अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ढीठ और जिद्दी रवैए को जहां एक ओर अमेरिका में कोरोना संक्रमण के बुरी तरह फैलने और लाखों अमेरिकी नागरिकों की जान जाने का जिम्मेदार माना जा रहा है, वहीं दूसरी ओर ट्रंप और उन की पुलिस की रंगभेदी व नस्लभेदी, दक्षिणपंथी सोच और व्यवहार की दुनियाभर में आलोचना हो रही है.

ट्रंप प्रशासन का रंगभेदी और नस्लभेदी चेहरा उस समय खुल कर सामने आ गया, जब एक अश्वेत अमेरिकी नागरिक जौर्ज फ्लौयड को सरेआम जमीन पर गिरा कर पुलिस के एक गोरे जवान ने अपने घुटनों के नीचे उस की गरदन तब तक दबाए रखी, जब तक कि उस की सांस नहीं टूट गई.

जौर्ज फ्लौयड चीखते रहे कि वे सांस नहीं ले पा रहे हैं, लेकिन श्वेत जवान के मन में अश्वेतों के प्रति इतनी नफरत भरी थी कि उस ने फ्लौयड की गरदन तब तक नहीं छोड़ी, जब तक वो मर नहीं गया.

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खुद को विश्व का संरक्षक समझने वाले अमेरिका की सड़क पर खुलेआम इस नरसंहार की घटना ने पूरे देश और दुनियाभर में हाहाकार मचा दिया. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच भी लोग ट्रंप प्रशासन के खिलाफ घरों से निकल कर जगहजगह बैनरपोस्टर ले कर सड़कों पर उतर आए और जम कर नारेबाजी की.

दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का डंका पीटने वाला अमेरिका अपने ही आंगन में श्वेत पुलिसकर्मी के घुटने तले दम घुटने से अफ्रीकीअमेरिकी नागरिक की मौत के बाद समता, सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा में नाकामी के कारण कठघरे में खड़ा हो गया.

डोनाल्ड ट्रंप की खूब लानतमलामत हुई, मगर इस अमानवीय कृत्य के लिए शर्मसार होने और देश व दुनिया से माफी मांगने की बात तो दूर, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए उन पर आंसू गैस के गोले छुड़वाए, रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया. यही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रदर्शनकारियों को ‘ठग’ कहा और उन्हें गोली मारने व उन के खिलाफ सेना को इस्तेमाल करने तक की धमकी दे डाली.

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इस घटना के बाद डोनाल्ड ट्रंप का अमानवीय, अड़ियल, अहंकारी, दक्षिणपंथी, नस्लभेदी और रंगभेदी सोच से भरा दिलोदिमाग उन के देश और दुनिया के आगे पूरी तरह खुल गया. उन की संकीर्ण मानसिकता और दंभ तब और मुखर हुआ, जब प्रदर्शनकारियों पर सेना तैनात करने की धमकी के बीच उन्होंने कहा, ‘‘मैं आप की कानून एवं व्यवस्था का राष्ट्रपति हूं.’’

गौरतलब है कि देश को चलाने वाला पिता के समान होता है. उस की भाषा में सौम्यता, व्यवहार कुशलता और समझदारी की अपेक्षा होती है, लेकिन इस भाव के विपरीत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भड़काऊ भाषा ने प्रदर्शनों को हिंसक रूप दिया.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह से स्थिति को संभालने की कोशिश की, वह तीव्र प्रतिक्रिया सैन्यवादी थी, जिस ने प्रदर्शनकारियों को और ज्यादा उकसाया और अमेरिकी समाज में गोरे व काले, अमीर और गरीब के विभाजन को गहरा किया. हालात यहां तक खराब हुए कि प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस तक पहुंच गए और राष्ट्रपति ट्रंप को बंकर में छिपना पड़ा.

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क्षेत्रफल के हिसाब से महादेश कहलाने वाले तमाम जनसंस्कृतियों से युक्त अमेरिका के आधे से ज्यादा राज्य आज नस्लीय नफरत के विरोध की आग में जल रहे हैं. ट्रंप के शासनकाल में उभरे ये विरोध प्रदर्शन अप्रैल, 1968 में डा. मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों की याद दिलाते हैं.

ये विरोध प्रदर्शन सिर्फ अश्वेत नागरिक की हत्या के कारण ही पैदा नहीं हुए, बल्कि ट्रंप प्रशासन के दौरान हुए अनेक ‘दंगों’ के कारण अमेरिका में जो विभाजनकारी हालात बन गए हैं, उन को ले कर भी ये ट्रंप के खिलाफ अमेरिकियों के गुस्से का इजहार था. फ्लौयड की मौत ने तो बस अमेरिकी जनता के गुस्से के लिए एक चिंगारी का काम किया था.

