रूस की राजधानी मास्को के ल्युजनियाकी स्टेडियम में खेले गए फीफा विश्वकप 2018 के फाइनल मुकाबले में फ्रांस के जीतते ही जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति स्टेडियम में ही खुशी के मारे नाच रहे थे तब वहां से करीब 5,000 किलोमीटर दूर भारत के नेता हमेशा की तरह इस खेल में भी राजनीति का गोल और पैनल्टी कार्ड ढूंढ़ रहे थे. दरअसल, पुद्दुचेरी की राज्यपाल किरण बेदी ने ट्वीट कर फ्रांस की जीत पर बधाई देते हुए यह लिख दिया, ‘हम पुद्दुचेरीवासियों (जो पूर्व में फ्रांस का हिस्सा थे) ने वर्ल्डकप जीत लिया है. बधाई दोस्तो. फ्रांस की क्या शानदार मिक्स्ड टीम थी. खेल जोड़ता है.’

किरण बेदी के इस ट्वीट पर कांग्रेस के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन समेत कई नेताओं ने भावनाएं आहत होने का पुराना राग अलापते हुए इसे राष्ट्रविरोधी बयान करार दिया और प्रधानमंत्री मोदी से उन्हें तुरंत बरखास्त करने की मांग करने लगे. क्या करें, हमारे देशी नेता अपनी आदत से मजबूर हैं, लेकिन क्षेत्रफल में करीब हिमाचल प्रदेश के बराबर क्रोएशिया का जबरदस्त खेल और परफौर्मेंस देख कर हर कोई यही कह रहा था कि पहली बार वर्ल्डकप खेल रही इस टीम ने इतनी बड़ीबड़ी धुरंधर टीमों को किस तरह धूल चटा दी.

जहां दुनिया ने क्रोएशिया जैसे छोटे से देश का शानदार गेम देखा, वहीं मजबूत टीमों और नामी खिलाडि़यों को धराशायी होते भी देखा गया. फीफा वर्ल्डकप देखने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, क्रोएशिया की राष्ट्रपति कोलिंडा ग्रैबर कितारोविक और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी पहुंचे थे. मास्को से ले कर मुंबई तक इस खेल का जादू सिर चढ़ कर बोला. भारत से भी बड़ी तादाद में फुटबौलप्रेमी फाइनल मैच देखने रूस पहुंचे.

हार कर भी जीता क्रोएशिया

15 जुलाई को खिताबी मुकाबले में एक तरफ 6.69 करोड़ की आबादी वाला पूर्व विश्वकप विजेता फ्रांस था तो दूसरी तरफ सिर्फ 40 लाख की आबादी का नौसिखिया देश क्रोएशिया था. 68 साल बाद पहली बार कोई इतना छोटा देश वर्ल्डकप फाइनल में पहुंचा. 1950 में उरुग्वे ने भी कुछ ऐसा ही उलटफेर किया था. बहरहाल, फ्रांस 20 वर्षों बाद एक बार फिर से वर्ल्डकप फुटबौल चैंपियन बन गया है. फ्रांस ने वर्ल्डकप की ट्रौफी भले ही जीती हो, लेकिन क्रोएशिया ने दुनियाभर के फुटबौल फैंस के दिल जीत कर यह साबित कर दिया कि हार कर जीतने वाले को ही बाजीगर कहते हैं.

हाई वोल्टेज ड्रामा वाले इस रोमांचक मुकाबले में फ्रांस ने क्रोएशिया को 4-2 से शिकस्त दी. फ्रांस की टीम के पहले हाफ में अच्छा खेल दिखाने के कारण क्रोएशिया की टीम बढ़त नहीं बना सकी, लेकिन दूसरे हाफ में फ्रांस ने शानदार वापसी की और 2 और गोल दाग कर विश्व खिताब अपने नाम कर लिया. फ्रांस के लिए फाइनल में गोल ग्रीजमैन, पौल पोग्बा और एमबापे ने किए. खेल के शुरुआती 10 मिनट में तो दोनों टीमों में से कोई भी गोल नहीं कर सकी, लेकिन क्रोएशिया का खेल फ्रांस की तुलना में ज्यादा बेहतर था.

18वें मिनट में बढ़त औन गोल के रूप में फ्रांस को मिली. हालांकि ग्रीजमैन ने शानदार किक लगाई जो सीधे गोलपोस्ट के सामने पहुंची, लेकिन सैमीफाइनल में क्रोएशिया की जीत के हीरो रहे मारियो मांडजुकिक के सिर पर लग कर बौल सीधे गोलपोस्ट के अंदर पहुंच गई.

यही वह आत्मघाती गोल था जो क्रोएशिया के मारियो मांडजुकिक ने किया. यह विश्वकप के फाइनल में हुआ पहला आत्मघाती गोल था, जिस ने क्रोएशिया को निराश कर दिया. इसी गोल से क्रोएशिया की उलटी गिनती शुरू हो गई. हालांकि इवान पेरिसिक ने उसे बराबर कर दिया था, लेकिन फ्रांस को 38वें मिनट में मिली पैनल्टी ने इशारा कर दिया था कि फ्रांस जीत के करीब है. क्रोएशिया ने बेशक हार झेली हो, लेकिन टीम दुनियाभर के फुटबौलप्रेमियों का दिल जीतने में सफल रही.

