Family Story Hindi : अब्बू के जाने के बाद दानिया और उस की मां एकदम अकेले पड़ गए जिस का फायदा उमर ने बखूबी उठाया. लेकिन दानिया भी उस से दो कदम आगे निकली और उमर का परदाफाश करने में सफल हो गई.

स्कूल से लौटते हुए दानिया ने दूर से देखा, उस के छोटे से घर से मौलवी उमर मियां जल्दीजल्दी निकल रहे हैं. दानिया के कदम धीमे हो गए, आंखों में पानी आ गया. उस का छोटा सा दिल उदास हुआ. बहुत उदास. स्कूल से घर की दूरी बस 15 मिनट की ही थी पर जिस तरह से स्कूल से निकल कर बच्चे बातें करते, मस्ती करते चलते हैं, उन्हें आधा घंटा लग जाता था.
साथ चलते बच्चों ने टोका, ‘‘जब घर पास आ गया,
तू धीरे चलने लगी?
जल्दी चल.’’
‘‘तुम लोग जाओ, मैं चली जाऊंगी, कुछ सामान लेना है. अम्मी ने आते हुए लाने के लिए कहा था, ले कर आती हूं,’’ कहतेकहते दानिया ने रास्ता बदला और कुछ दूरी पर एक दुकान के बाहर खाली जगह देख कर बैठ गई. वैसे तो आजकल जब से सब के हाथों में फोन आया है, भले ही फोन सस्ता सा हो, बचपन का समय कम हो गया है और दानिया की बात कुछ अलग ही थी, 15 साल की दानिया को वक्त और हालात ने समय से पहले बहुत बड़ा कर दिया था. सांवली रंगत पर तीखे नैननक्श. अपने सुंदर बालों की लंबी सी चोटी बांधती. इस समय तो यूनिफौर्म का रिबन भी बांध रखा था. छोटा सा सरकारी स्कूल था जहां दानिया बचपन से पढ़ रही थी. उत्तर प्रदेश के कैराना कसबे में ही पैदा हुई थी.

3 साल पहले तक दानिया अपने अब्बू और अम्मी के साथ हंसीखुशी रहती थी पर जब से कोरोना महामारी उस के अब्बू को लील गई तब से जो हो रहा है वह तो न कभी उस ने सोचा होगा, न उस की अम्मी अदरा ने. 35 साल की अदरा पर जैसी मुसीबत आई थी, उस की कल्पना भी कभी कोई स्त्री नहीं करती.

जब भी दानिया उमर को देखती, उस का मन करता, इसे खत्म कर दे, इस का वह हाल करे कि उमर जैसे धर्म के ठेकेदार बुरे कामों से तोबा कर लें पर ऐसा कब होता है. धर्म के ठेकेदारों की चांदी तो हर युग में रही है. अगर फायदा ही न हो तो धर्म की ठेकेदारी ही की क्यों जाए. उसे अपने अब्बू याद आने लगे. बहते आंसुओं को पोंछ वह फिर उमर और अपनी अम्मी के बारे में सोचने लगी. करीब 40 साल का पतलादुबला, शातिर, थोड़ी बड़ी दाढ़ी, सिर पर हमेशा सफेद टोपी, मजहब के उपदेश देने वाला, मीठीमीठी बातें कर के सामने वाले को लूटने वाला उमर अपनी पत्नी शाहीन के साथ आराम से गुजरबसर करता, मसजिद में बैठा रहता.

वह घरों में जा कर बच्चों को कुरान पढ़ाता. उस के घर में भी कुरान पढ़ने वाले बच्चों की भीड़ लगी रहती. दूर से देखने पर वह एक बहुत अच्छा इंसान लगता पर उस का असली रूप कुछ और था जो उस की पत्नी नहीं जानती थी, उस का 8 साल का बच्चा अमान तो क्या ही जानता. शाहीन कम पढ़ीलिखी, परदे में रहने वाली, बाहर की दुनिया से पूरी तरह बेखबर, शौहर को सबकुछ मानने वाली औरत थी. उसे लगता, उस का शौहर रातदिन लोगों को दीनी तालीम देने में जुटा है.

जब दानिया के अब्बू नहीं रहे, घर में ऐसी तंगहाली हुई कि मांबेटी के खाने के लाले पड़ गए. उस के अब्बू एक दुकान में टेलर ही थे. कितनी जमापूंजी हो सकती थी. भूखे रहने की नौबत आ गई तो अदरा मौलवी उमर के पास जा पहुंची. उमर को ऐसे ही मौकों की तलाश रहती थी. वह ऐसी जरूरतमंद औरतों की मदद करने के बहाने उन्हें देह व्यापार में धकेल देता. पूरा गिरोह यही काम करता. औरतें बदनामी के डर से चुप रह जातीं और इस दलदल में बुरी तरह फंसी रहतीं.

शाहीन की तरह अदरा भी कम पढ़ीलिखी थी वरना यह नौबत न आती. उस के मायके में भी उस का विवाह आम घरों की तरह एक काम की तरह निबटा दिया गया था पर उस के शौहर शौकत अपनी बेटी दानिया को पढ़ालिखा कर पैरों पर खड़ा करना चाहते थे.

