त्रेता युग के रामराज में सरकार के लोग वेशभूषा बदल कर जनता के दुखदर्द को राजा तक पहुंचाने का काम करते थे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रामराज में जनता अब गुस्सा जाहिर करने लगी है. गुस्सा जाहिर करने के लिए जनता अपनी जान को भी दांव पर लगाने से परहेज नहीं कर रही है. अपनी आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए लोग विधानसभा भवन और भाजपा कार्यालय के सामने आत्मदाह करने लगे हैं. आत्मदाह की आधा दर्जन घटनाएं इस का सुबूत हैं.
अयोध्या में राम मंदिर बनने के बाद प्रदेश में रामराज बनाने का दावा फेल हो चुका है. जनता की बात नहीं सुनी जा रही जिस से भड़के लोग आत्मदाह का रास्ता चुन रहे हैं.
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उत्तर प्रदेश के विधानसभा भवन, लोकभवन और भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के बीच 200 मीटर की लंबी सड़क आत्मदाह का केंद्र बन गई है. हाई सिक्योरिटी जोन में विधानसभा के चारों तरफ 650 वर्गमीटर का विशेष निगरानी घेरा बनाया गया है. यहां के चप्पेचप्पे पर अत्याधुनिक साधनों से लैस पुलिस लगाई गई है. पुलिस को गच्चा देने के लिए पीड़ित पक्ष ने आत्मदाह की जगह वहीं पर बड़ी मात्रा मे नींद की गोलियां खा कर जान देने की कोशिश शुरू कर दी. अक्तूबर महीने में विधानसभा भवन के सामने इस तरह की 6 घटनाएं घट चुकी हैं.
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4 मामलों में आग लगा कर जान देने की कोशिश की गई जिस में 2 औरतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय अपनी दुखभरी दास्तान कहने के लिए हौट स्पौट बन गया है.
विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह की घटनाएं अनलौक 2 के बाद से तेज हुई. 17 जुलाई को अमेठी की रहने वाली सोफिया और उस की बेटी ने खुद को आग लगा ली. सिविल अस्पताल में इलाज के दौरान सोफिया की मौत हो गई. 13 अक्तूबर को महाराजगंज जिले की रहले वाली अजंलि तिवारी उर्फ आयशा ने भाजपा प्रदेश कार्यालय के सामने आत्मदाह करने की कोशिश की. जली अवस्था में पुलिस ने सिविल अस्पताल में भरती कराया, जहां उस की मौत हो गई. 19 अक्तूबर को लखनऊ के ही हुसैनगंज इलाके के रहने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती ने आत्मदाह करने की कोशिश की. इसी दिन बाराबंकी का रहने वाला परिवार भी आत्मदाह के इरादे से विधानसभा भवन के सामने पहुंचा था. उसे पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया था. 22 अक्तूबर को बेबी खान नामक औरत नींद की गोलियां खा कर बदहवास हालत में विधानसभा गेट के सामने पहुंची, पर पुलिस ने उस को भी पकड़ लिया था.
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कोई नहीं सुनता दर्द
जैसेजैसे सरकार ने जनता की आवाज को सुनना बंद कर दिया है, वैसेवैसे इस तरह की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. फिल्म ‘शोले‘ में पानी की टंकी के उपर चढ़ कर बसंती से मिलने की जिद को सभी ने देखा था. अखिलेश सरकार में परेशान एक नौजवान विधानसभा भवन के सामने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगाने की जिद कर रहा था.
आत्मदाह करने वाले सुरेंद्र चक्रवर्ती डायमंड डेरी कालोनी में जावेद के घर में किराए के मकान में रहता था. वह फोटोकौपी मशीन का कारोबार करता था. साल 2013 से मकान के किराए को ले कर विवाद चल रहा था.
‘तालाबंदी‘ के दौरान बेरोजगारी बढ़ने से सुरेंद्र बेहद परेशान था. ऐसे में जब मकान मालिक ने उस का सामान घर से निकाल कर सड़क पर फेंक दिया, तब आर्थिक तंगी में उसे विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का रास्ता ही समझ आया.