अमेरिकी मीडिया का मानना है कि देश का लीडर होने के नाते देश और उस की जनता को सुरक्षित रखने में डोनाल्ड ट्रंप बुरी तरह फेल हुए हैं. कोरोना वायरस महामारी के कारण अब तक अमेरिका में एक लाख से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. वायरस की मार ने अमेरिका के लोगों को तोड़ कर रख दिया है. 4 करोड़ से ज्यादा लोग बेरोजगार हो चुके हैं और लाखों की तादाद में लोग अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए जगहजगह खुले फूड बैंक पर निर्भर हैं.

अर्थव्यवस्था में हुए नुकसान के चलते 4 करोड़ लोगों का बेरोजगार हो जाना और अफ्रीकीअमेरिकी मूल के अश्वेत जौर्ज फ्लौयड की मौत के बाद हुई भीषण हिंसा जैसे कई ज्वलंत मुद्दे आने वाले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को मुंह की खाने को मजबूर कर सकते हैं.

उल्लेखनीय है कि क्रूड औयल की कीमतों में आई गिरावट से अमेरिका की 1,000 से अधिक कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर हैं. अमेरिका को जिस तेजी से आर्थिक संकट घेर रहा है, उस को रोकने में ट्रंप विफल साबित होते हुए दिखाई दे रहे हैं. वर्ष 1930 की महामंदी के बाद से अमेरिका में सब से बड़ी आर्थिक मंदी देखी जा रही है.

अमेरिका में कोरोना वायरस के बढ़ते खतरे के मद्देनजर जरूरी प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की कमी भी लोगों के मन में गुस्सा बढ़ा रही है. पिछले दिनों काफी संख्या में हेल्थ वर्कर्स ने इस को ले कर अमेरिका की सड़कों पर प्रदर्शन भी किया था. आरोप लग रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप ने समय रहते कोरोना वायरस से बचाव के उपाय नहीं किए. वे अपनी जिद में ही अकड़े रहे. शुरू में उन्होंने कोविड-19 को मामूली वायरस बताया था. तब वे मास्क पहनने का भी विरोध कर रहे थे. कीटनाशक दवा से इंजैक्शन बनाने जैसी बचकानी बातें कर रहे थे. इस वजह से पूरी दुनिया में उन का मजाक भी उड़ा था. खुद मास्क न पहनने की जिद पर तो वे अब भी अड़े हैं.

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इतना ही नहीं, विदेशों से जल्दी से जल्दी जांच किट मंगवाने के बजाय ट्रंप ने देश में ही इस को तैयार करने की जिद ठान ली थी, जिस की वजह से संक्रमण बढ़ता चला गया और लाखों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे. यही नहीं, अमेरिका ने ये जाने बिना कि उस को कोरोना वायरस का संकट अपनी गिरफ्त में ले सकता है, प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की चीन को सप्लाई जारी रखी. इस का नतीजा यह हुआ कि इधर अमेरिका में कोरोना फैला और उधर उस के अपने ही हेल्थ वर्कर्स  प्रोटैक्टिव इक्विपमेंट्स की कमी का शिकार हो गए.

न्यूयार्क जैसा शहर जिसे दुनिया के सब से आधुनिक शहरों में गिना जाता है, वहां पर वैंटिलेटर तक कम पड़ गए. इसी बीच न्यूयार्क के गवर्नर और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच तीखी बहस और एकदूसरे पर आरोप लगाने का भी दौर चला.

कोरोना संक्रमण की बदतर होती स्थिति के लिए अपनी गलती मानने के बजाय डोनाल्ड ट्रंप बारबार सारा ठीकरा चीन के सिर ही फोड़ते रहे.

दरअसल, इस के पीछे उन का चुनावी प्लान छिपा हुआ है. आम अमेरिकी चीन को अपना प्रतियोगी देश मानता है और राष्ट्रपति ट्रंप की कोशिश है कि वे चीन को जिम्मेदार ठहरा कर चुनाव में ‘राष्ट्रवाद‘ का तड़का लगा सकें. इसीलिए वे चीन से हर्जाना भी मांग चुके हैं यानी राष्ट्रपति ट्रंप कोरोना वायरस के पीछे उपजे जनता के गुस्से को चीन की ओर मोड़ देना चाहते हैं और अपनी छवि कुछ ऐसी गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं कि वे अमेरिका के दुश्मनों को बख्शने के मूड में नही हैं.

दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बहुत सोचीसमझी रणनीति के तहत लंबे समय से सारी दुनिया के देशों को छोड़ कर भारत और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ज्यादा से ज्यादा नजदीकियां दिखाने की भी कोशिश कर रहे हैं. उन्हें ‘दोस्त मोदी‘ के खिताब से नवाज रहे हैं.