यह कल्पना कर के कि अभी उस की अम्मी के साथ उमर क्या कर के निकला होगा, दानिया को उबकाई आने को हुई. आजकल यही होता था, कभी उमर आ कर अदरा के साथ संबंध बनाता, कभी किसी को भी रात में भेज देता. एक कमरे के बहुत छोटे से घर में पार्टिशन के लिए बीच में चादर डाल दी गई थी. दानिया को सोता हुआ बन जाना पड़ता था पर चादर के उस पार से आ रही आवाजें दानिया का दिल दहलाए रखतीं. कभीकभी रात को अदरा को किसी के पास ले जाने के लिए उमर खुद आ जाता.

घर अब खानेपीने की चीजों से भरा रहने लगा था. दानिया को किसी चीज की कमी नहीं थी. आसपास के लोगों को दिखाने के लिए उमर यों ही कपड़ों की गठरी लाता-ले जाता रहता जिस से लगे कि अदरा कपड़े सिलती रहती है. सब को यही लगता कि मौलवी साहब एक गरीब औरत की मदद कर रहे हैं. दानिया को खयाल आया कि अम्मी खाने के लिए उस का इंतजार कर रही होंगी, वे दोनों खाना साथ ही खाती थीं. वह उदास सी घर चल दी. घर जा कर दानिया ने अदरा को लस्तपस्त पड़े देखा. चौंक कर अपना बैग एक तरफ फेंका उस ने. अम्मी से लिपट गई, ‘‘क्या हुआ अम्मी?’’ और रोने लगी.

अदरा थकी सी उठ कर बैठी और बेटी के गले लग कर जोरजोर से रोने लगी. दोनों मांबेटी एकदूसरे से लिपटी रोती रहीं. वे दोनों ही नहीं, घर की जैसे हर चीज रो रही थी- दीवारें भी उदास थीं. इस घर ने 3 जनों का हंसताखेलता समय देखा था. अब मांबेटी की बरबादी यह छोटा सा घर भी नहीं देख पा रहा था, हर तरफ उदासी थी.

घर सिर्फ ईंट, सीमेंट से ही नहीं बना होता, घर में रहने वालों के दिल से भी ऐसा जुड़ा होता है कि जब किसी सुखी घर में जाओ तो साफसाफ महसूस होता है कि घर में एक सुख है, शांति है. दानिया ने रोते हुए पूछा, ‘‘अम्मी, हम यहां से कहीं जा नहीं सकते?’’

‘‘काफी कोशिश की थी, बेटा पर जब तुम्हारे अब्बू चले गए तो रिश्तेदारों ने भी पलट कर नहीं पूछा, कहीं हम मांबेटी की जिम्मेदारी उन पर न आ जाए. कहां जाएं, कहीं कोई नहीं है और इस उमर के हाथ बहुत लंबे लगते हैं. बस, तुम्हें पढ़ालिखा दूं. पर बेटा, अब थक चुकी, बरदाश्त नहीं होता,’’ कहतेकहते अदरा फिर एक बच्ची की तरह बेटी के सीने लग गई तो बेटी का दिल भी ममत्व से भर गया. बेटी जरा सी भी बड़ी हो जाए तो वह मां की मां बन जाती है. दानिया ने मां के सिर को सहलाया, ‘‘अम्मी, चिंता न करो, मैं कुछ करती हूं.’’
‘‘न, न, बेटी. इन से बची रहना. इन लोगों के सामने भी न आना. मैं ने बहुत सख्ती से उमर से कह रखा है कि तुम्हारे साथ कुछ बुरा नहीं होना चाहिए.’’
‘‘ठीक है, अम्मी, देखते हैं. आओ, खाना खा लेते हैं. मैं हाथ धो कर कपड़े बदल कर आती हूं, फिर खाना लगाती हूं.’’ दोनों मांबेटी चुपचाप खाना खाती रहीं. दोनों ही पता नहीं क्याक्या सोचती रहीं. पसरा सन्नाटा घर को और उदास करता रहा.

कैराना की सीमा से बाहर निकल कर थोड़ीथोड़ी दूर पर छोटेछोटे ढाबे, कुछ अच्छे होटल, बार खुल गए थे. अब लोग वीकैंड में यहां खानेपीने को जाने लगे थे. इन्हीं में से एक बार एंड रैस्टोरैंट था, ‘चेतन बार’. इस के मालिक कपिल ने इस का नाम अपने बेटे चेतन के नाम पर रखा था जो करीब 22 साल का था. अमीर लड़कों के सारे ठाटबाट के साथ जीता था वह. देखने में अच्छा था वह. जब भी दानिया के स्कूल की छुट्टी होती, बाहर खड़े लड़कों में अपने मवाली ग्रुप के साथ चेतन भी खड़ा होता और दानिया को देखने के लिए रुका रहता.

दानिया के स्कूल और घर के रास्ते के बीच में थी कपिल की कोठी. यों ही आतेजाते दानिया को देख कर चेतन का दिल उस में अटक गया था. अब तक जब भी दानिया की नजरें उस से मिलीं, दानिया की आंखों में एक रुखाई थी पर अब जब वह चेतन की आंखों में अपने लिए एक चाहत महसूस कर चुकी थी, दानिया के मन में बहुतकुछ चलता रहता.

