मेरा लक्ष्य था डाक्टर बनना. इस लक्ष्य को हासिल करने में मुझे पापा का पूरा सहयोग मिला. किसी भी जगह पेपर देना होता था, वे मेरे साथ रहते और मेरा उत्साह बढ़ाते. पढ़ना तो मुझे होता था परंतु हर मौके पर उन का साथ होता था. कभी मुझे निरुत्साहित देखते तो मुझे प्यार से समझाते कि हर हाल में खुश रहो, जो भी मिले उस में संतुष्ट रहो. मेहनत करती रहो, सफलता अवश्य मिलेगी. उन के विचार सही साबित हुए. मुझे मैडिकल में प्रवेश मिल गया और उन की बदौलत आज मैं एक सफल डाक्टर हूं.
एना सिंह चौहान, कोटा (राज.)
 
मेरे बचपन का ज्यादातर वक्त पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कसबे मानिकतल्ला बाजार में गुजरा है. मैं अपने पिता व मां के साथ ही रहता था. छोटा पुत्र होने के कारण मैं अपनी मां का बहुत दुलारा था. उस समय मेरी उम्र लगभग 
10 वर्ष की रही होगी. 
एक दिन किसी बात को ले कर मां व पिताजी के बीच जोरों का झगड़ा हो रहा था. जो मुझ से बरदाश्त नहीं हो रहा था. मैं ने आव देखा न ताव, एक डंडा पिताजी की पीठ पर दे मारा. वे दर्द से बिलबिला उठे व मुझे मारने के लिए दौड़े. मैं उन के डर से भाग कर अपने घर के बगल में स्थित अमरूद के पेड़ पर चढ़ गया.
अमरूद के पेड़ के बगल में एक गहरा तालाब था. मेरे वजन से पेड़ की शाखा ऊपरनीचे हो रही थी तभी पिताजी को ऐसा आभास हुआ कि पेड़ की शाखा से तालाब में गिरने पर मेरी जान खतरे में पड़ सकती है. वे वहां से चले गए व 5 मिनट बाद लौटे तो उन के हाथ की मुट्ठी चौकलेट से भरी हुई थी.
उन्होंने मुझे दुलारते हुए नीचे आ कर चौकलेट लेने के लिए कहा. मैं सहमते हुए नीचे उतरा व सारी चौकलेटें ले लीं. फिर उन्होंने मुझे प्यार करते हुए समझाया कि गलती हो तो भी किसी को मारा नहीं करते. मैं पिताजी के पैरों पर गिर गया और उन से माफी मांगी. उन्होंने मुझे गले लगा लिया.
के चंद्रा, पटना (बिहार)
 
मैं अपने पापा के साथ जा रहा था. मैं ने देखा, एक स्कूटर वाला एक बच्चे को टक्कर मार कर तेजी से भाग गया. बच्चा सड़क पर गिरा पड़ा रो रहा था. कुछ ही देर में उस की मां वहां आ गई और कहने लगी, ‘‘हम लोग गरीब हैं, कहां से इतना पैसा खर्च कर पाएंगे इलाज में.’’
मेरे पापा बच्चे को डाक्टर के यहां ले कर गए. उस को दवा दिलवाई व पट्टी करवाई. वह महिला मेरे पापा को धन्यवाद देने लगी. पापा ने कहा, ‘‘मुझे धन्यवाद नहीं करो, बच्चे को समय से दवा देती रहना.’’
पापा से जुड़ी ऐसी अनेक छोटीबड़ी घटनाओं के प्रभाव ने मेरे हृदय में दयालुता का बीज कब बो दिया, पता न लगा.
तन्मय कटियार, कानपुर (उ.प्र.) 

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