आजकल शादीशुदा जोड़ों में दूरीयां बढ़ रही है. हर दस में से तीन कपल की यही आपबीती है. पत्नी समझ ही नहीं पाती कि उसका पति उससे बेरुखी क्यों दिखा रहा है? वह उससे कटा-कटा सा क्यों रहने लगा है? वे यह शक भी पाल बैठती हैं कि हो सकता है इनका कोई एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. यह सोच पत्नियों को और ज्यादा तनाव से भर देती है. कुछ पत्नियां सोचती हैं कि शायद उनका रंग-रूप पहले की तरह मोहक नहीं रह गया. वे सजती-संवरती हैं कि पति को लुभा सकें. तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं कि पति का प्यार पा सकें, मगर पति का दिल फिर भी नहीं पसीजता.
दरअसल पत्नी के प्रति पति की बेरुखी का कारण हमेशा वह नहीं होता जो पत्नियां सोच-सोच कर परेशान होती रहती हैं, बल्कि प्रौब्लम कुछ और है. पति की बेरुखी का कारण उन में पुरुष हार्मोन की कमी हो सकती है, जिसके चलते पति शारीरिक सम्बन्धों से दूरी बनाने लगते हैं क्योंकि उन्हें यह डर होता है कि बिस्तर पर वह पत्नी को संतुष्ट नहीं कर पाएंगे. उन पर नामर्दगी का आरोप लगेगा. वह पत्नी की नजर में गिर जाएंगे. अगर पत्नी को पता चल गया कि वे उसको संतुष्ट करने में अक्षम हैं तो वह किसी दूसरे पुरुष का साथ ढूंढेगी और चोरी-छिपे अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने लगेगी. यह तमाम डर पुरुष मन पर हावी हो जाते हैं और वह खामोशी ओढ़ कर पत्नी से दूरी बना लेता है और पत्नी को उसकी उधेड़बुन में फंसे रहने देता है. अब पत्नी से कैसे कहे कि वे उसको बिस्तर पर संतुष्टि देने लायक नहीं रहा. जीवनसाथी को अपनी कमी को न बता पाने की विवशता अपराधबोध भी पैदा करती है, मगर फिर भी आशंका और बदनामी के भय से मुंह सिल कर पड़े रहते हैं और दाम्पत्य में दूरियां और गलतफहमियां पैदा होने देते हैं.
पति द्वारा अपनी शारीरिक समस्या पर खामोशी ओढ़े रहना दम्पत्तियों के बीच न सिर्फ दूरी बढ़ा रहा है, बल्कि कहीं-कहीं तो नौबत तलाक तक जा पहुंची है. पौरुष की कमी की वजह से पुरुष न सिर्फ सेक्स से दूर हो रहे हैं, बल्कि नामर्दगी के डर से उत्पन्न तनाव के कारण अन्य कई प्रकार की बीमारियां भी उनमें पनप रही हैं. हाल ही में दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल की एक रिसर्च में यह बात सामने आयी है कि साठ फीसदी मर्द जवानी में ही अपनी मर्दानगी खोने की कगार पर हैं. देश में 40 साल की उम्र तक पहुंचने वाला हर तीसरा पुरुष सेक्शुअल हॉर्मोन की कमी से जूझ रहा है यानी हर तीसरा व्यक्ति टेस्टोस्टेरोन डिफिसिएंसी सिंड्रोम (टीडीएस) से पीड़ित है. अस्पताल ने 745 लोगों पर किये शोध में इस बात के खुलासे से मेडिकल जगत में काफी हलचल मची हुई है.
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डौक्टरों का मानना है कि यह परेशानी लगातार बढ़ रही है. अस्पताल ने टीडीएस का पता लगाने के लिए पहले बिना जांच किये सिर्फ लक्षण के आधार पर इसका पता लगाया. इसके लिए शोध में शामिल युवाओं से 10 सवाल पूछे गये. डाक्टर ने बताया कि सेक्स के प्रति रुचि यानी कामेच्छा, क्षमता यानी स्टैमिना और स्ट्रेंथ में कमी जैसे तीन लक्षणों के आधार पर 48.18 प्रतिशत लोगों में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन कम पाया गया. लेकिन जब इन सभी का बायोकेमिकल टेस्ट किया गया तो आंकड़ा बढ़कर 60.17 प्रतिशत हो गया. सर गंगाराम अस्पताल के यूरॉलजी विभाग के चेयरमैन डाक्टर सुधीर चड्ढा कहते हैं कि इस स्टडी से यह साफ हो रहा है कि हमारी आबादी में हर तीसरा इंसान सेक्स हॉर्मोन की कमी से पीड़ित है. उन्होंने कहा कि जब लोग डायबीटीज, हाइपरटेंशन, विटमिन डी की कमी, हार्ट डिजीज जैसी बीमारी से पीड़ित होते हैं तो उनमें टीडीएस यानी टेस्टोस्टेरोन की कमी का खतरा कई गुना बढ़ जाता है.