वह अपनी उम्र की लड़कियों से ज्यादा चतुर हो चुकी थी, ज्यादा सजग. आसपास के लड़कों से भी उस की अच्छी दोस्ती थी. वह सब से हंसतीबोलती चलती. लोग उसे पसंद करते. उस की इमेज एक अच्छी, शरीफ लड़की की थी. छोटे कसबे में जो भी इन मांबेटी से परिचित थे, सब मांबेटी के हौसले की तारीफ करते पर इन का दुख कोई नहीं जानता था. अपने दुखों की हवा भी मांबेटी ने किसी को लगने नहीं दी थी. समाज ऐसे लोगों से भरा हुआ है जो अपने दुख चुपचाप पीते हैं. ऐसे लोग जान चुके होते हैं कि दुख बांटा तो भारी पड़ेगा.
एक दिन उमर कपिल को ले कर अदरा से मिलवाने आया हुआ था. उस दिन दानिया स्कूल से जल्दी घर लौट आई थी. उसे अपनी तबीयत कुछ खराब लग रही थी. वह जैसे ही अंदर आई, उमर और कपिल चौंक पड़े. नई उम्र का भोला, मासूम चेहरा दोनों को अपने काम का लगा. दानिया ने उन पर दूसरी नजर नहीं डाली. किसी से कुछ न कहा. उस के सीने में फिर एक आग लगी. मां का डरा हुआ दयनीय चेहरा देखा, बीच की चादर खींची और अपने बिस्तर पर लेट गई.

उमर और कपिल ने आपस में इशारा किया और निकल गए. उमर ने जातेजाते अदरा के हाथ में कुछ रुपए देते हुए कहा, ‘बाद में फोन करूंगा.’ अपने काम के लिए उमर ने उसे एक सस्ता फोन भी ले कर दे दिया था. दानिया ने यह भी महसूस किया कि जिन निगाहों से कपिल और उमर ने अभी उसे देखा था, वह शायद आगे अपनेआप को भी बचा न सके. वह अम्मी की तरह किसी मुसीबत में फंस सकती है. दोनों के जाते ही दानिया ने उठ कर बीच की चादर हटा दी. अदरा ने उस के हाथ को छू कर देखा, ‘‘जल्दी आ गई, तबीयत तो ठीक है?’’
‘‘शायद पीरियड होने वाला है. पेट में बहुत दर्द था. टीचर से बोल कर आ गई. यह नया आदमी कौन था?’’
‘‘चेतन बार वाला.’’
दानिया चौंकी, कहा कुछ नहीं.
दानिया अब हर समय यह सोचने लगी कि अपनी अम्मी को कैसे इस मुसीबत से बाहर निकाले. दिमाग चलता रहता, मंसूबे बनाती रहती. बाहर निकल कर कपिल ने उमर से कहा, ‘‘मां को तो देख ही लेंगे, मु झे अपने बार के लिए यह लड़की चाहिए. उसे बारगर्ल की नौकरी करने के लिए बोल दो. ऐसी लड़की बार में रहेगी तो मु झे बहुत फायदा होगा.’’
‘‘नहीं, साहब. लड़की तो कुछ नहीं करेगी. उस की मां ने मना किया है. लड़की को कुछ कहा तो वह तूफान खड़ा कर देगी.’’
कपिल ने एक भद्दा ठहाका लगाया, कहा, ‘‘और तुम मां से डर गए?’’
उमर कुछ बोला नहीं, सोचता रहा.
कुछ दिनों बाद उमर ने अदरा के सामने दानिया के लिए बारगर्ल की नौकरी का प्रस्ताव रखा. अदरा भड़क गई. उमर ने कहा, ‘‘अरे, तुम चिल्ला क्यों रही हो? बारगर्ल का मतलब धंधा करना थोड़े ही होता है. काउंटर पर ही तो खड़े होना है. वेटर की तरह सम झ लो.’’
‘‘मु झे कुछ सम झाने की जरूरत नहीं है. मेरी बेटी अभी पढ़ेगीलिखेगी. उस से दूर रहो.’’ उमर चला गया, जातेजाते कह गया, ‘‘अपनी बेटी से भी एक बार पूछ लेना.’’

दानिया आई तो अदरा ने सब बताया. वह कुछ देर सोचती रही, फिर बोली, ‘‘शाम को थोड़ी देर ही जाना है न. खाली ही रहती हूं, कुछ कमा लूंगी. शायद आप को फिर यह सब न करना पड़े.’’
‘‘नहीं बेटा, इन लोगों से दूर ही रहो.’’
‘‘पर साथसाथ काम करती रहूंगी तो मैं शायद आप को इस मुसीबत से बचा सकूं. मु झे आप का साथ चाहिए. ये लोग खतरनाक हैं, जानती हूं लेकिन मु झे कोशिश करने दें अम्मी. मु झ पर यकीन करो, मैं बहुतकुछ सोच चुकी हूं. मु झे थोड़ा बाहर निकलने दें. मैं आप की मदद करना चाहती हूं. घर और स्कूल ही करती रही तो आप को इस से निकाल नहीं पाऊंगी. मु झे बाहर जाने दें.’’
‘‘पर तू सोच क्या रही है? इन से कैसे सामना कर सकते हैं? कैसे बच सकती हूं?’’ कहतेकहते अदरा की आंखें भर आईं. आगे थकी सी बोली, ‘‘ठीक है, पर संभल कर रहना.’’

