कोरोना संकट ने देश में जब दस्तक दी थी तब किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था खासतौर से उन नेताओं और मंत्रियों ने जिनहे जनता देश भर की ज़िम्मेदारी सौंपती है.  इस लापरवाही की सजा आज पूरा देश कैसे कैसे भुगत रहा है यह सबके सामने है. सबके सामने तो यह दृश्य भी है कि कोरोना की जंग सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकेले लड़ रहे हैं उनके मंत्रिमंडल के अधिकतर सदस्य हैरतअंगेज तरीके से खबरों से ही गायब हैं.

ऐसा क्यों है इस सवाल का सटीक जबाब तो यही निकलता है कि मंत्रियों को बोलने ही नहीं दिया जा रहा जिससे चारों तरफ नरेंद्र मोदी ही दिखें . यह भी सच है कि कोरोना के बारे में कोई उल्लेखनीय या उपयोगी जानकारी किसी के पास है नहीं सिवाय इन चंद जुमलों के कि कोरोना को हराना है और संकट के इस वक्त में 130 करोड़ देशवासियों को एकजुटता दिखानी है.

इस एकजुटता को भी एक दायरे में बांधकर रख दिया गया है जिसका संचालन और प्रवंधन भी नरेंद्र मोदी अपने मुताबिक कर रहे हैं जिसके 3 एपिसोड 22 , 24 मार्च और 5 अप्रेल को लोग तमाशों की शक्ल में देख चुके हैं.

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इमेज चमकाने की कोशिश

कोरोना के बवंडर के ठीक पहले सबसे बड़ा मुद्दा सीएए और एनआरसी क़ानूनों का विरोध था. मुसलमानों सहित बेकबर्ड हिन्दू एनआरसी का विरोध कर रहे थे जिसका केंद्र दिल्ली का शाहीन बाग बन गया था. इस विरोध जो शिक्षण संस्थाओं तक में दाखिल हो गया था को दबाने सरकार ने हड़बड़ी से काम लिया. एनआरसी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के बयानों में विकट का विरोधाभास था जिसने लोगों की बेचैनी और बढ़ा दी थी.

शाहीन बाग का विरोध अमूमन शांत ही था लेकिन फिर जो दंगे भड़के तो सरकार और खासतौर से नरेंद्र मोदी की छवि बिगड़ने लगी थी . उनके बारे में आम राय यह बनने लगी थी जो सच भी थी कि वे एक के बाद एक एकतरफा फैसले हिटलर स्टाइल में ले रहे हैं और यह इत्तफाक की बात नहीं मानी जा सकती कि सभी फैसले मुस्लिम समुदाय में ही खलबली मचाने बाले क्यों हैं.

शाहीन बाग के एतिहासिक प्रदर्शन के दौरान मोदी सरकार बढ़ती बेरोजगारी और गिरती जीडीपी को लेकर भी आरोपों के कटघरे में आई थी लेकिन उसकी किरकिरी उस वक्त ज्यादा हुई थी जब प्रदर्शनकारियों को समझाने या बात करने सरकार की तरफ से अमित शाह नहीं गए थे बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर अजित डोभाल को भेजा गया था. इसके बाद  दंगे हालांकि थम गए लेकिन नरेंद्र मोदी की इमेज देश भर में बिगड़ने लगी थी. दिल्ली और झारखंड विधानसभा चुनाव नतीजे इसी नजरिए से देखे और विश्लेषित किए गए थे कि मोदी जी में अब वो पहले बाली बात नहीं रही.

तो क्या कोरोना की लड़ाई में उन्हें आगे रखना और बाकी मंत्रियों को नेपथ्य में भेज देना क्या इसी रणनीति का हिस्सा है क्या कि मोदी की छवि फिर से चमके और उनकी स्वीकार्यता फिर से बढ़े इसे मंत्रियों की निष्क्रियता के चलते देखें तो जबाब हाँ में ही निकलता है.

