खाने की कमी या बढ़ते दामों का एक पुराना इलाज एक मंत्री महोदय ने फिर दोहराया है कि मत खाओ. उन्होंने कहा है कि दालों की कीमत नरेंद्र मोदी सरकार की गलत नीतियों से नहीं बढ़ी, वह तो ज्यादा खाने से बढ़ी है. दालों की खपत 226 लाख मीट्रिक टन हो गई, पर उत्पादन 170 लाख मीट्रिक टन हो रहा है.
पूछा जा सकता है कि खपत क्या एक रात में बढ़ गई थी? खाद्य मंत्रालय या वित्त मंत्रालय में क्या घोड़े सो रहे हैं जो देख नहीं सकते कि प्रोटीन को देने वाली दालों की जरूरत बढ़ेगी, जैसेजैसे बच्चे बड़े हो कर युवा और जवान बनेंगे. मंत्रीजी ने यह भी कहा है कि दाल बाहर से आयात नहीं कर सकते, क्योंकि वहां दाल की जगह मीट खाते हैं और भारतीयों के लिए वे दालों का उत्पादन करेंगे, इस की गुंजाइश नहीं है.
मंत्रीजी की पार्टी ही गौहत्या के नाम पर देश में पहले से ही मौजूद मीट को खाने पर रोक लगाने की जरूरत पर जोर देती है, क्योंकि उसे गौदान का माहौल बनाए रखना है. गौदान ही तो हिंदू धर्म की जान है, क्योंकि सदियों से गृहस्थों से जो चीज बिना मेहनत किए दान के नाम पर छीनी जा सकती थी, वह गाय ही थी. उसे तो उठा कर भी ले जाना नहीं पड़ता, रामायणमहाभारत ऐसे राजाओं के गुणगानों से भरे हैं, जिन्होंने सुंदर गायों और सुंदर लड़कियों को दान में ऋषिमुनियों को दिया था. अब हिंदू राज तो तभी आएगा न जब यह दोहराया जाए, चाहे उस की वजह से आम आदमी भूखा रह जाए.
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