चेतन और दानिया आंखों ही आंखों में बहुतकुछ कहसुन चुके थे. चेतन का इश्क जोर मार रहा था. दानिया के दिल में चेतन की चाहत के अलावा भी बहुतकुछ था या यह भी कह सकते हैं कि और कुछ ज्यादा था. उस का ध्यान इस समय प्यारमोहब्बत में नहीं, यहां से अपनी अम्मी को बाहर निकालने में था. उस दिन वह जानबू झ कर अपने दोस्तों के साथ नहीं निकली, थोड़ी देर से निकली.
अप्रैल के दिन थे. बहुत तेज गरमी में अपना सिर और मुंह ढके वह चेतन को देख कर जरा धीरे चलने लगी जिस का रोज इस समय दानिया को देखने का नियम बन गया था. वह एक कोने में पान की दुकान पर खड़ा रहता. आज वह दानिया को अकेले देख कर उस के साथसाथ धीरेधीरे चलने लगा. छोटी जगहों में ऐसे मौके या तो बहुत कम मिलते हैं या जानबू झ कर दिए जाते हैं.
दानिया एक सुनसान सड़क पर मुड़ गई. चेतन हैरान हुआ. एक पेड़ के नीचे जा कर दानिया ने खड़े हो कर अपना चेहरा अपने दुपट्टे से साफ किया. चेतन अपलक उस की तरफ देख रहा था. दानिया का चेहरा उसे उस समय दुनिया का सब से सुंदर चेहरा लगा. उस के देखते रहने से इस बार दानिया शरमा गई जिस से चेतन उस पर और कुरबान हुआ. आज पहली बार बोला, ‘‘तुम्हारा क्या नाम है?’’
दानिया को हंसी आ गई, बोली, ‘‘नाम भी नहीं पता और दीवाने की तरह खड़े रहते हो?’’
चेतन भी हंस दिया, बोला, ‘‘नाम से क्या होता है?’’
‘‘बहुतकुछ होता है.’’
‘‘तुम्हें मेरा नाम पता है?’’
‘‘हां.’’
‘‘कैसे?’’
‘‘जैसे तुम्हें पता था मेरा नाम. तुम पूछने की ऐक्ंिटग ही तो कर रहे थे.’’
चेतन जोर से हंस दिया, ‘‘बहुत तेज हो. मतलब, तुम्हें भी मेरा नाम तुम्हारे दोस्तों ने पता कर के बताया है.’’
‘‘तुम डरे नहीं मेरे नाम से?’’
‘‘न, इस में डरने की क्या बात है? ऐसे ही मिलती रहोगी मु झ से? तुम्हारी अम्मी कपड़े सिलती हैं न?’’
‘‘बहुत पूछताछ करवा ली.’’
‘‘छोटी सी तो जगह है. सब तो जानते हैं एकदूसरे को.’’
‘‘अब जा रही हूं, कल तुम्हारे पापा हमारे घर आए थे. तुम्हारे बार में नौकरी करने के लिए कह रहे थे,’’ कहतेकहते दानिया का चेहरा बहुत उदास हो गया, ‘‘अब शायद तुम से वहीं मिलना हुआ करेगा. हम तो गरीब लोग हैं, जहां काम मिलेगा, वहीं कर लेंगे.’’

चेतन को यह सुन कर बहुत दुख हुआ. दानिया को बस यही देखना था कि चेतन को उस के दुख से दुख होता है या नहीं. दानिया को राहत मिली. उस की आगे की प्लानिंग पर चेतन का स्वभाव बहुत निर्भर करता था. चेतन ने कहा, ‘‘अगर तुम बार में आती भी हो तो मैं तुम्हारा ध्यान रखूंगा. शाम को मैं भी वहां होता हूं. तुम्हें देख
भी लिया करूंगा, तुम्हारा ध्यान भी रख लूंगा.’’
‘‘यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी. हम मांबेटी का तो कोई है नहीं,’’ कहते हुए दानिया ने अपने आंसू पोंछे जो निकले ही नहीं थे.
चेतन गंभीर हुआ, बोला, ‘‘चिंता मत करो. पापा भी उमर मियां के साथ मिल कर काफी अच्छे काम करते रहते हैं. उमर मियां ने ही बताया होगा कि तुम्हारे यहां पैसे की तंगी है, अब तुम चिंता मत करो.’’

दानिया ने मन में सब को गालियां दीं पर उदास बनी रही. शाम को उमर ने अदरा को फोन किया, ‘‘दानिया से पूछा, काम करेगी वह?’’

तब तक दानिया अपनी सहमति दे चुकी थी. तय हुआ कि एक आदमी दानिया को बाइक से ले जाया करेगा, छोड़ कर भी जाएगा. दानिया को कुछ आधुनिक कपड़े ले कर दे दिए गए. बार में जाने वाले पहले दिन मांबेटी एकदूसरे के गले लग कर बहुत रोईं पर दानिया ने बहुत हिम्मत रखी. उस ने कहा, ‘‘अम्मी, अब देखना आप, एक महीना भी नहीं लगेगा, मैं सब संभाल लूंगी. उमर को मैं सबक सिखाऊंगी.’’

पहले दिन जब वह चेतन बार गई, चेतन उसे एक टेबल पर बैठे ही दिख गया. वह शाम को यहीं रहता था. कपिल ने सोचा था कि दानिया को बारगर्ल के साथसाथ और भी बहुतकुछ बना कर रखेगा पर ऐसा न हो, इसलिए दानिया ने पहले से ही चेतन को अपनी अदाओं, प्यार में गुलाम सा बना लिया था. चेतन को उस के सिवा अब और कुछ न दिखता.