दरअसल, इस दिखावे के पीछे उन की नजर अमेरिका में बसे उन 40 लाख भारतीयों पर है, जिन में बड़ी संख्या एनआरआई की है. अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में इन का सकारात्मक योगदान है. इन में बहुत बड़ी संख्या में सवर्ण हिंदू हैं जो मोदी से प्रभावित हैं. इस लिहाज से वे उन के ‘खास दोस्त‘ के भी हिमायती बनेंगे. करीब 2 लाख भारतीय छात्र भी अमेरिका के विभिन्न संस्थानों में पढ़ाई कर रहे हैं.

पिछले चुनाव में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता में लाने में कई भारतीयों ने महत्वूपर्ण योगदान दिया था. इस बार भी वे उन के चुनावी अंकगणित को साधने में मददगार हो सकते हैं. इन अप्रवासी भारतीयों को अपने पाले में समेटे रखने की महत्वाकांक्षा ही डोनाल्ड ट्रंप को ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी‘ कार्यक्रम में भी खींच ले गई थी. इस कार्यक्रम में 50,000 से ज्यादा भारतीय नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के लिए जमा हुए थे. जिन को देख कर मोदी से ज्यादा उत्साहित डोनाल्ड ट्रंप नजर आ रहे थे.

इस कार्यक्रम में मोदी और ट्रंप के बीच गजब की केमिस्ट्री दिखाई दी. दोनों हाथ में हाथ डाले नजर आए. ट्रंप ने मंच से भारत और नरेंद्र मोदी को अपना और अपने देश का करीबी दोस्त करार दिया. यहां मोदी भी यह कहे बगैर नहीं रह पाए कि ट्रंप मुझे टफ निगोशिएटर कहते हैं, लेकिन वह खुद ‘आर्ट औफ द डील‘ के मास्टर हैं.

दरअसल, मोदी के प्रति अप्रवासियों के आकर्षण को डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री मोदी से दोस्ती गांठ कर आने वाले चुनाव में अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं. दोनों की सोचसमझ एक ही राह पर चलती है. ट्रंप को अमेरिका में जहां दक्षिणपंथियों का जोरदार समर्थन मिला हुआ है, वहीं उन का फोकस मुसलमानों को अमेरिका में आने से रोकने पर भी है. मुसलमानो के प्रति ट्रंप की घृणा किसी से छिपी नहीं है. मोदी की तरह ट्रंप भी अपनी राष्ट्रीयता को बढ़चढ़ कर दिखाने में माहिर हैं.

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ट्रंप ने ‘‘अमेरिका फर्स्ट‘‘ के जरीए इस मुहिम को आगे बढ़ाया, तो मोदी ने ‘‘मेक इन इंडिया‘‘ के जरीए इस को प्रमोट किया. दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने की मंशा के तहत ही ध्रवीकरण, इमोशनल ब्लैकमेलिंग और राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने की ट्रंप की रणनीति काफी लंबे समय से जारी है.

इसी रणनीति के तहत उन के लिए भारत में भी ‘नमस्ते ट्रंप‘ का आयोजन किया गया था, जहां उमड़ी भीड़ को देख ट्रंप खूब गदगद हुए, हुलकहुलक कर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ में कसीदे काढ़े और इस तरह अगले चुनाव में अमेरिका की कमान फिर अपने हाथों में आने का उन का ख्वाब कुछ और परवान चढ़ा. संदेश साफ है, ‘तू मेरी खुजा, मैं तेरी खुजाता हूं.’

अमेरिका में इस साल 3 नवंबर, 2020 को राष्ट्रपति चुनाव होना है. रिपब्लिकन पार्टी की ओर से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कड़ा मुकाबला डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और बराक ओबामा के शासन में उपराष्ट्रपति रहे जो बिडेन से होना है. डेमोक्रेटिक पार्टी से अपनी दावेदारी का ऐलान करते हुए जो बिडेन ने कहा कि यदि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर से चुनाव जीतते हैं तो यह देश की आत्मा को दांव पर लगाने जैसा होगा, इसलिए वे चुनावी मैदान में उतर रहे हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से निबटने के प्रति देश के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तरीके को ले कर उन की कड़ी आलोचना की है. यही नहीं, उन्होंने अपने समर्थकों से राष्ट्रपति पद के चुनाव में पूर्व उपराष्ट्रपति जो बिडेन का समर्थन करने की अपील की है. उन का मानना है कि जो बिडेन राष्ट्रपति ट्रंप के मुकाबले ज्यादा काबिल, सधे हुए और एक गंभीर व्यक्ति हैं.

इस बीच जो बिडेन ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बारे में बड़ा बयान दिया है, जिस की पूरे विश्व में चर्चा हो रही है. उन्होंने आशंका जताई है कि डोनाल्ड ट्रंप एक जिद्दी और उद्दंड व्यक्ति हैं और राष्ट्रपति चुनावों में धांधली कर सकते हैं.

