घरेलू हिंसा के मामले पहले भी बड़ी संख्या में सामने आते रहे हैं लेकिन लौकडाउन के दौरान ये लगातार बढ़े हैं. आखिर इन औरतों की गलती क्या है जो अपने ही परिवार के बीच यह सुरक्षित नहीं हैं?
नैशनल कमीशन फौर वुमेन के नए डाटा के अनुसार, कोरोना वायरस लौकडाउन के चलते 22 मार्च से 16 अप्रैल के बीच घरेलू हिंसा की 587 शिकायतें प्राप्त की गईं जबकि यह संख्या 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच केवल 396 थी.
गौरतलब है कि लौकडाउन के चलते वैश्विक व राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर घरेलू हिंसा के मामलों में इजाफा हो रहा है. औरतें अपने घरों में अपने पति व परिवार के साथ बंद हैं. जाहिरतौर पर हर किसी के लिए घर सब से सुरक्षित स्थान नहीं है. कई औरतें असल में हिंसक लोगों के साथ घरों में बंद हैं जो अब लौकडाउन के चलते न इस स्थिति से बच पा रही हैं और न मदद तलब कर पा रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च से राष्ट्रीय लौकडाउन की घोषणा की थी जिस में वे निम्नवर्ग की परेशानियों व मुश्किलों से वाकिफ होते नहीं दिखे. उन की यह नाकामी अब घरेलू हिंसा के मामले में भी देखने को मिल रही है. उच्चवर्ग, मध्यवर्ग व निम्नवर्ग तीनों ही वर्गों की महिलाएं अपनेअपने स्तर पर घरेलू हिंसा से घिरी हुई हैं.
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जहां उपरोक्त दो वर्गों की महिलाएं मदद मांगने में सक्षम होने के कारण शिकायत दर्ज करा पा रही हैं वहीं निम्नवर्ग की महिलाएं पूरी तरह असहाय हैं जो एक कमरे के घर में वक्तबेवक्त पति की मार खाने के लिए बेबस हैं और किसी से संपर्क के साधनों से पूरी तरह नदारद हैं. बीती 21 अप्रैल को हैदराबाद पुलिस ने 28 वर्षीया महिला को घरेलू हिंसा के मामले में बचाया. कथित महिला अपने पति और ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न व मारपीट का शिकार हो रही थी. महिला ने पुलिस को हैल्पलाइन नंबर पर व्हाट्सऐप के जरिए सूचना दी जिस के बाद उसे बचाया गया. पीडि़ता, उस के पति और ससुराल वालों को काउंसलिंग के लिए भेजा गया जिस पर पुलिस का कहना है कि पति और परिवार को उन की गलती का पछतावा हुआ व मामला शांत कर दिया गया.
यह उन मामलों में से एक था जिस की सूचना पुलिस को मिली, लेकिन उन सभी मामलों का क्या, जो पुलिस तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं? घरेलू हिंसा के मामले में नैशनल कमीशन फौर वुमेन ने बताया कि महिलाओं द्वारा अपनी शिकायत दर्ज कराने हेतु एक निश्चित हैल्पलाइन नंबर था व डाक द्वारा भी वे शिकायत दर्ज कराने में सक्षम थीं, परंतु लौकडाउन के चलते ये दोनों ही सेवाएं बंद हैं, जो हिंसा के मामलों को चारदीवारी से बाहर न निकलने देने का एक बड़ा कारण है. हालांकि, कमीशन द्वारा ईमेल ऐड्रैस जारी किया गया जिस पर महिलाएं अपनी शिकायत भेज सकती हैं पर बात एक बार फिर वहीं आ कर रुक जाती है कि कितनी महिलाओं के पास इंटरनैट की सुविधा उपलब्ध है. क्या घरेलू हिंसा की प्रताड़ना झेल रही महिला के लिए अपने पति की मौजूदगी में ईमेल भेजना संभव होगा? भारत में महिलाओं, खासकर निम्नस्तरीय परिवारों की महिलाओं, की पहुंच स्मार्टफोन तक नहीं है.
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ऐसे में वे इंटरनैट कहां से लाएंगी और क्या वे ईमेल भेज पाएंगी? लौकडाउन के चलते वे किसी की मदद मांगने के लिए घर से बाहर निकल भी नहीं सकतीं. महिलाएं अकसर मारपीट की शिकायत न कर मंदिरमसजिद पहुंच जाया करती थीं इस उम्मीद में कि भगवान उन की सुनेगा, चढ़ावा चढ़ा मन्नतें मांगा करती थीं कि भगवान उन पर दृष्टि डालेगा और उन की गृहस्थी सामान्य हो जाएगी. धार्मिक किताबों में भी यही जिक्र होता है कि फलां औरत के 16 सोमवार व्रत रखने पर उस के पति ने उसे मारनापीटना बंद कर दिया और उस की गृहस्थी खुशहाल हो गई. क्या सचमुच ऐसा होता है? क्या सच में हवनकीर्तन से हिंसा दूर हो जाती है? नहीं, ऐसा नहीं होता. यह केवल एक परदा है जिस के पीछे महिला अपने घाव छिपाने की कोशिश करती है और जिस की आड़ में पंडेपुजारी अपनी जेबें भरते हैं.