दानिया आधुनिक कपड़ों में चमक गई थी. चेतन की निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थीं. दानिया ने काम सम झ कर सब संभाल लिया. वहां के 2-3 लोगों को चेतन ने पता नहीं क्या कहा था कि अब दानिया की तरफ उठने वाली नजरों में अश्लीलता नहीं थी. दानिया सब देखसम झ रही थी. पहला दिन ठीक तरह से बीत गया. 10 बजे रात को उसे घर छोड़ आया गया.

अदरा कहीं बाहर गई थी. दानिया को अपने सीने पर फिर एक बो झ सा महसूस हुआ. आज ही चेतन ने भी उसे एक फोन दे दिया था. वह फ्रैश हो कर चेतन से मीठीमीठी पर दुखी, उदास बातें करने लगी. उस ने महसूस किया कि चेतन कोमल दिल रखता है.

अदरा एक घंटे बाद थकी सी आई. अपनी अम्मी की हालत देख कर दानिया की आंखें भर आईं. उमर के लिए दिल में नफरत के अलाव धधक उठे. दोनों एकदूसरे से कुछ देर तक कुछ नहीं बोलीं. फिर कपड़े बदल कर अदरा दानिया के पास ही लेट गई. उस के बार के काम के बारे में पूछती रही, तसल्ली करती रही कि दानिया के साथ सबकुछ ठीक तो रहा.

कुछ दिन और बीते. चेतन कुछ और दीवाना हुआ. सब को ताकीद कर दी कि दानिया के साथ कुछ भी गलत न हो. दानिया इस चिंता से आजाद हुई तो और अच्छी तरह काम संभाल लिया. वह बार में 3 घंटे ही रहती. अब तो चेतन ही उसे अपनी बाइक पर कभीकभी छोड़ देता. दानिया उसे सचमुच बहुत अच्छी लगने लगी थी. दानिया उसे अपने दुखड़े सुनाती रहती. चेतन का दिल और हमदर्दी से भर जाता. एक दिन चेतन ने उस से पूछा, ‘‘कहीं बाहर चलें, पानीपत चलते हैं, कुछ घूम कर आते हैं?’’

‘‘मुझे ऐसी लड़की मत सम झना, चेतन. मेरे सामने बहुत काम हैं जो मु झे अपनी खुशियों से पहले पूरे करने हैं. सबकुछ उस के बाद सोचूंगी.’’
‘‘अब तो सब ठीक है न? तुम्हें 3 घंटे के हिसाब से पापा अच्छे पैसे देते हैं.’’
‘‘हम कितनी मुश्किल में हैं, चेतन, तुम सोच भी नहीं सकते?’’
‘‘प्लीज, मु झे दोस्त ही समझ कर बता दो.’’
‘‘यह हम मांबेटी का सच और दुख है, इसे मैं किसी से बांटना नहीं चाहती.’’
चेतन का मुंह उतर गया. दानिया ने फिर मुलायम, उदास स्वर में कहा, ‘‘क्या मैं तुम्हें सचुमच अपना दोस्त मान सकती हूं?’’
‘‘हां, अगर मु झ पर विश्वास कर सको. मैं तुम्हारे किसी भी काम आ गया तो मु झे बहुत खुशी होगी.’’

ऐसा नहीं था कि चेतन का पहले किसी लड़की से संबंध नहीं रहा था. अमीर था, सुविधाएं थीं. उस ने 2 लड़कियों के साथ टाइम पास किया था पर दानिया से उसे सचमुच लगाव हो गया था. उस की उदासउदास, सुंदर, बड़ीबड़ी आंखें हमेशा उसे अपनी तरफ खींचतीं. वह अब यह सोचने लगा था कि दानिया के साथ ज्यादा दूर तक तो नहीं चल पाएगा, बहुत सारे मसले होंगे पर जब तक साथ है, वह दनिया के लिए अब सबकुछ करने का मन बना चुका था.

