ठे होने लगे. उन्होंने हत्यारे की गिरफ्तारी और शिवसेना के नेताओं की सुरक्षा की मांग को ले कर नारेबाजी शुरू कर दी.

मामले को तूल पकड़ते देख कर पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त और एसीपी तुरंत प्रदर्शनकारियों के बीच पहुंच गए. अधिकारियों ने जैसेतैसे कर के प्रदर्शन कर रहे शिवसैनिकों को समझाया. उन्होंने उन्हें भरोसा दिया कि इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से करा कर जल्द ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. तब कहीं जा कर प्रदर्शनकारी शांत हुए.

इस के बाद पुलिस कमिश्नर ने इस केस को सुलझाने के लिए क्राइम ब्रांच के सीनियर पीआई व्यंकट आंधले के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में सहायक पीआई प्रमोद बड़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, विशाल वायकर, हेड कांस्टेबल अशोक पाटिल, विजय ढेगरे और मनोज चव्हाण को शामिल किया गया.

क्राइम ब्रांच की टीम ने कई पहलुओं को ध्यान में रखते हुए जांच की लेकिन शैलेश निमसे के मामले में राजनैतिक, प्रौपर्टी, आपसी रंजिश आदि का मामला नजर नहीं आया. तब क्राइम ब्रांच ने शैलेश के घर से ही जांच की शुरुआत की.

घर की कुंडली खंगालने पर पता चला कि शैलेश निमसे के किसी महिला के साथ अवैध संबंध थे. जिस की वजह से शैलेश की अपनी पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली से अकसर लड़ाई होती रहती थी. वह उस के साथ मारपीट करता था.

इस बात की जब गहराई से जांच की गई तो शैलेश की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली पर पुलिस को शक होने लगा. लेकिन मामला एक सभ्य और सम्मानित परिवार से संबंधित था इसलिए पुलिस ने बिना किसी पुख्ता सबूत के उस पर हाथ डालना ठीक नहीं समझा.

दूसरी ओर एपीआई प्रमोद बड़ाख ने शैलेश निमसे के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स व सीसीटीवी कैमरों की फुटेज को जांचा तो प्रमोद बबन लुटे नाम के एक शख्स की स्थिति संदिग्ध नजर आई. यह जानकारी उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर एपीआई ने प्रमोद बबन लुटे को थाने बुलवा लिया. उस से शैलेश की हत्या के बारे में मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की और उस के सामने फोन की काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज रखी तो उस के होश उड़ गए.

ऐसे में उस के सामने अपना अपराध स्वीकार करने के अलावा और कोई दूसरा चारा नहीं था. लिहाजा वह टूट गया और अपना अपराध स्वीकार करते हुए शैलेश की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली.

प्रमोद लुटे के बयान के आधार पर पुलिस ने उसी समय शैलेश निमसे की पत्नी साक्षी उर्फ वैशाली को भी पति की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. मजे की बात यह थी कि साक्षी के चेहरे पर अपने पति की हत्या का जरा भी अफसोस नहीं था. उसने बिना किसी दबाव के पति की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया.

43 वर्षीय शैलेश निमसे एक संभ्रांत परिवार का युवक था. वह अपने परिवार के साथ ठाणे जनपद के तालुका शाहपुर के अधई गांव में रहता था. मांबाप की अकेली संतान होने के कारण उस का परिवार में कुछ ज्यादा ही प्यारदुलार था. ज्यादा प्यार के कारण वह पढ़लिख भी नहीं सका.

उस की दिलचस्पी नेतागिरी में अधिक थी. स्कूल छोड़ने के बाद वह पूरी तरह से शिवसेना पार्टी का सक्रिय कार्यकर्ता बन गया था. इस के बाद उस की इलाके में धाक बन गई थी, जिस के चलते वह अपना अवैध काम भी करने लगा था.

नेतागिरी से उसे कमाई होने लगी तो वह पार्टी को भी चंदे के रूप में मोटी रकम देने लगा. यही कारण था कि वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के काफी करीब आ गया था. तब पार्टी ने उसे शाहपुर का तालुका का उपप्रमुख और नगर सेवक बना दिया था.

करीब 15 साल पहले शैलेश की शादी साक्षी उर्फ वैशाली से हुई थी. उस का अच्छा स्वभाव था. वह शैलेश निमसे को बहुत प्यार करती थी. वक्त के साथ वह 3 बच्चों की मां भी बन गई थी. शादी के 10 सालों तक तो शैलेश ने अपने परिवार का काफी ध्यान रखा. लेकिन 2013 में उस के जीवन में एक ऐसी लड़की ने प्रवेश किया कि उस के परिवार की नींव हिल गई.

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जो शैलेश अपने परिवार के बिना एक क्षण नहीं रह सकता था वह धीरेधीरे अपने परिवार से दूरियां बनाने लगा. वह न तो पत्नी से ठीक तरह से बात करता और न ही बच्चों को प्यारदुलार करता था. धीरेध्ीरे जब उस ने घर में भी आना कम कर दिया तो साक्षी परेशान हो उठी.

पहले तो साक्षी को लगा कि पति को कोई पार्टी का तनाव या परेशानी होगी जिस से वह बच्चों और उसे समय नहीं दे पा रहे हैं. लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो साक्षी के होश उड़ गए. साक्षी ने पहले शैलेश को समझाने और मनाने की कोशिश की, उस ने अपने और बच्चों के भविष्य का वास्ता दिया.  लेकिन शैलेश पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ.

दलदल में डूबे शैलेश ने अपनी पत्नी और बच्चों की बातों को नजरअंदाज करते हुए अपनी प्रेमिका को रहने के लिए फ्लैट दे दिया. यह सब जान कर साक्षी के धैर्य का बांध टूट गया. अब आए दिनों उस की प्रेमिका को ले कर घर का माहौल खराब होने लगा. घर में लड़ाईझगड़े होने शुरू हो गए थे.

इस का नतीजा यह हुआ कि शैलेश ने अपनी पत्नी साक्षी को तलाक दे कर अपनी सारी प्रौपर्टी से बेदखल कर देने का मन बना लिया. इस के लिए उस ने साक्षी को धोखे में रख कर उस से तलाक के पेपरों पर हस्ताक्षर भी करा लिए. ताकि अपनी सारी प्रौपर्टी अपनी प्रेमिका को दे सके.

पति के इस चक्रव्यूह की जानकारी जब साक्षी को हुई तो उस के पैरों के नीचे की जैसे जमीन सरक गई. उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे. अगर पति ने ऐसा किया तो वह फिर क्या करेगी. वह अपने छोटेछोटे बच्चों को ले कर कहां जाएगी. उस के और बच्चों के भविष्य का क्या होगा.

इस के लिए उस ने पति को फिर समझाया. उस के सामने रोई, गिड़गिड़ाई, लेकिन शैलेश को बच्चों और पत्नी पर कोई दया नहीं आई. वह अपने फैसले पर अटल रहा. बल्कि उस ने पत्नी को घर छोड़ कर जाने की तारीख भी बता दी थी.

पति का यह निर्णय जान कर साक्षी उर्फ वैशाली ने अपना आपा खो दिया और उस ने अपने पति शैलेश निमसे के प्रति एक खतरनाक फैसला कर लिया. उस ने बेवफा पति को सजा देने की योजना बना डाली.

जिस दिन शैलेश पत्नी और बच्चों को अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर अपनी प्रेमिका के साथ रहने को जाने वाला था. उस से एक दिन पहले ही साक्षी ने अपने फैसले के अनुसार पति को सदासदा के लिए नींद के आगोश में भेज दिया. इस में उस का साथ शैलेश के एक किराएदार प्रमोद बबन लुटे ने दिया था.

दरअसल पति के निर्णय से आहत साक्षी को पति से सख्त नफरत हो गई थी. अपनी दर्दभरी कथा जब उस ने अपने यहां रहने वाले किराएदार प्रमोद लुटे को सुनाई तो वह उस की मदद करने के लिए तैयार हो गया. पर इस के लिए उस ने साक्षी के सामने पैसों की मांग रखी. जो साक्षी उसे देने के लिए तैयार हो गई.

डेढ़ लाख रुपए की सुपारी लेने के बाद प्रमोद बबन लुटे अपने 2 साथियों को साथ ले कर शैलेश की हत्या की रूप रेखा तैयार करने में जुट गया. अपनी तैयारी पूरी करने के बाद प्रमोद ने इस की जानकारी साक्षी को भी दे दी थी.

