भारत नेपाल बौर्डर के लौकहा बीओपी इलाके से 24 मई, 2018 को सीमा सुरक्षा बल के जवानों ने 8 नेपाली नागरिकों को हिरासत में लिया तो एक बार फिर बौर्डर इलाके में मानव तस्करी का भंडाफोड़ हुआ. इन में 2 नौजवान दोनों देशों के बौर्डर की हिफाजत में लगे सुरक्षा बलों की आंखों में धूल झोंक कर अपने साथ 6 नेपाली लड़कियों को ले कर भारत की सरहद में घुस गए थे. भारतीय इलाके में घुसने के बाद वे सभी तेजी से बसस्टैंड की ओर बढ़ रहे थे कि उसी समय कुछ लोगों को उन के हावभाव पर शक हुआ. सीमा सुरक्षा बल को इस की जानकारी दी गई और उन लोगों को दबोच लिया गया.
उन दोनों नौजवानों से पूछताछ के बाद खुलासा हुआ कि वे मानव तस्करों के एक गैंग के लिए काम करते हैं और 6 नेपाली लड़कियों को दिल्ली पहुंचाने की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी. इस के लिए उन्हें 2 लाख रुपए मिलने वाले थे. इस वारदात ने बौर्डर पर चाकचौबंद निगरानी का दावा करने वाले सुरक्षा बलों की भी पोल खोल दी.
सीमा सुरक्षा बल की 18वीं बटालियन के कमांडैंट अजय कुमार ने बताया कि दोपहर के तकरीबन डेढ़ बजे 8 लोग भारत की सरहद में दाखिल हुए और सभी लौकहा बसस्टैंड की ओर बढ़ने लगे. उसी समय सीमा सुरक्षा बल को सूचना मिली थी कि उन में से 2 नौजवान मानव तस्करी गिरोह के लिए काम करते हैं. तुरंत ही उन सभी को गिरफ्तार कर लिया गया.
सख्ती से पूछताछ के बाद उन दोनों नौजवानों ने कबूल किया कि वे मानव तस्करी के धंधे में लगे हुए हैं. वे 6 लड़कियों को दिल्ली ले जा रहे थे. ये सभी लड़कियां नेपाल की राजधानी काठमांडू के सिंधुपाल चौक की रहने वाली हैं.
गिरफ्तार नौजवानों में से एक का नाम परमानंद चौधरी है और वह नेपाल के सप्तरी जिले के कनकपुरा गांव का रहने वाला है. दूसरे नौजवान का नाम दिनेश राम है और वह सप्तरी जिले के ही लक्ष्मीपुर गांव का रहने वाला है. सीमा सुरक्षा बल के अफसर बताते हैं कि साल 2015 में नेपाल में आए भूकंप के बाद से वहां लड़कियों की तस्करी में काफी तेजी आई है. इस पर काबू पाना इसलिए मुश्किल हो गया है कि ज्यादातर लड़कियों के मांबाप की मरजी से ही उन्हें बेचा जा रहा है.
मानव तस्करी में लगे लोग लड़कियों के मांबाप, भाई वगैरह को बहलाफुसला कर इस बात के लिए राजी कर लेते हैं कि वे ही अपनी बेटियों को बौर्डर पार करा दें. इस के लिए उन्हें अलग से कुछ और पैसे दे दिए जाते हैं. इस से जहां एक ओर तस्करों का काम आसान हो जाता है, वहीं दूसरी ओर बौर्डर पर तैनात सुरक्षा बलों को शक नहीं हो पाता है. अगर सीमा सुरक्षा बल शक के आधार पर किसी से पूछताछ करता है तो लोग बता देते हैं कि वे अपनी बेटी को ले कर कुछ काम से भारत जा रहे हैं. लड़की भी कबूल करती है कि उस के साथ उस का पिता, भाई या चाचा है.
लड़की को उस के घर से लेने के बाद एजेंट लड़की को बौर्डर पार करने में मदद पहुंचाने वालों के हाथों में 10,000 से 12,000 तक रुपए थमा देते हैं. भारत और नेपाल के बीच 1751 किलोमीटर का खुला बौर्डर है और दोनों देशों के लोग बेरोकटोक इधर से उधर आतेजाते रहते हैं.
