जल्द ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कविताओं का एक संग्रह बाजार में आने को है , जो यह साबित करने में बड़ा सहायक और कारगर साबित होगा कि वे यूं ही प्रायोजित लोकप्रियता के चलते महान नहीं हैं बल्कि महानता उनकी रगों में कूट कूट कर भरी है जो अब फूट फूट कर प्रदर्शित हो रही है . महानता दरअसल में एक बीज होती है जिसे उपयुक्त ( भाजपाई ) जमीन , खाद ( अंबानी अदानी ) , हवा ( अन्ना हज़ारे ) , पानी ( बाबा रामदेव ) और अच्छा माली ( आरएसएस ) यानि तमाम अनुकूलताएं वक्त रहते मिल जाएँ तो एक नन्हा सा पौधा भी बड़े बड़े वट वृक्षों ( आडवाणी , जोशी बगैरह ) को उखाड़ – पछाड़ सकता है .
ये कविताएं लाक डाउन के दौरान बिना पुरातत्व विभाग की सहायता के बरामद हुई हैं या फिर पहले ही मिल गईं थीं यह किसी को नहीं पता लेकिन मई के महीने के आखिरी दिनों में जो जानकारिया छन कर बाहर आईं उनके मुताबिक मोदी की इन कविताओं का रचना काल अस्सी का दशक होना चाहिए जब वे युवा थे . युवावस्था कविताएं लिखने बड़ी आदर्श और बिना वजह प्रेरणादायक होती है . जिसे महान बनना होता है वह इस उम्र में कविताएं जरूर लिखता है ताकि सनद रहे और वक्त वेवक्त काम आए कि देख लो हम यूं ही महान नहीं हो गए .
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मोदी की कविताएं अतुकांत यानि नई कविता के दायरे में हैं . यह प्रयोगवादी विधा और शैली सत्तर के दशक में तेजी से लोकप्रिय हुई थी जिसकी एक खासियत यह भी होती है कि यह तो लिखने के बाद लेखक को भी समझ नहीं आता कि उसने क्या हाहाकारी लिख डाला है मसलन … मैं देखता हूँ चिड़िया की आँख , और फिर अर्जुन हो जाता हूँ / खड़ा हूँ अकेला कुरुक्षेत्र में किसी कृष्ण की प्रतीक्षा में …. जैसे शब्द पंक्तिबद्ध कर दिये जाएँ तो उसे नई कविता कहने से आपको कोई चुनौती नहीं दे सकता . हाँ ऐसा ही कोई विदद्वान समीक्षक भी पल्ले हो तो वह यह जरूर साबित कर सकता है कि इस कवि और कविता की आगे तो क्या पीछे भी अज्ञेय और मुक्तिबोध जैसे कवि कहीं नहीं ठहरते फिर प्रभाकर माचवे और अग्रवाल की तो हैसियत क्या . नई कविता को कम से कम शब्दों में पारिभाषित किया जाये तो वह ऐसी उद्देश्यहीन कविता होती है जिसे कोई अपरिपक्व युवा खुद को परिपक्व दिखाने लिखता है .
तो मोदी ने सरलता को चुना यह उनकी महानता नहीं बल्कि तुकांत न लिख पाने की मजबूरी है . आमतौर पर नई कविता किसी ज्ञात या अज्ञात को संबोधित करते लिखी जाती है इस परंपरा का पालन करते हुये मोदी ने अपनी माँ को चुना इसलिए उनकी किताब का शीर्षक प्रकाशक ने लेटर्स टू मदर रखा गया है . मोदी तब रोज रात को सोने से पहले माँ को एक पत्र लिखते थे फिर कुछ दिन बाद उसे फाड़कर अलाव में डाल देते थे . इसके बाद भी कुछ कविता पत्र इतिहास में दर्ज होने की गरज से बच गए और न न करते कोई 35 साल बाद मिल भी गए . मूल रूप से गुजराती में लिखी गई इन कविताओं का अँग्रेजी में अनुवाद मशहूर फिल्म समीक्षक भावना सोमाया कर रहीं हैं .
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इस कविता संग्रह का प्रकाशन अमेरिका की नामी पब्लिशिंग कंपनी हार्पर कालिन्स कर रही है तो हैरानी होती है कि बात बात में लोकल के लिए वोकल होने का नारा देने बाले मोदी ने किसी देसी प्रकाशक को यह पवित्र अवसर क्यों नहीं दिया , क्या उन्हें अपने हाथ की लिखी कविताएं लीक हो जाने का डर था . नामुमकिन नहीं कि कल को अरविंद केजरीवाल नुमा कोई मोदी विरोधी नेता यह आरोप लगा बैठे कि ये कविताएं मोदी जी की ही हैं इसमें शक है इसलिए उनकी लिखावट की जांच किसी निष्पक्ष हेंड राइटिंग स्पेशलिस्ट से करबाई जाये ताकि हम मोदी जी की कविताओं को उनका मानकर ही उनके साहित्य का रस्वादन कर सकें .
इसके पीछे तर्क मोदी की एमए की संदिग्ध डिग्री का होगा , पूछा यह भी जा सकता है कि जैसे कविताओं के अवशेष मिले वैसे उनके एमए पालिटिकल साइंस बगैरह के नोट्स क्यों नहीं मिलते . जब सब मिल ही रहा है तो बराबरी से मिलना चाहिए . हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर शशि थरूर और दिग्विजय सिंह जैसे बूढ़े रोमांटिक कांग्रेसी नेता यह आरोप लगाने लगें कि मोदी जी को अगर कविताएं ही लिखना थीं तो पत्नी को संबोधित करते लिखनी चाहिए थीं , उम्र और साहित्य का तकाजा तो यही कहता है . दूसरे यह आइडिया दरअसल में हमारे यशस्वी नेता चाचा नेहरू का है जो जेल से अपनी बेटी आपातकाल की आविष्कारक इन्दिरा गांधी को पत्र लिखा करते थे . यह प्रसंग राजनैतिक इतिहास में लेटर्स टू डाटर के नाम से जाना जाता है .
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अपने कथ्य में मोदी ने कहा है कि हर कोई विचार अभिव्यक्त करता है और जब सब कुछ उड़ेलने की इच्छा तीव्र होती है तो कलम और कागज उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता . लिखना जरूरी नहीं है बल्कि आत्मावलोकन है . अभी यह किताब ई बुक की शक्ल में आएगी बाद में मुमकिन है प्रिंट भी आए .
कहते हैं कवि हृदय बड़ा भावुक होता है उम्मीद है यह संग्रह उन लोगों के मुंह बंद कर देगा जो मोदी को हिटलर बताते रहते हैं . जो भी हो यह संग्रह तहलका तो मचाएगा क्योंकि कविताओं में असल में भाव क्या हैं यह अभी भावना सोमाया के अलावा इने गिने लोग ही जानते हैं .