घटते कुदरती संसाधनों और बढ़ती कृषि लागतों के कारण नए ढंग से खेती करना समय की मांग है. खेती की दुनिया में रोजाना लाभकारी नवाचार हो रहे हैं. जरूरत है तो बस उन्हें अपनाने की. ऐसे ही गेहूं की खेती का एक नया तरीका है सिस्टम आफ व्हीट इंटेंसीफिकेशन (एसडब्ल्यूआई), जो कि श्री विधि से गेहूं के खेती के नाम से जाना जाता है. 1990 में इसे यूएसए में अपनाया गया था. आज देश के कुछ हिस्सों में इस विधि से खेती कर के भारी मुनाफा कमाया जा रहा है. उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की तरफ से फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड के तहत इस तरह के नवाचार को अपनाने पर वित्तीय सहायता भी दी जा रही है. जरूरत है तो बस इसे अपनाने की.

क्या है एसडब्ल्यूआई विधि : सिस्टम आफ राइस इंटेंसीफिकेशन (श्री पद्धति) के आधार पर ही सिस्टम आफ इंटेंसीफिकेशन (एसडब्ल्यूआई) विधि से गेहूं की खेती की जाती है. इस में कार्बनिक खादों के ज्यादा इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है. इस के अलावा लाइन से सही दूरी पर गेहूं की बोआई की जाती है, ताकि पौधों को बेहतर तरीके से प्रकाश व पोषक तत्त्व मिल सकें और हर पौधा स्वस्थ हो सके. इस के अलावा इस विधि में मैकेनिकल तरीकों से खरपतवार निकाले जाते हैं और बेहतर सिंचाई व्यवस्था पर जोर दिया जाता है. इस विधि से एक ओर जहां पैदावार बढ़ती  है, वहीं दूसरी ओर खेती की लागत भी घटती है.

बोआई का समय : गेहूं की समय से बोआई करना बहुत ही अहम है. जैसेजैसे गेहूं की बोआई में देरी होती है, पैदावार घटने लगती है. देर से पकने वाली प्रजातियों की बोआई भी समय से कर देनी चाहिए. गेहूं की बोआई का सही समय नवंबर से मध्य दिसंबर तक है.

प्रजाति : स्थानीय जलवायु और मौजूद बीजों के आधार पर रोगरोधी प्रजातियों को अपनाना चाहिए.

बीजशोधन व बीजउपचार : इस विधि यानी एसडब्ल्यूआई से गेहूं की खेती में बीजशोधन व बीजउपचार बहुत जरूरी हैं. बीजशोधन व बीजउपचार निम्न प्रकार से करते हैं:

*      सब से पहले मिट्टी के बरतन में 20 लीटर कुनकुना पानी लिया जाता है. इस पानी में 10 किलोग्राम बीज डालने चाहिए. बेकार व हलके बीज पानी में तैरने लगेंगे. तैरते हुए बीजों को हटा देना चाहिए. उस के बाद 4 लीटर देशी गाय का पेशाब, 3 किलोग्राम वर्मीकंपोस्ट व 2 किलोग्राम गुड़ को ले कर आपस में खूब अच्छी तरह से मिलाएं. तैयार मिश्रण 1 एकड़ खेत के हिसाब से है.

*      तैयार मिश्रण को 6-8 घंटे के लिए अलग रखें. इस के बाद जूट के बोरे में मिश्रण रख कर हलका पानी छिड़कें. फिर 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बावस्टीन फफूंदीनाशी या 2-3 ग्राम प्रति किलोग्राम ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशी, 7.5 ग्राम प्रति किलोग्राम पीएसबी कल्चर, 6 ग्राम प्रति किलोग्राम एजेटोबैक्टर की परत बीजों पर अच्छी तरह से चढ़ाएं.

*      इस के बाद रात भर (करीब 10-12 घंटे) इन शोधित बीजों को किसी नमीयुक्त जूट के बोरे में अंकुरण के लिए रखें. अंकुरण के बाद बीज बोआई के लिए तैयार हो जाते हैं.

बीज दर : बोआई में प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीजों का इस्तेमाल करें.

खेत की तैयारी : मिट्टी को भुरभुरा बनाने के लिए 3-4 बार तकरीबन 6-8 इंच गहरी जुताई करें. यदि खेत ऊपरनीचे है, तो उसे समतल जरूर करें. बेहतर होगा कि सिंचाई के लिए पानी का सही इंतजाम कर के खेत को छोटेछोटे टुकड़ों में बांटें.