नेपालभारत की सरहद पर पिछले 12 सालों से ‘कैरियर’ (तस्करों के सामान को आरपार करने वाले को नेपाल में कैरियर कहा जाता है) का काम कर रहे एक नेपाली ने बताया कि वह पिछले 7-8 सालों से तस्करों के सामान को आरपार पहुंचाने का काम कर रहा है और कभी भी पकड़ा नहीं गया है. ऐसे लोगों को गांजा, अफीम, हेरोइन, विदेशी सामान समेत लड़कियों और बच्चों को इधरउधर पहुंचाने का काम सौंपा जाता है. इस के बदले में तस्कर उन्हें मोटी रकम देते हैं. साथ ही, वे पुलिस और कस्टम वालों से भी बचाते हैं.
भारतनेपाल बौर्डर पर मानव तस्करी की रोकथाम का काम करने वाली एक एनजीओ ‘भूमिका विहार’ की डायरैक्टर शिल्पी सिंह बताती हैं कि मानव तस्करी के मामले में बिहार का सरहदी इलाका ट्रांजिट पौइंट बन चुका है. इस संगठन की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 5 सालों में 519 बच्चे गायब हुए हैं, जिन में ज्यादातर लड़कियां थीं. शादी और नौकरी का लालच दे कर लड़कियों की तस्करी की जाती है. बच्चों को गायब करने के बाद उन्हें वेश्यालयों में पहुंचा कर देह धंधे के दलदल में धकेल दिया जाता है.
दोनों देशों के लोगों को आनेजाने के लिए पासपोर्ट, वीजा वगैरह की जरूरत नहीं पड़ती है. सीमा सुरक्षा बलों का मानना है कि सिक्योरिटी के लिए दोनों देशों के बीच कुल 26 चौकियां बनी हुई हैं और रोजाना तकरीबन 15,000 लोग आरपार होते हैं. पिछले कुछ समय से यह देखा गया है कि मानव तस्करों ने अपने काम को आसान बनाने के लिए 14-15 साल के बच्चों तक को भी तस्करी के धंधे में झोंक रखा है. बच्चेबच्चियों को कुछ लालच दे कर बौर्डर पार करने के लिए कहा जाता है और वे हंसतेखेलते बौर्डर पार कर जाते हैं. दिक्कत यह है कि खुला बौर्डर होने की वजह से दोनों देशों के लोगों के इधरउधर आनेजाने का कोई रिकौर्ड भी नहीं रखा जाता है. इस से यह पता करना मुश्किल हो जाता है कि किस देश से कितने लोगों ने बौर्डर पार किया और कितने वापस लौटे.
मानव तस्कर लड़कियों को बौर्डर पार कराने के बाद पटना लाते हैं और उस के बाद रेलगाड़ी से उन्हें दिल्ली, मुंबई, गोवा, पुणे वगैरह बड़े शहरों में ले जाते हैं. पिछले साल पटना में 15 साल की मासूम नेपाली लड़की ने मानव तस्करों के चंगुल से भाग कर पुलिस को जो कहानी सुनाई, उस से पुलिस वालों के भी होश उड़ गए थे.
वह लड़की नेपाल के रौतहट जिले की रहने वाली थी. उस ने बताया कि वह अपने स्कूल में ही पढ़ने वाले किशन नाम के लड़के से प्यार करती थी और उस से ब्याह रचाना चाहती थी. किशन भी उस से शादी करने को तैयार था. किशन ने उसे समझाया कि उन के घर वाले उन की शादी नहीं होने देंगे, इसलिए घर से भाग कर ही शादी की जा सकती है.
उस लड़की पर मुहब्बत का भूत इस कदर हावी था कि वह बगैर कुछ सोचेसमझे किशन के साथ भाग कर पटना आ गई. किशन का असली चेहरा तब सामने आया, जब पटना पहुंचते ही उस का रंग ही बदल गया. लड़की ने पुलिस को बताया कि वह किशन से रोज कहती कि जल्दी शादी करें, पर वह 30-35 दिनों तक टालता रहा. उस के बाद तो जब भी वह शादी की बात कहती तो वह भड़क जाता.
