मुट्ठीभर चरमपंथी मुस्लिम अपनी हरकतों से यूरोप में उन करोड़ों मुस्लिम शरणार्थियों की जिंदगी को नरक बनाने की कोशिश कर रहे हैं,जिन्हें यूरोप के विभिन्न देशों ने अपने लोगों के बेहतर जीवन में कटौती करके शरण दी है.आज यूरोप में मध्यपूर्व से खदेड़े गए 2.4 करोड़ से ज्यादा मुसलमान रह रहे हैं. ये सब मूलतः लीबिया,सीरिया,ईराक,ईरान,जॉर्डन,लेबनान और अफगानिस्तान के मूल निवासी हैं, जिन्हें इनके देशों के मुस्लिम चरमपंथियों ने ही खदेड़ा है और दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश ने इन्हें शरण नहीं दी.
हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिस एलेन कुर्दी की हृदयविदारक मौत ने पूरी दुनिया को भावुक कर दिया था,वह भी सीरियाई मूल का एक तीन वर्षीय कुर्द बच्चा था,जिसके माँ बाप को तुर्की से भगाया गया था और वे चोरी छिपे ग्रीस जाना चाहते थे, मगर तुर्की के ही तट में वह खतरनाक डोंगी डूब गयी जिसमें इस मासूम के सहित करीब 12 लोग डूब गए थे. इस मासूम की मौत देखकर दुनिया रो पड़ी थी.यूरोप के तमाम देशों ने इस आँखें नाम करती तस्वीर को देखकर मुस्लिम रिफ्यूजियों को शरण देने के अपने नियम बदले और उन्हें अपनी सरजमीं में तमाम आंतरिक विरोध के बावजूद जगह दी.
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मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने के मामले में फ्रांस सबसे आगे था. यही वजह है कि आज यूरोपीय देश फ्रांस में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं. उसी फ्रांस को मुस्लिम चरमपंथी रह रहकर बर्बर निशाना बना रहे हैं.पहले एक शिक्षक का एक 18 वर्षीय युवक सर कलम कर देता है,फिर एक और कट्टर युवक उससे प्रेरणा लेकर एक बूढी औरत सहित तीन लोगों को काट डालता है. अब एक और बहादुर सामने आया है जिसने ने एक पादरी को गोली मार दी है. मुस्लिम चरमपंथियों ने अपनी विकृत मानसिकता से उन करोड़ों शरणार्थी मुसलामानों का जीवन असुरक्षित कर दिया है,जिनके पास कहीं और जाने या कमाने खाने की दुनिया में कोई और जगह नहीं है.
ये चरमपंथी बाबा भारती से डाकू खड्ग सिंह की तरह का व्योहार कर रहे हैं.लेकिन ये भूल रहे हैं कि यूरोपीय देश बाबा भारती की तरह चुप रहने का फैसला नहीं कर सकते. मैन्क्रों ने सार्वजनिक तौरपर कह दिया है कि उन्हें डर है कि फ्रांस में 60 लाख से ज्यादा मुसलमान दूसरे दर्जे के नागरिक न बनकर रह जाएं.मुस्लिम बौधिकों को यह समझना चाहिए,इन्हें इन चरमपंथियों के खिलाफ आगे बढ़कर आना चाहिए. लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिस हरकत के लिए इन्हें शर्मसार होना चाहिए, उसकी अनदेखी करके फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ गैरजरूरी गोलबंदी का नाटक दिखा रहे हैं.