19 अप्रैल, 2018 को अपनी मौत से अनभिज्ञ शैलेश जब अपने घर पर आया तो बहुत खुश था. उस ने साक्षी से कहा कि वह आज की रात और इस घर में रह ले. कल सुबह ही वह उसे और उस के बच्चों के साथ इस घर और अपनी पूरी प्रौपर्टी से बेदखल कर के वह अपनी प्रेमिका के साथ रहने के लिए चला जाएगा.

लेकिन उसे क्या पता था कि कौन घर छोड़ कर जाएगा. प्रेमिका के साथ रहने का सपना उस का सपना ही रह जाएगा. साक्षी ने रोजाना की तरह पति को शाम का खाना परोस कर दिया. खाना खाने के बाद उस ने साक्षी की तरफ नफरत से देखा और सो गया.

उस के सो जाने के बाद साक्षी उस का कमरा खुला छोड़ कर दूसरे कमरे में सोने के लिए चली गई. लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. उसे प्रमोद लुटे के आने का इंतजार था.

रात करीब एक बजे जब प्रमोद लुटे के आने की आहट हुई तो साक्षी ने उठ कर घर का मेन दरवाजा खोल दिया. प्रमोद लुटे अपने 2 साथियों के साथ एक मोटरसाइकिल से आया था. नींद में सोए शैलेश की उन लोगों ने गला दबा कर हत्या कर दी.

शैलेश की हत्या करने के बाद तीनों ने शव को उठा कर के उस की हुंडई सोनाटा इंबेरा कार की डिक्की में डाला और उसे ठिकाने लगाने के लिए प्रमोद लुटे अपने एक साथी के साथ गणेशपुरी पुलिस थाने की सीमा में ले गया.

शव को झाडि़यों में डाल कर उन्होंने उस के ऊपर पेट्रौल डाला और आग लगा दी. इस के बाद उस की कार को घटनास्थल से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर ले जा कर लावारिश हालत में छोड़ कर वे फरार हो गए. लाश ठिकाने लगाने की जानकारी प्रमोद ने साक्षी को भी दे दी थी.

अभियुक्तों ने पुलिस से बचने की लाख कोशिश की लेकिन क्राइम ब्रांच अधिकारियों की नजर से अधिक दिनों तक फरार नहीं रह सके. 24 अप्रैल, 2018 को क्राइम ब्रांच ने प्रमोद बबन लुटे और शैलेश की पत्नी साक्षी निमसे को अपनी गिरफ्त में ले लिया. दोनों से विस्तृत पूछताछ के बाद क्राइम ब्रांच ने उन्हें आगे की तफ्तीश के लिए गणेशपुरी पुलिस थाने के अधिकारियों को सौंप दिया.

गणेशपुरी पुलिस ने उन के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें तलोजा जेल भेज दिया. कथा लिखने तक इस हत्याकांड में शामिल 2 अन्य अभियुक्तों का पुलिस पता नहीं लगा सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मध्य प्रदेश : जाति आधारित इम्तिहान नतीजे सरकार की सोचीसमझी चाल

मध्य प्रदेश अपनेआप में अजबगजब प्रदेश है. यहां एक तरफ इस की कुदरती खूबसूरती अपनी ओर खींचती है, तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश में होने वाले निराले काम पूरे देश में किसी अजूबे से कम नहीं होते.

हाल ही में धार जिले में हुई आरक्षक भरती चर्चा का मुद्दा रही और उस के बाद एमपीबीएसई ने जब 10वीं और 12वीं जमात के इम्तिहानों के नतीजों का ऐलान किया, तो वे भी सुर्खियों में रहे.

इस के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़े से पंडाल में छात्रों और मीडिया के सामने नतीजों का ऐलान कर के वाहवाही लूटी.

यहां भी मध्य प्रदेश ने पूरे देश के राज्यों से अलग हट कर काम किया. उस ने बोर्ड परीक्षा का नतीजा ही सामान्य, अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग बना कर जारी कर दिया.

इस में प्रदेश सरकार की क्या मंशा है, यह तो वही बता सकती है, लेकिन जानकारों की मानें तो यह सोचीसमझी चाल के तहत किया गया काम है. इसी साल के आखिर में मध्य प्रदेश में विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं, ऐसे में शिवराज सिंह चौहान चाहते हैं कि एक बार फिर उन्हीं के सिर प्रदेश के सरताज होने का ताज सजे.

एक तरफ सरकार बारबार यह जताने की कोशिश करती है कि यहां सभी को बराबर के मौके दिए जा रहे हैं, किसी के साथ नाइंसाफी नहीं की जाएगी, लेकिन जाति आधारित नतीजा जारी करने की क्या जरूरत आ पड़ी, इस बारे में कोई कुछ नहीं बोल रहा है.

इस फैसले पर फजीहत होते देख सरकार ने यह कहना शुरू कर दिया कि इस के पीछे मंशा साफसुथरी है. सरकार चाहती है कि प्रदेश के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के छात्रों के साथ किसी भी तरह का भेदभाव न हो और उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का फायदा आसानी से मिल सके.

अब यहां सवाल उठना लाजिमी है कि क्या अभी तक उन की भलाई के लिए शिवराज सरकार कुछ नहीं कर रही थी? क्या जाति आधारित इम्तिहान के नतीजों से ही उन की भलाई की जा सकती है?

इस मुद्दे ने विपक्षी पार्टी कांग्रेस को बैठेबिठाए नया हथियार दे दिया है, जिसे विपक्ष ने सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.

मध्य प्रदेश में अपनी जमीन तलाशती कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने सरकार की जम कर खिंचाई की. उन्होंने ट्विटर पर अपनी मंशा जाहिर की, ‘भाजपा प्रदेश को जातिगत आधार पर बांटने का काम कर रही है. धार में एससीएसटी गुदवाने के बाद अब हाईस्कूल के नतीजों को जातिगत आधार पर घोषित करना भाजपा की निम्नस्तरीय सोच को दिखाता है.’

इस फैसले के बाद सरकार चौतरफा घिरती नजर आ रही है. इस के बचाव में वह जो तर्क दे रही है, वे उसी पर भारी पड़ रहे हैं.

प्रदेश के स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी ने भी इस कदम की आलोचना की और कहा कि इस तरह के आंकड़ों को सार्वजनिक रूप से जारी नहीं किया जाना चाहिए. इस से समाज में वर्ग विभेद की खाई और ज्यादा गहरी होगी. जो भी जिम्मेदार हैं उन सभी के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए.

यह पहली बार नहीं है कि मध्य प्रदेश बोर्ड ने जाति आधारित नतीजों का ऐलान किया. बोर्ड साल 2016 से ऐसा कर रहा है. स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी भी इस बात से अनजान थे कि बोर्ड ने जाति आधारित नतीजे साल 2016 और साल 2017 में जारी किए थे.

स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी ने सफाई देते हुए कहा कि सरकार की मंशा में किसी तरीके का खोट नहीं था. दरअसल, हम चाहते थे कि प्रदेश के जो मेधावी छात्रों को लैपटौप 85 फीसदी अंक में दिया जाता है, एससी और एसटी छात्रों को 75 फीसदी अंक लाने पर इस का फायदा मिल सके.

कमलनाथ के ट्वीट पर दीपक जोशी ने कहा, ‘कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ द्वारा लगाए गए आरोप निराधार हैं और भाजपा का ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है. यह एक मानवीय त्रुटि के चलते हुआ होगा.’

यहां एक बात और बताते चलें कि कुछ दिनों पहले प्रदेश के धार जिले में पुलिस आरक्षक की भरतियां चल रही थीं, जिन में धार जिला अस्पताल में एक अजीब वाकिआ देखने में आया जो हर जगह चर्चा की बात बन गया.

पुलिस भरती में चयन के लिए स्वास्थ्य परीक्षण किया जाता है. यही प्रक्रिया यहां भी अपनाई गई, लेकिन कुछ अनोखा कर के. स्वास्थ्य परीक्षण में अभ्यर्थियों की पहचान के लिए उन के सीने पर उन का वर्ग लिख दिया गया, जिन की तसवीरों ने सोशल मीडिया पर बहस करने के लिए बैठेबिठाए लोगों को गरमागरम मुद्दा दे दिया. ऐसी तसवीरें सामने आईं जहां अभ्यर्थियों के सीने पर एससीएसटी लिखा गया था.

