मौनी अमावस्या के दिन प्रयागराज में गंगा की डुबकी लगाने के बाद प्रियंका गांधी अपने पारिवारिक धर्मगुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद के शिविर में पहुंचीं तो लगा ऐसे जैसे पौराणिक युग की कोई राजकुमारी कोई वर मांगने गई है. प्रियंका के स्वरूपानंद के ही पास जाने के पीछे की कहानी उन हिंदू धर्मगुरुओं की सामंती मानसिकता की देन है जो शूद्रों, मुसलमानों और स्त्रियों का मंदिर में प्रवेश निषेध करते हैं.
इंदिरा गांधी साल 1984 में अपनी हत्या के कुछ दिनों पहले जब पुरी के जगन्नाथ मंदिर गई थीं तो वहां के मठाधीशों ने उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया था. उन के मुताबिक, एक पारसी से शादी करने के बाद वे हिंदू नहीं रह गई हैं. तब स्वरूपानंद ने इंदिरा गांधी का पक्ष लिया था.
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इस घटना से नेहरूगांधी परिवार ने कोई सबक नहीं सीखा. उलटे, और जोरशोर से मंदिरों में जा कर पूजापाठ करना शुरू कर दिया. लेकिन भगवा गैंग ने उन्हें हिंदू नहीं माना तो नहीं माना. अब हिंदुत्व का चोला पहन कर राजनीति करने का टोटका आजमा रहीं प्रियंका अपनी दादी, पिता और भाई राहुल की ही गलती दोहरा रही हैं जिन्होंने जनेऊ तक धारण कर लिया था.
बैलगाड़ी पौलिटिक्स
मैट्रोमैन के नाम से मशहूर 88 वर्षीय श्रीधरन ने साल 2013 में ही नरेंद्र मोदी को प्रतिभाशाली युवा नेता बता कर अपनी भक्ति जाहिर कर दी थी. इस के बाद यह सुगबुगाहट हुई थी कि भाजपा उन्हें बतौर इनाम राष्ट्रपति बना सकती है. लेकिन तब हालात के चलते दलित रामनाथ कोविंद को यह पद दे कर उस ने उभरते दलित असंतोष को थाम लिया था. कई मैट्रो परियोजनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले श्रीधरन इस सदमे को बरदाश्त नहीं कर पाए और अपने गृहराज्य केरल जा कर मंदिरों में श्रीमदभगवतगीता बांचते रिटायरमैंट के बाद का वक्त काटने लगे.
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8 साल गीता पढ़ने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ कि ये मैट्रो, विकास, तकनीक और तेज गति वगैरह सब मिथ्या हैं, असल तो वर्णव्यवस्था वाली सनातन पुरातन संस्कृति है जिसे वामपंथियों के गढ़ केरल में स्थापित करने का टैंडर उन्होंने भाजपा जौइन कर भर दिया है. लगता नहीं कि वे यह ठेका पूरा कर पाएंगे.
गोद से सिर तक
नाना प्रकार की परेशानियां झेल रहे नीतीश कुमार राजद नेता तेजस्वी यादव के हमलावर तेवरों से भी खासे परेशान हैं. विधानसभा के भीतर तेजस्वी ने आक्रामक होते पत्रकारों की गिरफ्तारी, बिहार में बढ़ते अपराधों और ढीली पड़ती खेल गतिविधियों तक पर सरकार को घेरा तो लड़खड़ाए नीतीश पुचकारने के अंदाज में बोले, ‘मैं ने तुम्हें गोदी में खिलाया है. मुमकिन है इस दौरान कभी तेजस्वी ने उन्हें भिगोया भी हो जिस का उल्लेख सदन में नहीं किया जा सका. बात और मुद्दे अतीत में ले जाने का यह मोदी फार्मूला है जो बातबात में नेहरू परिवार को कोसते लोगों का ध्यान भटकाया करते हैं.
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भगवा गैंग की कृपा से मुख्यमंत्री बने नीतीश अब सहज व सैद्धांतिक राजनीति नहीं कर पा रहे जिस के लिए वे कभी जाने जाते थे. इस पर परेशानी यह कि लालू पुत्र ने गोद छोड़ सिर पर चढ़ना शुरू कर दिया है. ऐसे में उन की पहली प्राथमिकता जदयू के विधायक गिनते रहना रह गई है.
अखिलेश – चंद्र
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव सिर पर हैं. भाजपा योगी आदित्यनाथ की कट्टर हिंदूवादी इमेज व राममंदिर निर्माण के सहारे नैया पार लगने का ख्बाव देख रही है और बसपा उस का अंदरूनी समर्थन कर रही है. लेकिन सपा प्रमुख अखिलेश यादव और भीम आर्मी के युवा मुखिया चंद्रशेखर की मेलमुलाकातें जिस तेजी से बढ़ रही हैं उन्हें देख लगता है कि ये दोनों युवा भाजपा को क्लीन स्वीप नहीं करने देंगे.
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अमेरिका की मशहूर मैगजीन ‘टाइम’ में सौ उभरते नेताओं की सूची में जगह पाने वाले चंद्रशेखर को अगर अपनी पार्टी को खड़ा करना है तो उन्हें दलितों के हित में राज्य में पसरते मनुवाद का विरोध करना ही होगा. बसपा इन्हीं सीढि़यों से हो कर सत्ता की छत तक पहुंची थी.