प्रेम, प्यार, मुहब्बत के विषय में हमारी सोच थोड़ी अलग है. सस्ता, सरल और टिकाऊ प्रेम की अवधारणा में हमारी लाजवाब खोज आयुर्वेदिक प्रेम है. भ्रमित न हों, यहां हम चिकित्सा विज्ञान पर चर्चापरिचर्चा नहीं कर रहे हैं. विषय पर टिके रह कर हम प्रेम विषय पर आते हैं. ज्ञानीजन जानते हैं, प्रेम बहुत कठिन है, इस के साइड इफैक्ट्स प्रेमीप्रेमिका को ही प्रभावित नहीं करते, बल्कि प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष रूप से घरपरिवार, आसपड़ोस, गलीमहल्ले, गांवबस्ती, शहर या यों कहें कि पूरे समाज को प्रभावित करते हैं, तो भी गलत नहीं होगा. प्रत्यक्षतया 2 जीवों से जुड़े लेकिन उन के प्रेम को देख जलन, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, आन, बान, शान जैसे दूसरे अनिवार्य पहलू अन्य लोगों को भी इस में देरसवेर घसीट ही लेते हैं. ‘फटे में पैर न उलझाएं’ ऐसा भला कैसे संभव है? यदि पी नहीं पाए तो उसे लुढ़काने, फैलाने या बिखेर कर औचित्यहीन करना मानव स्वभाव है. सो, प्रेम 2 जीवों तक सीमित रह ही नहीं सकता. यह शाश्वत सत्य है. ‘इश्कमुश्क छिपाए नहीं छिपते,’ इस कहावत को इसीलिए बुजुर्ग गढ़ गए थे.

अब दोबारा आयुर्वेद कौन्सैप्ट पर लौटते हैं. सब जानते हैं कि भारतीय संस्कृति की विश्व को जो भी देन हैं उन में आयुर्वेद काफी महत्त्वपूर्ण है. हींग लगे न फिटकरी, रंग निकले चोखा, चमकदार बनाने का बेहतरीन नुसखा आयुर्वेद में छिपा है. प्रेम की पहली शर्त यही है कि यह सरलता से निबटे, ज्यादा खर्च या इतर प्रभाव पैदा न करे तो आयुर्वेद तकनीक बैस्ट रहेगी. यह हमारे अघोषित शोध का सुपरिणाम है. आजकल चायनीज लव ज्यादा प्रचलित है जो सस्ता, सरल तो बहुत है, लेकिन टिकाऊपन के मामले में एकदम जीरो है. कब लव हो गया और कब उस की समाप्ति या खात्मा हुआ, कुछ पता ही नहीं चलता. न इति का पता, न आदि का. चायनीज लव कम उम्र के छोकरेछोकरी टाइप के जीवों में ज्यादा उपयोग के कारण उन्हें स्थायित्व से लेनादेना नहीं रहता. यूज ऐंड थ्रो संस्कृति के इस जज्बे को सच्चे प्रेम की श्रेणी में रखा भी नहीं जा सकता.

एलोपैथिक प्रेम भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं है. यह प्रेम खासतौर पर उस एज ग्रुप में ज्यादा लोकप्रिय है जो इंस्टैंट लव तो चाहते हैं, लेकिन उन में सब्र व धैर्य नाम की चीज नहीं है. चटपट प्रेमानुभूति और पूर्णतया फलदायी प्रक्रिया, इसलिए उन्हें एलोपैथी में प्रेम ज्यादा मुफीद रहता है. एलोपैथी की खासीयत ही यह है कि सबकुछ तुरतफुरत बिना रोग के लक्षणों की सही पहचान के एंटीबायोटिक्स के माध्यम से तुरंत आराम मिल जाता है. यही खूबी इस श्रेणी के प्रेम में भी पाई जाती है. प्रेमीप्रेमिका को कुछ समय के लिए रिलीफ मिलने की शर्तिया गारंटी हो सकती है, लेकिन उस के साइड इफैक्ट्स का उन के पास कोई उपाय नहीं है. इस विधा के प्रेम के नजारे भी कड़वी टैबलेट्स, इंजैक्शन और औपरेशन जैसे हैं. खुद चीरफाड़ या पोस्टमौर्टम न करें तो प्रेम के दर्शक इस जिम्मेदारी को बिना समय गवांए निबटा देते हैं. जितनी स्पीड से लवेरिया फीवर चढ़ता है उसी तेजी से नीचे भी गिर जाता है. न नब्ज का पता न दिल की धड़कनों का. ऐसे गायब होता है जैसे गधे के सिर से सींग. हम इस तकनीक को कतई लाभप्रद नहीं मानते.

प्रेम में होम्योपैथी तकनीक भी बेकार है. यह स्वीट मगर स्लो तकनीक है. रक्त में शुगर की उपलब्धता पर रोग की पहचान और उपचार करती है, लेकिन इस का धीमा असर उपभोक्ता के मन में कोफ्त पैदा करता है. नौ दिन चले अढ़ाई कोस, किस शख्स में होगा इतना धैर्य? प्रेम जनून है तो जादू भी जो प्रेमाकुल के सिर चढ़ कर बोलता है. तो, इस शर्त पर यह तकनीक भी फिट नहीं बैठती. यह सच है कि होम्योपैथी भी साइड इफैक्ट से मुक्त है, लेकिन ऐसा सोना किस काम का जो समय पर अपनी चमक ही न दिखाए. इसी तरह यूनानी पैथी का हाल है. इस की कमी इस का कड़वापन है. रसायनों के घालमेल में लव कैमेस्ट्री का इंबैलेंस होना स्वाभाविक है.

आयुर्वेद तकनीक ही प्रेम के लिए सौ फीसदी मुफीद नजर आती है. धीमेधीमे ही सही लेकिन रोग के लक्षणों की पूर्णतया पहचान कर तदनुरूप प्रेमव्यवहार से परिपक्व प्रेम की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे प्रेम का सब से बड़ा फायदा यह रहता है कि बात बनी तो ठीक, वरना प्रयुक्त जड़ीबूटियां शरीर को निरोगी और मजबूत बनाने के काम में तो आएंगी ही. ऋषिमुनियों की इस नायाब खोज का हम इस रूप में इस्तेमाल करें तो भारतीय संस्कृति के संरक्षण का प्रयास भी लगेहाथों पूरा हो सकता है. आयुर्वेद में अधिकतर दवाएं शहद के साथ सेवन की जाती हैं. हनी के स्वीट यूज की इस से बढि़या सीख क्या होगी? वात, पित्त और कफ की आधारशिला पर टिका आयुर्वेद प्रेम तनमनधन के समस्त पहलुओं को सोचसमझ कर प्रेमदरिया में डूबने का संदेश देता है. शरीर की नब्ज, दिल और दिमाग की तंदुरुस्ती का खयाल रख कर प्रेम करना और उस से उत्पन्न प्रभावों को झेल लेना इस नायाब तकनीक में संभव है.

सो, भारतीय होने पर गर्व करें और यदि प्रेम कर रहे हैं या करने की तैयारी में हैं, तो इस बिंदु पर एक बार जरूर गौर फरमाएं. स्वदेशी तकनीक इतिहास रचती है, इतिहास स्वदेशी आंदोलनों से भरा पड़ा है. इसलिए, प्रेम के मामले में इसे जरूर अपनाएं, जनहित में रचित.

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