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लखनऊ के सिविल अस्पताल में भरती सुरेंद्र चक्रवर्ती ने बताया, ‘मेरा किराएदारी का मुकदमा चल रहा था. ऐसे में मेरे सामान को जब घर से बाहर फेंक दिया गया, तो मेरे सामने कोई रास्ता नहीं था. पुलिस भी मेरी बात सुन नहीं रही थी. वह मकान मालिक के दबाव में थी. मैं कब तक चुप रहता.
‘मुझे लगा कि अब जान की कीमत पर ही सही पर गूंगेबहरे प्रशासन के सामने अपनी बात कहनी है. मेरे घर से विधानसभा की दूरी एक किलोमीटर थी. मुझे लगा कि अगर सरकार के सामने अपनी आवाज उठाई जाए तो शायद वह मेरी पीड़ा सुन सकेगी. ऐसे में विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने का फैसला किया.‘
बाराबंकी के रहने वाला नसीर और उस का परिवार भी विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने पहुंचा था, पर पुलिस ने पहले ही पकड़ लिया. नसीर सरकारी जमीन पर दुकान लगाता था. नगरनिगम ने दुकान तोड़ दी. परेशान नसीर को कुछ समझ नहीं आया तो सरकार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए उस ने यह रास्ता चुना था.
लखनऊ के राजाजीपुरम की रहने वाली बेबी खान का भाई अपराधी था. पुलिस उसे पकड़ने घर जाती थी. जब वह नहीं मिलता था, तो पुलिस घर वालों के साथ गालीगलौज और बदतमीजी करती थी. पुलिस की इस हरकत से बचने के लिए उस ने यह कदम उठाया.
लखनऊ के ही सिविल अस्पताल में भरती बेबी खान ने बताया, ‘मेरे भाई को पुलिस परेशान कर रही थी. उसे पुराने मुकदमों की धमकी दे कर जेल भेजने के लिए पकड़ने की कोशिश कर रही थी. भाई का मेरे घर किसी भी तरह से कोई आनाजाना नहीं था. इस के बाद भी हर दूसरेतीसरे दिन पुलिस हमारे घर पहुंच जाती थी. पुलिस अकसर रात को घर जाती थी.
‘हम जिस महल्ले में रहते हैं वहां बदनामी होती थी. हम ने कई बार पुलिस को समझाने की कोशिश की कि हम से उस का कोई मतलब नहीं है. ऐसे में उलटे पुलिस हमें ही धमकी दे रही थी. ऐसी बदनामी से बचने के लिए ही हम ने विधानसभा और भाजपा के औफिस के सामने जान देने का संकल्प ले लिया था.’
महाराजगंज की रहने वाली अंजलि तिवारी उर्फ आयशा छत्तीसगढ की रहने वाली थी. महाराजगंज के अखिलेश के साथ उस की शादी हुई. इस के बाद दोनों में विवाद हो गया और वे अलग हो गए.
अंजलि ने मोहम्मद आलम के साथ निकाह किया और आयशा बन कर उस के साथ रहने लगी. कुछ दिन के बाद आलम नौकरी करने अरब चला गया तो उस के घर वालों ने आयशा को ससुराल से निकाल दिया. अंजलि ने पुलिस में शिकायत की तो पुलिस ने सुना नहीं, लिहाजा उस ने आत्मदाह करने का फैसला लिया.
युद्ध सी तैयारी
आत्मदाह की घटनाओं को रोकने के लिए पुलिस को युद्ध की सी तैयारी करनी पड़ी है. विधानसभा भवन और भारतीय जनता पार्टी कार्यालय के सामने आत्मदाह और जान देने की घटनाओं को रोकने के लिए हर 10 कदम पर पुलिस लगा दी गई है.