रेसिज्म बनाम सैक्सिज्म 

मैच से इतर रूस की मेजबानी वाले इस वर्ल्डकप में रेसिज्म और सैक्सिज्म का खूब बोलबाला रहा. यों तो पहले से कयास लगाए जा रहे थे कि विश्वकप जैसे बड़े टूर्नामैंट में रेसिज्म और सैक्सिज्म से जुड़ी घटनाएं होने की आशंका है, लेकिन पुरुष फुटबौल प्रशंसकों की रशियन महिलाओं के साथ अभद्रता, रूस की महिलाओं का विदेशी पर्यटकों के साथ रोमांस, सैक्स विवाद, स्टेडियम में मौजूद महिला दर्शकों पर  कैमरे का एक्स्ट्रा जूम और द टाइम्स औफ व्होर्स जैसे विवादित आर्टिकल ने इस खिताब में रेसिज्म से ज्यादा सैक्सिज्म को चर्चा में रखा.

खास कर, प्लाटोन बेसेडिन के उस आर्टिकल पर बवाल मचा जो टाइम्स औफ व्होर्स शीर्षक से प्रकाशित हुआ. इस में वे कह रहे थे कि रूसी महिलाएं विदेशी फैंस के साथ सैक्स कर देश की नाक कटा रही हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया कि चंद डौलर्स के लिए रूसी महिलाएं किसी के भी साथ व्होर्स (वेश्या) की तरह सोने को तैयार रहती हैं. हालांकि इस आर्टिकल को ले कर उन की खूब खिंचाई हुई और महिलाओं को सैक्स को ले कर अपनी पसंद के हक की बात कही गई.

इस के अलावा जब फीफा वर्ल्डकप के मेजबान देश की 70 वर्षीय सांसद तमारा प्लेटेनयोवा ने मास्को के एक रेडियो कार्यक्रम में रूसी महिलाओं को विदेशियों के साथ सैक्स न करने की हिदायत और सैक्स के लिए अपनी ही नस्ल का पार्टनर तलाशने की बात कही तो उन्हें भी आड़े हाथों लिया गया.

मामला इतना बढ़ गया कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को रूसी महिलाओं के विदेशी टूरिस्ट्स के साथ सोने से परहेज करने की बातों को खारिज कर कहना पड़ा कि रूस की महिलाएं फीफा वर्ल्डकप के दौरान पर्यटकों के साथ संबंध बना सकती हैं.

फीफा विश्वकप में कई ऐसी कई घटनाएं भी सामने आईं जिन में महिला प्रैस रिपोर्टर को पुरुष फुटबौल प्रशंसकों ने जकड़ लिया और जबरदस्ती किस करने का प्रयास किया. गौरतलब है कि इसी विश्वकप में फोटो एजेंसी गेटी इमेज ने युवा फीमेल फैंस की एक गैलरी बनाई थी, जिसे बाद में माफी मांगते हुए हटा लिया गया.

बहरहाल, मेजबान देश में फुटबौल के फीवर के साथसाथ सैक्स का फीवर भी सिर चढ़ कर बोला. भारत में भी कौमनवैल्थ खेलों के दौरान वेश्यावृत्ति बढ़ने और कंडोम्स की खपत में बढ़ोतरी की बात सामने आई थी. दरअसल, अब खेल सिर्फ खेल नहीं, बल्कि ग्लैमर, नशा और पार्टीज कौकटेल बन चुका है, जहां खेल की आड़ में सैक्स और नशा दोनों परोसा जाता है. यह एक तरह से टूरिज्म की कमाई का मोटा हिस्सा भी बन चुका है, इसलिए इस पर कोई भी मेजबान देश रोक नहीं लगाना चाहता.

भारत में फुटबौल की दीवानगी

फुटबौल दुनियाभर में सब से ज्यादा देखा और पसंद किया जाने वाला खेल है. पिछले फुटबौल वर्ल्डकप को करीब 302 करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा था जबकि इस बार इसे 4 अरब से ज्यादा दर्शक मिले. नील्सन के एक सर्वे के अनुसार, दुनिया में इस खेल को ले कर सब से ज्यादा दर्शक और रुचि यूएई में है. यहां की 80 फीसदी आबादी की फुटबौल में रुचि है.

बात अगर भारत की करें तो यहां की करीब आधी से थोड़ा कम आबादी फुटबौल को ले कर दीवानी है. भारत में 45 फीसदी दर्शक फुटबौल देखते हैं. अगर राज्यों के लिहाज से देखें तो फुटबौल का सब से बड़ा बाजार पश्चिम बंगाल में है जहां 175 लाख फुटबालप्रेमी हैं, जबकि केरल में 158 लाख, पूर्वोत्तर में 93 लाख और महाराष्ट्र व गोवा में यह आंकड़ा 90 लाख का है.

इतना ही नहीं, भारत में कुल दर्शक संख्या 15.32 करोड़ है. इस में टीवी दर्शक 12.32 करोड़ हैं तो औनलाइन देखने वालों की तादाद 3 करोड़ है. ग्रामीण इलाकों में 5.15 करोड़ दर्शक हैं. ये आंकड़े साबित करते हैं कि देशभर में फुटबौलप्रेमियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.

कुल मिला कर भारत में फुटबौल को क्रिकेट जैसी लोकप्रियता भले ही हासिल न हो, लेकिन टीवी और इंटरनैट की आसान उपलब्धता ने इसे यहां भी पौपुलर कर दिया है. कुछ समय बाद इस का बाजार भी भारत में घुसपैठ करेगा.

फिलहाल देशी और राष्ट्रीय खेल हाशिए पर रहेंगे, क्योंकि हम सामान हो या खेल, हमेशा आयातित माल ही पसंद करते हैं. मेहनत और सृजन से हम दूर भागते हैं. और फास्टफूड की तर्ज पर सबकुछ रेडी टू ईट खाना, देखना व खरीदने को ही तरक्की का पैमाना समझते हैं. इसीलिए क्षेत्रफल में हम से कई गुना छोटे देश आज हम से कहीं ज्यादा उन्नत व खुशहाल हैं और हम सिर्फ दर्शक बन कर तालियां पीटने को ही हुनर मान बैठे हैं.

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