40 साल के सफर में भाजपा ने सत्ता जरूर कब्जा करके अपनी ताकत को भले ही बढ़ा लिया हो पर उसने अपने "चाल चरित्र और चिंतन" और " पार्टी विद डिफरेंट' की पहचान खो दी है. पार्टी का एजेंडा पूरी तरह से धार्मिक और तानाशाही हो गया है. पार्टी का आंतरिक लोकतंत्र खत्म हो कर हाइकमान युग शुरू हो गया है. जिस देश को कॅरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन बनाने का काम करना चाहिए था वो देश कॅरोना को भगाने के लिए थाली, ताली और दीयों की रोशनी का सहारा ले रहा है.
40 साल पहले 6 अप्रैल 1980 को जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ था.जनता पार्टी से पहले भाजपा जनसंघ के नाम से जानी जाती थी.
भारतीय जनता पार्टी के गठन में अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी, विजयराजे सिंधिया और सिकंदर बख्त जैसे नेताओ का प्रमुख हाथ था.
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1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पूरे भारत मे केवल 2 लोकसभा सीटो पर जीत हासिल हुई थी.अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में भाजपा ने आगे बढ़ना शुरू किया.इस दौरान हिन्दूवादी नेता के रूप में लालकृष्ण आडवाणी का देश मे उदय होना शुरू हुआ.
राम मंदिर से आगे बढ़ी भाजपा
देश मे अपना राजनीतिक असर बढ़ाने के लिए भाजपा ने अयोध्या के राम मंदिर का मुद्दा उठाया. राम मंदिर आंदोलन की कमान भाजपा में लाल कृष्ण आडवाणी ने संभाली और सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली जिससे भजपा को नई ताकत मिली और तब 1989 में भाजपा के समर्थन से केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार बनी. इसके बाद भाजपा का विजय रथ आगे बढ़ने लगा. 1996 में 13 दिन और 1998 में 13 माह की भाजपा सरकार बनी. 1999 में भजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी की अगुआई में सरकार बनी और 5 साल राज किया.
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