उन्होंने यहां तक कहा कि अगर ट्रंप हार जाते हैं, तो वे आसानी से अपना औफिस भी नहीं छोड़ेंगे. अगर ऐसा होगा तो सेना को उन्हें व्हाइट हाउस से बाहर निकलवाना पड़ेगा. चुनाव हारने पर अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लोकतंत्र के खिलाफ जा कर तानाशाही भी कर सकते हैं.

जो बिडेन के इस बयान से डोनाल्ड ट्रंप काफी तिलमिलाए हुए हैं. बिडेन पर पलटवार करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका के लिए ये बहुत बुरा होगा, अगर मेरे जैसा व्यक्ति राष्ट्रपति चुनाव हार गया.‘ उन की इस बात में दंभ झलकता है.

इधर जो बिडेन ने ट्रंप के कई फैसलों के विपरीत चुनावी वादे किए हैं, जिस में सब से खास यह कि नवंबर माह में यदि वे राष्ट्रपति चुनाव जीतते हैं तो वे भारतीय आईटी पेशेवरों के बीच सब से अधिक लोकप्रिय एच-1बी वीजा पर लागू अस्थायी निलंबन को खत्म कर देंगे.

उल्लेखनीय है कि ट्रंप प्रशासन ने 23 जून को भारतीय आईटी पेशेवरों को एक बड़ा झटका देते हुए एच-1बी वीजा और अन्य विदेशी कार्य वीजा को 2020 के अंत तक निलंबित कर दिया है.

ट्रंप का कहना है कि चुनावी साल में अमेरिकी कामगारों की सुरक्षा के लिए ऐसा किया गया है. ट्रंप के इस फैसले से भारतीय युवाओं में नाराजगी है.

जो बिडेन को बराक ओबामा का काफी समर्थन मिल रहा है. बराक ओबामा की मानें तो जो बिडेन के पास लंबा राजनितिक अनुभव और चरित्र है कि वे कोरोना काल के इस कठिन दौर में अमेरिका का मार्गदर्शन कर सकते हैं और लंबे समय तक उबरने के दौरान संकटमोचक हो सकते हैं.

बराक ओबामा कहते हैं, ‘मेरा विश्वास है कि राष्ट्रपति होने के लिए जो गुण होने चाहिए, वह सब अभी जो बिडेन में मौजूद हैं.‘

उधर डोनाल्ड ट्रंप जो एक बड़े बिजनेसमैन और दिग्गज प्रोपर्टी कारोबारी के बेटे हैं, अपनी दूसरी पारी के लिए लगातार जद्दोजेहद कर रहे हैं और हर उस कोशिश पर आमादा है, जिस से उन्हें दूसरा टर्म आसानी से मिल सके. ट्रंप इस बार अपने चुनावी कैंपेन पर 7,000 करोड़ रुपए तक खर्च कर सकते हैं.

चुनाव को ले कर उन की टीम युद्धस्तर पर तैयारियों में जुटी है. ट्रंप की चुनावी कैंपेनिंग के लिए बड़ी संख्या में टीशर्ट, तौलिए, बैनर और झंडों को तैयार किया जा चुका है. उन को अपने देश में व्यापारियों और दक्षिणपंथियों का जोरदार समर्थन मिल रहा है.

ट्रंप ये बात भलीभांति जानते हैं कि बतौर अमेरिकी राष्ट्रपति उन की छवि मीडिया में अच्छी नहीं रही है. गौरतलब है कि अमेरिकी मीडिया अभी भी काफी हद तक अपनी आजादी बचाए हुए है. वो सत्ता के हाथों बिका नहीं है.

अमेरिकी मीडिया लगातार ट्रंप प्रशासन की खामियां उजागर करता रहा है और राष्ट्रपति ट्रंप के बारे में ऐसा लिखता रहा है, जिस से ट्रंप की छवि लगातार गिरती आई है. इन में वाशिंगटन पोस्ट द्वारा ट्रंप को झूठा करार दिया जाना प्रमुख है. इस के अलावा 27 अमेरिकी मनोवैज्ञानिकों द्वारा उन्हें ऊलजुलूल बयान देने के लिए पागल तक करार दिया जाना भी प्रमुख है.

ये तमाम बातें ट्रंप को बतौर लीडर पुनः स्थापित करने की राह में बड़ा रोड़ा बन सकती हैं. ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले डोनाल्ड ट्रंप काले और गोरों का भेद बढ़ा कर चुनाव जीत पाएंगे या कोरोना वायरस फैलाने का आरोप चीन के सिर मढ़ कर उस के प्रति बारबार अपना गुस्सा जाहिर कर के, धमकियां दे कर खुद को बहुत बड़ा राष्ट्रवादी घोषित कर के या विश्व स्वास्थ संगठन पर चढ़ाई कर के चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे, ऐसा लगता तो नहीं है.

 

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