चेतन ने दानिया का हाथ पकड़ा और चूम लिया. दानिया का तनमन पहली बार किसी पुरुष स्पर्श से लहरा सा गया. उस के अंदर अचानक कुछ पिघलने सा लगा. वह एक जादू में घिर गई. इस उम्र के भी अपने ही रंगढंग हैं. चेतन ने प्यार से कहा, ‘‘मु झे बताओ, क्या दुख हैं तुम दोनों को?’’
इस समय दोनों दानिया के घर से कुछ ही दूर थे. चेतन ने रास्ते में बाइक रोक रखी थी. रात के अंधेरे में दानिया उमर के सब कारनामे बताती चली गई. चेतन सांस रोके, हैरान, बुत सा बना सुनता रहा. दानिया के आंसू अंधेरे में चमके तो चेतन को होश आया. उस ने हाथ बढ़ा कर उस की आंखें पोंछी. उस के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘यकीन करना मुश्किल है, कैसे लोग हैं आसपास. मु झे बताओ, कैसे तुम्हारी हैल्प करूं?’’
‘‘चेतन, मैं उमर से बदला लेना चाहती हूं, अम्मी को यहां से दूर ले जाना चाहती हूं.’’
‘‘कैसे ले पाओगी बदला?’’
‘‘मैं ने सब सोच लिया है, साथ दोगे?’’
‘‘हां, बोलो.’’
कपिल का आसपास के कई शहरों में बिजनैस था. वे अकसर टूर पर रहते. मां अमिता भजनकीर्तन में समय बिता देती. चेतन इकलौता लड़का था, दिन में कालेज जाता, कभी नहीं भी जाता. उसे आगे बिजनैस ही देखना था. उस के ऊपर फिलहाल कम ही जिम्मेदारियां थीं. उस ने सोचा, अभी वह आराम से दानिया की हैल्प कर सकता है.
‘‘बोलो, दानिया, क्या करना है,
उमर का परदाफाश करना है, सब को बता दें?’’
‘‘कोई जल्दी यकीन नहीं करेगा. धर्म की बड़ीबड़ी बातें करने वालों की समाज में बड़ी इज्जत होती है. लोग इन जैसों के पीछे पागल हैं. देखा नहीं तुम ने, हमारे धार्मिक गुरु हों या तुम्हारे, कैसेकैसे कांड कर के खुलेआम मजे करते हैं. मु झे उमर के बेटे अमान को किडनैप करना है और अपनी अम्मी को बचाना है.’’
चेतन कुछ सोच रहा था. दानिया उसे सोचों में घिरे देख परेशान हो गई, कहीं चेतन पीछे हट गया तो बड़ी मुश्किल होगी. उस ने फौरन चेतन के कंधे पर सिर रख दिया, ‘‘चेतन, मु झे पहली बार ऐसा दोस्त मिला है जिस से मैं ने अपने दुख बांटे हैं. तुम मेरी हैल्प नहीं भी करोगे तो भी मैं उमर से बदला तो ले कर रहूंगी.’’
नाजुक सी लड़की ने लड़के के कंधे पर सिर रखा हुआ था. लड़की उदास थी. लड़का कैसे न मानता. चेतन ने दानिया का चेहरा उठा कर उस के गाल चूम लिए. दानिया ने चूमने दिए.
चेतन ने कहा, ‘‘जैसा कहोगी, हो जाएगा. बताना, क्या सोचा है, क्या करना है. अभी तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’’

दानिया ने चैन की सांस ली. चेतन ने दानिया को ऊपर से नीचे तक देखा, इस समय वह रैड टौप और ब्लू जीन्स में थी. बालों को उस ने ऊपर कर के बांधा हुआ था पर बाल फिर भी इधरउधर बिखर गए थे. चेहरे पर परेशानी थी पर फिर भी रंगत पर एक चमक थी. दानिया ने पूछ लिया, ‘‘क्या देख रहे हो?’’
‘‘देख रहा हूं कि एक नाजुक सी लड़की अपनी अम्मी को बचाने के लिए क्याक्या करने को तैयार है.’’
‘‘हां, तैयार तो हूं.’’
‘‘ठीक है, चलो. आगे प्लान करते हैं, कैसे क्या करना है,’’ कहते हुए चेतन ने उसे अपनी आगोश में ले लिया. दानिया भी उस के सीने से जा लगी. इस समय उसे कोई खौफ नहीं था, इस से ज्यादा सड़क पर कुछ और हो भी नहीं सकता था. अदरा की हालत ने सचमुच दानिया को बहुत होशियार बना दिया था.

अब दानिया रातदिन यही सोचती रहती कि कैसे क्या करना है. चेतन से भी इस बारे में बात करती रहती. 8 साल का अमान बहुत शरारती बच्चा था. दानिया के घर से कुछ ही दूर एक खेल का मैदान था जहां आसपड़ोस के बच्चे शाम को खेला करते. कुछ लोग टहलते रहते. कुछ किसी पेड़ के नीचे बैठ कर महफिल जमाए रखते. बड़े शहरों की तरह अभी यहां लड़केलड़कियां साथ नहीं दिखते थे. कसबाई माहौल था. प्यारमोहब्बत अब फोन पर या छिप कर ही चला करती.

अमान दानिया को पहचानता था. कई बार उमर उसे और अपनी पत्नी को अपने साथ दानिया के घर ले आता जिस से आसपास वालों को कुछ शक न हो. दानिया ने जब सब प्लानिंग कर ली. चेतन से सब तय हो गया. उस ने अदरा से बस इतना ही कहा, ‘‘अम्मी, हमारी मुसीबत खत्म होने ही वाली है. हम दोनों बहुत जल्दी यहां से निकल जाएंगे.’’ अदरा पूछती रह गई पर इस से ज्यादा दानिया ने कुछ नहीं कहा. बस, अम्मी के गले लग गई और कहा, ‘‘मुझ पर यकीन करना, बस.’’

दानिया ने अगले 2 दिनों की स्कूल की छुट्टी ले ली थी. अदरा के पूछने पर इतना ही कहा, ‘‘कुछ जरूरी काम है. बाहर जा रही हूं. कोई पूछे तो कह देना, मेरी तबीयत खराब है.’’ चेतन अब उस से कई बार कह देता था कि बार भी रोजरोज आने की जरूरत नहीं है. पापा हों, तो शक्ल दिखा देना कि तुम काम कर रही हो. वहां सब मेरे ही आदमी हैं. जो कहूंगा, वही बोलेंगे.’’

इस बात से दानिया को बहुत राहत हो गई थी. तय हुआ था कि पार्क के माहौल का जायजा ले कर दानिया सबकुछ चेतन को बता देगी. अमान के सामने नहीं जाएगी वरना अमान बाद में सब को बता सकता था कि दानिया उसे ले गई थी. दानिया ने दूर से नोट किया कि अमान रोज घर जाने से पहले आइसक्रीम खाता है. बाकी बच्चे उस से आगेआगे चले जाते हैं. अमान थोड़ा आराम से आइसक्रीम खाता हुआ चलता है.