दरअसल, यह पूरा मामला आगामी विधानसभा चुनाव में एसटीएसटी के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सोचीसमझी चाल है.

हैरानी की बात यह है कि स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी को पिछले 2 साल से इस की भनक तक नहीं लग पाई. क्या ऐसा मुमकिन हो सकता है?

आंखें खोलने वाले आंकड़े

आज के दौर की राजनीति में जाति के नाम पर जो जहर घोला जा रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है पर आजकल सोशल मीडिया पर जाति के आधार पर मिलने वाले आरक्षण को ले कर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों पर जिस तरह निशाना साधा जा रहा है वह भी अपनेआप में शर्मनाक है.

माध्यमिक शिक्षा मंडल, मध्य प्रदेश, भोपाल ने साल 2016 से अब तक जाति के आधार पर इम्तिहान के जो नतीजे दिए हैं, उन को ध्यान से देखने पर कुछ दिलचस्प बातें सामने आती हैं.

साल 2018 के हायर सैकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट के इम्तिहान में अनुसूचित जाति के 92669, अनुसूचित जनजाति के 78438 और अन्य पिछड़ा वर्ग के 303388 छात्रों का रजिस्टे्रशन हुआ था जबकि सामान्य वर्ग के 125261 छात्र रजिस्टर किए गए थे.

यहां फर्स्ट डिविजन लाने वाले छात्रों के आंकड़े बड़े रोचक थे, क्योंकि अमूमन ऐसा माना जाता है कि जो छात्र आरक्षण की बैसाखी पर चलते हैं, वे जानबूझ कर पढ़ाई नहीं करते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि कैसे भी नंबर हों, आगे जा कर उन्हें सरकारी नौकरी तो मिल ही जाएगी.

स्कूल के लैवल तक आरक्षित छात्रों को फीस कम होने का फायदा जरूर मिलता होगा, लेकिन अगर यह कहा जाए कि उन्हें नंबर देने में भी आरक्षण काम आता है तो ज्यादती होगी.

अनुसूचित जाति के 92669 छात्रों में से 31237, अनुसूचित जनजाति के 78438 छात्रों में से 21178 और अन्य पिछड़ा वर्ग के 303388 छात्रों में से 125916 छात्रों ने फर्स्ट डिविजन हासिल की, जबकि सामान्य वर्ग के 125261 छात्रों में से 55764 छात्रों ने यह कारनामा किया.

फर्स्ट डिविजन मतलब इम्तिहान में 60 या 60 फीसदी से ज्यादा नंबर लाना. आरक्षण का फायदा लेने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के कुल 474495 छात्रों में से 178331 छात्रों ने फर्स्ट डिविजन का आंकड़ा छुआ या उसे पार किया, जो किसी लिहाज से कम नहीं है, क्योंकि सामान्य वर्ग के 125261 छात्रों में से 55764 छात्र फर्स्ट डिविजन लाए थे. मतलब 37.58 फीसदी आरक्षित छात्रों ने, जबकि सामान्य वर्ग के 44.51 फीसदी छात्रों ने फर्स्ट डिविजन हासिल की, जिस में तकरीबन 7 फीसदी का ही अंतर है.

इन आंकड़ों से देशभर के 12वीं जमात के छात्रों के इम्तिहान नतीजों का अंदाजा लगाया जा सकता है. कहने का मतलब यह है कि स्कूली लैवल पर आरक्षित छात्र भी अब मेहनत कर रहे हैं. वे खूब फर्स्ट डिविजन ला रहे हैं जो भारत के भविष्य के लिए अच्छे संकेत हैं.

अविश्वास प्रस्ताव और राहुल गांधी

शुक्रवार 20 जुलाई को पहले अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस और विपक्ष के मुख्य वक्ता राहुल गांधी ने कुछ मिनटों तक नरेंद्र मोदी की जम कर खिंचाई की और जीएसटी, काले धन, रफाल लड़ाकू विमानों, चौकीदारी,नोटबंदी, बढ़ती बेरोजगारी, खुलेआम निर्दोषों के साथ भगवा भीड़ों का हमला और प्रधानमंत्री की चुप्पी पर भरपूर कटाक्ष किए. अचानक उन्होंने अपने को भाजपाइयों द्वारा पप्पू कहे जाने की बात खुले में कह कर 20-25 कदम चल कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की झप्पी भी ले ली.

अपनी सीट पर लौट कर उन्होंने अपने साथियों को आंख भी मारी जो लोकसभा टीवी के कैमरों ने कैद कर ली और पूरे जोरशोर से झप्पी और आंख मारना विवाद का विषय बन गया.

अब यह निर्भर करता है कि कौन मोदी बनाम विपक्ष के किस पाले में है. जो मोदी समर्थक हैं वे इसे नाटक समझते हैं और प्रधानमंत्री के नजरिया के खिलाफ मानते हैं. जो विपक्ष में हैं वे इसे मास्टर स्ट्रोक मानते हैं.

राहुल गांधी ने 50 मिनट में जो नरेंद्र मोदी की आलोचना की उस के बाद झप्पी लेना नरेंद्र मोदी की कार्यशैली का हिस्सा ही है. नरेंद्र मोदी नवाज शरीफ और शी जिनपिंग की झप्पियां लेने में मशहूर हैं जबकि चीन और पाकिस्तान दोनों से संबंध इन झप्पियों के बावजूद सुधरे नहीं हैं. नवाज शरीफ तो अब पाकिस्तान की जेल में हैं और झप्पी लेने वाला राजनीतिक या व्यक्तिगत रूप से उन्हें सांत्वना तक नहीं दे रहा. झप्पी तो सिर्फ एक पौलीटिक्स पौस्चर है जो डोनाल्ड ट्रंप उत्तरी कोरिया के किम जोंग उन तक के साथ इस्तेमाल करते हैं.

राहुल गांधी ने यह साफ कह दिया है कि अब वे नरेंद्र मोदी से भयभीत नहीं हैं. वे बराबरी की हैसियत रखते हैं और प्रधानमंत्री के क्रिया कलापों पर खराखरा बोल सकते हैं. वे विपक्ष के दमदार नेता हैं. नरेंद्र मोदी को उकसा सकते हैं. तभी अविश्वास प्रस्ताव के उत्तर में नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की असफलताओं का जवाब इतिहास में खोजते रहे. उन्हें सरदार पटेल, चरणसिंह, चंद्रशेखर, देवगौड़ा, गुजराल याद आ रहे थे, जबकि पहली गैर कांग्रेस सरकार को 1979 में भारतीय जनता पार्टी के कारण ही जनता पार्टी में विभाजन हुआ सरकार गिरी थी. लेकिन उन्होंने सरकार की उपलब्धियों को तो जल्दीजल्दी आंकड़ों से रिकार्ड के लिए पढ़ डाला पर तीखे बाण केवल जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी पर चलाए. मानो आज देश पर वे राज कर रहे हैं.

राहुल गांधी के तीखे सवालों और झप्पी का असर यह हुआ कि सरकार के कामकाज तो बट्टे खाते में चले गए और नरेंद्र मोदी के भाषण से लगने लगा मानो कि राज तो नेहरू परिवार ही कर रहा है और नरेंद्र मोदी एक विपक्षी नेता की तरह उस परिवार के गड़ेमुर्दे उखाड़ कर उसे सत्ता से हटाने की कोशिश में लगे हैं.

राहुल गांधी के व्यंग्य बांणों और झप्पी ने नरेंद्र मोदी को सरकार की सफाई देने की जगह भागीदार की अपनी परिभाषा देने पर मजबूर कर दिया. नरेंद्र मोदी यह साबित करने में लगे रहे कि राहुल गांधी को विरासत में जो राजगद्दी मिली है वह उस के लायक नहीं है और वे खुद एक गरीब घर के नेता की हैसियत से शायद राजघराने का विरोध करने में लगे हैं.

