Movie Review :  बौलीवुड की इस साल की सब से कमजोर फिल्म मानी जाएगी ‘सिकंदर का मुकद्दर’. इस साल आई ‘औरों में कहां दम था’ और 2013 में आई ‘स्पैशल 26’ जैसी फिल्में बनाने वाले नीरज पांडे ने अपनी इस फिल्म में 3 क्लाइमैक्स दिखाए हैं. 3 क्लाइमैक्स दिखाने का चलन हौलीवुड सिनेमा में है जिसे नीरज पांडे ने अपनाया है. मगर अफसोस, उस ने ‘सिकंदर का मुकद्दर’ फिल्म को अधर में लटकते छोड़ दिया है.

फिल्म का टाइटल 1978 में आई अमिताभ बच्चन, रेखा, विनोद खन्ना, कादर खान वाली प्रकाश मेहरा की सुपरडुपर हिट फिल्म से लिया गया है. फिल्म एक थ्रिलर ड्रामा है. इस में ऐसे राज और घटनाएं छिपी हैं जो एक के बाद एक खुलती हैं. मगर ये घटनाएं पुरानी और घिसीपिटी हैं.

फिल्म की कहानी 15 साल का सफर तय करती है और इस दौरान आगेपीछे होती रहती है. टर्न और ट्विस्ट्स बिलकुल भी नहीं चौंकाते. कहानी 60 करोड़ रुपए की कीमत के हीरों की चोरी, उन की तलाश करते एक पुलिस इंस्पैक्टर के इर्दगिर्द घूमती है.

कहानी में झोल

कहानी 2009 से शुरू होती है. मुंबई में एक ज्वैलरी एक्जीबीशन लगी थी. तभी एक पुलिस वाले को फोन आता है कि एक्जीबीशन में हीरों की चोरी होने वाली है. वह बताता है कि इस चोरी को 4 लोग अंजाम देंगे जो बंदूकों से लैस हैं. पुलिस चौकन्नी हो जाती है. तभी सिक्योरिटी अलार्म बजने लगते हैं. पुलिस और चोरों के बीच वारपलटवार चलता है. पुलिस चारों चोरों को मार गिराती है.

तभी कामिनी सिंह (तमन्ना) देखती है कि 5 बड़ेबड़े डायमंड्स चुराए गए हैं जिन की कीमत 50-60 करोड़ रुपए के बीच है. पुलिस अफसर जसविंदर सिंह (जिमी शेरगिल) को बुलाया जाता है. जसविंदर वहां सभी से पूछताछ करता है. उसे 3 लोगों पर शक है, पहला सिकंदर (अविनाश तिवारी) जो कंप्यूटर रिपेयरिंग का काम करता था, दूसरी कामिनी (तमन्ना भाटिया) और कामिनी के कलीग जिसे अकसर लोग अंकल कहा करते थे. जसविंदर को लगता था कि ये तीनों मिले हुए हैं. वह उन्हें जेल में डाल देता है. जसविंदर से सिकंदर कहता है कि वह बेगुनाह साबित होगा और जसविंदर को उस से माफी मांगनी होगी.

15 साल का पेंच

कहानी 15 साल आगे जाती है. जसविंदर को शराब पीने की लत लग चुकी थी. उसे नौकरी से भी निकाला जा रहा था. उसी की बीवी कौशल्या (दिव्या दत्ता) भी उसे डिवोर्स दे रही थी. तभी जसविंदर को खबरी का फोन आता है कि जिसे वह ढूंढ़ रहा है वह अबूधाबी में है. यह शख्स सिकंदर था. जसविंदर सिकंदर से माफी मांगने के लिए उसे वापस बुलाता है.

कहानी फिर 15 साल पीछे जाती है. कामिनी और अंकल जमानत पर छूट जाते हैं. सिकंदर वापस घर आता है. कामिनी और सिकंदर की मुलाकात होती है. उसे उस का पति छोड़ कर चला गया था. सिकंदर और कामिनी नजदीक आते हैं. दोनों शादी कर लेते हैं. सिकंदर और कामिनी आगरा शिफ्ट हो जाते हैं. पुलिस सिकंदर, कामिनी और अंकल के खिलाफ वारंट जारी करती है परंतु जज उन्हें बेगुनाह साबित कर रिहा कर देती है.

तभी कामिनी बीमार हो जाती है. उस के इलाज के लिए सिकंदर को एक लाख रुपए की जरूरत है. वह अपने मकान मालिक से डिपौजिट रखे एक लाख रुपए वापस ले लेता है. मगर गुंडे उस से सारे पैसे छीन लेते हैं. वह पहले तो सुसाइड करने की सोचता है, फिर एक मंदिर से पैसे चुराता है. उसे अबूधाबी में काम मिल जाता है.

कहानी फिर पीछे लौटती है. जसविंदर को पता चलता है कि एक हीरा कामिनी के पास है तो वह उसे सिकंदर पर नजर रखने को कहता है. जसविंदर सिकंदर के लिए मुशकिलें पैदा कर रहा था. वह कामिनी को छोड़ कर चला जाता है और एक गांव पहुंचता है. वहां उस की पुरानी गर्लफ्रैंड प्रिया उसे एक नर्सरी में ले जाती है जहां उस ने डायमंड छिपाए थे, जिन्हें सिकंदर ने ही दिया था.

दरअसल वह चोरी सिकंदर ने ही की थी. जसविंदर उसे अरैस्ट कर लेता है. यहां सिकंदर का पूरा प्लान क्लीयर हो जाता है कि उस ने डायमंड्स की चोरी कैसे की. निर्देशक ने अपनी इस फिल्म के लिए बचकानी सी कहानी को खुद ही लिखा है. उस ने दर्शकों को बेवकूफ समझ लिया है. दर्शक फिल्म देखने पर मजबूर हो जाते हैं कि कौन किस का मुकद्दर लिख रहा है. फिल्म की लंबाई कम की जा सकती थी.

तबस्सुम (जोया अख्तर) का किरदार अगर न भी होता तो कोई फर्क न पड़ता. चोरी से पहले कभी एकदूसरे का नाम तक न जानने वाले कामिनी और सिकंदर के बीच अचानक लवस्टोरी कैसे शुरू हो गई, सोच से परे है. मंगेश देसाई के किरदार को एकदम गायब कर दिया गया है.

तमन्ना भाटिया अपने किरदार में जंची है. जिमी शेरगिल का काम अच्छा है. सिकंदर की भूमिका में अविनाश तिवारी जंचा है. पटकथा में काफी झोल है. डकैती का रहस्य खुलने पर मजा नहीं आता. पार्श्व संगीत साधारण है. सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है.

 

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