कल का लाइट एंड साउंड शो लगभग फ्लाप रहा इस बात को साबित करने सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक यह पोस्ट ही काफी है कि – आज दिया जलाओ अभियान की अपार सफलता के बाद अगले हफ्ते नागिन डांस छत पर ……. .  ऐसी एक नहीं बल्कि अनेकों पोस्ट 2 दिन पहले से ही वायरल होने लगीं थीं जिनमे इस 9 मिनिट के प्रकाश पर्व का जमकर मखौल आम और खास लोगों ने बनाया था.

लड़ाई कोरोना के खिलाफ लड़ी गई ऐसा कहने की कोई वजह या ठोस तर्क किसी के पास नहीं .  हाँ यह जरूर देखा गया कि जंग भक्तगन बनाम बुद्धिमान लोगों के बीच छिड़ गई थी . 8 – 10 करोड़ भक्तों ने नरेंद्र मोदी की वीडियो के जरिये की गई अपील के बाद ही मोर्चा संभाल लिया था . ये भक्त कभी ज्योतिष तो कभी आध्यात्म की आड़ लेकर मोदी को महमानव और अवतार सिद्ध करने अड़ गए थे . होते होते बात तथाकथित हिंदुओं की तथाकथित एकता और लाक डाउन के चलते हताश और मायूस होते लोगों को मनोवैज्ञानिक संबल देने पर आकर टिक गई.

लेकिन जिस तरह 9 के आंकड़े को एक चमत्कार साबित करने की कोशिश शुरू में विरोध से घबराए भक्तों ने की उससे यह भी समझ आया कि भगवा खेमे में इस मुहिम की कामयाबी  को लेकर शंका व्याप्त थी जिसे दूर करने मोदी की अपील से परे खूब आतिशबाज़ी भी की गई , जय जय श्रीराम के नारे भी लगाए गए और वैदिक मंत्रों का भी पाठ ज़ोर ज़ोर से किया गया .

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अगर मकसद यह या कुछ और भी था तो कोई 100 करोड़ लोगों ने इसे उबाऊ और थोपे गए सरकारी फैसले के तौर पर देखा . हाल तो यह था कि एकाध दो चेनल्स को छोडकर सभी भक्त चेनलों ने शाम 7 बजे से ही यह राग अलापना शुरू कर दिया था कि पूरा देश ज़ोर शोर से दिये जला रहा है , प्रकाश पर्व मना रहा है , दिवाली जैसे माहौल को लेकर लोग उत्साहित हैं और मोदी जी के साथ हैं .  इतना ही नहीं रात 9 बजे प्रसारित होने बाले धार्मिक सीरियल रामायण  का वक्त भी 15 मिनिट बढ़ा दिया गया था . इन चेनल्स ने देर रात तक जगमगाती कालोनियों के जगमग नजारे और सेलिब्रिटीज दिखाये जो भाजपा के या उसके समर्थित थे .

इस लिहाज से तो बिलाशक शो हिट रहा लेकिन इसमें देश को 20 फीसदी हिस्से और आबादी तक समेट देने का झूठ उन्हें बोलना पड़ा .  कोई ओड़ीशा , झारखंड , छतीसगढ़ , पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों  के आदिवासी इलाकों और बड़े शहरों की ही झुग्गियों में केमरे लेकर नहीं गया क्योंकि वहाँ मुकम्मल सन्नाटा था . यानि देश वही माना गया जहां बेकबर्ड नहीं बल्कि फारबर्ड लोग रहते हैं . ये मुख्यधारा हैं और कोरोना जैसी विपदा में भी हिन्दू राष्ट्र की कवायद को आकार देने की नाकाम कोशिश में लगे रहे तो बात भगवा गेंग के लिहाज से चिंता की है .

यह कह पाना भी मुश्किल है कि जो थोड़ा बहुत हुआ वह मोदी का लिहाज था या खौफ था या फिर हिन्दुत्व के नायक को फिल्न में बनाए रखने की खिसियाहट थी . तर्क करने बालों के इन सवालों का जबाब भक्त नहीं दे पाये कि लाइट से कोरोना कैसे भागेगा और यह कौन सी थेरेपी है .  जब पोंगा पंथ की बखिया उधड़ने लगी तो झट से एकता और संबल का कार्ड पेश करते यह कहा जाने लगा कि मोदी जी मनोवैज्ञानिक तरीके से लाक डाउन से उपजे अवसाद तनाव और परेशानियों का इलाज कर रहे हैं .

यह दलील भी चंद घंटों में इन जबाबों के साथ खारिज कर दी गई कि राहत और इलाज के नाम पर क्या किया जा रहा है सिवाय हल्ला मचाने के , इसका जबाब भक्तों ने अतिरेक उत्साह के साथ दिया पर साफ दिखा कि अधिकतर लोग इस लाइट शो से किसी तरह का इत्तफाक नहीं रख रहे हैं और बिना किसी लिहाज के इस कर्मकांड और समूहिक मूर्खता का विरोध करते जागरूक नागरिक होने का परिचय दे रहे हैं.

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यही लोकतन्त्र की खूबी और पहचान भी है कि लोग ज्यादा वक्त तक बेकार के ड्रामों से नहीं बहलते .  यही वे लोग हैं जो कोरोना को लेकर वास्तविक रूप से चिंतित और गंभीर हैं और चाहते हैं कि संकट के इस दौर में महज मुसलमानों को दिखाने एकता प्रदर्शित न की जाये .

लेकिन चूंकि होना जाना कुछ नहीं है इसलिए यह वर्ग अब नागिन डांस जैसी बात कर जी हल्का कर रहा है तो यह उन भक्तों के लिए नागवार गुजर रहा है जो चाहते यह हैं कि सभी उनकी तरह दिमागीतौर पर दिवालिये होते मोदी को भगवान अवतार और महमानव स्वीकार लें फिर जरूर कोरोना भाग जाएगा . 5 अप्रेल की रात 9 बजे साबित यह हुआ है कि नरेंद्र मोदी अब पहले की तरह लोकप्रिय नहीं रह गए हैं उनकी आलोकप्रियता अब ताली थाली दीयों और नागिन डांस से ज्यादा दिनों तक नहीं ढकी जा सकती.

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