अविश्वास प्रस्ताव में भारी जीत के कारण भाजपा पर कोई आंच तो नहीं पर जिस तरह अगले ही दिन जीएसटी में बीसियों चीजों पर टैक्स कम हुआ और 5 करोड़ तक की टर्नओवर वाले व्यापारियों को मासिक की जगह त्रैमासिक रिटर्न भरने की छूट मिली. इस से साफ है कि राहुल के बाण मर्म पर लगे हैं. और भाजपा सरकार की जिद और हम ही सही हैं, हमेशा ही सही हैं का भाव टूट रहा है. शायद अब हर फैसला अब कांग्रेसी बाणों की नजर में लिया जाएगा. अगले दिन राजस्थान में एक भगवा भीड़ द्वारा पीटपीट कर हत्या करने पर गृहमंत्री और मुख्यमंत्री ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. पहले वे इस पिटाई का खुला समर्थन करते थे.

मेरी बेटी मेरा अभिमान : इन जाबांज बेटियों को करें सलाम

नजरें तो सभी की एक सी होती हैं, लेकिन नजरिया एक जैसा नहीं होता. भारतीय समाज में आज भी बेटियों को ले कर लोगों के नजरिए में खास फर्क देखने को नहीं मिल रहा. हां, यह बात अलग है कि पहले के मुकाबले हालात कुछ बेहतर हैं. जिस नजरिए से आप अपने बेटों को देखते हैं अगर उसी नजरिए से बेटियों को भी देखना शुरू कर दें तो उन का भविष्य भी बदल सकता है.

हमारे देश में पुराने समय से बेटा और बेटी को ले कर हमेशा से भेदभाव होता रहा है. लेकिन आज 21वीं सदी में जिस तरह से तकनीक लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है, ठीक उसी तरह हमारी सोच भी प्रगतिवादी होनी चाहिए. पिछड़े इलाकों में आज भी यह रिवाज है कि पहले घर के लड़के खाना खाएंगे उस के बाद लड़कियां. लड़कियों से शिक्षा को ले कर आज भी नाइंसाफी की जा रही है. मादा भू्रण हत्या, बलात्कार, लिंग असमानता जैसी भीषण समस्याएं घरघर में देखने को मिलती हैं

21वीं सदी में जीने के बावजूद लड़कियों को ले कर समाज में अलग तरह की सोच विकसित है. यही वजह है कि रोजाना देश में कहीं न कहीं किसी बच्ची को जन्म लेने से पहले मौत की नींद सुला दिया जाता है. किसी को छींटाकशी से दोचार होना पड़ता है, तो कोई बलात्कार का शिकार होती है. इन सारे मामलों में किसी भी तरह से लड़कियों का कोई दोष नहीं होता. लेकिन समाज में उन्हें ही गिरी नजरों से देखा जाता है.

जानिए, कुछ ऐसी जाबांज बेटियों के बारे में जो सामाजिक भेदभाव, घोर अभाव के बावजूद शीर्ष तक पहुंची और दूसरों के लिए मिसाल बन गईं:

दीपिका कुमारी

झारखंड की राजधानी रांची के एक छोटे से गांव रातू में इन का जन्म हुआ. पिता औटो चलाने के साथसाथ मजदूरी कर के परिवार का खर्च चलाते थे. इतने गरीब परिवार से संबंध रखने के बावजूद दीपिका ने तीरंदाजी के मैदान में दुनिया को अपना मुरीद बना लिया. दीपिका की मां गीता बताती हैं, ‘‘बचपन में दीपिका एक दिन मेरे साथ जा रही थी कि रास्ते में एक आम का पेड़ दिखा. दीपिका ने कहा कि वह आम तोड़ेगी. मगर, जब मैं ने उसे मना किया कि आम बहुत ऊंची डाल पर लगा है वह नहीं तोड़ पाएंगी, तो उस ने कहा कि नहीं वह इसे तोड़ कर ही रहेगी. फिर क्या था उस ने जमीन से पत्थर उठा कर निशाना साधा. पत्थर सीधे टहनी से टकराया और आम गिर गया. दीपिका का वह निशाना देख कर मुझे हैरानी हुई.

‘‘दीपिका जो लक्ष्य बना लेती है, उसे हासिल कर के रहती है. जिस गांव में आज भी बिजलीपानी की सप्लाई तक नहीं है, वहां तीरंदाजी के दम पर पूरी दुनिया में वही नाम कमा सकता है, जिस का लक्ष्य एकदम सटीक हो.’’

दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब उन्होंने पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी जौइन की. तीरंदाजी में उन के प्रोफैशनल कैरियर की शुरुआत 2006 में हुई जब उन्होंने टाटा तीरंदाजी अकादमी जौइन की. यहां उन्होंने तीरंदाजी के दांवपेच सीखे.

इस युवा तीरंदाज ने 2006 में मैरीदा, मैक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया. ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थीं. यहां से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नंबर वन तीरंदाज का तमगा हासिल कराया. महज 15 वर्ष की दीपिका ने अमेरिका में हुई 11वीं यूथ आर्चरी चैंपियनशिप जीत कर अपनी बेजोड़ उपस्थिति दर्ज कराई थी. फिर एशियन गेम्स में कांस्य, कौमनवैल्थ खेलों में महिला एकल और टीम के साथ 2 स्वर्ण हासिल किए. राष्ट्रमंडल खेल

2010 में उन्होंने न सिर्फ व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण जीता, बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया.

भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में 2010 की जबजब चर्चा होगी तीरंदाज दीपिका को उन के स्वर्णिम प्रदर्शनों के लिए याद किया जाएगा. फिर 2011 में इस्तांबुल में और 2012 में टोक्यो एकल खेलों में रजत पदक जीता. इस तरह दीपिका जीत पर जीत हासिल करती गईं. इस के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार भी दिया गया. पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने दीपिका को सम्मानित किया.

रुवेदा सलाम

जहां रातदिन आतंकियों का खतरा मंडराता हो, वहां की बेटी ने देश की सब से प्रतिष्ठित परीक्षा में कश्मीर घाटी की पहली मुसलिम महिला आईपीएस बनने का गौरव हासिल कर के पूरी दुनिया में नाम रोशन कर दिया. रुवेदा के पिता अकसर कहा करते थे कि बेटी आप को एक अफसर बनना है. अपने पिता की यही बात रुवेदा के जेहन में बस गई. उन्होंने पिता के सपने को साकार किया.

कश्मीर का कुपवाड़ा ऐसा इलाका है, जहां सब से ज्यादा आतंकी वारदातें होती हैं, वहां की रहने वाली रुवेदा को पिता की सीख लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रही. वे यहीं नहीं रुकी. उन्होंने दोबारा यूपीएससी का ऐग्जाम दिया. इस बार उन का आईएएस के लिए चयन हुआ. फिलहाल वे मिनिस्ट्री औफ फाइनैंस में काम कर रही हैं. रुवेदा इस से पहले मैडिकल परीक्षा, कश्मीर ऐडमिनिस्टे्रटिव सर्विसेज केएएस और इंडियन पुलिस सर्विसेज आईपीएस की परीक्षा में सफलता हासिल कर चुकी हैं. आईपीएस में चयन के बाद उन्हें चेन्नई में असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया था.

साइना नेहवाल

साइना का जन्म हिसार, हरियाणा के एक जाट परिवार में हुआ. साइना का बचपन से ही बैडमिंटन की तरफ रुझान रहा, जिस में पिता हरवीर सिंह ने पूरा सहयोग और प्रोत्साहन दिया. साइना अब तक कई बड़ी उपलब्धियां अपने नाम कर चुकी हैं. वे जूनियर विश्व बैडमिंटन विजेता रह चुकी हैं. ओलिंपिक खेलों में महिला एकल बैडमिंटन का कांस्य पदक जीतने वाली वे देश की पहली महिला खिलाड़ी हैं. उन्होंने 2009 में इंडोनेशिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम किया. यह उपलब्धि उन से पहले किसी अन्य भारतीय महिला को हासिल नहीं हुई थी. दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक हासिल किया था.

2015 में नई दिल्ली में योनेक्स सनराइज इंडिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन प्रतियोगिता के सेमीफाइनल में विश्व चैंपियन जापान की युई हाशिमोतो को 44 मिनट में 21-15, 21-11 से हराने के साथ ही दुनिया की शीर्ष खिलाड़ी बनीं और फाइनल मैच में थाईलैंड की रत्चानोक इंतानोन को हरा कर 29 मार्च, 2015 को योनेक्स सनराइज इंडिया ओपन सुपर सीरीज बैडमिंटन टूरनामैंट में महिला एकल खिताब की विजेता बनीं. साइना अपने खेल के दम से चीनी खिलाडि़यों के वर्चस्व को काफी हद तक कम करने में कामयाब रहीं.

