“नोटबंदी” के बाद करोना से लड़ाई के लिए किया “लॉक डाउन” भी कही अपनी गलत नीतियों का शिकार तो नही हो रहा है. यह शंका अब लोगो के मन मे उठ रही है कि क्या 3 मई से लॉक डाउन खत्म होगा या अचानक 3 मई को कोई आगे की तारीख की घोषणा की जाएगी.
कई बार सही प्रबंधन ना होने के कारण बड़े से बड़े फैसले अनुकूल परिणाम नहीं दे पाते है. उदाहरण के लिए नोटबंदी सबसे बड़ी मिसाल है. जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक देश की जनता को यह फैसला सुना दिया कि रात 12 बजे से 1000 और 500 के नोट बंद किए जा रहे हैं उससे पूरे देश में अफरा-तफरी मच गई थी. नोटबन्दी के फैसले के पीछे की वजह बताते प्रधानमंत्री ने कहा था “नोटबंदी से देश में आतंकवाद भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा और काला धन बाहर आ जाएगा”.
उस समय प्रधानमंत्री ने देश की जनता से केवल 50 दिन का समय मांगा था प्रधानमंत्री ने कहा था देश की जनता इस कठिन घड़ी में केवल 50 दिन का समय हमें दे दे उसके बाद यह देश भ्रष्टाचार आतंकवाद से मुक्त हो जाएगा और हमारी अर्थव्यवस्था में काला धन पूरी तरीके से खत्म हो जाएगा. नोटबंदी के बाद भ्रष्टाचार आतंकवाद और काला धन की समस्याएं अपनी जगह जस की तस बनी रही. जनता को नोटबंदी में तमाम तरीके कष्ट सहने पड़े जिनका बाद में कोई सुखद परिणाम भी नहीं निकला.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: काम नहीं आ रहा कोई यज्ञ
जिस समय हम कुछ कड़े फैसले करके अपने भविष्य के प्रति बेहतर कर रहे होते हैं तब कठिन फैसले भी न्यायोचित लगते है. लेकिन अगर कठिन फैसलों का कोई सार्थक परिणाम ना निकले तो वह भी व्यर्थ की कवायत माने जाते हैं . यही वजह है कि हर फैसला करने से पहले उसके प्रबंध का पूरा इंतजाम किया जाना जरूरी होता है.
जनता कर्फ्यू’ बन गया ‘लॉक डाउन’ :
नोटबंदी की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस को रोकने के लिये लॉक डाउन का फैसला भी अचानक सुनाया. पहले उन्होंने जनता से कहा कि आप केवल एक दिन दैनिक यानि 22 मार्च को “जनता कर्फ्यू” का पालन करके अपने घर मे रहे. इस दिन कोई अपने घरों से बाहर ना निकले संयम का परिचय देते हुए अपने घर में रहे और शाम को ताली और थाली बजाकर कोरोना से लड़ाई करने का हौसला बनाए.
22 मार्च को पूरे देश की जनता ने जनता कर्फ्यू का पालन किया. उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता कर्फ्यू को लॉक डाउन में बदलने की अचानक घोषणा कर देते है. और इसको 14 अप्रैल तक पूरे देश में लागू कर देते है. उस समय फिर लोगो ने सोचा कि 14 अप्रैल के बाद लॉक खुल जाएगा और वह पहले की तरह अपने कामकाज करने लगेंगे. जब 14 अप्रैल आया तब प्रधानमंत्री ने नई घोषणा के साथ लॉक डाउन की अवधि को 3 मई तक बढ़ा दिया.
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन पर उठाया राहुल गांधी ने सवाल
किस्तों में बढ़ाता लॉक डाउन:
अब 3 मई को भी नॉक डाउन खुलेगा इस विषय में जनता को पूरी तरीके से संशय बना हुआ है. एक बार लोगों को लग रहा है कहीं ऐसा तो नहीं है कि वह लोक डाउन का पालन भी कर रहे हो और इसका आगे भी कोई परिणाम भी आगे ना निकले जैसे नोटबंदी के दौरान जनता ने हाल संकट अपने ऊपर ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पूरी बात पर विश्वास करके अपने कठिन दिन काटे लेकिन देश में आतंकवाद भ्रष्टाचार और काला धन बना रहा . अगर नोटबंदी सफल मानी जानी चाहिए तो आतंकवाद भ्रष्टाचार और काला धन जैसी समस्याएं देश में नहीं होनी चाहिए थी.
इसका मतलब यह है कि कहीं ना कहीं नोट बंदी को लेकर जो योजनाएं बनी थी वह फेल हो गए और जनता ने नोटबंदी के कष्ट भी शहर और उसका कोई परिणाम भी उसे हाथ नहीं लगा ठीक है ऐसी स्थिति कोरोना वायरस को लेकर लॉक डाउन को लेकर है . “जनता कर्फ्यू” से लेकर 3 मई तक लोक डाउन की घोषणा हुई . तीन अलग-अलग स्टेप में लॉक डाउन की घोषणा के 1 महीने बाद भी अपने घरों से दूर रह रहे मजदूरों पढ़ाई करने वाले बच्चे और दूसरे जरूरत में जरूरतमंदों को परेशानी का सामना करना पड़ा. उससे साफ लग रहा कि लोक डाउन को भरम में रखकर काम किया जा रहा है.