पुलिस आयुक्त सुजीत कुमार पांडेय बताते हैं, ‘इस क्षेत्र में आनेजाने वालों पर नजर रखी जा रही है. पुलिस के साथ अग्निशमन वाहन, आग बुझाने के उपकरण, कंबल और एंबुलैंस का इंतजाम किया गया है. इस के साथ सभी थानों को हाई अलर्ट भेजा गया है, जिस में आत्मदाह की धमकी देने वालो की सूचनाएं जमा करने और जरूरी कार्यवाही करने के लिए कहा गया है.’
विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह जैसी घटनाओं को रोकने के लिए 18 पुलिस टीमों को तैनात किया गया है. इस के अलावा 50 कंबल, 15 अग्निशमन उपकरण, 4 दोपहिया वाहन, 3 चार पहिया वाहन, एक अग्निशमन वाहन और एक एंबुलैंस वाहन तैनात किया गया है.
विधानसभा भवन लखनऊ के चारबाग से हजरतगंज मुख्य मार्ग पर बना है. मुख्य सड़क मार्ग होने के चलते यहां पर यातायात खूब रहता है. अब यह मार्ग रात के समय बंद कर दिया गया है. सुबह 6 बजे से यह मार्ग यातायात के लिए खोला जाता है. शनिवार और रविवार को यह रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया गया है.
बढ़ रहा है असंतोष
वरिष्ठ पत्रकार योगेश श्रीवास्तव कहते है, ‘सभी घटनाओं की विवेचना करें तो एक बात साफतौर पर दिखती है कि व्यवस्था के प्रति जनता में अंसतोष बढ़ता जा रहा है. लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि वह किस से अपनी बात कहे. थानों में पुलिस अपनी मनमानी करती है. कई बार वह आरोपी के साथ मिल कर पीड़ित के ऊपर ही दबाव बनाने लगती है. अपराध की तमाम घटनाओ में यह बात सामने आती है. उन्नाव के चर्चित रेप कांड, जिस में भाजपा के विधायक रहे कुलदीप सेंगर पर आरोप था, में भी जब उन्नाव की पुलिस ने लड़की की बात नहीं सुनी तो लड़की ने मुख्यमंत्री आवास के पास आत्मदाह करने की कोशिश की थी. उस के बाद उस के मामले में पुलिस ने सुनवाई शुरू की थी.
‘यह घटनाएं देखदेख कर दूसरे परेशान लोगों को भी यही रास्ता सरल लगता है जिस से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं.’
4 पीएम अखबार के संपादक संजय शर्मा कहते हैं, ‘पुलिस नहीं सुनती तो लोग अपने जनप्रतिनिधियों, मंत्रियों, सांसद और विधायक के पास फरियाद ले कर जाते हैं. पिछले दिनों पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और उत्तर प्रदेश के चिकित्सा स्वास्थ्य राज्य मंत्री अतुल गर्ग के 2 फोन ओडियो वायरल हुए, जिन में उन्होंने पीड़ितों की बात नहीं सुनी. उन्हें बुराभला कहा. वे पीडित दोनों मामलों में अपने परिजनो के अस्पताल में भरती होने का दर्द बता कर मदद मांगने गए थे.
‘जब पीड़ित जनता की बात नहीं सुनी जाती तो उसे अपनी बात सुनवाने के लिए यह रास्ता ही दिखता है, जिस की वजह से इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं.’
मनोविज्ञानी समाजसेवी डाक्टर मधु पाठक कहती हैं, ‘इस तरह के मामलों में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टिंग करने लगी है उस में भी संवदेनशीलता की जरूरत है. मीडिया का समाज पर बहुत असर पड़ता है. इन घटनाओं को देख कर लगता है कि अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का यह सब से आसान रास्ता है.
‘अगर लोगो को शुरुआती लैवल पर सुन लिया जाए और परेशानी को दूर कर दिया जाए तो लोग ऐसे कदम कम उठाएंगे. इस तरह के काम पहले भी होते रहे हैं.’