यही समय चेतन ने अमान को किडनैप करने का चुना. उस के 2 दोस्त नीरज और कपिल पहले से पार्क में इधरउधर टहलते रहे. जब अमान घर जाने के समय आइसक्रीम खाता हुआ धीरेधीरे चलने लगा, नीरज ने बहुत तेजी से उस के मुंह पर एक रूमाल रख कर उसे बेहोश किया और पास खड़ी हुई कार में उसे धकेल सा दिया और कार दौड़ पड़ी, जिस में चेतन पहले से बैठा हुआ था. यह पूरा मंजर दानिया ने बहुत दूर से देखा. पहले कदम की सफलता ने उसे जोश से भर दिया.

कैराना से कार से बस 20 मिनट दूर ही शामली में एक पुरानी बस्ती में चेतन के दोस्त राजीव का एक छोटा सा घर खाली पड़ा था. राजीव दिल्ली चला गया था. उस घर की चाबी चेतन के पास ही रहती थी. अमान को वहीं रखा जाना था. चेतन ने अपने यहां काम करने वाले कमल को इस काम में हैल्प के लिए चुना था जो अभी उस घर में चेतन के आने का इंतजार कर रहा था. चेतन अमान को गोद में उठा कर अंदर ले गया. कमल ने उसे अपनी बांहों में ले कर बिस्तर पर लिटा दिया. चेतन ने दानिया को यहां तक पहुंचने का मैसेज डाल दिया. दानिया ने जवाब में थम्सअप की इमोजी भेज दी.

रात में दानिया ने अदरा को सब बता दिया. वह सुन कर घबरा गई पर दानिया ने जब पूरी बात सम झाई तो उसे कुछ तसल्ली हुई. यहां से जाने का मौका दिखा, रातदिन जलते तनमन को सुकून मिलने की उम्मीद दिखी तो बेटी को अपने सीने से लगा लिया. दानिया तो सो गई पर अदरा की आंखों से नींद उड़ी हुई थी. क्या सब ठीक हो जाएगा? क्या सब सचमुच ऐसा ही होगा जैसा दानिया ने सोच लिया है? कहीं उस की बेटी किसी मुसीबत में तो नहीं पड़ेगी?

अगले 2 दिन न तो उमर आया, न अदरा को कहीं जाना पड़ा. सब जगह शोर मच गया कि अमान गायब है. लोग हैरान थे कि इतने शरीफ उमर मियां का क्या कोई दुश्मन हो सकता है? उस की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस तफ्तीश कर रही थी. मैदान में जा कर पूछताछ की गई. आखिरी बार उसे वहीं देखा गया था. दानिया ने अदरा से कहा, ‘‘आप पहले उमर को फोन कर के यहां बुलाओ, उस से बात करूंगी. फिर मु झे चेतन के कुछ और साथियों से भी बात करनी है जो इस समय हमारे साथ हैं.’’

चेतन के बारे में दानिया अदरा को सबकुछ बता चुकी थी. आगे की प्लानिंग पूरी तरह से तैयार थी. अदरा ने उमर को शाम को फोन कर के आने के लिए कहा. दानिया लगातार चेतन के संपर्क में थी. अब सारी मुसीबत खत्म होने का समय आ गया था. उड़ी शक्ल ले कर दुखी सा उमर शाम को आ गया, बीच में लटकी चादर को देखा, इशारे से पूछा, ‘‘दानिया है?’’
‘‘हां, उसे बहुत तेज बुखार है. अमान का कुछ पता चला?’’
‘‘नहीं, सारा कामधंधा ठप हुआ पड़ा है. पता नहीं कौन ले गया है. तुम ने मु झे क्यों बुलाया है?’’ फिर विद्रूप हंसी हंसा, ‘‘क्या तुम्हें भी धंधे की आदत हो गई है. 2 दिन तुम्हें कहीं नहीं भेजा, किसी को यहां नहीं भेजा तो तुम ने मु झे बुलवा लिया.’’
‘‘तुम ने जिस नरक में मु झे धकेला है, वह आदत नहीं, मेरी मजबूरी थी.’’
‘‘अब तो दानिया कपिल को पसंद आ गई है.’’
इतने में दानिया एक कोने से निकल कर आई, ‘‘मु झे पता है, अमान कहां है?’’
उमर को जैसे करंट लगा. वह झटके से खड़ा हो गया. ‘‘क्या बकवास कर रही है, तु झे कैसे पता?’’
‘‘तु झे क्या लगता है, तू हमेशा बेसहारा औरतों को अपने जाल में फंसाता रहेगा, किसी को पता नहीं चलेगा?’’
‘‘अमान कहां है? तु झे तो ऐसा मजा चखाऊंगा कि याद रखेगी. मेरे सेठ लोग तेरा क्या हाल करेंगे, तू सोच भी नहीं सकती.’’
‘‘तू सोच सकता है कि तेरे बेटे के साथ क्याक्या हो सकता है?’’
‘‘तू चाहती क्या है?’’
यही कि तू मु झे इतने पैसे दे कि मैं अपनी अम्मी के साथ यहां से निकल सकूं और फिर हमें तेरी शक्ल कभी न दिखे.’’
‘‘मैं पुलिस को बताता हूं.’’
‘‘चल, मु झे भी बहुतकुछ बताना है.’’