खाद व उर्वरक : खाद व उर्वरक मिट्टी की जांच के आधार पर ही ठीक होते हैं. मोटेतौर पर इस विधि से गेहूं की बोआई करने पर 20 क्विंटल प्रति एकड़ खूब सड़ी हुई कंपोस्ट खाद या 4 क्विंटल प्रति एकड़ वर्मी कंपोस्ट को खेत में अच्छी तरह से मिलाना चाहिए. खेत की तैयारी के समय 30 किलोग्राम प्रति एकड़ डीएपी व 15 किलोग्राम प्रति एकड़ पोटाश प्रयोग में लाना चाहिए. उत्तर भारत में अमूमन जिंक व सल्फर की कमी पाई जाती है, लिहाजा यदि जिंक की कमी हो तो 10 किलोग्राम प्रति एकड़ जिंक सल्फेट अवश्य दें.

बोआई : बोआई के लिए खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है. यदि खेत में नमी नहीं है, तो बोआई से पहले हलकी सिंचाई करें. एक मार्कर व रस्सी के सहारे लाइन से लाइन और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हुए निशान लगा लेने चाहिए. इस के बाद निशानों पर ही 3-4 सेंटीमीटर गहराई पर 2 बीजों की बोआई कर देनी चाहिए. यदि खेत की उर्वराशक्ति कमजोर है, तो 3 बीजों की बोआई कर सकते हैं. देरी से बोआई की दशा में लाइन से लाइन व पौधे से पौधे की दूरी थोड़ी घटाई जा सकती है.

सिंचाई : इस विधि में परंपरागत गेहूं की खेती से लगभग दोगुनी सिंचाई करनी चाहिए, मगर हर बार हलकी सिंचाई करना ज्यादा मुफीद है. पहली सिंचाई 15-20 दिनों पर यानी ताजमूल अवस्था पर बहुत जरूरी है. वैसे ताजमूल अवस्था, गांठ बनने की अंतिम अवस्था व दुग्धावस्था पर सिंचाई करना लाभकारी होता है.

कुछ और ध्यान देने वाली बातें

गेहूं की परंपरागत खेती के तरीके से कुछ अलग होने के कारण इस विधि में निम्न बातें जरूर ध्यान में रखी जानी चाहिए:

*      निराईगुड़ाई व खरपतवार की रोकथाम : मशीनी निराईगुड़ाई करना जरूरी है. इस के लिए सूखे में चलने वाले वीडर का इस्तेमाल करना चाहिए. इस से निराईगुड़ाई और खरपतवार निकालने के काम एकसाथ हो जाएंगे. निराईगुड़ाई व खरपतवार निकालने के काम पहली, दूसरी व तीसरी सिंचाई के 2-3 दिनों बाद करने चाहिए.

*      यूरिया की टापड्रेसिंग : यूरिया की पहली टाड्रेसिंग पहली सिंचाई के दूसरे दिन 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें. दूसरी टापड्रेसिंग तीसरी निराईगुड़ाई के ठीक पहले (लगभग 40 दिनों के आसपास) 13.5 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से करें.

*      मिलने वाली इमदाद : नवीनतम तरीकों से खेती करने के लिए देश भर में विभिन्न योजनाओं के तहत कई तरह की सरकारी मदद का इंतजाम है, जोकि अलगअलग राज्यों में अलगअलग हो सकती है. मगर राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की तरफ से फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड के तहत इस तरह के नवाचार को अपनाने पर माली मदद व सहूलियतें भी दी जा रही हैं, जो कि सभी राज्यों में लागू हैं. इस बारे में राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के लखनऊ स्थित रीजनल कार्यालय के असिस्टेंट जनरल मैनेजर व पीआरओ नवीन कुमार राय ने बताया, ‘कृषि में नवाचार को अपनाने के लिए हमारा बैंक ‘फार्म सेक्टर प्रमोशन फंड’ के तहत आर्थिक सहायता मुहैया कराता है. यही फंड पहले फार्मर टेक्नोलाजी ट्रांसफर फंड (एफटीटीएफ) के नाम से जाना जाता था. ‘फंड सीधे किसानों को नहीं दिया जाता. इस के लिए किसान भाइयों को संगठित हो कर किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान (एनजीओ) जैसे कृषि विज्ञान केंद्र वगैरह से जुड़ना होगा. ’

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