Best Hindi Satire : नाम बदलने से कुछ हो या न, सुविधा जरूर दुविधा में बदल जाती है. सरकार द्वारा नाम बदलने की वकालत तो की जाती है लेकिन मेकअप करने से चेहरा थोड़े ही बदलता है.
सरकारें अपनी तासीर व सियासी गुणाभाग के मान से शहरों, प्रसिद्ध स्थानों, संस्थानों, स्टेशनों, सड़कों के नाम परिवर्तन का अतिप्रिय कार्य अंजाम देती रहती हैं. सरकार को कुछ न कुछ तो करना ही होता है. गरीबी, बेरोजगारी दूर करने, महंगाई की नकेल कसने जैसे पीड़ादायक कार्य के बनिस्बत नाम बदलने की कवायद में उसे सुखानुभूति होती है.
बौम्बे मुंबई हो गया. पर बौम्बे हौस्पिटल मुंबई हौस्पिटल नहीं हुआ. न ही बौंबे कील को मुंबई कील कभी कहा जाएगा. कहने पर भी मुंबई कील में वैसी फील नहीं आएगी. बौम्बे उच्च न्यायालय को मुंबई उच्च न्यायालय कहने से क्या लंबित प्रकरण कम हो जाएंगे, पेशी पर पेशी मिलना बंद हो गरीब को क्या न्याय सुलभता से मिल जाएगा? क्या कलकत्ता को कोलकाता और मद्रास को चेन्नई करने से वहां सड़कों के गड्ढे कम हो गए, महंगाई कम हो गई? गुड निर्माण से गुड़गांव नाम पाए को गुरुग्राम करने से क्या वहां जाम से मुक्ति मिल गई? नाम बदलने से शहर नहीं, केवल साइनबोर्ड बदलता है.
मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय होने से क्या ट्रेनों की लेटलतीफी बंद हो गई, क्या गंदगी कम हो गई, क्या वैंडरों ने बासी सामान बेचना बंद कर दिया, कुलियों व औटो वालों के मोलभाव बंद हो गए? पहले ये सब दुरुस्त हो, फिर नाम दुरुस्त करो.
बेंगलुरु के विक्टोरिया अस्पताल का नाम बेंगलुरु मैडिकल कालेज होने से यदि ड्यूटी डाक्टर समय पर पहुंचने लगे, मरीज को निजी क्लीनिक में बुलाना बंद हो जाए, कुप्रबंधन खत्म हो, महंगी दवाएं लिखना बंद हो जाए तब तो सारे अस्पतालों के नाम बदल दो.
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