लौकडाउन के दौरान मंदिरों में ताले पड़े हैं, पूजापाठ में लिप्त महिलाएं अपने भगवान को याद कर रही हैं तो न वह भगवान उन्हें बचाने आ रहा है और न पंडेपुजारी. महिलाएं कीर्तनों में बैठ अपनीअपनी व्यथा नहीं सुना पा रहीं, लेकिन आखिर उन्हें सहानुभूति की जरूरत क्या है? पति की मार खाने वाली अनेक महिलाएं उसे सहने को मजबूर हैं, हमेशा से थीं लेकिन उन्हें सांत्वना देने वाली उन की जैसी महिलाएं उन्हें ‘भगवान पर भरोसा रखो सब ठीक हो जाएगा’ का डमरू पकड़ा देती थीं जो इस लौकडाउन के चलते नहीं हो पा रहा. हकीकत से दोचार होती महिलाओं के लिए हिंसा सहना अब मुश्किल हो रहा है और पहले इस से न निकलने की गलती उन्हें अब सम झ आ रही है, लेकिन वे लाचार हैं. हिंसा के रूप अनेक, कारण एक चेन्नई की रहने वाली पार्वती बताती हैं कि उन के पति ने उन्हें 25 मार्च से ही मारनापीटना शुरू कर दिया था. पहले मारपीट से बचने के लिए वे अकसर गली से बाहर अपने ही महल्ले में रहने वाले नातेरिश्तेदारों के पास चली जाया करती थीं, लेकिन अब जब लौकडाउन के कारण गली बंद कर दी गई है तो उन के लिए ऐसा करना असंभव है.
पार्वती का पति शराबी है. वह कोई कामधंधा नहीं करता. पार्वती घरों में खाना बना कर 5,000 रुपए महीना कमाती थी, जिस से घर चलता था व पति शराब के लिए भी उन्हीं पर निर्भर करता था. कोरोना वायरस के चलते पार्वती की मालकिन ने कह दिया कि वे काम पर न आएं यानी पार्वती के घर पैसा आना भी बंद हो गया. शराब की तलब और गुस्से में पार्वती के पति ने मारपीट शुरू कर दी. उन के पास इन हालात में हिंसा सहने के अलावा रास्ता नहीं है. घरेलू हिंसा केवल मारपीट तक ही सीमित नहीं है. वैवाहिक बलात्कार और मानसिक प्रताड़ना भी एक प्रकार की हिंसा ही है जिस से अनेक महिलाएं लौकडाउन के चलते जू झ रही हैं. सामान्य दिनों में भी घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं कानून का सहारा लेने से कतराती हैं. उन्हें पतिव्रता और पति की हर आज्ञा का पालन करने की सीख दी जाती है.
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आखिर सरकार भी तो रामायण, महाभारत दिखा इसी बात का प्रचार कर रही है कि पति तुम्हें अगर गर्भवती होने पर भी जंगल में छोड़ आए तब भी तुम धर्मपत्नी होने का कर्तव्य निभाओ और उस के लौट आने पर उस के पैरों में स्वामीस्वामी कर पड़ जाओ. कैसी त्रासदी है कि घरों में बंद औरतें दिनरात हिंसक पतियों के साथ बंद हैं और उन्हें सांत्वना के नाम पर कुछ दिया भी जा रहा है तो वह है धर्म की घुट्टी. मुंबई की उच्चमध्यवर्गीय परिवार की कामकाजी महिला राखी (बदला हुआ नाम) अपनी नौकरी और घर के बीच लौकडाउन के चलते सामंजस्य बैठाने में मुश्किल महसूस कर रही है जिस के चलते वह दोनों ही चीजों के बीच पिस रही है. वह लौकडाउन में अपने पति, बच्चों व सासससुर के साथ घर में बंद है. वह कहती है, ‘‘मेरा आत्मसम्मान हर दिन कुचला जा रहा है.