उस के बाद किशन उस से गंदेगंदे काम करने के लिए कहता था. कुछ दिनों के बाद वह अपने साथ 2-4 लड़कों को ले कर आने लगा. वे उस के साथ छेड़छाड़ करने लगे. लड़की किशन को अपनी मुहब्बत की दुहाई देती तो वह उसे पीटने लगता था. वह चुपचाप किशन की बातों को मानने के लिए मजबूर थी. लेकिन एक दिन मौका मिलते ही वह वहां से भाग निकली.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, मानव तस्करों ने अपने धंधे में तेजी लाने के लिए कई दलालों को भी लगा रखा है. दलाल लोकल लोग ही होते हैं, जिस से वे आमतौर पर गरीब बच्चों के मांबाप को यह समझाने में कामयाब हो जाते हैं कि उन के बच्चों को मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, पटना जैसे बड़े शहरों में नौकरी लगवा देंगे या ऊंची पढ़ाई का इंतजाम करवा देंगे. इस से अच्छा पैसा मिलेगा. गरीबी में सिर से पैर तक डूबे गरीब लोग अपने बच्चों की बेहतरी के लिए दलालों के चंगुल में फंस जाते हैं. कस्टम अफसर आरके सिंह कहते हैं कि तस्कर पढ़ाई, खाना और बेहतर जिंदगी देने का वादा करते हैं. नेपाल में भूकंप और गरीबी की दोहरी मार झेल रहे मांबाप आसानी से दलालों के झांसे में फंस जाते हैं. बेटी को बेहतर जिंदगी देने और कुछ रुपयों के चक्कर में उस की जिंदगी को बदतर बना रहे हैं. उस के बाद कभी भी न तो वह अपनी बेटी से बात कर पाते हैं और न ही कभी बेटी वापस लौट कर आती है.
वे दलालों के सामने रोतेगिड़गिड़ाते रहते हैं कि कम से कम बेटी से बात तो करा दें, पर दलाल उन्हें टका सा जवाब देते हैं कि बेटी सही जगह पर है और अच्छी जिंदगी जी रही है. किसी तरह की टैंशन न लें. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, वेश्यालयों के साथ ही डांस गर्ल, बार गर्ल और मसाज गर्ल के रूप में भी नेपाली लड़कियों को आसानी से खपाया जाता है. पटना, मुजफ्फरपुर, रांची, कोलकाता वगैरह शहरों के कई मसाज पार्लरों में नेपाली लड़कियां काम करती हुई आसानी से दिख जाती हैं.
भारत में सैक्स का यह कारोबार तकरीबन 4 लाख करोड़ रुपए का है. दिल्ली के जीबी रोड, कोलकाता के सोनागाछी, मुंबई के कमाठीपुरा, पुणे के पेठ, इलाहाबाद के मीरगंज, बनारस के शिवदासपुर, मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान, मुंगेर के श्रवण बाजार आदि रेड लाइट इलाकों में पिछले 3-4 महीने के दौरान नेपाली लड़कियों की तादाद तेजी से बढ़ी है.
पिछले साल पुणे, महाराष्ट्र के पेठ इलाके में छापामारी कर पुलिस ने तकरीबन 700 नेपाली लड़कियों को बरामद किया था. इस के बाद भी भारत सरकार लड़कियों की तस्करी को रोकने के नाम पर केवल दावे और वादे ही करती रही है. बिहार के किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया जिलों के जरीए नेपाल से मानव तस्करी का धंधा फलफूल रहा है. ज्यादातर बच्चे गरीब और अनपढ़ परिवारों के ही गायब होते हैं. ऐसे बच्चों के मांबाप अपने बच्चे के गायब होने की शिकायत पुलिस थानों में दर्ज करने से घबराते हैं. उधर पुलिस महकमा भी मानव तस्करी को ले कर लापरवाह बना हुआ है.
