कुछ दिनों पहले मैं छात्राओं की बैडमिंटन की टीम ले कर ललितपुर गई थी. ललितपुर से झांसी आ कर हमें बांदा के लिए बुंदेलखंड ऐक्सप्रैस पकड़नी थी. वरना सारी रात प्लेटफौर्म पर ही व्यतीत करनी पड़ती. किसी तरह टिकट इत्यादि ले कर सभी छात्राएं अपनाअपना बैग कंधे पर चढ़ाए प्लेटफौर्म पर पहुंचीं तो गार्ड साहब हरी झंडी दिखा चुके थे. 
गाड़ी अभी चली ही थी कि तभी मेरी एक छात्रा को कुछ न सूझा तो चिल्लाई, ‘‘ऐ हरी झंडी, ऐ हरी झंडी, हमें भी ले लीजिए,’’ पता नहीं, शायद लड़कियों को गिरतापड़ता देख कर गार्ड ने ड्राइवर से गाड़ी रुकवा दी. हम सभी लड़कियों समेत जो भी डब्बा आगे पड़ा उसी में चढ़ गए. 
लड़कियों ने किसी भी यात्री को तंग न करते हुए जमीन पर चादर बिछा ली. अंत्याक्षरी खेलते हुए कब बांदा आ गए, पता ही नहीं चला. हमारा बांदा पहुंचना उस दिन अत्यंत आवश्यक था क्योंकि हमारी एक छात्रा की उसी दिन सगाई होनी थी. ड्राइवर व गार्ड की इंसानियत से हम उस दिन गाड़ी पकड़ पाए. आज भी हम उन्हें श्रद्धा से याद करते हैं.
डा. मनोरमा अग्रवाल अदिति, बांदा (उ.प्र.) 
 
बात उन दिनों की है जब मैं 17-18 वर्ष का रहा होऊंगा. उन दिनों जब भी मेरे घर में कोई पर्वत्योहार जैसे दीवाली या होली वगैरह मनाया जाता तो मैं अकसर कह देता, ‘‘क्या फायदा, इन पर्वों को मनाने का? इस से हमें क्या मिलेगा?’’ घर वाले मेरी इस बात पर सिर्फ मुसकरा कर रह जाते, लेकिन कोई कुछ कहता नहीं.
इसी तरह एक बार घर में दीवाली की तैयारी चल रही थी. सभी सदस्य पूरे जोश से तैयारियों में लगे थे क्योंकि एक दिन बाद ही दीवाली थी. सारी तैयारियों को देखते हुए मैं आदतन बोल पड़ा, ‘‘क्या फायदा?’’ तभी मेरे भैया, जो मेरे पास बैठे थे, मुझे थोड़ा डांटते हुए बोले, ‘‘फायदा क्या होगा? क्या तुम कोई बनिया हो जिसे हर चीज में फायदा चाहिए. जरा देखो तो घर का माहौल कितना खुशनुमा लग 
रहा है. बच्चे कितने खुशी से त्योहार 
की तैयारियों में लगे हैं. हर चीज में फायदानुकसान देखना छोड़ दो. पर्व किसी फायदे के लिए नहीं, पारिवारिक खुशी और आपसी मेलजोल के लिए मनाए जाते हैं. इसी बहाने परिवार के सारे सदस्य घर आ जाते हैं और इकट्ठे हो कर हंसीखुशी त्योहार मनाते हैं.’’
सच, भैया की इन बातों ने मेरे हृदय को छू लिया और मेरे जीवन की सोच को बदल दिया जिस से मेरे जीवन में मुसकान फैल गई और मेरी ये ‘फायदे’ बोलने की आदत हमेशा के लिए छूट गई. अब हर पर्व मैं बिना किसी फायदेनुकसान के बेहद खुशी से मनाता हूं.
अमर कुमार, समस्तीपुर (बिहार) 
 

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