उमर अब डरा. ‘‘मैं पैसे ले कर आता हूं. मु झे अपना बच्चा सहीसलामत चाहिए पर मैं तेरी बात पर यकीन कैसे करूं?’’

दानिया ने अपने फोन में अमान की कई फोटोज दिखाईं. किसी में वह सो रहा था, किसी में रो रहा था.

दानिया ने कहा, ‘‘तू ने पता नहीं कितनी औरतों के साथ बुरा किया है, उन से धंधा करवाता है, समाज के सामने धर्म का ठेकेदार बनता है, तेरी पोल खुलनी ही चाहिए और तू अभी कहीं जाएगा नहीं, फोन पर ही मेरे लिए पैसे मंगवा.’’

उमर ने दांत पीसते हुए मांबेटी को देखा और किसी को फोन किया, ‘‘सेठ, अमान मिल जाएगा, मु झे कुछ रकम चाहिए. इसी समय अदरा के घर भेज दो, जल्दी.’’

आधे घंटे तीनों एकदूसरे को घूरते रहे, सन्नाटा रहा. फिर एक आदमी आया. उमर को एक बैग दिया और चला गया. उमर ने वह बैग दानिया की तरफ फेंका, ‘‘चलो, अमान का पता बताओ.’’

बीच में टंगी चादर हटी, चेतन अपने 3 साथियों के साथ बाहर निकला. ये सब अभी तक जैसे सांस रोके ही सब बात सुन रहे थे जिस से इन की कोई आवाज चादर के उस पार न जाए. उमर के होश उड़ गए. अदरा को
देख चिल्लाया, ‘‘यह सब क्या है? तुम दोनों को मैं छोड़ूंगा नहीं.’’

चेतन ने उमर को एक थप्पड़ मारा. वह हिल गया. ‘‘तू किसी को क्या पकड़ेगा या छोड़ेगा, तू तो खुद ही गया अब.’’ फिर उस ने एक जगह रखे फोन को उठाया, अपने साथियों से कहा, ‘‘थैंक्यू दोस्तो. इस कपटी की यह वीडियो रिकौर्डिंग हम संभाल कर रखेंगे. इस ने जरा सा भी इन दोनों को या किसी और औरत को भी परेशान किया तो यह आदमी ऐसा फंसेगा कि याद रखेगा. मेरे पापा को तो कोई परेशानी नहीं आएगी, उन से तो मैं बात कर ही लूंगा. यही काम से गया. उमर मियां, जाओ, अब सच में सब को अच्छी बातें सिखाओ और कुछ पर खुद भी अमल कर लेना.’’
‘‘तुम चिंता मत करो,’’ दानिया की तरफ देख चेतन का एक पक्का दोस्त राजू हंसा, ‘‘तुम्हारा दोस्त बहुत अच्छा है, अपने बाप से भी पंगा लेने को तैयार है.’’ फिर उमर को एक डंडा जमा
दिया, ‘‘तू तो अब ह्यूमन ट्रैफिकिंग में अंदर जाएगा.’’
दानिया अपनी अम्मी के गले लग गई. दोनों की आंखों से आंसू बह निकले. राजू ने उमर से कहा, ‘‘तुम जाओ, अमान तुम्हें थोड़ी देर बाद मिल जाएगा.’’ उमर चला गया. एक दोस्त अमान को लेने चला गया. अदरा ने चेतन के आगे हाथ जोड़ दिए, सुबक उठी, ‘‘तुम ने आज हमारी बहुत मदद की.’’

‘‘अरे, आंटी,’’ कहते हुए चेतन ने उन के हाथ पकड़ लिए और अपने सिर पर रख लिए, ‘‘आप बस आशीर्वाद दीजिए कि आने वाले समय में भी मैं ऐसी हिम्मत दिखा पाऊं. अभी तो मु झे अपने पापा से भी निबटना है. आप दोनों के लिए पानीपत में छोटा सा घर देख लिया है. आप वहां चली जाइए. दानिया वहां से आगे की पढ़ाई पूरी कर लेगी. मैं आप दोनों से मिलता रहूंगा. अभी आप दोनों यहां की पैकिंग जल्दी कीजिए और फौरन यहां से निकल जाइए. मैं यहां सब देख लूंगा. मैं आप लोगों के बाकी इंतजाम कर के अभी आता हूं. आप जरूरी सामान ले लो, कुछ बचा तो मैं पहुंचा दूंगा. अभी आया,’’ कह कर चेतन बाहर चला गया.

अदरा ने दानिया को गले लगा लिया. उस का मुंह बारबार चूमती रहीं, ‘‘तुम ने अपनी मां को बहुत मुसीबत से बड़ी होशियारी से निकाला है, शाबाश.’’ दोनों जल्दीजल्दी अपना जरूरी सामान बांधने लगीं. इतने में दानिया के फोन पर चेतन का मैसेज आया, ‘जा तो रही हो लेकिन मैं आगे मिलता रह सकता हूं न? हमारी दोस्ती रहेगी न?’’

‘हां’ में जवाब दे कर दानिया मुसकरा दी. आगे उस का और चेतन का रिश्ता कैसा रहेगा, यह तो किसी को नहीं पता था पर यह साफ था कि दोस्ती बनी रहने वाली थी.

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