वेंकैया का काव्य

लोग न जाने कैसे कैसे फुर्सत का यह वक्त जो काट खाने को दौड़ रहा है काट रहे हैं शुरुआती  2-3 दिन तो कागज पत्तर जमाने और एलबम के पुराने फोटो देखने जैसे मध्यमवर्गीय टोटकों में गुजर गए लेकिन अब क्या करें , यह सवाल वेताल के सवालों जैसा मुंह बाए खड़ा है . देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू कवितायें लिखते वक्त काट रहे हैं . उन्होने अपनी लिखी कुछ कवितायें ट्वीट भी की हैं जो बाबा ब्लेक शी ….. और ट्विंकल ट्विंकल लिटल स्टार….. से उन्नीस नहीं कहीं जा सकतीं . इन्हें अगले सत्र से नर्सरी राइम्स में शामिल करने प्रकाश जावडेकर को विचार करना चाहिए .

वेंकैया नायडू जब उपराष्ट्रपति नहीं बने थे यानि भाजपा की दूसरी पंक्ति ( पहली का तो आदि मध्य और अंत सब नरेंद्र मोदी हैं ) के नेताओं में शुमार किए जाते थे तब कई लोग यह तय नहीं कर पाते थे कि वे बोल रहे हैं या डांट रहे हैं .  दरअसल में उनका लहजा कुदरती तौर पर सख्त शुरू से ही है जिसे उनके नजदीक के लोग ज्यादा अच्छे से जानते समझते हैं इसलिए कभी वे उन्हें अन्यथा या गंभीरता से नहीं लेते थे.

अब लाक डाउन के इस भीषण दौर में कविताएं लिखकर वेंकैया नायडू ने यह जताने की कोशिश की है कि उनके भीतर भी एक नरमों नाजुक आदमी है जो तुकबंदी करने में भी माहिर है. कविता लिखने , कविता के आवश्यक तत्वो को जानना जरूरी नहीं होता बल्कि हृदय से जो भाव शब्द बनकर प्रवाहित होने लगें उन्हें ही कविता करार दिया जाता है. अब यह और बात है कि हिन्दी अच्छे से न जानने बाले वेंकैया के दिल में कवित्व के भाव अँग्रेजी में आए.

एक कविता लिखकर ही उन्होने देशवासियों को संदेशा दे दिया है कि सब कविताए लिखो यह दुनिया का सबसे आसान काम है .  इससे आप दिनकर भले ही न बन पाओ लेकिन बीबी बच्चों की निगाह में जरूर चढ़ जाओगे . वे जब भी ऊब कर चें चें पें पें करें तो आप उन्हें अपनी कविताएं सुनाना शुरू कर दो सब भाग जाएँगे और कोई आपके सृजन और सुकून में खलल डालने की जुर्रत नहीं करेगा . आप भी गौर फरमाये वेंकैया जी के काव्य पर और अपने लाक डाउनी समय को सार्थक बनाएँ –

ईस्ट आर बेस्ट होम इस द बेस्ट , टेक सम रेस्ट , डोंट काल एनी गेस्ट …

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और नवीन बाबू का मशवरा –

कायदे से तो कविता ओड़ीशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को लिखनी चाहिए .  कम ही लोग जानते हैं कि वे एक अच्छे लेखक और सिद्धहस्त चित्रकार भी हैं लेकिन एक मजबूरी उन्हें राजनीति में ले आई थी और तभी से यानि 20 साल से वे मुख्यमंत्री हैं  . 74 वर्षीय नवीन पटनायक ने अज्ञात कारणों से शादी नहीं की इसके अलावा और भी कई वजहें हैं जो उनमें दिलचस्पी पैदा करती हैं .  बहरहाल इस अविवाहित मुख्यमंत्री को महिलाओं की फिक्र लाक डाउन के दौरान दूसरे और शादीशुदा नेताओं से कहीं ज्यादा है .

बक़ौल नवीन पटनायक पुरुष लाक डाउन का आनंद छुट्टियों की तरह न लें और महिलाओं से बार बार खाना बनबाकर उन पर बोझ न बने . बात सच भी है क्योंकि घर घर में पुरुष महिलाओं से विभिन्न डिशों की फरमाइशें कर उन्हें आराम के इन दिनों में थका ही रहे हैं . नवीन बाबू के बयान से एक बात तो साबित होती है कि महिलाओं की परेशानियाँ समझने अविवाहित रहना आड़े नहीं आता बल्कि समझने में सुविधा ही देता है .

