रेटिंग: तीन स्टार
फिल्म निर्माता: सतीश कौशिक
फिल्म निर्देशक: राजेश बब्बर
कलाकार : रश्मी सोमवंशी, अनिरूद्ध दवे, जानवी सगवान, अंजवी सिंह हूडा, विधि देशवाल, गौतम सौगात, जगबीर राठी और अन्य
हर लड़की को सपने देखने और सपनो को पूरा करने के लिए मेहनत करनी चाहिए. हर लड़की को सपना देखना सिखाने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देने के मकसद से निर्माता सतीश कौशिक और निर्देशक राजेश बब्बर हरियाणवी भाषा की फिल्म ‘‘छोरियां छोरों से कम नहीं होती’’ लेकर आए हैं. लेखक व निर्देशक की कुछ कमियों के बावजूद यह फिल्म अपने मकसद को सही ढंग से पेश करने में सफल रहती है. यदि फिल्मकार ने थोड़ी सी मेहनत की होती, तो यह फिल्म पुरूष मानसिकता को बदलने में कारगार होने के साथ साथ एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. फिर भी यह ऐसी फिल्म है, जिसे हर माता पिता व हर लड़के व लड़की को अवश्य देखनी चाहिए.
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कहानीः
फिल्म की कहानी हरियाणा एक गांव दिनारपुर की है. जहां अनाथ विकास( अनिरूद्ध दवे) अपने फूफा के यहां रह रहा है. उसके पड़ोस में जयदेव चैधरी (सतीश कौशिक) और सामने जयदेव चैधरी के भाई बलदेव चैधरी (मोहनकांत) रहते है. बलदेव चैधरी धन के मामले में ताकतवर हैं. उनका बेटा है. जबकि जयदेव चैधरी के यहां सुनीता और विनीता दो बेटियां हैं. बलदेव अक्सर जयदेव को बेटियों के होने व बेटे के न होने का ताना मारता रहता है. जयदेव को भी अपने भाई की ही तरह बेटा चाहिए था. वह बार बार अपनी बेटियों को कोसता रहता है कि छोरियां किस काम की हैं. जयदेव अपनी बेटियों पर कई तरह की पाबंदी लगाकर रखता है. विनीता उर्फ विन्नू पतंग उड़ाती है, लड़कों के साथ खेलती है और लड़कों को पीटती रहती है. विकास उसका साथी है. विनीता (रश्मी सोमवंशी) किसी से नहीं डरती. इधर एक दिन बलदेव चैधरी, धोखे से जयदेव चैधरी की सारी जमीन हथिया लेता है. तहसील दार धोखे से जयदेव से जमीन के असली कागज लेकर बलदेव तक पहुंचा देता है. अदालत में जयदेव मुकदमा हार जाता है. वह सारा गुस्सा विनीता पर निकलता है कि यदि उनका छोरा/बेटा होता, तो वह उसके साथ खड़ा होकर उनके दुःख का भागीदार बनता. पिता के ताने सुनकर विनीता अपने ताउ बलदेव के अखाड़े में जाकर उनके कुश्तीबाजों को पटखनी देकर धमकी देती है. विनीता हर बार अच्छे नंबर से पास होती है. उसे स्पोटर्टस कोटे में कौलेज में प्रवेश मिल जाता है. स्कूल व कौलेज हर जगह विकास उसके साथ ही है. जब जयदेव उसे पढ़ने के लिए रोकते हैं, तो जयदेव के पिता विनीता के साथ खड़ा नजर आते हैं. फिर आई पीएस रोहिणी(सोनाली फोगट) से पेरित होकर विनीता आईपीएस के लिए तैयारी करती है, पर बलदेव गुंडो से उसका हाथ पैर तुड़वा देते हैं. उसके बाद जयदेव के घर जाकर शोक प्रकट करते हुए कहते है कि अब तो विनीता कभी चल नहीं पाएगी, बेचारी विनीता से कौन शादी करेगा. वहां पर मौजूद विकास कह देता है कि वह विनीता से शादी करेगा.
कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. विकास का प्रोत्साहन और विनीता की मेहनत रंग लाती है. विनीता को आई पीएस की ट्रेनिंग के लिए चुन लिया जाता है. इधर विनीता आईपीएस की ट्रेनिंग के लिए रवाना होती है, उधर जयदेव पश्चाताप की आग में जलते हुए घर छोड़कर आश्रम में चले जाते हैं. और वहां छोटी लड़कियों को पढ़ाना शुरू करते हैं. आईपीएस बनने के बाद विनीता चैधरी अपने पिता को उनका खोया हुआ मान सम्मान व जमीन वापस दिलाती है. जयदेव कह उठते हैं कि छोरियां छोरों से कम नही होती.
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लेखन व निर्देशनः
यूं तो देखने में फिल्म काफी अच्छी लगती है. ध्वनि, संगीत, दृश्यों का संयोजन व लोकेशन आदि पर बेहतरीन काम किया गया है. मगर पिछले तीस वर्षों से बौलीवुड में सक्रिय फिल्मकार सतीश कौशिक बौलीवुड के मोह से उबर नहीं पाए, इसलिए इसमें उन्होंने बौलीवुड मसाला भी पिरो दिया है.
निर्देशक की सबसे बड़ी कमी यह है कि फिल्म के कई दृश्य ज्यों का त्यों बौलीवुड फिल्मों से चुराए गए हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण फिल्म में विनीता का इंट्रोदक्शन का दृश्य है, जिसमें विनीता पतंग उड़ाते हुए आती है. ‘कलंक’ सहित कई बौलीवुड फिल्मों में हीर्राइनो की इंट्री इसी तरह से दिखायी जा चुकी है. इस तरह फिल्मकार ने क्षेत्रीय सिनेमा यानी कि हरियाणवी सिनेमा को नुकसान ही पहुंचाया है. फिल्म में मेलोड्रामा हावी है.
निर्देशक के तौर पर राजेश बब्बर यह भूल गए कि किरदारों के रोने से दर्शक नहीं रोते. बल्कि आपकी कथा-कथन शैली और किरदार इस तरह से गढ़े होने चाहिए कि सिनेमा देखते समय किरदारों व कहानी के साथ जुड़कर दर्शक की आंखों से बरबस आंसू आ जाएं.
महिला सशक्तिकरण के नाम पर फिल्म की नायिका विनीता को पढ़ाई मे तेज, मारामारी करने में तेज, पंतगबाजी मे अव्वल, कुष्ती लड़ने में माहिर, मुक्केबाजी में माहिर बताते हुए उसे सुपर हीरो की तरह पेश कर फिल्म के लैंगिक पूर्वाग्रह के मुद्दे को उकेरने के मकसद से भटक जाती है. इतना ही नही फिल्म में एक दृश्य है, जहां विनीता कही बहन के पति को महिला पुलिस अफसर थप्पड़ मारते हुए कहती हैं- ‘‘शकर कर कि तेरी बीबी पढ़ी लिखी न होई, आधुनिक और पढ़ी लिखी होती तो तेरा तमाचा वापस तेरे को मारती.. ’’यह संवाद और दृश्य पूर्णरूपेण फिल्म की मूल विषयवस्तु के खिलाफ जाता है.
लेखक व निर्देशक की कुछ कमजोरियों के बावजूद इस फिल्म को हर माता पिता व लड़के लड़कियों को अवश्य देखना चाहिए. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो विनीता के किरदार मे रश्मी सोमवंषी ने शानदार अभिनय किया है. अनिरुद्ध देव के हिस्से करने को कुछ खास नहीं रहा, पर कुछ दृश्यों में उसके चेहरे के भाव बहुत कुछ कह जाते हैं. बाकी के कलाकारो ने ठीक ठाक अभिनय किया हैं.