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन पुरुषों में यौन क्षमता बनाये रखने वाला महत्वपूर्ण हार्मोन है. किसी पुरुष में इसकी कमी से सेक्स से जुड़ी परेशानियां पैदा होने लगती हैं. शोध के मुताबिक मधुमेह, हाइपरटेंशन और हार्ट के मरीजों में टीडीएस का खतरा और ज्यादा पाया गया है. 40 साल की उम्र के बाद टेस्टोस्टेरोन में हर साल 0.4 से 2.6 फीसदी की कमी होने लगती है. डाक्टरों का मत है कि भारत में 40 साल से अधिक उम्र का हर तीसरा व्यक्ति सेक्सुअल हॉर्मोन की कमी से जूझ रहा है, जिसके चलते पत्नी से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से बचने के कारण उनके वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि, शक, कड़ुवाहट, तनाव और दूरियां बढ़ रही हैं. चालीस साल से अधिक उम्र के वे लोग जो डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं, उन्हें हर साल टीडीएस की जांच जरूर करवानी चाहिए. सेक्स सम्बन्धों से अरुचि का मुख्य कारण तो यह है ही, तनाव, बीपी और हाइपरटेंशन का भी जनक है.
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डायबिटीज, बीपी, दिल की बीमारी होने पर टीडीएस का खतरा ज्यादा
स्टडी में पाया गया कि जिन लोगों को डायबिटीज नहीं थी, उनमें टीडीएस का स्तर 52.8 प्रतिशत था और डायबिटीज वालों में यह 71.03 प्रतिशत था. इसी प्रकार हाई बीपी के मरीजों में टीडीएस का खतरा 72.89 प्रतिशत पाया गया और नॉन बीपी वालों में यह केवल 54.86 प्रतिशत था. कोरोनरी हार्ट डिजीज के 32 मरीज भी इस स्टडी में शामिल हुए थे, इमसें से 27 यानी 84.30 प्रतिशत में टीडीएस की बीमारी थी. डॉक्टरों के मुताबिक, ऐसे लोग जिनकी उम्र ज्यादा है और वे डायबिटीज, हार्ट डिजीज, बीपी, विटमिन-डी की कमी से जूझ रहे हैं उन्हें हर साल टीडीएस की जांच करानी चाहिए.
क्या है टेस्टोस्टेरौन हार्मोन
टेस्टोस्टेरोन हार्मोन को पिट्यूटरी ग्रंथी और हाइपोथैलेमस नियंत्रित करते हैं. इसका स्रावण अंडकोष में होता है. सेक्स और शुक्राणुओं की संख्या के लिए यह हार्मोन जिम्मेदार है. टेस्टोस्टेरोन हार्मोन में कमी को हाइपोगोनडिजम भी कहा जाता है. टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन पुरुष में मर्दानगी के लक्षणों को पैदा करने वाला मुख्य कारक है. सरल भाषा में कहें तो युवावस्था में यह एक लड़के को मर्द बनाता है, जैसे चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ आना, सीने पर बाल आना, आवाज में भारीपन आना, जननांग का विकसित होना, शरीर का सुडौल होना, ताकतवर मांसपेशिया बनना सब इस हार्मोन के कारण ही होता है. शारीरिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ के लिए यह हार्मोन पुरुषों के लिए जरूरी है.
टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन बढ़ती उम्र के साथ कम होने लगता है. एक अनुमान के मुताबिक 30 और 40 की उम्र के बाद इसमें हर साल दो फीसदी की गिरावट आने लगती है. इसमें क्रमिक गिरावट सेहत से जुड़ी कोई समस्या नहीं है, लेकिन जब कुछ खास बीमारियों, इलाज या चोटों के कारण यह सामान्य से कम हो जाता है, परेशानी तब शुरू होती है. अंडकोष में चोट, उसकी सर्जरी, क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम और आनुवांशिकी गड़बड़ी से पिट्यूटरी ग्रंथि और हाइपोथैलेमस प्रभावित होता है, जिससे हाइपोगोनडिजम के हालात पैदा होते हैं. इन्फेक्शन, लीवर और किडनी में बीमारी, शराब की लत, कीमोथेरपी या रेडिएशन थेरपी के कारण भी टेस्टोस्टेरोन हॉर्मोन में कमी आती है. टेस्टोस्टेरोन की कमी वैवाहिक जीवन में कलह का कारण बनती है. इस हॉर्मोन की कमी के चलते पुरुष चाहकर भी स्त्री को शारीरिक सुख नहीं दे पाता है.
सोशल टैबू ने पुरुषों को जकड़ रखा है
भारत में सामाजिक बंधन और शर्मिंदगी की वजह से पुरुष न तो अपनी इस कमी को उजागर करते हैं और न ही इसके इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं. इसके विपरीत वे ताकत की दवाएं, झाड़फूंक, योगा या आयुर्वेद जैसी चीजों का सहारा लेने लगते हैं, जो उनके मर्ज को और ज्यादा बढ़ा देते हैं. टेस्टोस्टेरोन की कमी एक प्रकार की बीमार है जिसका इलाज एलोपैथी में सम्भव है. औरतों की तरह पुरुषों में भी सेक्स हार्मोन रीप्लेसमेंट सम्भव है. बस जरूरत है सोशल टैबू को भूल कर डॉक्टर के पास जाने की.
