एक तरफ कोरोना का संकट, दूसरी तरफ घर से बाहर निकलने पर पाबंदी. वहीं किसानों का दुखड़ा यह कि उन का दुख जाने बिना सरकार ने फसल खरीद की नीति बना दी.

लॉक डाउन खत्म होते ही हरियाणा ने सरसों व गेहूं की फसल खरीदने की तारीख का ऐलान कर दिया है.एक ओर सरसों की फसल खरीद 15 अप्रैल से वहीं गेहूं की फसल खरीद 20 अप्रैल से सरकारी एजेंसियां शुरू करेंगी.

जहां पहले चरण में राज्य सरकार की एजेंसियां केवल छोटे किसानों की फसल खरीदेंगी, वहीं बड़े किसानों को कम से कम एक महीने तक अपनी फसल का भंडारण अपने स्तर पर करना होगा.

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सरकार की इस शर्त से किसानों की न सिर्फ भंडारण संबंधी चिंता बढ़ गई है, बल्कि किसान संगठन सरकार के इस फैसले का विरोध करने की तैयारी में हैं.

प्रगतिशील किसान मंच के प्रधान सत्यवीर डागर का कहना है कि सरकार ही किसानों के बीच भेदभाव कर रही है. इस से किसानों के बीच बना सालों पुराना सामाजिक तानाबाना भी प्रभावित होगा.इसलिए किसान भी सरकार की इस फसल खरीद नीति से खुश नहीं हैं.

फसल के भंडारण के नाम पर राज्य सरकार ने किसानों को बोनस देने का भी ऐलान किया है, मगर किसान ऊंट के मुंह में जीरा वाली बात कह रहे हैं.

किसान संगठनों का कहना है कि लॉक डाउन खुलने तक वे सरकार के सामने किसी तरह की समस्या पैदा नहीं करना चाहते, मगर सरकार के पास अभी समय है और इन दिनों में सरकार खरीद की व्यवस्था बना सकती है.

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वहीं कृषि मंत्री जेपी दलाल का कहना है कि किसान के लिए बेशक संकट का समय है, मगर इस मौजूदा समय में किसान राज्य सरकार की मुश्किलों को भी समझें और इस में सहयोग करें.

उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार किसान का दानादाना खरीदेगी. जिस तरह सरकार की दुग्ध एजेंसी लॉक डाउन में पशुपालकों का बूंदबूंद दूध खरीदने का काम कर रही हैं, उसी तर्ज पर किसान की समस्या पर भी ध्यान देगी.

एक ओर कृषि मंत्री किसानों की परेशानी को जानेसमझे बिना अपना पक्ष रख रहे हैं, वहीं किसानों पर कोरोना के चलते दोहरी मार पड़ रही है.

यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि किसान अपनी फसल सरकारी एजेंसी को बेच पाते हैं या किसान संगठनों के हाथ की कठपुतली बने रहना चाहते हैं. पर इतना तो तय है कि किसानों पर कोरोना संकट के अलावा सरकारी संकट विकट रूप लिए खड़ा है जिस का समाधान

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