जई जाड़े की एक खास चारे की फसल है. इस की खेती सिंचित व कम सिंचाई वाले रकबों में आसानी से की जा सकती है. इस का हरा चारे बहुत ही जायकेदार, पौष्टिक व पाचक होता है. यह दुधारू पशुओं के लिए बहुत ही लाभदायक होता है. खेती में काम आने वाले पशुओं के लिए भी यह बढि़या चारा है. अधिक पैदावार लेने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:
खेत की तैयारी : जई के लिए रेतीली दोमट मिट्टी अच्छी है. लवणीय जमीन में इस की खेती नहीं करनी चाहिए. 2 से 3 जुताइयां कर के सुहागा लगा कर बराबर करना चाहिए.
उन्नतशील प्रजातियां
बीज की मात्रा व बोआई का समय : बोआई के लिए छोटे बीज वाली किस्मों के 30 किलोग्राम व मोटे बीज वाली किस्मों के 40 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ इस्तेमाल करें. ज्यादा कटाई वाली किस्मों की बोआई अक्तूबर के आखिर तक कर देनी चाहिए, जबकि 1 कटाई लेने के लिए नवंबर तक बोआई की जा सकती है. चारे के लिए 1 कटाई लेने के बाद बीज बनाना है, तो ऐसी दशा में नवंबर के पहले हफ्ते तक बोआई कर सकते हैं.
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खाद : 1 कटाई वाली फसल में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन, 35 किलोग्राम यूरिया, 12 किलोग्राम फास्फोरस व 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फोरस प्रति एकड़ की दर से बोआई के समय देनी चाहिए. 16 किलोग्राम नाइट्रोजन पहली सिंचाई के तुरंत बाद देनी चाहिए. ज्यादा कटाई वाली फसल में 16 किलोग्राम नाइट्रोजन की अतिरिक्त मात्रा पहली कटाई के बाद डालनी चाहिए. जई के बीजों को बोआई से पहले एजोटोबैक्टर के टीके से उपचारित करें. इस से 6 से 8 किलोग्राम नाइट्रोजन की प्रति एकड़ की बचत होती है.
सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 1 महीने बाद करनी चाहिए. इस के बाद 25 दिनों के अंतराल पर जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. ज्यादा कटाई वाली फसल में कटाई के बाद सिंचाई करना बहुत जरुरी है.
कटाई : 1 कटाई वाली फसल में बोआई के 90 से 100 दिनों बाद 50 फीसदी फूल आने पर कटाई करें. ज्यादा कटाई वाली फसल में पहली कटाई 60 से 70 दिनों बाद और दूसरी कटाई 50 फीसदी फूल आने पर कर लेनी चाहिए. फसल की अच्छी बढ़वार और दूसरी कटाई में ज्यादा हरा जारा हासिल करने के लिए पहली कटाई जमीन से 8 से 10 सेंटीमीटर ऊपर से करनी चाहिए.
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चारे की पैदावार : अच्छे फसल इंतजाम द्वारा 1 कटाई देने वाली किस्मों से 200 से 220 क्विंटल और कई कटाई वाली किस्मों से 240 से 260 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ मिल जाता है.
बीजों की पैदावार : जई की फसल चारे के लिए न काटी जाए तो 7 से 8 क्विंटल बीज प्रति एकड़ हासिल हो जाते हैं. ज्यादा कटाई वाली किस्मों की 70 दिनों पर चारे की 1 कटाई लेने के बाद छोड़ी हुई फसल से 5 से 6 क्विंटल बीज प्रति एकड़ हासिल किए जा सकते हैं.
जई के खास कीड़े
कर्तन कीट (एग्राटिस एप्सिलान) : मादा कीट अपने अंडे जमीन में देती है. अंडों से गिडारें निकल कर जमीन पर पड़ी पत्तियों पर रहती हैं. गिडारें पौधों की जड़ों को जमीन की सतह से काट देती हैं, जिस के कारण पौधे सूख जाते हैं. दिन के समय में गिडारें जमीन की दरारों व पत्तियों में छिप जाती हैं और रात में दरारों से निकल कर फसल को नुकसान पहुंचाती?हैं.
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रोकथाम
* खेतों के पास प्रकाश प्रपंच 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से लगा कर प्रौढ़ कीटों को लुभा कर खत्म किया जा सकता है.
* खेतों के बीचबीच में घासफूस के छोटेछोटे ढेर शाम के समय लगा देने चाहिए. रात में जब सूंडि़यां खाने को निकलेंगी तो बाद में इन्हीं में छिपेंगी, जिन्हें घास हटा कर आसानी से खत्म किया जा सकता है.