पत्नी को विश्वास में लें
आपकी जीवनसाथी को आपके जीवन पर पूरा अधिकार है. उससे अपनी बीमारी, अपनी कमी, अपनी गलतियां मत छिपाइये. उसे विश्वास में लें. उसे बतायें कि आप किस तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं. यदि आप ठीक तरीके से अपनी समस्या पत्नी को बताएंगे तो न सिर्फ आपका वैवाहिक जीवन तबाह होने से बचेगा, बल्कि आपके बीच बॉन्डिंग भी बढ़ेगी. इसके साथ ही जीवनसाथी का साथ और विश्वास पाकर आप में डॉक्टर के पास जाने और उचित इलाज करवाने की हिम्मत भी पैदा होगी.
कैसे जानें टेस्टोस्टेरोन की कमी को
ऐसे कई लक्षण हैं जो पुरुष शरीर में टेस्टोस्टेरोन की कमी को प्रदर्शित करते हैं. यौन सम्बन्ध बनाने की इच्छा न होना एक स्पष्ट संकेत है कि आप में यह हार्मोन कम हो रहा है. इसके अलावा यदि आपको थकान और सुस्ती ज्यादा महसूस होने लगी है तो यह भी इस हॉर्मोन की कमी का लक्षण है. अवसाद, चिंता, चिड़चिड़ापन, ज्यादा देर तक कसरत न कर पाना, यौन अंग की मजबूती में गिरावट टेस्टोस्टेरोन की कमी को दर्शाते हैं. इसके अलावा दाढ़ी-मूंछों का बढ़ना कम हो जाये, पसीना ज्यादा आने लगे, याददाश्त कम हो रही हो या एकाग्रता में कमी नजर आ रही हो तो यह लक्षण भी टेस्टोस्टेरोन की कमी बताते हैं. लम्बे समय तक हाइपोगोनडिजम से हड्डियों को नुकसान पहुंचने का जोखिम रहता है. टेस्टोस्टेरान की कमी से हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और फ्रैक्चर की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए जैसे ही आपको महसूस हो कि आपकी मर्दानगी कम हो रही है, तुरंत टेस्टोस्टेरोन की जांच करवाएं और उचित इलाज शुरू करें.
क्यों होती है टेस्टोस्टेरोन की कमी
आज की भागदौड़ वाली जिन्दगी में तनाव होना आम बात है. नौकरी की टेंशन, प्रमोशन की टेंशन, सहकर्मियों से गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा के चलते शहरों की तनावपूर्ण जिन्दगी से युवा पीढ़ी परेशान है. तनाव कई बीमारियों की जड़ है. टेस्टोस्टेरोन हॉमोन में कमी तनाव के कारण होती है. इसके अलावा फास्टफूड कल्चर के चलते बढ़ता मोटापा भी इस हॉर्मोन की कमी का मुख्य कारण है. मोटापे को किसी भी लिहाज से उचित नहीं माना जा सकता है. मोटापे का मतलब होता है अनेक बिमारियों को स्वयं आमंत्रित करना. भारतीय वातावरण के अनुरूप फल, दाल, हरी सब्जियां, जूस, सलाद जैसी चीजें खाने की जगह युवा पीढ़ी पास्ता, बर्गर, पीजा, चाऊ जैसी फालतू और अस्वस्थकर चीजों से पेट भर रही है. जिससे अनावश्यक चर्बी तो शरीर पर बढ़ ही रही है, इसमें यूज होने वाले अनेक लवण जैसे अजीनोमोटो या लाल तीखी मिर्च इत्यादि हमारी सेहत और सेक्स हॉर्मोन के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं.
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बहुत देर साइक्लिंग करना, या कई किलोमीटर स्कूटर या गाड़ी ड्राइव करने के कारण लगातार एक जगह पर ही बैठे रहना पड़ता है, जिसके कारण अंडकोष के आसपास का तापमान बहुत बढ़ जाता है. इससे टेस्टोस्टेरोन की बनने की मात्रा तो प्रभावित होती ही है, शुक्राणुओं को भी बहुत नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा अन्त:वस्त्रों पर ध्यान न देने से भी यह समस्या पैदा होती है. शरीर को सामान्य तापमान पर बनाये रखने के लिए जरूरी है कि अन्त:वस्त्र ऐसे हों जो सूती होने के साथ हवा के आने-जाने की राह में रुकावट न बनें. अधिक टाइट अंडरवियर पहनना भी इस रोग को आमंत्रण देना है. बेहतर होगा कि जब तक आप घर पर हों, टाइट अंडरवियर की जगह सूती कपड़े से बना ढीला अन्त:वस्त्र पहनें. इसके साथ ही कुछ व्यायाम और खेलकूद को रोजाना की जिन्दगी में जगह दें. यह आपको तनाव से दूर रखेगा और पूरे शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाएगा, जिससे टेस्टोस्टेरोन हार्मोन के बनने में मदद मिलेगी.