इस बयान से परे भी नवीन महिलालों की हिमायत के लिए जाने जाते हैं . पिछले चुनाव में उन्होने महिलाओं को अपनी पार्टी बीजू जनता दल से 33 फीसदी टिकिट देने का प्रयोग किया था जिस पर ओड़ीशा की जनता ने सहमति की मुहर भी लगाई थी. सफलता का एक रास्ता महिलाओं से होकर भी जाता है यह बात राहुल गांधी नरेंद्र मोदी नीतीश कुमार और योगी आदित्य नाथ जैसे नेताओं को भी अपने अपने ढंग से समझनी चाहिए .

घरेलू हिंसा बढ़ाता लाक डाउन

नवीन पटनायक तो बनाने खाने तक ही सिमट कर रह गए लेकिन हकीकत में लाक डाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामले पहले यानि आम दिनों से कहीं ज्यादा सामने आ रहे हैं जिससे जाहिर होता है कि पुरुष खाली वक्त का इस्तेमाल मर्दांनगी दिखाने में भी कर रहे हैं . राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयर पर्सन रेखा शर्मा की माने तो लाक डाउन के पहले हफ्ते में ही आयोग को 250 के लगभग शिकायतें मिलीं थीं जिनमें से 69 घरेलू हिंसा की थीं.

बक़ौल रेखा शर्मा मामले और ज्यादा होंगे लेकिन कई महिलाएं शिकायत ही नहीं कर पा रहीं  होंगी क्योंकि उस दौरान मारपीट करने बाला उनके सामने ही होगा और कई महिलाएं तो इसलिए भी शिकायत नहीं कर पा रही कि पुलिस उनके पति को ले गई तो सास ससुर उनका जीना मुहाल कर देंगे.

तो क्या लाक डाउन महिला प्रताड़ना और घरों को तोड़ने बाला साबित हो रहा है? मुमकिन है आने बाले दिनों में इस पर शोध हो लेकिन वाकई में यह वक्त महिलाओं पर ज्यादा आफत बनकर टूटा है.  खासतौर से उन महिलाओं पर जिनकी पति या ससुराल बालों से पटरी नहीं बैठती है . बाहर सन्नाटा है ऐसे में पीड़िताए घर में रहकर पिटना ही बेहतर समझ रहीं हो तो बात कतई हैरानी की नहीं . अभी तक होता यह था कि पति पत्नी दोनों या दोनों में से कोई एक कमाने बाहर चला जाता था इसलिए गुस्सा और भड़ास दबे रहते थे पर अब फूट रहे हैं तो कोरोना भगे न भगे कुछ के घर जरूर टूट रहे हैं.

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दुग्ध दान का गणित

इन दिनों हर किसी का खासतौर से नेताओं का जी सहायता के नाम पर दान दक्षिणा के लिए मचला जा रहा है . गरीबों को बिस्कुट अनाज बगैरह देने के बाद अपने कर्ण होने का प्रचार प्रसार मोक्ष सी फीलिंग दे रहा है . अधिकतर लोगों की कोशिश यह है कि सस्ती से सस्ती चीज दान कर पुण्य कमा लिया जाये तो अच्छा होगा .  इसीलिए कोई भूमि मकान या स्वर्ण दान नहीं कर रहा है वैसी भी जिन्हें दान दिया जा रहा है वे सब पैदाइशी गरीब गुरबे हैं जो इन आइटमों को हजम ही नहीं कर पाएंगे और उनकी प्राथमिकता पीढ़ियों से पेट भरने की है , पंडे पुजारियों की तरह घर भरने की नहीं लिहाजा ये शहरी गरीब तो दुआ कर रहे हैं कि लाक डाउन हमेशा बना रहे जिससे उन्हें मुफ्त का खाना पीना मिलता रहे.

पूरे देश की तरह दूध कर्नाटक में भी इन दिनो फालतू फिक रहा है क्योंकि मिठाइयाँ और दूसरे मिल्क प्रोडक्ट नहीं बन रहे नतीजतन देश में घी दूध की नदियां तो नहीं पर नाले जरूर बहते दिखाई दे रहे हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री एस येदियुरप्पा इन दिनो गरीब बस्तियों और झुग्गी झोपड़ियों में दूध बाँटते घूम रहे हैं. कर्नाटक में प्रतिदिन 69 लाख लीटर दुग्धोत्पादन होता है जिसमें से लाक डाउन के चलते 42 लाख लीटर बिक नहीं पा रहा है सो दरियादिल येदि गरीबों को दूध का स्वाद चखाकर उन्हें एक नई फीलिंग करा रहे हैं.

अब यह और बात है कि येदि सलीके से फोटो खिंच जाने तक यानि घंटे दो घंटे में जितना दूध नहीं बाँट पाते उससे ज्यादा पैसा उनके लाव लश्कर पर खर्च हो रहा है क्योंकि उनके साथ आधा दर्जन मंत्री और एक दर्जन अधिकारियों की फौज चलती है.

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