Smartphones : सरकार द्वारा कई स्कीमों को चलाया जा रहा है. बिना एडवांस मोबाइल फोन और इंटरनैट सेवा की इन स्कीमों का फायदा उठाना असंभव है. ऐसा अनावश्यक जोर क्या सही है?
बढ़ते मोबाइल अर्थात ईगवर्नेंस के प्रभाव से हम सभ्यता का आखिर कौन सा मानदंड अगली पीढि़यों को सौंपने जा रहे हैं. आजकल बहुत सभ्य समाज के असभ्य आचरण पर हम रोजाना पढ़ते भी हैं और रोते तो बहुत हैं. आज के अत्यधिक डिजिटलाइज्ड युग में सवाल उठता है कि हम किस गिरफ्त में फंसने को विवश हैं?
सरकार द्वारा प्रस्तावित सेवाएं जरूरी हैं, इसलिए सभी को इन्हें मानना होगा. लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं यह दिखावा या अत्यधिक नियंत्रण हमारे और आने वाली पीढि़यों के लिए नुकसानदायक न साबित हो.
ईशासन और समाज में मोबाइल की बढ़ती स्वीकार्यता को देखते हुए भारत सरकार ने न केवल नागरिक सेवाओं, बल्कि कई अन्य महत्त्वपूर्ण सेवाओं को भी मोबाइल के जरिए लोगों तक पहुंचाने का निर्णय लिया है. इस के लिए सरकार विभिन्न साझेदारों के साथ मिल कर इस योजना को साकार करने की कोशिश कर रही है.
सरकारी विभागों और एजेंसियों की वैबसाइटों को निर्देशित किया गया है कि ‘वन वैब’ दृष्टिकोण के अंतर्गत मोबाइल कंप्लाइंट का विकास किया जाए पर क्या यह इतना जरूरी हो गया कि इस के बिना काम नहीं हो सकता?
यह सवाल तृप्ति के मन में आया जब वह एक वाकए से गुजरी. हुआ यह कि वह 2 साल बाद अपने शहर पटना गई. कार का पौल्यूशन सर्टिफिकेट एक्सपायर हो गया तो नया बनाना था. नियम बदल गए थे, पहले कार चैक कर के शुल्क का भुगतान कर सर्टिफिकेट मिल जाता था पर इस बार 3 चक्कर लग गए और वजह फोन नंबर आधार से अपडेट करना था. आधार नंबर पर दर्ज फोन नंबर चूंकि पुराना बंद हो चुका था सो पौल्यूशन सर्टिफिकेट नहीं बन पाया.
दूसरे दिन सर्वर डाउन, तीसरे दिन दूसरा नंबर अपडेटेड हुआ, चौथे दिन काम हो पाया. मन में सवाल उठते रहे जब गाड़ी की आरसी संबंधित सभी जानकारी विभाग के पास है तो आधार नंबर, मोबाइल नंबर की बाध्यता क्यों? सरकार मोबाइल के उपयोग पर अनावश्यक क्यों जोर दे रही है?
हम किस के गुलाम हो रहे हैं
पुलिस, पावर, अथौरिटी को पावरफुल बनाने के लिए यह आम नागरिकों के लिए षड्यंत्र ही है. कहीं टैक्नोलौजी का विस्तार निजता का हनन न बन जाए.
इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कई महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मोबाइल आधारित सेवाओं, जैसे एसएमएस (लघु संदेश सेवा), यूएसएसडी (असंरचित पूरक सेवा डेटा), आईवीआरएस (इंटरएक्टिव वौयस रिस्पौंस सिस्टम), सीबीएस (सेल ब्रौडकास्टिंग सर्विस), एलबीएस (स्थान आधारित सेवाएं) आदि के लिए जनरल इंटरफेस उपलब्ध होगा पर इस के दूसरे पहलुओं पर जैसे कि इस की सेवा की लागत अधिक हो सकती है, सुरक्षात्मक मामले, जोखिमों और गोपनीयता संबंधी चिंताओं से फोन और फोन नंबर की अनिवार्यता बोझ बन सकती है.
विरोधाभास
क्यूट परीक्षा में मोबाइल नंबर को आवश्यक रूप में दिखाया गया है. 12वीं के छात्रों के लिए सरकार ने मोबाइल कंपल्सरी किया है. सवाल यह कि कहीं हम नई तकनीक में आगे जाने की होड़ में किसी मेधावी कम आयवर्ग के बच्चे को दूर तो नहीं कर रहे.
यह सही है कि डिजिटल माध्यमों के सुविधाजनक होने के कारण वे औपचारिक शिक्षा व्यवस्था का एक हिस्सा बन गए हैं. हम चाहें या नहीं, आजकल छात्रों के लिए स्कूल में इंटरनैट और सोशल मीडिया का उपयोग जरूरी हो गया है.
यह जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था में मोबाइल आधारित शिक्षा से दूर रहें. मानसिक स्वास्थ्य और हमारे वातावरण के साथ संतुलित व्यवहार की भावना बहुत जरूरी है. आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का विकास इसी रास्ते से संभव है. सरकार की बिना सोचसमझ के लागू की गई नीतियां समस्या का कारण बन रही हैं. यह हैरानी की बात है कि इस मुद्दे पर विपक्ष चुप है.
हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकार गरीब छात्रों व लोगों की शिक्षा और स्वास्थ्य की जिम्मेदारी ले और ये सेवाएं उन्हें मुफ्त में उपलब्ध कराए, न कि मोबाइल जैसी जरूरी सेवाओं के नाम पर उन्हें और अधिक आर्थिक बोझ में दबाए.
लेखिका : पम्मी सिंह ‘तृप्ति’