प्रधानमंत्री मोदी इस वक़्त बड़े धर्मसंकट का सामना कर रहे हैं. हाउडी मोदी और नमस्ते ट्रम्प के बाद भारत-अमेरिका के दो नायकों की तेज़ी से परवान चढ़ती दोस्ती में कोरोना ने सेंध लगा दी है. अमेरिका में कोरोना वायरस का संक्रमण बढ़ता ही जा रहा है और इसी के साथ वहां मरने वालों की तादात भी बढ़ती जा रही है.अमेरिकी डॉक्टर्स रिसर्च में लगे हैं कि जल्दी से जल्दी इसकी वैक्सीन तैयार हो सके, मगर कामयाबी हाथ लगने में अभी काफी देर है.

भारत में कोरोना के कई मरीज़ हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा से ठीक हो रहे हैं. ये दवा मलेरिया के उपचार के लिए इस्तेमाल की जाती थी, जो अब कोरोना के मरीज़ों पर अच्छा असर दिखा रही है.गौरतलब है कि भारत में मलेरिया से प्रतिवर्ष हज़ारों जाने चली जाती हैं, लिहाज़ा यहाँ  हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा का उत्पादन ज़्यादा मात्रा में किया जाता है.अब जबकि इस दवा से कोरोना के मरीज़ ठीक हो रहे हैं, तो अमेरिका के राष्ट्रपति ने अपनी दोस्ती का हवाला दे कर मोदी से इस दवा की खेप भेजने को कहा था, मगर भारत ने इस दवा के निर्यात पर पूरी तरह रोक लगा रखी है. भारत में जिस तरह कोरोना संक्रमण दिन-ब-दिन बढ़ रहा है, यहां हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की ज़्यादा से ज़्यादा ज़रूरत पड़ने वाली है. ऐसे में मोदी के सामने एक ओर देश है और दूसरी ओर दोस्ती है। ऐसे में क्या वो अपनी दोस्ती के कारण हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के निर्यात पर लगाया बैन उठा देंगे ?

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक हफ्ते पहले प्रधानमंत्री से फ़ोन पर बात करके हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की खेप अमेरिका भेजने की गुहार लगाई थी। उस वक़्त उनके आग्रह में काफी विनम्रता थी. मगर अब जबकि दूसरी बार ट्रम्प ने मोदी से दवा की आपूर्ति पर मदद की उम्मीद की है तो अबकी बार निवेदन के साथ छिपी हुई धमकी भी है. ट्रम्प ने कल अमेरिकी मीडिया को संबोधित करते हुए कहा है कि मैंने प्रधानमंत्री मोदी से रविवार सुबह इस मुद्दे पर बात की थी.अगर वे दवा की आपूर्ति की अनुमति देंगे तो हम उनके इस कदम की सराहना करेंगे.अगर वे सहयोग नहीं भी करते हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन वे हमसे भी इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद रखें.

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