* प्रकोप बढ़ने पर क्लोरपायरीफास
20 ईसी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर या नीम का तेल 3 फीसदी की दर से छिड़कें.
दीमक (ओडोंटोटर्मिस ओबेसेस) : दीमक कीट से असिंचित रकबों में जौ की फसल को काफी नुकसान होता?है. दीमक फसल की छोटी दशा में जमाव के समय से फसल पकने तक नुकसान करती है. यह जमीन की सतह से कुछ नीचे पौधों को काट कर नुकसान करती है, जिस से पूरा पौधा सूख जाता है. ज्यादा प्रकोप होने पर कभीकभी फसल की दोबारा बोआई भी करनी पड़ती है.
रोकथाम
* 1 किलोग्राम बिवेरिया और 1 किलोग्राम मेटारिजयम को तकरीबन 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुई खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें. इस के बाद दीमक वाले खेत में प्रति एकड़ बोआई से पहले डालें.
* सिंचाई के समय इंजन से निकले हुए तेल की 2-3 लीटर मात्रा का प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें.
* प्रकोप ज्यादा होने पर क्लेरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर
मात्रा को बालू में मिला कर प्रति हेक्टेयर
की दर से इस्तेमाल करें.
* बीजों को बोआई से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस 0.1 फीसदी से साफ कर लेना चाहिए.
गुलाबी तना छेदक कीट : इस कीट के गिडार तने में घुस कर अंदर के भागों को खाते रहते हैं, जिस से तना सूख जाता है.
मादा पतंगी पत्तियों की निचली सतह व तने पर अंडे देती है. अंडे छोटे, गोल व सफेद
रंग के होते हैं, जो बाद में गुलाबी रंग के हो
जाते है.
रोकथाम
* खेत में 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं ताकि तना छेदक के प्रौढ़ नर ट्रैप में इकट्ठे हो कर मरते रहें.
* यदि तना छेदक कीट का हमला न रुके तो कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की 18 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखी रेत या राख में मिला कर खेत में बिखेर देना चाहिए.
माहू कीट : जई की फसल पर माहू कीट का हमला जनवरी के दूसरे हफ्ते तक होता है. माहू छोटा, कोमल शरीर वाला हरे मटमैले, भूरे रंग का कीट होता?है, जिस के झुंड पत्तियों, फूलों, डंठलों व पौधों के दूसरे भागों पर चिपके रहते हैं और रस चूस कर नुकसान पहुंचाते?हैं.
रोकथाम
* माहू का हमला होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, ताकि माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाए.
* परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर के 50,000-10,0000 अंडे या सूंडि़यां प्रति हेक्टयर की दर से छोडें.
* 5 फीसदी नीम का अर्क या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें.
* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
* इंडोपथोरा व वरटिसिलयम लेकानाई इंटोमोपथोजनिक फंजाई (रोग कारक कवक) का छिड़काव करें.
* जरूरत होने पर इमिड़ाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर या मैलाथियान 50 ईसी या डाइमेथोएट 30 ईसी या मेटासिसटाक्स 25 ईसी की 1.25-2.0 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर की दर से छिड़ाव करें.
जई की खास
बीमारियां
जई का गेरुई या रतुआ रोग : यह 2 प्रकार का होता है यानी पीला गेरुई रोग व काला गेरुई रोग. इस रोक के लक्षण जनवरीफरवरी में दिखाई देते हैं.
पत्तियों पर पीले व भूरे रंग का चूर्ण भर जाता है, जो हवा में फट कर फैल जाता है और दूसरे पौधों को भी रोगी कर देता?है.
रोकथाम
* इंडोफिल 2.5 किलोग्राम या वेविस्टीन 1 किलोग्राम या वेलेटान 1 किलोग्राम या मेथमेजेव 2.5 किलोग्राम या जिनेव 2.5 किलोग्राम 1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.
* रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए.
जई का कंडुआ रोग : यह 2 प्रकार का होता है. आवृत्त कंडुआ व अनावृत्त कंडुआ. इस के लक्षण बालियां निकलने के बाद दिखाई पड़ते हैं. बलियां निकलने से पहले कंडुआ झिल्ली से पूरी तरह से ढका रहता है.
अनावृत्त कंडुआ से झिल्ली कुछ ही दिनों में फट जाती है और फफूंदी के तमाम बीजाणु हवा में फैल जाते हैं. आवृत्त कंडुआ अंदरूनी बीज जनित होता है.
रोकथाम
* जहां तक मुमकिन हो, रोगी पौधों को उखाड़ कर गड्ढों में गाड़ दें या उन्हें जला कर खत्म कर दें.
* कार्बंडाजिम या कार्बाक्सिन या वीटावैक्स की 2.5 ग्राम मात्रा में बीजों को प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें.