वर्षा रानी एवं डा. आरएस सेंगर, जेएस विश्वविद्यालय, शिकोहाबाद
खीरे का वानस्पतिक नाम ‘कुकुमिस स्टीव्स’ है. खीरे का मूल स्थान भारत है. यह एक बेल की तरह लटकने वाला पौधा है, जिस का प्रयोग सारे भारत में गरमियों में सब्जी के रूप में किया जाता है. खीरे को कच्चा, सलाद या सब्जियों के रूप में प्रयोग किया जाता है.
खीरे के बीजों का प्रयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है, जो शरीर और दिमाग के लिए बहुत बढि़या है. खीरे में 96 फीसदी पानी होता है, जो गरमी के मौसम में अच्छा होता है.
इस पौधे का आकार बड़ा, पत्ते बालों वाले और त्रिकोणीय आकार के होते हैं और इस के फूल पीले रंग के होते हैं. खीरा एमबी (मोलिब्डेनम) और विटामिन का अच्छा स्रोत है. खीरे का प्रयोग त्वचा, किडनी और दिल की समस्याओं के इलाज और अल्कालाइजर के रूप में किया जाता है.
भूमि और जलवायु
खीरे के लिए शीतोष्ण व समशीतोष्ण दोनों ही जलवायु उपयुक्त होती हैं. इस के फूल खिलने के लिए 13 से 18 डिगरी तापमान उपयुक्त होता है. पौधों के विकास व अच्छी पैदावार के लिए 18 से 24 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान की जरूरत पड़ती है. अच्छे जल निकास वाली दोमट व बलुई दोमट भूमि उत्तम मानी जाती है.
खीरे की खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5.5 से 6.8 तक अच्छा माना जाता है. नदियों की तलहटी में भी इस की खेती अच्छी तरह से की जाती है.
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उन्नतशील प्रजातियां
खीरे की प्रजातियां बहुत सी हैं जैसे हिमांगी, जापानी लौंग ग्रीन, ज्वाइंट सेट, पूना खीरा, पूसा संयोग, स्वर्ण शीतल, फाइन सेट, स्टेट 8, खीरा 90, खीरा 75, हाईब्रिड 1 व हाईब्रिड 2, पंजाब खीरा 1, पंजाब नवीन, पूसा उदय, पंत संकर खीरा 1, कल्यानपुर हरा खीरा इत्यादि है.
खेत की तैयारी
खीरे की खेती की तैयारी के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें और 3-4 जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए. आखिरी जुताई में 200 से 250 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद मिला कर नालियां बनानी चाहिए.
बीज की मात्रा
एक हेक्टेयर में तकरीबन 2 से 2.5 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. बोआई खेत में नाली बना कर की जाती है. बीज शोधन 2 ग्राम केप्टान प्रति लिटर पानी में मिला कर बीज को 3 से 4 घंटे भिगो कर छाया में सुखा कर बीज की बोआई करनी चाहिए.
बोआई का उचित समय
इस की बोआई 2 मौसम में की जाती है. पहली खरीफ में जून से जुलाई महीने में और दूसरी जायद में जनवरी से फरवरी महीने तक. बोआई के लिए खेत की तैयारी के बाद 50 सैंटीमीटर चौड़ी, 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर 25 से 30 सैंटीमीटर गहरी नालियां पूर्व से पश्चिम दिशा में तैयार कर के 45 से 50 सैंटीमीटर की दूरी पर 5 से 6 बीज एक जगह बोते हैं. पौध से पौध की दूरी 45 से 50 सैंटीमीटर रखते हैं और नाली के दोनों ओर ऊपर की आधी दूरी पर बोआई की जाती है.
खाद व उर्वरकों का सही इस्तेमाल
सड़ी गोबर की खाद 200 से 250 क्विंटल खेत की तैयारी करते समय आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए. इस के साथ ही नाइट्रोजन 40 किलोग्राम (यूरिया 90 किलोग्राम), फास्फोरस 20 किलोग्राम (सिंगल सुपर फास्फेट 125 किलोग्राम) और पोटैशियम 20 किलोग्राम (म्यूरेट औफ पोटाश 35 किलोग्राम) का उपयोग बोआई के समय कर दें.
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बिजाई के समय नाइट्रोजन का एकतिहाई हिस्सा और पोटैशियम और फास्फोरस की पूरी मात्रा डालें. एक महीने बाद बचा हुआ यूरिया पौधों को दें.
सिंचाई का उचित समय
गरमी के मौसम में इस को बारबार सिंचाई की जरूरत होती है और बारिश के मौसम में सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. इस को कुल 10-12 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है.
बिजाई से पहले एक सिंचाई जरूरी होती है. इस के बाद 2-3 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें. दूसरी बिजाई के बाद, 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें.
खरपतवारों व निराईगुड़ाई का सही समय
बोआई के 20 से 25 दिन बाद निराईगुड़ाई करनी चाहिए. खेत को साफ रखना चाहिए. यदि खरपतवार ज्यादा जमते हों, तो नालियों के खरपतवार निकलना बहुत जरूरी होगा. उस समय वाइन, जिसे पौधा कहते हैं, को उल?ाने नहीं देना चाहिए, जिस से पैदावार पर बुरा असर न पड़ सके.
जहां पर खरपतवार अधिक उगते हैं, वहां पेंडीमेथेलीन की 3.3 लिटर मात्रा को 1,000 लिटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव बोआई के 1-2 दिन के अंदर कर देना चाहिए, जिस से कि खरपतवारों का जमाव न हो सके.
रोग पर करें नियंत्रण
इस में फफूंदी के रोग लगते हैं जैसे डाउनी मिल्ड्यू फफूंदी, पाउडरी मिल्ड्यू फफूंदी, स्कोरपोरा धब्बा रोग व विषाणु रोग लगते हैं. इन की रोकथाम के लिए प्रमाणिक बीज बोना अति आवश्यक है. उपचारित बीज ही बोना चाहिए. फसल चक्र जरूर अपनाना चाहिए. साथ ही, कोसावेट गंधक 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में या कैरोथिन 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में मिला कर 3-4 छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए.
विषाणु रोग की रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोमाईसीन 400 पीपीएम का छिड़काव पेड़ों पर 10 दिन में 2 बार करना चाहिए.
कीट नियंत्रण के उपाय
खीरे में कई प्रकार के कीट भी लगते हैं जैसे माहू, बग, पेंटासूमिड़ बग व कुकरबिट माइट, मैलानफ्लाई आदि. रोकथाम के लिए ग्रसित पौधों को उखाड़ कर अलग कर लेना चाहिए. इस के साथ ही पौधों को अवश्य जला देना चाहिए.
माहू कीट के लिए मोनोक्रोटोफास या डेमीक्रोन का छिड़काव करना चाहिए. मैलानफ्लाई की रोकथाम के लिए जहरीली वेट 50 ग्राम मैलाथियान इस के साथ में 200 ग्राम शीरा व 2 लिटर पानी में मिला कर छिड़काव कर के नष्ट किया जा सकता है.
फलों की तुड़ाई
फसल में जब खाने योग्य फल मिलने लगें, तो सप्ताह में 2 बार तुड़ाई करनी चाहिए. मादा फूल आने के एक सप्ताह में फल खाने योग्य हो जाते हैं. फलों की तुड़ाई लगातार करते रहना चाहिए, ताकि फल मिलते रहें. जितना मुलायम फल बाजार में बेचने के लिए जाता है, उतनी ही अच्छी कीमत मिलती है.
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फलों की पैदावार
तकनीकी की सभी क्रियाएं अपनाने पर फसल से हमें 100 से 120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर खाने योग्य फल प्राप्त होता है.
भंडारण
तुड़ाई के बाद खीरों की ग्रेडिंग कर दें. उस के बाद हवादार प्लास्टिक के केरेट या टोकरी में डाल कर मंडी भेज दें. तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए.