राजनीति में कब कौन किसका सगा और किसका दुश्मन हो जाए पता नहीं होता. पार्टी आलाकमान को भी प्रदेश कार्यकरणी में सांमजस्य बिठाने का एक बड़ा सिर दर्द रहता है. ये तकलीफ हर एक पार्टी की है. उदाहरण के तौर पर आप राजस्थान में भाजपा को ही ले लीजिए. राजस्थान विधानसभा चुनावों में भाजपा को हार मिली. जबकि वहां के स्थानीय लोगों का कहना था कि यहां की जनता बीजेपी से नाराज नहीं है लेकिन सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया से नाराज है.

बीजेपी आलाकमान को भी ये सब बातें पता चल गईं, बावजूद इसके वो ये फैसला नहीं ले सके कि वसुंधरा को वहां से हटाया जा सके. क्योंकि उनको डर था कि इससे प्रदेश संगठन में दरार पड़ सकती है.

अब कांग्रेस को देखिए. कांग्रेस ‘हिंदुस्तान का दिल’ यानी मध्य प्रदेश जीतने में कामयाब हो गई. लेकिन जब से यहां पर सरकार कांग्रेस सरकार बनी है तो इस पार्टी में अंदरूनी कलह जारी है. कांग्रेस को सत्ता में आए एक साल से ज्यादा का वक्त गुजर गया है, मगर नेताओं में आपसी सामंजस्य अब तक नहीं बन पाया है. महासचिव ज्योतिरादित्य सिंधिया के सड़क पर उतरने वाले बयान और मुख्यमंत्री कमलनाथ के तल्ख जवाब से इतना तो साफ हो ही गया है कि पार्टी के भीतर सब ठीक नहीं है. आने वाले समय में कांग्रेस के सामने नए संकट की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता.

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भाजपा राजस्थान में ऐसी नौबत तो नहीं है जैसी की मध्य प्रदेश कांग्रेस के साथ है लेकिन पार्टी नेतृत्व को लेकर वहां पर भी खींचतान लगा रहता है. दिसंबर 2018 के बाद जब भाजपा की सत्ता यहां से छिन गई तो माना जा रहा था कि हो सकता है वसुंधरा राजे सिंधिया को केंद्र की राजनीति में बुला लिया जाएगा, लेकिन शायद वसुंधरा इसके लिए तैयार नहीं हुईं. अब कांग्रेस के लिए आसान नहीं हो रहा है कि वो कैसे दो नेताओं के बीच की खाई को पाट पाए. सिंधिया की लोकप्रियता मध्य प्रदेश में कम नहीं है. वहीं कमलनाथ की पैठ पार्टी में और प्रदेश की राजनीति में गहरा है.

राज्य में कमलनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने एक साल पूरा होने पर अपना रिपोर्ट कार्ड जारी किया और इस दौरान 365 वचन पूरे करने का दावा भी किया. इतना ही नहीं, आगामी वर्षो के लिए विजन डॉक्यूमेंट भी जारी किया. इसके जरिए सरकार से यह बताने की कोशिश की कि उसने जो वचन दिए हैं, उन्हें पांच सालों में पूरा किया जाएगा.

वर्तमान में सरकार दो बड़े मसलों से घिरी हुई है और वह है विद्यालयों के अतिथि शिक्षक और महाविद्यालयों के अतिथि विद्वानों को नियमित किए जाने का. दोनों ही वर्ग से जुड़े लोग अरसे से राजधानी में अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर धरने पर बैठे हुए है. सरकार उन्हें भर्ती प्रक्रिया में प्राथमिकता दिए जाने की बात कह रही है, मगर दोनों वर्ग कांग्रेस के वचनपत्र का हवाला देकर नियमितीकरण की मांग पर अड़े हैं.

