70वर्षीय परिमल बनर्जी को रिटायर हुए 5 साल हो गए. कोलाकाता के भवानीपुर इलाके में उन का अपना तीनमंजिला मकान है. कोई सालभर हुआ पत्नी को गुजरे लेकिन एक बेटे, बहू और एक साल के पोते के साथ रिटायर्ड लाइफ के वे मजे ले रहे हैं. सुबह से ले कर शाम तक एक रूटीन जीवन जीते हैं. घर पर उन का ज्यादातर समय अखबार पढ़ना, टीवी देखना, व्हाट्सऐप पढ़ने व फौरवर्ड करने में और शाम का कुछ समय पोते के साथ बीतता है. बुढ़ापे में ऐसा निश्ंिचत जीवन थोड़े से लोगों को नसीब होता है. इस उम्र में ज्यादातर लोग अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं.

इस उम्र तक आमतौर से बुजुर्ग परिवार में अलगथलग पड़ जाते हैं. उन का महत्व कम हो जाता है. तब बढ़ती उम्र की तमाम बीमारियों के साथ परिवार या समाज में असुरक्षा का एहसास होने लगता है. इसी के साथ बुढ़ापे में बड़ी तादाद में अलजाइमर की दिक्कत आती है. इस उम्र के लोगों में कोविड के साथसाथ संक्रमण, निमोनिया, इंफ्लूएंजा, टिटेनस, कैंसर और दिल की बीमारी के बाद अलमाइमर एक चिंता का विषय है.

सहूलियतभरी आधुनिक जीवनशैली, उन्नत इलाज और दवा की सुविधा के कारण हमारा औसत जीवन पहले की तुलना में काफी हो गया है. जेरियाट्रिक सोसाइटी औफ इंडिया के अनुसार तो हमारी कुल आबादी का 8 प्रतिशत 60 साल के ऊपर है. जो 2031 तक 13 से 15 प्रतिशत हो सकता है. यानी इन की आबादी 10 करोड़ से भी अधिक है और अगले 10 वर्षों में इन की तादाद में दुगनी वृद्धि का भी अनुमान है.

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