हाल ही में साइना ने 2018 में आस्टे्रलिया में हुए कौमनवैल्थ गेम्स में हमवतन पीवी सिंधु को फाइनल में हरा कर गोल्ड मैडल जीता.

उजमा नाहिद

सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से वंचित महिलाओं को सशक्त बनाने के इन के प्रयासों के मद्देनजर प्रसिद्घ सामाजिक कार्यकर्त्ता और अंतर्राष्ट्रीय महिला एलायंस (आईआईडब्ल्यूए) की संस्थापक उजमा नाहिद को विश्व व्यापार केंद्र में आयोजित कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. ग्लोबल इकोनौमिक समिट में श्रीलंका के काउंसिल जनरल ने उजमा नाहिद को यह पुरस्कार प्रदान किया.

एक बार उजमा ने सभा को संबोधित करते हुए एक ऐसी मां की कहानी सुनाई जिसे उन के 5 बेटों ने घर से निकाल दिया था. इस घटना से आहत हो कर उन्होंने महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रण लिया. आईआईडब्ल्यूए महिलाओं की एक गैरसरकारी संस्था है और 3000 से ज्यादा महलाएं उच्च गुणवत्ता वाले 150 उत्पाद यहां बना कर अपना परिवार पाल रही हैं.

उजमा नाहिद ने एक मुहिम चला रखी है कि समान काम के बदले समान वेतन. समाज में आज के समय में पुरुष और महिला मजदूरों में वेतन को ले कर फर्क देखने को मिला है, जिस के खिलाफ इस तरह के अनेक संगठन मुहिम चला रहे हैं.

कल्पना चावला

भारत की बेटी कल्पना चावला करनाल, हरियाणा में जन्मी थीं. वे अपने परिवार के 4 भाईबहनों में सब से छोटी थीं. घर में सब उन्हें प्यार से मोंटू कहते थे. कल्पना की शुरुआती पढ़ाई ‘टैगौर बाल निकेतन स्कूल’ में हुई. कल्पना जब 8वीं कक्षा में पहुंचीं तो उन्होंने इंजीनियर बनने की इच्छा प्रकट की. उन की मां ने अपनी बेटी की भावनाओं को समझा और आगे बढ़ने में मदद की. पिता उन्हें चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे, लेकिन कल्पना बचपन से ही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थीं. कल्पना चावला एक लगनशील और जुझारु प्रवृत्ति की महिला थीं.

अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उन की अंतिम यात्रा साबित हुई. सभी तरह के अनुसंधान तथा विचारविमर्श के बाद इस दुनिया में वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल में अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी, वह उन के लिए मौत की वापसी साबित हुई. यह हादसा अब इतिहास की बात हो गया है.

2003 में कोलंबिया अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश करते ही टूट कर बिखर गया. देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उस में सवार  सभी 7 यात्री काल के ग्रास बन गए. लेकिन इन के अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को आज भी मिल रहा है.

कल्पना चावला अकसर कहती थीं, ‘‘मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं. प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूंगी.’’

ये सभी अपनी लगन और परिवार की सकारात्मक सोच के वजह से इस मुकाम तक पहुंचीं. अगर इन के परिवार में बेटा और बेटी का फर्क किया जाता तो शायद ये इस मुकाम तक अपनी चमक नहीं बिखेर पातीं.

शिक्षा एक ऐसा पहलू है. जिस के चलते लड़कियां पिछड़ी रहती थीं. इन के इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे परिवार के साथसाथ समाज की प्रगतिवादी सोच भी रही. इसलिए घर में बेटा हो या बेटी सभी को शिक्षा के समान अवसर दें ताकि आप की बेटियां भी आगे बढ़ कर आप का नाम रोशन कर सकें.

सेहत : कोढ़ लाइलाज नहीं है

कोढ़ बीमारी के शिकार ज्यादातर वे लोग होते हैं जो निचले सामाजिक और माली तबके से आते हैं. इस बीमारी के बैक्टीरिया हवा द्वारा ज्यादा फैलते हैं. पीडि़त शख्स की चमड़ी को छूने, उस के छींकने, खांसने या थूकने से यह बीमारी सेहतमंद आदमी को भी अपनी चपेट में ले लेती है.

कोढ़ होने की वजह

यह बीमारी माइक्रोबैक्टीरियम लैप्री की वजह से होती है जो सब से पहले तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है. इस से चमड़ी और पैरों की तंत्रिकाओं पर खासतौर पर असर होता है और इन में सूजन आ जाती है. तंत्रिकाएं अक्रियाशील हो जाती हैं जिस के चलते उस हिस्से की चमड़ी सुन्न हो जाती है.

जहांजहां तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं वहां की मांसपेशियों की ताकत भी धीरेधीरे कम होने लगती है. बहुत ज्यादा भीड़भाड़ और गंदगी इस बीमारी को फैलाने में मदद करती है.

जिन लोगों में बीमारियों से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है उन में इस बीमारी के बढ़ने का खतरा कम होता है या उन के शरीर के कम हिस्सों की तंत्रिकाएं ही प्रभावित होती हैं. इन मरीजों की बीमारी को ट्यूबरक्लौयड लैप्रोसी कहते हैं,

पर ऐसे मरीज दूसरे लोगों के लिए संक्रमणकारी नहीं हैं.

ऐसे लोग जिन में बीमारी से लड़ने की ताकत कम होती है, वे इस बीमारी को फैलाने वाले बैक्टीरिया से बेहतर तरीके से नहीं लड़ पाते हैं. इस के चलते यह बीमारी बहुत ज्यादा फैल जाती है.

कोढ़ के लक्षण

इस की एक दशा ट्यूबरक्लौयड में मरीज के शरीर का एक या एक से ज्यादा हिस्सा सुन्न हो जाता है. ऐसे हिस्सों की चमड़ी सूखी हो जाती है और वहां पिगमैंटेशन कम हो जाता है जिस से इन हिस्सों की चमड़ी हलके रंग की हो जाती है या कभीकभी लाल व मोटी हो सकती है. कई बार इन जगहों के बाल भी झड़ जाते हैं. वहां की तंत्रिकाएं फूल जाती हैं. उन का आकार बढ़ जाता है और उन में दर्द भी होता है.

दूसरे किस्म के कोढ़ लैप्रोमैटस लैप्रोसी में चमड़ी का ज्यादा भाग शामिल हो जाता है और पूरे शरीर की तंत्रिकाओं पर बुरा असर पड़ता है जिस से वे हिस्से सुन्न हो जाते हैं. सुन्न होने के चलते  बारबार फोड़े होते हैं और जलन होती है. ऐसे मरीज को उस की चमड़ी के सुन्न होने के चलते कुछ महसूस नहीं होता है, लेकिन बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती जाती है. इस वजह से हाथपैरों की उंगलियां छोटी हो जाती हैं.

इस बीमारी में चमड़ी का खराब होना और मांसपेशियों का कमजोर हो जाना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. बैक्टीरिया के संक्रमण के बाद यह बीमारी अंदर ही अंदर पनपती रहती है और बाहरी तौर पर इस के लक्षण 2 से 7 साल बाद दिखाई देते हैं. कई लोगों में तो ये लक्षण 20 साल बाद दिखाई देते हैं.

संक्रमण होने और लक्षण दिखाई देने के बीच के समय को इनक्यूबेशन पीरियड कहते हैं इसलिए डाक्टरों के लिए यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि मरीज कब और कहां संक्रमण की चपेट में आया था. बच्चों में बड़ों की तुलना में संक्रमण होने का डर ज्यादा होता है.

डरें नहीं कोढ़ से

कोढ़ के मरीज आमतौर पर तब तक बहुत बीमार नहीं दिखाई देते हैं जब तक कि उन का शरीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है. प्रतिक्रिया उन लोगों में एक अच्छा लक्षण हो सकता है जिन का इलाज चल रहा है जो यह दिखाता है कि उन की बीमारी में सुधार हो रहा है. उन के प्रभावित हिस्सों में लालपन हो सकता है या सूजन आ सकती है. उस हिस्से की तंत्रिकाएं फूल जाती हैं और उन में दर्द भी हो सकता है. यह इस बात का संकेत हो सकता है कि बीमारी ठीक हो रही है या और गंभीर हो रही है.

