Hindi Story: मनाली सम्यक और अपने बीच किसी को नहीं आने देना चाहती थी. यहां तक कि अपना बच्चा भी. सम्यक हैरान था मनाली की इस सोच और उस रूप को देख कर.

अब और कितना इंतजार करूं, मनाली, तुम कब लौटोगी?

कब सम झोगी खुद को? कब तुम नासम झी के बीहड़ से हमारे पास वापस आओगी? थक गया हूं मैं इन

21 सालों में तुम्हे संभालतेसंभालते. कभीकभी लगता है, मैं भी तुम्हारी तरह नासम झ बन जाऊं? भूल जाऊं इस घर को, घर के हर एक पल को, प्रेम को, रिश्ते की तड़प को, तुम्हें सब भूल जाऊं और निकल जाऊं इस रेतीले तूफान को पार कर आगे किसी नि र्झर की तलाश में.

मगर ज्यों अपनी बेटी किशा को देखता हूं, देखता हूं एक मां के रूप में तुम्हें, मनाली, तो पैर मेरे खुद ही इस रेत के भंवर में धंसते जाते हैं. कैसे छोड़ जाऊं तुम दोनों को अकेला यहां. कोई चारा नहीं कि यहीं बैठ तुम्हारा इंतजार करता रहूं मैं.

सवाल खाने को दौड़ते हैं मु झे कि कब तक? आज भी तुम वहीं गई हो जहां जाना कतई सही नहीं. फिर किशा परेशान होगी, उस की पढ़ाई बाधित होगी.

‘‘पापा.’’

वह देखो, बिटिया आ गई कालेज से. अब मैं क्या जवाब दूंगा उसे, यही कि उस की मां वह सब कर रही है जिस की चिंता इस उम्र में बेटियों को ले कर मां को होती है. मैं सब जानता हूं, मगर तुम्हें रोक नहीं पा रहा. तुम ने अपनी नासम झी, जिद और ईर्ष्या में विनाशलीला रच रखी है, मनाली. इसे रोकने की कला मु झ में नहीं.

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