कोढ़ बीमारी के शिकार ज्यादातर वे लोग होते हैं जो निचले सामाजिक और माली तबके से आते हैं. इस बीमारी के बैक्टीरिया हवा द्वारा ज्यादा फैलते हैं. पीडि़त शख्स की चमड़ी को छूने, उस के छींकने, खांसने या थूकने से यह बीमारी सेहतमंद आदमी को भी अपनी चपेट में ले लेती है.
कोढ़ होने की वजह
यह बीमारी माइक्रोबैक्टीरियम लैप्री की वजह से होती है जो सब से पहले तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है. इस से चमड़ी और पैरों की तंत्रिकाओं पर खासतौर पर असर होता है और इन में सूजन आ जाती है. तंत्रिकाएं अक्रियाशील हो जाती हैं जिस के चलते उस हिस्से की चमड़ी सुन्न हो जाती है.
जहांजहां तंत्रिकाएं प्रभावित होती हैं वहां की मांसपेशियों की ताकत भी धीरेधीरे कम होने लगती है. बहुत ज्यादा भीड़भाड़ और गंदगी इस बीमारी को फैलाने में मदद करती है.
जिन लोगों में बीमारियों से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है उन में इस बीमारी के बढ़ने का खतरा कम होता है या उन के शरीर के कम हिस्सों की तंत्रिकाएं ही प्रभावित होती हैं. इन मरीजों की बीमारी को ट्यूबरक्लौयड लैप्रोसी कहते हैं,
पर ऐसे मरीज दूसरे लोगों के लिए संक्रमणकारी नहीं हैं.
ऐसे लोग जिन में बीमारी से लड़ने की ताकत कम होती है, वे इस बीमारी को फैलाने वाले बैक्टीरिया से बेहतर तरीके से नहीं लड़ पाते हैं. इस के चलते यह बीमारी बहुत ज्यादा फैल जाती है.
कोढ़ के लक्षण
इस की एक दशा ट्यूबरक्लौयड में मरीज के शरीर का एक या एक से ज्यादा हिस्सा सुन्न हो जाता है. ऐसे हिस्सों की चमड़ी सूखी हो जाती है और वहां पिगमैंटेशन कम हो जाता है जिस से इन हिस्सों की चमड़ी हलके रंग की हो जाती है या कभीकभी लाल व मोटी हो सकती है. कई बार इन जगहों के बाल भी झड़ जाते हैं. वहां की तंत्रिकाएं फूल जाती हैं. उन का आकार बढ़ जाता है और उन में दर्द भी होता है.
दूसरे किस्म के कोढ़ लैप्रोमैटस लैप्रोसी में चमड़ी का ज्यादा भाग शामिल हो जाता है और पूरे शरीर की तंत्रिकाओं पर बुरा असर पड़ता है जिस से वे हिस्से सुन्न हो जाते हैं. सुन्न होने के चलते बारबार फोड़े होते हैं और जलन होती है. ऐसे मरीज को उस की चमड़ी के सुन्न होने के चलते कुछ महसूस नहीं होता है, लेकिन बीमारी अंदर ही अंदर बढ़ती जाती है. इस वजह से हाथपैरों की उंगलियां छोटी हो जाती हैं.
इस बीमारी में चमड़ी का खराब होना और मांसपेशियों का कमजोर हो जाना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं. बैक्टीरिया के संक्रमण के बाद यह बीमारी अंदर ही अंदर पनपती रहती है और बाहरी तौर पर इस के लक्षण 2 से 7 साल बाद दिखाई देते हैं. कई लोगों में तो ये लक्षण 20 साल बाद दिखाई देते हैं.
संक्रमण होने और लक्षण दिखाई देने के बीच के समय को इनक्यूबेशन पीरियड कहते हैं इसलिए डाक्टरों के लिए यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि मरीज कब और कहां संक्रमण की चपेट में आया था. बच्चों में बड़ों की तुलना में संक्रमण होने का डर ज्यादा होता है.
डरें नहीं कोढ़ से
कोढ़ के मरीज आमतौर पर तब तक बहुत बीमार नहीं दिखाई देते हैं जब तक कि उन का शरीर प्रतिक्रिया नहीं दिखाता है. प्रतिक्रिया उन लोगों में एक अच्छा लक्षण हो सकता है जिन का इलाज चल रहा है जो यह दिखाता है कि उन की बीमारी में सुधार हो रहा है. उन के प्रभावित हिस्सों में लालपन हो सकता है या सूजन आ सकती है. उस हिस्से की तंत्रिकाएं फूल जाती हैं और उन में दर्द भी हो सकता है. यह इस बात का संकेत हो सकता है कि बीमारी ठीक हो रही है या और गंभीर हो रही है.
यह प्रतिक्रिया इरीथेमा नोडोसम लैप्रोसम कहलाती है. मरीज को बुखार भी आ सकता है, उत्तेजना, दर्दभरी सूजन हो सकती है, पूरे शरीर या जोड़ों में दर्द हो सकता है.
हालांकि इस बीमारी का इलाज लंबा चलता है, लेकिन यह सौ फीसदी ठीक हो जाती है.