किसी भी काम को ठीक से न कर पाने को ले कर मु झ से सवाल किए जाते हैं. मेरे कार्यालय और घर दोनों में ही तनाव पसरा हुआ है. मेरे पति व सासससुर मु झ पर चिल्लाते हैं, यहां तक कि मेरे बच्चे भी. घर में इस तरह लड़ाई झगड़ा होने लगा है जैसा मैं ने अपनी 10 साल की शादी में कभी महसूस किया था.’’ नैशनल कमीशन औफ वुमेन के मार्च और अप्रैल 2019 के डाटा और मार्च और अप्रैल महीने के 2020 के डाटा का आकलन करने पर दिखाई पड़ता है कि औसत शिकायत दर में भारी इजाफा हुआ है. महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा, आत्मसम्मान को चोट, वैवाहिक बलात्कार और शारीरिक उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ी हैं. पितृसत्तात्मक सोच हावी नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे की एक स्टडी के मुताबिक, 52 फीसदी महिलाएं और 42 फीसदी पुरुष मानते हैं कि महिलाओं के साथ होने वाली घरेलू हिंसा तब सही है जब वे अपनी ससुराल वालों को सम्मान नहीं देतीं या उन की इज्जत नहीं करतीं. यह घरेलू हिंसा के मुख्य कारणों में से एक है. लौकडाउन के चलते घरेलू हिंसा में बढ़ोतरी इसलिए हुई है क्योंकि महिलाएं अपने पतियों के साथ चारदीवारी में 24 घंटों के लिए बंद हैं. न वे अपने पति से भाग सकती हैं और न अब उन के पति उन से. घर के कामों में हाथ हर पति नहीं बंटाता, क्यों? क्योंकि भारतीय परिवारों में बचपन से एक ही बात सम झाई जाती रही है कि ये लड़कियों के काम हैं, लड़के घर के काम नहीं किया करते.
पति को हाथ हिलाने को कहनेभर से वह पत्नी पर चढ़ पड़ता है, खिन्नाए हुए पति का हाथ उठाना भी कई घरों में नई बात नहीं है. पत्नी हर समय अपने पति और सासससुर के आगेपीछे नहीं घूम सकती, लेकिन उस से उम्मीद यही लगाई जाती है कि वह ऐसा करे. उस की जबान दबी रहे और वह बस हां में हां मिलाए. किसी काम में औरत की न, उस के खिलाफ उठने वाली उंगलियों की गिनती बढ़ा देती है. जब पत्नी अपने पति या ससुराल वालों के खिलाफ कुछ बोलती है तो उसे बदले में बहुतकुछ सुनना पड़ता है. यह शहर या गांव की बात नहीं है, बल्कि परिवारों की है, उन की सोच की है और वे किस तरह घर की बेटीबहू से व्यवहार करते व व्यवहार की अपेक्षा करते हैं. यही कारण है कि हर क्षेत्र से ऐसे मामले सामने आते हैं. घरेलू हिंसा के कारण अलगअलग नजर आ सकते हैं परंतु असल में इस का कारण पितृसत्तात्मकता है. ‘स्त्री पुरुष के बराबर नहीं है’ की सोच है इस के पीछे. ‘थोड़ीबहुत मारपीट तो सामान्य है’ का राग अलापना इसी सोच की देन है. यह पितृसत्तात्मकता ही है जो आदमी के अहंकार को हवा देती है.
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हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश घरेलू हिंसा के मामलों में सब से आगे हैं जिस का सब से बड़ा कारण पितृसत्तात्मकता है, इस में कोई दोराय नहीं है. लौकडाउन के दौरान गायत्री के पति को औफिस के काम के चलते कभी भी गुस्सा आने लगता तो वह कभी खाने में कमी निकालता तो कभी ‘घर साफ नहीं है’ कह गायत्री को ताने देता. बच्चों के हमेशा घर में रहने से गायत्री के पति को और चिढ़ होती क्योंकि उसे गायत्री के साथ समय नहीं मिल पाता. वह कभी गायत्री पर चिल्लाता तो कभी बच्चों को मारतापीटता. उन के घर से हर समय चीखनेचिल्लाने की आवाजें आतीं लेकिन लोग सुन कर भी अनसुनी कर दिया करते. गायत्री अब भी शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती क्योंकि उसे लगता है कि एक न एक दिन कोई चमत्कार होगा और उस का पति सुधर जाएगा. यह केवल गायत्री की ही कहानी नहीं है, बल्कि जाने कितनी ही महिलाओं की है जो पति के हिंसक व्यवहार को हमेशा से केवल इसलिए सहती आई हैं क्योंकि उन्हें लगता है एक न एक दिन खुदबखुद उन का पति सुधार जाएगा और रोजरोज का लड़ाई झगड़ा खत्म होगा.
