दिल्ली में रामराज्य की परिकल्पना साकार करने पर उतारू हो आए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने लगता है रामायण सलीके से पढ़ी ही नहीं है. मुमकिन है कल को वे इस बात की हिमायत करने लगें कि धर्मकर्म करने वाले शंबूक की तरह दलितवध पाप नहीं है, बाली जैसे निर्दोष बंदर को धोखे से मारना क्षत्रिय धर्म है और चरित्र पर शंका होने पर जनता की मांग पर गर्भवती पत्नी का त्याग भी रामराज्य की परिकल्पना का ही बिंदु है.

अकसर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्रियों पर शक जताने वाले अरविंद की डिग्रियों के औचित्य पर शक हो आना कुदरती बात है कि दोनों में फर्क क्या. बूढ़ों को जनता के पैसे से अयोध्या का तीर्थ करवाने वाले अरविंद खुद अपनी लोकप्रियता को मिट्टी में मिलाने पर उतारू हो आए हैं. बेहतर यह होगा कि वे इस धार्मिक अभियान में अपने भूतपूर्व कवि दोस्त कुमार विश्वास को साथ ले लें जो इन दिनों रामकथा बांचते लग्जरी जिंदगी जी रहे हैं

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कसकता दोस्ताना

पिछले साल तक भाजपाई ज्योतिरादित्य सिंधिया और उन के खानदान को गद्दार कहते रहते थे, अब उन के भाजपा में जाने के बाद यही बात राहुल गांधी इशारों में कह रहे हैं कि भाजपा उन्हें वफादारी का इनाम देते मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी. कभी ज्योतिरादित्य की दादी राजमाता सिंधिया ने भी राहुल की दादी इंदिरा गांधी के साथ ऐसी ही गद्दारी की थी, तब भी कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी थी. यानी कलंक का टीका स्थायी रूप से सिंधियाओं के माथे पर चिपका रहा है.

लेकिन यहां बात टीन एज की दोस्ती की है जो राहुल को ज्यादा साल रही है. इसे गिल्ट भी कहा जा सकता है और खीझ भी. रही बात सिंधिया की, तो वे, दरअसल, दिलोदिमाग से सनातनी हैं जो मजबूरी में कांग्रेस व राहुल से चिपके थे. राजघरानों के सपूतों को दोस्ती जैसे पाक जज्बे से ज्यादा सत्ता प्यारी होती है, यह उन्होंने साबित भी कर दिया.

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बेशक मंदिर-मसजिद तोड़ी…

आम भारतीय टोल नाके पर तो पैसा देने में कलपता है लेकिन सड़क किनारे अतिक्रमण की जमीन पर बने धर्मस्थल देखते ही जेब ढीली कर देता है. ऊपर वाले का न लिया कर्ज वह जिंदगीभर किस्तों में चुकातेचुकाते एक दिन खुद ऊपर चला जाता है, पीछे छोड़ जाता है तो एक निरा अंधविश्वास. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाईकोर्ट के आदेश पर फरमान जारी करते तुक की बात यह कही है कि ऐसे अवैध  मंदिरमसजिद तुरंत हटाए जाएं.

यह बात योगीजी के संस्कारों से मेल खाती नहीं है. शायद उन का सोचना यह रहा होगा कि जब अयोध्या में सब से बड़ा मौल बन गया है तो दरिद्रता फैलाती इन छोटीमोटी गुमटियों की जरूरत क्या. इस से कई पंडेपुजारियों का रोजगार छिन जाएगा. उत्तर प्रदेश में वैसे ही ब्राह्मण उन से नाराज हैं, अब देखना दिलचस्प होगा कि यह नया हुक्म क्या गुल खिलाएगा.

गडकरी की घूसखोरी

आंखों और मूंछों से मुसकराते रहने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की होली बदरंग भी हो सकती है बशर्ते उन पर लग रहा घूसखोरी का इलजाम परवान चढ़ पाए. किस्सा कुछकुछ चंद्रकांता संतति जैसा है. स्केनिया स्वीडन की कार कंपनी वौक्स्वैगन की ब्रांच है जो हैवी व्हीकल बनाती है. स्वीडन के मीडिया स्वेरगेस, जिस का प्रचलित नाम एसवीटी है, ने बीती 10 मार्च को एक रिपोर्ट में कहा है कि स्केनिया भारत में अपना कारोबार बिना किसी अड़ंगे के कर सके, इस बाबत नितिन गडकरी को एक लग्जरी बस तोहफे में दी गई जो 4 दिसंबर, 2016 को उन की बेटी केतकी की शादी में इस्तेमाल भी की गई थी.

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यह बात आम जनता में नहीं आई. लेकिन अंदरूनी बवंडर मचा तो स्केनिया की तरफ से सफाई आई कि यह बस एक प्राइवेट डीलर ने खरीदी थी, फिर इस का क्या हुआ, उसे पता नहीं. अब सच जो भी हो, कभी सामने आ पाएगा, इस में शक है लेकिन गडकरी की चुनरी में दाग तो लग ही गया है.

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