कोर्टरूम में गैंगस्टर को गोलियों से भूनने वालों की लिस्ट तो जैसे अब खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही. कहीं पुलिस की सिक्योरिटी में हत्या, तो कहीं कोर्टरूम के बाहर हत्या. इतना ही नहीं, पुलिस स्टेशन के अंदर भी हत्या. ना जाने ये लिस्ट अब कितनी लंबी होने वाली है. लेकिन यहां सब से बड़ा सवाल ये है कि जज के सामने अपराधियों की हत्या हो रही है या संविधान की? आप की राय क्या है, जरूर बताएं. उस से पहले जान लें कुछ जानकारीपरक तथ्य...

उत्तर प्रदेश का माफिया अतीक अहमद और अशरफ अहमद की हत्या तो आप सब को याद ही होगी. इस घटना को अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, जब मैडिकल के लिए ले जाने पर पुलिस की कस्टडी में बड़ी आसानी से दोनों ही गैंगस्टर्स को गोलियों से भून दिया गया. अपराधी गिरफ्तार जरूर हुए, लेकिन ये सोचने वाली बात है कि भला उत्तर प्रदेश पुलिस की सिक्योरिटी इतनी कमजोर थी कि उन के होते हुए आंखों के सामने 2 कुख्यात माफियाओं की शूटरों ने गोली मार कर हत्या कर दी. क्या ये पुलिस की सिक्योरिटी पर सवाल नहीं खड़े करता? क्या ये कानून का उल्लंघन नहीं था? क्या ये संविधान की हत्या नहीं? हालांकि लोग आज खुश भी हैं कि 2 माफियाओं का अंत हो गया, लेकिन सवाल वहीं कानून का क्या?

अब बात करते हैं अगले मामले की... लखनऊ सिविल कोर्ट में 8 जून को दिनदहाड़े एक बड़े गैंगस्टर संजीव उर्फ 'जीवा' को गोलियों से छलनी कर दिया गया. इस मामले में एक बड़ा खुलासा हुआ है. पुलिस को शुरुआती जांच में पता चला है कि जीवा को मौत के घाट उतारने के लिए एक बड़ी साजिश को अंजाम दिया गया है और इस गहरी साजिश में शूटर विजय यादव एक मोहरा भर था और कुछ नहीं. पुलिस की पूछताछ में उस ने कबूल किया कि उस ने जीवा की हत्या के लिए सुपारी ली थी.

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