घरेलू हिंसा के खिलाफ कदम उठाना जरूरी वैश्विक परिपाटी पर देखें तो फ्रांस सरकार ने घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं को काउंसलिंग सैंटर्स खोलने व उन के लिए होटल में रहने की सुविधा देने का आश्वासन दिया है. वहीं, इटली में सरकार ने एक ऐप लौंच की है जिस के द्वारा लौकडाउन के चलते पीडि़ता बिना फोन मिलाए केवल उस ऐप के जरिए अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है. हालांकि, भारत में समस्या इस से कहीं ज्यादा है. भारत सरकार ने लौकडाउन के चलते इस ओर ध्यान नहीं दिया जिस के परिणाम सामने हैं. राज्य सरकारों, एनजीओ व महिला संघों द्वारा जरूरी कदम उठाने की कोशिश हो रही है. साइबराबाद पुलिस ने लौकडाउन के बाद से 500 से अधिक घरेलू हिंसा के मामले रजिस्टर किए हैं. पुलिस का कहना है कि अधिकतम मामलों में पतिपत्नी व परिवार की काउंसिलिंग कर वह सामंजस्य बैठाने की कोशिश कर रही है. विद्या बालन, अनुष्का शर्मा, विराट कोहली, फरहान अख्तर समेत कुछ बौलीवुड सितारों ने एक वीडियो जारी कर घरेलू हिंसा पर रोक लगाने की सलाह दी है. हालांकि, न्यूज चैनल कोरोना का कारण एक से दूसरे व्यक्ति पर थोपने से बाज आते तो शायद वे भी इस तरह की खबरोंसंदेशों को आमजन तक पहुंचा सकते थे, उन्हें चेता सकते थे. लौकडाउन लागू होने से पहले ही चेन्नई स्थित इंटरनैशनल फाउंडेशन ने सभी कौल्स लैंडलाइंस से फोन में ट्रांसफर कर लीं व व्हाट्सऐप सुविधा भी जारी की. तमिलनाडु में सुरक्षा अधिकारियों को एक जगह से दूसरी जगह जाने की इजाजत है जिस के चलते वे उन महिलाओं, जो जोखिमभरे हालात में हैं, को शैल्टर्स में ले जा रहे हैं.
कोरोना वायरस के दौरान शैल्टर में रहने का अर्थ है संक्रमण के बीच जाना. घरेलू हिंसा की पीडि़त महिला लौकडाउन के दौरान अपने मायके जाना चाहती है लेकिन जा नहीं सकती, ऐसे में शैल्टर होम में जाना कुएं से निकल खाई में गिरने जैसा होगा. क्यों नहीं घरेलू हिंसा के दोषी को शैल्टर होम भेजा जाए बजाय उस महिला के जो हिंसा का शिकार हुई है? आखिर वह क्यों अपने घर व बच्चों से दूर जाए? इन हालात में औरतों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद आगे आना होगा. एक बात जो हर औरत को सम झना बेहद जरूरी है, यह है कि मंदिर में बैठ पूजापाठ करने और यह दुआ करने से कि पति सुधर जाए और हिंसा छोड़ दे, का मतलब यह बिलकुल नहीं है कि वह हिंसा करना या मारनापीटना छोड़ देगा. मंदिर के दरवाजे हाथ में चढ़ावा लिए लोगों के लिए हमेशा खुले रहते हैं लेकिन वे किसी असहाय को सहारा नहीं देते. आप पंडित बुलवाएंगे और पंडित हवन कर आप को हिंसा से नजात दिलाएगा, यह सोचना मूर्खता के अलावा कुछ नहीं. पति को सुधारने और महिला को मारपीट से बचाने का काम पुलिस का है, लेकिन वह भी केवल बीचबचाव ही करेगी. औरतों को खुद में आत्मविश्वास पैदा करना होगा जो पूजापाठ नकारने से आएगा, उस की शरण में जाने से नहीं, एकदूसरे को आवाज उठाने के लिए प्रेरित करने से आएगा कीर्तनों में बैठ सहानुभूति देने से नहीं, हिंसा सहना बंद करने से आएगा खुद को हिंसक पति के आगे बारबार सौंपने से नहीं. लौकडाउन के चलते घरेलू हिंसा की पीडि़ता पुलिस को फोन करे. यदि आप की बेटी या सहेली आप को इस की जानकारी दे रही है तो बजाय उसे सहने की सलाह देने के, पुलिस से संपर्क करें. आप के महल्लेपड़ोस में कोई घरेलू हिंसा की शिकार महिला हो तो आप उस की मदद के लिए पुलिस को खबर दें. लेकिन, सब से ऊपर महिला को खुद के लिए आवाज उठाने की हिम्मत जुटानी होगी वरना हिंसा किसी न किसी रूप में हमेशा होती रहेगी.