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गौरतलब है कि 16 अक्टूबर 2020 को पेरिस से 35 किलोमीटर दूर कानफ्लैंस सेंट-होनोरिन में एक 18 वर्षीय मुस्लिम युवक अब्दुल्लाह अंजोरोफ ने 47 वर्षीय शिक्षक सैमुअल पैटी का सिर कलम कर दिया था.यह बर्बर हत्यारा फ्रांस में चेचेन्या से आया हुआ शरणार्थी था.इसकी बर्बरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने न केवल शिक्षक की बेरहमी से हत्या की बल्कि उसके सिरविहीन शव का वीडियो भी बनाया और इस क्लिप को ऑनलाइन पोस्ट भी कर दिया.जबकि इस इतिहास के शिक्षक का कसूर सिर्फ इतना था कि इसने अपनी कक्षा के छात्रों को अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास का पाठ पढ़ाते हुए, मोहम्मद साहब के उस कैरिकेचर को दिखाया था, जिस पर कई साल पहले हंगामा हुआ था. यह शिक्षक न तो इस कैरिकेचर के बनाये जाने को सही ठहरा रहा था और न ही इसके बनाये जाने पर हुए हंगामे के लिए मुसलमानों की आलोचना कर रहा था.
यह तो सिर्फ अपने छात्रों को यह बता रहा था कि अभिव्यक्ति की आजादी के इतिहास को कहां कहां से गुजरना पड़ता है. लेकिन इस कट्टरपंथी अब्दुल्लाह अंजोरोफ को शिक्षक के शिक्षण का यह ढंग इतना बुरा लगा कि उसने शिक्षक का गला काट दिया.इसी शिक्षक की याद में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 25 अक्टूबर 2020 को फ्रांस के 42 वर्षीय राष्ट्रपति इमैनुअल मैंक्रो ने कहा कि फ्रांस अभिव्यक्ति के अपने संस्कारों से समझौता नहीं करेगा.गौरतलब है कि फ्रांस के राष्ट्रपति ने इसके पहले अब्दुल्लाह अंजोरोफ के बर्बर हमले को इस्लामिक आतंकवाद बताया था और यह भी कहा था कि ऐसे इस्लाम से पूरी दुनिया को खतरा है.साथ ही मैंक्रो ने अपनी यह आंशका भी जाहिर की थी कि इस्लामिक आतंकवाद के चलते फ्रांस में मौजूद 60 लाख से ज्यादा मुसलमान मुख्यधारा से पीछे जा सकते हैं.
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इस्लामिक जगत ने मैंक्रो की इस टिप्पणी को न सिर्फ इस्लाम के विरूद्ध टिप्पणी करार दिया बल्कि यह भी जताने की कोशिश की कि फ्रांस के राष्ट्रपति शार्ली एब्दो मैगजीन कुछ साल पहले बनाये गये मोहम्मद साहब के कार्टूनों को सही ठहरा रहे हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति के खिलाफ इस किस्म के माहौल बनाने में सबसे बड़ी भूमिका तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैय्यप एर्दाऑन की रही, जिन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को टीवी पर प्रसारित अपने एक संदेश में देशवासियों से फ्रांस में बनी चीजों के बहिष्कार का आह्वान किया.तुर्की के इस आह्वान के बाद कई मुस्लिम देशों में यह सिलसिला चल निकला और पाकिस्तान तथा ईरान की संसदों में फ्रांस के राष्ट्रपति के विरूद्ध प्रस्ताव भी पारित किये.पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो इस उत्साह में इतनी बचकानी हरकत कर गये कि अब पूरी दुनिया पाकिस्तान के कृत्य पर व्यंग्य से बस मुस्कुरा भर रही है.
दरअसल पाकिस्तान की संसद ने फ्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने का प्रस्ताव पारित कर दिया. लेकिन जब प्रस्ताव पारित हुआ तो इस पर मीडिया के लिए बनायी जाने वाली रिपोर्ट के समय यह पता चला कि फ्रांस में तो पाकिस्तान का कोई राजदूत ही नहीं है.पाकिस्तान की ये हरकत बहुत ही हास्यास्पद रही.लेकिन इस बात पर न तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान झेंपे और न ही तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोऑन को महसूस हुआ कि वह कुछ ज्यादा ही विरोध की हवाबाजी कर रहे हैं.यह पाखंड नहीं तो और क्या है कि चाहे एर्दोआन हो या इमरान खान अथवा पूर्व मलेशियाई प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद इनमें से किसी ने भी उस 18 वर्षीय अब्दुल्लाह अंजोरोफ की एक बार भी आलोचना नहीं की, जो फ्रांस में मुस्लिम देशों से आया.