यह प्रतिक्रिया इरीथेमा नोडोसम लैप्रोसम कहलाती है. मरीज को बुखार भी आ सकता है, उत्तेजना, दर्दभरी सूजन हो सकती है, पूरे शरीर या जोड़ों में दर्द हो सकता है.

हालांकि इस बीमारी का इलाज लंबा चलता है, लेकिन यह सौ फीसदी ठीक हो जाती है.

चाइल्ड ट्रैफीकिंग पर सचिन गुप्ता की विचारोत्तेजक फिल्म ‘‘पाखी’’

नाट्य भूषण से सम्मानित और 14 सामाजिक नाटकों के लेखक व निर्देशक सचिन गुप्ता कई लघु फिल्में भी लिख चुके हैं. 2014 में बतौर लेखक व निर्देशक उनकी पहली फीचर फिल्म ‘‘पराठे वाली गली’’ प्रदर्शित हुई थी. कुछ दिन पहले प्रदर्शित लघु फिल्म ‘‘पिहू’’ ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की थी. अब वह ‘‘पाखी’’ लेकर आए रहे हैं. दस अगस्त को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘पाखी’’ चाइल्ड ट्रैफीकिंग पर आधारित है. फिल्म की कहानी के केंद्र में 10 साल की लड़की पिहू की सत्य घटना है, जिसकी शादी एक 60 वर्ष के बुढ़े के साथ होती है और फिर उसे देह व्यापार के लिए बेच दिया जाता है.

स्वतंत्रता के 73 वर्षों के बाद भी विवाह की आड़ में लड़कियों का व्यापार किया जा रहा है. बचपन की मासूमियत और स्कूल जाने की उम्र में बाल तस्करी के जरिए वेश्यावृत्ति की अंधेरी गुफा में कम उम्र की लड़कियां लगातार फंस रही हैं. पाखी को उसके प्रेमी ने यौन व्यापार में फंसा दिया है. वह खुद को वेश्यावृत्ति की अंधेरे गुफा में पाती है.

फिल्म ‘‘पाखी’’ के लेखक व निर्देशक सचिन गुप्ता कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म ‘पाखी’ सामाजिक संकट की गहराई के साथ मानवीय जीवन मूल्यों की पड़ताल करती है. प्राकृतिक संघर्ष से जूझ रही चाइल्ड ट्रैफीकिंग में फंसी बच्चियां अपने अस्तित्व की तलाश करते हुए मानव तस्करी के पीछे की अंधेरी दुनिया की कटु सच्चाई को उजागर करती है. प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 27 मिलियन वयस्क और 14 मिलियन छोटी बच्चियां मानव तस्करी के कारण पीड़ित हैं. परिस्थितियों के साथ संघर्ष, अस्तित्व व जीत के साथ साजिश को रेखांकित करती ‘पाखी’ ऐसा सामाजिक दर्पण है, जिसे देखकर कोई भी इंसान आत्म विवेचना करने से बच नहीं सकता.’’

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता लेखक व निर्देशक सचिन गुप्ता आगे कहते हैं- ‘‘हमारी फिल्म मानव व्यापार की दुनिया की वास्तविकताओं को सामने लाती है. और अस्तित्व की पहेली की परतों को अलग अलग करती है. एक लड़की के संघर्ष और अस्तित्व की कहानी, जो अंधेरे मकड़जाल में उलझी हुई है, भाग्य की मोड़ के साथ यह अपने को जीवित रखने के संघर्ष की कहानी है. इसमें हार होगी या जीत होगी? यह उन लड़कियों की भी कहानी है, जो अभी भी वेश्यालय में बंदी हैं.’’

फिल्म को आजादी से ठीक पांच दिन पहले 10 अगस्त को सिनेमाघरों में ले जाने पर निर्देशक सचिन गुप्ता ने कहा- ‘‘आज भी देश की स्वतंत्रता के 73 वर्षो के बाद भी कम उम्र में लड़की की शादी करके उसको देह व्यापार में धकेल दिया जाता है. यह कैसी स्वतंत्रता है? हमें कहां ले जा रही है? हम नैतिक मूल्यों को लेकर जल्द ही सोषल मीडिया पर अभियान शुरू कर रहे हैं, जो इस मुद्दे को उजागर करेगी. यह पाखी को मुक्त करने का एक कदम होगा.’’

फिल्म ‘‘पाखी’’ में निर्देशक सचिन गुप्ता ने इस सच को भी चित्रित किया है कि छोटी छोटी बच्चियों को इंजेक्शन देकर उन्हें सेक्स के धंधे में डालने के लिए बड़ा बनाया जाता है. पर विवादों से बचने के लिए उन्होंने अपनी फिल्म को किसी देश या राज्य की कहानी की बजाय कहानी एक काल्पनिक शहर की बतायी है.

इस धंधे के साथ राजनीति कहां तक जुड़ी हुई है? इस सवाल पर सचिन गुप्ता ने कहा- ‘‘हमने राजनीति के जुड़ाव की बात सीधे तो नहीं की है, पर अप्रत्यक्ष रूप से जरूर किया है. देह व्यापार से जुड़े एक नेता का किरदार है. अरब देशों सहित कई देशों में एक मिथ है कि अधेड़ उम्र के पुरुष यदि कम उम्र की लड़कियों के साथ सेक्स संबंध स्थापित करते हैं, तो उनकी उम्र बढ़ जाती है. उनकी ताकत बढ़ जाती है. यह मिथ ही गलत है. पर हमने इसे भी फिल्म में पेश किया है. हमने अपनी तरफ से इस पेशे से जुड़े किसी भी पहलू को छोड़ा नहीं है.’’

‘‘पाखी’’ के माध्यम से जागरूकता फैलाने के मकसद की बात करते हुए सचिन गुप्ता कहते हैं- ‘‘हमने कोई डौक्यूमेंट्री फिल्म नहीं बनायी है. काल्पनिक कथानक के माध्यम से हम कटु सत्य लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. हमारी फिल्म देखकर लोग जागरूक होंगे और अपने पास पनप रहे इस तरह के व्यापार को रोकने की कोशिश भी करेंगे. हम सोशल मीडिया पर भी ‘कैम्पेन फार पाखी’ भी शुरू कर रहे हैं, इससे भी जागरूकता आएगी.’’

पुरानी दिल्ली और मुंबई में ‘वेश्यालय’ व रेड लाइट इलाके का सेट बनाकर फिल्मायी गयी फिल्म के संगीतकार शिवांग माथुर, गीतकार शायरा अपूर्वा है. फिल्म के कैमरामैन नवीन कुमार हैं. पार्श्व संगीतकार निखिल कोपड़े हैं. जबकि फिल्म ‘‘पाखी’’ को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- अनामिका शुक्ला, सुमित कौल, पिहू, सिकंदर खान, अनमोल गोस्वामी व अन्य.

अनारक्षित टिकट के लिये अब नहीं लगना होगा लाइन में, रेलवे ने की नई शुरुआत

अनारक्षित टिकट के साथ यात्रा करने वाले रेल यात्रियों के लिए एक अच्छी खबर है. अब यात्रियों को अनारक्षित टिकट के लिए अनारक्षित टिकट काउंटर पर घंटो कतार में खड़े रहने की आवश्यकता नहीं है. उत्तर मध्य रेलवे ने अनारक्षित टिकटों की बुकिंग मोबाइल फोन के जरिये शुरू की है जो समूचे उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) के सभी स्टेशनो पर अब उपलब्ध है. उत्तर मध्य रेलवे के जनसंपर्क अधिकारी अमित मालवीय ने बताया कि इन टिकटों की बुकिंग हेतु यात्री “UTS on Mobile” ऐप गूगल प्ले स्टोर/ विंडो स्टोर/ऐप स्टोर अथवा आई फोन से डाउनलोड कर सकते हैं.

उन्होंने बताया कि रेलवे सूचना प्रणाली केंद्र (क्रिस) द्वारा भारतीय रेल के लिए डेवेलप किए गए इस ऐप की शुरुआत आज महाप्रबंधक उत्तर मध्य रेलवे एमसी चौहान ने की. यह ऐप नि:शुल्क है. ऐप डाउनलोड करने के बाद पेपरलेस मोबाइल टिकट की बुकिंग हेतु यात्रियो को अपना मोबाइल नंबर, निकटतम स्टेशन, ट्रेन प्रकार, श्रेणी, टिकट प्रकार, यात्रियो की संख्या एवं अक्सर चलाने वाले यात्रा मार्ग की जानकारी के साथ रजिस्टर करना होगा.