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कौन क्या कर रहा है –

एक संघीय ढांचे और लोकतन्त्र में कई मंत्री होते हैं.  हमारे देश के मंत्रिमंडल में भी हैं लेकिन संकट के इन दिनों में कहाँ हैं, कैसे हैं यह किसी को नहीं मालूम हां 5 अप्रेल की रात जिनहोने दिये जलाए उन्हें न्यूज़ चेनल्स ने दिखा दिया.  इनमें रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह प्रमुख हैं जिन्हें लोग मोदी का उत्तराधिकारी या विकल्प मानने लगे थे .

लेकिन 22 मार्च के जनता कर्फ़्यू के बाद अमित शाह भी गायब से हो गए हालांकि वे बीच बीच में दिखे लेकिन कोई नीतिगत बात उन्होने नहीं कही. इन दिनों वे राहत राशि वितरण का विवरण एक पीआरओ की तरह दे रहे हैं या सड़कों पर हो रही मार कुटाई की शिकायतें सुनकर लाक डाउन का वक्त काट रहे हैं. एकाएक ही अमित शाह हाशिये पर ढकेल दिये गए हैं तो इसके माने हर कोई अपने हिसाब से लगा रहा है कि सरकार में नंबर दो पर भी मोदी हैं या इधर दूसरा नंबर होता ही नहीं.

काफी जद्दोजहाद और मशक्कत के बाद मंत्री बनाए गए कद्दावर ठाकुर नेता राजनाथ सिंह घर में ही मीटिंगे कर समीक्षाएं बगैरह कर रहे हैं जिसके कोई माने नहीं होते सिवाय इसके कि चार छह मंत्री एकसाथ  बैठकर गपशप और गुफ्तगू कर लेते हैं. इससे उनमें कोरोना के बाबत कुछ करने का भाव आ जाता है ठीक वैसे ही जैसे ताली थाली पीटने बालों और दिये जलाने बालों में आया था.

एक और दिग्गज मंत्री नितिन गडकरी ने तो एक हफ्ते से कोई बयान ही नहीं दिया. 26 मार्च को उन्होने अपना एक महीने का वेतन कोरोना वायरस से लड़ने दान देने की घोषणा की थी और दूसरे दिन यह कहा था कि देश भर में टोल प्लाज़ा पर शुल्क नहीं लिया जाएगा यह और बात है कि अब तक वाहनों की अवाजही न के बराबर रह गई थी.

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एक और अहम मंत्रालय विदेश एस जयशंकर के पास है जिनके बारे में आखिरी समाचार 6 दिन पहले यह आया था कि उन्होने अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पेम्पियों से कोरोना वायरस को लेकर फोन पर चर्चा की. ऐसी बातें बेहद औपचारिक होती हैं. सुषमा स्वराज जब विदेश मंत्री थीं तब बिलानागा  ट्वीट जरूर करती रहतीं थीं. कुछ देशवासियों को विदेश से वापस लाने का काम भी उन्होने कर दिखाया था.

देश के तमाम छोटे बड़े मंत्री यही कर रहे हैं और जिनके पास करने यह भी नहीं है वे सुबह कुल्ले के साथ नरेंद्र मोदी की तारीफ करने का अपना प्रिय कार्य कर देते हैं, इनमें कपड़ा और महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी का नाम सबसे ऊपर आता है जो ट्वीट कर बताती रहती हैं कि उनके संसदीय क्षेत्र अमेठी में महिला स्व्यम सहायता समूह खादी के मास्क तैयार कर रहीं हैं और इस बाबत उन्हें 44 मीटर कपड़ा मुहैया कराया गया है. 4 दिन पहले उन्होने अमेठी के गरीबों को मोदी किट भेजी है जिसमें राहत सामग्री है.  यह राहत सामग्री बक़ौल भारत सरकार  की वरिष्ठ मंत्री 5 किलो चावल, 5 किलो आट , 1 किलो दाल, ढाई किलो आलू, 50 ग्राम सब्जी मसाला, 50 ग्राम पिसी हल्दी और 1 किलो नमक है.