समय पर नही लिया फैसला
भारत मे कोरोना का पहला मामला 30 जनवरी 2020 को सामने आया था. उसके बाद अगर विदेशों से वापस आने वालो का सही तरह से हेल्थ मैनजमेंट किया जाता और एयरपोर्ट बंद कर दिए जाते तो पूरे देश मे लॉक डाउन नही करना पड़ता. पूरा फरवरी और मार्च के 20 दिन तक सरकार कोई एक्शन प्लान नही बना पाई. फरवरी से मार्च के इस दौरान यही कहा जाता रहा कि केवल हमे हाथ मिलाने से बचना है. हम नमस्ते करेगे और कोरोना को हरा देगें. इस बहाने हिन्दू संस्कृति को विदेशी संस्कृति से बेहतर बताने की मुहिम भी चली.
ये भी पढ़ें- #coronavirus: और भी वायरस हैं कोरोना के सिवा
नहीं हुई सही काउंसिल
जनता कर्फ्यू के दिन तक जनता को यह पता नही था कि उनको कितना लम्बा समय लॉक डाउन में गुजरना होगा. अगर सही प्लान के साथ लॉक डाउन का प्रबंध किया गया होता और जनता को यह समझा दिया गया होता कि उनको कितने लंबे लॉक डाउन में रहना है तो जनता मानसिक रूप से तैयार होती और उसको मानसिक अवसाद से नही गुजरना पड़ता.
सही जानकारी ना देने पर अफवाहों को बल मिलता हैं. हमारे देश मे कम्प्यूटर युग के बाद भी रूढ़िवादी और संकीर्ण मानसिकता प्रबल है. जिसकी वजह से बहुत सारी दिक्कते समाज मे बद्व जाती हैं. कोरोना संकट के समय भी कोरोना से अधिक लड़ाई हिन्दू मुस्लिम के बीच हो रही है. ऐसा लग रहा है जैसे केवल ताली बजाने, थाली बजाने, दीये जलाने से ही कोरोना वायरस को खत्म किया जा सकता है.
बेहतर प्रबंध के अभाव में तनाव पूर्ण बने हालात :
राजनीतिक समीक्षक और दलित चिंतक राम चन्द्र कटियार कहते है “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबसे पहले दूरदर्शन पर अपना संदेश जनता को देते है उसके बाद अचानक फैसला लागू कर दिया जाता है. जल्दबाज़ी में फैसला लागू होने के कारण सही परिणाम सामने नहीं आता और जनता को बेवजह परेशान होना पड़ता है. मोदी सरकार के हर फैसले में उनका यह स्टाइल साफ दिखता है”
ये भी पढ़ें- मुसलिम समाज को ले कर अपने किस बयान से विवादों में आ गई हैं तसलीमा
देश को लॉक डाउन करने से पहले अगर लोगो को अपने गांव घर तक जाने की छूट और प्रबंध किया गया होता तो इस तरह से जानवरो की तरह लोगो को पलायन करने के लिए मजबूर नही होना होता. दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र के बस और रेलवे स्टेशनों पर भीड़ नही लगती.
कई फैक्ट्रीयों में जो समान बना था वो खराब हो गया. जिंसमे दूध से बना समान खास था. मिठाइयों और खाने पीने का सामान खराब होने से नही बचाया जा सका. ऑन लाइन डिलीवरी के लिए जिन लोगो के नम्बर आननफानन में जारी किये गए वो एक सप्ताह तक लोगो को घरो तक सामान पहुचने के लिए तैयार ही नही हो पाए थे. जनता अब तक उहापोह में है कि उसे कितने दिन लॉक डाउन में रहना है.
कोरोना का इलाज कैसे होना है ? कैसे आइसुलेशन में रहना है ? इनका प्रबंध कौन करेगा ? यह सब लॉक डाउन के बाद तय करने की जगह पहले इसका प्रबंध किया गया होता तो जनता को लोक डाउन से निपटने की ऊर्जा मिलती. जनता में कोरोना और उसके इलाज को लेकर तमाम भ्रंतियो है. इनको लेकर काउंसलिंग की जरूरत थी. भारत लोकतांत्रिक देश है. यहाँ सैनिक शासन वाले देशों की तरह तानाशाही पूर्ण फैसले लेने से हालत बिगड़ते है. अगर कोरोना या नोटबन्दी को लेकर लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनकूल फैसले होते तो देश मे तनावग्रस्त और अनिश्चितता भरा माहौल नही बनता और जनता पूरी मजबूती से कोरोना के खिलाफ लड़ सकती.