संयुक्त राष्ट्र संघ की पिछले साल की रिपोर्ट साफतौर पर बता देती है कि नेपाल में किस कदर गरीबी है और भूकंप आने के बाद उस में कई गुना इजाफा हुआ है. रिपोर्ट यह भी कहती है कि भूकंप आने के बाद नेपाल में लड़कियों को भेड़बकरियों की तरह बेचा जा रहा है. भूकंप राहत शिविरों में 15 लाख से ज्यादा लड़कियों को जानवरों की तरह ठूंसठूंस कर रखा गया है और उन की हिफाजत का कोई पुख्ता इंतजाम ही
नहीं है. तकरीबन 40,000-45,000 तो ऐसी लड़कियां हैं जिन के परिवार के सभी लोग भूकंप में मारे गए. उन के सिर पर किसी का साया नहीं है. कुछ रुपयों और दो वक्त की रोटी के लिए वे कुछ भी करगुजरने को तैयार हो जाती हैं. दलाल उन्हें नौकरी दिलाने के झांसे में आसानी से फंसा लेते हैं.
नेपाल और भारत के बौर्डर के आसपास सैकड़ों ट्रैवल एजेंसी, प्लेसमैंट एजेंसी और मैरिज ब्यूरो बेरोकटोक लड़कियों और मानव तस्करी के खेल में लगे हुए?हैं. लड़कियों की शादी कराने, नौकरी दिलाने, भारत में सैर कराने वगैरह का झांसा दे कर वे गरीब और भोलेभाले मांबाप को अपने जाल में फंसा लेते हैं. नेपाल की राजधानी काठमांडू में तो इस तरह की सैकड़ों एजेंसी कुकुरमुत्तों की तरह उग चुकी हैं. उन पर लगाम लगाने का कोई इंतजाम नहीं है.
एजेंसी के दलाल गरीब मांबाप को समझाते हैं कि गरीबी की वजह से वे अपनी बेटी का ब्याह तो कर नहीं सकते हैं, ऐसे में मैरिज ब्यूरो के जरीए अच्छा लड़का मिल सकता है. पोखरा का रहने वाला सुरेश दहाल बताता है कि उस की बेटी की शादी दिल्ली के किसी कारोबारी से कराने की बात कही गई थी. उस ने मैरिज ब्यूरो के एजेंट की बात मान ली.
गरीबी की वजह से वह अपनी बेटी रीना का ब्याह किसी अच्छे लड़के से नहीं कर सकता था, इसलिए वह अपनी बेटी को शादी के लिए दिल्ली भेजने के लिए मन मार कर तैयार हो गया. सुरेश कहता?है, ‘‘जब एजेंट रीना को ले कर जाने लगा तो उस ने मेरे हाथ में 2,000 रुपए थमाए थे. उसी समय मेरा माथा ठनका था कि उस ने 2,000 रुपए क्यों दिए? कुछ रुपए तो हमें ही बेटी को देने चाहिए थे, पर उस समय कुछ कह नहीं सका.’’
सुरेश आगे बताता है कि उस की बेटी को घर से गए 2 साल से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन उस के ठौरठिकाने का कुछ भी पता नहीं है. मैरिज ब्यूरो के लोगों से वह जब भी बेटी के बारे में पूछता है तो उसे यही जवाब मिलता है कि वह ससुराल में राज कर रही है और अगर वह अपने घर वालों से बात नहीं करती है तो इस में ब्यूरो क्या कर सकता है?
मोतिहारी सिविल कोर्ट के सीनियर वकील अभय कुमार बताते हैं कि नेपाल में लड़कियों को औनेपौने दामों पर खरीद कर उन्हें वेश्यालयों तक पहुंचाने वाले दलाल जम कर पैसा बना रहे हैं. नेपाली लड़कियां 1-2 हजार रुपए में भी बेच दी जा रही हैं. कुछ दिनों के लिए पेट की आग बुझाने के लिए गरीब मांबाप अपनी लाड़ली बेटियों को दरिंदों के हाथों बेच देते हैं. वहीं तस्कर लड़कियों को दिल्ली, मुंबई या कोलकाता के देह बाजार में डेढ़ से ढाई लाख रुपए तक में बेच डालते हैं.
ज्यादातर नेपाली लड़कियों को वहां से सऊदी अरब, हौंगकौंग, जापान, कोरिया, अफ्रीका, मलयेशिया, थाईलैंड वगैरह दूसरे देशों में पहुंचा दिया जाता है. वहां लड़की के सारे दस्तावेजों को जब्त कर लिया जाता है, ताकि वह कहीं भाग नहीं सके. लड़की के सामने जिल्लत की जिंदगी जीने के अलावा और कोई चारा नहीं रह जाता है.