भारत के छोटेबड़े सभी शहर वायु प्रदूषण की चपेट में हैं, किंतु राजधानी दिल्ली की दशा बहुत ज्यादा बदहाल है. हाल ही में दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर सब से अधिक आंका गया है. विशेषज्ञों का मत है कि कोई भी ऐसा कारक, जो कि अंग विकास में बाधक होता है, उस का सर्वाधिक दुष्प्रभाव गर्भस्थ शिशु व नवजात शिशुओं पर निश्चित रूप से होता है. पिछले दिनों ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की बैठक के दौरान वायु प्रदूषण और नवजात शिशुओं की गड़बडि़यों के पारस्परिक संबंध के विषय पर गहन चर्चा की गई थी. ‘ग्लोबल बर्डेन औफ डिजीज’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण के चलते समय से पहले मरने वाले लोगों की संख्या भार में 6 लाख, 20 हजार प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है.

दिल्ली की वायु में सूक्ष्म कणिकीय पदार्थों की मात्रा बहुत ज्यादा होने के कारण ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ और अन्य वैश्विक संस्थाओं द्वारा दिल्ली की गणना विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में की गई है. चिकित्सा विज्ञान में हो रही प्रगति के बाद भी वर्तमान समय में पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण द्वारा मरने वालों की संख्या 8 मिलियन प्रतिवर्ष तक पहुंच चुकी है. यदि समय रहते वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के उचित उपाय न किए गए, तो हालत कितनी भयावह हो सकती है, उस की आज हम मात्र कल्पना ही कर सकते हैं. इस सिलसिले में यदि हम केवल दिल्ली की ही बात करें तो एक बड़ा कड़वा सच सामने आता है. वायु प्रदूषण की समस्या कोई ऐसी समस्या नहीं है, जो कि कोशिश करने के बाद भी खत्म न की जा सके. दुनिया के अनेक शहरों ने दिखा दिया है कि किस प्रकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित किया जा सकता है. यदि हम वायु प्रदूषण के प्रति वास्तव में गंभीर हैं, तो हमें कुछ कड़े कदम उठाने होंगे.

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ये कदम लगभग इंगलैंड, सिंगापुर व चीन द्वारा उठाए गए कदमों के जैसे ही होंगे. वास्तव में ‘राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण’ (नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की आज्ञानुसार 15 साल पुरानी गाडि़यों को सड़क पर चलाने पर प्रतिबंध की व्यवस्था है, किंतु गाड़ी के मालिक और परिवहन एजेंसियां इस प्रतिबंध को लागू करने में अवरोध व इस को खत्म कराने की कोशिश कर रहे हैं. सिंगापुर दुनिया का सब से पहला ऐसा शहर है, जिस ने ‘इन प्राइसिंग’ की नीति लागू की है. इस के तहत हर गाड़ी में एक ‘स्मार्ट कार्ड’ लगा दिया जाता है, जिस के बाद यदि गाड़ी किसी ऐसे क्षेत्र में पहुंच जाती है, जहां बहुत ज्यादा भीड़ के कारण गाडि़यों की गति बहुत धीमी हो जाती है तो उस गाड़ी की पहचान हो जाती है. इस के नतीजे में उस गाड़ी को भीड़ में ‘जैम’ या अवरोध बढ़ाने वाला मान लिया जाता है और ऐसी हालत में गाड़ी पर लगे ‘स्मार्ट कार्ड’ से जुर्माने के तौर पर रकम काट ली जाती है. हकीकत यह है कि यहां कार रखना बहुत ज्यादा खर्चीला है. पिछले कुछ सालों में जब चीन में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया, तो चीन की सरकार ने भी इस संबंध में कुछ कठोर फैसले लिए. इस तरह हम देखते हैं कि लंदन, जरमनी, सिंगापुर व चीन में वायु प्रदूषण के संबंध में कुछ कठोर फैसलों की वजह से शानदार कामयाबी हासिल हुई है.

