राइटर- प्रो. रवि प्रकाश मौर्य, वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक
भिंडी की खेती गरमी और खरीफ दोनों मौसम में की जाती है, लेकिन सिंचाई सुविधा होने पर गरमी में खेती करना ज्यादा लाभकारी होगा. भिंडी के हरे, मुलायम फलों का प्रयोग सब्जी, सूप फ्राई व अन्य रूपों में किया जाता है, जो कैंसर, डायबिटीज, एनीमिया और पाचन तंत्र के लिए लाभदायक है.
पौधे का तना व जड़, गुड़ और खांड़ बनाते समय रस साफ करने में इस का प्रयोग किया जाता है.
भिंडी ग्रीष्म और वर्षा दोनों मौसम में उगाई जाती है. इस के लिए पर्याप्त जीवांश और उचित जल निकास वाली दोमट भूमि सही रहती है. खेत की तैयारी के समय 3 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80वां भाग यानी 125 वर्गमीटर के हिसाब से)े बोआई के 15-20 दिन पहले खेत में मिला देना चाहिए. मिट्टी जांच के उपरांत ही उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
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गरमी में भिंडी की फसल लेने के लिए फरवरी से मार्च महीने तक और खरीफ की फसल लेने के लिए जून से 15 जुलाई तक बोआई की जाती है.
बोआई से पहले बीजों को पानी में 12 घंटे भिगो कर बोना ज्यादा लाभप्रद है. गरमी में 250 ग्राम और वर्षा में 150 ग्राम बीज प्रति बिस्वा/ कट्ठा में जरूरत पड़ती है.
समतल क्यारियों में गरमी में कतारों से कतारों की आपसी दूरी 30 सैंटीमीटर और पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर और वर्षा में 45-50 सैंटीमीटर कतार से कतार और पौधे से पौधे की दूरी 30 सैंटीमीटर पर रखनी चाहिए.
2 सैंटीमीटर की गहराई पर यह बोनी चाहिए.
भिंडी की किस्मों में काशी सातधारी, काशी क्रांति, काशी विभूति, काशी प्रगति, अर्का अनामिका, काशी लालिमा आदि प्रमुख हैं, जो सभी 40-45 दिन में फल देने लगती हैं. खरीफ की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, पर वर्षा न होने पर सिंचाई जरूर करें.
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गरमी में सप्ताह में एक बार सिंचाई करने की आवश्यकता होती है. खेत में सदैव नमी बनी रहनी चाहिए. देर से सिंचाई करने पर फल जल्दी सख्त हो जाते हैं और पौधे व फल की बढ़वार कम होती है.
खरपतवार को नष्ट करने के लिए गुड़ाई जरूर करें. कीट व रोगों का भी ध्यान रखें. उन्नत तकनीक का खेती में समावेश करने पर प्रति कट्ठा (एक हेक्टेयर का 80 वां भाग) 120-150 किलोग्राम तक उपज हासिल कर सकते हैं.