फिल्मों में पूरी तरह से नकार दिए गए और 90 के दशक में दूरदर्शन पर प्रसारित बहुचर्चित "रामायण" सीरियल में राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल की नैया मशहूर फिल्म निर्माता निर्देशक रामानंद सागर ने तो पार लगा ही दी थी. अब लगभग तीन दशक बाद केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को अरुण गोविल की सहारा (बैशाखी) पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मिल गया है. देखना यह दिलचस्प होगा कि चुनाव में अरुण गोविल की "श्रीराम" की छवि को भाजपा नेतृत्व कितना भुना पाता है. पश्चिम बंगाल के प्रतिष्ठा पूर्ण इस चुनाव को, यह कहा जा सकता है कि भाजपा ने पूरी तरह से "राम मय" बनाकर "संप्रदायिकता" की छौंक भी लगा दी है. यहां सवाल यह भी उठता है हिंदू हिंदुत्व, श्रीराम के उछाल को देख कर भी कि निर्वाचन आयोग मौन क्यों है?

भाजपा यह विधानसभा चुनाव अपने राजनीतिक एजेंडे विकास, और पश्चिम बंगाल की तरक्की के मुद्दे पर नहीं, बल्कि श्री राम का उद्घोष करके लोगों के वोट बटोरना चाहती है. यह इस संपूर्ण प्रकरण से एक बार पूरा सिद्ध हो गया है. आइए! देखते हैं कि कैसे एक फिल्मी चर्चित चेहरे अरुण गोविल को जिसने रामायण में राम की भूमिका की थी, किस तरह भाजपा ने अपने पाले में लेकर चुनावी समीकरण को बदलने की रणनीति तैयार की है. और पश्चिम बंगाल के चुनाव में आखिर किस तो है अरुण गोविल का लाभ उठाने का मकसद है.

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प्रधानमंत्री की नीतियों का मुरीद

जैसे कि सभी अभिनेता, चर्चित चेहरे जब राजनीति में आते हैं तो पार्टी के नेतृत्व की प्रशंसा करते हैं. राम की भूमिका करके देश भर में लोकप्रिय और श्रद्धा के पात्र बन गए अरुण गोविल भी कहते हैं कि वे नरेंद्र मोदी की नीति से हुए प्रभावित हैं. विगत वर्ष जब कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद लॉकडाउन हुआ था केंद्र सरकार ने रामायण का प्रसारण किया शो को 7.7 करोड़ से ज्यादा लोगों ने देखा. और यह सब जान गए कि अभी रामायण में काम करने वाले अभिनेता चुके नहीं है और भाजपा इस संदर्भ में बेहद सजग है सो चुनाव में श्री राम की छवि का लाभ उठाने का पूरा पूरा संजाल फैला दिया गया है.
अरुण गोविल ने कहा है कि जय श्रीराम कहने से तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की चिढ़ ने उन्हें भाजपा में शामिल होने के लिए प्रेरित किया है. उन्होंने ममता बनर्जी का नाम लिए बगैर एक तीर छोड़ा है-" उन्हें समझना चाहिए कि भगवान श्रीराम हमारे आदर्श हैं."

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