पिछले विधानसभा चुनाव में कमल नाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चेहरा बनाकर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा, जीत मिलने पर राज्य की कमान कमल नाथ को सौंपी गई. यही कारण है कि मुख्यमंत्री कमल नाथ के साथ सिंधिया के सामने भी विभिन्न वर्गो से जुड़े लोग अपनी आवाज उठाते रहते हैं.

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पिछले दिनों ऐसा ही कुछ टीकमगढ़ जिले के कुड़ीला में हुआ. यहां अतिथि शिक्षकों ने अपने नियमितीकरण के लिए नारेबाजी की तो सिंधिया ने कांग्रेस के वचनपत्र का हवाला देते हुए मांग पूरी कराने का वादा किया और कहा कि अतिथि शिक्षकों की मांग को पूरा कराने वे भी सड़क पर उतरेंगे.

यह पहला मौका नहीं, जब सिंधिया ने अपने तेवर तल्ख दिखाए हों, इससे पहले किसानों का कर्ज माफ न होने और तबादलों को लेकर भी सवाल उठा चुके हैं. अब सिंधिया के सड़क पर उतरने वाले बयान पर मुख्यमंत्री कमल नाथ की भी तीखी प्रतिक्रिया आई है, ‘..तो सड़क पर उतर जाएं.’

अतिथि शिक्षकों को लेकर सिंधिया का बयान और उस पर कमल नाथ की प्रतिक्रिया कांग्रेस के भीतर सब ठीक न चलने की तरफ इशारा कर रही है. इससे पार्टी के भीतर नया संकट खड़ा होने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता.

कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति होना है और सिंधिया बड़े दावेदार भी माने जा रहे हैं. साथ ही निगम-मंडलों में अध्यक्षों सहित अन्य पदाधिकारियों की नियुक्तियां होना है. इसके अलावा राज्यसभा की रिक्त हो रही तीन सीटों में से दो कांग्रेस के खाते में जाने वाली है, और बड़े नेता इस पर अपना दावा ठोक रहे हैं. इस टकराव को संभावित नियुक्तियों से जोड़कर देखा जा रहा है.

राज्य में कांग्रेस गुटबाजी के लिए पहचानी जाती रही है, मगर विधानसभा चुनाव से पहले कमलनाथ को अध्यक्ष की कमान सौंपे जाने के बाद गुटबाजी पर न केवल विराम लगा, बल्कि संगठित होकर चुनाव भी लड़ा गया और कांग्रेस को सफलता मिली. अब कांग्रेस में एक बार फिर आपसी खींचतान सामने आने लगी है. यह खींचतान तब सामने आई जब पार्टी ने आपसी समन्वय बनाने के लिए समन्वय समिति बनाई है.

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भाजपा की बांछें खिली…

इस खींचतान ने भाजपा की बांछें खिली हुई हैं, क्योंकि भाजपा के नेता सरकार को गिराने के कई बार बयान दे चुके हैं. अब तो कांग्रेस के भीतर से ही उठे स्वर ने उन्हें उत्साहित होने का मौका दे दिया है, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, “कांग्रेस में सिर फुटौव्वल चल रही है. सिंधिया कहते हैं कि वादे पूरे नहीं किए, इसलिए सड़क पर उतरेंगे, तो कमल नाथ कहते हैं कि उतरते हैं तो उतर जाएं, हम निपट लेंगे. इनके आपस में एक-दूसरे को निपटाने में हमारा प्रदेश और जनता निपट रही है.”

राजनीति के जानकारों की मानें तो राज्य में कमलनाथ सरकार बाहरी समर्थन से चल रही है. समर्थन देने वाले अधिकांश विधायक गाहे-बगाहे सरकार को ब्लैकमेल करते रहते हैं. वहीं सिंधिया समर्थक प्रदेशाध्यक्ष की मांग उठाते रहे हैं. ऐसे में सिंधिया और कमलनाथ के बीच ज्यादा दूरी बढ़ती है तो आने वाले दिन सरकार और संगठन दोनों के लिए अच्छे नहीं होंगे.

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