रजिस्ट्रेशन पूरा करने के बाद उनका आर वौलेट R-Wallet शून्य बैंलेंस के साथ स्वतः बन जाएगा. इस R-Wallet को यात्री यूटीएस काउंटर, वेब पोर्टल, डेबिट/क्रेडिट कार्ड के जरिए रिचार्ज करा सकते हैं. प्रत्येक रिचार्ज पर 5% का बोनस R-Wallet मे जमा हो जाएगा, जैसे 100 रुपये के रिचार्ज पर R-Wallet में 105 रुपये जमा हो जाएगा. इस तरह मोबाइल ऐप के जरिए टिकट बुक करना केवल समय ही नहीं बल्कि धन की भी बचत है.

society

मालवीय ने बताया कि हालांकि इस मोबाइल ऐप के जरिये यात्री प्रिंटेबल अनारक्षित यात्रा पेपर टिकट बुक कर सकता, पर इसकी विशेषता यह है कि इसके द्वारा पेपरलेस यात्रा टिकट, सीजन टिकट और प्लेटफार्म टिकट भी बुक कर सकते है. पेपरलेस यात्रा टिकट स्टेशन के पांच किमी. की परिधि में एवं प्लेटफार्म टिकट दो किलोमीटर की परिधि में बनाए जा सकते है. पेपरलेस टिकट स्टेशन के जियो फेंसिंग एरिया (रेलवे ट्रैक के 10-15 मीटर के अंदर) नही बनाए जा सकते है. टिक केवल यात्रा दिवस को ही बुक कराया जा सकता है.

मोबाइल फोन के जरिए पेपरलेस टिकट बुक करने के लिए यात्री को ‘बुक टिकट’ फिर “नार्मल बुकिंग’के विकल्प में जाना होगा. उसके बाद यात्री को बुक एंड ट्रैवल का चयन कर प्रस्थान एवं गंतव्य स्टेशन का चयन करना होगा. भुगतान सुनिश्चित होने के पश्चात यात्री का टिकट बुक हो जाएगा यदि यह टिकट आर वौलेट R-Wallet के जरिये बुक किया जाएगा तो कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगेगा अथवा पेमेंट गेटवे का सर्विस चार्ज लागू होगा.

पीआरओ मालवीय ने बताया कि एक बार टिकट सफलतापूर्वक बुक होने के पश्चात यात्री इसे “शो टिकट Show ticket” विकल्प में जाकर देख सकता है. पेपरलेस मोबाइल टिकट रद्द नहीं किया जा सकता है। बुक किया पेपरलेस टिकट ऐप मे स्टोर रहता है और इसे यात्री बिना इंटरनेट के भी देख सकता है.

वौच नहीं अब खरीदें स्मार्टवौच, ये रही पूरी लिस्ट

अब वौच का जमाना गया हर कोई अपने हाथों में स्मार्टवौच पहनना चाहता है. अगर आप एक अच्छा स्मार्टवौच खरीदना चाहते हैं और उसकी तलाश कर रहे हैं, तो आजकल बाजार में आपके लिए नए-नए फीचर्स से लैस कई कंपनियों की स्मार्टवौच और स्मार्टबैंड मौजूद हैं.

आज हम आपको कुछ ऐसे स्मार्टवौच के बारें में बताने जा रहे हैं, जिनमें आपको आपकी जरूरत के सारे फीचर मिल जाएंगे.

एप्पल वौच सीरीज 3

एप्पल वौच 3 बाजार में मौजूद एडवांस्ड स्मार्टवौच में से एक है. इसका लुक एप्पल वौच 2 जैसा ही है, लेकिन इस वौच में आंतरिक तौर पर कुछ बदलाव किए गए हैं. एप्पल ने भारत में अपने एलटीई वेरिएंट को एयरटेल और जियो के साथ मिलकर लौन्च किया है. इसमें कंपनी ने कई एडवांस्ड फीचर्स दिए हैं. एप्पल वौच सीरीज 3 के सभी वौच 1.53 इंच ओइलईडी डिस्प्ले के साथ हैं. आईपीएक्स7 रेटिंग वाली इस वौच में वौच ओएस 4 औपरेटिंग सिस्टम के साथ ही एस2 डुअल-कोर  प्रोसेसर लगा है. ये 8 जीबी / 16 जीबी औनबोर्ड स्टोरेज के साथ आती हैं.

आसुस जेनवौच 3

आसुस जेनवौच 3 स्मार्टवौच नए क्वालकौम स्नैपड्रैगन 2100 प्रोसेसर पर आधारित है. इस स्मार्टवौच में जेनवौच 2 की तुलना में बड़ा बदलाव डिस्प्ले को लेकर किया गया है. एंड्रायड पर चलने वाले आसुस जेनवौच 3 में 1.39 इंच का एमोलेड डिस्प्ले है, जिसका रेजोल्यूशन 400×400 पिक्सल है. इसकी पिक्सल डेनसिटी 287 पीपीआई है. जेनवौच 3 का डिसप्ले 2.5डी कौर्निंग गोरिल्ला ग्लास से कोटेड है. आईपी67 वौटर रेसिस्टेंट के साथ पेश की गई इस वौच को वर्कऔउट के समय भी पहना जा सकता है. इसमें 512एमबी रैम है. यह स्मार्टवौच तीन वर्जन में उपलब्ध है.

सैमसंग गियर स्पोर्ट

इस स्मार्टवौच में 1.2- इंच सुपर ऐमोलेड फुल सर्किल टचस्क्रीन डिस्प्ले है, जिसका स्क्रीन रेजोल्यूशन 360×360 पिक्सल है. वहीं, इसकी पिक्सल डेंसिटी 302 पीपीआई है. इस वौच की स्क्रीन कोर्निंग गोरिल्ला ग्लास 3 प्रोटेक्शन से लैस है. इसमें 1 गीगार्हट्ज डुअल-कोर चिपसेट, 768 एमबी रैम दी गई है. इस स्मार्टवौच में बिल्ट-इन जीपीएस, ब्लूटूथ के अलावा गियर स्पोर्ट वाई-फाई कनेक्टिविटी के साथ आता है. इतना ही नहीं, सैमसंग गियर स्पोर्ट स्मार्टवौच में जीरोस्कोप, बैरोमीटर, एंबियंट लाइट सेंसर और एनएफसी कनेक्टिविटी है. यह टाइजेन औपरेटिंग सिस्टम पर काम करती है. इसके साथ ही इसमें 4 जीबी इंटरनल स्टोरेज दी गई है, लेकिन एप्स और मीडिया स्टोरेज के लिए 2 जीबी स्टोरेज मिलेगी.

हुवावे वौच 2

हुवावे वौच 2 स्पोर्टी लुक देती है. यह समार्टवौच 4जी एलटीई कनेक्टिविटी, जीपीएस, ब्लूटूथ, वाई-फाई, हर्ट रेट सेंसर, एनएफसी और आईपी 68 सर्टिफिकेशन के साथ पेश की गई है. हुवावे वौच 2 में सिम कार्ड के लिए स्लौट दिया गया है, जिसमें नैनो सिम भी लगाया जा सकेगा. यह स्मार्टवौच सिर्फ वक्त बताने के लिए ही नहीं, बल्कि एक साथ कौलिंग के लिए भी मददगार होगी. इस स्मार्टवौच में 1.2-इंच 390X390 पिक्सल डिस्प्ले है. यह गूगल के नए औपरेटिंग सिस्टम एंड्रौयड वियर 2.0 पर रन करती है. इसके साथ ही यह 1.1 गीगाहर्ट्ज स्नैपड्रेगन वियर 2100 चिपसेट पर आधारित है. इसमें 4 जीबी इंटरनल स्टोरेज के साथ 768 एमबी रैम दी गई है. यह एंड्रौयड पे और गूगल असिस्टेंट फीचर को सपोर्ट करती है. इसके साथ ही हुवावे वौच 2 में एप शौटर्कट के लिए कस्टमाइजेबल बटन भी दिया गया है.