अब भला कोई कैसे कह दे कि मोदी के अलावा भी कोई मंत्री कोरोना के खिलाफ लड़ रहा है दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश में मंत्री हल्दी, आटा बाँट रहे हैं तो सहज समझा सा सकता है कि उनकी हालत पार्षदों से भी गई गुजरी हो गई है या कर दी गई है एक ही बात है .

कांग्रेसी परिवार की भाजपाई बहू देश की पहली पूर्णकालिक वित्त मंत्री निर्मला सीता रमन का काम प्रेस कान्फ्रेंस के जरिये राहत राशि और घोषणाएँ भर पढ़ना रह गया है. लोग उन्हे भूल न जाएँ इसलिए उन्होने भी अपना एक माह का वेतन नितिन गडकरी की तरह प्रधानमंत्री केयर फंड में दान कर कोरोना के खिलाफ जंग में अपना योगदान देकर दानदाताओं की लिस्ट में शुमार करबा लिया  रेलें बंद कर देने का ऐलान कर चुके रेल मंत्री भी 29 मार्च से कुछ नहीं बोले हैं सिवाय एक महीने का वेतन पीएम केयर फंड में देने की घोषणा के. यही हाल कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और केंद्रीय उपभोक्ता और सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान के हैं जो सप्ताह में एकाध बार लाक डाउन में  राशन की पर्याप्त उपलब्धता है का डायलोग बोलकर गायब हो जाते हैं.

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केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों को कुछ आवश्यक आश्वासन देकर अज्ञातवास में चले गए हैं कि किसानों की हर समस्या का निदान किया जा रहा है केंद्र सरकार ने फसल कटाई के जरूरी उपकरण उपलब्ध कराने के निर्देश दिये हैं. अव्वल तो किसानों तक उनका यह बयान पहुंचा ही नहीं इसलिए कोई यह पूछने बाला और बताने बाला भी नहीं कि कितने उपकरण कहाँ पहुंचे और कैसे पहुंचे. किसान बेचारा कोरोना और लाक डाउन को झींकता फसल कटाई और बिक्री को रो रहा है कि अब क्या करे.

वैसे भी वक्त कुछ पूछने का नहीं बल्कि कुछ कर दिखाने का है इसके लिए रात को 9 बजे दिये जलाने का अदभुद टोटका समारोह पूर्वक कर और करबा दिया गया है. इसलिए लोगों को फिक्र नहीं करनी चाहिए. पूरा मंत्रिमंडल देश और लोगों की चिंता में इतना दुखी है कि इस दुख के चलते उसके हाथ पाँव फूल गए हैं. एक स्वास्थमंत्री हर्षवर्धन के सिवा कोई बंगले से बाहर नहीं निकल रहा है क्योंकि कोरोना की नजरे इनायत इन पर हो गई तो देश कौन सभालेगा.

तो मोर्चा अकेले प्रधानमंत्री ने संभाल रखा है जो सबसे बड़े आइडिया किंग हैं.  अब यह पहेली कोई नहीं बूझ पा रहा कि उनके दिमाग में थाली ताली पीटने और 9 मिनिट रोशनी करबाने बाले जैसे दिलचस्प आइडिये आते कहाँ से हैं. जहां से भी आते हों लेकिन कोरोना संकट के चलते मोदी की इमेज पर जो धब्बा अर्थव्यवस्था को लेकर लग रहा था वह हालफिलहाल ढँक गया है और अब कोशिश यह की जाएगी कि सारा ठीकरा कोरोना के सर ही फोड़ दिया जाये रही बात एनआरसी की तो हाल फिलहाल इस मुद्दे के उठने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे.

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