Film Review : हमारे धर्मग्रंथ अंधविश्वासों और ऊलजलूल बातों से भरे पड़े हैं. उन धर्मग्रंथों में अग्नि को हिंदुओं का देवता बताया गया है. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, अग्नि को आकाश, जल, वायु और पृथ्वी जैसे पंचभूत तत्त्वों में एक माना गया है. पौराणिक कथाओं- अग्नि पुराण और वैदिक शास्त्रों- में अग्नि को सब से युवा देवता माना गया है.
अंधविश्वासभरी इन बातों को मान कर हिंदू हर शुभकार्य में अग्नि का आह्वान करते हैं और आहुति देते हैं, खासकर यज्ञ आदि में तो अग्नि की आहुति देना अनिवार्य माना जाता है. लेकिन यही अग्नि जब विकराल रूप धारण कर उन्हीं लोगों के घरों को जलाती है और विनाश लाती है, तब भी अंधविश्वासी हिंदुओं का भ्रम नहीं टूटता कि अग्नि कोई देवता नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रकोप है.
फिल्म विनाशकारी जैसे अनछुए सब्जैक्ट अग्नि पर राहुल ढोलकिया ने फिल्म ‘अग्नि’ को बनाया है. मलयालम की ‘फायरमैन’ को छोड़ दें तो आग बुझाने की तैयारी करने वाले कर्मियों पर बनी यह पहली फिल्म है. यह फिल्म आग बुझाने वाले कर्मियों के साहस और जुझारूपन को दिखाती है.
राहुल ढोलकिया का कमबैक
राहुल ढोलकिया ने 7 वर्षों बाद कमबैक किया है. उस ने 7 वर्ष पहले फिल्म ‘रईस’ बनाई थी. फिल्म का हीरो शाहरुख खान था. इस फिल्म में उस ने एक फायरमैन की कहानी को दिखाया है. आग बुझाने वालों का काम जितना आसान दिखता है, उतना होता नहीं है. दमकलकर्मी अपनी जान को जोखिम में डाल कर लोगों की जिंदगी बचाते हैं. इस के बावजूद उन्हें वह सम्मान नहीं मिलता जिस के वे हकदार होते हैं. दमकलकर्मियों के काम को अनदेखा कर दिया जाता है. सारी वाहवाही पुलिस ले जाती है. इसी विषय को राहुल ढोलकिया ने अपनी इस फिल्म में उठाया है.
कहानी मुंबई के लोअर परेल इलाके की है. फायर ब्रिगेड टीम के हैड विट्ठल राव (प्रतीक गांधी) इस बात से नाराज हैं कि लोग दमकलकर्मियों को सम्मान नहीं देते. उस का बेटा पिता के बजाय पुलिस में कार्यरत मामा समित (दिव्येंदु शर्मा) को अपना आदर्श मानता है. कहीं पर आग लगने का फोन आने पर विट्ठल की पत्नी (सई ताम्हणकर) डरीडरी सी रहती है. विट्ठल तत्परता से अपनी टीम के साथ आग बुझाने को रवाना हो जाता है. उस की टीम में महिला दमकलकर्मी अवनि (सैयामी खेर) भी है. विट्ठल आग लगने के कारणों की पड़ताल करता है, मगर समित के साथ उस की तकरार होती है.
विट्ठल जांच करता है कि आग लगने की घटनाओं के पीछे कोई साजिश तो नहीं. आग लगने के एक भयानक हादसे में अवनि के मंगेतर की जान चली जाती है, जो खुद एक फायर फाइटर था. विट्ठल को आग लगने की घटनाओं से जुटे कुछ सुबूत मिलते हैं, जो उस के होश उड़ा देते हैं. उसे एक भीषण हादसे के होने की खबर मिलती है जिस में विट्ठल और समित के परिवार समेत कई राजनेता भी मौजूद हैं. वह असली मुजरिम का परदाफाश कर के उस हादसे को होने से रोक लेता है और साबित करता है कि फायर फाइटर्स भी असली हीरो होते हैं.
प्रतीक गांधी की भड़ास
अपनी इस फिल्म में राहुल ढोलकिया ने यह बताने की कोशिश की है कि हमारी सेना, पुलिस और सुरक्षा बलों की तरह एक फायर फाइटर भी सैनिक जैसा होता है. फिल्म की यह पटकथा अच्छी तो है, मगर कहानी सही दिशा में आगे नहीं बढ़ती है.मुख्य फायरमैन की भूमिका में प्रतीक गांधी ने अपने मन की भड़ास को दिखाया है. स्वार्थी पुलिसकर्मी की भूमिका में दिव्येंदु शर्मा का अभिनय बढि़या है. सैयामी खेर भी प्रभावित करती है. फिल्म में संदेश दिया गया है कि जो दमकलकर्मी आप को आग से बचाते हैं उन का सम्मान किया जाना चाहिए. आग लगने के दृश्यों में वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया है. फोटोग्राफी अच्छी है. पार्श्व संगीत ठीकठाक है.