फौसिल क्यू मार्शल

फौसिल की क्यू मार्शल मार्केट में मौजूद बेस्ट स्टाइलिश स्मार्टवौच में से एक है. स्नैपड्रैगन 2100 प्रोसेसर के साथ यह स्मार्टवौच एंड्रौयड पर अच्छा परफौर्म करती है. जो लोग स्टाइल के साथ एक हाई परफौर्मेंस वाली स्मार्टवौच की तलाश कर रहे हैं, यह उनके लिए बेहतर विकल्प हो सकती है. 1.5 इंच (360X360) एलसीडी डिस्प्ले वाली इस स्मार्टवौच में एंड्रौयड 4.3+, iOS8+ औपरेटिंग सिस्टम पर चलती है. आईपी 67 रेटिंग से प्रमाणित इस स्मार्टवौच में 4 जीबी औनबोर्ड स्टोरेज दी गई है. इसकी बैटरी क्षमता करीब 24 घंटे की है.

इमरान खान मेरे कप्तान होते तो मैं बेहतर क्रिकेटर होता: संजय मांजरेकर

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में आगे चल रहे इमरान खान की पहली पहचान हमेशा उस क्रिकेट कप्तान के रूप में रहेगी जो मैदान पर नामुमकिन को मुमकिन बनाने का माद्दा रखता था और जिसने अपनी टीम को विश्व विजेता बनने का ख्वाब दिखाया और पूरा भी किया. 80 के दशक में कई अंतरराष्ट्रीय कप्तान रहे लेकिन क्रिकेट के मैदान पर एक ही अगुआ था और वह इमरान खान थे. यह वह दौर था जब भारतीय टीम अक्सर पाकिस्तान से हार जाया करती थी. अक्टूबर और नवंबर में जाड़े की धूप में अपने श्वेत-श्याम टीवी के आगे दूरदर्शन पर नजरें गड़ाए बैठे भारतीय क्रिकेटप्रेमी यही सोचा करते थे कि काश इमरान खान उनका कप्तान होता.

संजय मांजरेकर ने अपनी आत्मकथा ‘इमपरफेक्ट’ में लिखा था कि अगर इमरान खान उनके कप्तान होते तो वह बेहतर क्रिकेटर होते. अपने दौर में बेहतरीन हरफनमौला रहे इमरान खान विश्व स्तरीय तेज गेंदबाज रहे, लेकिन अपनी कप्तानी के दम पर उन्होंने जो इज्जत कमाई, उसने उन्हें अलग ही जमात में ला खड़ा किया.

भारत के पूर्व स्पिनर मनिंदर सिंह ने कहा, ‘‘वह उनका कप्तान, कोच, मुख्य चयनकर्ता सभी कुछ था. वह प्रतिभा का पारखी था और काफी जिद्दी भी.’’ उस दौर में कई हरफनमौलाओं के बीच श्रेष्ठता की जंग छिड़ी थी. कपिल देव नैसर्गिक प्रतिभा के धनी थे तो रिचर्ड हैडली बेहद अनुशासित. इयान बाथम जीनियस थे और इमरान खान दुनिया के किसी भी बल्लेबाज में दहशत भरने का माद्दा रखते थे. औक्सफोर्ड से पढ़े इमरान खान की शख्सियत सबसे जुदा थी.

वसीम अकरम उनसे ज्यादा कलात्मक गेंदबाज थे, लेकिन अगर इमरान उनके सरपरस्त नहीं होते तो करियर में वह इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते. अकरम रिवर्स स्विंग के सुल्तान कहलाए, जिन्होंने इमरान से ही यह कला सीखी थी.

एक दिन टीवी पर घरेलू मैच देखते हुए इमरान ने युवा तेज गेंदबाज को देखा. उन्होंने पीसीबी अधिकारियों से उसके बारे में पता करने को कहा. वह लड़का वकार युनूस था. इंजमाम उल हक भी इमरान की ही खोज थे, जो 1992 विश्व कप के सितारे रहे.

एक कप्तान के तौर पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि जावेद मियांदाद के साथ तालमेल बिठाने की रही. दोनों की शख्सियत जुदा थी लेकिन साथ में खेलते हुए दोनों बेहद कामयाब रहे. भारत में इमरान की लोकप्रियता जबर्दस्त हुआ करती थी. वह जहां जाते भीड़ जुट जाती. उन्होंने थम्सअप और सिंथाल का विज्ञापन भी किया.

वह 1987 विश्व कप के बाद रिटायर हो चुके थे, लेकिन उन्हें फैसला बदलना पड़ा. उन्होंने 1992 विश्व कप में वापसी की और चोट के कारण बतौर बल्लेबाज अधिक खेले. विश्व कप 1992 में टौस से पहले इयान चैपल से बात करते हुए इमरान ने सफेद रंग का टीशर्ट पहन रखा था. उसके किनारे पर बाघ बना हुआ था जो बानगी दे रहा था कि कप्तान का किरदार कैसा हो.

पाकिस्तान को विश्व कप जिताकर क्रिकेट को अलविदा कहने वाले इमरान खान जैसी विदाई विरलों को ही मिलती है. बतौर सियासतदां इमरान कैसे साबित होंगे, यह तो मुस्तकबिल ही तय करेगा लेकिन एक क्रिकेटर और कप्तान के रूप में वह हमेशा कद्दावर रहेंगे.

उपभोक्ताओं के डिटेल लीक पर पेटीएम ने ग्राहकों के लिये जारी की सफाई

फेसबुक के यूजर के डाटा लीक प्रकरण पर मचे बवाल के बीच डिजिटल भुगतान और ई-कौमर्स कंपनी पेटीएम पर ऐसा ही कुछ आरोप लगा है. हालांकि कंपनी ने सफाई दी है कि वह अपने प्रयोगकर्ताओं या यूजर्स का डाटा कभी अपने निवेशकों या किसी अन्य विदेशी इकाई से साझा नहीं करती है. पेटीएम ने कहा कि वह डाटा को स्थानीय स्तर पर भारत में स्टोर करती है, जिस पर किसी बाहरी पक्ष की पहुंच नहीं होती.

देश की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान कंपनी

वन 97 कम्युनिकेशंस लिमिटेड के पास पेटीएम ब्रांड का स्वामित्व है. यह देश की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान कंपनी है. कंपनी ने कहा कि वह अपने यूजर्स के डाटा को कभी तीसरे पक्ष की एजेंसियो, अंशधारकों, निवेशकों या विदेशी इकाई से साझा नहीं करती है. सांसद नरेंद्र जाधव ने राज्यसभा में कहा था कि चीन की अलीबाबा हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है. अलीबाबा के पास पेटीएम की हिस्सेदारी है. इसके बाद ही बवाल मचा.

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जापान के सौफ्टबैंक से किया पेटीएम ने किया करार

यह भी खबर है कि पेटीएम ने जापान के सौफ्टबैंक से पेमेंट सर्विस शुरू करने के लिए करार भी किया है. इसमें याहू जापान कौरपोरेशन भी हिस्‍सेदार है. सौफ्टबैंक की वेबसाइट पर इस संयुक्‍त उद्यम को पेपे कौरपोरेशन नाम दिया गया है. इसके तहत 2018 के अंत तक बारकोड (क्‍यूआर कोड) के साथ स्‍मार्टफोन पेमेंट सेवा शुरू होगी. इसमें पेटीएम की पेमेंट तकनीक का इस्‍तेमाल होगा.

पेटीएम ने दी सफाई

राज्‍यसभा में सवाल उठने के बाद आनन फानन में पेटीएम के प्रवक्ता ने ईमेल से भेजे जवाब में कहा कि यह एक भारतीय के स्वामित्व और नियंत्रण वाली कंपनी है. हम अपने यूजर्स के डाटा को अपने किसी निवेशक या विदेशी इकाई से साझा नहीं करते हैं.

नोएडा में कंपनी ने खरीदी जमीन

पेटीएम ने नोएडा में 10 एकड़ जमीन खरीदी है. कंज्‍यूमर इंटरनेट स्‍टार्टअप के मामले में इसे सबसे बड़ी डील कहा जा रहा है. कंपनी के कारोबार में विस्‍तार हो रहा है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह सौदा 150 करोड़ रुपए के आसपास का होगा. कंपनी जमीन सीधे नोएडा अथौरिटी से खरीद रही है इसलिए उसे शायद इससे कुछ कम कीमत चुकानी पड़ेगी.

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