सरसों व राई को मस्टर्ड व रेपसीड के नामों से भी जाना जाता है. सरसों भारत में सोयाबीन व मूंगफली के बाद उगाई जाने वाली खास तिलहनी फसल है. भारत में तोरिया व सरसों का कुल रकबा 65 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 77 लाख टन है व उत्पादकता करीब 1200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. बीज की मात्रा, बीजोपचार व बोआई : बोआई के लिए 4 किलोग्राम (1000 दानों का वजन 3 ग्राम हो) या 5-6 किलोग्राम (1000 दानों का वजन 4-5 ग्राम हो) बीज प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित व असिंचित दोनों हालात में रखते हैं. बीजों को 2 ग्राम मैंकोजेब या 3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने के बाद सफेद रोली से बचाने के लिए एपरान 35 एसडी की 6 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें. पेंटेड बग की रोकथाम के लिए एमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करें. जैविक उर्वरक के रूप में एजोटोवैक्टर 200 ग्राम पीएसवी व माइकोराइजन की 200 ग्राम मात्रा से प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए.
बरानी इलाकों में 15 सितंबर से 15 अक्तूबर व सिंचित इलाकों में 15-20 अक्तूबर तक सरसों की बोआई कर देने से उपज अच्छी होती है. बोआई में लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर और गहराई 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. असिंचित क्षेत्रों में बीज की गहराई नमी के मुताबिक रखनी चाहिए.
खाद व उर्वरक : सरसों में रासायनिक खाद, जैविक खाद व जैविक उर्वरक एकसाथ मिला कर देने चाहिए. सिंचित दशा में 8-10 टन व असिंचित दशा में 4-5 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ हलकी मिट्टी में 2.5-3.0 किलोग्राम ववेरियावे्रसियाना (प्रयोग करने से 15-20 दिन पहले सड़े गोबर में मिला कर नमी वाले स्थान में बोरे से ढक कर रखें) को बोआई से पहले इस्तेमाल करने से दीमक व भूमिगत कीटों को काफी हद तक काबू किया जा सकता है.
अगर मिट्टी में जस्ते की मात्रा 0.6 पीपीएम से कम है, तो अंतिम जुताई के समय करीब 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. जहां तक संतुलित उवर्रकों की बात है, तो मिट्टी की जांच के मुताबिक उन का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी की जांच न होने की दशा में सिंचित क्षेत्रों में 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 45-50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर व 2 किलोग्राम बोरान और बरानी क्षेत्रों में 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम सल्फर व 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से स्तेमाल करना चाहिए. 5 टन केंचुआ खाद या 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 75 फीसदी संतुलित उर्वरकों को प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल से करने 5-10 फीसदी पैदावार में इजाफा होता है. बरानी क्षेत्रों में उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय देनी चाहिए. फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट से देने पर सल्फर भी मिल जाता है. यदि डीएपी का प्रयोग किया गया हो तो बोआई से पहले 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय नाई या चोंगा द्वारा बीज से 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना फायदेमंद होता है. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा पहली सिंचाई की (बोआई के 25-30 दिनों बाद) टाप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए. फूल आने की अवस्था में थायोयूरिया के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करने से उपज में इजाफा होता है.
विरलीकरण : सरसों में बोआई के करीब 15-20 दिनों के अंदर घने व कमजोर पौधों को निकाल कर पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सेंटीमीटर कर देनी चाहिए. सही तौर पर 2.5-3.0 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर में या 25-30 पौधे प्रति वर्गमीटर में होने से अच्छी उपज मिलती है. सरसों की खेती के साथ मधुमक्खीपालन काफी फायदेमंद होता है.
खरपतवारों की रोकथाम : पौधों की संख्या ज्यादा होने की दशा में बोआई के करीब 15-20 दिनों बाद विरलीकरण के साथसाथ खरपतवारों को भी निराई कर के खेत से निकाल देना चाहिए. करीब 45-60 दिनों तक खेत खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए. रासायनिक खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरेलिन की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से पहले जमीन में मिला दें या 0.7 किलोग्राम मात्रा बोआई के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. सूखी बोआई की स्थिति में बोआई के बाद फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव कर के सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के करीब 20-25 दिनों बाद आइसोप्रोट्यूरान की 0.75 किलोग्राम मात्रा का घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं.
सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 30-40 दिनों बाद फूल आने से पहले और दूसरी सिंचाई बोआई के 70-80 दिनों बाद फलियां बनने के वक्त करें. बलुई दोमट मिट्टी में 12 मीटर की दूरी पर नोजल लगा कर फुहारा सेट 7 घंटे चला कर 2 बार सिंचाई करने पर सामान्य विधि के बराबर उपज मिलने के साथसाथ 40 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. बरानी क्षेत्रों में धान के पुआल से 2 टन प्रति हेक्टेयर की दर से माचिंग करने से पानी की बचत के साथसाथ 30-40 फीसदी उपज बढ़ जाती है.
सहफसली खेती
सरसों की कुछ प्रजातियां जैसे पीआर 43, आरएच 30, वरदान, आरएच 781, लाहा 101, पूसा बोल्ड व संजुक्ता वगैरह सहफसली खेती के लिए अच्छी हैं. सरसों के खास सहफसली इस प्रकार हैं : गेहूं व सरसों (9:1), चना व सरसों (3:1), आलू व सरसों (3:1), गन्ना व सरसों (1:1).
कटाईमड़ाई
सरसों की फसल फरवरीमार्च तक पक जाती है. आमतौर पर जब पत्तियां झड़ने लगें और फलियां पीली पड़ने लगें, तब फसल की कटाई व मड़ाई कर के 3-4 दिन सुखा कर 8 फीसदी नमी रहने पर भंडारण करते हैं.