यदि दुनिया के कुछ देश ऐसा कर सकते हैं, तो हम भारत में भी इस दिशा में कदम क्यों नहीं बढ़ा सकते? कुछ भारतीय विशेषज्ञों का कहना है कि भारत (निम्न उत्सर्जन जोन) अंकित कर पाना संभव ही नहीं है, क्योंकि हम टैक्स भी नहीं देना चाहते हैं और नियंत्रण संबंधी ऐसी हर नीति के खिलाफ आंदोलन करने के लिए तैयार रहते हैं. फिर भी आशावादियों का मानना है कि कम से कम एक शुरुआत तो की ही जा सकती है. यह तो तय है कि वायु प्रदूषण को कम करने का कोई आसान, सुविधाजनक और लोकप्रिय तरीका नहीं हो सकता है. कुछ कड़े नियमकानून ही थोड़ेबहुत मनचाहे नतीजे दे सकते हैं. ठ्ठ सेहत के लिए जरूरी सोयाबीन ] डा. आरएस सेंगर प्रोटीन के अलावा सोयाबीन में तकरीबन 18 फीसदी तेल होता है, लेकिन इस तेल में कोलैस्ट्रौल नहीं होता है और इस में 85 फीसदी अनसैचुरेटेड फैटी एसिड होते हैं, जो सेहत के लिए सही होते हैं. सोयाबीन के तेल में लीनो लिक और लीनो लेइक फैटी एसिड भी काफी मात्रा में होते हैं. ये दोनों ही अनसैचुरेटेड फैटी एसिड हमारी सेहत के लिए बहुत जरूरी होते हैं, क्योंकि ये हम में कोलैस्ट्रौल की मात्रा को कम करते हैं और इस में होने वाली दिल की बीमारियों को रोकते हैं.

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सोयाबीन प्रोटीन को खाने का सब से बड़ा फायदा है कि यह एलडीएल कोलैस्ट्रौल को कम करती है. जिन लोगों के खून में कोलैस्ट्रौल बढ़ा हुआ होता है, उन के खाने में अगर 25 से 50 ग्राम तक सोयाबीन प्रोटीन मिला दें, तो शरीर में कोलैस्ट्रौल से होने वाले हानिकारक असर को दूर किया जा सकता है. सोयाबीन प्रोटीन को भोजन में मिलाने से भोजन का अमीनो एसिड संतुलन ठीक हो जाता है और उस का फायदा शरीर को मिलता है. अगर हम सोयाबीन की तुलना दूसरी दलहनी फसलों जैसे मटर, मसूर और सिम से करें, तो देखेंगे कि सोयाबीन में कार्बोहाइड्रेट कम होता है. इस में डाइटरी फाइबर होते हैं जो कि पूरी तरह से पच नहीं पाते, लेकिन पाचन क्रिया को बढ़ाते हैं. सोयाबीन का फाइबर शरीर में होने वाले क्लोनल कैंसर को रोकता है. प्रतिदिन सोयाबीन खाने से शरीर की बहुत सी पाचन संबंधी बीमारियां रोकी जा सकती हैं. मधुमेह के रोगियों के लिए सोयाबीन बहुत ही उपयोगी होता है. सोयाबीन में विटामिन ए, बी, डी, भी होते हैं. इस में प्रोटीन सी की भी मात्रा काफी अधिक होती है. अगर सोयाबीन को हम अंकुरित कर के खाएं, तो विटामिन सी की मात्रा और भी बढ़ जाती है और इस का काफी लाभ मिलता है. अब देखा गया है कि ज्यादातर लोग अपनी डाइट में मल्टीग्रेन आटा ले रहे हैं.

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इस मल्टीग्रेन आटे में यदि सोयाबीन की मात्रा बढ़ा दी जाए, तो इस का फायदा और ज्यादा मिल सकता है. यदि आप प्रोटीन से भरपूर शाकाहारी भोजन खाना चाहते हैं, तो आप सोयाबीन को अपना आहार बनाइए. निश्चित रूप से आप के शरीर की इम्यूनिटी में इजाफा होगा और रोगों से लड़ने में सहायता मिलेगी. जैसा कि हम भी लोग जानते हैं कि इन दिनों कोरोना महामारी के चलते सब से अधिक जरूरत शरीर की इम्यूनिटी को बनाए रखना है, इसलिए जरूरी है कि अपने आहार में हम ऐसी दालों, सब्जियों व फलों को शामिल करें, जिस से हमारे शरीर की इम्यूनिटी बढ़ सके. इस में सोयाबीन एक बहुत अच्छा स्रोत हो सकता है. जहां तक प्रोटीन की मांग व गुणों का सवाल है, वहां सोयाबीन एक ऐसा आहार है, जिस में संपूर्ण प्रोटीन होता है. सोयाबीन में 41 से 43 फीसदी तक प्रोटीन होता है, जो गुणों में मांस, अंडा और मछली के प्रोटीन के समान ही होता है. सोयाबीन प्रोटीन में 8 अमीनो एसिड होते हैं, जो कि मनुष्यों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी?हैं. मांस की प्रोटीन में कभीकभी वसा और यूरिक एसिड होते हैं व हानिकारक कीटाणु भी होते हैं, लेकिन सोयाबीन के प्रोटीन में इस तरह की कोई भी समस्या नहीं होती है. सोयाबीन प्रोटीन की एक विशेषता यह भी होती है कि इस में लाइसिन नामक अनिवार्य अमीनो एसिड काफी मात्रा में होता है, जो दूसरे अनाजों में नहीं मिलता है.

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